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मत्ती 1:1 ¶ अब्राहम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, यीशु मसीह की वंशावली। (IN)

मत्ती 1:2 अब्राहम से इसहाक उत्‍पन्‍न हुआ, इसहाक से याकूब उत्‍पन्‍न हुआ, और याकूब से यहूदा और उसके भाई उत्‍पन्‍न हुए। (IN)

मत्ती 1:3 यहूदा और तामार से पेरेस व जेरह उत्‍पन्‍न हुए, और पेरेस से हेस्रोन उत्‍पन्‍न हुआ, और हेस्रोन से एराम उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:4 एराम से अम्मीनादाब उत्‍पन्‍न हुआ, और अम्मीनादाब से नहशोन, और नहशोन से सलमोन उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:5 सलमोन और राहाब से बोआज उत्‍पन्‍न हुआ, और बोआज और रूत से ओबेद उत्‍पन्‍न हुआ, और ओबेद से यिशै उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:6 और यिशै से दाऊद राजा उत्‍पन्‍न हुआ। और दाऊद से सुलैमान उस स्त्री से उत्‍पन्‍न हुआ जो पहले ऊरिय्याह की पत्‍नी थी। (IN)

मत्ती 1:7 सुलैमान से रहबाम उत्‍पन्‍न हुआ, और रहबाम से अबिय्याह उत्‍पन्‍न हुआ, और अबिय्याह से आसा उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:8 आसा से यहोशाफात उत्‍पन्‍न हुआ, और यहोशाफात से योराम उत्‍पन्‍न हुआ, और योराम से उज्जियाह उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:9 उज्जियाह से योताम उत्‍पन्‍न हुआ, योताम से आहाज उत्‍पन्‍न हुआ, और आहाज से हिजकिय्याह उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:10 हिजकिय्याह से मनश्शे उत्‍पन्‍न हुआ, मनश्शे से आमोन उत्‍पन्‍न हुआ, और आमोन से योशिय्याह उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:11 और बन्दी होकर बाबेल जाने के समय में योशिय्याह से यकुन्याह, और उसके भाई उत्‍पन्‍न हुए। (IN)

मत्ती 1:12 बन्दी होकर बाबेल पहुँचाए जाने के बाद यकुन्याह से शालतियेल उत्‍पन्‍न हुआ, और शालतियेल से जरुब्बाबेल उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:13 जरुब्बाबेल से अबीहूद उत्‍पन्‍न हुआ, अबीहूद से एलयाकीम उत्‍पन्‍न हुआ, और एलयाकीम से अजोर उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:14 अजोर से सादोक उत्‍पन्‍न हुआ, सादोक से अखीम उत्‍पन्‍न हुआ, और अखीम से एलीहूद उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:15 एलीहूद से एलीआजर उत्‍पन्‍न हुआ, एलीआजर से मत्तान उत्‍पन्‍न हुआ, और मत्तान से याकूब उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

मत्ती 1:16 याकूब से यूसुफ उत्‍पन्‍न हुआ, जो मरियम का पति था, और मरियम से यीशु उत्‍पन्‍न हुआ जो मसीह कहलाता है। (IN)

मत्ती 1:17 अब्राहम से दाऊद तक सब चौदह पीढ़ी हुई, और दाऊद से बाबेल को बन्दी होकर पहुँचाए जाने तक चौदह पीढ़ी, और बन्दी होकर बाबेल को पहुँचाए जाने के समय से लेकर मसीह तक चौदह पीढ़ी हुई। (IN)

मत्ती 1:18 ¶ अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उसकी माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उनके इकट्ठे होने के पहले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। (IN)

मत्ती 1:19 अतः उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। (IN)

मत्ती 1:20 जब वह इन बातों की सोच ही में था तो परमेश्‍वर का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, “हे यूसुफ! दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्‍नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। (IN)

मत्ती 1:21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।” (IN)

मत्ती 1:22 यह सब कुछ इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था, वह पूरा हो (IN)

मत्ती 1:23 “देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा,” जिसका अर्थ है - परमेश्‍वर हमारे साथ। (IN)

मत्ती 1:24 तब यूसुफ नींद से जागकर परमेश्‍वर के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्‍नी को अपने यहाँ ले आया। (IN)

मत्ती 1:25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा। (IN)

मत्ती 2:1 ¶ हेरोदेस राजा के दिनों में जब यहूदिया के बैतलहम में यीशु का जन्म हुआ, तब, पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे, (IN)

मत्ती 2:2 “यहूदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको झुककर प्रणाम करने आए हैं।” (IN)

मत्ती 2:3 यह सुनकर हेरोदेस राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम घबरा गया। (IN)

मत्ती 2:4 और उसने लोगों के सब प्रधान याजकों और शास्त्रियों को इकट्ठा करके उनसे पूछा, “मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए?” (IN)

मत्ती 2:5 उन्होंने उससे कहा, “यहूदिया के बैतलहम में; क्योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा लिखा गया है : (IN)

मत्ती 2:6 ¶ “हे बैतलहम, यहूदा के प्रदेश, तू किसी भी रीति से यहूदा के अधिकारियों में सबसे छोटा नहीं; क्योंकि तुझ में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा बनेगा।” (IN)

मत्ती 2:7 तब हेरोदेस ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उनसे पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था। (IN)

मत्ती 2:8 और उसने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, “जाकर उस बालक के विषय में ठीक-ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उसको प्रणाम करूँ।” (IN)

मत्ती 2:9 वे राजा की बात सुनकर चले गए, और जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उनके आगे-आगे चला; और जहाँ बालक था, उस जगह के ऊपर पहुँचकर ठहर गया। (IN)

मत्ती 2:10 उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए। (IN)

मत्ती 2:11 और उस घर में पहुँचकर उस बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, और दण्डवत् होकर बालक की आराधना की, और अपना-अपना थैला खोलकर उसे सोना, और लोबान, और गन्धरस की भेंट चढ़ाई। (IN)

मत्ती 2:12 और स्वप्न में यह चेतावनी पा कर कि हेरोदेस के पास फिर न जाना, वे दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए। (IN)

मत्ती 2:13 ¶ उनके चले जाने के बाद, परमेश्‍वर के एक दूत ने स्वप्न में प्रकट होकर यूसुफ से कहा, “उठ! उस बालक को और उसकी माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझ से न कहूँ, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूँढ़ने पर है कि इसे मरवा डाले।” (IN)

मत्ती 2:14 तब वह रात ही को उठकर बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र को चल दिया। (IN)

मत्ती 2:15 और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा। इसलिए कि वह वचन जो प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था पूरा हो “मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया।” (IN)

मत्ती 2:16 ¶ जब हेरोदेस ने यह देखा, कि ज्योतिषियों ने उसके साथ धोखा किया है, तब वह क्रोध से भर गया, और लोगों को भेजकर ज्योतिषियों से ठीक-ठीक पूछे हुए समय के अनुसार बैतलहम और उसके आस-पास के स्थानों के सब लड़कों को जो दो वर्ष के या उससे छोटे थे, मरवा डाला। (IN)

मत्ती 2:17 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हुआ (IN)

मत्ती 2:18 “रामाह में एक करुण-नाद सुनाई दिया, (IN)

मत्ती 2:19 ¶ हेरोदेस के मरने के बाद, प्रभु के दूत ने मिस्र में यूसुफ को स्वप्न में प्रकट होकर कहा, (IN)

मत्ती 2:20 “उठ, बालक और उसकी माता को लेकर इस्राएल के देश में चला जा; क्योंकि जो बालक के प्राण लेना चाहते थे, वे मर गए।” (IN)

मत्ती 2:21 वह उठा, और बालक और उसकी माता को साथ लेकर इस्राएल के देश में आया। (IN)

मत्ती 2:22 परन्तु यह सुनकर कि अरखिलाउस अपने पिता हेरोदेस की जगह यहूदिया पर राज्य कर रहा है, वहाँ जाने से डरा; और स्वप्न में परमेश्‍वर से चेतावनी पा कर गलील प्रदेश में चला गया। (IN)

मत्ती 2:23 और नासरत नामक नगर में जा बसा, ताकि वह वचन पूरा हो, जो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा गया थाः “वह नासरी कहलाएगा।” (IN)

मत्ती 3:1 ¶ उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर यहूदिया के जंगल में यह प्रचार करने लगा : (IN)

मत्ती 3:2 “मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” (IN)

मत्ती 3:3 यह वही है जिसके बारे में यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा था : (IN)

मत्ती 3:4 ¶ यह यूहन्ना ऊँट के रोम का वस्त्र पहने था, और अपनी कमर में चमड़े का कमरबन्द बाँधे हुए था, और उसका भोजन टिड्डियाँ और वनमधु था। (IN)

मत्ती 3:5 तब यरूशलेम के और सारे यहूदिया के, और यरदन के आस-पास के सारे क्षेत्र के लोग उसके पास निकल आए। (IN)

मत्ती 3:6 और अपने-अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लिया। (IN)

मत्ती 3:7 जब उसने बहुत से फरीसियों और सदूकियों को बपतिस्मा के लिये अपने पास आते देखा, तो उनसे कहा, “हे साँप के बच्चों, तुम्हें किसने चेतावनी दी कि आनेवाले क्रोध से भागो? (IN)

मत्ती 3:8 मन फिराव के योग्य फल लाओ; (IN)

मत्ती 3:9 और अपने-अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता अब्राहम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्‍वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिये सन्तान उत्‍पन्‍न कर सकता है। (IN)

मत्ती 3:10 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है। (IN)

मत्ती 3:11 ¶ “मैं तो पानी से तुम्हें मन फिराव का बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु जो मेरे बाद आनेवाला है, वह मुझसे शक्तिशाली है; मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। (IN)

मत्ती 3:12 उसका सूप उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं।” (IN)

मत्ती 3:13 ¶ उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उससे बपतिस्मा लेने आया। (IN)

मत्ती 3:14 परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, “मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?” (IN)

मत्ती 3:15 यीशु ने उसको यह उत्तर दिया, “अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।” तब उसने उसकी बात मान ली। (IN)

मत्ती 3:16 और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और उसके लिये आकाश खुल गया; और उसने परमेश्‍वर की आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा। (IN)

मत्ती 3:17 और यह आकाशवाणी हुई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्‍न हूँ।” (IN)

मत्ती 4:1 ¶ तब उस समय पवित्र आत्मा यीशु को एकांत में ले गया ताकि शैतान से उसकी परीक्षा हो। (IN)

मत्ती 4:2 वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। (IN)

मत्ती 4:3 तब परखनेवाले ने पास आकर उससे कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।” (IN)

मत्ती 4:4 यीशु ने उत्तर दिया, “लिखा है, (IN)

मत्ती 4:5 ¶ तब शैतान उसे पवित्र नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया। (IN)

मत्ती 4:6 और उससे कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे।’” (IN)

मत्ती 4:7 यीशु ने उससे कहा, “यह भी लिखा है, ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर की परीक्षा न कर।’” (IN)

मत्ती 4:8 फिर शैतान उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर (IN)

मत्ती 4:9 उससे कहा, “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा।” (IN)

मत्ती 4:10 तब यीशु ने उससे कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’” (IN)

मत्ती 4:11 तब शैतान उसके पास से चला गया, और स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे। (IN)

मत्ती 4:12 ¶ जब उसने यह सुना कि यूहन्ना पकड़वा दिया गया, तो वह गलील को चला गया। (IN)

मत्ती 4:13 और नासरत को छोड़कर कफरनहूम में जो झील के किनारे जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र में है जाकर रहने लगा। (IN)

मत्ती 4:14 ताकि जो यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो। (IN)

मत्ती 4:15 “जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र, (IN)

मत्ती 4:16 जो लोग अंधकार में बैठे थे उन्होंने बड़ी ज्योति देखी; और जो मृत्यु के क्षेत्र और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी।” (IN)

मत्ती 4:17 ¶ उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (IN)

मत्ती 4:18 ¶ उसने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछुए थे। (IN)

मत्ती 4:19 और उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।” (IN)

मत्ती 4:20 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। (IN)

मत्ती 4:21 और वहाँ से आगे बढ़कर, उसने और दो भाइयों अर्थात् जब्दी के पुत्र याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधारते देखा; और उन्हें भी बुलाया। (IN)

मत्ती 4:22 वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। (IN)

मत्ती 4:23 ¶ और यीशु सारे गलील में फिरता हुआ उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और लोगों की हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। (IN)

मत्ती 4:24 और सारे सीरिया देश में उसका यश फैल गया; और लोग सब बीमारों को, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों और दुःखों में जकड़े हुए थे, और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और मिर्गीवालों और लकवे के रोगियों को उसके पास लाए और उसने उन्हें चंगा किया। (IN)

मत्ती 4:25 और गलील, दिकापुलिस, यरूशलेम, यहूदिया और यरदन के पार से भीड़ की भीड़ उसके पीछे हो ली। (IN)

मत्ती 5:1 ¶ वह भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए। (IN)

मत्ती 5:2 और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा : (IN)

मत्ती 5:3 “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। (IN)

मत्ती 5:4 “धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शान्ति पाएँगे। (IN)

मत्ती 5:5 “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। (IN)

मत्ती 5:6 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएँगे। (IN)

मत्ती 5:7 “धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। (IN)

मत्ती 5:8 “धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर को देखेंगे। (IN)

मत्ती 5:9 “धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर के पुत्र कहलाएँगे। (IN)

मत्ती 5:10 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। (IN)

मत्ती 5:11 ¶ “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। (IN)

मत्ती 5:12 आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था। (IN)

मत्ती 5:13 ¶ “तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए। (IN)

मत्ती 5:14 तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। (IN)

मत्ती 5:15 और लोग दीया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुँचता है। (IN)

मत्ती 5:16 उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें। (IN)

मत्ती 5:17 ¶ “यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षाओं को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ। (IN)

मत्ती 5:18 क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा। (IN)

मत्ती 5:19 इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा। (IN)

मत्ती 5:20 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे। (IN)

मत्ती 5:21 ¶ “तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।’ (IN)

मत्ती 5:22 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे ‘अरे मूर्ख’ वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा। (IN)

मत्ती 5:23 इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, (IN)

मत्ती 5:24 तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा। (IN)

मत्ती 5:25 जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग में हैं, उससे झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मुद्दई तुझे न्यायाधीश को सौंपे, और न्यायाधीश तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए। (IN)

मत्ती 5:26 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तू पाई-पाई चुका न दे तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा। (IN)

मत्ती 5:27 ¶ “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’ (IN)

मत्ती 5:28 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका। (IN)

मत्ती 5:29 यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। (IN)

मत्ती 5:30 और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसको काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। (IN)

मत्ती 5:31 ¶ “यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्‍नी को त्याग दे, तो उसे त्यागपत्र दे।’ (IN)

मत्ती 5:32 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्‍नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है। (IN)

मत्ती 5:33 ¶ “फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, ‘झूठी शपथ न खाना, परन्तु परमेश्‍वर के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।’ (IN)

मत्ती 5:34 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्‍वर का सिंहासन है। (IN)

मत्ती 5:35 न धरती की, क्योंकि वह उसके पाँवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है। (IN)

मत्ती 5:36 अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है। (IN)

मत्ती 5:37 परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इससे अधिक होता है वह बुराई से होता है। (IN)

मत्ती 5:38 ¶ “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत। (IN)

मत्ती 5:39 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे। (IN)

मत्ती 5:40 और यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा करके तेरा कुर्ता लेना चाहे, तो उसे अंगरखा भी ले लेने दे। (IN)

मत्ती 5:41 और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा। (IN)

मत्ती 5:42 जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उससे मुँह न मोड़। (IN)

मत्ती 5:43 ¶ “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर। (IN)

मत्ती 5:44 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो। (IN)

मत्ती 5:45 जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी पर मेंह बरसाता है। (IN)

मत्ती 5:46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? (IN)

मत्ती 5:47 ¶ “और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? (IN)

मत्ती 5:48 इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है। (IN)

मत्ती 6:1 ¶ “सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिये अपने धार्मिकता के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे। (IN)

मत्ती 6:2 ¶ “इसलिए जब तू दान करे, तो अपना ढिंढोरा न पिटवा, जैसे कपटी, आराधनालयों और गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करें, मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। (IN)

मत्ती 6:3 परन्तु जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायाँ हाथ न जानने पाए। (IN)

मत्ती 6:4 ताकि तेरा दान गुप्त रहे; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा। (IN)

मत्ती 6:5 ¶ “और जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये आराधनालयों में और सड़कों के चौराहों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उनको अच्छा लगता है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। (IN)

मत्ती 6:6 परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा। (IN)

मत्ती 6:7 प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक-बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बार-बार बोलने से उनकी सुनी जाएगी। (IN)

मत्ती 6:8 इसलिए तुम उनके समान न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या-क्या आवश्यकताएँ है। (IN)

मत्ती 6:9 ¶ “अतः तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो: (IN)

मत्ती 6:10 ‘तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो। (IN)

मत्ती 6:11 ‘हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे। (IN)

मत्ती 6:12 ‘और जिस प्रकार हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर। (IN)

मत्ती 6:13 ‘और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; [क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही है।’ आमीन।] (IN)

मत्ती 6:14 ¶ “इसलिए यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। (IN)

मत्ती 6:15 और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा। (IN)

मत्ती 6:16 ¶ “जब तुम उपवास करो, तो कपटियों के समान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुँह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। (IN)

मत्ती 6:17 परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुँह धो। (IN)

मत्ती 6:18 ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने। इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा। (IN)

मत्ती 6:19 ¶ “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध लगाते और चुराते हैं। (IN)

मत्ती 6:20 परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहाँ न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं। (IN)

मत्ती 6:21 क्योंकि जहाँ तेरा धन है वहाँ तेरा मन भी लगा रहेगा। (IN)

मत्ती 6:22 ¶ “शरीर का दीया आँख है: इसलिए यदि तेरी आँख अच्छी हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा। (IN)

मत्ती 6:23 परन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अंधियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अंधकार हो तो वह अंधकार कैसा बड़ा होगा! (IN)

मत्ती 6:24 ¶ “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, या एक से निष्ठावान रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम परमेश्‍वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते। (IN)

मत्ती 6:25 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे, और क्या पीएँगे, और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहनेंगे, क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं? (IN)

मत्ती 6:26 आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तो भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते? (IN)

मत्ती 6:27 तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है? (IN)

मत्ती 6:28 ¶ “और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो? सोसनों के फूलों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते हैं, न काटते हैं। (IN)

मत्ती 6:29 तो भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में उनमें से किसी के समान वस्त्र पहने हुए न था। (IN)

मत्ती 6:30 इसलिए जब परमेश्‍वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहनाता है, तो हे अल्पविश्वासियों, तुम को वह क्यों न पहनाएगा? (IN)

मत्ती 6:31 ¶ “इसलिए तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहनेंगे? (IN)

मत्ती 6:32 क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएँ चाहिए। (IN)

मत्ती 6:33 इसलिए पहले तुम परमेश्‍वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ तुम्हें मिल जाएँगी। (IN)

मत्ती 6:34 अतः कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुःख बहुत है। (IN)

मत्ती 7:1 ¶ “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। (IN)

मत्ती 7:2 क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा। (IN)

मत्ती 7:3 ¶ “तू क्यों अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? (IN)

मत्ती 7:4 जब तेरी ही आँख में लट्ठा है, तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘ला मैं तेरी आँख से तिनका निकाल दूँ?’ (IN)

मत्ती 7:5 हे कपटी, पहले अपनी आँख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आँख का तिनका भली भाँति देखकर निकाल सकेगा। (IN)

मत्ती 7:6 ¶ “पवित्र वस्तु कुत्तों को न दो, और अपने मोती सूअरों के आगे मत डालो; ऐसा न हो कि वे उन्हें पाँवों तले रौंदें और पलटकर तुम को फाड़ डालें। (IN)

मत्ती 7:7 ¶ “माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। (IN)

मत्ती 7:8 क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। (IN)

मत्ती 7:9 ¶ “तुम में से ऐसा कौन मनुष्य है, कि यदि उसका पुत्र उससे रोटी माँगे, तो वह उसे पत्थर दे? (IN)

मत्ती 7:10 या मछली माँगे, तो उसे साँप दे? (IN)

मत्ती 7:11 अतः जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को अच्छी वस्तुएँ क्यों न देगा? (IN)

मत्ती 7:12 इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा यही है। (IN)

मत्ती 7:13 ¶ “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश की ओर ले जाता है; और बहुत सारे लोग हैं जो उससे प्रवेश करते हैं। (IN)

मत्ती 7:14 क्योंकि संकरा है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं। (IN)

मत्ती 7:15 ¶ “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं। (IN)

मत्ती 7:16 उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? (IN)

मत्ती 7:17 इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। (IN)

मत्ती 7:18 अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। (IN)

मत्ती 7:19 जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। (IN)

मत्ती 7:20 अतः उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। (IN)

मत्ती 7:21 ¶ “जो मुझसे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। (IN)

मत्ती 7:22 उस दिन बहुत लोग मुझसे कहेंगे; ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?’ (IN)

मत्ती 7:23 तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।’ (IN)

मत्ती 7:24 ¶ “इसलिए जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। (IN)

मत्ती 7:25 और बारिश और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी। (IN)

मत्ती 7:26 परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस मूर्ख मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया। (IN)

मत्ती 7:27 और बारिश, और बाढ़ें आईं, और आँधियाँ चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।” (IN)

मत्ती 7:28 ¶ जब यीशु ये बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई। (IN)

मत्ती 7:29 क्योंकि वह उनके शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु अधिकारी के समान उन्हें उपदेश देता था। (IN)

मत्ती 8:1 ¶ जब यीशु उस पहाड़ से उतरा, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। (IN)

मत्ती 8:2 और, एक कोढ़ी ने पास आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” (IN)

मत्ती 8:3 यीशु ने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ, और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा” और वह तुरन्त कोढ़ से शुद्ध हो गया। (IN)

मत्ती 8:4 यीशु ने उससे कहा, “देख, किसी से न कहना, परन्तु जाकर अपने आप को याजक को दिखा और जो चढ़ावा मूसा ने ठहराया है उसे चढ़ा, ताकि उनके लिये गवाही हो।” (IN)

मत्ती 8:5 ¶ और जब वह कफरनहूम में आया तो एक सूबेदार ने उसके पास आकर उससे विनती की, (IN)

मत्ती 8:6 “हे प्रभु, मेरा सेवक घर में लकवे का मारा बहुत दुःखी पड़ा है।” (IN)

मत्ती 8:7 उसने उससे कहा, “मैं आकर उसे चंगा करूँगा।” (IN)

मत्ती 8:8 सूबेदार ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए, पर केवल मुँह से कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। (IN)

मत्ती 8:9 क्योंकि मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ, और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक से कहता हूँ, जा, तो वह जाता है; और दूसरे को कि आ, तो वह आता है; और अपने दास से कहता हूँ, कि यह कर, तो वह करता है।” (IN)

मत्ती 8:10 ¶ यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और जो उसके पीछे आ रहे थे उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। (IN)

मत्ती 8:11 और मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत सारे पूर्व और पश्चिम से आकर अब्राहम और इसहाक और याकूब के साथ स्वर्ग के राज्य में बैठेंगे। (IN)

मत्ती 8:12 परन्तु राज्य के सन्तान बाहर अंधकार में डाल दिए जाएँगे: वहाँ रोना और दाँतों का पीसना होगा।” (IN)

मत्ती 8:13 और यीशु ने सूबेदार से कहा, “जा, जैसा तेरा विश्वास है, वैसा ही तेरे लिये हो।” और उसका सेवक उसी समय चंगा हो गया। (IN)

मत्ती 8:14 ¶ और यीशु ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को तेज बुखार में पड़ा देखा। (IN)

मत्ती 8:15 उसने उसका हाथ छुआ और उसका ज्वर उतर गया; और वह उठकर उसकी सेवा करने लगी। (IN)

मत्ती 8:16 जब संध्या हुई तब वे उसके पास बहुत से लोगों को लाए जिनमें दुष्टात्माएँ थीं और उसने उन आत्माओं को अपने वचन से निकाल दिया, और सब बीमारों को चंगा किया। (IN)

मत्ती 8:17 ताकि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हो: “उसने आप हमारी दुर्बलताओं को ले लिया और हमारी बीमारियों को उठा लिया।” (IN)

मत्ती 8:18 ¶ यीशु ने अपने चारों ओर एक बड़ी भीड़ देखकर झील के उस पार जाने की आज्ञा दी। (IN)

मत्ती 8:19 और एक शास्त्री ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, जहाँ कहीं तू जाएगा, मैं तेरे पीछे-पीछे हो लूँगा।” (IN)

मत्ती 8:20 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु मनुष्य के पुत्र के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।” (IN)

मत्ती 8:21 एक और चेले ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे, कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” (IN)

मत्ती 8:22 यीशु ने उससे कहा, “तू मेरे पीछे हो ले; और मुर्दों को अपने मुर्दे गाड़ने दे।” (IN)

मत्ती 8:23 ¶ जब वह नाव पर चढ़ा, तो उसके चेले उसके पीछे हो लिए। (IN)

मत्ती 8:24 और, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढँपने लगी; और वह सो रहा था। (IN)

मत्ती 8:25 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश हुए जाते हैं।” (IN)

मत्ती 8:26 उसने उनसे कहा, “हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो?” तब उसने उठकर आँधी और पानी को डाँटा, और सब शान्त हो गया। (IN)

मत्ती 8:27 और लोग अचम्भा करके कहने लगे, “यह कैसा मनुष्य है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं।” (IN)

मत्ती 8:28 ¶ जब वह उस पार गदरेनियों के क्षेत्र में पहुँचा, तो दो मनुष्य जिनमें दुष्टात्माएँ थीं कब्रों से निकलते हुए उसे मिले, जो इतने प्रचण्ड थे, कि कोई उस मार्ग से जा नहीं सकता था। (IN)

मत्ती 8:29 और, उन्होंने चिल्लाकर कहा, “हे परमेश्‍वर के पुत्र, हमारा तुझ से क्या काम? क्या तू समय से पहले हमें दुःख देने यहाँ आया है?” (IN)

मत्ती 8:30 उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का झुण्ड चर रहा था। (IN)

मत्ती 8:31 दुष्टात्माओं ने उससे यह कहकर विनती की, “यदि तू हमें निकालता है, तो सूअरों के झुण्ड में भेज दे।” (IN)

मत्ती 8:32 उसने उनसे कहा, “जाओ!” और वे निकलकर सूअरों में घुस गई और सारा झुण्ड टीले पर से झपटकर पानी में जा पड़ा और डूब मरा। (IN)

मत्ती 8:33 और चरवाहे भागे, और नगर में जाकर ये सब बातें और जिनमें दुष्टात्माएँ थीं; उनका सारा हाल कह सुनाया। (IN)

मत्ती 8:34 और सारे नगर के लोग यीशु से भेंट करने को निकल आए और उसे देखकर विनती की, कि हमारे क्षेत्र से बाहर निकल जा। (IN)

मत्ती 9:1 ¶ फिर वह नाव पर चढ़कर पार गया, और अपने नगर में आया। (IN)

मत्ती 9:2 और कई लोग एक लकवे के मारे हुए को खाट पर रखकर उसके पास लाए। यीशु ने उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के मारे हुए से कहा, “हे पुत्र, धैर्य रख; तेरे पाप क्षमा हुए।” (IN)

मत्ती 9:3 और कई शास्त्रियों ने सोचा, “यह तो परमेश्‍वर की निन्दा करता है।” (IN)

मत्ती 9:4 यीशु ने उनके मन की बातें जानकर कहा, “तुम लोग अपने-अपने मन में बुरा विचार क्यों कर रहे हो? (IN)

मत्ती 9:5 सहज क्या है? यह कहना, ‘तेरे पाप क्षमा हुए’, या यह कहना, ‘उठ और चल फिर।’ (IN)

मत्ती 9:6 परन्तु इसलिए कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।” उसने लकवे के मारे हुए से कहा, “उठ, अपनी खाट उठा, और अपने घर चला जा।” (IN)

मत्ती 9:7 वह उठकर अपने घर चला गया। (IN)

मत्ती 9:8 लोग यह देखकर डर गए और परमेश्‍वर की महिमा करने लगे जिसने मनुष्यों को ऐसा अधिकार दिया है। (IN)

मत्ती 9:9 ¶ वहाँ से आगे बढ़कर यीशु ने मत्ती नामक एक मनुष्य को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” वह उठकर उसके पीछे हो लिया। (IN)

मत्ती 9:10 और जब वह घर में भोजन करने के लिये बैठा तो बहुत सारे चुंगी लेनेवाले और पापी आकर यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे। (IN)

मत्ती 9:11 यह देखकर फरीसियों ने उसके चेलों से कहा, “तुम्हारा गुरु चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाता है?” (IN)

मत्ती 9:12 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “वैद्य भले-चंगों को नहीं परन्तु बीमारों के लिए आवश्यक है। (IN)

मत्ती 9:13 इसलिए तुम जाकर इसका अर्थ सीख लो, कि मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूँ; क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ।” (IN)

मत्ती 9:14 ¶ तब यूहन्ना के चेलों ने उसके पास आकर कहा, “क्या कारण है कि हम और फरीसी इतना उपवास करते हैं, पर तेरे चेले उपवास नहीं करते?” (IN)

मत्ती 9:15 यीशु ने उनसे कहा, “क्या बाराती, जब तक दुल्हा उनके साथ है शोक कर सकते हैं? पर वे दिन आएँगे कि दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, उस समय वे उपवास करेंगे। (IN)

मत्ती 9:16 नये कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नहीं लगाता, क्योंकि वह पैबन्द वस्त्र से और कुछ खींच लेता है, और वह अधिक फट जाता है। (IN)

मत्ती 9:17 और नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरते हैं; क्योंकि ऐसा करने से मशकें फट जाती हैं, और दाखरस बह जाता है और मशकें नाश हो जाती हैं, परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरते हैं और वह दोनों बची रहती हैं।” (IN)

मत्ती 9:18 ¶ वह उनसे ये बातें कह ही रहा था, कि एक सरदार ने आकर उसे प्रणाम किया और कहा, “मेरी पुत्री अभी मरी है; परन्तु चलकर अपना हाथ उस पर रख, तो वह जीवित हो जाएगी।” (IN)

मत्ती 9:19 यीशु उठकर अपने चेलों समेत उसके पीछे हो लिया। (IN)

मत्ती 9:20 और देखो, एक स्त्री ने जिसके बारह वर्ष से लहू बहता था, उसके पीछे से आकर उसके वस्त्र के कोने को छू लिया। (IN)

मत्ती 9:21 क्योंकि वह अपने मन में कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी तो चंगी हो जाऊँगी।” (IN)

मत्ती 9:22 यीशु ने मुड़कर उसे देखा और कहा, “पुत्री धैर्य रख; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” अतः वह स्त्री उसी समय चंगी हो गई। (IN)

मत्ती 9:23 जब यीशु उस सरदार के घर में पहुँचा और बाँसुरी बजानेवालों और भीड़ को हुल्लड़ मचाते देखा, (IN)

मत्ती 9:24 तब कहा, “हट जाओ, लड़की मरी नहीं, पर सोती है।” इस पर वे उसकी हँसी उड़ाने लगे। (IN)

मत्ती 9:25 परन्तु जब भीड़ निकाल दी गई, तो उसने भीतर जाकर लड़की का हाथ पकड़ा, और वह जी उठी। (IN)

मत्ती 9:26 और इस बात की चर्चा उस सारे देश में फैल गई। (IN)

मत्ती 9:27 ¶ जब यीशु वहाँ से आगे बढ़ा, तो दो अंधे उसके पीछे यह पुकारते हुए चले, “हे दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” (IN)

मत्ती 9:28 जब वह घर में पहुँचा, तो वे अंधे उसके पास आए, और यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हें विश्वास है, कि मैं यह कर सकता हूँ?” उन्होंने उससे कहा, “हाँ प्रभु।” (IN)

मत्ती 9:29 तब उसने उनकी आँखें छूकर कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।” (IN)

मत्ती 9:30 और उनकी आँखें खुल गई और यीशु ने उन्हें सख्‍ती के साथ सचेत किया और कहा, “सावधान, कोई इस बात को न जाने।” (IN)

मत्ती 9:31 पर उन्होंने निकलकर सारे क्षेत्र में उसका यश फैला दिया। (IN)

मत्ती 9:32 ¶ जब वे बाहर जा रहे थे, तब, लोग एक गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी उसके पास लाए। (IN)

मत्ती 9:33 और जब दुष्टात्मा निकाल दी गई, तो गूंगा बोलने लगा। और भीड़ ने अचम्भा करके कहा, “इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।” (IN)

मत्ती 9:34 परन्तु फरीसियों ने कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” (IN)

मत्ती 9:35 ¶ और यीशु सब नगरों और गाँवों में फिरता रहा और उनके आराधनालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। (IN)

मत्ती 9:36 जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई चरवाहा न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे। (IN)

मत्ती 9:37 तब उसने अपने चेलों से कहा, “फसल तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। (IN)

मत्ती 9:38 इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत में काम करने के लिये मजदूर भेज दे।” (IN)

मत्ती 10:1 ¶ फिर उसने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया, कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें। (IN)

मत्ती 10:2 इन बारह प्रेरितों के नाम ये हैं पहला शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब, और उसका भाई यूहन्ना; (IN)

मत्ती 10:3 फिलिप्पुस और बरतुल्मै, थोमा, और चुंगी लेनेवाला मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब और तद्दै। (IN)

मत्ती 10:4 शमौन कनानी, और यहूदा इस्करियोती, जिसने उसे पकड़वाया। (IN)

मत्ती 10:5 ¶ इन बारहों को यीशु ने यह निर्देश देकर भेजा, “अन्यजातियों की ओर न जाना, और सामरियों के किसी नगर में प्रवेश न करना। (IN)

मत्ती 10:6 परन्तु इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों के पास जाना। (IN)

मत्ती 10:7 और चलते-चलते प्रचार करके कहो कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। (IN)

मत्ती 10:8 बीमारों को चंगा करो: मरे हुओं को जिलाओ, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्टात्माओं को निकालो। तुम ने सेंत-मेंत पाया है, सेंत-मेंत दो। (IN)

मत्ती 10:9 अपने बटुओं में न तो सोना, और न रूपा, और न तांबा रखना। (IN)

मत्ती 10:10 मार्ग के लिये न झोली रखो, न दो कुर्ता, न जूते और न लाठी लो, क्योंकि मजदूर को उसका भोजन मिलना चाहिए। (IN)

मत्ती 10:11 ¶ “जिस किसी नगर या गाँव में जाओ तो पता लगाओ कि वहाँ कौन योग्य है? और जब तक वहाँ से न निकलो, उसी के यहाँ रहो। (IN)

मत्ती 10:12 और घर में प्रवेश करते हुए उसे आशीष देना। (IN)

मत्ती 10:13 यदि उस घर के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा कल्याण उन पर पहुँचेगा परन्तु यदि वे योग्य न हों तो तुम्हारा कल्याण तुम्हारे पास लौट आएगा। (IN)

मत्ती 10:14 और जो कोई तुम्हें ग्रहण न करे, और तुम्हारी बातें न सुने, उस घर या उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो। (IN)

मत्ती 10:15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि न्याय के दिन उस नगर की दशा से सदोम और गमोरा के नगरों की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (IN)

मत्ती 10:16 ¶ “देखो, मैं तुम्हें भेड़ों की तरह भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ इसलिए साँपों की तरह बुद्धिमान और कबूतरों की तरह भोले बनो। (IN)

मत्ती 10:17 परन्तु लोगों से सावधान रहो, क्योंकि वे तुम्हें सभाओं में सौंपेंगे, और अपने आराधनालयों में तुम्हें कोड़े मारेंगे। (IN)

मत्ती 10:18 तुम मेरे लिये राज्यपालों और राजाओं के सामने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिये पेश किये जाओगे। (IN)

मत्ती 10:19 जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे तो यह चिन्ता न करना, कि तुम कैसे बोलोगे और क्‍या कहोगे; क्योंकि जो कुछ तुम को कहना होगा, वह उसी समय तुम्हें बता दिया जाएगा। (IN)

मत्ती 10:20 क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो परन्तु तुम्हारे पिता का आत्मा तुम्हारे द्वारा बोलेगा। (IN)

मत्ती 10:21 ¶ “भाई अपने भाई को और पिता अपने पुत्र को, मरने के लिये सौंपेंगे, और बच्चे माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। (IN)

मत्ती 10:22 मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, पर जो अन्त तक धीरज धरेगा उसी का उद्धार होगा। (IN)

मत्ती 10:23 जब वे तुम्हें एक नगर में सताएँ, तो दूसरे को भाग जाना। मैं तुम से सच कहता हूँ, तुम मनुष्य के पुत्र के आने से पहले इस्राएल के सब नगरों में से गए भी न होंगे। (IN)

मत्ती 10:24 ¶ “चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं; और न ही दास अपने स्वामी से। (IN)

मत्ती 10:25 चेले का गुरु के, और दास का स्वामी के बराबर होना ही बहुत है; जब उन्होंने घर के स्वामी को शैतान कहा तो उसके घरवालों को क्यों न कहेंगे? (IN)

मत्ती 10:26 ¶ “इसलिए उनसे मत डरना, क्योंकि कुछ ढँका नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। (IN)

मत्ती 10:27 जो मैं तुम से अंधियारे में कहता हूँ, उसे उजियाले में कहो; और जो कानों कान सुनते हो, उसे छतों पर से प्रचार करो। (IN)

मत्ती 10:28 जो शरीर को मार सकते है, पर आत्मा को मार नहीं सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है। (IN)

मत्ती 10:29 क्या एक पैसे में दो गौरैये नहीं बिकती? फिर भी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। (IN)

मत्ती 10:30 तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। (IN)

मत्ती 10:31 इसलिए, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर मूल्यवान हो। (IN)

मत्ती 10:32 ¶ “जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूँगा। (IN)

मत्ती 10:33 पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूँगा। (IN)

मत्ती 10:34 ¶ “यह न समझो, कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूँ; मैं मिलाप कराने को नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूँ। (IN)

मत्ती 10:35 मैं तो आया हूँ, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उसकी माँ से, और बहू को उसकी सास से अलग कर दूँ। (IN)

मत्ती 10:36 मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे। (IN)

मत्ती 10:37 ¶ “जो माता या पिता को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं और जो बेटा या बेटी को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं। (IN)

मत्ती 10:38 और जो अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं। (IN)

मत्ती 10:39 जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा। (IN)

मत्ती 10:40 ¶ “जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है। (IN)

मत्ती 10:41 जो भविष्यद्वक्ता को भविष्यद्वक्ता जानकर ग्रहण करे, वह भविष्यद्वक्ता का बदला पाएगा; और जो धर्मी जानकर धर्मी को ग्रहण करे, वह धर्मी का बदला पाएगा। (IN)

मत्ती 10:42 जो कोई इन छोटों में से एक को चेला जानकर केवल एक कटोरा ठण्डा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूँ, वह अपना पुरस्‍कार कभी नहीं खोएगा।” (IN)

मत्ती 11:1 ¶ जब यीशु अपने बारह चेलों को निर्देश दे चुका, तो वह उनके नगरों में उपदेश और प्रचार करने को वहाँ से चला गया। (IN)

मत्ती 11:2 यूहन्ना ने बन्दीगृह में मसीह के कामों का समाचार सुनकर अपने चेलों को उससे यह पूछने भेजा, (IN)

मत्ती 11:3 “क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करें?” (IN)

मत्ती 11:4 यीशु ने उत्तर दिया, “जो कुछ तुम सुनते हो और देखते हो, वह सब जाकर यूहन्ना से कह दो। (IN)

मत्ती 11:5 कि अंधे देखते हैं और लँगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं और बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाए जाते हैं, और गरीबों को सुसमाचार सुनाया जाता है। (IN)

मत्ती 11:6 और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।” (IN)

मत्ती 11:7 ¶ जब वे वहाँ से चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? (IN)

मत्ती 11:8 फिर तुम क्या देखने गए थे? जो कोमल वस्त्र पहनते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं। (IN)

मत्ती 11:9 तो फिर क्यों गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को देखने को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को। (IN)

मत्ती 11:10 यह वही है, जिसके विषय में लिखा है, कि (IN)

मत्ती 11:11 ¶ मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उससे बड़ा है। (IN)

मत्ती 11:12 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं। (IN)

मत्ती 11:13 यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यद्वाणी करते रहे। (IN)

मत्ती 11:14 और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है। (IN)

मत्ती 11:15 जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले। (IN)

मत्ती 11:16 ¶ “मैं इस समय के लोगों की उपमा किस से दूँ? वे उन बालकों के समान हैं, जो बाजारों में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं, (IN)

मत्ती 11:17 कि हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे; हमने विलाप किया, और तुम ने छाती नहीं पीटी। (IN)

मत्ती 11:18 क्योंकि यूहन्ना न खाता आया और न ही पीता, और वे कहते हैं कि उसमें दुष्टात्मा है। (IN)

मत्ती 11:19 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया, और वे कहते हैं कि देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों और पापियों का मित्र! पर ज्ञान अपने कामों में सच्चा ठहराया गया है।” (IN)

मत्ती 11:20 ¶ तब वह उन नगरों को उलाहना देने लगा, जिनमें उसने बहुत सारे सामर्थ्य के काम किए थे; क्योंकि उन्होंने अपना मन नहीं फिराया था। (IN)

मत्ती 11:21 “हाय, खुराजीन! हाय, बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सोर और सीदोन में किए जाते, तो टाट ओढ़कर, और राख में बैठकर, वे कब के मन फिरा लेते। (IN)

मत्ती 11:22 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ; कि न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सोर और सीदोन की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (IN)

मत्ती 11:23 और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा; जो सामर्थ्य के काम तुझ में किए गए है, यदि सदोम में किए जाते, तो वह आज तक बना रहता। (IN)

मत्ती 11:24 पर मैं तुम से कहता हूँ, कि न्याय के दिन तेरी दशा से सदोम के नगर की दशा अधिक सहने योग्य होगी।” (IN)

मत्ती 11:25 ¶ उसी समय यीशु ने कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है। (IN)

मत्ती 11:26 हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा। (IN)

मत्ती 11:27 ¶ “मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे। (IN)

मत्ती 11:28 ¶ “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। (IN)

मत्ती 11:29 मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। (IN)

मत्ती 11:30 क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (IN)

मत्ती 12:1 ¶ उस समय यीशु सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेलों को भूख लगी, और वे बालें तोड़-तोड़ कर खाने लगे। (IN)

मत्ती 12:2 फरीसियों ने यह देखकर उससे कहा, “देख, तेरे चेले वह काम कर रहे हैं, जो सब्त के दिन करना उचित नहीं।” (IN)

मत्ती 12:3 उसने उनसे कहा, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने, जब वह और उसके साथी भूखे हुए तो क्या किया? (IN)

मत्ती 12:4 वह कैसे परमेश्‍वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ खाई, जिन्हें खाना न तो उसे और न उसके साथियों को, पर केवल याजकों को उचित था? (IN)

मत्ती 12:5 या क्या तुम ने व्यवस्था में नहीं पढ़ा, कि याजक सब्त के दिन मन्दिर में सब्त के दिन की विधि को तोड़ने पर भी निर्दोष ठहरते हैं? (IN)

मत्ती 12:6 पर मैं तुम से कहता हूँ, कि यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान है। (IN)

मत्ती 12:7 यदि तुम इसका अर्थ जानते कि मैं दया से प्रसन्‍न होता हूँ, बलिदान से नहीं, तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते। (IN)

मत्ती 12:8 मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।” (IN)

मत्ती 12:9 ¶ वहाँ से चलकर वह उनके आराधनालय में आया। (IN)

मत्ती 12:10 वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूखा हुआ था; और उन्होंने उस पर दोष लगाने के लिए उससे पूछा, “क्या सब्त के दिन चंगा करना उचित है?” (IN)

मत्ती 12:11 उसने उनसे कहा, “तुम में ऐसा कौन है, जिसकी एक भेड़ हो, और वह सब्त के दिन गड्ढे में गिर जाए, तो वह उसे पकड़कर न निकाले? (IN)

मत्ती 12:12 भला, मनुष्य का मूल्य भेड़ से कितना बढ़ कर है! इसलिए सब्त के दिन भलाई करना उचित है।” (IN)

मत्ती 12:13 तब यीशु ने उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और वह फिर दूसरे हाथ के समान अच्छा हो गया। (IN)

मत्ती 12:14 तब फरीसियों ने बाहर जाकर उसके विरोध में सम्मति की, कि उसे किस प्रकार मार डाले? (IN)

मत्ती 12:15 ¶ यह जानकर यीशु वहाँ से चला गया। और बहुत लोग उसके पीछे हो लिये, और उसने सब को चंगा किया। (IN)

मत्ती 12:16 और उन्हें चेतावनी दी, कि मुझे प्रगट न करना। (IN)

मत्ती 12:17 कि जो वचन यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: (IN)

मत्ती 12:18 “देखो, यह मेरा सेवक है, जिसे मैंने चुना है; मेरा प्रिय, जिससे मेरा मन प्रसन्‍न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूँगा; और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा। (IN)

मत्ती 12:19 वह न झगड़ा करेगा, और न चिल्‍लाएगा; (IN)

मत्ती 12:20 वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा; (IN)

मत्ती 12:21 और अन्यजातियाँ उसके नाम पर आशा रखेंगी।” (IN)

मत्ती 12:22 ¶ तब लोग एक अंधे-गूँगे को जिसमें दुष्टात्मा थी, उसके पास लाए; और उसने उसे अच्छा किया; और वह गूँगा बोलने और देखने लगा। (IN)

मत्ती 12:23 इस पर सब लोग चकित होकर कहने लगे, “यह क्या दाऊद की सन्तान है?” (IN)

मत्ती 12:24 परन्तु फरीसियों ने यह सुनकर कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार शैतान की सहायता के बिना दुष्टात्माओं को नहीं निकालता।” (IN)

मत्ती 12:25 उसने उनके मन की बात जानकर उनसे कहा, “जिस किसी राज्य में फूट होती है, वह उजड़ जाता है, और कोई नगर या घराना जिसमें फूट होती है, बना न रहेगा। (IN)

मत्ती 12:26 और यदि शैतान ही शैतान को निकाले, तो वह अपना ही विरोधी हो गया है; फिर उसका राज्य कैसे बना रहेगा? (IN)

मत्ती 12:27 भला, यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारे वंश किसकी सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय करेंगे। (IN)

मत्ती 12:28 पर यदि मैं परमेश्‍वर के आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा है। (IN)

मत्ती 12:29 या कैसे कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट सकता है जब तक कि पहले उस बलवन्त को न बाँध ले? और तब वह उसका घर लूट लेगा। (IN)

मत्ती 12:30 जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है। (IN)

मत्ती 12:31 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। (IN)

मत्ती 12:32 जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न ही आनेवाले में क्षमा किया जाएगा। (IN)

मत्ती 12:33 ¶ “यदि पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो, या पेड़ को निकम्मा कहो, तो उसके फल को भी निकम्मा कहो; क्योंकि पेड़ फल ही से पहचाना जाता है। (IN)

मत्ती 12:34 हे साँप के बच्चों, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुँह पर आता है। (IN)

मत्ती 12:35 भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है। (IN)

मत्ती 12:36 और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो-जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। (IN)

मत्ती 12:37 क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।” (IN)

मत्ती 12:38 ¶ इस पर कुछ शास्त्रियों और फरीसियों ने उससे कहा, “हे गुरु, हम तुझ से एक चिन्ह देखना चाहते हैं।” (IN)

मत्ती 12:39 उसने उन्हें उत्तर दिया, “इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं; परन्तु योना भविष्यद्वक्ता के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उनको न दिया जाएगा। (IN)

मत्ती 12:40 योना तीन रात-दिन महा मच्छ के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात-दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा। (IN)

मत्ती 12:41 नीनवे के लोग न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगे, क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर, मन फिराया और यहाँ वह है जो योना से भी बड़ा है। (IN)

मत्ती 12:42 दक्षिण की रानी न्याय के दिन इस युग के लोगों के साथ उठकर उन्हें दोषी ठहराएँगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने के लिये पृथ्वी की छोर से आई, और यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है। (IN)

मत्ती 12:43 ¶ “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और पाती नहीं। (IN)

मत्ती 12:44 तब कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी, लौट जाऊँगी, और आकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। (IN)

मत्ती 12:45 तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें पैठकर वहाँ वास करती है, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है। इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।” (IN)

मत्ती 12:46 ¶ जब वह भीड़ से बातें कर ही रहा था, तो उसकी माता और भाई बाहर खड़े थे, और उससे बातें करना चाहते थे। (IN)

मत्ती 12:47 किसी ने उससे कहा, “देख तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, और तुझ से बातें करना चाहते हैं।” (IN)

मत्ती 12:48 यह सुन उसने कहनेवाले को उत्तर दिया, “कौन हैं मेरी माता? और कौन हैं मेरे भाई?” (IN)

मत्ती 12:49 और अपने चेलों की ओर अपना हाथ बढ़ा कर कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये हैं। (IN)

मत्ती 12:50 क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहन, और माता है।” (IN)

मत्ती 13:1 ¶ उसी दिन यीशु घर से निकलकर झील के किनारे जा बैठा। (IN)

मत्ती 13:2 और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई कि वह नाव पर चढ़ गया, और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी रही। (IN)

मत्ती 13:3 और उसने उनसे दृष्टान्तों में बहुत सी बातें कही “एक बोनेवाला बीज बोने निकला। (IN)

मत्ती 13:4 बोते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया। (IN)

मत्ती 13:5 कुछ बीज पत्थरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें बहुत मिट्टी न मिली और नरम मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए। (IN)

मत्ती 13:6 पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए। (IN)

मत्ती 13:7 कुछ बीज झाड़ियों में गिरे, और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला। (IN)

मत्ती 13:8 पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना। (IN)

मत्ती 13:9 जिसके कान हों वह सुन ले।” (IN)

मत्ती 13:10 ¶ और चेलों ने पास आकर उससे कहा, “तू उनसे दृष्टान्तों में क्यों बातें करता है?” (IN)

मत्ती 13:11 उसने उत्तर दिया, “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उनको नहीं। (IN)

मत्ती 13:12 क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिसके पास कुछ नहीं है, उससे जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा। (IN)

मत्ती 13:13 मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हूँ, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। (IN)

मत्ती 13:14 और उनके विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है: (IN)

मत्ती 13:15 ¶ क्योंकि इन लोगों के मन सुस्त हो गए है, (IN)

मत्ती 13:16 ¶ “पर धन्य है तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं। (IN)

मत्ती 13:17 क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और धर्मियों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं। (IN)

मत्ती 13:18 ¶ “अब तुम बोनेवाले का दृष्टान्त सुनो (IN)

मत्ती 13:19 जो कोई राज्य का वचन सुनकर नहीं समझता, उसके मन में जो कुछ बोया गया था, उसे वह दुष्ट आकर छीन ले जाता है; यह वही है, जो मार्ग के किनारे बोया गया था। (IN)

मत्ती 13:20 और जो पत्थरीली भूमि पर बोया गया, यह वह है, जो वचन सुनकर तुरन्त आनन्द के साथ मान लेता है। (IN)

मत्ती 13:21 पर अपने में जड़ न रखने के कारण वह थोड़े ही दिन रह पाता है, और जब वचन के कारण क्लेश या उत्पीड़न होता है, तो तुरन्त ठोकर खाता है। (IN)

मत्ती 13:22 जो झाड़ियों में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनता है, पर इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है, और वह फल नहीं लाता। (IN)

मत्ती 13:23 जो अच्छी भूमि में बोया गया, यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।” (IN)

मत्ती 13:24 ¶ यीशु ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के समान है जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया। (IN)

मत्ती 13:25 पर जब लोग सो रहे थे तो उसका बैरी आकर गेहूँ के बीच जंगली बीज बोकर चला गया। (IN)

मत्ती 13:26 जब अंकुर निकले और बालें लगी, तो जंगली दाने के पौधे भी दिखाई दिए। (IN)

मत्ती 13:27 इस पर गृहस्थ के दासों ने आकर उससे कहा, ‘हे स्वामी, क्या तूने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने के पौधे उसमें कहाँ से आए?’ (IN)

मत्ती 13:28 उसने उनसे कहा, ‘यह किसी शत्रु का काम है।’ दासों ने उससे कहा, ‘क्या तेरी इच्छा है, कि हम जाकर उनको बटोर लें?’ (IN)

मत्ती 13:29 उसने कहा, ‘नहीं, ऐसा न हो कि जंगली दाने के पौधे बटोरते हुए तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ लो। (IN)

मत्ती 13:30 कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटनेवालों से कहूँगा; पहले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिये उनके गट्ठे बाँध लो, और गेहूँ को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो।’” (IN)

मत्ती 13:31 ¶ उसने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया, “स्वर्ग का राज्य राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया। (IN)

मत्ती 13:32 वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग-पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं।” (IN)

मत्ती 13:33 ¶ उसने एक और दृष्टान्त उन्हें सुनाया, “स्वर्ग का राज्य ख़मीर के समान है जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिला दिया और होते-होते वह सब ख़मीर हो गया।” (IN)

मत्ती 13:34 ¶ ये सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उनसे कुछ न कहता था। (IN)

मत्ती 13:35 कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: “मैं दृष्टान्त कहने को अपना मुँह खोलूँगा मैं उन बातों को जो जगत की उत्पत्ति से गुप्त रही हैं प्रगट करूँगा।” (IN)

मत्ती 13:36 ¶ तब वह भीड़ को छोड़कर घर में आया, और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “खेत के जंगली दाने का दृष्टान्त हमें समझा दे।” (IN)

मत्ती 13:37 उसने उनको उत्तर दिया, “अच्छे बीज का बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है। (IN)

मत्ती 13:38 खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य के सन्तान, और जंगली बीज दुष्ट के सन्तान हैं। (IN)

मत्ती 13:39 जिस शत्रु ने उनको बोया वह शैतान है; कटनी जगत का अन्त है: और काटनेवाले स्वर्गदूत हैं। (IN)

मत्ती 13:40 अतः जैसे जंगली दाने बटोरे जाते और जलाए जाते हैं वैसा ही जगत के अन्त में होगा। (IN)

मत्ती 13:41 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे। (IN)

मत्ती 13:42 और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा। (IN)

मत्ती 13:43 उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के समान चमकेंगे। जिसके कान हों वह सुन ले। (IN)

मत्ती 13:44 ¶ “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पा कर छिपा दिया, और आनन्द के मारे जाकर अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया। (IN)

मत्ती 13:45 ¶ “फिर स्वर्ग का राज्य एक व्यापारी के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था। (IN)

मत्ती 13:46 जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उसने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया। (IN)

मत्ती 13:47 ¶ “फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियों को समेट लाया। (IN)

मत्ती 13:48 और जब जाल भर गया, तो मछुए किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी-अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा किया और बेकार-बेकार फेंक दी। (IN)

मत्ती 13:49 जगत के अन्त में ऐसा ही होगा; स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, (IN)

मत्ती 13:50 और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे। वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा। (IN)

मत्ती 13:51 ¶ “क्या तुम ये सब बातें समझ गए?” चेलों ने उत्तर दिया, “हाँ।” (IN)

मत्ती 13:52 फिर यीशु ने उनसे कहा, “इसलिए हर एक शास्त्री जो स्वर्ग के राज्य का चेला बना है, उस गृहस्थ के समान है जो अपने भण्डार से नई और पुरानी वस्तुएँ निकालता है।” (IN)

मत्ती 13:53 ¶ जब यीशु ये सब दृष्टान्त कह चुका, तो वहाँ से चला गया। (IN)

मत्ती 13:54 और अपने नगर में आकर उनके आराधनालय में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा; कि वे चकित होकर कहने लगे, “इसको यह ज्ञान और सामर्थ्य के काम कहाँ से मिले? (IN)

मत्ती 13:55 क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? और क्या इसकी माता का नाम मरियम और इसके भाइयों के नाम याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं? (IN)

मत्ती 13:56 और क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच में नहीं रहती? फिर इसको यह सब कहाँ से मिला?” (IN)

मत्ती 13:57 ¶ इस प्रकार उन्होंने उसके कारण ठोकर खाई, पर यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता अपने नगर और अपने घर को छोड़ और कहीं निरादर नहीं होता।” (IN)

मत्ती 13:58 और उसने वहाँ उनके अविश्वास के कारण बहुत सामर्थ्य के काम नहीं किए। (IN)

मत्ती 14:1 ¶ उस समय चौथाई देश के राजा हेरोदेस ने यीशु की चर्चा सुनी। (IN)

मत्ती 14:2 और अपने सेवकों से कहा, “यह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला है: वह मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।” (IN)

मत्ती 14:3 ¶ क्योंकि हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्‍नी हेरोदियास के कारण, यूहन्ना को पकड़कर बाँधा, और जेलखाने में डाल दिया था। (IN)

मत्ती 14:4 क्योंकि यूहन्ना ने उससे कहा था, कि इसको रखना तुझे उचित नहीं है। (IN)

मत्ती 14:5 और वह उसे मार डालना चाहता था, पर लोगों से डरता था, क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता मानते थे। (IN)

मत्ती 14:6 पर जब हेरोदेस का जन्मदिन आया, तो हेरोदियास की बेटी ने उत्सव में नाच दिखाकर हेरोदेस को खुश किया। (IN)

मत्ती 14:7 इसलिए उसने शपथ खाकर वचन दिया, “जो कुछ तू माँगेगी, मैं तुझे दूँगा।” (IN)

मत्ती 14:8 वह अपनी माता के उकसाने से बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर थाल में यहीं मुझे मँगवा दे।” (IN)

मत्ती 14:9 राजा दुःखित हुआ, पर अपनी शपथ के, और साथ बैठनेवालों के कारण, आज्ञा दी, कि दे दिया जाए। (IN)

मत्ती 14:10 और उसने जेलखाने में लोगों को भेजकर यूहन्ना का सिर कटवा दिया। (IN)

मत्ती 14:11 और उसका सिर थाल में लाया गया, और लड़की को दिया गया; और वह उसको अपनी माँ के पास ले गई। (IN)

मत्ती 14:12 और उसके चेलों ने आकर उसके शव को ले जाकर गाड़ दिया और जाकर यीशु को समाचार दिया। (IN)

मत्ती 14:13 ¶ जब यीशु ने यह सुना, तो नाव पर चढ़कर वहाँ से किसी सुनसान जगह को, एकान्त में चला गया; और लोग यह सुनकर नगर-नगर से पैदल उसके पीछे हो लिए। (IN)

मत्ती 14:14 उसने निकलकर एक बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, और उसने उनके बीमारों को चंगा किया। (IN)

मत्ती 14:15 जब सांझ हुई, तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह तो सुनसान जगह है और देर हो रही है, लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें।” (IN)

मत्ती 14:16 यीशु ने उनसे कहा, “उनका जाना आवश्यक नहीं! तुम ही इन्हें खाने को दो।” (IN)

मत्ती 14:17 उन्होंने उससे कहा, “यहाँ हमारे पास पाँच रोटी और दो मछलियों को छोड़ और कुछ नहीं है।” (IN)

मत्ती 14:18 उसने कहा, “उनको यहाँ मेरे पास ले आओ।” (IN)

मत्ती 14:19 तब उसने लोगों को घास पर बैठने को कहा, और उन पाँच रोटियों और दो मछलियों को लिया; और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़कर चेलों को दीं, और चेलों ने लोगों को। (IN)

मत्ती 14:20 और सब खाकर तृप्त हो गए, और उन्होंने बचे हुए टुकड़ों से भरी हुई बारह टोकरियाँ उठाई। (IN)

मत्ती 14:21 और खानेवाले स्त्रियों और बालकों को छोड़कर पाँच हजार पुरुषों के लगभग थे। (IN)

मत्ती 14:22 ¶ और उसने तुरन्त अपने चेलों को नाव पर चढ़ाया, कि वे उससे पहले पार चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। (IN)

मत्ती 14:23 वह लोगों को विदा करके, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया; और सांझ को वह वहाँ अकेला था। (IN)

मत्ती 14:24 उस समय नाव झील के बीच लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि हवा सामने की थी। (IN)

मत्ती 14:25 और वह रात के चौथे पहर झील पर चलते हुए उनके पास आया। (IN)

मत्ती 14:26 चेले उसको झील पर चलते हुए देखकर घबरा गए, और कहने लगे, “वह भूत है,” और डर के मारे चिल्ला उठे। (IN)

मत्ती 14:27 यीशु ने तुरन्त उनसे बातें की, और कहा, “धैर्य रखो, मैं हूँ; डरो मत।” (IN)

मत्ती 14:28 पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, यदि तू ही है, तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।” (IN)

मत्ती 14:29 उसने कहा, “आ!” तब पतरस नाव पर से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा। (IN)

मत्ती 14:30 पर हवा को देखकर डर गया, और जब डूबने लगा तो चिल्लाकर कहा, “हे प्रभु, मुझे बचा।” (IN)

मत्ती 14:31 यीशु ने तुरन्त हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया, और उससे कहा, “हे अल्प विश्वासी, तूने क्यों सन्देह किया?” (IN)

मत्ती 14:32 जब वे नाव पर चढ़ गए, तो हवा थम गई। (IN)

मत्ती 14:33 इस पर जो नाव पर थे, उन्होंने उसकी आराधना करके कहा, “सचमुच, तू परमेश्‍वर का पुत्र है।” (IN)

मत्ती 14:34 ¶ वे पार उतरकर गन्नेसरत प्रदेश में पहुँचे। (IN)

मत्ती 14:35 और वहाँ के लोगों ने उसे पहचानकर आस-पास के सारे क्षेत्र में कहला भेजा, और सब बीमारों को उसके पास लाए। (IN)

मत्ती 14:36 और उससे विनती करने लगे कि वह उन्हें अपने वस्त्र के कोने ही को छूने दे; और जितनों ने उसे छुआ, वे चंगे हो गए। (IN)

मत्ती 15:1 ¶ तब यरूशलेम से कुछ फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे, (IN)

मत्ती 15:2 “तेरे चेले प्राचीनों की परम्पराओं को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” (IN)

मत्ती 15:3 उसने उनको उत्तर दिया, “तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्‍वर की आज्ञा टालते हो? (IN)

मत्ती 15:4 क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’, और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए।’ (IN)

मत्ती 15:5 पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, ‘जो कुछ तुझे मुझसे लाभ पहुँच सकता था, वह परमेश्‍वर को भेंट चढ़ाया जा चुका’ (IN)

मत्ती 15:6 तो वह अपने पिता का आदर न करे, इस प्रकार तुम ने अपनी परम्परा के कारण परमेश्‍वर का वचन टाल दिया। (IN)

मत्ती 15:7 हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक ही की है: (IN)

मत्ती 15:8 ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, (IN)

मत्ती 15:9 और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, (IN)

मत्ती 15:10 ¶ और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “सुनो, और समझो। (IN)

मत्ती 15:11 जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुँह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” (IN)

मत्ती 15:12 तब चेलों ने आकर उससे कहा, “क्या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई?” (IN)

मत्ती 15:13 उसने उत्तर दिया, “हर पौधा जो मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा। (IN)

मत्ती 15:14 उनको जाने दो; वे अंधे मार्ग दिखानेवाले हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड्ढे में गिर पड़ेंगे।” (IN)

मत्ती 15:15 ¶ यह सुनकर पतरस ने उससे कहा, “यह दृष्टान्त हमें समझा दे।” (IN)

मत्ती 15:16 उसने कहा, “क्या तुम भी अब तक नासमझ हो? (IN)

मत्ती 15:17 क्या तुम नहीं समझते, कि जो कुछ मुँह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और शौच से निकल जाता है? (IN)

मत्ती 15:18 पर जो कुछ मुँह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। (IN)

मत्ती 15:19 क्योंकि बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है। (IN)

मत्ती 15:20 यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।” (IN)

मत्ती 15:21 ¶ यीशु वहाँ से निकलकर, सोर और सीदोन के देशों की ओर चला गया। (IN)

मत्ती 15:22 और देखो, उस प्रदेश से एक कनानी स्त्री निकली, और चिल्लाकर कहने लगी, “हे प्रभु! दाऊद के सन्तान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है।” (IN)

मत्ती 15:23 पर उसने उसे कुछ उत्तर न दिया, और उसके चेलों ने आकर उससे विनती करके कहा, “इसे विदा कर; क्योंकि वह हमारे पीछे चिल्लाती आती है।” (IN)

मत्ती 15:24 उसने उत्तर दिया, “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया।” (IN)

मत्ती 15:25 पर वह आई, और उसे प्रणाम करके कहने लगी, “हे प्रभु, मेरी सहायता कर।” (IN)

मत्ती 15:26 उसने उत्तर दिया, “बच्‍चों की रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।” (IN)

मत्ती 15:27 उसने कहा, “सत्य है प्रभु, पर कुत्ते भी वह चूरचार खाते हैं, जो उनके स्वामियों की मेज से गिरते हैं।” (IN)

मत्ती 15:28 इस पर यीशु ने उसको उत्तर देकर कहा, “हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है; जैसा तू चाहती है, तेरे लिये वैसा ही हो” और उसकी बेटी उसी समय चंगी हो गई। (IN)

मत्ती 15:29 ¶ यीशु वहाँ से चलकर, गलील की झील के पास आया, और पहाड़ पर चढ़कर वहाँ बैठ गया। (IN)

मत्ती 15:30 और भीड़ पर भीड़ उसके पास आई, वे अपने साथ लँगड़ों, अंधों, गूँगों, टुण्डों, और बहुतों को लेकर उसके पास आए; और उन्हें उसके पाँवों पर डाल दिया, और उसने उन्हें चंगा किया। (IN)

मत्ती 15:31 अतः जब लोगों ने देखा, कि गूंगे बोलते और टुण्डे चंगे होते और लँगड़े चलते और अंधे देखते हैं, तो अचम्भा करके इस्राएल के परमेश्‍वर की बड़ाई की। (IN)

मत्ती 15:32 ¶ यीशु ने अपने चेलों को बुलाकर कहा, “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है; क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ हैं और उनके पास कुछ खाने को नहीं; और मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि मार्ग में थककर गिर जाएँ।” (IN)

मत्ती 15:33 चेलों ने उससे कहा, “हमें इस निर्जन स्थान में कहाँ से इतनी रोटी मिलेगी कि हम इतनी बड़ी भीड़ को तृप्त करें?” (IN)

मत्ती 15:34 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात और थोड़ी सी छोटी मछलियाँ।” (IN)

मत्ती 15:35 तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी। (IN)

मत्ती 15:36 और उन सात रोटियों और मछलियों को ले धन्यवाद करके तोड़ा और अपने चेलों को देता गया, और चेले लोगों को। (IN)

मत्ती 15:37 इस प्रकार सब खाकर तृप्त हो गए और बचे हुए टुकड़ों से भरे हुए सात टोकरे उठाए। (IN)

मत्ती 15:38 और खानेवाले स्त्रियों और बालकों को छोड़ चार हजार पुरुष थे। (IN)

मत्ती 15:39 तब वह भीड़ को विदा करके नाव पर चढ़ गया, और मगदन क्षेत्र में आया। (IN)

मत्ती 16:1 ¶ और फरीसियों और सदूकियों ने यीशु के पास आकर उसे परखने के लिये उससे कहा, “हमें स्वर्ग का कोई चिन्ह दिखा।” (IN)

मत्ती 16:2 उसने उनको उत्तर दिया, “सांझ को तुम कहते हो, कि मौसम अच्छा रहेगा, क्योंकि आकाश लाल है। (IN)

मत्ती 16:3 और भोर को कहते हो, कि आज आँधी आएगी क्योंकि आकाश लाल और धुमला है; तुम आकाश का लक्षण देखकर भेद बता सकते हो, पर समय के चिन्हों का भेद क्यों नहीं बता सकते? (IN)

मत्ती 16:4 इस युग के बुरे और व्यभिचारी लोग चिन्ह ढूँढ़ते हैं पर योना के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा।” और वह उन्हें छोड़कर चला गया। (IN)

मत्ती 16:5 ¶ और चेले झील के उस पार जाते समय रोटी लेना भूल गए थे। (IN)

मत्ती 16:6 यीशु ने उनसे कहा, “देखो, फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।” (IN)

मत्ती 16:7 वे आपस में विचार करने लगे, “हम तो रोटी नहीं लाए। इसलिए वह ऐसा कहता है।” (IN)

मत्ती 16:8 यह जानकर, यीशु ने उनसे कहा, “हे अल्पविश्वासियों, तुम आपस में क्यों विचार करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं? (IN)

मत्ती 16:9 क्या तुम अब तक नहीं समझे? और उन पाँच हजार की पाँच रोटी स्मरण नहीं करते, और न यह कि कितनी टोकरियाँ उठाई थीं? (IN)

मत्ती 16:10 और न उन चार हजार की सात रोटियाँ, और न यह कि कितने टोकरे उठाए गए थे? (IN)

मत्ती 16:11 तुम क्यों नहीं समझते कि मैंने तुम से रोटियों के विषय में नहीं कहा? परन्तु फरीसियों और सदूकियों के ख़मीर से सावधान रहना।” (IN)

मत्ती 16:12 तब उनको समझ में आया, कि उसने रोटी के ख़मीर से नहीं, पर फरीसियों और सदूकियों की शिक्षा से सावधान रहने को कहा था। (IN)

मत्ती 16:13 ¶ यीशु कैसरिया फिलिप्पी के प्रदेश में आकर अपने चेलों से पूछने लगा, “लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?” (IN)

मत्ती 16:14 उन्होंने कहा, “कुछ तो यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं और कुछ एलिय्याह, और कुछ यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।” (IN)

मत्ती 16:15 उसने उनसे कहा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” (IN)

मत्ती 16:16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीविते परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है।” (IN)

मत्ती 16:17 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि माँस और लहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है। (IN)

मत्ती 16:18 और मैं भी तुझ से कहता हूँ, कि तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। (IN)

मत्ती 16:19 मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बँधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।” (IN)

मत्ती 16:20 तब उसने चेलों को चेतावनी दी, “किसी से न कहना! कि मैं मसीह हूँ।” (IN)

मत्ती 16:21 ¶ उस समय से यीशु अपने चेलों को बताने लगा, “मुझे अवश्य है, कि यरूशलेम को जाऊँ, और प्राचीनों और प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ से बहुत दुःख उठाऊँ; और मार डाला जाऊँ; और तीसरे दिन जी उठूँ।” (IN)

मत्ती 16:22 इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर डाँटने लगा, “हे प्रभु, परमेश्‍वर न करे! तुझ पर ऐसा कभी न होगा।” (IN)

मत्ती 16:23 उसने फिरकर पतरस से कहा, “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो! तू मेरे लिये ठोकर का कारण है; क्योंकि तू परमेश्‍वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।” (IN)

मत्ती 16:24 ¶ तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले। (IN)

मत्ती 16:25 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा। (IN)

मत्ती 16:26 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा? (IN)

मत्ती 16:27 मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, और उस समय ‘वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा।’ (IN)

मत्ती 16:28 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कितने ऐसे हैं, कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।” (IN)

मत्ती 17:1 ¶ छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया, और उन्हें एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया। (IN)

मत्ती 17:2 और वहाँ उनके सामने उसका रूपांतरण हुआ और उसका मुँह सूर्य के समान चमका और उसका वस्त्र ज्योति के समान उजला हो गया। (IN)

मत्ती 17:3 और मूसा और एलिय्याह उसके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए। (IN)

मत्ती 17:4 इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, हमारा यहाँ रहना अच्छा है; यदि तेरी इच्छा हो तो मैं यहाँ तीन तम्‍बू बनाऊँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” (IN)

मत्ती 17:5 वह बोल ही रहा था, कि एक उजले बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं प्रसन्‍न हूँ: इसकी सुनो।” (IN)

मत्ती 17:6 चेले यह सुनकर मुँह के बल गिर गए और अत्यन्त डर गए। (IN)

मत्ती 17:7 यीशु ने पास आकर उन्हें छुआ, और कहा, “उठो, डरो मत।” (IN)

मत्ती 17:8 तब उन्होंने अपनी आँखें उठाकर यीशु को छोड़ और किसी को न देखा। (IN)

मत्ती 17:9 जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तब यीशु ने उन्हें यह निर्देश दिया, “जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से न जी उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है किसी से न कहना।” (IN)

मत्ती 17:10 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “फिर शास्त्री क्यों कहते हैं, कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” (IN)

मत्ती 17:11 उसने उत्तर दिया, “एलिय्याह तो अवश्य आएगा और सब कुछ सुधारेगा। (IN)

मत्ती 17:12 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि एलिय्याह आ चुका; और उन्होंने उसे नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया। इसी प्रकार से मनुष्य का पुत्र भी उनके हाथ से दुःख उठाएगा।” (IN)

मत्ती 17:13 तब चेलों ने समझा कि उसने हम से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के विषय में कहा है। (IN)

मत्ती 17:14 ¶ जब वे भीड़ के पास पहुँचे, तो एक मनुष्य उसके पास आया, और घुटने टेककर कहने लगा। (IN)

मत्ती 17:15 “हे प्रभु, मेरे पुत्र पर दया कर! क्योंकि उसको मिर्गी आती है, और वह बहुत दुःख उठाता है; और बार-बार आग में और बार-बार पानी में गिर पड़ता है। (IN)

मत्ती 17:16 और मैं उसको तेरे चेलों के पास लाया था, पर वे उसे अच्छा नहीं कर सके।” (IN)

मत्ती 17:17 यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” (IN)

मत्ती 17:18 तब यीशु ने उसे डाँटा, और दुष्टात्मा उसमें से निकला; और लड़का उसी समय अच्छा हो गया। (IN)

मत्ती 17:19 ¶ तब चेलों ने एकान्त में यीशु के पास आकर कहा, “हम इसे क्यों नहीं निकाल सके?” (IN)

मत्ती 17:20 उसने उनसे कहा, “अपने विश्वास की कमी के कारण: क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, ‘यहाँ से सरककर वहाँ चला जा’, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अनहोनी न होगी। (IN)

मत्ती 17:21 [पर यह जाति बिना प्रार्थना और उपवास के नहीं निकलती।]” (IN)

मत्ती 17:22 ¶ जब वे गलील में थे, तो यीशु ने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा। (IN)

मत्ती 17:23 और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।” इस पर वे बहुत उदास हुए। (IN)

मत्ती 17:24 ¶ जब वे कफरनहूम में पहुँचे, तो मन्दिर के लिये कर लेनेवालों ने पतरस के पास आकर पूछा, “क्या तुम्हारा गुरु मन्दिर का कर नहीं देता?” (IN)

मत्ती 17:25 उसने कहा, “हाँ, देता है।” जब वह घर में आया, तो यीशु ने उसके पूछने से पहले उससे कहा, “हे शमौन तू क्या समझता है? पृथ्वी के राजा चुंगी या कर किन से लेते हैं? अपने पुत्रों से या परायों से?” (IN)

मत्ती 17:26 पतरस ने उनसे कहा, “परायों से।” यीशु ने उससे कहा, “तो पुत्र बच गए। (IN)

मत्ती 17:27 फिर भी हम उन्हें ठोकर न खिलाएँ, तू झील के किनारे जाकर बंसी डाल, और जो मछली पहले निकले, उसे ले; तो तुझे उसका मुँह खोलने पर एक सिक्का मिलेगा, उसी को लेकर मेरे और अपने बदले उन्हें दे देना।” (IN)

मत्ती 18:1 ¶ उसी समय चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है?” (IN)

मत्ती 18:2 इस पर उसने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया, (IN)

मत्ती 18:3 और कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। (IN)

मत्ती 18:4 जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। (IN)

मत्ती 18:5 और जो कोई मेरे नाम से एक ऐसे बालक को ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है। (IN)

मत्ती 18:6 ¶ “पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं एक को ठोकर खिलाएँ, उसके लिये भला होता, कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह गहरे समुद्र में डुबाया जाता। (IN)

मत्ती 18:7 ठोकरों के कारण संसार पर हाय! ठोकरों का लगना अवश्य है; पर हाय उस मनुष्य पर जिसके द्वारा ठोकर लगती है। (IN)

मत्ती 18:8 ¶ “यदि तेरा हाथ या तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाएँ, तो काटकर फेंक दे; टुण्डा या लँगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो हाथ या दो पाँव रहते हुए तू अनन्त आग में डाला जाए। (IN)

मत्ती 18:9 और यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसे निकालकर फेंक दे। काना होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो आँख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए। (IN)

मत्ती 18:10 ¶ “देखो, तुम इन छोटों में से किसी को तुच्छ न जानना; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि स्वर्ग में उनके स्वर्गदूत मेरे स्वर्गीय पिता का मुँह सदा देखते हैं। (IN)

मत्ती 18:11 [क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को बचाने आया है।] (IN)

मत्ती 18:12 ¶ “तुम क्या समझते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक भटक जाए, तो क्या निन्यानवे को छोड़कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढूँढ़ेगा? (IN)

मत्ती 18:13 और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वह उन निन्यानवे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थीं इतना आनन्द नहीं करेगा, जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा। (IN)

मत्ती 18:14 ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो। (IN)

मत्ती 18:15 ¶ “यदि तेरा भाई तेरे विरुद्ध अपराध करे, तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तूने अपने भाई को पा लिया। (IN)

मत्ती 18:16 और यदि वह न सुने, तो और एक दो जन को अपने साथ ले जा, कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुँह से ठहराई जाए। (IN)

मत्ती 18:17 यदि वह उनकी भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्यजाति और चुंगी लेनेवाले के जैसा जान। (IN)

मत्ती 18:18 ¶ “मैं तुम से सच कहता हूँ, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे, वह स्वर्ग पर बँधेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुलेगा। (IN)

मत्ती 18:19 फिर मैं तुम से कहता हूँ, यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिये जिसे वे माँगें, एक मन के हों, तो वह मेरे पिता की ओर से जो स्वर्ग में है उनके लिये हो जाएगी। (IN)

मत्ती 18:20 क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ।” (IN)

मत्ती 18:21 ¶ तब पतरस ने पास आकर, उससे कहा, “हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ, क्या सात बार तक?” (IN)

मत्ती 18:22 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन् सात बार के सत्तर गुने तक। (IN)

मत्ती 18:23 ¶ “इसलिए स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। (IN)

मत्ती 18:24 जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उसके सामने लाया गया जो दस हजार तोड़े का कर्जदार था। (IN)

मत्ती 18:25 जब कि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्वामी ने कहा, कि यह और इसकी पत्‍नी और बाल-बच्चे और जो कुछ इसका है सब बेचा जाए, और वह कर्ज चुका दिया जाए। (IN)

मत्ती 18:26 इस पर उस दास ने गिरकर उसे प्रणाम किया, और कहा, ‘हे स्वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूँगा।’ (IN)

मत्ती 18:27 तब उस दास के स्वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका कर्ज क्षमा किया। (IN)

मत्ती 18:28 ¶ “परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उसको मिला, जो उसके सौ दीनार का कर्जदार था; उसने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा और कहा, ‘जो कुछ तू धारता है भर दे।’ (IN)

मत्ती 18:29 इस पर उसका संगी दास गिरकर, उससे विनती करने लगा; कि धीरज धर मैं सब भर दूँगा। (IN)

मत्ती 18:30 उसने न माना, परन्तु जाकर उसे बन्दीगृह में डाल दिया; कि जब तक कर्ज को भर न दे, तब तक वहीं रहे। (IN)

मत्ती 18:31 उसके संगी दास यह जो हुआ था देखकर बहुत उदास हुए, और जाकर अपने स्वामी को पूरा हाल बता दिया। (IN)

मत्ती 18:32 तब उसके स्वामी ने उसको बुलाकर उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, तूने जो मुझसे विनती की, तो मैंने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। (IN)

मत्ती 18:33 इसलिए जैसा मैंने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था?’ (IN)

मत्ती 18:34 और उसके स्वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्ड देनेवालों के हाथ में सौंप दिया, कि जब तक वह सब कर्जा भर न दे, तब तक उनके हाथ में रहे। (IN)

मत्ती 18:35 ¶ “इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।” (IN)

मत्ती 19:1 ¶ जब यीशु ये बातें कह चुका, तो गलील से चला गया; और यहूदिया के प्रदेश में यरदन के पार आया। (IN)

मत्ती 19:2 और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, और उसने उन्हें वहाँ चंगा किया। (IN)

मत्ती 19:3 तब फरीसी उसकी परीक्षा करने के लिये पास आकर कहने लगे, “क्या हर एक कारण से अपनी पत्‍नी को त्यागना उचित है?” (IN)

मत्ती 19:4 उसने उत्तर दिया, “क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि जिसने उन्हें बनाया, उसने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा, (IN)

मत्ती 19:5 ‘इस कारण मनुष्य अपने माता पिता से अलग होकर अपनी पत्‍नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे?’ (IN)

मत्ती 19:6 अतः वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” (IN)

मत्ती 19:7 उन्होंने यीशु से कहा, “फिर मूसा ने क्यों यह ठहराया, कि त्यागपत्र देकर उसे छोड़ दे?” (IN)

मत्ती 19:8 उसने उनसे कहा, “मूसा ने तुम्हारे मन की कठोरता के कारण तुम्हें अपनी पत्‍नी को छोड़ देने की अनुमति दी, परन्तु आरम्भ में ऐसा नहीं था। (IN)

मत्ती 19:9 और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से अपनी पत्‍नी को त्याग कर, दूसरी से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है: और जो उस छोड़ी हुई से विवाह करे, वह भी व्यभिचार करता है।” (IN)

मत्ती 19:10 ¶ चेलों ने उससे कहा, “यदि पुरुष का स्त्री के साथ ऐसा सम्बन्ध है, तो विवाह करना अच्छा नहीं।” (IN)

मत्ती 19:11 उसने उनसे कहा, “सब यह वचन ग्रहण नहीं कर सकते, केवल वे जिनको यह दान दिया गया है। (IN)

मत्ती 19:12 क्योंकि कुछ नपुंसक ऐसे हैं जो माता के गर्भ ही से ऐसे जन्मे; और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्हें मनुष्य ने नपुंसक बनाया: और कुछ नपुंसक ऐसे हैं, जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के लिये अपने आप को नपुंसक बनाया है, जो इसको ग्रहण कर सकता है, वह ग्रहण करे।” (IN)

मत्ती 19:13 ¶ तब लोग बालकों को उसके पास लाए, कि वह उन पर हाथ रखे और प्रार्थना करे; पर चेलों ने उन्हें डाँटा। (IN)

मत्ती 19:14 यीशु ने कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों ही का है।” (IN)

मत्ती 19:15 और वह उन पर हाथ रखकर, वहाँ से चला गया। (IN)

मत्ती 19:16 ¶ और एक मनुष्य ने पास आकर उससे कहा, “हे गुरु, मैं कौन सा भला काम करूँ, कि अनन्त जीवन पाऊँ?” (IN)

मत्ती 19:17 उसने उससे कहा, “तू मुझसे भलाई के विषय में क्यों पूछता है? भला तो एक ही है; पर यदि तू जीवन में प्रवेश करना चाहता है, तो आज्ञाओं को माना कर।” (IN)

मत्ती 19:18 उसने उससे कहा, “कौन सी आज्ञाएँ?” यीशु ने कहा, “यह कि हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना; (IN)

मत्ती 19:19 अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।” (IN)

मत्ती 19:20 उस जवान ने उससे कहा, “इन सब को तो मैंने माना है अब मुझ में किस बात की कमी है?” (IN)

मत्ती 19:21 यीशु ने उससे कहा, “यदि तू सिद्ध होना चाहता है; तो जा, अपना सब कुछ बेचकर गरीबों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले।” (IN)

मत्ती 19:22 परन्तु वह जवान यह बात सुन उदास होकर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था। (IN)

मत्ती 19:23 ¶ तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कठिन है। (IN)

मत्ती 19:24 फिर तुम से कहता हूँ, कि परमेश्‍वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।” (IN)

मत्ती 19:25 यह सुनकर, चेलों ने बहुत चकित होकर कहा, “फिर किस का उद्धार हो सकता है?” (IN)

मत्ती 19:26 यीशु ने उनकी ओर देखकर कहा, “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्‍वर से सब कुछ हो सकता है।” (IN)

मत्ती 19:27 इस पर पतरस ने उससे कहा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़ के तेरे पीछे हो लिये हैं तो हमें क्या मिलेगा?” (IN)

मत्ती 19:28 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि नई उत्पत्ति में जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिये हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे। (IN)

मत्ती 19:29 और जिस किसी ने घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माता या बाल-बच्चों या खेतों को मेरे नाम के लिये छोड़ दिया है, उसको सौ गुना मिलेगा, और वह अनन्त जीवन का अधिकारी होगा। (IN)

मत्ती 19:30 परन्तु बहुत सारे जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, पहले होंगे। (IN)

मत्ती 20:1 ¶ “स्वर्ग का राज्य किसी गृहस्थ के समान है, जो सवेरे निकला, कि अपने दाख की बारी में मजदूरों को लगाए। (IN)

मत्ती 20:2 और उसने मजदूरों से एक दीनार रोज पर ठहराकर, उन्हें अपने दाख की बारी में भेजा। (IN)

मत्ती 20:3 फिर पहर एक दिन चढ़े, निकलकर, अन्य लोगों को बाजार में बेकार खड़े देखकर, (IN)

मत्ती 20:4 और उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ, और जो कुछ ठीक है, तुम्हें दूँगा।’ तब वे भी गए। (IN)

मत्ती 20:5 फिर उसने दूसरे और तीसरे पहर के निकट निकलकर वैसा ही किया। (IN)

मत्ती 20:6 और एक घंटा दिन रहे फिर निकलकर दूसरों को खड़े पाया, और उनसे कहा ‘तुम क्यों यहाँ दिन भर बेकार खड़े रहे?’ उन्होंने उससे कहा, ‘इसलिए, कि किसी ने हमें मजदूरी पर नहीं लगाया।’ (IN)

मत्ती 20:7 उसने उनसे कहा, ‘तुम भी दाख की बारी में जाओ।’ (IN)

मत्ती 20:8 ¶ “सांझ को दाख बारी के स्वामी ने अपने भण्डारी से कहा, ‘मजदूरों को बुलाकर पिछले से लेकर पहले तक उन्हें मजदूरी दे-दे।’ (IN)

मत्ती 20:9 जब वे आए, जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उन्हें एक-एक दीनार मिला। (IN)

मत्ती 20:10 जो पहले आए, उन्होंने यह समझा, कि हमें अधिक मिलेगा; परन्तु उन्हें भी एक ही एक दीनार मिला। (IN)

मत्ती 20:11 जब मिला, तो वह गृह स्वामी पर कुड़कुड़ा के कहने लगे, (IN)

मत्ती 20:12 ‘इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया, और तूने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्होंने दिन भर का भार उठाया और धूप सही?’ (IN)

मत्ती 20:13 उसने उनमें से एक को उत्तर दिया, ‘हे मित्र, मैं तुझ से कुछ अन्याय नहीं करता; क्या तूने मुझसे एक दीनार न ठहराया? (IN)

मत्ती 20:14 जो तेरा है, उठा ले, और चला जा; मेरी इच्छा यह है कि जितना तुझे, उतना ही इस पिछले को भी दूँ। (IN)

मत्ती 20:15 क्या यह उचित नहीं कि मैं अपने माल से जो चाहूँ वैसा करूँ? क्या तू मेरे भले होने के कारण बुरी दृष्टि से देखता है?’ (IN)

मत्ती 20:16 इस प्रकार जो अन्तिम हैं, वे प्रथम हो जाएँगे और जो प्रथम हैं वे अन्तिम हो जाएँगे।” (IN)

मत्ती 20:17 ¶ यीशु यरूशलेम को जाते हुए बारह चेलों को एकान्त में ले गया, और मार्ग में उनसे कहने लगा। (IN)

मत्ती 20:18 “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं; और मनुष्य का पुत्र प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा और वे उसको घात के योग्य ठहराएँगे। (IN)

मत्ती 20:19 और उसको अन्यजातियों के हाथ सौंपेंगे, कि वे उसे उपहास में उड़ाएँ, और कोड़े मारें, और क्रूस पर चढ़ाएँ, और वह तीसरे दिन जिलाया जाएगा।” (IN)

मत्ती 20:20 ¶ जब जब्दी के पुत्रों की माता ने अपने पुत्रों के साथ उसके पास आकर प्रणाम किया, और उससे कुछ माँगने लगी। (IN)

मत्ती 20:21 उसने उससे कहा, “तू क्या चाहती है?” वह उससे बोली, “यह कह, कि मेरे ये दो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरे दाहिने और एक तेरे बाएँ बैठे।” (IN)

मत्ती 20:22 यीशु ने उत्तर दिया, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो। जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो?” उन्होंने उससे कहा, “पी सकते हैं।” (IN)

मत्ती 20:23 उसने उनसे कहा, “तुम मेरा कटोरा तो पीओगे पर अपने दाहिने बाएँ किसी को बैठाना मेरा काम नहीं, पर जिनके लिये मेरे पिता की ओर से तैयार किया गया, उन्हीं के लिये है।” (IN)

मत्ती 20:24 ¶ यह सुनकर, दसों चेले उन दोनों भाइयों पर क्रुद्ध हुए। (IN)

मत्ती 20:25 यीशु ने उन्हें पास बुलाकर कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजातियों के अधिपति उन पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। (IN)

मत्ती 20:26 परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने; (IN)

मत्ती 20:27 और जो तुम में प्रधान होना चाहे वह तुम्हारा दास बने; (IN)

मत्ती 20:28 जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि अपनी सेवा करवाए, परन्तु इसलिए आया कि सेवा करे और बहुतों के छुटकारे के लिये अपने प्राण दे।” (IN)

मत्ती 20:29 ¶ जब वे यरीहो से निकल रहे थे, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। (IN)

मत्ती 20:30 और दो अंधे, जो सड़क के किनारे बैठे थे, यह सुनकर कि यीशु जा रहा है, पुकारकर कहने लगे, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” (IN)

मत्ती 20:31 लोगों ने उन्हें डाँटा, कि चुप रहे, पर वे और भी चिल्लाकर बोले, “हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।” (IN)

मत्ती 20:32 तब यीशु ने खड़े होकर, उन्हें बुलाया, और कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” (IN)

मत्ती 20:33 उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, यह कि हमारी आँखें खुल जाएँ।” (IN)

मत्ती 20:34 यीशु ने तरस खाकर उनकी आँखें छूई, और वे तुरन्त देखने लगे; और उसके पीछे हो लिए। (IN)

मत्ती 21:1 ¶ जब वे यरूशलेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ पर बैतफगे के पास आए, तो यीशु ने दो चेलों को यह कहकर भेजा, (IN)

मत्ती 21:2 “अपने सामने के गाँव में जाओ, वहाँ पहुँचते ही एक गदही बंधी हुई, और उसके साथ बच्चा तुम्हें मिलेगा; उन्हें खोलकर, मेरे पास ले आओ। (IN)

मत्ती 21:3 यदि तुम से कोई कुछ कहे, तो कहो, कि प्रभु को इनका प्रयोजन है: तब वह तुरन्त उन्हें भेज देगा।” (IN)

मत्ती 21:4 यह इसलिए हुआ, कि जो वचन भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हो: (IN)

मत्ती 21:5 “सिय्योन की बेटी से कहो, (IN)

मत्ती 21:6 ¶ चेलों ने जाकर, जैसा यीशु ने उनसे कहा था, वैसा ही किया। (IN)

मत्ती 21:7 और गदही और बच्चे को लाकर, उन पर अपने कपड़े डाले, और वह उन पर बैठ गया। (IN)

मत्ती 21:8 और बहुत सारे लोगों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए, और लोगों ने पेड़ों से डालियाँ काटकर मार्ग में बिछाईं। (IN)

मत्ती 21:9 और जो भीड़ आगे-आगे जाती और पीछे-पीछे चली आती थी, पुकार-पुकारकर कहती थी, “दाऊद के सन्तान को होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना।” (IN)

मत्ती 21:10 जब उसने यरूशलेम में प्रवेश किया, तो सारे नगर में हलचल मच गई; और लोग कहने लगे, “यह कौन है?” (IN)

मत्ती 21:11 लोगों ने कहा, “यह गलील के नासरत का भविष्यद्वक्ता यीशु है।” (IN)

मत्ती 21:12 ¶ यीशु ने परमेश्‍वर के मन्दिर में जाकर, उन सब को, जो मन्दिर में लेन-देन कर रहे थे, निकाल दिया; और सर्राफों के मेज़ें और कबूतरों के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। (IN)

मत्ती 21:13 और उनसे कहा, “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा’; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो।” (IN)

मत्ती 21:14 ¶ और अंधे और लँगड़े, मन्दिर में उसके पास आए, और उसने उन्हें चंगा किया। (IN)

मत्ती 21:15 परन्तु जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने इन अद्भुत कामों को, जो उसने किए, और लड़कों को मन्दिर में दाऊद की सन्तान को होशाना’ पुकारते हुए देखा, तो क्रोधित हुए, (IN)

मत्ती 21:16 और उससे कहने लगे, “क्या तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” यीशु ने उनसे कहा, “हाँ; क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा: ‘बालकों और दूध पीते बच्चों के मुँह से तूने स्तुति सिद्ध कराई?’” (IN)

मत्ती 21:17 तब वह उन्हें छोड़कर नगर के बाहर बैतनिय्याह को गया, और वहाँ रात बिताई। (IN)

मत्ती 21:18 ¶ भोर को जब वह नगर को लौट रहा था, तो उसे भूख लगी। (IN)

मत्ती 21:19 और अंजीर के पेड़ को सड़क के किनारे देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उसमें और कुछ न पा कर उससे कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।” और अंजीर का पेड़ तुरन्त सुख गया। (IN)

मत्ती 21:20 यह देखकर चेलों ने अचम्भा किया, और कहा, “यह अंजीर का पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया?” (IN)

मत्ती 21:21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं तुम से सच कहता हूँ; यदि तुम विश्वास रखो, और सन्देह न करो; तो न केवल यह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ से किया गया है; परन्तु यदि इस पहाड़ से भी कहोगे, कि उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़, तो यह हो जाएगा। (IN)

मत्ती 21:22 और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से माँगोगे वह सब तुम को मिलेगा।” (IN)

मत्ती 21:23 ¶ वह मन्दिर में जाकर उपदेश कर रहा था, कि प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने उसके पास आकर पूछा, “तू ये काम किस के अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किस ने दिया है?” (IN)

मत्ती 21:24 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। (IN)

मत्ती 21:25 यूहन्ना का बपतिस्मा कहाँ से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से था?” तब वे आपस में विवाद करने लगे, “यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेगा की, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों न किया?’ (IN)

मत्ती 21:26 और यदि कहें ‘मनुष्यों की ओर से’, तो हमें भीड़ का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्ना को भविष्यद्वक्ता मानते हैं।” (IN)

मत्ती 21:27 अतः उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” उसने भी उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। (IN)

मत्ती 21:28 ¶ “तुम क्या समझते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे; उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर।’ (IN)

मत्ती 21:29 उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊँगा’, परन्तु बाद में उसने अपना मन बदल दिया और चला गया। (IN)

मत्ती 21:30 फिर दूसरे के पास जाकर ऐसा ही कहा, उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ जाता हूँ’, परन्तु नहीं गया। (IN)

मत्ती 21:31 इन दोनों में से किस ने पिता की इच्छा पूरी की?” उन्होंने कहा, “पहले ने।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि चुंगी लेनेवाले और वेश्या तुम से पहले परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करते हैं। (IN)

मत्ती 21:32 क्योंकि यूहन्ना धार्मिकता के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुम ने उस पर विश्वास नहीं किया: पर चुंगी लेनेवालों और वेश्याओं ने उसका विश्वास किया: और तुम यह देखकर बाद में भी न पछताए कि उसका विश्वास कर लेते। (IN)

मत्ती 21:33 ¶ “एक और दृष्टान्त सुनो एक गृहस्थ था, जिसने दाख की बारी लगाई; और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा; और उसमें रस का कुण्ड खोदा; और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। (IN)

मत्ती 21:34 जब फल का समय निकट आया, तो उसने अपने दासों को उसका फल लेने के लिये किसानों के पास भेजा। (IN)

मत्ती 21:35 पर किसानों ने उसके दासों को पकड़ के, किसी को पीटा, और किसी को मार डाला; और किसी को पत्थराव किया। (IN)

मत्ती 21:36 फिर उसने और दासों को भेजा, जो पहले से अधिक थे; और उन्होंने उनसे भी वैसा ही किया। (IN)

मत्ती 21:37 अन्त में उसने अपने पुत्र को उनके पास यह कहकर भेजा, कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। (IN)

मत्ती 21:38 परन्तु किसानों ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है, आओ, उसे मार डालें: और उसकी विरासत ले लें।’ (IN)

मत्ती 21:39 और उन्होंने उसे पकड़ा और दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला। (IN)

मत्ती 21:40 ¶ इसलिए जब दाख की बारी का स्वामी आएगा, तो उन किसानों के साथ क्या करेगा?” (IN)

मत्ती 21:41 उन्होंने उससे कहा, “वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा; और दाख की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।” (IN)

मत्ती 21:42 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम ने कभी पवित्रशास्त्र में यह नहीं पढ़ा: (IN)

मत्ती 21:43 ¶ “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्‍वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। (IN)

मत्ती 21:44 जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चकनाचूर हो जाएगा: और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (IN)

मत्ती 21:45 प्रधान याजकों और फरीसी उसके दृष्टान्तों को सुनकर समझ गए, कि वह हमारे विषय में कहता है। (IN)

मत्ती 21:46 और उन्होंने उसे पकड़ना चाहा, परन्तु लोगों से डर गए क्योंकि वे उसे भविष्यद्वक्ता जानते थे। (IN)

मत्ती 22:1 ¶ इस पर यीशु फिर उनसे दृष्टान्तों में कहने लगा। (IN)

मत्ती 22:2 “स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने पुत्र का विवाह किया। (IN)

मत्ती 22:3 और उसने अपने दासों को भेजा, कि निमंत्रित लोगों को विवाह के भोज में बुलाएँ; परन्तु उन्होंने आना न चाहा। (IN)

मत्ती 22:4 फिर उसने और दासों को यह कहकर भेजा, ‘निमंत्रित लोगों से कहो: देखो, मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, और मेरे बैल और पले हुए पशु मारे गए हैं और सब कुछ तैयार है; विवाह के भोज में आओ।’ (IN)

मत्ती 22:5 परन्तु वे उपेक्षा करके चल दिए: कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को। (IN)

मत्ती 22:6 अन्य लोगों ने जो बच रहे थे उसके दासों को पकड़कर उनका अनादर किया और मार डाला। (IN)

मत्ती 22:7 तब राजा को क्रोध आया, और उसने अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों को नाश किया, और उनके नगर को फूँक दिया। (IN)

मत्ती 22:8 तब उसने अपने दासों से कहा, ‘विवाह का भोज तो तैयार है, परन्तु निमंत्रित लोग योग्य न ठहरे। (IN)

मत्ती 22:9 इसलिए चौराहों में जाओ, और जितने लोग तुम्हें मिलें, सब को विवाह के भोज में बुला लाओ।’ (IN)

मत्ती 22:10 अतः उन दासों ने सड़कों पर जाकर क्या बुरे, क्या भले, जितने मिले, सब को इकट्ठा किया; और विवाह का घर अतिथियों से भर गया। (IN)

मत्ती 22:11 ¶ “जब राजा अतिथियों के देखने को भीतर आया; तो उसने वहाँ एक मनुष्य को देखा, जो विवाह का वस्त्र नहीं पहने था। (IN)

मत्ती 22:12 उसने उससे पूछा, ‘हे मित्र; तू विवाह का वस्त्र पहने बिना यहाँ क्यों आ गया?’ और वह मनुष्य चुप हो गया। (IN)

मत्ती 22:13 तब राजा ने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पाँव बाँधकर उसे बाहर अंधियारे में डाल दो, वहाँ रोना, और दाँत पीसना होगा।’ (IN)

मत्ती 22:14 क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत है परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।” (IN)

मत्ती 22:15 ¶ तब फरीसियों ने जाकर आपस में विचार किया, कि उसको किस प्रकार बातों में फँसाएँ। (IN)

मत्ती 22:16 अतः उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, “हे गुरु, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और परमेश्‍वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता। (IN)

मत्ती 22:17 इसलिए हमें बता तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं।” (IN)

मत्ती 22:18 यीशु ने उनकी दुष्टता जानकर कहा, “हे कपटियों, मुझे क्यों परखते हो? (IN)

मत्ती 22:19 कर का सिक्का मुझे दिखाओ।” तब वे उसके पास एक दीनार ले आए। (IN)

मत्ती 22:20 उसने, उनसे पूछा, “यह आकृति और नाम किस का है?” (IN)

मत्ती 22:21 उन्होंने उससे कहा, “कैसर का।” तब उसने उनसे कहा, “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।” (IN)

मत्ती 22:22 यह सुनकर उन्होंने अचम्भा किया, और उसे छोड़कर चले गए। (IN)

मत्ती 22:23 ¶ उसी दिन सदूकी जो कहते हैं कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं उसके पास आए, और उससे पूछा, (IN)

मत्ती 22:24 “हे गुरु, मूसा ने कहा था, कि यदि कोई बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्‍नी को विवाह करके अपने भाई के लिये वंश उत्‍पन्‍न करे। (IN)

मत्ती 22:25 अब हमारे यहाँ सात भाई थे; पहला विवाह करके मर गया; और सन्तान न होने के कारण अपनी पत्‍नी को अपने भाई के लिये छोड़ गया। (IN)

मत्ती 22:26 इसी प्रकार दूसरे और तीसरे ने भी किया, और सातों तक यही हुआ। (IN)

मत्ती 22:27 सब के बाद वह स्त्री भी मर गई। (IN)

मत्ती 22:28 अतः जी उठने पर वह उन सातों में से किसकी पत्‍नी होगी? क्योंकि वह सब की पत्‍नी हो चुकी थी।” (IN)

मत्ती 22:29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम पवित्रशास्त्र और परमेश्‍वर की सामर्थ्य नहीं जानते; इस कारण भूल में पड़ गए हो। (IN)

मत्ती 22:30 क्योंकि जी उठने पर विवाह-शादी न होगी; परन्तु वे स्वर्ग में दूतों के समान होंगे। (IN)

मत्ती 22:31 परन्तु मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने यह वचन नहीं पढ़ा जो परमेश्‍वर ने तुम से कहा: (IN)

मत्ती 22:32 ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, और इसहाक का परमेश्‍वर, और याकूब का परमेश्‍वर हूँ?’ वह तो मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवितों का परमेश्‍वर है।” (IN)

मत्ती 22:33 यह सुनकर लोग उसके उपदेश से चकित हुए। (IN)

मत्ती 22:34 ¶ जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया; तो वे इकट्ठे हुए। (IN)

मत्ती 22:35 और उनमें से एक व्यवस्थापक ने परखने के लिये, उससे पूछा, (IN)

मत्ती 22:36 “हे गुरु, व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?” (IN)

मत्ती 22:37 उसने उससे कहा, “तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। (IN)

मत्ती 22:38 बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। (IN)

मत्ती 22:39 और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। (IN)

मत्ती 22:40 ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था एवं भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।” (IN)

मत्ती 22:41 ¶ जब फरीसी इकट्ठे थे, तो यीशु ने उनसे पूछा, (IN)

मत्ती 22:42 “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो? वह किस की सन्तान है?” उन्होंने उससे कहा, “दाऊद की।” (IN)

मत्ती 22:43 उसने उनसे पूछा, “तो दाऊद आत्मा में होकर उसे प्रभु क्यों कहता है? (IN)

मत्ती 22:44 ‘प्रभु ने, मेरे प्रभु से कहा, मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे की चौकी न कर दूँ।’ (IN)

मत्ती 22:45 भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र कैसे ठहरा?” (IN)

मत्ती 22:46 उसके उत्तर में कोई भी एक बात न कह सका। परन्तु उस दिन से किसी को फिर उससे कुछ पूछने का साहस न हुआ। (IN)

मत्ती 23:1 ¶ तब यीशु ने भीड़ से और अपने चेलों से कहा, (IN)

मत्ती 23:2 “शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं; (IN)

मत्ती 23:3 इसलिए वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना, परन्तु उनके जैसा काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं। (IN)

मत्ती 23:4 वे एक ऐसे भारी बोझ को जिनको उठाना कठिन है, बाँधकर उन्हें मनुष्यों के कंधों पर रखते हैं; परन्तु आप उन्हें अपनी उँगली से भी सरकाना नहीं चाहते। (IN)

मत्ती 23:5 वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं वे अपने तावीजों को चौड़े करते, और अपने वस्त्रों की झालरों को बढ़ाते हैं। (IN)

मत्ती 23:6 भोज में मुख्य-मुख्य जगहें, और आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन, (IN)

मत्ती 23:7 और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी कहलाना उन्हें भाता है। (IN)

मत्ती 23:8 परन्तु तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो। (IN)

मत्ती 23:9 और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। (IN)

मत्ती 23:10 और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात् मसीह। (IN)

मत्ती 23:11 जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने। (IN)

मत्ती 23:12 जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा। (IN)

मत्ती 23:13 ¶ “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उसमें प्रवेश करते हो और न उसमें प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो। (IN)

मत्ती 23:14 [हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम विधवाओं के घरों को खा जाते हो, और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हो: इसलिए तुम्हें अधिक दण्ड मिलेगा।] (IN)

मत्ती 23:15 ¶ “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है, तो उसे अपने से दुगुना नारकीय बना देते हो। (IN)

मत्ती 23:16 ¶ “हे अंधे अगुओं, तुम पर हाय, जो कहते हो कि यदि कोई मन्दिर की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की सौगन्ध खाए तो उससे बन्ध जाएगा। (IN)

मत्ती 23:17 हे मूर्खों, और अंधों, कौन बड़ा है, सोना या वह मन्दिर जिससे सोना पवित्र होता है? (IN)

मत्ती 23:18 फिर कहते हो कि यदि कोई वेदी की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु जो भेंट उस पर है, यदि कोई उसकी शपथ खाए तो बन्ध जाएगा। (IN)

मत्ती 23:19 हे अंधों, कौन बड़ा है, भेंट या वेदी जिससे भेंट पवित्र होती है? (IN)

मत्ती 23:20 इसलिए जो वेदी की शपथ खाता है, वह उसकी, और जो कुछ उस पर है, उसकी भी शपथ खाता है। (IN)

मत्ती 23:21 और जो मन्दिर की शपथ खाता है, वह उसकी और उसमें रहनेवालों की भी शपथ खाता है। (IN)

मत्ती 23:22 और जो स्वर्ग की शपथ खाता है, वह परमेश्‍वर के सिंहासन की और उस पर बैठनेवाले की भी शपथ खाता है। (IN)

मत्ती 23:23 ¶ “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवाँ अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों अर्थात् न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते। (IN)

मत्ती 23:24 हे अंधे अगुओं, तुम मच्छर को तो छान डालते हो, परन्तु ऊँट को निगल जाते हो। (IN)

मत्ती 23:25 ¶ “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर से तो माँजते हो परन्तु वे भीतर अंधेर असंयम से भरे हुए हैं। (IN)

मत्ती 23:26 हे अंधे फरीसी, पहले कटोरे और थाली को भीतर से माँज कि वे बाहर से भी स्वच्छ हों। (IN)

मत्ती 23:27 ¶ “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम चूना फिरी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं। (IN)

मत्ती 23:28 इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो। (IN)

मत्ती 23:29 ¶ “हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें संवारते और धर्मियों की कब्रें बनाते हो। (IN)

मत्ती 23:30 और कहते हो, ‘यदि हम अपने पूर्वजों के दिनों में होते तो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या में उनके सहभागी न होते।’ (IN)

मत्ती 23:31 इससे तो तुम अपने पर आप ही गवाही देते हो, कि तुम भविष्यद्वक्ताओं के हत्यारों की सन्तान हो। (IN)

मत्ती 23:32 अतः तुम अपने पूर्वजों के पाप का घड़ा भर दो। (IN)

मत्ती 23:33 हे साँपो, हे करैतों के बच्चों, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे? (IN)

मत्ती 23:34 इसलिए देखो, मैं तुम्हारे पास भविष्यद्वक्ताओं और बुद्धिमानों और शास्त्रियों को भेजता हूँ; और तुम उनमें से कुछ को मार डालोगे, और क्रूस पर चढ़ाओगे; और कुछ को अपनी आराधनालयों में कोड़े मारोगे, और एक नगर से दूसरे नगर में खदेड़ते फिरोगे। (IN)

मत्ती 23:35 जिससे धर्मी हाबिल से लेकर बिरिक्याह के पुत्र जकर्याह तक, जिसे तुम ने मन्दिर और वेदी के बीच में मार डाला था, जितने धर्मियों का लहू पृथ्वी पर बहाया गया है, वह सब तुम्हारे सिर पर पड़ेगा। (IN)

मत्ती 23:36 मैं तुम से सच कहता हूँ, ये सब बातें इस पीढ़ी के लोगों पर आ पड़ेंगी। (IN)

मत्ती 23:37 ¶ “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थराव करता है, कितनी ही बार मैंने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठा कर लूँ, परन्तु तुम ने न चाहा। (IN)

मत्ती 23:38 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है। (IN)

मत्ती 23:39 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि अब से जब तक तुम न कहोगे, ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है’ तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।” (IN)

मत्ती 24:1 ¶ जब यीशु मन्दिर से निकलकर जा रहा था, तो उसके चेले उसको मन्दिर की रचना दिखाने के लिये उसके पास आए। (IN)

मत्ती 24:2 उसने उनसे कहा, “क्या तुम यह सब नहीं देखते? मैं तुम से सच कहता हूँ, यहाँ पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।” (IN)

मत्ती 24:3 ¶ और जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा था, तो चेलों ने अलग उसके पास आकर कहा, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (IN)

मत्ती 24:4 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “सावधान रहो! कोई तुम्हें न बहकाने पाए। (IN)

मत्ती 24:5 क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं मसीह हूँ’, और बहुतों को बहका देंगे। (IN)

मत्ती 24:6 तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे; देखो घबरा न जाना क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। (IN)

मत्ती 24:7 क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह-जगह अकाल पड़ेंगे, और भूकम्प होंगे। (IN)

मत्ती 24:8 ये सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी। (IN)

मत्ती 24:9 तब वे क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएँगे, और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे। (IN)

मत्ती 24:10 तब बहुत सारे ठोकर खाएँगे, और एक दूसरे को पकड़वाएँगे और एक दूसरे से बैर रखेंगे। (IN)

मत्ती 24:11 बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बहुतों को बहकाएँगे। (IN)

मत्ती 24:12 और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा। (IN)

मत्ती 24:13 परन्तु जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा। (IN)

मत्ती 24:14 और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा। (IN)

मत्ती 24:15 ¶ “इसलिए जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जिसकी चर्चा दानिय्येल भविष्यद्वक्ता के द्वारा हुई थी, पवित्रस्‍थान में खड़ी हुई देखो, (जो पढ़े, वह समझे)। (IN)

मत्ती 24:16 तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। (IN)

मत्ती 24:17 जो छत पर हो, वह अपने घर में से सामान लेने को न उतरे। (IN)

मत्ती 24:18 और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे। (IN)

मत्ती 24:19 ¶ “उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय, हाय। (IN)

मत्ती 24:20 और प्रार्थना करो; कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। (IN)

मत्ती 24:21 क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा। (IN)

मत्ती 24:22 और यदि वे दिन घटाए न जाते, तो कोई प्राणी न बचता; परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएँगे। (IN)

मत्ती 24:23 उस समय यदि कोई तुम से कहे, कि देखो, मसीह यहाँ हैं! या वहाँ है! तो विश्वास न करना। (IN)

मत्ती 24:24 ¶ “क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएँगे, कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी बहका दें। (IN)

मत्ती 24:25 देखो, मैंने पहले से तुम से यह सब कुछ कह दिया है। (IN)

मत्ती 24:26 इसलिए यदि वे तुम से कहें, ‘देखो, वह जंगल में है’, तो बाहर न निकल जाना; ‘देखो, वह कोठरियों में हैं’, तो विश्वास न करना। (IN)

मत्ती 24:27 ¶ “क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती जाती है, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा। (IN)

मत्ती 24:28 जहाँ लाश हो, वहीं गिद्ध इकट्ठे होंगे। (IN)

मत्ती 24:29 ¶ “उन दिनों के क्लेश के बाद तुरन्त सूर्य अंधियारा हो जाएगा, और चाँद का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। (IN)

मत्ती 24:30 तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे। (IN)

मत्ती 24:31 और वह तुरही के बड़े शब्द के साथ, अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशा से उसके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे। (IN)

मत्ती 24:32 ¶ “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो जब उसकी डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। (IN)

मत्ती 24:33 इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, वरन् द्वार पर है। (IN)

मत्ती 24:34 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त नहीं होगा। (IN)

मत्ती 24:35 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरे शब्‍द कभी न टलेंगी। (IN)

मत्ती 24:36 ¶ “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूतों, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता। (IN)

मत्ती 24:37 जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। (IN)

मत्ती 24:38 क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी। (IN)

मत्ती 24:39 और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उनको कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। (IN)

मत्ती 24:40 उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। (IN)

मत्ती 24:41 दो स्त्रियाँ चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। (IN)

मत्ती 24:42 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। (IN)

मत्ती 24:43 परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा, तो जागता रहता; और अपने घर में चोरी नहीं होने देता। (IN)

मत्ती 24:44 इसलिए तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस समय के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी समय मनुष्य का पुत्र आ जाएगा। (IN)

मत्ती 24:45 ¶ “अतः वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर-चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे? (IN)

मत्ती 24:46 धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। (IN)

मत्ती 24:47 मैं तुम से सच कहता हूँ; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। (IN)

मत्ती 24:48 परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है। (IN)

मत्ती 24:49 और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए-पीए। (IN)

मत्ती 24:50 तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा, और ऐसी घड़ी कि जिसे वह न जानता हो, (IN)

मत्ती 24:51 और उसे कठोर दण्ड देकर, उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा। (IN)

मत्ती 25:1 ¶ “तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। (IN)

मत्ती 25:2 उनमें पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं। (IN)

मत्ती 25:3 मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया। (IN)

मत्ती 25:4 परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। (IN)

मत्ती 25:5 जब दुल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब उँघने लगीं, और सो गई। (IN)

मत्ती 25:6 ¶ “आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो। (IN)

मत्ती 25:7 तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। (IN)

मत्ती 25:8 और मूर्खों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं।’ (IN)

मत्ती 25:9 परन्तु समझदारों ने उत्तर दिया कि कही हमारे और तुम्हारे लिये पूरा न हो; भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो। (IN)

मत्ती 25:10 जब वे मोल लेने को जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चलीं गई और द्वार बन्द किया गया। (IN)

मत्ती 25:11 इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे।’ (IN)

मत्ती 25:12 उसने उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता। (IN)

मत्ती 25:13 इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस समय को। (IN)

मत्ती 25:14 ¶ “क्योंकि यह उस मनुष्य के समान दशा है जिसने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर अपनी संपत्ति उनको सौंप दी। (IN)

मत्ती 25:15 उसने एक को पाँच तोड़, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। (IN)

मत्ती 25:16 तब, जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन-देन किया, और पाँच तोड़े और कमाए। (IN)

मत्ती 25:17 इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। (IN)

मत्ती 25:18 परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी का धन छिपा दिए। (IN)

मत्ती 25:19 ¶ “बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। (IN)

मत्ती 25:20 जिसको पाँच तोड़े मिले थे, उसने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तूने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे, देख मैंने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ (IN)

मत्ती 25:21 उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’ (IN)

मत्ती 25:22 ¶ “और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा, ‘हे स्वामी तूने मुझे दो तोड़े सौंपें थे, देख, मैंने दो तोड़े और कमाए।’ (IN)

मत्ती 25:23 उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा, मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’ (IN)

मत्ती 25:24 ¶ “तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, ‘हे स्वामी, मैं तुझे जानता था, कि तू कठोर मनुष्य है: तू जहाँ कहीं नहीं बोता वहाँ काटता है, और जहाँ नहीं छींटता वहाँ से बटोरता है।’ (IN)

मत्ती 25:25 इसलिए मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया; देख, ‘जो तेरा है, वह यह है।’ (IN)

मत्ती 25:26 उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, कि हे दुष्ट और आलसी दास; जब तू यह जानता था, कि जहाँ मैंने नहीं बोया वहाँ से काटता हूँ; और जहाँ मैंने नहीं छींटा वहाँ से बटोरता हूँ। (IN)

मत्ती 25:27 तो तुझे चाहिए था, कि मेरा धन सर्राफों को दे देता, तब मैं आकर अपना धन ब्याज समेत ले लेता। (IN)

मत्ती 25:28 इसलिए वह तोड़ा उससे ले लो, और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसको दे दो। (IN)

मत्ती 25:29 क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परन्तु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा। (IN)

मत्ती 25:30 और इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा। (IN)

मत्ती 25:31 ¶ “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। (IN)

मत्ती 25:32 और सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। (IN)

मत्ती 25:33 और वह भेड़ों को अपनी दाहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा। (IN)

मत्ती 25:34 तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है। (IN)

मत्ती 25:35 क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया; (IN)

मत्ती 25:36 मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए; मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझसे मिलने आए।’ (IN)

मत्ती 25:37 ¶ “तब धर्मी उसको उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया? या प्यासा देखा, और पानी पिलाया? (IN)

मत्ती 25:38 हमने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा, और कपड़े पहनाए? (IN)

मत्ती 25:39 हमने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए?’ (IN)

मत्ती 25:40 तब राजा उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।’ (IN)

मत्ती 25:41 “तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, ‘हे श्रापित लोगों, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है। (IN)

मत्ती 25:42 क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया; (IN)

मत्ती 25:43 मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली।’ (IN)

मत्ती 25:44 ¶ “तब वे उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?’ (IN)

मत्ती 25:45 तब वह उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम ने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।’ (IN)

मत्ती 25:46 और ये अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।” (IN)

मत्ती 26:1 ¶ जब यीशु ये सब बातें कह चुका, तो अपने चेलों से कहने लगा। (IN)

मत्ती 26:2 “तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद फसह का पर्व होगा; और मनुष्य का पुत्र क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिये पकड़वाया जाएगा।” (IN)

मत्ती 26:3 तब प्रधान याजक और प्रजा के पुरनिए कैफा नामक महायाजक के आँगन में इकट्ठे हुए। (IN)

मत्ती 26:4 और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें। (IN)

मत्ती 26:5 परन्तु वे कहते थे, “पर्व के समय नहीं; कहीं ऐसा न हो कि लोगों में दंगा मच जाए।” (IN)

मत्ती 26:6 ¶ जब यीशु बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर में था। (IN)

मत्ती 26:7 तो एक स्त्री संगमरमर के पात्र में बहुमूल्य इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया। (IN)

मत्ती 26:8 यह देखकर, उसके चेले झुँझला उठे और कहने लगे, “इसका क्यों सत्यानाश किया गया? (IN)

मत्ती 26:9 यह तो अच्छे दाम पर बेचकर गरीबों को बाँटा जा सकता था।” (IN)

मत्ती 26:10 यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, “स्त्री को क्यों सताते हो? उसने मेरे साथ भलाई की है। (IN)

मत्ती 26:11 गरीब तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदैव न रहूँगा। (IN)

मत्ती 26:12 उसने मेरी देह पर जो यह इत्र उण्डेला है, वह मेरे गाड़े जाने के लिये किया है। (IN)

मत्ती 26:13 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।” (IN)

मत्ती 26:14 ¶ तब यहूदा इस्करियोती ने, बारह चेलों में से एक था, प्रधान याजकों के पास जाकर कहा, (IN)

मत्ती 26:15 “यदि मैं उसे तुम्हारे हाथ पकड़वा दूँ, तो मुझे क्या दोगे?” उन्होंने उसे तीस चाँदी के सिक्के तौलकर दे दिए। (IN)

मत्ती 26:16 और वह उसी समय से उसे पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ने लगा। (IN)

मत्ती 26:17 ¶ अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें?” (IN)

मत्ती 26:18 उसने कहा, “नगर में फलाने के पास जाकर उससे कहो, कि गुरु कहता है, कि मेरा समय निकट है, मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहाँ फसह मनाऊँगा।” (IN)

मत्ती 26:19 अतः चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी, और फसह तैयार किया। (IN)

मत्ती 26:20 ¶ जब सांझ हुई, तो वह बारह चेलों के साथ भोजन करने के लिये बैठा। (IN)

मत्ती 26:21 जब वे खा रहे थे, तो उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।” (IN)

मत्ती 26:22 इस पर वे बहुत उदास हुए, और हर एक उससे पूछने लगा, “हे गुरु, क्या वह मैं हूँ?” (IN)

मत्ती 26:23 उसने उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है, वही मुझे पकड़वाएगा। (IN)

मत्ती 26:24 मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य के लिये शोक है जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है: यदि उस मनुष्य का जन्म न होता, तो उसके लिये भला होता।” (IN)

मत्ती 26:25 तब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने कहा, “हे रब्बी, क्या वह मैं हूँ?” उसने उससे कहा, “तू कह चुका।” (IN)

मत्ती 26:26 ¶ जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” (IN)

मत्ती 26:27 फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, “तुम सब इसमें से पीओ, (IN)

मत्ती 26:28 क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के लिए बहाया जाता है। (IN)

मत्ती 26:29 मैं तुम से कहता हूँ, कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पीऊँगा, जब तक तुम्हारे साथ अपने पिता के राज्य में नया न पीऊँ।” (IN)

मत्ती 26:30 फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए। (IN)

मत्ती 26:31 ¶ तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम सब आज ही रात को मेरे विषय में ठोकर खाओगे; क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा; और झुण्ड की भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’ (IN)

मत्ती 26:32 परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।” (IN)

मत्ती 26:33 इस पर पतरस ने उससे कहा, “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएँ तो खाएँ, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊँगा।” (IN)

मत्ती 26:34 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि आज ही रात को मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझसे मुकर जाएगा।” (IN)

मत्ती 26:35 पतरस ने उससे कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो, तो भी, मैं तुझ से कभी न मुकरूँगा।” और ऐसा ही सब चेलों ने भी कहा। (IN)

मत्ती 26:36 ¶ तब यीशु ने अपने चेलों के साथ गतसमनी नामक एक स्थान में आया और अपने चेलों से कहने लगा “यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ।” (IN)

मत्ती 26:37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। (IN)

मत्ती 26:38 तब उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मेरे प्राण निकला जा रहा है। तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।” (IN)

मत्ती 26:39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुँह के बल गिरकर, और यह प्रार्थना करने लगा, “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझसे टल जाए, फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” (IN)

मत्ती 26:40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक घण्टे भर न जाग सके? (IN)

मत्ती 26:41 जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो! आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।” (IN)

मत्ती 26:42 फिर उसने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की, “हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।” (IN)

मत्ती 26:43 तब उसने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। (IN)

मत्ती 26:44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही बात फिर कहकर, तीसरी बार प्रार्थना की। (IN)

मत्ती 26:45 तब उसने चेलों के पास आकर उनसे कहा, “अब सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, समय आ पहुँचा है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। (IN)

मत्ती 26:46 उठो, चलें; देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है।” (IN)

मत्ती 26:47 ¶ वह यह कह ही रहा था, कि यहूदा जो बारहों में से एक था, आया, और उसके साथ प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों की ओर से बड़ी भीड़, तलवारें और लाठियाँ लिए हुए आई। (IN)

मत्ती 26:48 उसके पकड़वानेवाले ने उन्हें यह पता दिया था: “जिसको मैं चूम लूँ वही है; उसे पकड़ लेना।” (IN)

मत्ती 26:49 और तुरन्त यीशु के पास आकर कहा, “हे रब्बी, नमस्कार!” और उसको बहुत चूमा। (IN)

मत्ती 26:50 यीशु ने उससे कहा, “हे मित्र, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले।” तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले और उसे पकड़ लिया। (IN)

मत्ती 26:51 तब यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उसका कान काट दिया। (IN)

मत्ती 26:52 तब यीशु ने उससे कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएँगे। (IN)

मत्ती 26:53 क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह सैन्य-दल से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा? (IN)

मत्ती 26:54 परन्तु पवित्रशास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?” (IN)

मत्ती 26:55 उसी समय यीशु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिये निकले हो? मैं हर दिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा। (IN)

मत्ती 26:56 परन्तु यह सब इसलिए हुआ है, कि भविष्यद्वक्ताओं के वचन पूरे हों।” तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए। (IN)

मत्ती 26:57 ¶ और यीशु के पकड़नेवाले उसको कैफा नामक महायाजक के पास ले गए, जहाँ शास्त्री और पुरनिए इकट्ठे हुए थे। (IN)

मत्ती 26:58 और पतरस दूर से उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन तक गया, और भीतर जाकर अन्त देखने को सेवकों के साथ बैठ गया। (IN)

मत्ती 26:59 प्रधान याजकों और सारी महासभा यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में झूठी गवाही की खोज में थे। (IN)

मत्ती 26:60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहों के आने पर भी न पाई। अन्त में दो जन आए, (IN)

मत्ती 26:61 और कहा, “इसने कहा कि मैं परमेश्‍वर के मन्दिर को ढा सकता हूँ और उसे तीन दिन में बना सकता हूँ।” (IN)

मत्ती 26:62 ¶ तब महायाजक ने खड़े होकर उससे कहा, “क्या तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” (IN)

मत्ती 26:63 परन्तु यीशु चुप रहा। तब महायाजक ने उससे कहा “मैं तुझे जीविते परमेश्‍वर की शपथ देता हूँ, कि यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।” (IN)

मत्ती 26:64 यीशु ने उससे कहा, “तूने आप ही कह दिया; वरन् मैं तुम से यह भी कहता हूँ, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।” (IN)

मत्ती 26:65 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “इसने परमेश्‍वर की निन्दा की है, अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन? देखो, तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है! (IN)

मत्ती 26:66 तुम क्या समझते हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “यह मृत्यु दण्ड होने के योग्य है।” (IN)

मत्ती 26:67 तब उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसे घूँसे मारे, दूसरों ने थप्पड़ मार के कहा, (IN)

मत्ती 26:68 “हे मसीह, हम से भविष्यद्वाणी करके कह कि किस ने तुझे मारा?” (IN)

मत्ती 26:69 ¶ पतरस बाहर आँगन में बैठा हुआ था कि एक दासी ने उसके पास आकर कहा, “तू भी यीशु गलीली के साथ था।” (IN)

मत्ती 26:70 उसने सब के सामने यह कहकर इन्कार किया और कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है।” (IN)

मत्ती 26:71 जब वह बाहर द्वार में चला गया, तो दूसरी दासी ने उसे देखकर उनसे जो वहाँ थे कहा, “यह भी तो यीशु नासरी के साथ था।” (IN)

मत्ती 26:72 उसने शपथ खाकर फिर इन्कार किया, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” (IN)

मत्ती 26:73 थोड़ी देर के बाद, जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उससे कहा, “सचमुच तू भी उनमें से एक है; क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है।” (IN)

मत्ती 26:74 तब वह कोसने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता।” और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। (IN)

मत्ती 26:75 तब पतरस को यीशु की कही हुई बात स्मरण आई, “मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” और वह बाहर जाकर फूट-फूट कर रोने लगा। (IN)

मत्ती 27:1 ¶ जब भोर हुई, तो सब प्रधान याजकों और लोगों के प्राचीनों ने यीशु के मार डालने की सम्मति की। (IN)

मत्ती 27:2 और उन्होंने उसे बाँधा और ले जाकर पिलातुस राज्यपाल के हाथ में सौंप दिया। (IN)

मत्ती 27:3 ¶ जब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चाँदी के सिक्के प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास फेर लाया। (IN)

मत्ती 27:4 और कहा, “मैंने निर्दोषी को मृत्यु के लिये पकड़वाकर पाप किया है?” उन्होंने कहा, “हमें क्या? तू ही जाने।” (IN)

मत्ती 27:5 तब वह उन सिक्कों को मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आप को फांसी दी। (IN)

मत्ती 27:6 ¶ प्रधान याजकों ने उन सिक्कों को लेकर कहा, “इन्हें, भण्डार में रखना उचित नहीं, क्योंकि यह लहू का दाम है।” (IN)

मत्ती 27:7 अतः उन्होंने सम्मति करके उन सिक्कों से परदेशियों के गाड़ने के लिये कुम्हार का खेत मोल ले लिया। (IN)

मत्ती 27:8 इस कारण वह खेत आज तक लहू का खेत कहलाता है। (IN)

मत्ती 27:9 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हुआ “उन्होंने वे तीस सिक्के अर्थात् उस ठहराए हुए मूल्य को (जिसे इस्राएल की सन्तान में से कितनों ने ठहराया था) ले लिया। (IN)

मत्ती 27:10 और जैसे प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी वैसे ही उन्हें कुम्हार के खेत के मूल्य में दे दिया।” (IN)

मत्ती 27:11 ¶ जब यीशु राज्यपाल के सामने खड़ा था, तो राज्यपाल ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने उससे कहा, “तू आप ही कह रहा है।” (IN)

मत्ती 27:12 जब प्रधान याजक और पुरनिए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उसने कुछ उत्तर नहीं दिया। (IN)

मत्ती 27:13 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” (IN)

मत्ती 27:14 परन्तु उसने उसको एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहाँ तक कि राज्यपाल को बड़ा आश्चर्य हुआ। (IN)

मत्ती 27:15 ¶ और राज्यपाल की यह रीति थी, कि उस पर्व में लोगों के लिये किसी एक बन्दी को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था। (IN)

मत्ती 27:16 उस समय बरअब्बा नामक उन्हीं में का, एक नामी बन्धुआ था। (IN)

मत्ती 27:17 अतः जब वे इकट्ठा हुए, तो पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम किसको चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूँ? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?” (IN)

मत्ती 27:18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है। (IN)

मत्ती 27:19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा हुआ था तो उसकी पत्‍नी ने उसे कहला भेजा, “तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना; क्योंकि मैंने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुःख उठाया है।” (IN)

मत्ती 27:20 ¶ प्रधान याजकों और प्राचीनों ने लोगों को उभारा, कि वे बरअब्बा को माँग ले, और यीशु को नाश कराएँ। (IN)

मत्ती 27:21 राज्यपाल ने उनसे पूछा, “इन दोनों में से किस को चाहते हो, कि तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?” उन्होंने कहा, “बरअब्बा को।” (IN)

मत्ती 27:22 पिलातुस ने उनसे पूछा, “फिर यीशु को जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?” सब ने उससे कहा, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” (IN)

मत्ती 27:23 राज्यपाल ने कहा, “क्यों उसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।” (IN)

मत्ती 27:24 जब पिलातुस ने देखा, कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इसके विपरीत उपद्रव होता जाता है, तो उसने पानी लेकर भीड़ के सामने अपने हाथ धोए, और कहा, “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ; तुम ही जानो।” (IN)

मत्ती 27:25 सब लोगों ने उत्तर दिया, “इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!” (IN)

मत्ती 27:26 ¶ इस पर उसने बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए। (IN)

मत्ती 27:27 ¶ तब राज्यपाल के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारे सैनिक उसके चारों ओर इकट्ठी की। (IN)

मत्ती 27:28 और उसके कपड़े उतारकर उसे लाल चोगा पहनाया। (IN)

मत्ती 27:29 और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा; और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे उपहास में उड़ाने लगे, “हे यहूदियों के राजा नमस्कार!” (IN)

मत्ती 27:30 और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। (IN)

मत्ती 27:31 जब वे उसका उपहास कर चुके, तो वह चोगा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले। (IN)

मत्ती 27:32 ¶ बाहर जाते हुए उन्हें शमौन नामक एक कुरेनी मनुष्य मिला, उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। (IN)

मत्ती 27:33 और उस स्थान पर जो गुलगुता नाम की जगह अर्थात् खोपड़ी का स्थान कहलाता है पहुँचकर। (IN)

मत्ती 27:34 उन्होंने पित्त मिलाया हुआ दाखरस उसे पीने को दिया, परन्तु उसने चखकर पीना न चाहा। (IN)

मत्ती 27:35 तब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया; और चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। (IN)

मत्ती 27:36 और वहाँ बैठकर उसका पहरा देने लगे। (IN)

मत्ती 27:37 और उसका दोषपत्र, उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है।” (IN)

मत्ती 27:38 तब उसके साथ दो डाकू एक दाहिने और एक बाएँ क्रूसों पर चढ़ाए गए। (IN)

मत्ती 27:39 और आने-जानेवाले सिर हिला-हिलाकर उसकी निन्दा करते थे। (IN)

मत्ती 27:40 और यह कहते थे, “हे मन्दिर के ढानेवाले और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आप को तो बचा! यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ।” (IN)

मत्ती 27:41 इसी रीति से प्रधान याजक भी शास्त्रियों और प्राचीनों समेत उपहास कर करके कहते थे, (IN)

मत्ती 27:42 “इसने दूसरों को बचाया, और अपने आप को नहीं बचा सकता। यह तो ‘इस्राएल का राजा’ है। अब क्रूस पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें। (IN)

मत्ती 27:43 उसने परमेश्‍वर का भरोसा रखा है, यदि वह इसको चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इसने कहा था, कि ‘मैं परमेश्‍वर का पुत्र हूँ।’” (IN)

मत्ती 27:44 इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे उसकी निन्दा करते थे। (IN)

मत्ती 27:45 ¶ दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अंधेरा छाया रहा। (IN)

मत्ती 27:46 तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “एली, एली, लमा शबक्तनी?” अर्थात् “हे मेरे परमेश्‍वर, हे मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (IN)

मत्ती 27:47 जो वहाँ खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, “वह तो एलिय्याह को पुकारता है।” (IN)

मत्ती 27:48 उनमें से एक तुरन्त दौड़ा, और पनसोख्‍ता लेकर सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया। (IN)

मत्ती 27:49 औरों ने कहा, “रह जाओ, देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं।” (IN)

मत्ती 27:50 तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए। (IN)

मत्ती 27:51 तब, मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया: और धरती डोल गई और चट्टानें फट गईं। (IN)

मत्ती 27:52 और कब्रें खुल गईं, और सोए हुए पवित्र लोगों के बहुत शव जी उठे। (IN)

मत्ती 27:53 और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए। (IN)

मत्ती 27:54 तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भूकम्प और जो कुछ हुआ था, देखकर अत्यन्त डर गए, और कहा, “सचमुच यह परमेश्‍वर का पुत्र था!” (IN)

मत्ती 27:55 वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ जो गलील से यीशु की सेवा करती हुईं उसके साथ आईं थीं, दूर से देख रही थीं। (IN)

मत्ती 27:56 उनमें मरियम मगदलीनी और याकूब और योसेस की माता मरियम और जब्दी के पुत्रों की माता थीं। (IN)

मत्ती 27:57 ¶ जब सांझ हुई तो यूसुफ नाम अरिमतियाह का एक धनी मनुष्य जो आप ही यीशु का चेला था, आया। (IN)

मत्ती 27:58 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा। इस पर पिलातुस ने दे देने की आज्ञा दी। (IN)

मत्ती 27:59 यूसुफ ने शव को लेकर उसे साफ चादर में लपेटा। (IN)

मत्ती 27:60 और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उसने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़काकर चला गया। (IN)

मत्ती 27:61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहाँ कब्र के सामने बैठी थीं। (IN)

मत्ती 27:62 ¶ दूसरे दिन जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, प्रधान याजकों और फरीसियों ने पिलातुस के पास इकट्ठे होकर कहा। (IN)

मत्ती 27:63 “हे स्वामी, हमें स्मरण है, कि उस भरमानेवाले ने अपने जीते जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूँगा। (IN)

मत्ती 27:64 अतः आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाएँ, और लोगों से कहने लगें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है: तब पिछला धोखा पहले से भी बुरा होगा।” (IN)

मत्ती 27:65 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम्हारे पास पहरेदार तो हैं जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो।” (IN)

मत्ती 27:66 अतः वे पहरेदारों को साथ लेकर गए, और पत्थर पर मुहर लगाकर कब्र की रखवाली की। (IN)

मत्ती 28:1 ¶ सब्त के दिन के बाद सप्ताह के पहले दिन पौ फटते ही मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आई। (IN)

मत्ती 28:2 तब एक बड़ा भूकम्प हुआ, क्योंकि परमेश्‍वर का एक दूत स्वर्ग से उतरा, और पास आकर उसने पत्थर को लुढ़का दिया, और उस पर बैठ गया। (IN)

मत्ती 28:3 उसका रूप बिजली के समान और उसका वस्त्र हिम के समान उज्‍ज्वल था। (IN)

मत्ती 28:4 उसके भय से पहरेदार काँप उठे, और मृतक समान हो गए। (IN)

मत्ती 28:5 स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, “मत डरो, मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को जो क्रूस पर चढ़ाया गया था ढूँढ़ती हो। (IN)

मत्ती 28:6 वह यहाँ नहीं है, परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठा है; आओ, यह स्थान देखो, जहाँ प्रभु रखा गया था। (IN)

मत्ती 28:7 और शीघ्र जाकर उसके चेलों से कहो, कि वह मृतकों में से जी उठा है; और देखो वह तुम से पहले गलील को जाता है, वहाँ उसका दर्शन पाओगे, देखो, मैंने तुम से कह दिया।” (IN)

मत्ती 28:8 और वे भय और बड़े आनन्द के साथ कब्र से शीघ्र लौटकर उसके चेलों को समाचार देने के लिये दौड़ गई। (IN)

मत्ती 28:9 ¶ तब, यीशु उन्हें मिला और कहा; “सुखी रहो” और उन्होंने पास आकर और उसके पाँव पकड़कर उसको दण्डवत् किया। (IN)

मत्ती 28:10 तब यीशु ने उनसे कहा, “मत डरो; मेरे भाइयों से जाकर कहो, कि गलील को चलें जाएँ वहाँ मुझे देखेंगे।” (IN)

मत्ती 28:11 ¶ वे जा ही रही थी, कि पहरेदारों में से कितनों ने नगर में आकर पूरा हाल प्रधान याजकों से कह सुनाया। (IN)

मत्ती 28:12 तब उन्होंने प्राचीनों के साथ इकट्ठे होकर सम्मति की, और सिपाहियों को बहुत चाँदी देकर कहा। (IN)

मत्ती 28:13 “यह कहना कि रात को जब हम सो रहे थे, तो उसके चेले आकर उसे चुरा ले गए। (IN)

मत्ती 28:14 और यदि यह बात राज्यपाल के कान तक पहुँचेगी, तो हम उसे समझा लेंगे और तुम्हें जोखिम से बचा लेंगे।” (IN)

मत्ती 28:15 अतः उन्होंने रुपये लेकर जैसा सिखाए गए थे, वैसा ही किया; और यह बात आज तक यहूदियों में प्रचलित है। (IN)

मत्ती 28:16 ¶ और ग्यारह चेले गलील में उस पहाड़ पर गए, जिसे यीशु ने उन्हें बताया था। (IN)

मत्ती 28:17 और उन्होंने उसके दर्शन पा कर उसे प्रणाम किया, पर किसी-किसी को सन्देह हुआ। (IN)

मत्ती 28:18 यीशु ने उनके पास आकर कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। (IN)

मत्ती 28:19 इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, (IN)

मत्ती 28:20 और उन्हें सब बातें जो मैंने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ।” (IN)

मरकुस 1:1 ¶ परमेश्‍वर के पुत्र यीशु मसीह के सुसमाचार का आरम्भ। (IN)

मरकुस 1:2 जैसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक में लिखा है: (IN)

मरकुस 1:3 जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा है कि (IN)

मरकुस 1:4 यूहन्ना आया, जो जंगल में बपतिस्मा देता, और पापों की क्षमा के लिये मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करता था। (IN)

मरकुस 1:5 सारे यहूदिया के, और यरूशलेम के सब रहनेवाले निकलकर उसके पास गए, और अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लिया। (IN)

मरकुस 1:6 यूहन्ना ऊँट के रोम का वस्त्र पहने और अपनी कमर में चमड़े का कमरबन्द बाँधे रहता था और टिड्डियाँ और वनमधु खाया करता था। (IN)

मरकुस 1:7 और यह प्रचार करता था, “मेरे बाद वह आनेवाला है, जो मुझसे शक्तिशाली है; मैं इस योग्य नहीं कि झुककर उसके जूतों का फीता खोलूँ। (IN)

मरकुस 1:8 मैंने तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा दिया है पर वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा।” (IN)

मरकुस 1:9 ¶ उन दिनों में यीशु ने गलील के नासरत से आकर, यरदन में यूहन्ना से बपतिस्मा लिया। (IN)

मरकुस 1:10 और जब वह पानी से निकलकर ऊपर आया, तो तुरन्त उसने आकाश को खुलते और आत्मा को कबूतर के रूप में अपने ऊपर उतरते देखा। (IN)

मरकुस 1:11 और यह आकाशवाणी हुई, “तू मेरा प्रिय पुत्र है, तुझ से मैं प्रसन्‍न हूँ।” (IN)

मरकुस 1:12 ¶ तब आत्मा ने तुरन्त उसको जंगल की ओर भेजा। (IN)

मरकुस 1:13 और जंगल में चालीस दिन तक शैतान ने उसकी परीक्षा की; और वह वन-पशुओं के साथ रहा; और स्वर्गदूत उसकी सेवा करते रहे। (IN)

मरकुस 1:14 ¶ यूहन्ना के पकड़वाए जाने के बाद यीशु ने गलील में आकर परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। (IN)

मरकुस 1:15 और कहा, “समय पूरा हुआ है, और परमेश्‍वर का राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।” (IN)

मरकुस 1:16 ¶ गलील की झील के किनारे-किनारे जाते हुए, उसने शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछुए थे। (IN)

मरकुस 1:17 और यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ; मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।” (IN)

मरकुस 1:18 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। (IN)

मरकुस 1:19 और कुछ आगे बढ़कर, उसने जब्दी के पुत्र याकूब, और उसके भाई यूहन्ना को, नाव पर जालों को सुधारते देखा। (IN)

मरकुस 1:20 उसने तुरन्त उन्हें बुलाया; और वे अपने पिता जब्दी को मजदूरों के साथ नाव पर छोड़कर, उसके पीछे हो लिए। (IN)

मरकुस 1:21 ¶ और वे कफरनहूम में आए, और वह तुरन्त सब्त के दिन आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा। (IN)

मरकुस 1:22 और लोग उसके उपदेश से चकित हुए; क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों की तरह नहीं, परन्तु अधिकार के साथ उपदेश देता था। (IN)

मरकुस 1:23 और उसी समय, उनके आराधनालय में एक मनुष्य था, जिसमें एक अशुद्ध आत्मा थी। (IN)

मरकुस 1:24 उसने चिल्लाकर कहा, “हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ, तू कौन है? परमेश्‍वर का पवित्र जन!” (IN)

मरकुस 1:25 यीशु ने उसे डाँटकर कहा, “चुप रह; और उसमें से निकल जा।” (IN)

मरकुस 1:26 तब अशुद्ध आत्मा उसको मरोड़कर, और बड़े शब्द से चिल्लाकर उसमें से निकल गई। (IN)

मरकुस 1:27 इस पर सब लोग आश्चर्य करते हुए आपस में वाद-विवाद करने लगे “यह क्या बात है? यह तो कोई नया उपदेश है! वह अधिकार के साथ अशुद्ध आत्माओं को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी आज्ञा मानती हैं।” (IN)

मरकुस 1:28 और उसका नाम तुरन्त गलील के आस-पास के सारे प्रदेश में फैल गया। (IN)

मरकुस 1:29 ¶ और वह तुरन्त आराधनालय में से निकलकर, याकूब और यूहन्ना के साथ शमौन और अन्द्रियास के घर आया। (IN)

मरकुस 1:30 और शमौन की सास तेज बुखार से पीड़ित थी, और उन्होंने तुरन्त उसके विषय में उससे कहा। (IN)

मरकुस 1:31 तब उसने पास जाकर उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया; और उसका बुखार उस पर से उतर गया, और वह उनकी सेवा-टहल करने लगी। (IN)

मरकुस 1:32 संध्या के समय जब सूर्य डूब गया तो लोग सब बीमारों को और उन्हें, जिनमें दुष्टात्माएँ थीं, उसके पास लाए। (IN)

मरकुस 1:33 और सारा नगर द्वार पर इकट्ठा हुआ। (IN)

मरकुस 1:34 और उसने बहुतों को जो नाना प्रकार की बीमारियों से दुःखी थे, चंगा किया; और बहुत से दुष्टात्माओं को निकाला; और दुष्टात्माओं को बोलने न दिया, क्योंकि वे उसे पहचानती थीं। (IN)

मरकुस 1:35 ¶ और भोर को दिन निकलने से बहुत पहले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहाँ प्रार्थना करने लगा। (IN)

मरकुस 1:36 तब शमौन और उसके साथी उसकी खोज में गए। (IN)

मरकुस 1:37 जब वह मिला, तो उससे कहा; “सब लोग तुझे ढूँढ़ रहे हैं।” (IN)

मरकुस 1:38 यीशु ने उनसे कहा, “आओ; हम और कहीं आस-पास की बस्तियों में जाएँ, कि मैं वहाँ भी प्रचार करूँ, क्योंकि मैं इसलिए निकला हूँ।” (IN)

मरकुस 1:39 और वह सारे गलील में उनके आराधनालयों में जा जाकर प्रचार करता और दुष्टात्माओं को निकालता रहा। (IN)

मरकुस 1:40 ¶ एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उससे विनती की, और उसके सामने घुटने टेककर, उससे कहा, “यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” (IN)

मरकुस 1:41 उसने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” (IN)

मरकुस 1:42 और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया। (IN)

मरकुस 1:43 तब उसने उसे कड़ी चेतावनी देकर तुरन्त विदा किया, (IN)

मरकुस 1:44 और उससे कहा, “देख, किसी से कुछ मत कहना, परन्तु जाकर अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने ठहराया है उसे भेंट चढ़ा, कि उन पर गवाही हो।” (IN)

मरकुस 1:45 परन्तु वह बाहर जाकर इस बात को बहुत प्रचार करने और यहाँ तक फैलाने लगा, कि यीशु फिर खुल्लमखुल्ला नगर में न जा सका, परन्तु बाहर जंगली स्थानों में रहा; और चारों ओर से लोग उसके पास आते रहे। (IN)

मरकुस 2:1 ¶ कई दिन के बाद यीशु फिर कफरनहूम में आया और सुना गया, कि वह घर में है। (IN)

मरकुस 2:2 फिर इतने लोग इकट्ठे हुए, कि द्वार के पास भी जगह नहीं मिली; और वह उन्हें वचन सुना रहा था। (IN)

मरकुस 2:3 और लोग एक लकवे के मारे हुए को चार मनुष्यों से उठवाकर उसके पास ले आए। (IN)

मरकुस 2:4 परन्तु जब वे भीड़ के कारण उसके निकट न पहुँच सके, तो उन्होंने उस छत को जिसके नीचे वह था, खोल दिया और जब उसे उधेड़ चुके, तो उस खाट को जिस पर लकवे का मारा हुआ पड़ा था, लटका दिया। (IN)

मरकुस 2:5 यीशु ने, उनका विश्वास देखकर, उस लकवे के मारे हुए से कहा, “हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।” (IN)

मरकुस 2:6 तब कई एक शास्त्री जो वहाँ बैठे थे, अपने-अपने मन में विचार करने लगे, (IN)

मरकुस 2:7 “यह मनुष्य क्यों ऐसा कहता है? यह तो परमेश्‍वर की निन्दा करता है! परमेश्‍वर को छोड़ और कौन पाप क्षमा कर सकता है?” (IN)

मरकुस 2:8 यीशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जान लिया, कि वे अपने-अपने मन में ऐसा विचार कर रहे हैं, और उनसे कहा, “तुम अपने-अपने मन में यह विचार क्यों कर रहे हो? (IN)

मरकुस 2:9 सहज क्या है? क्या लकवे के मारे से यह कहना कि तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना, कि उठ अपनी खाट उठाकर चल फिर? (IN)

मरकुस 2:10 परन्तु जिससे तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के मारे हुए से कहा, (IN)

मरकुस 2:11 “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” (IN)

मरकुस 2:12 वह उठा, और तुरन्त खाट उठाकर सब के सामने से निकलकर चला गया; इस पर सब चकित हुए, और परमेश्‍वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमने ऐसा कभी नहीं देखा।” (IN)

मरकुस 2:13 ¶ वह फिर निकलकर झील के किनारे गया, और सारी भीड़ उसके पास आई, और वह उन्हें उपदेश देने लगा। (IN)

मरकुस 2:14 जाते हुए यीशु ने हलफईस के पुत्र लेवी को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” और वह उठकर, उसके पीछे हो लिया। (IN)

मरकुस 2:15 ¶ और वह उसके घर में भोजन करने बैठा; और बहुत से चुंगी लेनेवाले और पापी भी उसके और चेलों के साथ भोजन करने बैठे, क्योंकि वे बहुत से थे, और उसके पीछे हो लिये थे। (IN)

मरकुस 2:16 और शास्त्रियों और फरीसियों ने यह देखकर, कि वह तो पापियों और चुंगी लेनेवालों के साथ भोजन कर रहा है, उसके चेलों से कहा, “वह तो चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ खाता पीता है!” (IN)

मरकुस 2:17 यीशु ने यह सुनकर, उनसे कहा, “भले चंगों को वैद्य की आवश्यकता नहीं, परन्तु बीमारों को है: मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ।” (IN)

मरकुस 2:18 ¶ यूहन्ना के चेले, और फरीसी उपवास करते थे; अतः उन्होंने आकर उससे यह कहा; “यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले क्यों उपवास रखते हैं, परन्तु तेरे चेले उपवास नहीं रखते?” (IN)

मरकुस 2:19 यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दुल्हा बारातियों के साथ रहता है क्या वे उपवास कर सकते हैं? अतः जब तक दूल्हा उनके साथ है, तब तक वे उपवास नहीं कर सकते। (IN)

मरकुस 2:20 परन्तु वे दिन आएँगे, कि दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा; उस समय वे उपवास करेंगे। (IN)

मरकुस 2:21 नये कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नहीं लगाता; नहीं तो वह पैबन्द उसमें से कुछ खींच लेगा, अर्थात् नया, पुराने से, और अधिक फट जाएगा। (IN)

मरकुस 2:22 नये दाखरस को पुरानी मशकों में कोई नहीं रखता, नहीं तो दाखरस मशकों को फाड़ देगा, और दाखरस और मशकें दोनों नष्ट हो जाएँगी; परन्तु दाख का नया रस नई मशकों में भरा जाता है।” (IN)

मरकुस 2:23 ¶ और ऐसा हुआ कि वह सब्त के दिन खेतों में से होकर जा रहा था; और उसके चेले चलते हुए बालें तोड़ने लगे। (IN)

मरकुस 2:24 तब फरीसियों ने उससे कहा, “देख, ये सब्त के दिन वह काम क्यों करते हैं जो उचित नहीं?” (IN)

मरकुस 2:25 उसने उनसे कहा, “क्या तुम ने कभी नहीं पढ़ा, कि जब दाऊद को आवश्यकता हुई और जब वह और उसके साथी भूखे हुए, तब उसने क्या किया था? (IN)

मरकुस 2:26 उसने क्यों अबियातार महायाजक के समय, परमेश्‍वर के भवन में जाकर, भेंट की रोटियाँ खाई, जिसका खाना याजकों को छोड़ और किसी को भी उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दीं?” (IN)

मरकुस 2:27 और उसने उनसे कहा, “सब्त का दिन मनुष्य के लिये बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के दिन के लिये। (IN)

मरकुस 2:28 इसलिए मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी स्वामी है।” (IN)

मरकुस 3:1 ¶ और वह फिर आराधनालय में गया; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूख गया था। (IN)

मरकुस 3:2 और वे उस पर दोष लगाने के लिये उसकी घात में लगे हुए थे, कि देखें, वह सब्त के दिन में उसे चंगा करता है कि नहीं। (IN)

मरकुस 3:3 उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “बीच में खड़ा हो।” (IN)

मरकुस 3:4 और उनसे कहा, “क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करना, प्राण को बचाना या मारना?” पर वे चुप रहे। (IN)

मरकुस 3:5 और उसने उनके मन की कठोरता से उदास होकर, उनको क्रोध से चारों ओर देखा, और उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने बढ़ाया, और उसका हाथ अच्छा हो गया। (IN)

मरकुस 3:6 तब फरीसी बाहर जाकर तुरन्त हेरोदियों के साथ उसके विरोध में सम्मति करने लगे, कि उसे किस प्रकार नाश करें। (IN)

मरकुस 3:7 ¶ और यीशु अपने चेलों के साथ झील की ओर चला गया: और गलील से एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। (IN)

मरकुस 3:8 और यहूदिया, और यरूशलेम और इदूमिया से, और यरदन के पार, और सोर और सीदोन के आस-पास से एक बड़ी भीड़ यह सुनकर, कि वह कैसे अचम्भे के काम करता है, उसके पास आई। (IN)

मरकुस 3:9 और उसने अपने चेलों से कहा, “भीड़ के कारण एक छोटी नाव मेरे लिये तैयार रहे ताकि वे मुझे दबा न सकें।” (IN)

मरकुस 3:10 क्योंकि उसने बहुतों को चंगा किया था; इसलिए जितने लोग रोग से ग्रसित थे, उसे छूने के लिये उस पर गिरे पड़ते थे। (IN)

मरकुस 3:11 और अशुद्ध आत्माएँ भी, जब उसे देखती थीं, तो उसके आगे गिर पड़ती थीं, और चिल्लाकर कहती थीं कि तू परमेश्‍वर का पुत्र है। (IN)

मरकुस 3:12 और उसने उन्हें कड़ी चेतावनी दी कि, मुझे प्रगट न करना। (IN)

मरकुस 3:13 ¶ फिर वह पहाड़ पर चढ़ गया, और जिन्हें वह चाहता था उन्हें अपने पास बुलाया; और वे उसके पास चले आए। (IN)

मरकुस 3:14 तब उसने बारह को नियुक्त किया, कि वे उसके साथ-साथ रहें, और वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें। (IN)

मरकुस 3:15 और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार रखें। (IN)

मरकुस 3:16 और वे ये हैं शमौन जिसका नाम उसने पतरस रखा। (IN)

मरकुस 3:17 और जब्दी का पुत्र याकूब, और याकूब का भाई यूहन्ना, जिनका नाम उसने बुअनरगिस, अर्थात् गर्जन के पुत्र रखा। (IN)

मरकुस 3:18 और अन्द्रियास, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, और मत्ती, और थोमा, और हलफईस का पुत्र याकूब; और तद्दै, और शमौन कनानी। (IN)

मरकुस 3:19 और यहूदा इस्करियोती, जिस ने उसे पकड़वा भी दिया। (IN)

मरकुस 3:20 ¶ और वह घर में आया और ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई, कि वे रोटी भी न खा सके। (IN)

मरकुस 3:21 जब उसके कुटुम्बियों ने यह सुना, तो उसे पकड़ने के लिये निकले; क्योंकि कहते थे, कि उसका सुध-बुध ठिकाने पर नहीं है। (IN)

मरकुस 3:22 और शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, यह कहते थे, “उसमें शैतान है,” और यह भी, “वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” (IN)

मरकुस 3:23 और वह उन्हें पास बुलाकर, उनसे दृष्टान्तों में कहने लगा, “शैतान कैसे शैतान को निकाल सकता है? (IN)

मरकुस 3:24 और यदि किसी राज्य में फूट पड़े, तो वह राज्य कैसे स्थिर रह सकता है? (IN)

मरकुस 3:25 और यदि किसी घर में फूट पड़े, तो वह घर क्या स्थिर रह सकेगा? (IN)

मरकुस 3:26 और यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपने में फूट डाले, तो वह क्या बना रह सकता है? उसका तो अन्त ही हो जाता है। (IN)

मरकुस 3:27 ¶ “किन्तु कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट नहीं सकता, जब तक कि वह पहले उस बलवन्त को न बाँध ले; और तब उसके घर को लूट लेगा। (IN)

मरकुस 3:28 ¶ “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मनुष्यों के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, क्षमा की जाएगी। (IN)

मरकुस 3:29 परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरुद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा: वरन् वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है।” (IN)

मरकुस 3:30 क्योंकि वे यह कहते थे, कि उसमें अशुद्ध आत्मा है। (IN)

मरकुस 3:31 ¶ और उसकी माता और उसके भाई आए, और बाहर खड़े होकर उसे बुलवा भेजा। (IN)

मरकुस 3:32 और भीड़ उसके आस-पास बैठी थी, और उन्होंने उससे कहा, “देख, तेरी माता और तेरे भाई बाहर तुझे ढूँढ़ते हैं।” (IN)

मरकुस 3:33 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माता और मेरे भाई कौन हैं?” (IN)

मरकुस 3:34 और उन पर जो उसके आस-पास बैठे थे, दृष्टि करके कहा, “देखो, मेरी माता और मेरे भाई यह हैं। (IN)

मरकुस 3:35 क्योंकि जो कोई परमेश्‍वर की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहन और माता है।” (IN)

मरकुस 4:1 ¶ यीशु फिर झील के किनारे उपदेश देने लगा: और ऐसी बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई, कि वह झील में एक नाव पर चढ़कर बैठ गया, और सारी भीड़ भूमि पर झील के किनारे खड़ी रही। (IN)

मरकुस 4:2 और वह उन्हें दृष्टान्तों में बहुत सारी बातें सिखाने लगा, और अपने उपदेश में उनसे कहा, (IN)

मरकुस 4:3 “सुनो! देखो, एक बोनेवाला, बीज बोने के लिये निकला। (IN)

मरकुस 4:4 और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पक्षियों ने आकर उसे चुग लिया। (IN)

मरकुस 4:5 और कुछ पत्थरीली भूमि पर गिरा जहाँ उसको बहुत मिट्टी न मिली, और नरम मिट्टी मिलने के कारण जल्द उग आया। (IN)

मरकुस 4:6 और जब सूर्य निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया। (IN)

मरकुस 4:7 और कुछ तो झाड़ियों में गिरा, और झाड़ियों ने बढ़कर उसे दबा दिया, और वह फल न लाया। (IN)

मरकुस 4:8 परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा; और वह उगा, और बढ़कर फलवन्त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया।” (IN)

मरकुस 4:9 और उसने कहा, “जिसके पास सुनने के लिये कान हों वह सुन ले।” (IN)

मरकुस 4:10 ¶ जब वह अकेला रह गया, तो उसके साथियों ने उन बारह समेत उससे इन दृष्टान्तों के विषय में पूछा। (IN)

मरकुस 4:11 उसने उनसे कहा, “तुम को तो परमेश्‍वर के राज्य के भेद की समझ दी गई है, परन्तु बाहरवालों के लिये सब बातें दृष्टान्तों में होती हैं। (IN)

मरकुस 4:12 इसलिए कि (IN)

मरकुस 4:13 ¶ फिर उसने उनसे कहा, “क्या तुम यह दृष्टान्त नहीं समझते? तो फिर और सब दृष्टान्तों को कैसे समझोगे? (IN)

मरकुस 4:14 बोनेवाला वचन बोता है। (IN)

मरकुस 4:15 जो मार्ग के किनारे के हैं जहाँ वचन बोया जाता है, ये वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उनमें बोया गया था, उठा ले जाता है। (IN)

मरकुस 4:16 और वैसे ही जो पत्थरीली भूमि पर बोए जाते हैं, ये वे हैं, कि जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं। (IN)

मरकुस 4:17 परन्तु अपने भीतर जड़ न रखने के कारण वे थोड़े ही दिनों के लिये रहते हैं; इसके बाद जब वचन के कारण उन पर क्लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं। (IN)

मरकुस 4:18 और जो झाड़ियों में बोए गए ये वे हैं जिन्होंने वचन सुना, (IN)

मरकुस 4:19 और संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और वस्तुओं का लोभ उनमें समाकर वचन को दबा देता है और वह निष्फल रह जाता है। (IN)

मरकुस 4:20 और जो अच्छी भूमि में बोए गए, ये वे हैं, जो वचन सुनकर ग्रहण करते और फल लाते हैं, कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा, और कोई सौ गुणा।” (IN)

मरकुस 4:21 ¶ और उसने उनसे कहा, “क्या दीये को इसलिए लाते हैं कि पैमाने या खाट के नीचे रखा जाए? क्या इसलिए नहीं, कि दीवट पर रखा जाए? (IN)

मरकुस 4:22 क्योंकि कोई वस्तु छिपी नहीं, परन्तु इसलिए कि प्रगट हो जाए; और न कुछ गुप्त है, पर इसलिए कि प्रगट हो जाए। (IN)

मरकुस 4:23 यदि किसी के सुनने के कान हों, तो सुन ले।” (IN)

मरकुस 4:24 ¶ फिर उसने उनसे कहा, “चौकस रहो, कि क्या सुनते हो? जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिया जाएगा। (IN)

मरकुस 4:25 क्योंकि जिसके पास है, उसको दिया जाएगा; परन्तु जिसके पास नहीं है उससे वह भी जो उसके पास है; ले लिया जाएगा।” (IN)

मरकुस 4:26 ¶ फिर उसने कहा, “परमेश्‍वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे, (IN)

मरकुस 4:27 और रात को सोए, और दिन को जागे और वह बीज ऐसे उगें और बढ़े कि वह न जाने। (IN)

मरकुस 4:28 पृथ्वी आप से आप फल लाती है पहले अंकुर, तब बालें, और तब बालों में तैयार दाना। (IN)

मरकुस 4:29 परन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हँसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुँची है।” (IN)

मरकुस 4:30 ¶ फिर उसने कहा, “हम परमेश्‍वर के राज्य की उपमा किससे दें, और किस दृष्टान्त से उसका वर्णन करें? (IN)

मरकुस 4:31 वह राई के दाने के समान हैं; कि जब भूमि में बोया जाता है तो भूमि के सब बीजों से छोटा होता है। (IN)

मरकुस 4:32 परन्तु जब बोया गया, तो उगकर सब साग-पात से बड़ा हो जाता है, और उसकी ऐसी बड़ी डालियाँ निकलती हैं, कि आकाश के पक्षी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।” (IN)

मरकुस 4:33 और वह उन्हें इस प्रकार के बहुत से दृष्टान्त दे देकर उनकी समझ के अनुसार वचन सुनाता था। (IN)

मरकुस 4:34 और बिना दृष्टान्त कहे उनसे कुछ भी नहीं कहता था; परन्तु एकान्त में वह अपने निज चेलों को सब बातों का अर्थ बताता था। (IN)

मरकुस 4:35 ¶ उसी दिन जब सांझ हुई, तो उसने चेलों से कहा, “आओ, हम पार चलें।” (IN)

मरकुस 4:36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ, और भी नावें थीं। (IN)

मरकुस 4:37 तब बड़ी आँधी आई, और लहरें नाव पर यहाँ तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती थी। (IN)

मरकुस 4:38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था; तब उन्होंने उसे जगाकर उससे कहा, “हे गुरु, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं?” (IN)

मरकुस 4:39 तब उसने उठकर आँधी को डाँटा, और पानी से कहा, “शान्त रह, थम जा!” और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया। (IN)

मरकुस 4:40 और उनसे कहा, “तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?” (IN)

मरकुस 4:41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले, “यह कौन है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं?” (IN)

मरकुस 5:1 ¶ वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुँचे, (IN)

मरकुस 5:2 और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी, कब्रों से निकलकर उसे मिला। (IN)

मरकुस 5:3 वह कब्रों में रहा करता था और कोई उसे जंजीरों से भी न बाँध सकता था, (IN)

मरकुस 5:4 क्योंकि वह बार-बार बेड़ियों और जंजीरों से बाँधा गया था, पर उसने जंजीरों को तोड़ दिया, और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था। (IN)

मरकुस 5:5 वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था। (IN)

मरकुस 5:6 वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया। (IN)

मरकुस 5:7 और ऊँचे शब्द से चिल्लाकर कहा, “हे यीशु, परमप्रधान परमेश्‍वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्‍वर की शपथ देता हूँ, कि मुझे पीड़ा न दे।” (IN)

मरकुस 5:8 क्योंकि उसने उससे कहा था, “हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।” (IN)

मरकुस 5:9 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने उससे कहा, “मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत हैं।” (IN)

मरकुस 5:10 और उसने उससे बहुत विनती की, “हमें इस देश से बाहर न भेज।” (IN)

मरकुस 5:11 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। (IN)

मरकुस 5:12 और उन्होंने उससे विनती करके कहा, “हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उनके भीतर जाएँ।” (IN)

मरकुस 5:13 अतः उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर घुस गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा। (IN)

मरकुस 5:14 और उनके चरवाहों ने भागकर नगर और गाँवों में समाचार सुनाया, और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। (IN)

मरकुस 5:15 यीशु के पास आकर, वे उसको जिसमें दुष्टात्माएँ समाई थी, कपड़े पहने और सचेत बैठे देखकर, डर गए। (IN)

मरकुस 5:16 और देखनेवालों ने उसका जिसमें दुष्टात्माएँ थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उनको कह सुनाया। (IN)

मरकुस 5:17 और वे उससे विनती कर के कहने लगे, कि हमारी सीमा से चला जा। (IN)

मरकुस 5:18 और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिसमें पहले दुष्टात्माएँ थीं, उससे विनती करने लगा, “मुझे अपने साथ रहने दे।” (IN)

मरकुस 5:19 परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उससे कहा, “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।” (IN)

मरकुस 5:20 वह जाकर दिकापुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे। (IN)

मरकुस 5:21 ¶ जब यीशु फिर नाव से पार गया, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई; और वह झील के किनारे था। (IN)

मरकुस 5:22 और याईर नामक आराधनालय के सरदारों में से एक आया, और उसे देखकर, उसके पाँवों पर गिरा। (IN)

मरकुस 5:23 और उसने यह कहकर बहुत विनती की, “मेरी छोटी बेटी मरने पर है: तू आकर उस पर हाथ रख, कि वह चंगी होकर जीवित रहे।” (IN)

मरकुस 5:24 तब वह उसके साथ चला; और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, यहाँ तक कि लोग उस पर गिरे पड़ते थे। (IN)

मरकुस 5:25 और एक स्त्री, जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था। (IN)

मरकुस 5:26 और जिस ने बहुत वैद्यों से बड़ा दुःख उठाया और अपना सब माल व्यय करने पर भी कुछ लाभ न उठाया था, परन्तु और भी रोगी हो गई थी। (IN)

मरकुस 5:27 यीशु की चर्चा सुनकर, भीड़ में उसके पीछे से आई, और उसके वस्त्र को छू लिया, (IN)

मरकुस 5:28 क्योंकि वह कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी, तो चंगी हो जाऊँगी।” (IN)

मरकुस 5:29 और तुरन्त उसका लहू बहना बन्द हो गया; और उसने अपनी देह में जान लिया, कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई हूँ। (IN)

मरकुस 5:30 यीशु ने तुरन्त अपने में जान लिया, कि मुझसे सामर्थ्य निकली है, और भीड़ में पीछे फिरकर पूछा, “मेरा वस्त्र किसने छुआ?” (IN)

मरकुस 5:31 उसके चेलों ने उससे कहा, “तू देखता है, कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है, और तू कहता है; कि किसने मुझे छुआ?” (IN)

मरकुस 5:32 तब उसने उसे देखने के लिये जिस ने यह काम किया था, चारों ओर दृष्टि की। (IN)

मरकुस 5:33 तब वह स्त्री यह जानकर, कि उसके साथ क्‍या हुआ है, डरती और काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर, उससे सब हाल सच-सच कह दिया। (IN)

मरकुस 5:34 उसने उससे कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह।” (IN)

मरकुस 5:35 वह यह कह ही रहा था, कि आराधनालय के सरदार के घर से लोगों ने आकर कहा, “तेरी बेटी तो मर गई; अब गुरु को क्यों दुःख देता है?” (IN)

मरकुस 5:36 जो बात वे कह रहे थे, उसको यीशु ने अनसुनी करके, आराधनालय के सरदार से कहा, “मत डर; केवल विश्वास रख।” (IN)

मरकुस 5:37 और उसने पतरस और याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को छोड़, और किसी को अपने साथ आने न दिया। (IN)

मरकुस 5:38 और आराधनालय के सरदार के घर में पहुँचकर, उसने लोगों को बहुत रोते और चिल्लाते देखा। (IN)

मरकुस 5:39 तब उसने भीतर जाकर उनसे कहा, “तुम क्यों हल्ला मचाते और रोते हो? लड़की मरी नहीं, परन्तु सो रही है।” (IN)

मरकुस 5:40 वे उसकी हँसी करने लगे, परन्तु उसने सब को निकालकर लड़की के माता-पिता और अपने साथियों को लेकर, भीतर जहाँ लड़की पड़ी थी, गया। (IN)

मरकुस 5:41 और लड़की का हाथ पकड़कर उससे कहा, “तलीता कूमी”; जिसका अर्थ यह है “हे लड़की, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ।” (IN)

मरकुस 5:42 और लड़की तुरन्त उठकर चलने फिरने लगी; क्योंकि वह बारह वर्ष की थी। और इस पर लोग बहुत चकित हो गए। (IN)

मरकुस 5:43 फिर उसने उन्हें चेतावनी के साथ आज्ञा दी कि यह बात कोई जानने न पाए और कहा; “इसे कुछ खाने को दो।” (IN)

मरकुस 6:1 ¶ वहाँ से निकलकर वह अपने देश में आया, और उसके चेले उसके पीछे हो लिए। (IN)

मरकुस 6:2 सब्त के दिन वह आराधनालय में उपदेश करने लगा; और बहुत लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, “इसको ये बातें कहाँ से आ गई? और यह कौन सा ज्ञान है जो उसको दिया गया है? और कैसे सामर्थ्य के काम इसके हाथों से प्रगट होते हैं? (IN)

मरकुस 6:3 क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब और योसेस और यहूदा और शमौन का भाई है? और क्या उसकी बहनें यहाँ हमारे बीच में नहीं रहतीं?” इसलिए उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। (IN)

मरकुस 6:4 यीशु ने उनसे कहा, “भविष्यद्वक्ता का अपने देश और अपने कुटुम्ब और अपने घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता।” (IN)

मरकुस 6:5 और वह वहाँ कोई सामर्थ्य का काम न कर सका, केवल थोड़े बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। (IN)

मरकुस 6:6 और उसने उनके अविश्वास पर आश्चर्य किया और चारों ओर से गाँवों में उपदेश करता फिरा। (IN)

मरकुस 6:7 ¶ और वह बारहों को अपने पास बुलाकर उन्हें दो-दो करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। (IN)

मरकुस 6:8 और उसने उन्हें आज्ञा दी, कि “मार्ग के लिये लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न झोली, न पटुके में पैसे। (IN)

मरकुस 6:9 परन्तु जूतियाँ पहनो और दो-दो कुर्ते न पहनो।” (IN)

मरकुस 6:10 और उसने उनसे कहा, “जहाँ कहीं तुम किसी घर में उतरो, तो जब तक वहाँ से विदा न हो, तब तक उसी घर में ठहरे रहो। (IN)

मरकुस 6:11 जिस स्थान के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, और तुम्हारी न सुनें, वहाँ से चलते ही अपने तलवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।” (IN)

मरकुस 6:12 और उन्होंने जाकर प्रचार किया, कि मन फिराओ, (IN)

मरकुस 6:13 और बहुत सी दुष्टात्माओं को निकाला, और बहुत बीमारों पर तेल मलकर उन्हें चंगा किया। (IN)

मरकुस 6:14 ¶ और हेरोदेस राजा ने उसकी चर्चा सुनी, क्योंकि उसका नाम फैल गया था, और उसने कहा, कि “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मरे हुओं में से जी उठा है, इसलिए उससे ये सामर्थ्य के काम प्रगट होते हैं।” (IN)

मरकुस 6:15 और औरों ने कहा, “यह एलिय्याह है”, परन्तु औरों ने कहा, “भविष्यद्वक्ता या भविष्यद्वक्ताओं में से किसी एक के समान है।” (IN)

मरकुस 6:16 हेरोदेस ने यह सुन कर कहा, “जिस यूहन्ना का सिर मैंने कटवाया था, वही जी उठा है।” (IN)

मरकुस 6:17 क्योंकि हेरोदेस ने आप अपने भाई फिलिप्पुस की पत्‍नी हेरोदियास के कारण, जिससे उसने विवाह किया था, लोगों को भेजकर यूहन्ना को पकड़वाकर बन्दीगृह में डाल दिया था। (IN)

मरकुस 6:18 क्योंकि यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा था, “अपने भाई की पत्‍नी को रखना तुझे उचित नहीं।” (IN)

मरकुस 6:19 इसलिए हेरोदियास उससे बैर रखती थी और यह चाहती थी, कि उसे मरवा डाले, परन्तु ऐसा न हो सका, (IN)

मरकुस 6:20 क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरुष जानकर उससे डरता था, और उसे बचाए रखता था, और उसकी सुनकर बहुत घबराता था, पर आनन्द से सुनता था। (IN)

मरकुस 6:21 और ठीक अवसर पर जब हेरोदेस ने अपने जन्मदिन में अपने प्रधानों और सेनापतियों, और गलील के बड़े लोगों के लिये भोज किया। (IN)

मरकुस 6:22 और उसी हेरोदियास की बेटी भीतर आई, और नाचकर हेरोदेस को और उसके साथ बैठनेवालों को प्रसन्‍न किया; तब राजा ने लड़की से कहा, “तू जो चाहे मुझसे माँग मैं तुझे दूँगा।” (IN)

मरकुस 6:23 और उसने शपथ खाई, “मैं अपने आधे राज्य तक जो कुछ तू मुझसे माँगेगी मैं तुझे दूँगा।” (IN)

मरकुस 6:24 उसने बाहर जाकर अपनी माता से पूछा, “मैं क्या माँगूँ?” वह बोली, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” (IN)

मरकुस 6:25 वह तुरन्त राजा के पास भीतर आई, और उससे विनती की, “मैं चाहती हूँ, कि तू अभी यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर एक थाल में मुझे मँगवा दे।” (IN)

मरकुस 6:26 तब राजा बहुत उदास हुआ, परन्तु अपनी शपथ के कारण और साथ बैठनेवालों के कारण उसे टालना न चाहा। (IN)

मरकुस 6:27 और राजा ने तुरन्त एक सिपाही को आज्ञा देकर भेजा, कि उसका सिर काट लाए। (IN)

मरकुस 6:28 उसने जेलखाने में जाकर उसका सिर काटा, और एक थाल में रखकर लाया और लड़की को दिया, और लड़की ने अपनी माँ को दिया। (IN)

मरकुस 6:29 यह सुनकर उसके चेले आए, और उसके शव को उठाकर कब्र में रखा। (IN)

मरकुस 6:30 ¶ प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उसको बता दिया। (IN)

मरकुस 6:31 उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। (IN)

मरकुस 6:32 इसलिए वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। (IN)

मरकुस 6:33 और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे। (IN)

मरकुस 6:34 उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। (IN)

मरकुस 6:35 जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। (IN)

मरकुस 6:36 उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।” (IN)

मरकुस 6:37 उसने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम दो सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?” (IN)

मरकुस 6:38 उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच रोटी और दो मछली भी।” (IN)

मरकुस 6:39 तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर समूह में बैठा दो। (IN)

मरकुस 6:40 वे सौ-सौ और पचास-पचास करके समूह में बैठ गए। (IN)

मरकुस 6:41 और उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। (IN)

मरकुस 6:42 और सब खाकर तृप्त हो गए, (IN)

मरकुस 6:43 और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर कर उठाई, और कुछ मछलियों से भी। (IN)

मरकुस 6:44 जिन्होंने रोटियाँ खाई, वे पाँच हजार पुरुष थे। (IN)

मरकुस 6:45 ¶ तब उसने तुरन्त अपने चेलों को विवश किया कि वे नाव पर चढ़कर उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। (IN)

मरकुस 6:46 और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। (IN)

मरकुस 6:47 और जब सांझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। (IN)

मरकुस 6:48 और जब उसने देखा, कि वे खेते-खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था। (IN)

मरकुस 6:49 परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, (IN)

मरकुस 6:50 क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें की और कहा, “धैर्य रखो : मैं हूँ; डरो मत।” (IN)

मरकुस 6:51 तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई: वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। (IN)

मरकुस 6:52 क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे परन्तु उनके मन कठोर हो गए थे। (IN)

मरकुस 6:53 ¶ और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई। (IN)

मरकुस 6:54 और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचान कर, (IN)

मरकुस 6:55 आस-पास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ-जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ-वहाँ लिए फिरे। (IN)

मरकुस 6:56 और जहाँ कहीं वह गाँवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उससे विनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आँचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे। (IN)

मरकुस 7:1 ¶ तब फरीसी और कुछ शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, उसके पास इकट्ठे हुए, (IN)

मरकुस 7:2 और उन्होंने उसके कई चेलों को अशुद्ध अर्थात् बिना हाथ धोए रोटी खाते देखा। (IN)

मरकुस 7:3 (क्योंकि फरीसी और सब यहूदी, प्राचीन परम्परा का पालन करते है और जब तक भली भाँति हाथ नहीं धो लेते तब तक नहीं खाते; (IN)

मरकुस 7:4 और बाजार से आकर, जब तक स्नान नहीं कर लेते, तब तक नहीं खाते; और बहुत सी अन्य बातें हैं, जो उनके पास मानने के लिये पहुँचाई गई हैं, जैसे कटोरों, और लोटों, और तांबे के बरतनों को धोना-माँजना।) (IN)

मरकुस 7:5 इसलिए उन फरीसियों और शास्त्रियों ने उससे पूछा, “तेरे चेले क्यों पूर्वजों की परम्पराओं पर नहीं चलते, और बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं?” (IN)

मरकुस 7:6 उसने उनसे कहा, “यशायाह ने तुम कपटियों के विषय में बहुत ठीक भविष्यद्वाणी की; जैसा लिखा है: (IN)

मरकुस 7:7 और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, (IN)

मरकुस 7:8 क्योंकि तुम परमेश्‍वर की आज्ञा को टालकर मनुष्यों की रीतियों को मानते हो।” (IN)

मरकुस 7:9 और उसने उनसे कहा, “तुम अपनी रीतियों को मानने के लिये परमेश्‍वर आज्ञा कैसी अच्छी तरह टाल देते हो! (IN)

मरकुस 7:10 क्योंकि मूसा ने कहा है, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर कर;’ और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह अवश्य मार डाला जाए।’ (IN)

मरकुस 7:11 परन्तु तुम कहते हो कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, ‘जो कुछ तुझे मुझसे लाभ पहुँच सकता था, वह कुरबान अर्थात् संकल्प हो चुका।’ (IN)

मरकुस 7:12 तो तुम उसको उसके पिता या उसकी माता की कुछ सेवा करने नहीं देते। (IN)

मरकुस 7:13 इस प्रकार तुम अपनी रीतियों से, जिन्हें तुम ने ठहराया है, परमेश्‍वर का वचन टाल देते हो; और ऐसे-ऐसे बहुत से काम करते हो।” (IN)

मरकुस 7:14 ¶ और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम सब मेरी सुनो, और समझो। (IN)

मरकुस 7:15 ऐसी तो कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर उसे अशुद्ध करे; परन्तु जो वस्तुएँ मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं। (IN)

मरकुस 7:16 यदि किसी के सुनने के कान हों तो सुन ले।” (IN)

मरकुस 7:17 जब वह भीड़ के पास से घर में गया, तो उसके चेलों ने इस दृष्टान्त के विषय में उससे पूछा। (IN)

मरकुस 7:18 उसने उनसे कहा, “क्या तुम भी ऐसे नासमझ हो? क्या तुम नहीं समझते, कि जो वस्तु बाहर से मनुष्य के भीतर जाती है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकती? (IN)

मरकुस 7:19 क्योंकि वह उसके मन में नहीं, परन्तु पेट में जाती है, और शौच में निकल जाती है?” यह कहकर उसने सब भोजन वस्तुओं को शुद्ध ठहराया। (IN)

मरकुस 7:20 फिर उसने कहा, “जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। (IN)

मरकुस 7:21 क्योंकि भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरे-बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, (IN)

मरकुस 7:22 लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। (IN)

मरकुस 7:23 ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।” (IN)

मरकुस 7:24 ¶ फिर वह वहाँ से उठकर सोर और सीदोन के देशों में आया; और एक घर में गया, और चाहता था, कि कोई न जाने; परन्तु वह छिप न सका। (IN)

मरकुस 7:25 और तुरन्त एक स्त्री जिसकी छोटी बेटी में अशुद्ध आत्मा थी, उसकी चर्चा सुन कर आई, और उसके पाँवों पर गिरी। (IN)

मरकुस 7:26 यह यूनानी और सुरूफ‍िनिकी जाति की थी; और उसने उससे विनती की, कि मेरी बेटी में से दुष्टात्मा निकाल दे। (IN)

मरकुस 7:27 उसने उससे कहा, “पहले लड़कों को तृप्त होने दे, क्योंकि लड़को की रोटी लेकर कुत्तों के आगे डालना उचित नहीं है।” (IN)

मरकुस 7:28 उसने उसको उत्तर दिया; “सच है प्रभु; फिर भी कुत्ते भी तो मेज के नीचे बालकों की रोटी के चूर चार खा लेते हैं।” (IN)

मरकुस 7:29 उसने उससे कहा, “इस बात के कारण चली जा; दुष्टात्मा तेरी बेटी में से निकल गई है।” (IN)

मरकुस 7:30 और उसने अपने घर आकर देखा कि लड़की खाट पर पड़ी है, और दुष्टात्मा निकल गई है। (IN)

मरकुस 7:31 ¶ फिर वह सोर और सीदोन के देशों से निकलकर दिकापुलिस देश से होता हुआ गलील की झील पर पहुँचा। (IN)

मरकुस 7:32 और लोगों ने एक बहरे को जो हक्ला भी था, उसके पास लाकर उससे विनती की, कि अपना हाथ उस पर रखे। (IN)

मरकुस 7:33 तब वह उसको भीड़ से अलग ले गया, और अपनी उँगलियाँ उसके कानों में डाली, और थूककर उसकी जीभ को छुआ। (IN)

मरकुस 7:34 और स्वर्ग की ओर देखकर आह भरी, और उससे कहा, “इप्फत्तह!” अर्थात् “खुल जा!” (IN)

मरकुस 7:35 और उसके कान खुल गए, और उसकी जीभ की गाँठ भी खुल गई, और वह साफ-साफ बोलने लगा। (IN)

मरकुस 7:36 तब उसने उन्हें चेतावनी दी कि किसी से न कहना; परन्तु जितना उसने उन्हें चिताया उतना ही वे और प्रचार करने लगे। (IN)

मरकुस 7:37 और वे बहुत ही आश्चर्य में होकर कहने लगे, “उसने जो कुछ किया सब अच्छा किया है; वह बहरों को सुनने की, और गूँगों को बोलने की शक्ति देता है।” (IN)

मरकुस 8:1 ¶ उन दिनों में, जब फिर बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और उनके पास कुछ खाने को न था, तो उसने अपने चेलों को पास बुलाकर उनसे कहा, (IN)

मरकुस 8:2 “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है, क्योंकि यह तीन दिन से बराबर मेरे साथ हैं, और उनके पास कुछ भी खाने को नहीं। (IN)

मरकुस 8:3 यदि मैं उन्हें भूखा घर भेज दूँ, तो मार्ग में थककर रह जाएँगे; क्योंकि इनमें से कोई-कोई दूर से आए हैं।” (IN)

मरकुस 8:4 उसके चेलों ने उसको उत्तर दिया, “यहाँ जंगल में इतनी रोटी कोई कहाँ से लाए कि ये तृप्त हों?” (IN)

मरकुस 8:5 उसने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात।” (IN)

मरकुस 8:6 ¶ तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी, और वे सात रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके तोड़ी, और अपने चेलों को देता गया कि उनके आगे रखें, और उन्होंने लोगों के आगे परोस दिया। (IN)

मरकुस 8:7 उनके पास थोड़ी सी छोटी मछलियाँ भी थीं; और उसने धन्यवाद करके उन्हें भी लोगों के आगे रखने की आज्ञा दी। (IN)

मरकुस 8:8 अतः वे खाकर तृप्त हो गए और शेष टुकड़ों के सात टोकरे भरकर उठाए। (IN)

मरकुस 8:9 और लोग चार हजार के लगभग थे, और उसने उनको विदा किया। (IN)

मरकुस 8:10 और वह तुरन्त अपने चेलों के साथ नाव पर चढ़कर दलमनूता देश को चला गया। (IN)

मरकुस 8:11 ¶ फिर फरीसियों ने आकर उससे वाद-विवाद करने लगे, और उसे जाँचने के लिये उससे कोई स्वर्गीय चिन्ह माँगा। (IN)

मरकुस 8:12 उसने अपनी आत्मा में भरकर कहा, “इस समय के लोग क्यों चिन्ह ढूँढ़ते हैं? मैं तुम से सच कहता हूँ, कि इस समय के लोगों को कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा।” (IN)

मरकुस 8:13 और वह उन्हें छोड़कर फिर नाव पर चढ़ गया, और पार चला गया। (IN)

मरकुस 8:14 ¶ और वे रोटी लेना भूल गए थे, और नाव में उनके पास एक ही रोटी थी। (IN)

मरकुस 8:15 और उसने उन्हें चेतावनी दी, “देखो, फरीसियों के ख़मीर और हेरोदेस के ख़मीर से सावधान रहो।” (IN)

मरकुस 8:16 वे आपस में विचार करके कहने लगे, “हमारे पास तो रोटी नहीं है।” (IN)

मरकुस 8:17 यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, “तुम क्यों आपस में विचार कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं? क्या अब तक नहीं जानते और नहीं समझते? क्या तुम्हारा मन कठोर हो गया है? (IN)

मरकुस 8:18 क्या आँखें रखते हुए भी नहीं देखते, और कान रखते हुए भी नहीं सुनते? और तुम्हें स्मरण नहीं? (IN)

मरकुस 8:19 कि जब मैंने पाँच हजार के लिये पाँच रोटी तोड़ी थीं तो तुम ने टुकड़ों की कितनी टोकरियाँ भरकर उठाई?” उन्होंने उससे कहा, “बारह टोकरियाँ।” (IN)

मरकुस 8:20 उसने उनसे कहा, “और जब चार हजार के लिए सात रोटियाँ थी तो तुम ने टुकड़ों के कितने टोकरे भरकर उठाए थे?” उन्होंने उससे कहा, “सात टोकरे।” (IN)

मरकुस 8:21 उसने उनसे कहा, “क्या तुम अब तक नहीं समझते?” (IN)

मरकुस 8:22 ¶ और वे बैतसैदा में आए; और लोग एक अंधे को उसके पास ले आए और उससे विनती की कि उसको छूए। (IN)

मरकुस 8:23 वह उस अंधे का हाथ पकड़कर उसे गाँव के बाहर ले गया। और उसकी आँखों में थूककर उस पर हाथ रखे, और उससे पूछा, “क्या तू कुछ देखता है?” (IN)

मरकुस 8:24 उसने आँख उठाकर कहा, “मैं मनुष्यों को देखता हूँ; क्योंकि वे मुझे चलते हुए दिखाई देते हैं, जैसे पेड़।” (IN)

मरकुस 8:25 तब उसने फिर दोबारा उसकी आँखों पर हाथ रखे, और उसने ध्यान से देखा। और चंगा हो गया, और सब कुछ साफ-साफ देखने लगा। (IN)

मरकुस 8:26 और उसने उससे यह कहकर घर भेजा, “इस गाँव के भीतर पाँव भी न रखना।” (IN)

मरकुस 8:27 ¶ यीशु और उसके चेले कैसरिया फिलिप्पी के गाँवों में चले गए; और मार्ग में उसने अपने चेलों से पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?” (IN)

मरकुस 8:28 उन्होंने उत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला; पर कोई-कोई, एलिय्याह; और कोई-कोई, भविष्यद्वक्ताओं में से एक भी कहते हैं।” (IN)

मरकुस 8:29 उसने उनसे पूछा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने उसको उत्तर दिया, “तू मसीह है।” (IN)

मरकुस 8:30 तब उसने उन्हें चिताकर कहा कि मेरे विषय में यह किसी से न कहना। (IN)

मरकुस 8:31 ¶ और वह उन्हें सिखाने लगा, कि मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें और वह तीन दिन के बाद जी उठे। (IN)

मरकुस 8:32 उसने यह बात उनसे साफ-साफ कह दी। इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर डाँटने लगा। (IN)

मरकुस 8:33 परन्तु उसने फिरकर, और अपने चेलों की ओर देखकर पतरस को डाँटकर कहा, “हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो; क्योंकि तू परमेश्‍वर की बातों पर नहीं, परन्तु मनुष्य की बातों पर मन लगाता है।” (IN)

मरकुस 8:34 ¶ उसने भीड़ को अपने चेलों समेत पास बुलाकर उनसे कहा, “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले। (IN)

मरकुस 8:35 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा। (IN)

मरकुस 8:36 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? (IN)

मरकुस 8:37 और मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा? (IN)

मरकुस 8:38 जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझसे और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उससे भी लजाएगा।” (IN)

मरकुस 9:1 ¶ और उसने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई ऐसे हैं, कि जब तक परमेश्‍वर के राज्य को सामर्थ्य सहित आता हुआ न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद कदापि न चखेंगे।” (IN)

मरकुस 9:2 छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और यूहन्ना को साथ लिया, और एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया; और उनके सामने उसका रूप बदल गया। (IN)

मरकुस 9:3 और उसका वस्त्र ऐसा चमकने लगा और यहाँ तक अति उज्‍ज्वल हुआ, कि पृथ्वी पर कोई धोबी भी वैसा उज्‍ज्वल नहीं कर सकता। (IN)

मरकुस 9:4 और उन्हें मूसा के साथ एलिय्याह दिखाई दिया; और वे यीशु के साथ बातें करते थे। (IN)

मरकुस 9:5 इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे रब्बी, हमारा यहाँ रहना अच्छा है: इसलिए हम तीन मण्डप बनाएँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” (IN)

मरकुस 9:6 क्योंकि वह न जानता था कि क्या उत्तर दे, इसलिए कि वे बहुत डर गए थे। (IN)

मरकुस 9:7 तब एक बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है; इसकी सुनो।” (IN)

मरकुस 9:8 तब उन्होंने एकाएक चारों ओर दृष्टि की, और यीशु को छोड़ अपने साथ और किसी को न देखा। (IN)

मरकुस 9:9 पहाड़ से उतरते हुए, उसने उन्हें आज्ञा दी, कि जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से जी न उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है वह किसी से न कहना। (IN)

मरकुस 9:10 उन्होंने इस बात को स्मरण रखा; और आपस में वाद-विवाद करने लगे, “मरे हुओं में से जी उठने का क्या अर्थ है?” (IN)

मरकुस 9:11 और उन्होंने उससे पूछा, “शास्त्री क्यों कहते हैं, कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” (IN)

मरकुस 9:12 उसने उन्हें उत्तर दिया, “एलिय्याह सचमुच पहले आकर सब कुछ सुधारेगा, परन्तु मनुष्य के पुत्र के विषय में यह क्यों लिखा है, कि वह बहुत दुःख उठाएगा, और तुच्छ गिना जाएगा? (IN)

मरकुस 9:13 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि एलिय्याह तो आ चुका, और जैसा उसके विषय में लिखा है, उन्होंने जो कुछ चाहा उसके साथ किया।” (IN)

मरकुस 9:14 ¶ और जब वह चेलों के पास आया, तो देखा कि उनके चारों ओर बड़ी भीड़ लगी है और शास्त्री उनके साथ विवाद कर रहें हैं। (IN)

मरकुस 9:15 और उसे देखते ही सब बहुत ही आश्चर्य करने लगे, और उसकी ओर दौड़कर उसे नमस्कार किया। (IN)

मरकुस 9:16 उसने उनसे पूछा, “तुम इनसे क्या विवाद कर रहे हो?” (IN)

मरकुस 9:17 भीड़ में से एक ने उसे उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने पुत्र को, जिसमें गूंगी आत्मा समाई है, तेरे पास लाया था। (IN)

मरकुस 9:18 जहाँ कहीं वह उसे पकड़ती है, वहीं पटक देती है; और वह मुँह में फेन भर लाता, और दाँत पीसता, और सूखता जाता है। और मैंने तेरे चेलों से कहा, कि वे उसे निकाल दें, परन्तु वे निकाल न सके।” (IN)

मरकुस 9:19 यह सुनकर उसने उनसे उत्तर देके कहा, “हे अविश्वासी लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे मेरे पास लाओ।” (IN)

मरकुस 9:20 तब वे उसे उसके पास ले आए। और जब उसने उसे देखा, तो उस आत्मा ने तुरन्त उसे मरोड़ा, और वह भूमि पर गिरा, और मुँह से फेन बहाते हुए लोटने लगा। (IN)

मरकुस 9:21 उसने उसके पिता से पूछा, “इसकी यह दशा कब से है?” और उसने कहा, “बचपन से। (IN)

मरकुस 9:22 उसने इसे नाश करने के लिये कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।” (IN)

मरकुस 9:23 यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है! यह क्या बात है? विश्वास करनेवाले के लिये सब कुछ हो सकता है।” (IN)

मरकुस 9:24 बालक के पिता ने तुरन्त पुकारकर कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ; मेरे अविश्वास का उपाय कर।” (IN)

मरकुस 9:25 जब यीशु ने देखा, कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे हैं, तो उसने अशुद्ध आत्मा को यह कहकर डाँटा, कि “हे गूंगी और बहरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, उसमें से निकल आ, और उसमें फिर कभी प्रवेश न करना।” (IN)

मरकुस 9:26 तब वह चिल्लाकर, और उसे बहुत मरोड़ कर, निकल आई; और बालक मरा हुआ सा हो गया, यहाँ तक कि बहुत लोग कहने लगे, कि वह मर गया। (IN)

मरकुस 9:27 परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया, और वह खड़ा हो गया। (IN)

मरकुस 9:28 जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उससे पूछा, “हम उसे क्यों न निकाल सके?” (IN)

मरकुस 9:29 उसने उनसे कहा, “यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।” (IN)

मरकुस 9:30 ¶ फिर वे वहाँ से चले, और गलील में होकर जा रहे थे, वह नहीं चाहता था कि कोई जाने, (IN)

मरकुस 9:31 क्योंकि वह अपने चेलों को उपदेश देता और उनसे कहता था, “मनुष्य का पुत्र, मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेंगे; और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा।” (IN)

मरकुस 9:32 पर यह बात उनकी समझ में नहीं आई, और वे उससे पूछने से डरते थे। (IN)

मरकुस 9:33 ¶ फिर वे कफरनहूम में आए; और घर में आकर उसने उनसे पूछा, “रास्ते में तुम किस बात पर विवाद कर रहे थे?” (IN)

मरकुस 9:34 वे चुप रहे क्योंकि, मार्ग में उन्होंने आपस में यह वाद-विवाद किया था, कि हम में से बड़ा कौन है? (IN)

मरकुस 9:35 तब उसने बैठकर बारहों को बुलाया, और उनसे कहा, “यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सब का सेवक बने।” (IN)

मरकुस 9:36 और उसने एक बालक को लेकर उनके बीच में खड़ा किया, और उसको गोद में लेकर उनसे कहा, (IN)

मरकुस 9:37 “जो कोई मेरे नाम से ऐसे बालकों में से किसी एक को भी ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता, वह मुझे नहीं, वरन् मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।” (IN)

मरकुस 9:38 तब यूहन्ना ने उससे कहा, “हे गुरु, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे, क्योंकि वह हमारे पीछे नहीं हो लेता था।” (IN)

मरकुस 9:39 यीशु ने कहा, “उसको मना मत करो; क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से सामर्थ्य का काम करे, और आगे मेरी निन्दा करे, (IN)

मरकुस 9:40 क्योंकि जो हमारे विरोध में नहीं, वह हमारी ओर है। (IN)

मरकुस 9:41 जो कोई एक कटोरा पानी तुम्हें इसलिए पिलाए कि तुम मसीह के हो तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह अपना प्रतिफल किसी तरह से न खोएगा।” (IN)

मरकुस 9:42 ¶ “जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं, किसी को ठोकर खिलाएँ तो उसके लिये भला यह है कि एक बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वह समुद्र में डाल दिया जाए। (IN)

मरकुस 9:43 यदि तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे काट डाल टुण्डा होकर जीवन में प्रवेश करना, तेरे लिये इससे भला है कि दो हाथ रहते हुए नरक के बीच उस आग में डाला जाए जो कभी बुझने की नहीं। (IN)

मरकुस 9:44 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। (IN)

मरकुस 9:45 और यदि तेरा पाँव तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे काट डाल। लँगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो पाँव रहते हुए नरक में डाला जाए। (IN)

मरकुस 9:46 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती (IN)

मरकुस 9:47 और यदि तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ तो उसे निकाल डाल, काना होकर परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है, कि दो आँख रहते हुए तू नरक में डाला जाए। (IN)

मरकुस 9:48 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। (IN)

मरकुस 9:49 क्योंकि हर एक जन आग से नमकीन किया जाएगा। (IN)

मरकुस 9:50 नमक अच्छा है, पर यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो उसे किससे नमकीन करोगे? अपने में नमक रखो, और आपस में मेल मिलाप से रहो।” (IN)

मरकुस 10:1 ¶ फिर वह वहाँ से उठकर यहूदिया के सीमा-क्षेत्र और यरदन के पार आया, और भीड़ उसके पास फिर इकट्ठी हो गई, और वह अपनी रीति के अनुसार उन्हें फिर उपदेश देने लगा। (IN)

मरकुस 10:2 तब फरीसियों ने उसके पास आकर उसकी परीक्षा करने को उससे पूछा, “क्या यह उचित है, कि पुरुष अपनी पत्‍नी को त्यागे?” (IN)

मरकुस 10:3 उसने उनको उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्हें क्या आज्ञा दी है?” (IN)

मरकुस 10:4 उन्होंने कहा, “मूसा ने त्याग-पत्र लिखने और त्यागने की आज्ञा दी है।” (IN)

मरकुस 10:5 यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे मन की कठोरता के कारण उसने तुम्हारे लिये यह आज्ञा लिखी। (IN)

मरकुस 10:6 पर सृष्टि के आरम्भ से, परमेश्‍वर ने नर और नारी करके उनको बनाया है। (IN)

मरकुस 10:7 इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्‍नी के साथ रहेगा, (IN)

मरकुस 10:8 और वे दोनों एक तन होंगे’; इसलिए वे अब दो नहीं, पर एक तन हैं। (IN)

मरकुस 10:9 इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” (IN)

मरकुस 10:10 और घर में चेलों ने इसके विषय में उससे फिर पूछा। (IN)

मरकुस 10:11 उसने उनसे कहा, “जो कोई अपनी पत्‍नी को त्याग कर दूसरी से विवाह करे तो वह उस पहली के विरोध में व्यभिचार करता है। (IN)

मरकुस 10:12 और यदि पत्‍नी अपने पति को छोड़कर दूसरे से विवाह करे, तो वह व्यभिचार करती है।” (IN)

मरकुस 10:13 ¶ फिर लोग बालकों को उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; पर चेलों ने उनको डाँटा। (IN)

मरकुस 10:14 यीशु ने यह देख क्रुद्ध होकर उनसे कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य ऐसों ही का है। (IN)

मरकुस 10:15 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्‍वर के राज्य को बालक की तरह ग्रहण न करे, वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।” (IN)

मरकुस 10:16 और उसने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी। (IN)

मरकुस 10:17 ¶ और जब वह निकलकर मार्ग में जाता था, तो एक मनुष्य उसके पास दौड़ता हुआ आया, और उसके आगे घुटने टेककर उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” (IN)

मरकुस 10:18 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात् परमेश्‍वर। (IN)

मरकुस 10:19 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना।’ (IN)

मरकुस 10:20 उसने उससे कहा, “हे गुरु, इन सब को मैं लड़कपन से मानता आया हूँ।” (IN)

मरकुस 10:21 यीशु ने उस पर दृष्टि करके उससे प्रेम किया, और उससे कहा, “तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेचकर गरीबों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” (IN)

मरकुस 10:22 इस बात से उसके चेहरे पर उदासी छा गई, और वह शोक करता हुआ चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था। (IN)

मरकुस 10:23 ¶ यीशु ने चारों ओर देखकर अपने चेलों से कहा, “धनवानों को परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!” (IN)

मरकुस 10:24 चेले उसकी बातों से अचम्भित हुए। इस पर यीशु ने फिर उनसे कहा, “हे बालकों, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उनके लिए परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है! (IN)

मरकुस 10:25 परमेश्‍वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है!” (IN)

मरकुस 10:26 वे बहुत ही चकित होकर आपस में कहने लगे, “तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?” (IN)

मरकुस 10:27 यीशु ने उनकी ओर देखकर कहा, “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्‍वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्‍वर से सब कुछ हो सकता है।” (IN)

मरकुस 10:28 पतरस उससे कहने लगा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” (IN)

मरकुस 10:29 यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं, जिस ने मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहनों या माता या पिता या बाल-बच्चों या खेतों को छोड़ दिया हो, (IN)

मरकुस 10:30 और अब इस समय सौ गुणा न पाए, घरों और भाइयों और बहनों और माताओं और बाल-बच्चों और खेतों को, पर सताव के साथ और परलोक में अनन्त जीवन। (IN)

मरकुस 10:31 पर बहुत सारे जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, वे पहले होंगे।” (IN)

मरकुस 10:32 ¶ और वे यरूशलेम को जाते हुए मार्ग में थे, और यीशु उनके आगे-आगे जा रहा था : और चेले अचम्भा करने लगे और जो उसके पीछे-पीछे चलते थे वे डरे हुए थे, तब वह फिर उन बारहों को लेकर उनसे वे बातें कहने लगा, जो उस पर आनेवाली थीं। (IN)

मरकुस 10:33 “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उसको मृत्यु के योग्य ठहराएँगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे। (IN)

मरकुस 10:34 और वे उसका उपहास करेंगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े मारेंगे, और उसे मार डालेंगे, और तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।” (IN)

मरकुस 10:35 ¶ तब जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना ने उसके पास आकर कहा, “हे गुरु, हम चाहते हैं, कि जो कुछ हम तुझ से माँगे, वही तू हमारे लिये करे।” (IN)

मरकुस 10:36 उसने उनसे कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ?” (IN)

मरकुस 10:37 उन्होंने उससे कहा, “हमें यह दे, कि तेरी महिमा में हम में से एक तेरे दाहिने और दूसरा तेरे बाएँ बैठे।” (IN)

मरकुस 10:38 यीशु ने उनसे कहा, “तुम नहीं जानते, कि क्या माँगते हो? जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, क्या तुम पी सकते हो? और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूँ, क्या तुम ले सकते हो?” (IN)

मरकुस 10:39 उन्होंने उससे कहा, “हम से हो सकता है।” यीशु ने उनसे कहा, “जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, तुम पीओगे; और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूँ, उसे लोगे। (IN)

मरकुस 10:40 पर जिनके लिये तैयार किया गया है, उन्हें छोड़ और किसी को अपने दाहिने और अपने बाएँ बैठाना मेरा काम नहीं।” (IN)

मरकुस 10:41 यह सुनकर दसों याकूब और यूहन्ना पर रिसियाने लगे। (IN)

मरकुस 10:42 तो यीशु ने उनको पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि जो अन्यजातियों के अधिपति समझे जाते हैं, वे उन पर प्रभुता करते हैं; और उनमें जो बड़े हैं, उन पर अधिकार जताते हैं। (IN)

मरकुस 10:43 पर तुम में ऐसा नहीं है, वरन् जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने; (IN)

मरकुस 10:44 और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने। (IN)

मरकुस 10:45 क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिए नहीं आया, कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिए आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों के छुटकारे के लिये अपना प्राण दे।” (IN)

मरकुस 10:46 ¶ वे यरीहो में आए, और जब वह और उसके चेले, और एक बड़ी भीड़ यरीहो से निकलती थी, तब तिमाई का पुत्र बरतिमाई एक अंधा भिखारी, सड़क के किनारे बैठा था। (IN)

मरकुस 10:47 वह यह सुनकर कि यीशु नासरी है, पुकार-पुकारकर कहने लगा “हे दाऊद की सन्तान, यीशु मुझ पर दया कर।” (IN)

मरकुस 10:48 बहुतों ने उसे डाँटा कि चुप रहे, पर वह और भी पुकारने लगा, “हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर।” (IN)

मरकुस 10:49 तब यीशु ने ठहरकर कहा, “उसे बुलाओ।” और लोगों ने उस अंधे को बुलाकर उससे कहा, “धैर्य रख, उठ, वह तुझे बुलाता है।” (IN)

मरकुस 10:50 वह अपना बाहरी वस्त्र फेंककर शीघ्र उठा, और यीशु के पास आया। (IN)

मरकुस 10:51 इस पर यीशु ने उससे कहा, “तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिये करूँ?” अंधे ने उससे कहा, “हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूँ।” (IN)

मरकुस 10:52 यीशु ने उससे कहा, “चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा कर दिया है।” और वह तुरन्त देखने लगा, और मार्ग में उसके पीछे हो लिया। (IN)

मरकुस 11:1 ¶ जब वे यरूशलेम के निकट, जैतून पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास आए, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा, (IN)

मरकुस 11:2 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा, जिस पर कभी कोई नहीं चढ़ा, बंधा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोल लाओ। (IN)

मरकुस 11:3 यदि तुम से कोई पूछे, ‘यह क्यों करते हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इसका प्रयोजन है,’ और वह शीघ्र उसे यहाँ भेज देगा।” (IN)

मरकुस 11:4 उन्होंने जाकर उस बच्चे को बाहर द्वार के पास चौक में बंधा हुआ पाया, और खोलने लगे। (IN)

मरकुस 11:5 उनमें से जो वहाँ खड़े थे, कोई-कोई कहने लगे “यह क्या करते हो, गदही के बच्चे को क्यों खोलते हो?” (IN)

मरकुस 11:6 चेलों ने जैसा यीशु ने कहा था, वैसा ही उनसे कह दिया; तब उन्होंने उन्हें जाने दिया। (IN)

मरकुस 11:7 और उन्होंने बच्चे को यीशु के पास लाकर उस पर अपने कपड़े डाले और वह उस पर बैठ गया। (IN)

मरकुस 11:8 और बहुतों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए और औरों ने खेतों में से डालियाँ काट-काट कर फैला दीं। (IN)

मरकुस 11:9 और जो उसके आगे-आगे जाते और पीछे-पीछे चले आते थे, पुकार-पुकारकर कहते जाते थे, “होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है। (IN)

मरकुस 11:10 हमारे पिता दाऊद का राज्य जो आ रहा है; धन्य है! आकाश में होशाना।” (IN)

मरकुस 11:11 और वह यरूशलेम पहुँचकर मन्दिर में आया, और चारों ओर सब वस्तुओं को देखकर बारहों के साथ बैतनिय्याह गया, क्योंकि सांझ हो गई थी। (IN)

मरकुस 11:12 ¶ दूसरे दिन जब वे बैतनिय्याह से निकले तो उसको भूख लगी। (IN)

मरकुस 11:13 और वह दूर से अंजीर का एक हरा पेड़ देखकर निकट गया, कि क्या जाने उसमें कुछ पाए: पर पत्तों को छोड़ कुछ न पाया; क्योंकि फल का समय न था। (IN)

मरकुस 11:14 इस पर उसने उससे कहा, “अब से कोई तेरा फल कभी न खाए।” और उसके चेले सुन रहे थे। (IN)

मरकुस 11:15 ¶ फिर वे यरूशलेम में आए, और वह मन्दिर में गया; और वहाँ जो लेन-देन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा, और सर्राफों के मेज़ें और कबूतर के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। (IN)

मरकुस 11:16 ¶ और मन्दिर में से होकर किसी को बर्तन लेकर आने-जाने न दिया। (IN)

मरकुस 11:17 और उपदेश करके उनसे कहा, “क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।” (IN)

मरकुस 11:18 यह सुनकर प्रधान याजक और शास्त्री उसके नाश करने का अवसर ढूँढ़ने लगे; क्योंकि उससे डरते थे, इसलिए कि सब लोग उसके उपदेश से चकित होते थे। (IN)

मरकुस 11:19 और सांझ होते ही वे नगर से बाहर चले गए। (IN)

मरकुस 11:20 ¶ फिर भोर को जब वे उधर से जाते थे तो उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ तक सूखा हुआ देखा। (IN)

मरकुस 11:21 पतरस को वह बात स्मरण आई, और उसने उससे कहा, “हे रब्बी, देख! यह अंजीर का पेड़ जिसे तूने श्राप दिया था सूख गया है।” (IN)

मरकुस 11:22 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “परमेश्‍वर पर विश्वास रखो। (IN)

मरकुस 11:23 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे, ‘तू उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़,’ और अपने मन में सन्देह न करे, वरन् विश्वास करे, कि जो कहता हूँ वह हो जाएगा, तो उसके लिये वही होगा। (IN)

मरकुस 11:24 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कुछ तुम प्रार्थना करके माँगो तो विश्वास कर लो कि तुम्हें मिल गया, और तुम्हारे लिये हो जाएगा। (IN)

मरकुस 11:25 और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो, तो यदि तुम्हारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध हो, तो क्षमा करो: इसलिए कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करे। (IN)

मरकुस 11:26 परन्तु यदि तुम क्षमा न करो तो तुम्हारा पिता भी जो स्वर्ग में है, तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा।” (IN)

मरकुस 11:27 ¶ वे फिर यरूशलेम में आए, और जब वह मन्दिर में टहल रहा था तो प्रधान याजक और शास्त्री और पुरनिए उसके पास आकर पूछने लगे। (IN)

मरकुस 11:28 “तू ये काम किस अधिकार से करता है? और यह अधिकार तुझे किसने दिया है कि तू ये काम करे?” (IN)

मरकुस 11:29 यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; मुझे उत्तर दो, तो मैं तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ। (IN)

मरकुस 11:30 यूहन्ना का बपतिस्मा क्या स्वर्ग की ओर से था या मनुष्यों की ओर से था? मुझे उत्तर दो।” (IN)

मरकुस 11:31 तब वे आपस में विवाद करने लगे कि यदि हम कहें ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर तुम ने उसका विश्वास क्यों नहीं की?’ (IN)

मरकुस 11:32 और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो लोगों का डर है, क्योंकि सब जानते हैं कि यूहन्ना सचमुच भविष्यद्वक्ता था। (IN)

मरकुस 11:33 तब उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुम को नहीं बताता, कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ।” (IN)

मरकुस 12:1 ¶ फिर वह दृष्टान्तों में उनसे बातें करने लगा: “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा, और रस का कुण्ड खोदा, और गुम्मट बनाया; और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। (IN)

मरकुस 12:2 फिर फल के मौसम में उसने किसानों के पास एक दास को भेजा कि किसानों से दाख की बारी के फलों का भाग ले। (IN)

मरकुस 12:3 पर उन्होंने उसे पकड़कर पीटा और खाली हाथ लौटा दिया। (IN)

मरकुस 12:4 फिर उसने एक और दास को उनके पास भेजा और उन्होंने उसका सिर फोड़ डाला और उसका अपमान किया। (IN)

मरकुस 12:5 फिर उसने एक और को भेजा, और उन्होंने उसे मार डाला; तब उसने और बहुतों को भेजा, उनमें से उन्होंने कितनों को पीटा, और कितनों को मार डाला। (IN)

मरकुस 12:6 अब एक ही रह गया था, जो उसका प्रिय पुत्र था; अन्त में उसने उसे भी उनके पास यह सोचकर भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। (IN)

मरकुस 12:7 पर उन किसानों ने आपस में कहा; ‘यही तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, तब विरासत हमारी हो जाएगी।’ (IN)

मरकुस 12:8 और उन्होंने उसे पकड़कर मार डाला, और दाख की बारी के बाहर फेंक दिया। (IN)

मरकुस 12:9 ¶ “इसलिए दाख की बारी का स्वामी क्या करेगा? वह आकर उन किसानों का नाश करेगा, और दाख की बारी औरों को दे देगा। (IN)

मरकुस 12:10 क्या तुम ने पवित्रशास्त्र में यह वचन नहीं पढ़ा: (IN)

मरकुस 12:11 यह प्रभु की ओर से हुआ, (IN)

मरकुस 12:12 ¶ तब उन्होंने उसे पकड़ना चाहा; क्योंकि समझ गए थे, कि उसने हमारे विरोध में यह दृष्टान्त कहा है: पर वे लोगों से डरे; और उसे छोड़कर चले गए। (IN)

मरकुस 12:13 ¶ तब उन्होंने उसे बातों में फँसाने के लिये कुछ फरीसियों और हेरोदियों को उसके पास भेजा। (IN)

मरकुस 12:14 और उन्होंने आकर उससे कहा, “हे गुरु, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और किसी की परवाह नहीं करता; क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता, परन्तु परमेश्‍वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। तो क्या कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं? (IN)

मरकुस 12:15 हम दें, या न दें?” उसने उनका कपट जानकर उनसे कहा, “मुझे क्यों परखते हो? एक दीनार मेरे पास लाओ, कि मैं देखूँ।” (IN)

मरकुस 12:16 वे ले आए, और उसने उनसे कहा, “यह मूर्ति और नाम किस का है?” उन्होंने कहा, “कैसर का।” (IN)

मरकुस 12:17 यीशु ने उनसे कहा, “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्‍वर का है परमेश्‍वर को दो।” तब वे उस पर बहुत अचम्भा करने लगे। (IN)

मरकुस 12:18 ¶ फिर सदूकियों ने भी, जो कहते हैं कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उसके पास आकर उससे पूछा, (IN)

मरकुस 12:19 “हे गुरु, मूसा ने हमारे लिये लिखा है, कि यदि किसी का भाई बिना सन्तान मर जाए, और उसकी पत्‍नी रह जाए, तो उसका भाई उसकी पत्‍नी से विवाह कर ले और अपने भाई के लिये वंश उत्‍पन्‍न करे। (IN)

मरकुस 12:20 सात भाई थे। पहला भाई विवाह करके बिना सन्तान मर गया। (IN)

मरकुस 12:21 तब दूसरे भाई ने उस स्त्री से विवाह कर लिया और बिना सन्तान मर गया; और वैसे ही तीसरे ने भी। (IN)

मरकुस 12:22 और सातों से सन्तान न हुई। सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। (IN)

मरकुस 12:23 अतः जी उठने पर वह उनमें से किस की पत्‍नी होगी? क्योंकि वह सातों की पत्‍नी हो चुकी थी।” (IN)

मरकुस 12:24 ¶ यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम इस कारण से भूल में नहीं पड़े हो कि तुम न तो पवित्रशास्त्र ही को जानते हो, और न परमेश्‍वर की सामर्थ्य को? (IN)

मरकुस 12:25 क्योंकि जब वे मरे हुओं में से जी उठेंगे, तो उनमें विवाह-शादी न होगी; पर स्वर्ग में दूतों के समान होंगे। (IN)

मरकुस 12:26 मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने मूसा की पुस्तक में झाड़ी की कथा में नहीं पढ़ा कि परमेश्‍वर ने उससे कहा: ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, और इसहाक का परमेश्‍वर, और याकूब का परमेश्‍वर हूँ?’ (IN)

मरकुस 12:27 परमेश्‍वर मरे हुओं का नहीं, वरन् जीवितों का परमेश्‍वर है, तुम बड़ी भूल में पड़े हो।” (IN)

मरकुस 12:28 ¶ और शास्त्रियों में से एक ने आकर उन्हें विवाद करते सुना, और यह जानकर कि उसने उन्हें अच्छी रीति से उत्तर दिया, उससे पूछा, “सबसे मुख्य आज्ञा कौन सी है?” (IN)

मरकुस 12:29 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है: ‘हे इस्राएल सुन, प्रभु हमारा परमेश्‍वर एक ही प्रभु है। (IN)

मरकुस 12:30 और तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे मन से, और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।’ (IN)

मरकुस 12:31 और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।’ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।” (IN)

मरकुस 12:32 शास्त्री ने उससे कहा, “हे गुरु, बहुत ठीक! तूने सच कहा कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं। (IN)

मरकुस 12:33 और उससे सारे मन, और सारी बुद्धि, और सारे प्राण, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना; और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमबलियों और बलिदानों से बढ़कर है।” (IN)

मरकुस 12:34 जब यीशु ने देखा कि उसने समझ से उत्तर दिया, तो उससे कहा, “तू परमेश्‍वर के राज्य से दूर नहीं।” और किसी को फिर उससे कुछ पूछने का साहस न हुआ। (IN)

मरकुस 12:35 ¶ फिर यीशु ने मन्दिर में उपदेश करते हुए यह कहा, “शास्त्री क्यों कहते हैं, कि मसीह दाऊद का पुत्र है? (IN)

मरकुस 12:36 दाऊद ने आप ही पवित्र आत्मा में होकर कहा है: (IN)

मरकुस 12:37 दाऊद तो आप ही उसे प्रभु कहता है, फिर वह उसका पुत्र कहाँ से ठहरा?” और भीड़ के लोग उसकी आनन्द से सुनते थे। (IN)

मरकुस 12:38 ¶ उसने अपने उपदेश में उनसे कहा, “शास्त्रियों से सावधान रहो, जो लम्बे वस्त्र पहने हुए फिरना और बाजारों में नमस्कार, (IN)

मरकुस 12:39 और आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन और भोज में मुख्य-मुख्य स्थान भी चाहते हैं। (IN)

मरकुस 12:40 वे विधवाओं के घरों को खा जाते हैं, और दिखाने के लिये बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हैं, ये अधिक दण्ड पाएँगे।” (IN)

मरकुस 12:41 ¶ और वह मन्दिर के भण्डार के सामने बैठकर देख रहा था कि लोग मन्दिर के भण्डार में किस प्रकार पैसे डालते हैं, और बहुत धनवानों ने बहुत कुछ डाला। (IN)

मरकुस 12:42 इतने में एक गरीब विधवा ने आकर दो दमड़ियाँ, जो एक अधेले के बराबर होती है, डाली। (IN)

मरकुस 12:43 तब उसने अपने चेलों को पास बुलाकर उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से इस गरीब विधवा ने सबसे बढ़कर डाला है; (IN)

मरकुस 12:44 क्योंकि सब ने अपने धन की बढ़ती में से डाला है, परन्तु इसने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात् अपनी सारी जीविका डाल दी है।” (IN)

मरकुस 13:1 ¶ जब वह मन्दिर से निकल रहा था, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, देख, कैसे-कैसे पत्थर और कैसे-कैसे भवन हैं!” (IN)

मरकुस 13:2 यीशु ने उससे कहा, “क्या तुम ये बड़े-बड़े भवन देखते हो: यहाँ पत्थर पर पत्थर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा।” (IN)

मरकुस 13:3 ¶ जब वह जैतून के पहाड़ पर मन्दिर के सामने बैठा था, तो पतरस और याकूब और यूहन्ना और अन्द्रियास ने अलग जाकर उससे पूछा, (IN)

मरकुस 13:4 “हमें बता कि ये बातें कब होंगी? और जब ये सब बातें पूरी होने पर होंगी उस समय का क्या चिन्ह होगा?” (IN)

मरकुस 13:5 यीशु उनसे कहने लगा, “सावधान रहो कि कोई तुम्हें न भरमाए। (IN)

मरकुस 13:6 बहुत सारे मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और बहुतों को भरमाएँगे। (IN)

मरकुस 13:7 और जब तुम लड़ाइयाँ, और लड़ाइयों की चर्चा सुनो, तो न घबराना; क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। (IN)

मरकुस 13:8 क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। और हर कहीं भूकम्प होंगे, और अकाल पड़ेंगे। यह तो पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा। (IN)

मरकुस 13:9 ¶ “परन्तु तुम अपने विषय में सावधान रहो, क्योंकि लोग तुम्हें सभाओं में सौंपेंगे और तुम आराधनालयों में पीटे जाओगे, और मेरे कारण राज्यपालों और राजाओं के आगे खड़े किए जाओगे, ताकि उनके लिये गवाही हो। (IN)

मरकुस 13:10 पर अवश्य है कि पहले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए। (IN)

मरकुस 13:11 जब वे तुम्हें ले जाकर सौंपेंगे, तो पहले से चिन्ता न करना, कि हम क्या कहेंगे। पर जो कुछ तुम्हें उसी समय बताया जाए, वही कहना; क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो, परन्तु पवित्र आत्मा है। (IN)

मरकुस 13:12 और भाई को भाई, और पिता को पुत्र मरने के लिये सौंपेंगे, और बच्चे माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। (IN)

मरकुस 13:13 और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे; पर जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा। (IN)

मरकुस 13:14 ¶ “अतः जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जहाँ उचित नहीं वहाँ खड़ी देखो, (पढ़नेवाला समझ ले) तब जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। (IN)

मरकुस 13:15 जो छत पर हो, वह अपने घर से कुछ लेने को नीचे न उतरे और न भीतर जाए। (IN)

मरकुस 13:16 और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने के लिये पीछे न लौटे। (IN)

मरकुस 13:17 उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय! हाय! (IN)

मरकुस 13:18 और प्रार्थना किया करो कि यह जाड़े में न हो। (IN)

मरकुस 13:19 क्योंकि वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे, कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्‍वर ने रची है अब तक न तो हुए, और न कभी फिर होंगे। (IN)

मरकुस 13:20 और यदि प्रभु उन दिनों को न घटाता, तो कोई प्राणी भी न बचता; परन्तु उन चुने हुओं के कारण जिनको उसने चुना है, उन दिनों को घटाया। (IN)

मरकुस 13:21 उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है!’ या ‘देखो, वहाँ है!’ तो विश्वास न करना। (IN)

मरकुस 13:22 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें। (IN)

मरकुस 13:23 पर तुम सावधान रहो देखो, मैंने तुम्हें सब बातें पहले ही से कह दी हैं। (IN)

मरकुस 13:24 ¶ “उन दिनों में, उस क्लेश के बाद सूरज अंधेरा हो जाएगा, और चाँद प्रकाश न देगा; (IN)

मरकुस 13:25 और आकाश से तारागण गिरने लगेंगे, और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। (IN)

मरकुस 13:26 तब लोग मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और महिमा के साथ बादलों में आते देखेंगे। (IN)

मरकुस 13:27 उस समय वह अपने स्वर्गदूतों को भेजकर, पृथ्वी के इस छोर से आकाश के उस छोर तक चारों दिशा से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठा करेगा। (IN)

मरकुस 13:28 ¶ “अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो जब उसकी डाली कोमल हो जाती; और पत्ते निकलने लगते हैं; तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। (IN)

मरकुस 13:29 इसी रीति से जब तुम इन बातों को होते देखो, तो जान लो, कि वह निकट है वरन् द्वार ही पर है। (IN)

मरकुस 13:30 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो लेंगी, तब तक यह लोग जाते न रहेंगे। (IN)

मरकुस 13:31 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी। (IN)

मरकुस 13:32 ¶ “उस दिन या उस समय के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता। (IN)

मरकुस 13:33 देखो, जागते और प्रार्थना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा। (IN)

मरकुस 13:34 यह उस मनुष्य के समान दशा है, जो परदेश जाते समय अपना घर छोड़ जाए, और अपने दासों को अधिकार दे: और हर एक को उसका काम जता दे, और द्वारपाल को जागते रहने की आज्ञा दे। (IN)

मरकुस 13:35 इसलिए जागते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का स्वामी कब आएगा, सांझ को या आधी रात को, या मुर्गे के बाँग देने के समय या भोर को। (IN)

मरकुस 13:36 ऐसा न हो कि वह अचानक आकर तुम्हें सोते पाए। (IN)

मरकुस 13:37 और जो मैं तुम से कहता हूँ, वही सबसे कहता हूँ: जागते रहो।” (IN)

मरकुस 14:1 ¶ दो दिन के बाद फसह और अख़मीरी रोटी का पर्व होनेवाला था। और प्रधान याजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसे कैसे छल से पकड़कर मार डालें। (IN)

मरकुस 14:2 परन्तु कहते थे, “पर्व के दिन नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोगों में दंगा मचे।” (IN)

मरकुस 14:3 ¶ जब वह बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर भोजन करने बैठा हुआ था तब एक स्त्री संगमरमर के पात्र में जटामांसी का बहुमूल्य शुद्ध इत्र लेकर आई; और पात्र तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर उण्डेला। (IN)

मरकुस 14:4 परन्तु कुछ लोग अपने मन में झुँझला कर कहने लगे, “इस इत्र का क्यों सत्यानाश किया गया? (IN)

मरकुस 14:5 क्योंकि यह इत्र तो तीन सौ दीनार से अधिक मूल्य में बेचकर गरीबों को बाँटा जा सकता था।” और वे उसको झिड़कने लगे। (IN)

मरकुस 14:6 यीशु ने कहा, “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उसने तो मेरे साथ भलाई की है। (IN)

मरकुस 14:7 गरीब तुम्हारे साथ सदा रहते हैं और तुम जब चाहो तब उनसे भलाई कर सकते हो; पर मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा। (IN)

मरकुस 14:8 जो कुछ वह कर सकी, उसने किया; उसने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहले से मेरी देह पर इत्र मला है। (IN)

मरकुस 14:9 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम की चर्चा भी उसके स्मरण में की जाएगी।” (IN)

मरकुस 14:10 ¶ तब यहूदा इस्करियोती जो बारह में से एक था, प्रधान याजकों के पास गया, कि उसे उनके हाथ पकड़वा दे। (IN)

मरकुस 14:11 वे यह सुनकर आनन्दित हुए, और उसको रुपये देना स्वीकार किया, और यह अवसर ढूँढ़ने लगा कि उसे किसी प्रकार पकड़वा दे। (IN)

मरकुस 14:12 ¶ अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, जिसमें वे फसह का बलिदान करते थे, उसके चेलों ने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है, कि हम जाकर तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करे?” (IN)

मरकुस 14:13 उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा, “नगर में जाओ, और एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, उसके पीछे हो लेना। (IN)

मरकुस 14:14 और वह जिस घर में जाए उस घर के स्वामी से कहना: ‘गुरु कहता है, कि मेरी पाहुनशाला जिसमें मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ कहाँ है?’ (IN)

मरकुस 14:15 वह तुम्हें एक सजी-सजाई, और तैयार की हुई बड़ी अटारी दिखा देगा, वहाँ हमारे लिये तैयारी करो।” (IN)

मरकुस 14:16 तब चेले निकलकर नगर में आए और जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया। (IN)

मरकुस 14:17 जब सांझ हुई, तो वह बारहों के साथ आया। (IN)

मरकुस 14:18 और जब वे बैठे भोजन कर रहे थे, तो यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक, जो मेरे साथ भोजन कर रहा है, मुझे पकड़वाएगा।” (IN)

मरकुस 14:19 उन पर उदासी छा गई और वे एक-एक करके उससे कहने लगे, “क्या वह मैं हूँ?” (IN)

मरकुस 14:20 उसने उनसे कहा, “वह बारहों में से एक है, जो मेरे साथ थाली में हाथ डालता है। (IN)

मरकुस 14:21 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो, जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य पर हाय जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है! यदि उस मनुष्य का जन्म ही न होता तो उसके लिये भला होता।” (IN)

मरकुस 14:22 ¶ और जब वे खा ही रहे थे तो उसने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और उन्हें दी, और कहा, “लो, यह मेरी देह है।” (IN)

मरकुस 14:23 फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें दिया; और उन सब ने उसमें से पीया। (IN)

मरकुस 14:24 और उसने उनसे कहा, “यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये बहाया जाता है। (IN)

मरकुस 14:25 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि दाख का रस उस दिन तक फिर कभी न पीऊँगा, जब तक परमेश्‍वर के राज्य में नया न पीऊँ।” (IN)

मरकुस 14:26 फिर वे भजन गाकर बाहर जैतून के पहाड़ पर गए। (IN)

मरकुस 14:27 ¶ तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम सब ठोकर खाओगे, क्योंकि लिखा है: ‘मैं चरवाहे को मारूँगा, और भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’ (IN)

मरकुस 14:28 परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।” (IN)

मरकुस 14:29 पतरस ने उससे कहा, “यदि सब ठोकर खाएँ तो खाएँ, पर मैं ठोकर नहीं खाऊँगा।” (IN)

मरकुस 14:30 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ, कि आज ही इसी रात को मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझसे मुकर जाएगा।” (IN)

मरकुस 14:31 पर उसने और भी जोर देकर कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े फिर भी तेरा इन्कार कभी न करूँगा।” इसी प्रकार और सब ने भी कहा। (IN)

मरकुस 14:32 ¶ फिर वे गतसमनी नाम एक जगह में आए; और उसने अपने चेलों से कहा, “यहाँ बैठे रहो, जब तक मैं प्रार्थना करूँ। (IN)

मरकुस 14:33 और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपने साथ ले गया; और बहुत ही अधीर और व्याकुल होने लगा, (IN)

मरकुस 14:34 और उनसे कहा, “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मैं मरने पर हूँ: तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो।” (IN)

मरकुस 14:35 और वह थोड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, कि यदि हो सके तो यह समय मुझ पर से टल जाए। (IN)

मरकुस 14:36 और कहा, “हे अब्बा, हे पिता, तुझ से सब कुछ हो सकता है; इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले: फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, पर जो तू चाहता है वही हो।” (IN)

मरकुस 14:37 फिर वह आया और उन्हें सोते पा कर पतरस से कहा, “हे शमौन, तू सो रहा है? क्या तू एक घंटे भी न जाग सका? (IN)

मरकुस 14:38 जागते और प्रार्थना करते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो। आत्मा तो तैयार है, पर शरीर दुर्बल है।” (IN)

मरकुस 14:39 और वह फिर चला गया, और वही बात कहकर प्रार्थना की। (IN)

मरकुस 14:40 और फिर आकर उन्हें सोते पाया, क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं; और नहीं जानते थे कि उसे क्या उत्तर दें। (IN)

मरकुस 14:41 फिर तीसरी बार आकर उनसे कहा, “अब सोते रहो और विश्राम करो, बस, घड़ी आ पहुँची; देखो मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। (IN)

मरकुस 14:42 उठो, चलें! देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है!” (IN)

मरकुस 14:43 ¶ वह यह कह ही रहा था, कि यहूदा जो बारहों में से था, अपने साथ प्रधान याजकों और शास्त्रियों और प्राचीनों की ओर से एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए तुरन्त आ पहुँची। (IN)

मरकुस 14:44 और उसके पकड़नेवाले ने उन्हें यह पता दिया था, कि जिसको मैं चूमूं वही है, उसे पकड़कर सावधानी से ले जाना। (IN)

मरकुस 14:45 और वह आया, और तुरन्त उसके पास जाकर कहा, “हे रब्बी!” और उसको बहुत चूमा। (IN)

मरकुस 14:46 तब उन्होंने उस पर हाथ डालकर उसे पकड़ लिया। (IN)

मरकुस 14:47 उनमें से जो पास खड़े थे, एक ने तलवार खींचकर महायाजक के दास पर चलाई, और उसका कान उड़ा दिया। (IN)

मरकुस 14:48 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम डाकू जानकर मुझे पकड़ने के लिये तलवारें और लाठियाँ लेकर निकले हो? (IN)

मरकुस 14:49 मैं तो हर दिन मन्दिर में तुम्हारे साथ रहकर उपदेश दिया करता था, और तब तुम ने मुझे न पकड़ा: परन्तु यह इसलिए हुआ है कि पवित्रशास्त्र की बातें पूरी हों।” (IN)

मरकुस 14:50 इस पर सब चेले उसे छोड़कर भाग गए। (IN)

मरकुस 14:51 और एक जवान अपनी नंगी देह पर चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया; और लोगों ने उसे पकड़ा। (IN)

मरकुस 14:52 पर वह चादर छोड़कर नंगा भाग गया। (IN)

मरकुस 14:53 ¶ फिर वे यीशु को महायाजक के पास ले गए; और सब प्रधान याजक और पुरनिए और शास्त्री उसके यहाँ इकट्ठे हो गए। (IN)

मरकुस 14:54 पतरस दूर ही दूर से उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन के भीतर तक गया, और प्यादों के साथ बैठ कर आग तापने लगा। (IN)

मरकुस 14:55 प्रधान याजक और सारी महासभा यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में गवाही की खोज में थे, पर न मिली। (IN)

मरकुस 14:56 क्योंकि बहुत से उसके विरोध में झूठी गवाही दे रहे थे, पर उनकी गवाही एक सी न थी। (IN)

मरकुस 14:57 तब कितनों ने उठकर उस पर यह झूठी गवाही दी, (IN)

मरकुस 14:58 “हमने इसे यह कहते सुना है ‘मैं इस हाथ के बनाए हुए मन्दिर को ढा दूँगा, और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा, जो हाथ से न बना हो’।” (IN)

मरकुस 14:59 इस पर भी उनकी गवाही एक सी न निकली। (IN)

मरकुस 14:60 तब महायाजक ने बीच में खड़े होकर यीशु से पूछा; “तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” (IN)

मरकुस 14:61 परन्तु वह मौन साधे रहा, और कुछ उत्तर न दिया। महायाजक ने उससे फिर पूछा, “क्या तू उस परमधन्य का पुत्र मसीह है?” (IN)

मरकुस 14:62 यीशु ने कहा, “हाँ मैं हूँ: और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों के साथ आते देखोगे।” (IN)

मरकुस 14:63 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन है? (IN)

मरकुस 14:64 तुम ने यह निन्दा सुनी। तुम्हारी क्या राय है?” उन सब ने कहा यह मृत्यु दण्ड के योग्य है। (IN)

मरकुस 14:65 तब कोई तो उस पर थूकने, और कोई उसका मुँह ढाँपने और उसे घूँसे मारने, और उससे कहने लगे, “भविष्यद्वाणी कर!” और पहरेदारों ने उसे पकड़कर थप्पड़ मारे। (IN)

मरकुस 14:66 ¶ जब पतरस नीचे आँगन में था, तो महायाजक की दासियों में से एक वहाँ आई। (IN)

मरकुस 14:67 और पतरस को आग तापते देखकर उस पर टकटकी लगाकर देखा और कहने लगी, “तू भी तो उस नासरी यीशु के साथ था।” (IN)

मरकुस 14:68 वह मुकर गया, और कहा, “मैं तो नहीं जानता और नहीं समझता कि तू क्या कह रही है।” फिर वह बाहर डेवढ़ी में गया; और मुर्गे ने बाँग दी। (IN)

मरकुस 14:69 वह दासी उसे देखकर उनसे जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी, कि “यह उनमें से एक है।” (IN)

मरकुस 14:70 परन्तु वह फिर मुकर गया। और थोड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे फिर पतरस से कहा, “निश्चय तू उनमें से एक है; क्योंकि तू गलीली भी है।” (IN)

मरकुस 14:71 तब वह स्वयं को कोसने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को, जिसकी तुम चर्चा करते हो, नहीं जानता।” (IN)

मरकुस 14:72 तब तुरन्त दूसरी बार मुर्गे ने बाँग दी पतरस को यह बात जो यीशु ने उससे कही थी याद आई, “मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” वह इस बात को सोचकर फूट-फूट कर रोने लगा। (IN)

मरकुस 15:1 ¶ और भोर होते ही तुरन्त प्रधान याजकों, प्राचीनों, और शास्त्रियों ने वरन् सारी महासभा ने सलाह करके यीशु को बन्धवाया, और उसे ले जाकर पिलातुस के हाथ सौंप दिया। (IN)

मरकुस 15:2 और पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसको उत्तर दिया, “तू स्वयं ही कह रहा है।” (IN)

मरकुस 15:3 और प्रधान याजक उस पर बहुत बातों का दोष लगा रहे थे। (IN)

मरकुस 15:4 पिलातुस ने उससे फिर पूछा, “क्या तू कुछ उत्तर नहीं देता, देख ये तुझ पर कितनी बातों का दोष लगाते हैं?” (IN)

मरकुस 15:5 यीशु ने फिर कुछ उत्तर नहीं दिया; यहाँ तक कि पिलातुस को बड़ा आश्चर्य हुआ। (IN)

मरकुस 15:6 ¶ वह उस पर्व में किसी एक बन्धुए को जिसे वे चाहते थे, उनके लिये छोड़ दिया करता था। (IN)

मरकुस 15:7 और बरअब्बा नाम का एक मनुष्य उन बलवाइयों के साथ बन्धुआ था, जिन्होंने बलवे में हत्या की थी। (IN)

मरकुस 15:8 और भीड़ ऊपर जाकर उससे विनती करने लगी, कि जैसा तू हमारे लिये करता आया है वैसा ही कर। (IN)

मरकुस 15:9 पिलातुस ने उनको यह उत्तर दिया, “क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” (IN)

मरकुस 15:10 क्योंकि वह जानता था, कि प्रधान याजकों ने उसे डाह से पकड़वाया था। (IN)

मरकुस 15:11 परन्तु प्रधान याजकों ने लोगों को उभारा, कि वह बरअब्बा ही को उनके लिये छोड़ दे। (IN)

मरकुस 15:12 यह सुन पिलातुस ने उनसे फिर पूछा, “तो जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो, उसको मैं क्या करूँ?” (IN)

मरकुस 15:13 वे फिर चिल्लाए, “उसे क्रूस पर चढ़ा दे!” (IN)

मरकुस 15:14 पिलातुस ने उनसे कहा, “क्यों, इसने क्या बुराई की है?” परन्तु वे और भी चिल्लाए, “उसे क्रूस पर चढ़ा दे।” (IN)

मरकुस 15:15 तब पिलातुस ने भीड़ को प्रसन्‍न करने की इच्छा से, बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए। (IN)

मरकुस 15:16 ¶ सिपाही उसे किले के भीतर आँगन में ले गए जो प्रीटोरियुम कहलाता है, और सारे सैनिक दल को बुला लाए। (IN)

मरकुस 15:17 और उन्होंने उसे बैंगनी वस्त्र पहनाया और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, (IN)

मरकुस 15:18 और यह कहकर उसे नमस्कार करने लगे, “हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!” (IN)

मरकुस 15:19 वे उसके सिर पर सरकण्डे मारते, और उस पर थूकते, और घुटने टेककर उसे प्रणाम करते रहे। (IN)

मरकुस 15:20 जब वे उसका उपहास कर चुके, तो उस पर बैंगनी वस्त्र उतारकर उसी के कपड़े पहनाए; और तब उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिये बाहर ले गए। (IN)

मरकुस 15:21 ¶ सिकन्दर और रूफुस का पिता शमौन, नाम एक कुरेनी मनुष्य, जो गाँव से आ रहा था उधर से निकला; उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। (IN)

मरकुस 15:22 और वे उसे गुलगुता नामक जगह पर, जिसका अर्थ खोपड़ी का स्थान है, लाए। (IN)

मरकुस 15:23 और उसे गन्धरस मिला हुआ दाखरस देने लगे, परन्तु उसने नहीं लिया। (IN)

मरकुस 15:24 तब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया, और उसके कपड़ों पर चिट्ठियाँ डालकर, कि किस को क्या मिले, उन्हें बाँट लिया। (IN)

मरकुस 15:25 और एक पहर दिन चढ़ा था, जब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया। (IN)

मरकुस 15:26 और उसका दोषपत्र लिखकर उसके ऊपर लगा दिया गया कि “यहूदियों का राजा।” (IN)

मरकुस 15:27 उन्होंने उसके साथ दो डाकू, एक उसकी दाहिनी और एक उसकी बाईं ओर क्रूस पर चढ़ाए। (IN)

मरकुस 15:28 तब पवित्रशास्त्र का वह वचन कि वह अपराधियों के संग गिना गया, पूरा हुआ। (IN)

मरकुस 15:29 और मार्ग में जानेवाले सिर हिला-हिलाकर और यह कहकर उसकी निन्दा करते थे, “वाह! मन्दिर के ढानेवाले, और तीन दिन में बनानेवाले! (IN)

मरकुस 15:30 क्रूस पर से उतर कर अपने आप को बचा ले।” (IN)

मरकुस 15:31 इसी तरह से प्रधान याजक भी, शास्त्रियों समेत, आपस में उपहास करके कहते थे; “इसने औरों को बचाया, पर अपने को नहीं बचा सकता। (IN)

मरकुस 15:32 इस्राएल का राजा, मसीह, अब क्रूस पर से उतर आए कि हम देखकर विश्वास करें।” और जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे, वे भी उसकी निन्दा करते थे। (IN)

मरकुस 15:33 ¶ और दोपहर होने पर सारे देश में अंधियारा छा गया, और तीसरे पहर तक रहा। (IN)

मरकुस 15:34 तीसरे पहर यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी?” जिसका अर्थ है, “हे मेरे परमेश्‍वर, हे मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (IN)

मरकुस 15:35 जो पास खड़े थे, उनमें से कितनों ने यह सुनकर कहा, “देखो, यह एलिय्याह को पुकारता है।” (IN)

मरकुस 15:36 और एक ने दौड़कर पनसोख्‍ता को सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया, और कहा, “ठहर जाओ; देखें, एलिय्याह उसे उतारने के लिये आता है कि नहीं।” (IN)

मरकुस 15:37 तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिये। (IN)

मरकुस 15:38 और मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया। (IN)

मरकुस 15:39 जो सूबेदार उसके सामने खड़ा था, जब उसे यूँ चिल्लाकर प्राण छोड़ते हुए देखा, तो उसने कहा, “सचमुच यह मनुष्य, परमेश्‍वर का पुत्र था!” (IN)

मरकुस 15:40 ¶ कई स्त्रियाँ भी दूर से देख रही थीं: उनमें मरियम मगदलीनी, और छोटे याकूब और योसेस की माता मरियम, और सलोमी थीं। (IN)

मरकुस 15:41 जब वह गलील में था तो ये उसके पीछे हो लेती थीं और उसकी सेवा-टहल किया करती थीं; और भी बहुत सी स्त्रियाँ थीं, जो उसके साथ यरूशलेम में आई थीं। (IN)

मरकुस 15:42 ¶ और जब संध्या हो गई, क्योंकि तैयारी का दिन था, जो सब्त के एक दिन पहले होता है, (IN)

मरकुस 15:43 अरिमतियाह का रहनेवाला यूसुफ आया, जो प्रतिष्ठित मंत्री और आप भी परमेश्‍वर के राज्य की प्रतीक्षा में था। वह साहस करके पिलातुस के पास गया और यीशु का शव माँगा। (IN)

मरकुस 15:44 पिलातुस ने आश्चर्य किया, कि वह इतना शीघ्र मर गया; और उसने सूबेदार को बुलाकर पूछा, कि “क्या उसको मरे हुए देर हुई?” (IN)

मरकुस 15:45 जब उसने सूबेदार के द्वारा हाल जान लिया, तो शव यूसुफ को दिला दिया। (IN)

मरकुस 15:46 तब उसने एक मलमल की चादर मोल ली, और शव को उतारकर उस चादर में लपेटा, और एक कब्र में जो चट्टान में खोदी गई थी रखा, और कब्र के द्वार पर एक पत्थर लुढ़का दिया। (IN)

मरकुस 15:47 और मरियम मगदलीनी और योसेस की माता मरियम देख रही थीं कि वह कहाँ रखा गया है। (IN)

मरकुस 16:1 ¶ जब सब्त का दिन बीत गया, तो मरियम मगदलीनी, और याकूब की माता मरियम, और सलोमी ने सुगन्धित वस्तुएँ मोल लीं, कि आकर उस पर मलें। (IN)

मरकुस 16:2 सप्ताह के पहले दिन बड़े भोर, जब सूरज निकला ही था, वे कब्र पर आईं, (IN)

मरकुस 16:3 और आपस में कहती थीं, “हमारे लिये कब्र के द्वार पर से पत्थर कौन लुढ़काएगा?” (IN)

मरकुस 16:4 जब उन्होंने आँख उठाई, तो देखा कि पत्थर लुढ़का हुआ है! वह बहुत ही बड़ा था। (IN)

मरकुस 16:5 और कब्र के भीतर जाकर, उन्होंने एक जवान को श्वेत वस्त्र पहने हुए दाहिनी ओर बैठे देखा, और बहुत चकित हुई। (IN)

मरकुस 16:6 उसने उनसे कहा, “चकित मत हो, तुम यीशु नासरी को, जो क्रूस पर चढ़ाया गया था, ढूँढ़ती हो। वह जी उठा है, यहाँ नहीं है; देखो, यही वह स्थान है, जहाँ उन्होंने उसे रखा था। (IN)

मरकुस 16:7 परन्तु तुम जाओ, और उसके चेलों और पतरस से कहो, कि वह तुम से पहले गलील को जाएगा; जैसा उसने तुम से कहा था, तुम वही उसे देखोगे।” (IN)

मरकुस 16:8 और वे निकलकर कब्र से भाग गईं; क्योंकि कँपकँपी और घबराहट उन पर छा गई थीं। और उन्होंने किसी से कुछ न कहा, क्योंकि डरती थीं। (IN)

मरकुस 16:9 ¶ सप्ताह के पहले दिन भोर होते ही वह जी उठ कर पहले-पहल मरियम मगदलीनी को जिसमें से उसने सात दुष्टात्माएँ निकाली थीं, दिखाई दिया। (IN)

मरकुस 16:10 उसने जाकर उसके साथियों को जो शोक में डूबे हुए थे और रो रहे थे, समाचार दिया। (IN)

मरकुस 16:11 और उन्होंने यह सुनकर कि वह जीवित है और उसने उसे देखा है, विश्वास न की। (IN)

मरकुस 16:12 ¶ इसके बाद वह दूसरे रूप में उनमें से दो को जब वे गाँव की ओर जा रहे थे, दिखाई दिया। (IN)

मरकुस 16:13 उन्होंने भी जाकर औरों को समाचार दिया, परन्तु उन्होंने उनका भी विश्वास न किया। (IN)

मरकुस 16:14 ¶ पीछे वह उन ग्यारह चेलों को भी, जब वे भोजन करने बैठे थे दिखाई दिया, और उनके अविश्वास और मन की कठोरता पर उलाहना दिया, क्योंकि जिन्होंने उसके जी उठने के बाद उसे देखा था, इन्होंने उसका विश्वास न किया था। (IN)

मरकुस 16:15 और उसने उनसे कहा, “तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। (IN)

मरकुस 16:16 जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा, परन्तु जो विश्वास न करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा। (IN)

मरकुस 16:17 और विश्वास करनेवालों में ये चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे; नई-नई भाषा बोलेंगे; (IN)

मरकुस 16:18 साँपों को उठा लेंगे, और यदि वे प्राणनाशक वस्तु भी पी जाएँ तो भी उनकी कुछ हानि न होगी; वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएँगे।” (IN)

मरकुस 16:19 ¶ तब प्रभु यीशु उनसे बातें करने के बाद स्वर्ग पर उठा लिया गया, और परमेश्‍वर की दाहिनी ओर बैठ गया। (IN)

मरकुस 16:20 और उन्होंने निकलकर हर जगह प्रचार किया, और प्रभु उनके साथ काम करता रहा और उन चिन्हों के द्वारा जो साथ-साथ होते थे, वचन को दृढ़ करता रहा। आमीन। (IN)

लूका 1:1 ¶ बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है। (IN)

लूका 1:2 जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे हम तक पहुँचाया। (IN)

लूका 1:3 इसलिए हे श्रीमान थियुफिलुस मुझे भी यह उचित मालूम हुआ कि उन सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक-ठीक जाँच करके उन्हें तेरे लिये क्रमानुसार लिखूँ, (IN)

लूका 1:4 कि तू यह जान ले, कि वे बातें जिनकी तूने शिक्षा पाई है, कैसी अटल हैं। (IN)

लूका 1:5 ¶ यहूदिया के राजा हेरोदेस के समय अबिय्याह के दल में जकर्याह नाम का एक याजक था, और उसकी पत्‍नी हारून के वंश की थी, जिसका नाम एलीशिबा था। (IN)

लूका 1:6 और वे दोनों परमेश्‍वर के सामने धर्मी थे, और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियों पर निर्दोष चलने वाले थे। (IN)

लूका 1:7 उनके कोई सन्तान न थी, क्योंकि एलीशिबा बाँझ थी, और वे दोनों बूढ़े थे।। (IN)

लूका 1:8 ¶ जब वह अपने दल की पारी पर परमेश्‍वर के सामने याजक का काम करता था। (IN)

लूका 1:9 तो याजकों की रीति के अनुसार उसके नाम पर चिट्ठी निकली, कि प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाए। (IN)

लूका 1:10 और धूप जलाने के समय लोगों की सारी मण्डली बाहर प्रार्थना कर रही थी। (IN)

लूका 1:11 कि प्रभु का एक स्वर्गदूत धूप की वेदी की दाहिनी ओर खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया। (IN)

लूका 1:12 और जकर्याह देखकर घबराया और उस पर बड़ा भय छा गया। (IN)

लूका 1:13 परन्तु स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे जकर्याह, भयभीत न हो क्योंकि तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरी पत्‍नी एलीशिबा से तेरे लिये एक पुत्र उत्‍पन्‍न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना। (IN)

लूका 1:14 और तुझे आनन्द और हर्ष होगा और बहुत लोग उसके जन्म के कारण आनन्दित होंगे। (IN)

लूका 1:15 क्योंकि वह प्रभु के सामने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पीएगा; और अपनी माता के गर्भ ही से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाएगा। (IN)

लूका 1:16 और इस्राएलियों में से बहुतों को उनके प्रभु परमेश्‍वर की ओर फेरेगा। (IN)

लूका 1:17 वह एलिय्याह की आत्मा और सामर्थ्य में होकर उसके आगे-आगे चलेगा, कि पिताओं का मन बाल-बच्चों की ओर फेर दे; और आज्ञा न माननेवालों को धर्मियों की समझ पर लाए; और प्रभु के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे।” (IN)

लूका 1:18 जकर्याह ने स्वर्गदूत से पूछा, “यह मैं कैसे जानूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ; और मेरी पत्‍नी भी बूढ़ी हो गई है।” (IN)

लूका 1:19 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “मैं गब्रिएल हूँ, जो परमेश्‍वर के सामने खड़ा रहता हूँ; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूँ। (IN)

लूका 1:20 और देख, जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिए कि तूने मेरी बातों की जो अपने समय पर पूरी होंगी, विश्वास न किया।” (IN)

लूका 1:21 लोग जकर्याह की प्रतीक्षा करते रहे और अचम्भा करने लगे कि उसे मन्दिर में ऐसी देर क्यों लगी? (IN)

लूका 1:22 जब वह बाहर आया, तो उनसे बोल न सका अतः वे जान गए, कि उसने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और वह उनसे संकेत करता रहा, और गूँगा रह गया। (IN)

लूका 1:23 जब उसकी सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर चला गया। (IN)

लूका 1:24 इन दिनों के बाद उसकी पत्‍नी एलीशिबा गर्भवती हुई; और पाँच महीने तक अपने आप को यह कह के छिपाए रखा। (IN)

लूका 1:25 “मनुष्यों में मेरा अपमान दूर करने के लिये प्रभु ने इन दिनों में कृपादृष्टि करके मेरे लिये ऐसा किया है।” (IN)

लूका 1:26 ¶ छठवें महीने में परमेश्‍वर की ओर से गब्रिएल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में, (IN)

लूका 1:27 एक कुँवारी के पास भेजा गया। जिसकी मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरुष से हुई थी: उस कुँवारी का नाम मरियम था। (IN)

लूका 1:28 और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर परमेश्‍वर का अनुग्रह हुआ है! प्रभु तेरे साथ है!” (IN)

लूका 1:29 वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है? (IN)

लूका 1:30 स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्‍वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। (IN)

लूका 1:31 और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्‍पन्‍न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। (IN)

लूका 1:32 वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा। (IN)

लूका 1:33 और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (IN)

लूका 1:34 मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।” (IN)

लूका 1:35 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी; इसलिए वह पवित्र जो उत्‍पन्‍न होनेवाला है, परमेश्‍वर का पुत्र कहलाएगा। (IN)

लूका 1:36 और देख, और तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है। (IN)

लूका 1:37 परमेश्‍वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।” (IN)

लूका 1:38 मरियम ने कहा, “देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार मेरे साथ ऐसा हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया। (IN)

लूका 1:39 ¶ उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई। (IN)

लूका 1:40 और जकर्याह के घर में जाकर एलीशिबा को नमस्कार किया। (IN)

लूका 1:41 जैसे ही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, वैसे ही बच्चा उसके पेट में उछला, और एलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई। (IN)

लूका 1:42 और उसने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है! (IN)

लूका 1:43 और यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई? (IN)

लूका 1:44 और देख जैसे ही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा वैसे ही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा। (IN)

लूका 1:45 और धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गई, वे पूरी होंगी।” (IN)

लूका 1:46 ¶ तब मरियम ने कहा, (IN)

लूका 1:47 और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले (IN)

लूका 1:48 क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर (IN)

लूका 1:49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े- (IN)

लूका 1:50 और उसकी दया उन पर, (IN)

लूका 1:51 उसने अपना भुजबल दिखाया, (IN)

लूका 1:52 उसने शासकों को सिंहासनों से (IN)

लूका 1:53 उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से (IN)

लूका 1:54 उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल (IN)

लूका 1:55 जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी, (IN)

लूका 1:56 ¶ मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई। (IN)

लूका 1:57 ¶ तब एलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और वह पुत्र जनी। (IN)

लूका 1:58 उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने यह सुन कर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साथ आनन्दित हुए। (IN)

लूका 1:59 और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखने लगे। (IN)

लूका 1:60 और उसकी माता ने उत्तर दिया, “नहीं; वरन् उसका नाम यूहन्ना रखा जाए।” (IN)

लूका 1:61 और उन्होंने उससे कहा, “तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं।” (IN)

लूका 1:62 तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है? (IN)

लूका 1:63 और उसने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, “उसका नाम यूहन्ना है,” और सभी ने अचम्भा किया। (IN)

लूका 1:64 तब उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्‍वर की स्तुति करने लगा। (IN)

लूका 1:65 और उसके आस-पास के सब रहनेवालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई। (IN)

लूका 1:66 और सब सुननेवालों ने अपने-अपने मन में विचार करके कहा, “यह बालक कैसा होगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था। (IN)

लूका 1:67 ¶ और उसका पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्वाणी करने लगा। (IN)

लूका 1:68 “प्रभु इस्राएल का परमेश्‍वर धन्य हो, (IN)

लूका 1:69 और अपने सेवक दाऊद के घराने में (IN)

लूका 1:70 जैसे उसने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं (IN)

लूका 1:71 अर्थात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब (IN)

लूका 1:72 कि हमारे पूर्वजों पर दया करके अपनी (IN)

लूका 1:73 और वह शपथ जो उसने हमारे पिता (IN)

लूका 1:74 कि वह हमें यह देगा, कि हम अपने (IN)

लूका 1:75 उसके सामने पवित्रता और धार्मिकता (IN)

लूका 1:76 और तू हे बालक, परमप्रधान का (IN)

लूका 1:77 कि उसके लोगों को उद्धार का ज्ञान दे, (IN)

लूका 1:78 यह हमारे परमेश्‍वर की उसी बड़ी करुणा से होगा; (IN)

लूका 1:79 कि अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठनेवालों को ज्योति दे, (IN)

लूका 1:80 ¶ और वह बालक यूहन्ना, बढ़ता और आत्मा में बलवन्त होता गया और इस्राएल पर प्रगट होने के दिन तक जंगलों में रहा। (IN)

लूका 2:1 ¶ उन दिनों में औगुस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे रोमी साम्राज्य के लोगों के नाम लिखे जाएँ। (IN)

लूका 2:2 यह पहली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्विरिनियुस सीरिया का राज्यपाल था। (IN)

लूका 2:3 और सब लोग नाम लिखवाने के लिये अपने-अपने नगर को गए। (IN)

लूका 2:4 अतः यूसुफ भी इसलिए कि वह दाऊद के घराने और वंश का था, गलील के नासरत नगर से यहूदिया में दाऊद के नगर बैतलहम को गया। (IN)

लूका 2:5 कि अपनी मंगेतर मरियम के साथ जो गर्भवती थी नाम लिखवाए। (IN)

लूका 2:6 उनके वहाँ रहते हुए उसके जनने के दिन पूरे हुए। (IN)

लूका 2:7 और वह अपना पहलौठा पुत्र जनी और उसे कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा; क्योंकि उनके लिये सराय में जगह न थी। (IN)

लूका 2:8 ¶ और उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे। (IN)

लूका 2:9 और परमेश्‍वर का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ; और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका, और वे बहुत डर गए। (IN)

लूका 2:10 तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “मत डरो; क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ; जो सब लोगों के लिये होगा, (IN)

लूका 2:11 कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और वही मसीह प्रभु है। (IN)

लूका 2:12 और इसका तुम्हारे लिये यह चिन्ह है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।” (IN)

लूका 2:13 तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का दल परमेश्‍वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया, (IN)

लूका 2:14 “आकाश में परमेश्‍वर की महिमा और (IN)

लूका 2:15 ¶ जब स्वर्गदूत उनके पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, “आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।” (IN)

लूका 2:16 और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा। (IN)

लूका 2:17 इन्हें देखकर उन्होंने वह बात जो इस बालक के विषय में उनसे कही गई थी, प्रगट की। (IN)

लूका 2:18 और सब सुननेवालों ने उन बातों से जो गड़ेरियों ने उनसे कहीं आश्चर्य किया। (IN)

लूका 2:19 परन्तु मरियम ये सब बातें अपने मन में रखकर सोचती रही। (IN)

लूका 2:20 और गड़ेरिये जैसा उनसे कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्‍वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए। (IN)

लूका 2:21 ¶ जब आठ दिन पूरे हुए, और उसके खतने का समय आया, तो उसका नाम यीशु रखा गया, यह नाम स्वर्गदूत द्वारा, उसके गर्भ में आने से पहले दिया गया था। (IN)

लूका 2:22 और जब मूसा की व्यवस्था के अनुसार मरियम के शुद्ध होने के दिन पूरे हुए तो यूसुफ और मरियम उसे यरूशलेम में ले गए, कि प्रभु के सामने लाएँ। (IN)

लूका 2:23 जैसा कि प्रभु की व्यवस्था में लिखा है: “हर एक पहलौठा प्रभु के लिये पवित्र ठहरेगा।” (IN)

लूका 2:24 और प्रभु की व्यवस्था के वचन के अनुसार, “पण्‍डुकों का एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे लाकर बलिदान करें।” (IN)

लूका 2:25 ¶ उस समय यरूशलेम में शमौन नामक एक मनुष्य था, और वह मनुष्य धर्मी और भक्त था; और इस्राएल की शान्ति की प्रतीक्षा कर रहा था, और पवित्र आत्मा उस पर था। (IN)

लूका 2:26 और पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकट हुआ, कि जब तक तू प्रभु के मसीह को देख न लेगा, तब-तक मृत्यु को न देखेगा। (IN)

लूका 2:27 और वह आत्मा के सिखाने से मन्दिर में आया; और जब माता-पिता उस बालक यीशु को भीतर लाए, कि उसके लिये व्यवस्था की रीति के अनुसार करें, (IN)

लूका 2:28 तो उसने उसे अपनी गोद में लिया और परमेश्‍वर का धन्यवाद करके कहा: (IN)

लूका 2:29 “हे प्रभु, अब तू अपने दास को अपने (IN)

लूका 2:30 क्योंकि मेरी आँखों ने तेरे उद्धार को देख (IN)

लूका 2:31 जिसे तूने सब देशों के लोगों के सामने (IN)

लूका 2:32 कि वह अन्यजातियों को सत्य प्रकट करने के (IN)

लूका 2:33 ¶ और उसका पिता और उसकी माता इन बातों से जो उसके विषय में कही जाती थीं, आश्चर्य करते थे। (IN)

लूका 2:34 तब शमौन ने उनको आशीष देकर, उसकी माता मरियम से कहा, “देख, वह तो इस्राएल में बहुतों के गिरने, और उठने के लिये, और एक ऐसा चिन्ह होने के लिये ठहराया गया है, जिसके विरोध में बातें की जाएँगी (IN)

लूका 2:35 (वरन् तेरा प्राण भी तलवार से आर-पार छिद जाएगा) इससे बहुत हृदयों के विचार प्रगट होंगे।” (IN)

लूका 2:36 ¶ और आशेर के गोत्र में से हन्नाह नामक फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन थी: वह बहुत बूढ़ी थी, और विवाह होने के बाद सात वर्ष अपने पति के साथ रह पाई थी। (IN)

लूका 2:37 वह चौरासी वर्ष की विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी। (IN)

लूका 2:38 और वह उस घड़ी वहाँ आकर परमेश्‍वर का धन्यवाद करने लगी, और उन सभी से, जो यरूशलेम के छुटकारे की प्रतीक्षा कर रहे थे, उसके विषय में बातें करने लगी। (IN)

लूका 2:39 ¶ और जब वे प्रभु की व्यवस्था के अनुसार सब कुछ निपटा चुके तो गलील में अपने नगर नासरत को फिर चले गए। (IN)

लूका 2:40 और बालक बढ़ता, और बलवन्त होता, और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया; और परमेश्‍वर का अनुग्रह उस पर था। (IN)

लूका 2:41 ¶ उसके माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्व में यरूशलेम को जाया करते थे। (IN)

लूका 2:42 जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए। (IN)

लूका 2:43 और जब वे उन दिनों को पूरा करके लौटने लगे, तो वह बालक यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे। (IN)

लूका 2:44 वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचान वालों में ढूँढ़ने लगे। (IN)

लूका 2:45 पर जब नहीं मिला, तो ढूँढ़ते-ढूँढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए। (IN)

लूका 2:46 और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उनकी सुनते और उनसे प्रश्न करते हुए पाया। (IN)

लूका 2:47 और जितने उसकी सुन रहे थे, वे सब उसकी समझ और उसके उत्तरों से चकित थे। (IN)

लूका 2:48 तब वे उसे देखकर चकित हुए और उसकी माता ने उससे कहा, “हे पुत्र, तूने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूँढ़ते थे।” (IN)

लूका 2:49 उसने उनसे कहा, “तुम मुझे क्यों ढूँढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?” (IN)

लूका 2:50 परन्तु जो बात उसने उनसे कही, उन्होंने उसे नहीं समझा। (IN)

लूका 2:51 तब वह उनके साथ गया, और नासरत में आया, और उनके वश में रहा; और उसकी माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं। (IN)

लूका 2:52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्‍वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया। (IN)

लूका 3:1 ¶ तिबिरियुस कैसर के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में जब पुन्तियुस पिलातुस यहूदिया का राज्यपाल था, और गलील में हेरोदेस इतूरैया, और त्रखोनीतिस में, उसका भाई फिलिप्पुस, और अबिलेने में लिसानियास चौथाई के राजा थे। (IN)

लूका 3:2 और जब हन्ना और कैफा महायाजक थे, उस समय परमेश्‍वर का वचन जंगल में जकर्याह के पुत्र यूहन्ना के पास पहुँचा। (IN)

लूका 3:3 और वह यरदन के आस-पास के सारे प्रदेश में आकर, पापों की क्षमा के लिये मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करने लगा। (IN)

लूका 3:4 जैसे यशायाह भविष्यद्वक्ता के कहे हुए वचनों की पुस्तक में लिखा है: (IN)

लूका 3:5 हर एक घाटी भर दी जाएगी, और हर एक (IN)

लूका 3:6 और हर प्राणी परमेश्‍वर के उद्धार को देखेगा’।” (IN)

लूका 3:7 ¶ जो बड़ी भीड़ उससे बपतिस्मा लेने को निकलकर आती थी, उनसे वह कहता था, “हे साँप के बच्चों, तुम्हें किस ने चेतावनी दी, कि आनेवाले क्रोध से भागो? (IN)

लूका 3:8 अतः मन फिराव के योग्य फल लाओ: और अपने-अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता अब्राहम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्‍वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिये सन्तान उत्‍पन्‍न कर सकता है। (IN)

लूका 3:9 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।” (IN)

लूका 3:10 और लोगों ने उससे पूछा, “तो हम क्या करें?” (IN)

लूका 3:11 उसने उन्हें उतर दिया, “जिसके पास दो कुर्ते हों? वह उसके साथ जिसके पास नहीं हैं बाँट ले और जिसके पास भोजन हो, वह भी ऐसा ही करे।” (IN)

लूका 3:12 और चुंगी लेनेवाले भी बपतिस्मा लेने आए, और उससे पूछा, “हे गुरु, हम क्या करें?” (IN)

लूका 3:13 उसने उनसे कहा, “जो तुम्हारे लिये ठहराया गया है, उससे अधिक न लेना।” (IN)

लूका 3:14 और सिपाहियों ने भी उससे यह पूछा, “हम क्या करें?” उसने उनसे कहा, “किसी पर उपद्रव न करना, और न झूठा दोष लगाना, और अपनी मजदूरी पर सन्तोष करना।” (IN)

लूका 3:15 जब लोग आस लगाए हुए थे, और सब अपने-अपने मन में यूहन्ना के विषय में विचार कर रहे थे, कि क्या यही मसीह तो नहीं है। (IN)

लूका 3:16 तो यूहन्ना ने उन सब के उत्तर में कहा, “मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु वह आनेवाला है, जो मुझसे शक्तिशाली है; मैं तो इस योग्य भी नहीं, कि उसके जूतों का फीता खोल सकूँ, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। (IN)

लूका 3:17 उसका सूप, उसके हाथ में है; और वह अपना खलिहान अच्छी तरह से साफ करेगा; और गेहूँ को अपने खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जो बुझने की नहीं जला देगा।” (IN)

लूका 3:18 अतः वह बहुत सी शिक्षा दे देकर लोगों को सुसमाचार सुनाता रहा। (IN)

लूका 3:19 ¶ परन्तु उसने चौथाई देश के राजा हेरोदेस को उसके भाई फिलिप्पुस की पत्‍नी हेरोदियास के विषय, और सब कुकर्मों के विषय में जो उसने किए थे, उलाहना दिया। (IN)

लूका 3:20 इसलिए हेरोदेस ने उन सबसे बढ़कर यह कुकर्म भी किया, कि यूहन्ना को बन्दीगृह में डाल दिया। (IN)

लूका 3:21 ¶ जब सब लोगों ने बपतिस्मा लिया, और यीशु भी बपतिस्मा लेकर प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया। (IN)

लूका 3:22 और पवित्र आत्मा शारीरिक रूप में कबूतर के समान उस पर उतरा, और यह आकाशवाणी हुई “तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्‍न हूँ।” (IN)

लूका 3:23 ¶ जब यीशु आप उपदेश करने लगा, तो लगभग तीस वर्ष की आयु का था और (जैसा समझा जाता था) यूसुफ का पुत्र था; और वह एली का, (IN)

लूका 3:24 और वह मत्तात का, और वह लेवी का, और वह मलकी का, और वह यन्ना का, और वह यूसुफ का, (IN)

लूका 3:25 और वह मत्तित्याह का, और वह आमोस का, और वह नहूम का, और वह असल्याह का, और वह नग्‍गई का, (IN)

लूका 3:26 और वह मात का, और वह मत्तित्याह का, और वह शिमी का, और वह योसेख का, और वह योदाह का, (IN)

लूका 3:27 और वह यूहन्ना का, और वह रेसा का, और वह जरुब्बाबेल का, और वह शालतियेल का, और वह नेरी का, (IN)

लूका 3:28 और वह मलकी का, और वह अद्दी का, और वह कोसाम का, और वह एल्‍मदाम का, और वह एर का, (IN)

लूका 3:29 और वह येशू का, और वह एलीएजेर का, और वह योरीम का, और वह मत्तात का, और वह लेवी का, (IN)

लूका 3:30 और वह शमौन का, और वह यहूदा का, और वह यूसुफ का, और वह योनान का, और वह एलयाकीम का, (IN)

लूका 3:31 और वह मलेआह का, और वह मिन्नाह का, और वह मत्तता का, और वह नातान का, और वह दाऊद का, (IN)

लूका 3:32 और वह यिशै का, और वह ओबेद का, और वह बोआज का, और वह सलमोन का, और वह नहशोन का, (IN)

लूका 3:33 और वह अम्मीनादाब का, और वह अरनी का, और वह हेस्रोन का, और वह पेरेस का, और वह यहूदा का, (IN)

लूका 3:34 और वह याकूब का, और वह इसहाक का, और वह अब्राहम का, और वह तेरह का, और वह नाहोर का, (IN)

लूका 3:35 और वह सरूग का, और वह रऊ का, और वह पेलेग का, और वह एबेर का, और वह शिलह का, (IN)

लूका 3:36 और वह केनान का, वह अरफक्षद का, और वह शेम का, वह नूह का, वह लेमेक‍ का, (IN)

लूका 3:37 और वह मथूशिलह का, और वह हनोक का, और वह यिरिद का, और वह महललेल का, और वह केनान का, (IN)

लूका 3:38 और वह एनोश का, और वह शेत का, और वह आदम का, और वह परमेश्‍वर का पुत्र था। (IN)

लूका 4:1 ¶ फिर यीशु पवित्र आत्मा से भरा हुआ, यरदन से लौटा; और आत्मा की अगुआई से जंगल में फिरता रहा; (IN)

लूका 4:2 और चालीस दिन तक शैतान उसकी परीक्षा करता रहा। उन दिनों में उसने कुछ न खाया और जब वे दिन पूरे हो गए, तो उसे भूख लगी। (IN)

लूका 4:3 और शैतान ने उससे कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो इस पत्थर से कह, कि रोटी बन जाए।” (IN)

लूका 4:4 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: ‘मनुष्य केवल रोटी से जीवित न रहेगा’।” (IN)

लूका 4:5 तब शैतान उसे ले गया और उसको पल भर में जगत के सारे राज्य दिखाए। (IN)

लूका 4:6 और उससे कहा, “मैं यह सब अधिकार, और इनका वैभव तुझे दूँगा, क्योंकि वह मुझे सौंपा गया है, और जिसे चाहता हूँ, उसे दे सकता हूँ। (IN)

लूका 4:7 इसलिए, यदि तू मुझे प्रणाम करे, तो यह सब तेरा हो जाएगा।” (IN)

लूका 4:8 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर’।” (IN)

लूका 4:9 तब उसने उसे यरूशलेम में ले जाकर मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उससे कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो अपने आप को यहाँ से नीचे गिरा दे। (IN)

लूका 4:10 क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, कि वे तेरी रक्षा करें’ (IN)

लूका 4:11 और ‘वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे ऐसा न हो कि तेरे पाँव में पत्थर से ठेस लगे’।” (IN)

लूका 4:12 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यह भी कहा गया है: ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर की परीक्षा न करना’।” (IN)

लूका 4:13 जब शैतान सब परीक्षा कर चुका, तब कुछ समय के लिये उसके पास से चला गया। (IN)

लूका 4:14 ¶ फिर यीशु पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भरा हुआ, गलील को लौटा, और उसकी चर्चा आस-पास के सारे देश में फैल गई। (IN)

लूका 4:15 और वह उन ही आराधनालयों में उपदेश करता रहा, और सब उसकी बड़ाई करते थे।। (IN)

लूका 4:16 ¶ और वह नासरत में आया; जहाँ उसका पालन-पोषण हुआ था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। (IN)

लूका 4:17 यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहाँ यह लिखा था : (IN)

लूका 4:18 “प्रभु का आत्मा मुझ पर है, (IN)

लूका 4:19 और प्रभु के प्रसन्‍न रहने के वर्ष का प्रचार करूँ।” (IN)

लूका 4:20 ¶ तब उसने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी, और बैठ गया: और आराधनालय के सब लोगों की आँखें उस पर लगी थी। (IN)

लूका 4:21 तब वह उनसे कहने लगा, “आज ही यह लेख तुम्हारे सामने पूरा हुआ है।” (IN)

लूका 4:22 और सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुँह से निकलती थीं, उनसे अचम्भित हुए; और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?” (IN)

लूका 4:23 उसने उनसे कहा, “तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे, ‘कि हे वैद्य, अपने आप को अच्छा कर! जो कुछ हमने सुना है कि कफरनहूम में तूने किया है उसे यहाँ अपने देश में भी कर’।” (IN)

लूका 4:24 और उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कोई भविष्यद्वक्ता अपने देश में मान-सम्मान नहीं पाता। (IN)

लूका 4:25 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे देश में बड़ा आकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएँ थीं। (IN)

लूका 4:26 पर एलिय्याह को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सीदोन के सारफत में एक विधवा के पास। (IN)

लूका 4:27 और एलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर सीरिया वासी नामान को छोड़ उनमें से काई शुद्ध नहीं किया गया।” (IN)

लूका 4:28 ये बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए। (IN)

लूका 4:29 और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उनका नगर बसा हुआ था, उसकी चोटी पर ले चले, कि उसे वहाँ से नीचे गिरा दें। (IN)

लूका 4:30 पर वह उनके बीच में से निकलकर चला गया।। (IN)

लूका 4:31 ¶ फिर वह गलील के कफरनहूम नगर में गया, और सब्त के दिन लोगों को उपदेश दे रहा था। (IN)

लूका 4:32 वे उसके उपदेश से चकित हो गए क्योंकि उसका वचन अधिकार सहित था। (IN)

लूका 4:33 आराधनालय में एक मनुष्य था, जिसमें अशुद्ध आत्मा थी। (IN)

लूका 4:34 वह ऊँचे शब्द से चिल्ला उठा, “हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं तुझे जानता हूँ तू कौन है? तू परमेश्‍वर का पवित्र जन है!” (IN)

लूका 4:35 यीशु ने उसे डाँटकर कहा, “चुप रह और उसमें से निकल जा!” तब दुष्टात्मा उसे बीच में पटककर बिना हानि पहुँचाए उसमें से निकल गई। (IN)

लूका 4:36 इस पर सब को अचम्भा हुआ, और वे आपस में बातें करके कहने लगे, “यह कैसा वचन है? कि वह अधिकार और सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आज्ञा देता है, और वे निकल जाती हैं।” (IN)

लूका 4:37 अतः चारों ओर हर जगह उसकी चर्चा होने लगी। (IN)

लूका 4:38 ¶ वह आराधनालय में से उठकर शमौन के घर में गया और शमौन की सास को तेज बुखार था, और उन्होंने उसके लिये उससे विनती की। (IN)

लूका 4:39 उसने उसके निकट खड़े होकर ज्वर को डाँटा और ज्वर उतर गया और वह तुरन्त उठकर उनकी सेवा-टहल करने लगी। (IN)

लूका 4:40 सूरज डूबते समय जिन-जिनके यहाँ लोग नाना प्रकार की बीमारियों में पड़े हुए थे, वे सब उन्हें उसके पास ले आएँ, और उसने एक-एक पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। (IN)

लूका 4:41 और दुष्टात्मा चिल्लाती और यह कहती हुई, “तू परमेश्‍वर का पुत्र है,” बहुतों में से निकल गई पर वह उन्हें डाँटता और बोलने नहीं देता था, क्योंकि वे जानती थी, कि यह मसीह है। (IN)

लूका 4:42 ¶ जब दिन हुआ तो वह निकलकर एक एकांत स्थान में गया, और बड़ी भीड़ उसे ढूँढ़ती हुई उसके पास आई, और उसे रोकने लगी, कि हमारे पास से न जा। (IN)

लूका 4:43 परन्तु उसने उनसे कहा, “मुझे और नगरों में भी परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्य है, क्योंकि मैं इसलिए भेजा गया हूँ।” (IN)

लूका 4:44 और वह गलील के आराधनालयों में प्रचार करता रहा। (IN)

लूका 5:1 ¶ जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी, और परमेश्‍वर का वचन सुनती थी, और वह गन्नेसरत की झील के किनारे पर खड़ा था, तो ऐसा हुआ। (IN)

लूका 5:2 कि उसने झील के किनारे दो नावें लगी हुई देखीं, और मछुए उन पर से उतरकर जाल धो रहे थे। (IN)

लूका 5:3 उन नावों में से एक पर, जो शमौन की थी, चढ़कर, उसने उससे विनती की, कि किनारे से थोड़ा हटा ले चले, तब वह बैठकर लोगों को नाव पर से उपदेश देने लगा। (IN)

लूका 5:4 जब वह बातें कर चुका, तो शमौन से कहा, “गहरे में ले चल, और मछलियाँ पकड़ने के लिये अपने जाल डालो।” (IN)

लूका 5:5 शमौन ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, हमने सारी रात मेहनत की और कुछ न पकड़ा; तो भी तेरे कहने से जाल डालूँगा।” (IN)

लूका 5:6 जब उन्होंने ऐसा किया, तो बहुत मछलियाँ घेर लाए, और उनके जाल फटने लगे। (IN)

लूका 5:7 इस पर उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे, संकेत किया, कि आकर हमारी सहायता करो: और उन्होंने आकर, दोनों नाव यहाँ तक भर लीं कि वे डूबने लगीं। (IN)

लूका 5:8 यह देखकर शमौन पतरस यीशु के पाँवों पर गिरा, और कहा, “हे प्रभु, मेरे पास से जा, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूँ!” (IN)

लूका 5:9 क्योंकि इतनी मछलियों के पकड़े जाने से उसे और उसके साथियों को बहुत अचम्भा हुआ; (IN)

लूका 5:10 और वैसे ही जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना को भी, जो शमौन के सहभागी थे, अचम्भा हुआ तब यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर, अब से तू मनुष्यों को जीविता पकड़ा करेगा।” (IN)

लूका 5:11 और वे नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए। (IN)

लूका 5:12 ¶ जब वह किसी नगर में था, तो वहाँ कोढ़ से भरा हुआ एक मनुष्य आया, और वह यीशु को देखकर मुँह के बल गिरा, और विनती की, “हे प्रभु यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” (IN)

लूका 5:13 उसने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” और उसका कोढ़ तुरन्त जाता रहा। (IN)

लूका 5:14 तब उसने उसे चिताया, “किसी से न कह, परन्तु जा के अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने चढ़ावा ठहराया है उसे चढ़ा कि उन पर गवाही हो।” (IN)

लूका 5:15 परन्तु उसकी चर्चा और भी फैलती गई, और बड़ी भीड़ उसकी सुनने के लिये और अपनी बीमारियों से चंगे होने के लिये इकट्ठी हुई। (IN)

लूका 5:16 परन्तु वह निर्जन स्थानों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था। (IN)

लूका 5:17 ¶ और एक दिन ऐसा हुआ कि वह उपदेश दे रहा था, और फरीसी और व्यवस्थापक वहाँ बैठे हुए थे, जो गलील और यहूदिया के हर एक गाँव से, और यरूशलेम से आए थे; और चंगा करने के लिये प्रभु की सामर्थ्य उसके साथ थी। (IN)

लूका 5:18 और देखो कई लोग एक मनुष्य को जो लकवे का रोगी था, खाट पर लाए, और वे उसे भीतर ले जाने और यीशु के सामने रखने का उपाय ढूँढ़ रहे थे। (IN)

लूका 5:19 और जब भीड़ के कारण उसे भीतर न ले जा सके तो उन्होंने छत पर चढ़कर और खपरैल हटाकर, उसे खाट समेत बीच में यीशु के सामने उतार दिया। (IN)

लूका 5:20 उसने उनका विश्वास देखकर उससे कहा, “हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।” (IN)

लूका 5:21 तब शास्त्री और फरीसी विवाद करने लगे, “यह कौन है, जो परमेश्‍वर की निन्दा करता है? परमेश्‍वर को छोड़ कौन पापों की क्षमा कर सकता है?” (IN)

लूका 5:22 यीशु ने उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “तुम अपने मनों में क्या विवाद कर रहे हो? (IN)

लूका 5:23 सहज क्या है? क्या यह कहना, कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए,’ या यह कहना कि ‘उठ और चल फिर?’ (IN)

लूका 5:24 परन्तु इसलिए कि तुम जानो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” (IN)

लूका 5:25 वह तुरन्त उनके सामने उठा, और जिस पर वह पड़ा था उसे उठाकर, परमेश्‍वर की बड़ाई करता हुआ अपने घर चला गया। (IN)

लूका 5:26 तब सब चकित हुए और परमेश्‍वर की बड़ाई करने लगे, और बहुत डरकर कहने लगे, “आज हमने अनोखी बातें देखी हैं।” (IN)

लूका 5:27 ¶ और इसके बाद वह बाहर गया, और लेवी नाम एक चुंगी लेनेवाले को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” (IN)

लूका 5:28 तब वह सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया। (IN)

लूका 5:29 ¶ और लेवी ने अपने घर में उसके लिये एक बड़ा भोज दिया; और चुंगी लेनेवालों की और अन्य लोगों की जो उसके साथ भोजन करने बैठे थे एक बड़ी भीड़ थी। (IN)

लूका 5:30 और फरीसी और उनके शास्त्री उसके चेलों से यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, “तुम चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?” (IN)

लूका 5:31 ¶ यीशु ने उनको उत्तर दिया, “वैद्य भले चंगों के लिये नहीं, परन्तु बीमारों के लिये अवश्य है। (IN)

लूका 5:32 मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूँ।” (IN)

लूका 5:33 और उन्होंने उससे कहा, “यूहन्ना के चेले तो बराबर उपवास रखते और प्रार्थना किया करते हैं, और वैसे ही फरीसियों के भी, परन्तु तेरे चेले तो खाते-पीते हैं।” (IN)

लूका 5:34 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम बारातियों से जब तक दूल्हा उनके साथ रहे, उपवास करवा सकते हो? (IN)

लूका 5:35 परन्तु वे दिन आएँगे, जिनमें दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।” (IN)

लूका 5:36 उसने एक और दृष्टान्त भी उनसे कहा: “कोई मनुष्य नये वस्त्र में से फाड़कर पुराने वस्त्र में पैबन्द नहीं लगाता, नहीं तो नया फट जाएगा और वह पैबन्द पुराने में मेल भी नहीं खाएगा। (IN)

लूका 5:37 और कोई नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नया दाखरस मशकों को फाड़कर बह जाएगा, और मशकें भी नाश हो जाएँगी। (IN)

लूका 5:38 परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरना चाहिये। (IN)

लूका 5:39 कोई मनुष्य पुराना दाखरस पीकर नया नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, कि पुराना ही अच्छा है।” (IN)

लूका 6:1 ¶ फिर सब्त के दिन वह खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके चेले बालें तोड़-तोड़कर, और हाथों से मल-मल कर खाते जाते थे। (IN)

लूका 6:2 तब फरीसियों में से कुछ कहने लगे, “तुम वह काम क्यों करते हो जो सब्त के दिन करना उचित नहीं?” (IN)

लूका 6:3 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम ने यह नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने जब वह और उसके साथी भूखे थे तो क्या किया? (IN)

लूका 6:4 वह कैसे परमेश्‍वर के घर में गया, और भेंट की रोटियाँ लेकर खाई, जिन्हें खाना याजकों को छोड़ और किसी को उचित नहीं, और अपने साथियों को भी दी?” (IN)

लूका 6:5 और उसने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है।” (IN)

लूका 6:6 ¶ और ऐसा हुआ कि किसी और सब्त के दिन को वह आराधनालय में जाकर उपदेश करने लगा; और वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दाहिना हाथ सूखा था। (IN)

लूका 6:7 शास्त्री और फरीसी उस पर दोष लगाने का अवसर पाने के लिये उसकी ताक में थे, कि देखें कि वह सब्त के दिन चंगा करता है कि नहीं। (IN)

लूका 6:8 परन्तु वह उनके विचार जानता था; इसलिए उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा, “उठ, बीच में खड़ा हो।” वह उठ खड़ा हुआ। (IN)

लूका 6:9 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से यह पूछता हूँ कि सब्त के दिन क्या उचित है, भला करना या बुरा करना; प्राण को बचाना या नाश करना?” (IN)

लूका 6:10 और उसने चारों ओर उन सभी को देखकर उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।” उसने ऐसा ही किया, और उसका हाथ फिर चंगा हो गया। (IN)

लूका 6:11 परन्तु वे आपे से बाहर होकर आपस में विवाद करने लगे कि हम यीशु के साथ क्या करें? (IN)

लूका 6:12 ¶ और उन दिनों में वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को निकला, और परमेश्‍वर से प्रार्थना करने में सारी रात बिताई। (IN)

लूका 6:13 जब दिन हुआ, तो उसने अपने चेलों को बुलाकर उनमें से बारह चुन लिए, और उनको प्रेरित कहा। (IN)

लूका 6:14 और वे ये हैं: शमौन जिसका नाम उसने पतरस भी रखा; और उसका भाई अन्द्रियास, और याकूब, और यूहन्ना, और फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, (IN)

लूका 6:15 और मत्ती, और थोमा, और हलफईस का पुत्र याकूब, और शमौन जो जेलोतेस कहलाता है, (IN)

लूका 6:16 और याकूब का बेटा यहूदा, और यहूदा इस्करियोती, जो उसका पकड़वानेवाला बना। (IN)

लूका 6:17 ¶ तब वह उनके साथ उतरकर चौरस जगह में खड़ा हुआ, और उसके चेलों की बड़ी भीड़, और सारे यहूदिया, और यरूशलेम, और सोर और सीदोन के समुद्र के किनारे से बहुत लोग, (IN)

लूका 6:18 जो उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से चंगा होने के लिये उसके पास आए थे, वहाँ थे। और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुए लोग भी अच्छे किए जाते थे। (IN)

लूका 6:19 और सब उसे छूना चाहते थे, क्योंकि उसमें से सामर्थ्य निकलकर सब को चंगा करती थी। (IN)

लूका 6:20 ¶ तब उसने अपने चेलों की ओर देखकर कहा, (IN)

लूका 6:21 “धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो; (IN)

लूका 6:22 “धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्र के (IN)

लूका 6:23 ¶ “उस दिन आनन्दित होकर उछलना, क्योंकि देखो, तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। उनके पूर्वज भविष्यद्वक्ताओं के साथ भी वैसा ही किया करते थे। (IN)

लूका 6:24 “परन्तु हाय तुम पर जो धनवान हो, (IN)

लूका 6:25 “हाय तुम पर जो अब तृप्त हो, (IN)

लूका 6:26 “हाय, तुम पर जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें, (IN)

लूका 6:27 ¶ “परन्तु मैं तुम सुननेवालों से कहता हूँ, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उनका भला करो। (IN)

लूका 6:28 जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिये प्रार्थना करो। (IN)

लूका 6:29 जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दूसरा भी फेर दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उसको कुर्ता लेने से भी न रोक। (IN)

लूका 6:30 जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उससे न माँग। (IN)

लूका 6:31 और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो। (IN)

लूका 6:32 ¶ “यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखनेवालों के साथ प्रेम रखते हैं। (IN)

लूका 6:33 और यदि तुम अपने भलाई करनेवालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं। (IN)

लूका 6:34 और यदि तुम उसे उधार दो, जिनसे फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएँ। (IN)

लूका 6:35 वरन् अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो, और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। (IN)

लूका 6:36 जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो। (IN)

लूका 6:37 ¶ “दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: क्षमा करो, तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। (IN)

लूका 6:38 दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा-दबाकर और हिला-हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।” (IN)

लूका 6:39 ¶ फिर उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा: “क्या अंधा, अंधे को मार्ग बता सकता है? क्या दोनों गड्ढे में नहीं गिरेंगे? (IN)

लूका 6:40 चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं, परन्तु जो कोई सिद्ध होगा, वह अपने गुरु के समान होगा। (IN)

लूका 6:41 तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? (IN)

लूका 6:42 और जब तू अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई, ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ?’ हे कपटी, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, भली भाँति देखकर निकाल सकेगा। (IN)

लूका 6:43 ¶ “कोई अच्छा पेड़ नहीं, जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है, जो अच्छा फल लाए। (IN)

लूका 6:44 हर एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है; क्योंकि लोग झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते, और न झड़बेरी से अंगूर। (IN)

लूका 6:45 भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है। (IN)

लूका 6:46 ¶ “जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ कहते हो? (IN)

लूका 6:47 जो कोई मेरे पास आता है, और मेरी बातें सुनकर उन्हें मानता है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि वह किसके समान है? (IN)

लूका 6:48 वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने घर बनाते समय भूमि गहरी खोदकर चट्टान में नींव डाली, और जब बाढ़ आई तो धारा उस घर पर लगी, परन्तु उसे हिला न सकी; क्योंकि वह पक्का बना था। (IN)

लूका 6:49 परन्तु जो सुनकर नहीं मानता, वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने मिट्टी पर बिना नींव का घर बनाया। जब उस पर धारा लगी, तो वह तुरन्त गिर पड़ा, और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।” (IN)

लूका 7:1 ¶ जब वह लोगों को अपनी सारी बातें सुना चुका, तो कफरनहूम में आया। (IN)

लूका 7:2 और किसी सूबेदार का एक दास जो उसका प्रिय था, बीमारी से मरने पर था। (IN)

लूका 7:3 उसने यीशु की चर्चा सुनकर यहूदियों के कई प्राचीनों को उससे यह विनती करने को उसके पास भेजा, कि आकर मेरे दास को चंगा कर। (IN)

लूका 7:4 वे यीशु के पास आकर उससे बड़ी विनती करके कहने लगे, “वह इस योग्य है, कि तू उसके लिये यह करे, (IN)

लूका 7:5 क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम रखता है, और उसी ने हमारे आराधनालय को बनाया है।” (IN)

लूका 7:6 यीशु उनके साथ-साथ चला, पर जब वह घर से दूर न था, तो सूबेदार ने उसके पास कई मित्रों के द्वारा कहला भेजा, “हे प्रभु दुःख न उठा, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए। (IN)

लूका 7:7 इसी कारण मैंने अपने आप को इस योग्य भी न समझा, कि तेरे पास आऊँ, पर वचन ही कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। (IN)

लूका 7:8 मैं भी पराधीन मनुष्य हूँ; और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक को कहता हूँ, ‘जा,’ तो वह जाता है, और दूसरे से कहता हूँ कि ‘आ,’ तो आता है; और अपने किसी दास को कि ‘यह कर,’ तो वह उसे करता है।” (IN)

लूका 7:9 यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उसने मुँह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही थी कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, कि मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।” (IN)

लूका 7:10 और भेजे हुए लोगों ने घर लौटकर, उस दास को चंगा पाया। (IN)

लूका 7:11 ¶ थोड़े दिन के बाद वह नाईन नाम के एक नगर को गया, और उसके चेले, और बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी। (IN)

लूका 7:12 जब वह नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो, लोग एक मुर्दे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपनी माँ का एकलौता पुत्र था, और वह विधवा थी: और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे। (IN)

लूका 7:13 उसे देखकर प्रभु को तरस आया, और उसने कहा, “मत रो।” (IN)

लूका 7:14 तब उसने पास आकर अर्थी को छुआ; और उठानेवाले ठहर गए, तब उसने कहा, “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!” (IN)

लूका 7:15 तब वह मुर्दा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उसने उसे उसकी माँ को सौंप दिया। (IN)

लूका 7:16 इससे सब पर भय छा गया; और वे परमेश्‍वर की बड़ाई करके कहने लगे, “हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्‍वर ने अपने लोगों पर कृपादृष्‍टि की है।” (IN)

लूका 7:17 और उसके विषय में यह बात सारे यहूदिया और आस-पास के सारे देश में फैल गई।। (IN)

लूका 7:18 ¶ और यूहन्ना को उसके चेलों ने इन सब बातों का समाचार दिया। (IN)

लूका 7:19 तब यूहन्ना ने अपने चेलों में से दो को बुलाकर प्रभु के पास यह पूछने के लिये भेजा, “क्या आनेवाला तू ही है, या हम किसी और दूसरे की प्रतीक्षा करे?” (IN)

लूका 7:20 उन्होंने उसके पास आकर कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास यह पूछने को भेजा है, कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की प्रतीक्षा करे?” (IN)

लूका 7:21 उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और पीड़ाओं, और दुष्टात्माओं से छुड़ाया; और बहुत से अंधों को आँखें दी। (IN)

लूका 7:22 और उसने उनसे कहा, “जो कुछ तुम ने देखा और सुना है, जाकर यूहन्ना से कह दो; कि अंधे देखते हैं, लँगड़े चलते-फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं, बहरे सुनते है, और मुर्दे जिलाए जाते है, और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है। (IN)

लूका 7:23 धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।” (IN)

लूका 7:24 ¶ जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, “तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? (IN)

लूका 7:25 तो तुम फिर क्या देखने गए थे? क्या कोमल वस्त्र पहने हुए मनुष्य को? देखो, जो भड़कीला वस्त्र पहनते, और सुख-विलास से रहते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं। (IN)

लूका 7:26 तो फिर क्या देखने गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, वरन् भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को। (IN)

लूका 7:27 यह वही है, जिसके विषय में लिखा है: (IN)

लूका 7:28 ¶ मैं तुम से कहता हूँ, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना से बड़ा कोई नहीं पर जो परमेश्‍वर के राज्य में छोटे से छोटा है, वह उससे भी बड़ा है।” (IN)

लूका 7:29 और सब साधारण लोगों ने सुनकर और चुंगी लेनेवालों ने भी यूहन्ना का बपतिस्मा लेकर परमेश्‍वर को सच्चा मान लिया। (IN)

लूका 7:30 पर फरीसियों और व्यवस्थापकों ने उससे बपतिस्मा न लेकर परमेश्‍वर की मनसा को अपने विषय में टाल दिया। (IN)

लूका 7:31 ¶ “अतः मैं इस युग के लोगों की उपमा किस से दूँ कि वे किस के समान हैं? (IN)

लूका 7:32 वे उन बालकों के समान हैं जो बाजार में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं, ‘हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजाई, और तुम न नाचे, हमने विलाप किया, और तुम न रोए!’ (IN)

लूका 7:33 क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, उसमें दुष्टात्मा है। (IN)

लूका 7:34 मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया है; और तुम कहते हो, ‘देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र।’ (IN)

लूका 7:35 पर ज्ञान अपनी सब सन्तानों से सच्चा ठहराया गया है।” (IN)

लूका 7:36 ¶ फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; अतः वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। (IN)

लूका 7:37 वहाँ उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई। (IN)

लूका 7:38 और उसके पाँवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पाँवों को आँसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पाँव बार-बार चूमकर उन पर इत्र मला। (IN)

लूका 7:39 यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, “यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान जाता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिन है।” (IN)

लूका 7:40 यह सुन यीशु ने उसके उत्तर में कहा, “हे शमौन, मुझे तुझ से कुछ कहना है।” वह बोला, “हे गुरु, कह।” (IN)

लूका 7:41 “किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पाँच सौ, और दूसरा पचास दीनार देनदार था। (IN)

लूका 7:42 जब कि उनके पास वापस लौटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया। अतः उनमें से कौन उससे अधिक प्रेम रखेगा?” (IN)

लूका 7:43 शमौन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में वह, जिसका उसने अधिक छोड़ दिया।” उसने उससे कहा, “तूने ठीक विचार किया है।” (IN)

लूका 7:44 और उस स्त्री की ओर फिरकर उसने शमौन से कहा, “क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया परन्तु तूने मेरे पाँव धोने के लिये पानी न दिया, पर इसने मेरे पाँव आँसुओं से भिगाए, और अपने बालों से पोंछा।” (IN)

लूका 7:45 तूने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूँ तब से इसने मेरे पाँवों का चूमना न छोड़ा। (IN)

लूका 7:46 तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला; पर इसने मेरे पाँवों पर इत्र मला है। (IN)

लूका 7:47 “इसलिए मैं तुझ से कहता हूँ; कि इसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया; पर जिसका थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है।” (IN)

लूका 7:48 और उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।” (IN)

लूका 7:49 तब जो लोग उसके साथ भोजन करने बैठे थे, वे अपने-अपने मन में सोचने लगे, “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?” (IN)

लूका 7:50 पर उसने स्त्री से कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है, कुशल से चली जा।” (IN)

लूका 8:1 ¶ इसके बाद वह नगर-नगर और गाँव-गाँव प्रचार करता हुआ, और परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा, और वे बारह उसके साथ थे, (IN)

लूका 8:2 और कुछ स्त्रियाँ भी जो दुष्टात्माओं से और बीमारियों से छुड़ाई गई थीं, और वे यह हैं मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी, जिसमें से सात दुष्टात्माएँ निकली थीं, (IN)

लूका 8:3 और हेरोदेस के भण्डारी खुज़ा की पत्‍नी योअन्ना और सूसन्नाह और बहुत सी और स्त्रियाँ, ये तो अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थीं।। (IN)

लूका 8:4 ¶ जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और नगर-नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उसने दृष्टान्त में कहा: (IN)

लूका 8:5 “एक बोनेवाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया। (IN)

लूका 8:6 और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु नमी न मिलने से सूख गया। (IN)

लूका 8:7 कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ-साथ बढ़कर उसे दबा लिया। (IN)

लूका 8:8 “और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया।” यह कहकर उसने ऊँचे शब्द से कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन लें।” (IN)

लूका 8:9 ¶ उसके चेलों ने उससे पूछा, “इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?” (IN)

लूका 8:10 उसने कहा, “तुम को परमेश्‍वर के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर औरों को दृष्टान्तों में सुनाया जाता है, इसलिए कि (IN)

लूका 8:11 ¶ “दृष्टान्त का अर्थ यह है: बीज तो परमेश्‍वर का वचन है। (IN)

लूका 8:12 मार्ग के किनारे के वे हैं, जिन्होंने सुना; तब शैतान आकर उनके मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएँ। (IN)

लूका 8:13 चट्टान पर के वे हैं, कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और परीक्षा के समय बहक जाते हैं। (IN)

लूका 8:14 जो झाड़ियों में गिरा, यह वे हैं, जो सुनते हैं, पर आगे चलकर चिन्ता और धन और जीवन के सुख-विलास में फंस जाते हैं, और उनका फल नहीं पकता। (IN)

लूका 8:15 पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं। (IN)

लूका 8:16 ¶ “कोई दिया जला कर बर्तन से नहीं ढाँकता, और न खाट के नीचे रखता है, परन्तु दीवट पर रखता है, कि भीतर आनेवाले प्रकाश पाएँ। (IN)

लूका 8:17 कुछ छिपा नहीं, जो प्रगट न हो; और न कुछ गुप्त है, जो जाना न जाए, और प्रगट न हो। (IN)

लूका 8:18 इसलिए सावधान रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो? क्योंकि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है।” (IN)

लूका 8:19 ¶ उसकी माता और उसके भाई पास आए, पर भीड़ के कारण उससे भेंट न कर सके। (IN)

लूका 8:20 और उससे कहा गया, “तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं।” (IN)

लूका 8:21 उसने उसके उत्तर में उनसे कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये ही है, जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और मानते हैं।” (IN)

लूका 8:22 ¶ फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, “आओ, झील के पार चलें।” अतः उन्होंने नाव खोल दी। (IN)

लूका 8:23 पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया: और झील पर आँधी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। (IN)

लूका 8:24 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।” तब उसने उठकर आँधी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए, और शान्त हो गया। (IN)

लूका 8:25 और उसने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास कहाँ था?” पर वे डर गए, और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, “यह कौन है, जो आँधी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?” (IN)

लूका 8:26 ¶ फिर वे गिरासेनियों के देश में पहुँचे, जो उस पार गलील के सामने है। (IN)

लूका 8:27 जब वह किनारे पर उतरा, तो उस नगर का एक मनुष्य उसे मिला, जिसमें दुष्टात्माएँ थीं। और बहुत दिनों से न कपड़े पहनता था और न घर में रहता था वरन् कब्रों में रहा करता था। (IN)

लूका 8:28 वह यीशु को देखकर चिल्लाया, और उसके सामने गिरकर ऊँचे शब्द से कहा, “हे परमप्रधान परमेश्‍वर के पुत्र यीशु! मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे पीड़ा न दे।” (IN)

लूका 8:29 क्योंकि वह उस अशुद्ध आत्मा को उस मनुष्य में से निकलने की आज्ञा दे रहा था, इसलिए कि वह उस पर बार-बार प्रबल होती थी। और यद्यपि लोग उसे जंजीरों और बेड़ियों से बाँधते थे, तो भी वह बन्धनों को तोड़ डालता था, और दुष्टात्मा उसे जंगल में भगाए फिरती थी। (IN)

लूका 8:30 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने कहा, “सेना,” क्योंकि बहुत दुष्टात्माएँ उसमें समा गई थीं। (IN)

लूका 8:31 और उन्होंने उससे विनती की, “हमें अथाह गड्ढे में जाने की आज्ञा न दे।” (IN)

लूका 8:32 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था, अतः उन्होंने उससे विनती की, “हमें उनमें समाने दे।” अतः उसने उन्हें जाने दिया। (IN)

लूका 8:33 तब दुष्टात्माएँ उस मनुष्य से निकलकर सूअरों में समा गई और वह झुण्ड कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा गिरा और डूब मरा। (IN)

लूका 8:34 ¶ चरवाहे यह जो हुआ था देखकर भागे, और नगर में, और गाँवों में जाकर उसका समाचार कहा। (IN)

लूका 8:35 और लोग यह जो हुआ था उसको देखने को निकले, और यीशु के पास आकर जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं, उसे यीशु के पाँवों के पास कपड़े पहने और सचेत बैठे हुए पा कर डर गए। (IN)

लूका 8:36 और देखनेवालों ने उनको बताया, कि वह दुष्टात्मा का सताया हुआ मनुष्य किस प्रकार अच्छा हुआ। (IN)

लूका 8:37 तब गिरासेनियों के आस-पास के सब लोगों ने यीशु से विनती की, कि हमारे यहाँ से चला जा; क्योंकि उन पर बड़ा भय छा गया था। अतः वह नाव पर चढ़कर लौट गया। (IN)

लूका 8:38 जिस मनुष्य से दुष्टात्माएँ निकली थीं वह उससे विनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे, परन्तु यीशु ने उसे विदा करके कहा। (IN)

लूका 8:39 “अपने घर में लौट जा और लोगों से कह दे, कि परमेश्‍वर ने तेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए हैं।” वह जाकर सारे नगर में प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े-बड़े काम किए। (IN)

लूका 8:40 ¶ जब यीशु लौट रहा था, तो लोग उससे आनन्द के साथ मिले; क्योंकि वे सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। (IN)

लूका 8:41 और देखो, याईर नाम एक मनुष्य जो आराधनालय का सरदार था, आया, और यीशु के पाँवों पर गिरके उससे विनती करने लगा, “मेरे घर चल।” (IN)

लूका 8:42 क्योंकि उसके बारह वर्ष की एकलौती बेटी थी, और वह मरने पर थी। जब वह जा रहा था, तब लोग उस पर गिरे पड़ते थे। (IN)

लूका 8:43 और एक स्त्री ने जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी और फिर भी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी, (IN)

लूका 8:44 पीछे से आकर उसके वस्त्र के आँचल को छुआ, और तुरन्त उसका लहू बहना थम गया। (IN)

लूका 8:45 इस पर यीशु ने कहा, “मुझे किस ने छुआ?” जब सब मुकरने लगे, तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, “हे स्वामी, तुझे तो भीड़ दबा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है।” (IN)

लूका 8:46 परन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मैंने जान लिया है कि मुझ में से सामर्थ्य निकली है।” (IN)

लूका 8:47 जब स्त्री ने देखा, कि मैं छिप नहीं सकती, तब काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर सब लोगों के सामने बताया, कि मैंने किस कारण से तुझे छुआ, और कैसे तुरन्त चंगी हो गई। (IN)

लूका 8:48 उसने उससे कहा, “पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है, कुशल से चली जा।” (IN)

लूका 8:49 वह यह कह ही रहा था, कि किसी ने आराधनालय के सरदार के यहाँ से आकर कहा, “तेरी बेटी मर गई: गुरु को दुःख न दे।” (IN)

लूका 8:50 यीशु ने सुनकर उसे उत्तर दिया, “मत डर; केवल विश्वास रख; तो वह बच जाएगी।” (IN)

लूका 8:51 घर में आकर उसने पतरस, और यूहन्ना, और याकूब, और लड़की के माता-पिता को छोड़ और किसी को अपने साथ भीतर आने न दिया। (IN)

लूका 8:52 और सब उसके लिये रो पीट रहे थे, परन्तु उसने कहा, “रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है।” (IN)

लूका 8:53 वे यह जानकर, कि मर गई है, उसकी हँसी करने लगे। (IN)

लूका 8:54 परन्तु उसने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, “हे लड़की उठ!” (IN)

लूका 8:55 तब उसके प्राण लौट आए और वह तुरन्त उठी; फिर उसने आज्ञा दी, कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। (IN)

लूका 8:56 उसके माता-पिता चकित हुए, परन्तु उसने उन्हें चेतावनी दी, कि यह जो हुआ है, किसी से न कहना। (IN)

लूका 9:1 ¶ फिर उसने बारहों को बुलाकर उन्हें सब दुष्टात्माओं और बीमारियों को दूर करने की सामर्थ्य और अधिकार दिया। (IN)

लूका 9:2 और उन्हें परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करने, और बीमारों को अच्छा करने के लिये भेजा। (IN)

लूका 9:3 और उसने उनसे कहा, “मार्ग के लिये कुछ न लेना: न तो लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपये और न दो-दो कुर्ते। (IN)

लूका 9:4 और जिस किसी घर में तुम उतरो, वहीं रहो; और वहीं से विदा हो। (IN)

लूका 9:5 जो कोई तुम्हें ग्रहण न करेगा उस नगर से निकलते हुए अपने पाँवों की धूल झाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो।” (IN)

लूका 9:6 अतः वे निकलकर गाँव-गाँव सुसमाचार सुनाते, और हर कहीं लोगों को चंगा करते हुए फिरते रहे। (IN)

लूका 9:7 ¶ और देश की चौथाई का राजा हेरोदेस यह सब सुनकर घबरा गया, क्योंकि कितनों ने कहा, कि यूहन्ना मरे हुओं में से जी उठा है। (IN)

लूका 9:8 और कितनों ने यह, कि एलिय्याह दिखाई दिया है: औरों ने यह, कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है। (IN)

लूका 9:9 परन्तु हेरोदेस ने कहा, “यूहन्ना का तो मैंने सिर कटवाया अब यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?” और उसने उसे देखने की इच्छा की।। (IN)

लूका 9:10 ¶ फिर प्रेरितों ने लौटकर जो कुछ उन्होंने किया था, उसको बता दिया, और वह उन्हें अलग करके बैतसैदा नामक एक नगर को ले गया। (IN)

लूका 9:11 यह जानकर भीड़ उसके पीछे हो ली, और वह आनन्द के साथ उनसे मिला, और उनसे परमेश्‍वर के राज्य की बातें करने लगा, और जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा किया। (IN)

लूका 9:12 जब दिन ढलने लगा, तो बारहों ने आकर उससे कहा, “भीड़ को विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर अपने लिए रहने को स्थान, और भोजन का उपाय करें, क्योंकि हम यहाँ सुनसान जगह में हैं।” (IN)

लूका 9:13 उसने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछली को छोड़ और कुछ नहीं; परन्तु हाँ, यदि हम जाकर इन सब लोगों के लिये भोजन मोल लें, तो हो सकता है।” (IN)

लूका 9:14 (क्योंकि वहाँ पर लगभग पाँच हजार पुरुष थे।) और उसने अपने चेलों से कहा, “उन्हें पचास-पचास करके पाँति में बैठा दो।” (IN)

लूका 9:15 उन्होंने ऐसा ही किया, और सब को बैठा दिया। (IN)

लूका 9:16 तब उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं, और स्वर्ग की और देखकर धन्यवाद किया, और तोड़-तोड़कर चेलों को देता गया कि लोगों को परोसें। (IN)

लूका 9:17 अतः सब खाकर तृप्त हुए, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाई। (IN)

लूका 9:18 ¶ जब वह एकान्त में प्रार्थना कर रहा था, और चेले उसके साथ थे, तो उसने उनसे पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?” (IN)

लूका 9:19 उन्होंने उत्तर दिया, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, और कोई-कोई एलिय्याह, और कोई यह कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है।” (IN)

लूका 9:20 उसने उनसे पूछा, “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने उत्तर दिया, “परमेश्‍वर का मसीह।” (IN)

लूका 9:21 तब उसने उन्हें चेतावनी देकर कहा, “यह किसी से न कहना।” (IN)

लूका 9:22 ¶ और उसने कहा, “मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें, और वह तीसरे दिन जी उठे।” (IN)

लूका 9:23 ¶ उसने सबसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इन्कार करे और प्रति-दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले। (IN)

लूका 9:24 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा। (IN)

लूका 9:25 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपना प्राण खो दे, या उसकी हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? (IN)

लूका 9:26 जो कोई मुझसे और मेरी बातों से लजाएगा; मनुष्य का पुत्र भी जब अपनी, और अपने पिता की, और पवित्र स्वर्गदूतों की, महिमा सहित आएगा, तो उससे लजाएगा। (IN)

लूका 9:27 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई-कोई ऐसे हैं कि जब तक परमेश्‍वर का राज्य न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद न चखेंगे।” (IN)

लूका 9:28 ¶ इन बातों के कोई आठ दिन बाद वह पतरस, और यूहन्ना, और याकूब को साथ लेकर प्रार्थना करने के लिये पहाड़ पर गया। (IN)

लूका 9:29 जब वह प्रार्थना कर ही रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया, और उसका वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगा। (IN)

लूका 9:30 तब, मूसा और एलिय्याह, ये दो पुरुष उसके साथ बातें कर रहे थे। (IN)

लूका 9:31 ये महिमा सहित दिखाई दिए, और उसके मरने की चर्चा कर रहे थे, जो यरूशलेम में होनेवाला था। (IN)

लूका 9:32 पतरस और उसके साथी नींद से भरे थे, और जब अच्छी तरह सचेत हुए, तो उसकी महिमा; और उन दो पुरुषों को, जो उसके साथ खड़े थे, देखा। (IN)

लूका 9:33 जब वे उसके पास से जाने लगे, तो पतरस ने यीशु से कहा, “हे स्वामी, हमारा यहाँ रहना भला है: अतः हम तीन मण्डप बनाएँ, एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” वह जानता न था, कि क्या कह रहा है। (IN)

लूका 9:34 वह यह कह ही रहा था, कि एक बादल ने आकर उन्हें छा लिया, और जब वे उस बादल से घिरने लगे, तो डर गए। (IN)

लूका 9:35 और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा पुत्र और मेरा चुना हुआ है, इसकी सुनो।” (IN)

लूका 9:36 यह शब्द होते ही यीशु अकेला पाया गया; और वे चुप रहे, और जो कुछ देखा था, उसकी कोई बात उन दिनों में किसी से न कही। (IN)

लूका 9:37 ¶ और दूसरे दिन जब वे पहाड़ से उतरे, तो एक बड़ी भीड़ उससे आ मिली। (IN)

लूका 9:38 तब, भीड़ में से एक मनुष्य ने चिल्लाकर कहा, “हे गुरु, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मेरे पुत्र पर कृपादृष्‍टि कर; क्योंकि वह मेरा एकलौता है। (IN)

लूका 9:39 और देख, एक दुष्टात्मा उसे पकड़ती है, और वह एकाएक चिल्ला उठता है; और वह उसे ऐसा मरोड़ती है, कि वह मुँह में फेन भर लाता है; और उसे कुचलकर कठिनाई से छोड़ती है। (IN)

लूका 9:40 और मैंने तेरे चेलों से विनती की, कि उसे निकालें; परन्तु वे न निकाल सके।” (IN)

लूका 9:41 यीशु ने उत्तर दिया, “हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, और तुम्हारी सहूँगा? अपने पुत्र को यहाँ ले आ।” (IN)

लूका 9:42 वह आ ही रहा था कि दुष्टात्मा ने उसे पटककर मरोड़ा, परन्तु यीशु ने अशुद्ध आत्मा को डाँटा और लड़के को अच्छा करके उसके पिता को सौंप दिया। (IN)

लूका 9:43 तब सब लोग परमेश्‍वर के महासामर्थ्य से चकित हुए। परन्तु जब सब लोग उन सब कामों से जो वह करता था, अचम्भा कर रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा, (IN)

लूका 9:44 “ये बातें तुम्हारे कानों में पड़ी रहें, क्योंकि मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाने को है।” (IN)

लूका 9:45 परन्तु वे इस बात को न समझते थे, और यह उनसे छिपी रही; कि वे उसे जानने न पाएँ, और वे इस बात के विषय में उससे पूछने से डरते थे। (IN)

लूका 9:46 ¶ फिर उनमें यह विवाद होने लगा, कि हम में से बड़ा कौन है? (IN)

लूका 9:47 पर यीशु ने उनके मन का विचार जान लिया, और एक बालक को लेकर अपने पास खड़ा किया, (IN)

लूका 9:48 और उनसे कहा, “जो कोई मेरे नाम से इस बालक को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है, क्योंकि जो तुम में सबसे छोटे से छोटा है, वही बड़ा है।” (IN)

लूका 9:49 ¶ तब यूहन्ना ने कहा, “हे स्वामी, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा, और हमने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारे साथ होकर तेरे पीछे नहीं हो लेता।” (IN)

लूका 9:50 यीशु ने उससे कहा, “उसे मना मत करो; क्योंकि जो तुम्हारे विरोध में नहीं, वह तुम्हारी ओर है।” (IN)

लूका 9:51 ¶ जब उसके ऊपर उठाए जाने के दिन पूरे होने पर थे, तो उसने यरूशलेम को जाने का विचार दृढ़ किया। (IN)

लूका 9:52 और उसने अपने आगे दूत भेजे: वे सामरियों के एक गाँव में गए, कि उसके लिये जगह तैयार करें। (IN)

लूका 9:53 परन्तु उन लोगों ने उसे उतरने न दिया, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था। (IN)

लूका 9:54 यह देखकर उसके चेले याकूब और यूहन्ना ने कहा, “हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे?” (IN)

लूका 9:55 परन्तु उसने फिरकर उन्हें डाँटा [और कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम कैसी आत्मा के हो। क्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगों के प्राणों को नाश करने नहीं वरन् बचाने के लिये आया है।”] (IN)

लूका 9:56 और वे किसी और गाँव में चले गए। (IN)

लूका 9:57 ¶ जब वे मार्ग में चले जाते थे, तो किसी ने उससे कहा, “जहाँ-जहाँ तू जाएगा, मैं तेरे पीछे हो लूँगा।” (IN)

लूका 9:58 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर रखने की भी जगह नहीं।” (IN)

लूका 9:59 उसने दूसरे से कहा, “मेरे पीछे हो ले।” उसने कहा, “हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूँ।” (IN)

लूका 9:60 उसने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दे गाड़ने दे, पर तू जाकर परमेश्‍वर के राज्य की कथा सुना।” (IN)

लूका 9:61 एक और ने भी कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे पीछे हो लूँगा; पर पहले मुझे जाने दे कि अपने घर के लोगों से विदा हो आऊँ।” (IN)

लूका 9:62 यीशु ने उससे कहा, “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्‍वर के राज्य के योग्य नहीं।” (IN)

लूका 10:1 ¶ और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस-जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा। (IN)

लूका 10:2 और उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर थोड़े हैं इसलिए खेत के स्वामी से विनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे। (IN)

लूका 10:3 जाओ; देखों मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ। (IN)

लूका 10:4 इसलिए न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो। (IN)

लूका 10:5 जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’ (IN)

लूका 10:6 यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा। (IN)

लूका 10:7 उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ-पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर-घर न फिरना। (IN)

लूका 10:8 और जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ। (IN)

लूका 10:9 वहाँ के बीमारों को चंगा करो: और उनसे कहो, ‘परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ (IN)

लूका 10:10 परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो, (IN)

लूका 10:11 ‘तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पाँवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, फिर भी यह जान लो, कि परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ (IN)

लूका 10:12 मैं तुम से कहता हूँ, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (IN)

लूका 10:13 ¶ “हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सोर और सीदोन में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते। (IN)

लूका 10:14 परन्तु न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सोर और सीदोन की दशा अधिक सहने योग्य होगी। (IN)

लूका 10:15 और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। (IN)

लूका 10:16 ¶ “जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।” (IN)

लूका 10:17 ¶ वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में है।” (IN)

लूका 10:18 उसने उनसे कहा, “मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था। (IN)

लूका 10:19 मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। (IN)

लूका 10:20 तो भी इससे आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।” (IN)

लूका 10:21 ¶ उसी घड़ी वह पवित्र आत्मा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया, हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा। (IN)

लूका 10:22 मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है; और कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है, केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्र के और वह जिस पर पुत्र उसे प्रकट करना चाहे।” (IN)

लूका 10:23 ¶ और चेलों की ओर मुड़कर अकेले में कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो ये बातें जो तुम देखते हो देखती हैं, (IN)

लूका 10:24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।” (IN)

लूका 10:25 ¶ तब एक व्यवस्थापक उठा; और यह कहकर, उसकी परीक्षा करने लगा, “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूँ?” (IN)

लूका 10:26 उसने उससे कहा, “व्यवस्था में क्या लिखा है? तू कैसे पढ़ता है?” (IN)

लूका 10:27 उसने उत्तर दिया, “तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्रेम रख।” (IN)

लूका 10:28 उसने उससे कहा, “तूने ठीक उत्तर दिया, यही कर तो तू जीवित रहेगा।” (IN)

लूका 10:29 परन्तु उसने अपने आप को धर्मी ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?” (IN)

लूका 10:30 यीशु ने उत्तर दिया “एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा था, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, और मार पीट कर उसे अधमरा छोड़कर चले गए। (IN)

लूका 10:31 और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था, परन्तु उसे देखकर कतराकर चला गया। (IN)

लूका 10:32 इसी रीति से एक लेवी उस जगह पर आया, वह भी उसे देखकर कतराकर चला गया। (IN)

लूका 10:33 परन्तु एक सामरी यात्री वहाँ आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया। (IN)

लूका 10:34 और उसके पास आकर और उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकर पट्टियाँ बाँधी, और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की। (IN)

लूका 10:35 दूसरे दिन उसने दो दीनार निकालकर सराय के मालिक को दिए, और कहा, ‘इसकी सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे दे दूँगा।’ (IN)

लूका 10:36 अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?” (IN)

लूका 10:37 उसने कहा, “वही जिस ने उस पर तरस खाया।” यीशु ने उससे कहा, “जा, तू भी ऐसा ही कर।” (IN)

लूका 10:38 ¶ फिर जब वे जा रहे थे, तो वह एक गाँव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में स्वागत किया। (IN)

लूका 10:39 और मरियम नामक उसकी एक बहन थी; वह प्रभु के पाँवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी। (IN)

लूका 10:40 परन्तु मार्था सेवा करते-करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी, “हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? इसलिए उससे कह, मेरी सहायता करे।” (IN)

लूका 10:41 प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है। (IN)

लूका 10:42 परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उससे छीना न जाएगा।” (IN)

लूका 11:1 ¶ फिर वह किसी जगह प्रार्थना कर रहा था। और जब वह प्रार्थना कर चुका, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया वैसे ही हमें भी तू सीखा दे।” (IN)

लूका 11:2 ¶ उसने उनसे कहा, “जब तुम प्रार्थना करो, तो कहो: (IN)

लूका 11:3 ‘हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर। (IN)

लूका 11:4 ‘और हमारे पापों को क्षमा कर, (IN)

लूका 11:5 ¶ और उसने उनसे कहा, “तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास जाकर उससे कहे, ‘हे मित्र; मुझे तीन रोटियाँ दे। (IN)

लूका 11:6 क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिये मेरे पास कुछ नहीं है।’ (IN)

लूका 11:7 और वह भीतर से उत्तर देता, कि मुझे दुःख न दे; अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर हैं, इसलिए मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता। (IN)

लूका 11:8 मैं तुम से कहता हूँ, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, फिर भी उसके लज्जा छोड़कर माँगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। (IN)

लूका 11:9 और मैं तुम से कहता हूँ; कि माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। (IN)

लूका 11:10 क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। (IN)

लूका 11:11 तुम में से ऐसा कौन पिता होगा, कि जब उसका पुत्र रोटी माँगे, तो उसे पत्थर दे: या मछली माँगे, तो मछली के बदले उसे साँप दे? (IN)

लूका 11:12 या अण्डा माँगे तो उसे बिच्छू दे? (IN)

लूका 11:13 अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।” (IN)

लूका 11:14 ¶ फिर उसने एक गूँगी दुष्टात्मा को निकाला; जब दुष्टात्मा निकल गई, तो गूँगा बोलने लगा; और लोगों ने अचम्भा किया। (IN)

लूका 11:15 परन्तु उनमें से कितनों ने कहा, “यह तो दुष्टात्माओं के प्रधान शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” (IN)

लूका 11:16 औरों ने उसकी परीक्षा करने के लिये उससे आकाश का एक चिन्ह माँगा। (IN)

लूका 11:17 परन्तु उसने, उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “जिस-जिस राज्य में फूट होती है, वह राज्य उजड़ जाता है; और जिस घर में फूट होती है, वह नाश हो जाता है। (IN)

लूका 11:18 और यदि शैतान अपना ही विरोधी हो जाए, तो उसका राज्य कैसे बना रहेगा? क्योंकि तुम मेरे विषय में तो कहते हो, कि यह शैतान की सहायता से दुष्टात्मा निकालता है। (IN)

लूका 11:19 भला यदि मैं शैतान की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो तुम्हारी सन्तान किस की सहायता से निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारा न्याय चुकाएँगे। (IN)

लूका 11:20 परन्तु यदि मैं परमेश्‍वर की सामर्थ्य से दुष्टात्माओं को निकालता हूँ, तो परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुँचा। (IN)

लूका 11:21 जब बलवन्त मनुष्य हथियार बाँधे हुए अपने घर की रखवाली करता है, तो उसकी संपत्ति बची रहती है। (IN)

लूका 11:22 पर जब उससे बढ़कर कोई और बलवन्त चढ़ाई करके उसे जीत लेता है, तो उसके वे हथियार जिन पर उसका भरोसा था, छीन लेता है और उसकी संपत्ति लूटकर बाँट देता है। (IN)

लूका 11:23 जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है, और जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह बिखेरता है। (IN)

लूका 11:24 ¶ “जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है तो सूखी जगहों में विश्राम ढूँढ़ती फिरती है, और जब नहीं पाती तो कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी लौट जाऊँगी। (IN)

लूका 11:25 और आकर उसे झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। (IN)

लूका 11:26 तब वह आकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें समाकर वास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहले से भी बुरी हो जाती है।” (IN)

लूका 11:27 जब वह ये बातें कह ही रहा था तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊँचे शब्द से कहा, “धन्य है वह गर्भ जिसमें तू रहा और वे स्तन, जो तूने चूसे।” (IN)

लूका 11:28 उसने कहा, “हाँ; परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और मानते हैं।” (IN)

लूका 11:29 ¶ जब बड़ी भीड़ इकट्ठी होती जाती थी तो वह कहने लगा, “इस युग के लोग बुरे हैं; वे चिन्ह ढूँढ़ते हैं; पर योना के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा। (IN)

लूका 11:30 जैसा योना नीनवे के लोगों के लिये चिन्ह ठहरा, वैसा ही मनुष्य का पुत्र भी इस युग के लोगों के लिये ठहरेगा। (IN)

लूका 11:31 दक्षिण की रानी न्याय के दिन इस समय के मनुष्यों के साथ उठकर, उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने को पृथ्वी की छोर से आई, और देखो यहाँ वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है। (IN)

लूका 11:32 नीनवे के लोग न्याय के दिन इस समय के लोगों के साथ खड़े होकर, उन्हें दोषी ठहराएँगे; क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर मन फिराया और देखो, यहाँ वह है, जो योना से भी बड़ा है। (IN)

लूका 11:33 ¶ “कोई मनुष्य दीया जला के तलघर में, या पैमाने के नीचे नहीं रखता, परन्तु दीवट पर रखता है कि भीतर आनेवाले उजियाला पाएँ। (IN)

लूका 11:34 तेरे शरीर का दीया तेरी आँख है, इसलिए जब तेरी आँख निर्मल है, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला है; परन्तु जब वह बुरी है, तो तेरा शरीर भी अंधेरा है। (IN)

लूका 11:35 इसलिए सावधान रहना, कि जो उजियाला तुझ में है वह अंधेरा न हो जाए। (IN)

लूका 11:36 इसलिए यदि तेरा सारा शरीर उजियाला हो, और उसका कोई भाग अंधेरा न रहे, तो सब का सब ऐसा उजियाला होगा, जैसा उस समय होता है, जब दिया अपनी चमक से तुझे उजाला देता है।” (IN)

लूका 11:37 ¶ जब वह बातें कर रहा था, तो किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे यहाँ भोजन कर; और वह भीतर जाकर भोजन करने बैठा। (IN)

लूका 11:38 फरीसी ने यह देखकर अचम्भा किया कि उसने भोजन करने से पहले हाथ-पैर नहीं धोये। (IN)

लूका 11:39 प्रभु ने उससे कहा, “हे फरीसियों, तुम कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर तो माँजते हो, परन्तु तुम्हारे भीतर अंधेर और दुष्टता भरी है। (IN)

लूका 11:40 हे निर्बुद्धियों, जिस ने बाहर का भाग बनाया, क्या उसने भीतर का भाग नहीं बनाया? (IN)

लूका 11:41 परन्तु हाँ, भीतरवाली वस्तुओं को दान कर दो, तब सब कुछ तुम्हारे लिये शुद्ध हो जाएगा।। (IN)

लूका 11:42 ¶ “पर हे फरीसियों, तुम पर हाय! तुम पोदीने और सुदाब का, और सब भाँति के साग-पात का दसवाँ अंश देते हो, परन्तु न्याय को और परमेश्‍वर के प्रेम को टाल देते हो; चाहिए तो था कि इन्हें भी करते रहते और उन्हें भी न छोड़ते। (IN)

लूका 11:43 हे फरीसियों, तुम पर हाय! तुम आराधनालयों में मुख्य-मुख्य आसन और बाजारों में नमस्कार चाहते हो। (IN)

लूका 11:44 हाय तुम पर! क्योंकि तुम उन छिपी कब्रों के समान हो, जिन पर लोग चलते हैं, परन्तु नहीं जानते।” (IN)

लूका 11:45 ¶ तब एक व्यवस्थापक ने उसको उत्तर दिया, “हे गुरु, इन बातों के कहने से तू हमारी निन्दा करता है।” (IN)

लूका 11:46 उसने कहा, “हे व्यवस्थापकों, तुम पर भी हाय! तुम ऐसे बोझ जिनको उठाना कठिन है, मनुष्यों पर लादते हो परन्तु तुम आप उन बोझों को अपनी एक उँगली से भी नहीं छूते। (IN)

लूका 11:47 हाय तुम पर! तुम उन भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें बनाते हो, जिन्हें तुम्हारे पूर्वजों ने मार डाला था। (IN)

लूका 11:48 अतः तुम गवाह हो, और अपने पूर्वजों के कामों से सहमत हो; क्योंकि उन्होंने तो उन्हें मार डाला और तुम उनकी कब्रें बनाते हो। (IN)

लूका 11:49 इसलिए परमेश्‍वर की बुद्धि ने भी कहा है, कि मैं उनके पास भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को भेजूँगी, और वे उनमें से कितनों को मार डालेंगे, और कितनों को सताएँगे। (IN)

लूका 11:50 ताकि जितने भविष्यद्वक्ताओं का लहू जगत की उत्पत्ति से बहाया गया है, सब का लेखा, इस युग के लोगों से लिया जाए, (IN)

लूका 11:51 हाबिल की हत्या से लेकर जकर्याह की हत्या तक जो वेदी और मन्दिर के बीच में मारा गया: मैं तुम से सच कहता हूँ; उसका लेखा इसी समय के लोगों से लिया जाएगा। (IN)

लूका 11:52 हाय तुम व्यवस्थापकों पर! कि तुम ने ज्ञान की कुंजी ले तो ली, परन्तु तुम ने आपही प्रवेश नहीं किया, और प्रवेश करनेवालों को भी रोक दिया।” (IN)

लूका 11:53 ¶ जब वह वहाँ से निकला, तो शास्त्री और फरीसी बहुत पीछे पड़ गए और छेड़ने लगे, कि वह बहुत सी बातों की चर्चा करे, (IN)

लूका 11:54 और उसकी घात में लगे रहे, कि उसके मुँह की कोई बात पकड़ें। (IN)

लूका 12:1 ¶ इतने में जब हजारों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे, तो वह सबसे पहले अपने चेलों से कहने लगा, “फरीसियों के कपटरूपी ख़मीर से सावधान रहना। (IN)

लूका 12:2 कुछ ढपा नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। (IN)

लूका 12:3 इसलिए जो कुछ तुम ने अंधेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जाएगा; और जो तुम ने भीतर के कमरों में कानों कान कहा है, वह छतों पर प्रचार किया जाएगा। (IN)

लूका 12:4 ¶ “परन्तु मैं तुम से जो मेरे मित्र हो कहता हूँ, कि जो शरीर को मार सकते हैं और उससे ज्यादा और कुछ नहीं कर सकते, उनसे मत डरो। (IN)

लूका 12:5 मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, मारने के बाद जिसको नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो; वरन् मैं तुम से कहता हूँ उसी से डरो। (IN)

लूका 12:6 क्या दो पैसे की पाँच गौरैयाँ नहीं बिकती? फिर भी परमेश्‍वर उनमें से एक को भी नहीं भूलता। (IN)

लूका 12:7 वरन् तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं, अतः डरो नहीं, तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो। (IN)

लूका 12:8 ¶ “मैं तुम से कहता हूँ जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा उसे मनुष्य का पुत्र भी परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के सामने मान लेगा। (IN)

लूका 12:9 परन्तु जो मनुष्यों के सामने मुझे इन्कार करे उसका परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के सामने इन्कार किया जाएगा। (IN)

लूका 12:10 ¶ “जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहे, उसका वह अपराध क्षमा किया जाएगा। परन्तु जो पवित्र आत्मा की निन्दा करें, उसका अपराध क्षमा नहीं किया जाएगा। (IN)

लूका 12:11 ¶ “जब लोग तुम्हें आराधनालयों और अधिपतियों और अधिकारियों के सामने ले जाएँ, तो चिन्ता न करना कि हम किस रीति से या क्या उत्तर दें, या क्या कहें। (IN)

लूका 12:12 क्योंकि पवित्र आत्मा उसी घड़ी तुम्हें सीखा देगा, कि क्या कहना चाहिए।” (IN)

लूका 12:13 ¶ फिर भीड़ में से एक ने उससे कहा, “हे गुरु, मेरे भाई से कह, कि पिता की संपत्ति मुझे बाँट दे।” (IN)

लूका 12:14 उसने उससे कहा, “हे मनुष्य, किस ने मुझे तुम्हारा न्यायी या बाँटनेवाला नियुक्त किया है?” (IN)

लूका 12:15 और उसने उनसे कहा, “सावधान रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो; क्योंकि किसी का जीवन उसकी संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता।” (IN)

लूका 12:16 ¶ उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा, “किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। (IN)

लूका 12:17 “तब वह अपने मन में विचार करने लगा, कि मैं क्या करूँ, क्योंकि मेरे यहाँ जगह नहीं, जहाँ अपनी उपज इत्यादि रखूँ। (IN)

लूका 12:18 और उसने कहा, ‘मैं यह करूँगा: मैं अपनी बखारियाँ तोड़ कर उनसे बड़ी बनाऊँगा; और वहाँ अपना सब अन्न और संपत्ति रखूँगा; (IN)

लूका 12:19 ‘और अपने प्राण से कहूँगा, कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह।’ (IN)

लूका 12:20 परन्तु परमेश्‍वर ने उससे कहा, ‘हे मूर्ख! इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा; तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह किसका होगा?’ (IN)

लूका 12:21 ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्‍वर की दृष्टि में धनी नहीं।” (IN)

लूका 12:22 ¶ फिर उसने अपने चेलों से कहा, “इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, अपने जीवन की चिन्ता न करो, कि हम क्या खाएँगे; न अपने शरीर की, कि क्या पहनेंगे। (IN)

लूका 12:23 क्योंकि भोजन से प्राण, और वस्त्र से शरीर बढ़कर है। (IN)

लूका 12:24 कौवों पर ध्यान दो; वे न बोते हैं, न काटते; न उनके भण्डार और न खत्ता होता है; फिर भी परमेश्‍वर उन्हें खिलाता है। तुम्हारा मूल्य पक्षियों से कहीं अधिक है (IN)

लूका 12:25 तुम में से ऐसा कौन है, जो चिन्ता करने से अपने जीवनकाल में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है? (IN)

लूका 12:26 इसलिए यदि तुम सबसे छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो और बातों के लिये क्यों चिन्ता करते हो? (IN)

लूका 12:27 सोसनों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न परिश्रम करते, न काटते हैं; फिर भी मैं तुम से कहता हूँ, कि सुलैमान भी अपने सारे वैभव में, उनमें से किसी एक के समान वस्त्र पहने हुए न था। (IN)

लूका 12:28 इसलिए यदि परमेश्‍वर मैदान की घास को जो आज है, और कल भट्ठी में झोंकी जाएगी, ऐसा पहनाता है; तो हे अल्पविश्वासियों, वह तुम्हें अधिक क्यों न पहनाएगा? (IN)

लूका 12:29 और तुम इस बात की खोज में न रहो, कि क्या खाएँगे और क्या पीएँगे, और न सन्देह करो। (IN)

लूका 12:30 क्योंकि संसार की जातियाँ इन सब वस्तुओं की खोज में रहती हैं और तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें इन वस्तुओं की आवश्यकता है। (IN)

लूका 12:31 परन्तु उसके राज्य की खोज में रहो, तो ये वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी। (IN)

लूका 12:32 ¶ “हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। (IN)

लूका 12:33 अपनी संपत्ति बेचकर दान कर दो; और अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते, अर्थात् स्वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं, जिसके निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नाश नहीं करता। (IN)

लूका 12:34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन है, वहाँ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा। (IN)

लूका 12:35 ¶ “तुम्हारी कमर बंधी रहें, और तुम्हारे दीये जलते रहें। (IN)

लूका 12:36 और तुम उन मनुष्यों के समान बनो, जो अपने स्वामी की प्रतीक्षा कर रहे हों, कि वह विवाह से कब लौटेगा; कि जब वह आकर द्वार खटखटाएँ तो तुरन्त उसके लिए खोल दें। (IN)

लूका 12:37 धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी आकर जागते पाए; मैं तुम से सच कहता हूँ, कि वह कमर बाँध कर उन्हें भोजन करने को बैठाएगा, और पास आकर उनकी सेवा करेगा। (IN)

लूका 12:38 यदि वह रात के दूसरे पहर या तीसरे पहर में आकर उन्हें जागते पाए, तो वे दास धन्य हैं। (IN)

लूका 12:39 परन्तु तुम यह जान रखो, कि यदि घर का स्वामी जानता, कि चोर किस घड़ी आएगा, तो जागता रहता, और अपने घर में सेंध लगने न देता। (IN)

लूका 12:40 तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।” (IN)

लूका 12:41 ¶ तब पतरस ने कहा, “हे प्रभु, क्या यह दृष्टान्त तू हम ही से या सबसे कहता है।” (IN)

लूका 12:42 प्रभु ने कहा, “वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भण्डारी कौन है, जिसका स्वामी उसे नौकर-चाकरों पर सरदार ठहराए कि उन्हें समय पर भोजन सामग्री दे। (IN)

लूका 12:43 धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। (IN)

लूका 12:44 मैं तुम से सच कहता हूँ; वह उसे अपनी सब संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। (IN)

लूका 12:45 परन्तु यदि वह दास सोचने लगे, कि मेरा स्वामी आने में देर कर रहा है, और दासों और दासियों को मारने-पीटने और खाने-पीने और पियक्कड़ होने लगे। (IN)

लूका 12:46 तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन, जब वह उसकी प्रतीक्षा न कर रहा हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह जानता न हो, आएगा और उसे भारी ताड़ना देकर उसका भाग विश्वासघाती के साथ ठहराएगा। (IN)

लूका 12:47 और वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था, और तैयार न रहा और न उसकी इच्छा के अनुसार चला, बहुत मार खाएगा। (IN)

लूका 12:48 परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा, इसलिए जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा। (IN)

लूका 12:49 ¶ “मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूँ; और क्या चाहता हूँ केवल यह कि अभी सुलग जाती! (IN)

लूका 12:50 मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है; और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी व्यथा में रहूँगा! (IN)

लूका 12:51 क्या तुम समझते हो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ; नहीं, वरन् अलग कराने आया हूँ। (IN)

लूका 12:52 क्योंकि अब से एक घर में पाँच जन आपस में विरोध रखेंगे, तीन दो से दो तीन से। (IN)

लूका 12:53 पिता पुत्र से, और पुत्र पिता से विरोध रखेगा; माँ बेटी से, और बेटी माँ से, सास बहू से, और बहू सास से विरोध रखेगी।” (IN)

लूका 12:54 ¶ और उसने भीड़ से भी कहा, “जब बादल को पश्चिम से उठते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, कि वर्षा होगी; और ऐसा ही होता है। (IN)

लूका 12:55 और जब दक्षिणी हवा चलती देखते हो तो कहते हो, कि लूह चलेगी, और ऐसा ही होता है। (IN)

लूका 12:56 हे कपटियों, तुम धरती और आकाश के रूप में भेद कर सकते हो, परन्तु इस युग के विषय में क्यों भेद करना नहीं जानते? (IN)

लूका 12:57 ¶ “तुम आप ही निर्णय क्यों नहीं कर लेते, कि उचित क्या है? (IN)

लूका 12:58 जब तू अपने मुद्दई के साथ न्यायाधीश के पास जा रहा है, तो मार्ग ही में उससे छूटने का यत्न कर ले ऐसा न हो, कि वह तुझे न्यायी के पास खींच ले जाए, और न्यायी तुझे सिपाही को सौंपे और सिपाही तुझे बन्दीगृह में डाल दे। (IN)

लूका 12:59 मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक तू पाई-पाई न चुका देगा तब तक वहाँ से छूटने न पाएगा।” (IN)

लूका 13:1 ¶ उस समय कुछ लोग आ पहुँचे, और यीशु से उन गलीलियों की चर्चा करने लगे, जिनका लहू पिलातुस ने उन ही के बलिदानों के साथ मिलाया था। (IN)

लूका 13:2 यह सुनकर यीशु ने उनको उत्तर में यह कहा, “क्या तुम समझते हो, कि ये गलीली बाकी गलीलियों से पापी थे कि उन पर ऐसी विपत्ति पड़ी?” (IN)

लूका 13:3 मैं तुम से कहता हूँ, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होंगे। (IN)

लूका 13:4 या क्या तुम समझते हो, कि वे अठारह जन जिन पर शीलोह का गुम्मट गिरा, और वे दबकर मर गए: यरूशलेम के और सब रहनेवालों से अधिक अपराधी थे? (IN)

लूका 13:5 मैं तुम से कहता हूँ, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम भी सब इसी रीति से नाश होंगे।” (IN)

लूका 13:6 ¶ फिर उसने यह दृष्टान्त भी कहा, “किसी की अंगूर की बारी में एक अंजीर का पेड़ लगा हुआ था : वह उसमें फल ढूँढ़ने आया, परन्तु न पाया। (IN)

लूका 13:7 तब उसने बारी के रखवाले से कहा, ‘देख तीन वर्ष से मैं इस अंजीर के पेड़ में फल ढूँढ़ने आता हूँ, परन्तु नहीं पाता, इसे काट डाल कि यह भूमि को भी क्यों रोके रहे?’ (IN)

लूका 13:8 उसने उसको उत्तर दिया, कि हे स्वामी, इसे इस वर्ष तो और रहने दे; कि मैं इसके चारों ओर खोदकर खाद डालूँ। (IN)

लूका 13:9 अतः आगे को फले तो भला, नहीं तो उसे काट डालना।” (IN)

लूका 13:10 ¶ सब्त के दिन वह एक आराधनालय में उपदेश दे रहा था। (IN)

लूका 13:11 वहाँ एक स्त्री थी, जिसे अठारह वर्ष से एक दुर्बल करनेवाली दुष्टात्मा लगी थी, और वह कुबड़ी हो गई थी, और किसी रीति से सीधी नहीं हो सकती थी। (IN)

लूका 13:12 यीशु ने उसे देखकर बुलाया, और कहा, “हे नारी, तू अपनी दुर्बलता से छूट गई।” (IN)

लूका 13:13 तब उसने उस पर हाथ रखे, और वह तुरन्त सीधी हो गई, और परमेश्‍वर की बड़ाई करने लगी। (IN)

लूका 13:14 इसलिए कि यीशु ने सब्त के दिन उसे अच्छा किया था, आराधनालय का सरदार रिसियाकर लोगों से कहने लगा, “छः दिन हैं, जिनमें काम करना चाहिए, अतः उन ही दिनों में आकर चंगे हो; परन्तु सब्त के दिन में नहीं।” (IN)

लूका 13:15 यह सुन कर प्रभु ने उत्तर देकर कहा, “हे कपटियों, क्या सब्त के दिन तुम में से हर एक अपने बैल या गदहे को थान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता? (IN)

लूका 13:16 “और क्या उचित न था, कि यह स्त्री जो अब्राहम की बेटी है, जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बाँध रखा था, सब्त के दिन इस बन्धन से छुड़ाई जाती?” (IN)

लूका 13:17 जब उसने ये बातें कहीं, तो उसके सब विरोधी लज्जित हो गए, और सारी भीड़ उन महिमा के कामों से जो वह करता था, आनन्दित हुई। (IN)

लूका 13:18 ¶ फिर उसने कहा, “परमेश्‍वर का राज्य किसके समान है? और मैं उसकी उपमा किससे दूँ? (IN)

लूका 13:19 वह राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपनी बारी में बोया: और वह बढ़कर पेड़ हो गया; और आकाश के पक्षियों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया।” (IN)

लूका 13:20 उसने फिर कहा, “मैं परमेश्‍वर के राज्य कि उपमा किस से दूँ? (IN)

लूका 13:21 वह ख़मीर के समान है, जिसको किसी स्त्री ने लेकर तीन पसेरी आटे में मिलाया, और होते-होते सब आटा ख़मीर हो गया।” (IN)

लूका 13:22 ¶ वह नगर-नगर, और गाँव-गाँव होकर उपदेश देता हुआ यरूशलेम की ओर जा रहा था। (IN)

लूका 13:23 और किसी ने उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या उद्धार पानेवाले थोड़े हैं?” उसने उनसे कहा, (IN)

लूका 13:24 “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुत से प्रवेश करना चाहेंगे, और न कर सकेंगे। (IN)

लूका 13:25 जब घर का स्वामी उठकर द्वार बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े हुए द्वार खटखटाकर कहने लगो, ‘हे प्रभु, हमारे लिये खोल दे,’ और वह उत्तर दे कि मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम कहाँ के हो? (IN)

लूका 13:26 तब तुम कहने लगोगे, ‘कि हमने तेरे सामने खाया-पीया और तूने हमारे बजारों में उपदेश दिया।’ (IN)

लूका 13:27 परन्तु वह कहेगा, मैं तुम से कहता हूँ, ‘मैं नहीं जानता तुम कहाँ से हो। हे कुकर्म करनेवालों, तुम सब मुझसे दूर हो।’ (IN)

लूका 13:28 वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा, जब तुम अब्राहम और इसहाक और याकूब और सब भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्‍वर के राज्य में बैठे, और अपने आप को बाहर निकाले हुए देखोगे। (IN)

लूका 13:29 और पूर्व और पश्चिम; उत्तर और दक्षिण से लोग आकर परमेश्‍वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। (IN)

लूका 13:30 यह जान लो, कितने पिछले हैं वे प्रथम होंगे, और कितने जो प्रथम हैं, वे पिछले होंगे।” (IN)

लूका 13:31 ¶ उसी घड़ी कितने फरीसियों ने आकर उससे कहा, “यहाँ से निकलकर चला जा; क्योंकि हेरोदेस तुझे मार डालना चाहता है।” (IN)

लूका 13:32 उसने उनसे कहा, “जाकर उस लोमड़ी से कह दो, कि देख मैं आज और कल दुष्टात्माओं को निकालता और बीमारों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन अपना कार्य पूरा करूँगा। (IN)

लूका 13:33 तो भी मुझे आज और कल और परसों चलना अवश्य है, क्योंकि हो नहीं सकता कि कोई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए। (IN)

लूका 13:34 ¶ “हे यरूशलेम! हे यरूशलेम! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए उन्हें पत्थराव करता है; कितनी ही बार मैंने यह चाहा, कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे करूँ, पर तुम ने यह न चाहा। (IN)

लूका 13:35 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूँ; जब तक तुम न कहोगे, ‘धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है,’ तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।” (IN)

लूका 14:1 ¶ फिर वह सब्त के दिन फरीसियों के सरदारों में से किसी के घर में रोटी खाने गया: और वे उसकी घात में थे। (IN)

लूका 14:2 वहाँ एक मनुष्य उसके सामने था, जिसे जलोदर का रोग था। (IN)

लूका 14:3 इस पर यीशु ने व्यवस्थापकों और फरीसियों से कहा, “क्या सब्त के दिन अच्छा करना उचित है, कि नहीं?” (IN)

लूका 14:4 परन्तु वे चुपचाप रहे। तब उसने उसे हाथ लगाकर चंगा किया, और जाने दिया। (IN)

लूका 14:5 और उनसे कहा, “तुम में से ऐसा कौन है, जिसका पुत्र या बैल कुएँ में गिर जाए और वह सब्त के दिन उसे तुरन्त बाहर न निकाल ले?” (IN)

लूका 14:6 वे इन बातों का कुछ उत्तर न दे सके। (IN)

लूका 14:7 ¶ जब उसने देखा, कि आमन्त्रित लोग कैसे मुख्य-मुख्य जगह चुन लेते हैं तो एक दृष्टान्त देकर उनसे कहा, (IN)

लूका 14:8 “जब कोई तुझे विवाह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो, कि उसने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो। (IN)

लूका 14:9 और जिस ने तुझे और उसे दोनों को नेवता दिया है, आकर तुझ से कहे, ‘इसको जगह दे,’ और तब तुझे लज्जित होकर सबसे नीची जगह में बैठना पड़े। (IN)

लूका 14:10 पर जब तू बुलाया जाए, तो सबसे नीची जगह जा बैठ, कि जब वह, जिस ने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे ‘हे मित्र, आगे बढ़कर बैठ,’ तब तेरे साथ बैठनेवालों के सामने तेरी बड़ाई होगी। (IN)

लूका 14:11 क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।” (IN)

लूका 14:12 ¶ तब उसने अपने नेवता देनेवाले से भी कहा, “जब तू दिन का या रात का भोज करे, तो अपने मित्रों या भाइयों या कुटुम्बियों या धनवान पड़ोसियों को न बुला, कहीं ऐसा न हो, कि वे भी तुझे नेवता दें, और तेरा बदला हो जाए। (IN)

लूका 14:13 परन्तु जब तू भोज करे, तो कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को बुला। (IN)

लूका 14:14 तब तू धन्य होगा, क्योंकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझे धर्मियों के जी उठने पर इसका प्रतिफल मिलेगा।” (IN)

लूका 14:15 ¶ उसके साथ भोजन करनेवालों में से एक ने ये बातें सुनकर उससे कहा, “धन्य है वह, जो परमेश्‍वर के राज्य में रोटी खाएगा।” (IN)

लूका 14:16 उसने उससे कहा, “किसी मनुष्य ने बड़ा भोज दिया और बहुतों को बुलाया। (IN)

लूका 14:17 जब भोजन तैयार हो गया, तो उसने अपने दास के हाथ आमन्त्रित लोगों को कहला भेजा, ‘आओ; अब भोजन तैयार है।’ (IN)

लूका 14:18 पर वे सब के सब क्षमा माँगने लगे, पहले ने उससे कहा, ‘मैंने खेत मोल लिया है, और अवश्य है कि उसे देखूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ (IN)

लूका 14:19 दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़े बैल मोल लिए हैं, और उन्हें परखने जा रहा हूँ; मैं तुझ से विनती करता हूँ, मुझे क्षमा कर दे।’ (IN)

लूका 14:20 एक और ने कहा, ‘मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ (IN)

लूका 14:21 उस दास ने आकर अपने स्वामी को ये बातें कह सुनाईं। तब घर के स्वामी ने क्रोध में आकर अपने दास से कहा, ‘नगर के बाजारों और गलियों में तुरन्त जाकर कंगालों, टुण्डों, लँगड़ों और अंधों को यहाँ ले आओ।’ (IN)

लूका 14:22 दास ने फिर कहा, ‘हे स्वामी, जैसे तूने कहा था, वैसे ही किया गया है; फिर भी जगह है।’ (IN)

लूका 14:23 स्वामी ने दास से कहा, ‘सड़कों पर और बाड़ों की ओर जाकर लोगों को बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए। (IN)

लूका 14:24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि उन आमन्त्रित लोगों में से कोई मेरे भोज को न चखेगा’।” (IN)

लूका 14:25 ¶ और जब बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी, तो उसने पीछे फिरकर उनसे कहा। (IN)

लूका 14:26 “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्‍नी और बच्चों और भाइयों और बहनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता; (IN)

लूका 14:27 और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता। (IN)

लूका 14:28 ¶ “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहले बैठकर खर्च न जोड़े, कि पूरा करने की सामर्थ्य मेरे पास है कि नहीं? (IN)

लूका 14:29 कहीं ऐसा न हो, कि जब नींव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसका उपहास करेंगे, (IN)

लूका 14:30 ‘यह मनुष्य बनाने तो लगा, पर तैयार न कर सका?’ (IN)

लूका 14:31 या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हजार लेकर मुझ पर चढ़ा आता है, क्या मैं दस हजार लेकर उसका सामना कर सकता हूँ, कि नहीं? (IN)

लूका 14:32 नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूत को भेजकर मिलाप करना चाहेगा। (IN)

लूका 14:33 इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। (IN)

लूका 14:34 ¶ “नमक तो अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा। (IN)

लूका 14:35 वह न तो भूमि के और न खाद के लिये काम में आता है: उसे तो लोग बाहर फेंक देते हैं। जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले।” (IN)

लूका 15:1 ¶ सब चुंगी लेनेवाले और पापी उसके पास आया करते थे ताकि उसकी सुनें। (IN)

लूका 15:2 और फरीसी और शास्त्री कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “यह तो पापियों से मिलता है और उनके साथ खाता भी है।” (IN)

लूका 15:3 तब उसने उनसे यह दृष्टान्त कहा: (IN)

लूका 15:4 “तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक खो जाए तो निन्यानवे को मैदान में छोड़कर, उस खोई हुई को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे? (IN)

लूका 15:5 और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसे काँधे पर उठा लेता है। (IN)

लूका 15:6 और घर में आकर मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठे करके कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है।’ (IN)

लूका 15:7 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्यानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं। (IN)

लूका 15:8 ¶ “या कौन ऐसी स्त्री होगी, जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हों, और उनमें से एक खो जाए; तो वह दीया जलाकर और घर झाड़-बुहारकर जब तक मिल न जाए, जी लगाकर खोजती न रहे? (IN)

लूका 15:9 और जब मिल जाता है, तो वह अपने सखियों और पड़ोसिनियों को इकट्ठी करके कहती है, कि ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरा खोया हुआ सिक्का मिल गया है।’ (IN)

लूका 15:10 मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के सामने आनन्द होता है।” (IN)

लूका 15:11 ¶ फिर उसने कहा, “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। (IN)

लूका 15:12 उनमें से छोटे ने पिता से कहा ‘हे पिता, सम्पत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए।’ उसने उनको अपनी संपत्ति बाँट दी। (IN)

लूका 15:13 और बहुत दिन न बीते थे कि छोटा पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहाँ कुकर्म में अपनी सम्पत्ति उड़ा दी। (IN)

लूका 15:14 जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया। (IN)

लूका 15:15 और वह उस देश के निवासियों में से एक के यहाँ गया, उसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने के लिये भेजा। (IN)

लूका 15:16 और वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; क्योंकि उसे कोई कुछ नहीं देता था। (IN)

लूका 15:17 जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, ‘मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहाँ भूखा मर रहा हूँ। (IN)

लूका 15:18 मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा कि पिता जी मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। (IN)

लूका 15:19 अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ, मुझे अपने एक मजदूर के समान रख ले।’ (IN)

लूका 15:20 ¶ “तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला: वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। (IN)

लूका 15:21 पुत्र ने उससे कहा, ‘पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है; और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊँ।’ (IN)

लूका 15:22 परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा, ‘झट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहनाओ, और उसके हाथ में अँगूठी, और पाँवों में जूतियाँ पहनाओ, (IN)

लूका 15:23 और बड़ा भोज तैयार करो ताकि हम खाएँ और आनन्द मनाए। (IN)

लूका 15:24 क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है: खो गया था, अब मिल गया है।’ और वे आनन्द करने लगे। (IN)

लूका 15:25 ¶ “परन्तु उसका जेठा पुत्र खेत में था। और जब वह आते हुए घर के निकट पहुँचा, तो उसने गाने-बजाने और नाचने का शब्द सुना। (IN)

लूका 15:26 और उसने एक दास को बुलाकर पूछा, ‘यह क्या हो रहा है?’ (IN)

लूका 15:27 “उसने उससे कहा, ‘तेरा भाई आया है, और तेरे पिता ने बड़ा भोज तैयार कराया है, क्योंकि उसे भला चंगा पाया है।’ (IN)

लूका 15:28 यह सुनकर वह क्रोध से भर गया और भीतर जाना न चाहा: परन्तु उसका पिता बाहर आकर उसे मनाने लगा। (IN)

लूका 15:29 उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख; मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूँ, और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, फिर भी तूने मुझे कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया, कि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द करता। (IN)

लूका 15:30 परन्तु जब तेरा यह पुत्र, जिस ने तेरी सम्पत्ति वेश्याओं में उड़ा दी है, आया, तो उसके लिये तूने बड़ा भोज तैयार कराया।’ (IN)

लूका 15:31 उसने उससे कहा, ‘पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। (IN)

लूका 15:32 परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है’।” (IN)

लूका 16:1 ¶ फिर उसने चेलों से भी कहा, “किसी धनवान का एक भण्डारी था, और लोगों ने उसके सामने भण्डारी पर यह दोष लगाया कि यह तेरी सब सम्पत्ति उड़ाए देता है। (IN)

लूका 16:2 अतः धनवान ने उसे बुलाकर कहा, ‘यह क्या है जो मैं तेरे विषय में सुन रहा हूँ? अपने भण्डारीपन का लेखा दे; क्योंकि तू आगे को भण्डारी नहीं रह सकता।’ (IN)

लूका 16:3 तब भण्डारी सोचने लगा, ‘अब मैं क्या करूँ? क्योंकि मेरा स्वामी अब भण्डारी का काम मुझसे छीन रहा है: मिट्टी तो मुझसे खोदी नहीं जाती; और भीख माँगने से मुझे लज्जा आती है। (IN)

लूका 16:4 मैं समझ गया, कि क्या करूँगा: ताकि जब मैं भण्डारी के काम से छुड़ाया जाऊँ तो लोग मुझे अपने घरों में ले लें।’ (IN)

लूका 16:5 और उसने अपने स्वामी के देनदारों में से एक-एक को बुलाकर पहले से पूछा, कि तुझ पर मेरे स्वामी का कितना कर्ज है? (IN)

लूका 16:6 उसने कहा, ‘सौ मन जैतून का तेल,’ तब उसने उससे कहा, कि अपनी खाता-बही ले और बैठकर तुरन्त पचास लिख दे। (IN)

लूका 16:7 फिर दूसरे से पूछा, ‘तुझ पर कितना कर्ज है?’ उसने कहा, ‘सौ मन गेहूँ,’ तब उसने उससे कहा, ‘अपनी खाता-बही लेकर अस्सी लिख दे।’ (IN)

लूका 16:8 ¶ “स्वामी ने उस अधर्मी भण्डारी को सराहा, कि उसने चतुराई से काम किया है; क्योंकि इस संसार के लोग अपने समय के लोगों के साथ रीति-व्यवहारों में ज्योति के लोगों से अधिक चतुर हैं। (IN)

लूका 16:9 और मैं तुम से कहता हूँ, कि अधर्म के धन से अपने लिये मित्र बना लो; ताकि जब वह जाता रहे, तो वे तुम्हें अनन्त निवासों में ले लें। (IN)

लूका 16:10 जो थोड़े से थोड़े में विश्वासयोग्य है, वह बहुत में भी विश्वासयोग्य है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है। (IN)

लूका 16:11 इसलिए जब तुम सांसारिक धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो सच्चा धन तुम्हें कौन सौंपेगा? (IN)

लूका 16:12 और यदि तुम पराये धन में विश्वासयोग्य न ठहरे, तो जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें कौन देगा? (IN)

लूका 16:13 ¶ “कोई दास दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता क्योंकि वह तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा; या एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा: तुम परमेश्‍वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।” (IN)

लूका 16:14 ¶ फरीसी जो लोभी थे, ये सब बातें सुनकर उसका उपहास करने लगे। (IN)

लूका 16:15 उसने उनसे कहा, “तुम तो मनुष्यों के सामने अपने आप को धर्मी ठहराते हो, परन्तु परमेश्‍वर तुम्हारे मन को जानता है, क्योंकि जो वस्तु मनुष्यों की दृष्टि में महान है, वह परमेश्‍वर के निकट घृणित है। (IN)

लूका 16:16 ¶ “जब तक यूहन्ना आया, तब तक व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता प्रभाव में थे। उस समय से परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया जा रहा है, और हर कोई उसमें प्रबलता से प्रवेश करता है। (IN)

लूका 16:17 आकाश और पृथ्वी का टल जाना व्यवस्था के एक बिन्दु के मिट जाने से सहज है। (IN)

लूका 16:18 ¶ “जो कोई अपनी पत्‍नी को त्याग कर दूसरी से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है, और जो कोई ऐसी त्यागी हुई स्त्री से विवाह करता है, वह भी व्यभिचार करता है। (IN)

लूका 16:19 ¶ “एक धनवान मनुष्य था जो बैंगनी कपड़े और मलमल पहनता और प्रति-दिन सुख-विलास और धूम-धाम के साथ रहता था। (IN)

लूका 16:20 और लाज़र नाम का एक कंगाल घावों से भरा हुआ उसकी डेवढ़ी पर छोड़ दिया जाता था। (IN)

लूका 16:21 और वह चाहता था, कि धनवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे; वरन् कुत्ते भी आकर उसके घावों को चाटते थे। (IN)

लूका 16:22 और ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया, और स्वर्गदूतों ने उसे लेकर अब्राहम की गोद में पहुँचाया। और वह धनवान भी मरा; और गाड़ा गया, (IN)

लूका 16:23 और अधोलोक में उसने पीड़ा में पड़े हुए अपनी आँखें उठाई, और दूर से अब्राहम की गोद में लाज़र को देखा। (IN)

लूका 16:24 और उसने पुकारकर कहा, ‘हे पिता अब्राहम, मुझ पर दया करके लाज़र को भेज दे, ताकि वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ।’ (IN)

लूका 16:25 परन्तु अब्राहम ने कहा, ‘हे पुत्र स्मरण कर, कि तू अपने जीवनकाल में अच्छी वस्तुएँ पा चुका है, और वैसे ही लाज़र बुरी वस्तुएँ परन्तु अब वह यहाँ शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है। (IN)

लूका 16:26 ‘और इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक बड़ी खाई ठहराई गई है कि जो यहाँ से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सके, और न कोई वहाँ से इस पार हमारे पास आ सके।’ (IN)

लूका 16:27 उसने कहा, ‘तो हे पिता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज, (IN)

लूका 16:28 क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं; वह उनके सामने इन बातों की चेतावनी दे, ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आएँ।’ (IN)

लूका 16:29 अब्राहम ने उससे कहा, ‘उनके पास तो मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें हैं, वे उनकी सुनें।’ (IN)

लूका 16:30 उसने कहा, ‘नहीं, हे पिता अब्राहम; पर यदि कोई मरे हुओं में से उनके पास जाए, तो वे मन फिराएँगे।’ (IN)

लूका 16:31 उसने उससे कहा, ‘जब वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की नहीं सुनते, तो यदि मरे हुओं में से कोई भी जी उठे तो भी उसकी नहीं मानेंगे’।” (IN)

लूका 17:1 ¶ फिर उसने अपने चेलों से कहा, “यह निश्चित है कि वे बातें जो पाप का कारण है, आएँगे परन्तु हाय, उस मनुष्य पर जिसके कारण वे आती है! (IN)

लूका 17:2 जो इन छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है, उसके लिये यह भला होता कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह समुद्र में डाल दिया जाता। (IN)

लूका 17:3 सचेत रहो; यदि तेरा भाई अपराध करे तो उसे डाँट, और यदि पछताए तो उसे क्षमा कर। (IN)

लूका 17:4 यदि दिन भर में वह सात बार तेरा अपराध करे और सातों बार तेरे पास फिर आकर कहे, कि मैं पछताता हूँ, तो उसे क्षमा कर।” (IN)

लूका 17:5 ¶ तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।” (IN)

लूका 17:6 प्रभु ने कहा, “यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस शहतूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता। (IN)

लूका 17:7 ¶ “पर तुम में से ऐसा कौन है, जिसका दास हल जोतता, या भेड़ें चराता हो, और जब वह खेत से आए, तो उससे कहे, ‘तुरन्त आकर भोजन करने बैठ’? (IN)

लूका 17:8 क्या वह उनसे न कहेगा, कि मेरा खाना तैयार कर: और जब तक मैं खाऊँ-पीऊँ तब तक कमर बाँधकर मेरी सेवा कर; इसके बाद तू भी खा पी लेना? (IN)

लूका 17:9 क्या वह उस दास का एहसान मानेगा, कि उसने वे ही काम किए जिसकी आज्ञा दी गई थी? (IN)

लूका 17:10 इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुके हो जिसकी आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है’।” (IN)

लूका 17:11 ¶ और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील प्रदेश की सीमा से होकर जा रहा था। (IN)

लूका 17:12 और किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। (IN)

लूका 17:13 और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊँचे शब्द से कहा, “हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!” (IN)

लूका 17:14 उसने उन्हें देखकर कहा, “जाओ; और अपने आपको याजकों को दिखाओ।” और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए। (IN)

लूका 17:15 तब उनमें से एक यह देखकर कि मैं चंगा हो गया हूँ, ऊँचे शब्द से परमेश्‍वर की बड़ाई करता हुआ लौटा; (IN)

लूका 17:16 और यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरकर उसका धन्यवाद करने लगा; और वह सामरी था। (IN)

लूका 17:17 इस पर यीशु ने कहा, “क्या दसों शुद्ध न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं? (IN)

लूका 17:18 क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्‍वर की बड़ाई करता?” (IN)

लूका 17:19 तब उसने उससे कहा, “उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” (IN)

लूका 17:20 ¶ जब फरीसियों ने उससे पूछा, कि परमेश्‍वर का राज्य कब आएगा? तो उसने उनको उत्तर दिया, “परमेश्‍वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता। (IN)

लूका 17:21 और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहाँ है, या वहाँ है। क्योंकि, परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” (IN)

लूका 17:22 और उसने चेलों से कहा, “वे दिन आएँगे, जिनमें तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को देखना चाहोगे, और नहीं देखने पाओगे। (IN)

लूका 17:23 लोग तुम से कहेंगे, ‘देखो, वहाँ है!’ या ‘देखो यहाँ है!’ परन्तु तुम चले न जाना और न उनके पीछे हो लेना। (IN)

लूका 17:24 क्योंकि जैसे बिजली आकाश की एक छोर से कौंधकर आकाश की दूसरी छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। (IN)

लूका 17:25 परन्तु पहले अवश्य है, कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ। (IN)

लूका 17:26 जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा। (IN)

लूका 17:27 जिस दिन तक नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह-शादी होती थी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया। (IN)

लूका 17:28 और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे; (IN)

लूका 17:29 परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया। (IN)

लूका 17:30 मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा। (IN)

लूका 17:31 ¶ “उस दिन जो छत पर हो; और उसका सामान घर में हो, वह उसे लेने को न उतरे, और वैसे ही जो खेत में हो वह पीछे न लौटे। (IN)

लूका 17:32 लूत की पत्‍नी को स्मरण रखो! (IN)

लूका 17:33 जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, और जो कोई उसे खोए वह उसे बचाएगा। (IN)

लूका 17:34 मैं तुम से कहता हूँ, उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। (IN)

लूका 17:35 दो स्त्रियाँ एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। (IN)

लूका 17:36 [दो जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा।]” (IN)

लूका 17:37 यह सुन उन्होंने उससे पूछा, “हे प्रभु यह कहाँ होगा?” उसने उनसे कहा, “जहाँ लाश हैं, वहाँ गिद्ध इकट्ठे होंगे।” (IN)

लूका 18:1 ¶ फिर उसने इसके विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और साहस नहीं छोड़ना चाहिए उनसे यह दृष्टान्त कहा: (IN)

लूका 18:2 “किसी नगर में एक न्यायी रहता था; जो न परमेश्‍वर से डरता था और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। (IN)

लूका 18:3 और उसी नगर में एक विधवा भी रहती थी: जो उसके पास आ आकर कहा करती थी, ‘मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा।’ (IN)

लूका 18:4 उसने कितने समय तक तो न माना परन्तु अन्त में मन में विचार कर कहा, ‘यद्यपि मैं न परमेश्‍वर से डरता, और न मनुष्यों की कुछ परवाह करता हूँ; (IN)

लूका 18:5 फिर भी यह विधवा मुझे सताती रहती है, इसलिए मैं उसका न्याय चुकाऊँगा, कहीं ऐसा न हो कि घड़ी-घड़ी आकर अन्त को मेरी नाक में दम करे’।” (IN)

लूका 18:6 ¶ प्रभु ने कहा, “सुनो, कि यह अधर्मी न्यायी क्या कहता है? (IN)

लूका 18:7 अतः क्या परमेश्‍वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उसकी दुहाई देते रहते; और क्या वह उनके विषय में देर करेगा? (IN)

लूका 18:8 मैं तुम से कहता हूँ; वह तुरन्त उनका न्याय चुकाएगा; पर मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?” (IN)

लूका 18:9 ¶ और उसने उनसे जो अपने ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और दूसरों को तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा: (IN)

लूका 18:10 “दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेनेवाला। (IN)

लूका 18:11 फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यह प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्‍वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि मैं और मनुष्यों के समान दुष्टता करनेवाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेनेवाले के समान हूँ। (IN)

लूका 18:12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ; मैं अपनी सब कमाई का दसवाँ अंश भी देता हूँ।’ (IN)

लूका 18:13 ¶ “परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आँख उठाना भी न चाहा, वरन् अपनी छाती पीट-पीट कर कहा, ‘हे परमेश्‍वर मुझ पापी पर दया कर!’ (IN)

लूका 18:14 मैं तुम से कहता हूँ, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहरा और अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।” (IN)

लूका 18:15 ¶ फिर लोग अपने बच्चों को भी उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; और चेलों ने देखकर उन्हें डाँटा। (IN)

लूका 18:16 यीशु ने बच्चों को पास बुलाकर कहा, “बालकों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो: क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य ऐसों ही का है। (IN)

लूका 18:17 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो कोई परमेश्‍वर के राज्य को बालक के समान ग्रहण न करेगा वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।” (IN)

लूका 18:18 ¶ किसी सरदार ने उससे पूछा, “हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?” (IN)

लूका 18:19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्‍वर। (IN)

लूका 18:20 तू आज्ञाओं को तो जानता है: ‘व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’।” (IN)

लूका 18:21 उसने कहा, “मैं तो इन सब को लड़कपन ही से मानता आया हूँ।” (IN)

लूका 18:22 यह सुन, “यीशु ने उससे कहा, तुझ में अब भी एक बात की घटी है, अपना सब कुछ बेचकर कंगालों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।” (IN)

लूका 18:23 वह यह सुनकर बहुत उदास हुआ, क्योंकि वह बड़ा धनी था। (IN)

लूका 18:24 ¶ यीशु ने उसे देखकर कहा, “धनवानों का परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! (IN)

लूका 18:25 परमेश्‍वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।” (IN)

लूका 18:26 और सुननेवालों ने कहा, “तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?” (IN)

लूका 18:27 उसने कहा, “जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्‍वर से हो सकता है।” (IN)

लूका 18:28 पतरस ने कहा, “देख, हम तो घर-बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।” (IN)

लूका 18:29 उसने उनसे कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं जिस ने परमेश्‍वर के राज्य के लिये घर, या पत्‍नी, या भाइयों, या माता-पिता, या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो। (IN)

लूका 18:30 और इस समय कई गुणा अधिक न पाए; और परलोक में अनन्त जीवन।” (IN)

लूका 18:31 ¶ फिर उसने बारहों को साथ लेकर उनसे कहा, “हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्र के लिये भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं वे सब पूरी होंगी। (IN)

लूका 18:32 क्योंकि वह अन्यजातियों के हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसका उपहास करेंगे; और उसका अपमान करेंगे, और उस पर थूकेंगे। (IN)

लूका 18:33 और उसे कोड़े मारेंगे, और मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।” (IN)

लूका 18:34 और उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी और यह बात उनसे छिपी रही, और जो कहा गया था वह उनकी समझ में न आया। (IN)

लूका 18:35 ¶ जब वह यरीहो के निकट पहुँचा, तो एक अंधा सड़क के किनारे बैठा हुआ भीख माँग रहा था। (IN)

लूका 18:36 और वह भीड़ के चलने की आहट सुनकर पूछने लगा, “यह क्या हो रहा है?” (IN)

लूका 18:37 उन्होंने उसको बताया, “यीशु नासरी जा रहा है।” (IN)

लूका 18:38 तब उसने पुकार के कहा, “हे यीशु, दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” (IN)

लूका 18:39 जो आगे-आगे जा रहे थे, वे उसे डाँटने लगे कि चुप रहे परन्तु वह और भी चिल्लाने लगा, “हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर!” (IN)

लूका 18:40 तब यीशु ने खड़े होकर आज्ञा दी कि उसे मेरे पास लाओ, और जब वह निकट आया, तो उसने उससे यह पूछा, (IN)

लूका 18:41 तू क्या चाहता है, “मैं तेरे लिये करूँ?” उसने कहा, “हे प्रभु, यह कि मैं देखने लगूँ।” (IN)

लूका 18:42 यीशु ने उससे कहा, “देखने लग, तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है।” (IN)

लूका 18:43 और वह तुरन्त देखने लगा; और परमेश्‍वर की बड़ाई करता हुआ, उसके पीछे हो लिया, और सब लोगों ने देखकर परमेश्‍वर की स्तुति की। (IN)

लूका 19:1 ¶ वह यरीहो में प्रवेश करके जा रहा था। (IN)

लूका 19:2 वहाँ जक्कई नामक एक मनुष्य था, जो चुंगी लेनेवालों का सरदार और धनी था। (IN)

लूका 19:3 वह यीशु को देखना चाहता था कि वह कौन सा है? परन्तु भीड़ के कारण देख न सकता था। क्योंकि वह नाटा था। (IN)

लूका 19:4 तब उसको देखने के लिये वह आगे दौड़कर एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि यीशु उसी मार्ग से जानेवाला था। (IN)

लूका 19:5 जब यीशु उस जगह पहुँचा, तो ऊपर दृष्टि कर के उससे कहा, “हे जक्कई, झट उतर आ; क्योंकि आज मुझे तेरे घर में रहना अवश्य है।” (IN)

लूका 19:6 वह तुरन्त उतरकर आनन्द से उसे अपने घर को ले गया। (IN)

लूका 19:7 यह देखकर सब लोग कुड़कुड़ाकर कहने लगे, “वह तो एक पापी मनुष्य के यहाँ गया है।” (IN)

लूका 19:8 जक्कई ने खड़े होकर प्रभु से कहा, “हे प्रभु, देख, मैं अपनी आधी सम्पत्ति कंगालों को देता हूँ, और यदि किसी का कुछ भी अन्याय करके ले लिया है तो उसे चौगुना फेर देता हूँ।” (IN)

लूका 19:9 तब यीशु ने उससे कहा, “आज इस घर में उद्धार आया है, इसलिए कि यह भी अब्राहम का एक पुत्र है। (IN)

लूका 19:10 क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।” (IN)

लूका 19:11 ¶ जब वे ये बातें सुन रहे थे, तो उसने एक दृष्टान्त कहा, इसलिए कि वह यरूशलेम के निकट था, और वे समझते थे, कि परमेश्‍वर का राज्य अभी प्रगट होनेवाला है। (IN)

लूका 19:12 अतः उसने कहा, “एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पा कर लौट आए। (IN)

लूका 19:13 और उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उनसे कहा, ‘मेरे लौट आने तक लेन-देन करना।’ (IN)

लूका 19:14 “परन्तु उसके नगर के रहनेवाले उससे बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतों के द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे। (IN)

लूका 19:15 ¶ “जब वह राजपद पा कर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या-क्या कमाया। (IN)

लूका 19:16 तब पहले ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरे मुहर से दस और मुहरें कमाई हैं।’ (IN)

लूका 19:17 उसने उससे कहा, ‘हे उत्तम दास, तू धन्य है, तू बहुत ही थोड़े में विश्वासयोग्य निकला अब दस नगरों का अधिकार रख।’ (IN)

लूका 19:18 दूसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरी मुहर से पाँच और मुहरें कमाई हैं।’ (IN)

लूका 19:19 उसने उससे कहा, ‘तू भी पाँच नगरों पर अधिकार रख।’ (IN)

लूका 19:20 तीसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, देख, तेरी मुहर यह है, जिसे मैंने अँगोछे में बाँध रखा था। (IN)

लूका 19:21 क्योंकि मैं तुझ से डरता था, इसलिए कि तू कठोर मनुष्य है: जो तूने नहीं रखा उसे उठा लेता है, और जो तूने नहीं बोया, उसे काटता है।’ (IN)

लूका 19:22 उसने उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुँह से तुझे दोषी ठहराता हूँ। तू मुझे जानता था कि कठोर मनुष्य हूँ, जो मैंने नहीं रखा उसे उठा लेता, और जो मैंने नहीं बोया, उसे काटता हूँ; (IN)

लूका 19:23 तो तूने मेरे रुपये सर्राफों को क्यों नहीं रख दिए, कि मैं आकर ब्याज समेत ले लेता?’ (IN)

लूका 19:24 और जो लोग निकट खड़े थे, उसने उनसे कहा, ‘वह मुहर उससे ले लो, और जिसके पास दस मुहरें हैं उसे दे दो।’ (IN)

लूका 19:25 उन्होंने उससे कहा, ‘हे स्वामी, उसके पास दस मुहरें तो हैं।’ (IN)

लूका 19:26 ‘मैं तुम से कहता हूँ, कि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं, उससे वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा। (IN)

लूका 19:27 परन्तु मेरे उन बैरियों को जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूँ, उनको यहाँ लाकर मेरे सामने मार डालो’।” (IN)

लूका 19:28 ¶ ये बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उनके आगे-आगे चला। (IN)

लूका 19:29 और जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहके भेजा, (IN)

लूका 19:30 “सामने के गाँव में जाओ, और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बन्धा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर लाओ। (IN)

लूका 19:31 और यदि कोई तुम से पूछे, कि क्यों खोलते हो, तो यह कह देना, कि प्रभु को इसकी जरूरत है।” (IN)

लूका 19:32 ¶ जो भेजे गए थे, उन्होंने जाकर जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया। (IN)

लूका 19:33 जब वे गदहे के बच्चे को खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उनसे पूछा, “इस बच्चे को क्यों खोलते हो?” (IN)

लूका 19:34 उन्होंने कहा, “प्रभु को इसकी जरूरत है।” (IN)

लूका 19:35 वे उसको यीशु के पास ले आए और अपने कपड़े उस बच्चे पर डालकर यीशु को उस पर बैठा दिया। (IN)

लूका 19:36 जब वह जा रहा था, तो वे अपने कपड़े मार्ग में बिछाते जाते थे। (IN)

लूका 19:37 और निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुँचा, तो चेलों की सारी मण्डली उन सब सामर्थ्य के कामों के कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित होकर बड़े शब्द से परमेश्‍वर की स्तुति करने लगी: (IN)

लूका 19:38 “धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से आता है! (IN)

लूका 19:39 ¶ तब भीड़ में से कितने फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” (IN)

लूका 19:40 उसने उत्तर दिया, “मैं तुम में से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।” (IN)

लूका 19:41 ¶ जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। (IN)

लूका 19:42 और कहा, “क्या ही भला होता, कि तू; हाँ, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। (IN)

लूका 19:43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे। (IN)

लूका 19:44 और तुझे और तेरे साथ तेरे बालकों को, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्‍टि की गई न पहचाना।” (IN)

लूका 19:45 ¶ तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा। (IN)

लूका 19:46 और उनसे कहा, “लिखा है; ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,’ परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।” (IN)

लूका 19:47 और वह प्रतिदिन मन्दिर में उपदेश देता था : और प्रधान याजक और शास्त्री और लोगों के प्रमुख उसे मार डालने का अवसर ढूँढ़ते थे। (IN)

लूका 19:48 परन्तु कोई उपाय न निकाल सके; कि यह किस प्रकार करें, क्योंकि सब लोग बड़ी चाह से उसकी सुनते थे। (IN)

लूका 20:1 ¶ एक दिन ऐसा हुआ कि जब वह मन्दिर में लोगों को उपदेश देता और सुसमाचार सुना रहा था, तो प्रधान याजक और शास्त्री, प्राचीनों के साथ पास आकर खड़े हुए। (IN)

लूका 20:2 और कहने लगे, “हमें बता, तू इन कामों को किस अधिकार से करता है, और वह कौन है, जिसने तुझे यह अधिकार दिया है?” (IN)

लूका 20:3 उसने उनको उत्तर दिया, “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ; मुझे बताओ (IN)

लूका 20:4 यूहन्ना का बपतिस्मा स्वर्ग की ओर से था या मनुष्यों की ओर से था?” (IN)

लूका 20:5 तब वे आपस में कहने लगे, “यदि हम कहें, ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा; ‘फिर तुम ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ (IN)

लूका 20:6 और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो सब लोग हमें पत्थराव करेंगे, क्योंकि वे सचमुच जानते हैं, कि यूहन्ना भविष्यद्वक्ता था।” (IN)

लूका 20:7 अतः उन्होंने उत्तर दिया, “हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से था।” (IN)

लूका 20:8 यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि मैं ये काम किस अधिकार से करता हूँ।” (IN)

लूका 20:9 ¶ तब वह लोगों से यह दृष्टान्त कहने लगा, “किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानों को उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनों के लिये परदेश चला गया। (IN)

लूका 20:10 नियुक्त समय पर उसने किसानों के पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलों का भाग उसे दें, पर किसानों ने उसे पीट कर खाली हाथ लौटा दिया। (IN)

लूका 20:11 फिर उसने एक और दास को भेजा, ओर उन्होंने उसे भी पीट कर और उसका अपमान करके खाली हाथ लौटा दिया। (IN)

लूका 20:12 फिर उसने तीसरा भेजा, और उन्होंने उसे भी घायल करके निकाल दिया। (IN)

लूका 20:13 तब दाख की बारी के स्वामी ने कहा, ‘मैं क्या करूँ? मैं अपने प्रिय पुत्र को भेजूँगा, क्या जाने वे उसका आदर करें।’ (IN)

लूका 20:14 जब किसानों ने उसे देखा तो आपस में विचार करने लगे, ‘यह तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, कि विरासत हमारी हो जाए।’ (IN)

लूका 20:15 और उन्होंने उसे दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला: इसलिए दाख की बारी का स्वामी उनके साथ क्या करेगा? (IN)

लूका 20:16 वह आकर उन किसानों को नाश करेगा, और दाख की बारी दूसरों को सौंपेगा।” यह सुनकर उन्होंने कहा, “परमेश्‍वर ऐसा न करे।” (IN)

लूका 20:17 उसने उनकी ओर देखकर कहा, “फिर यह क्या लिखा है: (IN)

लूका 20:18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा, और जिस पर वह गिरेगा, उसको पीस डालेगा।” (IN)

लूका 20:19 ¶ उसी घड़ी शास्त्रियों और प्रधान याजकों ने उसे पकड़ना चाहा, क्योंकि समझ गए थे, कि उसने उनके विरुद्ध दृष्टान्त कहा, परन्तु वे लोगों से डरे। (IN)

लूका 20:20 और वे उसकी ताक में लगे और भेदिये भेजे, कि धर्मी का भेष धरकर उसकी कोई न कोई बात पकड़ें, कि उसे राज्यपाल के हाथ और अधिकार में सौंप दें। (IN)

लूका 20:21 उन्होंने उससे यह पूछा, “हे गुरु, हम जानते हैं कि तू ठीक कहता, और सिखाता भी है, और किसी का पक्षपात नहीं करता; वरन् परमेश्‍वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। (IN)

लूका 20:22 क्या हमें कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं?” (IN)

लूका 20:23 उसने उनकी चतुराई को ताड़कर उनसे कहा, (IN)

लूका 20:24 “एक दीनार मुझे दिखाओ। इस पर किसकी छाप और नाम है?” उन्होंने कहा, “कैसर का।” (IN)

लूका 20:25 उसने उनसे कहा, “तो जो कैसर का है, वह कैसर को दो और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।” (IN)

लूका 20:26 वे लोगों के सामने उस बात को पकड़ न सके, वरन् उसके उत्तर से अचम्भित होकर चुप रह गए। (IN)

लूका 20:27 ¶ फिर सदूकी जो कहते हैं, कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उनमें से कुछ ने उसके पास आकर पूछा। (IN)

लूका 20:28 “हे गुरु, मूसा ने हमारे लिये यह लिखा है, ‘यदि किसी का भाई अपनी पत्‍नी के रहते हुए बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्‍नी से विवाह कर ले, और अपने भाई के लिये वंश उत्‍पन्‍न करे।’ (IN)

लूका 20:29 अतः सात भाई थे, पहला भाई विवाह करके बिना सन्तान मर गया। (IN)

लूका 20:30 फिर दूसरे, (IN)

लूका 20:31 और तीसरे ने भी उस स्त्री से विवाह कर लिया। इसी रीति से सातों बिना सन्तान मर गए। (IN)

लूका 20:32 सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। (IN)

लूका 20:33 अतः जी उठने पर वह उनमें से किस की पत्‍नी होगी, क्योंकि वह सातों की पत्‍नी रह चुकी थी।” (IN)

लूका 20:34 यीशु ने उनसे कहा, “इस युग के सन्तानों में तो विवाह-शादी होती है, (IN)

लूका 20:35 पर जो लोग इस योग्य ठहरेंगे, की उस युग को और मरे हुओं में से जी उठना प्राप्त करें, उनमें विवाह-शादी न होगी। (IN)

लूका 20:36 वे फिर मरने के भी नहीं; क्योंकि वे स्वर्गदूतों के समान होंगे, और पुनरुत्थान की सन्तान होने से परमेश्‍वर के भी सन्तान होंगे। (IN)

लूका 20:37 परन्तु इस बात को कि मरे हुए जी उठते हैं, मूसा ने भी झाड़ी की कथा में प्रगट की है, वह प्रभु को ‘अब्राहम का परमेश्‍वर, और इसहाक का परमेश्‍वर, और याकूब का परमेश्‍वर’ कहता है। (IN)

लूका 20:38 परमेश्‍वर तो मुर्दों का नहीं परन्तु जीवितों का परमेश्‍वर है: क्योंकि उसके निकट सब जीवित हैं।” (IN)

लूका 20:39 तब यह सुनकर शास्त्रियों में से कितनों ने कहा, “हे गुरु, तूने अच्छा कहा।” (IN)

लूका 20:40 और उन्हें फिर उससे कुछ और पूछने का साहस न हुआ। (IN)

लूका 20:41 ¶ फिर उसने उनसे पूछा, “मसीह को दाऊद की सन्तान कैसे कहते हैं? (IN)

लूका 20:42 दाऊद आप भजन संहिता की पुस्तक में कहता है: (IN)

लूका 20:43 मेरे दाहिने बैठ, (IN)

लूका 20:44 दाऊद तो उसे प्रभु कहता है; तो फिर वह उसकी सन्तान कैसे ठहरा?” (IN)

लूका 20:45 ¶ जब सब लोग सुन रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा। (IN)

लूका 20:46 “शास्त्रियों से सावधान रहो, जिनको लम्बे-लम्बे वस्त्र पहने हुए फिरना अच्छा लगता है, और जिन्हें बाजारों में नमस्कार, और आराधनालयों में मुख्य आसन और भोज में मुख्य स्थान प्रिय लगते हैं। (IN)

लूका 20:47 वे विधवाओं के घर खा जाते हैं, और दिखाने के लिये बड़ी देर तक प्रार्थना करते रहते हैं, ये बहुत ही दण्ड पाएँगे।” (IN)

लूका 21:1 ¶ फिर उसने आँख उठाकर धनवानों को अपना-अपना दान भण्डार में डालते हुए देखा। (IN)

लूका 21:2 और उसने एक कंगाल विधवा को भी उसमें दो दमड़ियाँ डालते हुए देखा। (IN)

लूका 21:3 तब उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि इस कंगाल विधवा ने सबसे बढ़कर डाला है। (IN)

लूका 21:4 क्योंकि उन सब ने अपनी-अपनी बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इसने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है।” (IN)

लूका 21:5 ¶ जब कितने लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे, कि वह कैसे सुन्दर पत्थरों और भेंट की वस्तुओं से संवारा गया है, तो उसने कहा, (IN)

लूका 21:6 “वे दिन आएँगे, जिनमें यह सब जो तुम देखते हो, उनमें से यहाँ किसी पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।” (IN)

लूका 21:7 ¶ उन्होंने उससे पूछा, “हे गुरु, यह सब कब होगा? और ये बातें जब पूरी होने पर होंगी, तो उस समय का क्या चिन्ह होगा?” (IN)

लूका 21:8 उसने कहा, “सावधान रहो, कि भरमाए न जाओ, क्योंकि बहुत से मेरे नाम से आकर कहेंगे, कि मैं वही हूँ; और यह भी कि समय निकट आ पहुँचा है: तुम उनके पीछे न चले जाना। (IN)

लूका 21:9 और जब तुम लड़ाइयों और बलवों की चर्चा सुनो, तो घबरा न जाना; क्योंकि इनका पहले होना अवश्य है; परन्तु उस समय तुरन्त अन्त न होगा।” (IN)

लूका 21:10 ¶ तब उसने उनसे कहा, “जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। (IN)

लूका 21:11 और बड़े-बड़े भूकम्प होंगे, और जगह-जगह अकाल और महामारियाँ पड़ेंगी, और आकाश में भयंकर बातें और बड़े-बड़े चिन्ह प्रगट होंगे। (IN)

लूका 21:12 परन्तु इन सब बातों से पहले वे मेरे नाम के कारण तुम्हें पकड़ेंगे, और सताएँगे, और आराधनालयों में सौंपेंगे, और बन्दीगृह में डलवाएँगे, और राजाओं और राज्यपालों के सामने ले जाएँगे। (IN)

लूका 21:13 पर यह तुम्हारे लिये गवाही देने का अवसर हो जाएगा। (IN)

लूका 21:14 इसलिए अपने-अपने मन में ठान रखो कि हम पहले से उत्तर देने की चिन्ता न करेंगे। (IN)

लूका 21:15 क्योंकि मैं तुम्हें ऐसा बोल और बुद्धि दूँगा, कि तुम्हारे सब विरोधी सामना या खण्डन न कर सकेंगे। (IN)

लूका 21:16 और तुम्हारे माता-पिता और भाई और कुटुम्ब, और मित्र भी तुम्हें पकड़वाएँगे; यहाँ तक कि तुम में से कितनों को मरवा डालेंगे। (IN)

लूका 21:17 और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे। (IN)

लूका 21:18 परन्तु तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका न होगा। (IN)

लूका 21:19 “अपने धीरज से तुम अपने प्राणों को बचाए रखोगे। (IN)

लूका 21:20 ¶ “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। (IN)

लूका 21:21 तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएँ, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएँ; और जो गाँवों में हो वे उसमें न जाएँ। (IN)

लूका 21:22 क्योंकि यह पलटा लेने के ऐसे दिन होंगे, जिनमें लिखी हुई सब बातें पूरी हो जाएँगी। (IN)

लूका 21:23 उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उनके लिये हाय, हाय! क्योंकि देश में बड़ा क्लेश और इन लोगों पर बड़ी आपत्ति होगी। (IN)

लूका 21:24 वे तलवार के कौर हो जाएँगे, और सब देशों के लोगों में बन्धुए होकर पहुँचाए जाएँगे, और जब तक अन्यजातियों का समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्यजातियों से रौंदा जाएगा। (IN)

लूका 21:25 ¶ “और सूरज और चाँद और तारों में चिन्ह दिखाई देंगे, और पृथ्वी पर, देश-देश के लोगों को संकट होगा; क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएँगे। (IN)

लूका 21:26 और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाँट देखते-देखते लोगों के जी में जी न रहेगा क्योंकि आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। (IN)

लूका 21:27 तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्थ्य और बड़ी महिमा के साथ बादल पर आते देखेंगे। (IN)

लूका 21:28 जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा।” (IN)

लूका 21:29 ¶ उसने उनसे एक दृष्टान्त भी कहा, “अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो। (IN)

लूका 21:30 ज्यों ही उनकी कोंपलें निकलती हैं, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो, कि ग्रीष्मकाल निकट है। (IN)

लूका 21:31 इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्‍वर का राज्य निकट है। (IN)

लूका 21:32 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का कदापि अन्त न होगा। (IN)

लूका 21:33 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी। (IN)

लूका 21:34 ¶ “इसलिए सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फंदे के समान अचानक आ पड़े। (IN)

लूका 21:35 क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। (IN)

लूका 21:36 इसलिए जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने के योग्य बनो।” (IN)

लूका 21:37 ¶ और वह दिन को मन्दिर में उपदेश करता था; और रात को बाहर जाकर जैतून नाम पहाड़ पर रहा करता था। (IN)

लूका 21:38 और भोर को तड़के सब लोग उसकी सुनने के लिये मन्दिर में उसके पास आया करते थे। (IN)

लूका 22:1 ¶ अख़मीरी रोटी का पर्व जो फसह कहलाता है, निकट था। (IN)

लूका 22:2 और प्रधान याजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसको कैसे मार डालें, पर वे लोगों से डरते थे। (IN)

लूका 22:3 ¶ और शैतान यहूदा में समाया, जो इस्करियोती कहलाता और बारह चेलों में गिना जाता था। (IN)

लूका 22:4 उसने जाकर प्रधान याजकों और पहरुओं के सरदारों के साथ बातचीत की, कि उसको किस प्रकार उनके हाथ पकड़वाए। (IN)

लूका 22:5 वे आनन्दित हुए, और उसे रुपये देने का वचन दिया। (IN)

लूका 22:6 उसने मान लिया, और अवसर ढूँढ़ने लगा, कि बिना उपद्रव के उसे उनके हाथ पकड़वा दे। (IN)

लूका 22:7 ¶ तब अख़मीरी रोटी के पर्व का दिन आया, जिसमें फसह का मेम्‍ना बलि करना अवश्य था। (IN)

लूका 22:8 और यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा, “जाकर हमारे खाने के लिये फसह तैयार करो।” (IN)

लूका 22:9 उन्होंने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है, कि हम तैयार करें?” (IN)

लूका 22:10 उसने उनसे कहा, “देखो, नगर में प्रवेश करते ही एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, जिस घर में वह जाए; तुम उसके पीछे चले जाना, (IN)

लूका 22:11 और उस घर के स्वामी से कहो, ‘गुरु तुझ से कहता है; कि वह पाहुनशाला कहाँ है जिसमें मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ?’ (IN)

लूका 22:12 वह तुम्हें एक सजी-सजाई बड़ी अटारी दिखा देगा; वहाँ तैयारी करना। (IN)

लूका 22:13 उन्होंने जाकर, जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया। (IN)

लूका 22:14 ¶ जब घड़ी पहुँची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। (IN)

लूका 22:15 और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी, कि दुःख-भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊँ। (IN)

लूका 22:16 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक वह परमेश्‍वर के राज्य में पूरा न हो तब तक मैं उसे कभी न खाऊँगा।” (IN)

लूका 22:17 तब उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया और कहा, “इसको लो और आपस में बाँट लो। (IN)

लूका 22:18 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक परमेश्‍वर का राज्य न आए तब तक मैं दाखरस अब से कभी न पीऊँगा।” (IN)

लूका 22:19 फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (IN)

लूका 22:20 इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है। (IN)

लूका 22:21 पर देखो, मेरे पकड़वानेवाले का हाथ मेरे साथ मेज पर है। (IN)

लूका 22:22 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिये ठहराया गया, जाता ही है, पर हाय उस मनुष्य पर, जिसके द्वारा वह पकड़वाया जाता है!” (IN)

लूका 22:23 तब वे आपस में पूछ-ताछ करने लगे, “हम में से कौन है, जो यह काम करेगा?” (IN)

लूका 22:24 ¶ उनमें यह वाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है? (IN)

लूका 22:25 उसने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं। (IN)

लूका 22:26 परन्तु तुम ऐसे न होना; वरन् जो तुम में बड़ा है, वह छोटे के समान और जो प्रधान है, वह सेवक के समान बने। (IN)

लूका 22:27 क्योंकि बड़ा कौन है; वह जो भोजन पर बैठा या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है? पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक के समान हूँ। (IN)

लूका 22:28 ¶ “परन्तु तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे; (IN)

लूका 22:29 और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूँ। (IN)

लूका 22:30 ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पीओ; वरन् सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो। (IN)

लूका 22:31 ¶ “शमौन, हे शमौन, शैतान ने तुम लोगों को माँग लिया है कि गेहूँ के समान फटके। (IN)

लूका 22:32 परन्तु मैंने तेरे लिये विनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।” (IN)

लूका 22:33 उसने उससे कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, वरन् मरने को भी तैयार हूँ।” (IN)

लूका 22:34 उसने कहा, “हे पतरस मैं तुझ से कहता हूँ, कि आज मुर्गा बाँग देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि मैं उसे नहीं जानता।” (IN)

लूका 22:35 ¶ और उसने उनसे कहा, “जब मैंने तुम्हें बटुए, और झोली, और जूते बिना भेजा था, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुई थी?” उन्होंने कहा, “किसी वस्तु की नहीं।” (IN)

लूका 22:36 उसने उनसे कहा, “परन्तु अब जिसके पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही झोली भी, और जिसके पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले। (IN)

लूका 22:37 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यह जो लिखा है, ‘वह अपराधी के साथ गिना गया,’ उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है; क्योंकि मेरे विषय की बातें पूरी होने पर हैं।” (IN)

लूका 22:38 ¶ उन्होंने कहा, “हे प्रभु, देख, यहाँ दो तलवारें हैं।” उसने उनसे कहा, “बहुत हैं।” (IN)

लूका 22:39 ¶ तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए। (IN)

लूका 22:40 उस जगह पहुँचकर उसने उनसे कहा, “प्रार्थना करो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।” (IN)

लूका 22:41 और वह आप उनसे अलग एक ढेला फेंकने की दूरी भर गया, और घुटने टेककर प्रार्थना करने लगा। (IN)

लूका 22:42 “हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, फिर भी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।” (IN)

लूका 22:43 तब स्वर्ग से एक दूत उसको दिखाई दिया जो उसे सामर्थ्य देता था। (IN)

लूका 22:44 और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हार्दिक वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी-बड़ी बूँदों के समान भूमि पर गिर रहा था। (IN)

लूका 22:45 तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया। (IN)

लूका 22:46 और उनसे कहा, “क्यों सोते हो? उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो।” (IN)

लूका 22:47 ¶ वह यह कह ही रहा था, कि देखो एक भीड़ आई, और उन बारहों में से एक जिसका नाम यहूदा था उनके आगे-आगे आ रहा था, वह यीशु के पास आया, कि उसे चूम ले। (IN)

लूका 22:48 यीशु ने उससे कहा, “हे यहूदा, क्या तू चूमा लेकर मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है?” (IN)

लूका 22:49 उसके साथियों ने जब देखा कि क्या होनेवाला है, तो कहा, “हे प्रभु, क्या हम तलवार चलाएँ?” (IN)

लूका 22:50 और उनमें से एक ने महायाजक के दास पर तलवार चलाकर उसका दाहिना कान काट दिया। (IN)

लूका 22:51 इस पर यीशु ने कहा, “अब बस करो।” और उसका कान छूकर उसे अच्छा किया। (IN)

लूका 22:52 तब यीशु ने प्रधान याजकों और मन्दिर के पहरुओं के सरदारों और प्राचीनों से, जो उस पर चढ़ आए थे, कहा, “क्या तुम मुझे डाकू जानकर तलवारें और लाठियाँ लिए हुए निकले हो? (IN)

लूका 22:53 जब मैं मन्दिर में हर दिन तुम्हारे साथ था, तो तुम ने मुझ पर हाथ न डाला; पर यह तुम्हारी घड़ी है, और अंधकार का अधिकार है।” (IN)

लूका 22:54 ¶ फिर वे उसे पकड़कर ले चले, और महायाजक के घर में लाए और पतरस दूर ही दूर उसके पीछे-पीछे चलता था। (IN)

लूका 22:55 और जब वे आँगन में आग सुलगाकर इकट्ठे बैठे, तो पतरस भी उनके बीच में बैठ गया। (IN)

लूका 22:56 और एक दासी उसे आग के उजियाले में बैठे देखकर और उसकी ओर ताक कर कहने लगी, “यह भी तो उसके साथ था।” (IN)

लूका 22:57 परन्तु उसने यह कहकर इन्कार किया, “हे नारी, मैं उसे नहीं जानता।” (IN)

लूका 22:58 थोड़ी देर बाद किसी और ने उसे देखकर कहा, “तू भी तो उन्हीं में से है।” पतरस ने कहा, “हे मनुष्य, मैं नहीं हूँ।” (IN)

लूका 22:59 कोई घंटे भर के बाद एक और मनुष्य दृढ़ता से कहने लगा, “निश्चय यह भी तो उसके साथ था; क्योंकि यह गलीली है।” (IN)

लूका 22:60 पतरस ने कहा, “हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तू क्या कहता है?” वह कह ही रहा था कि तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। (IN)

लूका 22:61 तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा, और पतरस को प्रभु की वह बात याद आई जो उसने कही थी, “आज मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” (IN)

लूका 22:62 और वह बाहर निकलकर फूट-फूट कर रोने लगा। (IN)

लूका 22:63 ¶ जो मनुष्य यीशु को पकड़े हुए थे, वे उसका उपहास करके पीटने लगे; (IN)

लूका 22:64 और उसकी आँखें ढाँपकर उससे पूछा, “भविष्यद्वाणी करके बता कि तुझे किसने मारा।” (IN)

लूका 22:65 और उन्होंने बहुत सी और भी निन्दा की बातें उसके विरोध में कहीं। (IN)

लूका 22:66 ¶ जब दिन हुआ तो लोगों के पुरनिए और प्रधान याजक और शास्त्री इकट्ठे हुए, और उसे अपनी महासभा में लाकर पूछा, (IN)

लूका 22:67 “यदि तू मसीह है, तो हम से कह दे!” उसने उनसे कहा, “यदि मैं तुम से कहूँ तो विश्वास न करोगे। (IN)

लूका 22:68 और यदि पूछूँ, तो उत्तर न दोगे। (IN)

लूका 22:69 परन्तु अब से मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की दाहिनी ओर बैठा रहेगा।” (IN)

लूका 22:70 इस पर सब ने कहा, “तो क्या तू परमेश्‍वर का पुत्र है?” उसने उनसे कहा, “तुम आप ही कहते हो, क्योंकि मैं हूँ।” (IN)

लूका 22:71 तब उन्होंने कहा, “अब हमें गवाही की क्या आवश्यकता है; क्योंकि हमने आप ही उसके मुँह से सुन लिया है।” (IN)

लूका 23:1 ¶ तब सारी सभा उठकर यीशु को पिलातुस के पास ले गई। (IN)

लूका 23:2 और वे यह कहकर उस पर दोष लगाने लगे, “हमने इसे लोगों को बहकाते और कैसर को कर देने से मना करते, और अपने आप को मसीह, राजा कहते हुए सुना है।” (IN)

लूका 23:3 पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” उसने उसे उत्तर दिया, “तू आप ही कह रहा है।” (IN)

लूका 23:4 तब पिलातुस ने प्रधान याजकों और लोगों से कहा, “मैं इस मनुष्य में कुछ दोष नहीं पाता।” (IN)

लूका 23:5 पर वे और भी दृढ़ता से कहने लगे, “यह गलील से लेकर यहाँ तक सारे यहूदिया में उपदेश दे देकर लोगों को भड़काता है।” (IN)

लूका 23:6 यह सुनकर पिलातुस ने पूछा, “क्या यह मनुष्य गलीली है?” (IN)

लूका 23:7 और यह जानकर कि वह हेरोदेस की रियासत का है, उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि उन दिनों में वह भी यरूशलेम में था। (IN)

लूका 23:8 ¶ हेरोदेस यीशु को देखकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ, क्योंकि वह बहुत दिनों से उसको देखना चाहता था : इसलिए कि उसके विषय में सुना था, और उसका कुछ चिन्ह देखने की आशा रखता था। (IN)

लूका 23:9 वह उससे बहुत सारी बातें पूछता रहा, पर उसने उसको कुछ भी उत्तर न दिया। (IN)

लूका 23:10 और प्रधान याजक और शास्त्री खड़े हुए तन मन से उस पर दोष लगाते रहे। (IN)

लूका 23:11 तब हेरोदेस ने अपने सिपाहियों के साथ उसका अपमान करके उपहास किया, और भड़कीला वस्त्र पहनाकर उसे पिलातुस के पास लौटा दिया। (IN)

लूका 23:12 उसी दिन पिलातुस और हेरोदेस मित्र हो गए। इसके पहले वे एक दूसरे के बैरी थे। (IN)

लूका 23:13 ¶ पिलातुस ने प्रधान याजकों और सरदारों और लोगों को बुलाकर उनसे कहा, (IN)

लूका 23:14 “तुम इस मनुष्य को लोगों का बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और देखो, मैंने तुम्हारे सामने उसकी जाँच की, पर जिन बातों का तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैंने उसमें कुछ भी दोष नहीं पाया है; (IN)

लूका 23:15 न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है: और देखो, उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए। (IN)

लूका 23:16 इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” (IN)

लूका 23:17 पिलातुस पर्व के समय उनके लिए एक बन्दी को छोड़ने पर विवश था। (IN)

लूका 23:18 तब सब मिलकर चिल्ला उठे, “इसका काम तमाम कर, और हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” (IN)

लूका 23:19 वह किसी बलवे के कारण जो नगर में हुआ था, और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था। (IN)

लूका 23:20 पर पिलातुस ने यीशु को छोड़ने की इच्छा से लोगों को फिर समझाया। (IN)

लूका 23:21 परन्तु उन्होंने चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” (IN)

लूका 23:22 उसने तीसरी बार उनसे कहा, “क्यों उसने कौन सी बुराई की है? मैंने उसमें मृत्यु दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई! इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।” (IN)

लूका 23:23 परन्तु वे चिल्ला-चिल्लाकर पीछे पड़ गए, कि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए, और उनका चिल्लाना प्रबल हुआ। (IN)

लूका 23:24 अतः पिलातुस ने आज्ञा दी, कि उनकी विनती के अनुसार किया जाए। (IN)

लूका 23:25 और उसने उस मनुष्य को जो बलवे और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया था, और जिसे वे माँगते थे, छोड़ दिया; और यीशु को उनकी इच्छा के अनुसार सौंप दिया। (IN)

लूका 23:26 ¶ जब वे उसे लिए जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे-पीछे ले चले। (IN)

लूका 23:27 और लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सारी स्त्रियाँ भी, जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं। (IN)

लूका 23:28 यीशु ने उनकी ओर फिरकर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ। (IN)

लूका 23:29 क्योंकि वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’ (IN)

लूका 23:30 उस समय (IN)

लूका 23:31 ¶ क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?” (IN)

लूका 23:32 वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ मार डालने को ले चले। (IN)

लूका 23:33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया। (IN)

लूका 23:34 तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहें हैं?” और उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। (IN)

लूका 23:35 ¶ लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी उपहास कर-करके कहते थे, “इसने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्‍वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।” (IN)

लूका 23:36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका उपहास करके कहते थे। (IN)

लूका 23:37 “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!” (IN)

लूका 23:38 और उसके ऊपर एक दोष पत्र भी लगा था : “यह यहूदियों का राजा है।” (IN)

लूका 23:39 ¶ जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!” (IN)

लूका 23:40 इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, “क्या तू परमेश्‍वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है, (IN)

लूका 23:41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” (IN)

लूका 23:42 तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” (IN)

लूका 23:43 उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।” (IN)

लूका 23:44 ¶ और लगभग दोपहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधियारा छाया रहा, (IN)

लूका 23:45 और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, (IN)

लूका 23:46 और यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और यह कहकर प्राण छोड़ दिए। (IN)

लूका 23:47 सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्‍वर की बड़ाई की, और कहा, “निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।” (IN)

लूका 23:48 और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई। (IN)

लूका 23:49 और उसके सब जान-पहचान, और जो स्त्रियाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं। (IN)

लूका 23:50 ¶ और वहाँ, यूसुफ नामक महासभा का एक सदस्य था, जो सज्जन और धर्मी पुरुष था। (IN)

लूका 23:51 और उनके विचार और उनके इस काम से प्रसन्‍न न था; और वह यहूदियों के नगर अरिमतियाह का रहनेवाला और परमेश्‍वर के राज्य की प्रतीक्षा करनेवाला था। (IN)

लूका 23:52 उसने पिलातुस के पास जाकर यीशु का शव माँगा, (IN)

लूका 23:53 और उसे उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खोदी हुई थी; और उसमें कोई कभी न रखा गया था। (IN)

लूका 23:54 वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। (IN)

लूका 23:55 और उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे-पीछे, जाकर उस कब्र को देखा और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया हैं। (IN)

लूका 23:56 और लौटकर सुगन्धित वस्तुएँ और इत्र तैयार किया; और सब्त के दिन तो उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया। (IN)

लूका 24:1 ¶ परन्तु सप्ताह के पहले दिन बड़े भोर को वे उन सुगन्धित वस्तुओं को जो उन्होंने तैयार की थी, लेकर कब्र पर आईं। (IN)

लूका 24:2 और उन्होंने पत्थर को कब्र पर से लुढ़का हुआ पाया, (IN)

लूका 24:3 और भीतर जाकर प्रभु यीशु का शव न पाया। (IN)

लूका 24:4 जब वे इस बात से भौचक्की हो रही थीं तब, दो पुरुष झलकते वस्त्र पहने हुए उनके पास आ खड़े हुए। (IN)

लूका 24:5 जब वे डर गईं, और धरती की ओर मुँह झुकाए रहीं; तो उन्होंने उनसे कहा, “तुम जीविते को मरे हुओं में क्यों ढूँढ़ती हो? (IN)

लूका 24:6 वह यहाँ नहीं, परन्तु जी उठा है। स्मरण करो कि उसने गलील में रहते हुए तुम से कहा था, (IN)

लूका 24:7 ‘अवश्य है, कि मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ में पकड़वाया जाए, और क्रूस पर चढ़ाया जाए, और तीसरे दिन जी उठे’।” (IN)

लूका 24:8 तब उसकी बातें उनको स्मरण आईं, (IN)

लूका 24:9 और कब्र से लौटकर उन्होंने उन ग्यारहों को, और अन्य सब को, ये सब बातें कह सुनाई। (IN)

लूका 24:10 जिन्होंने प्रेरितों से ये बातें कहीं, वे मरियम मगदलीनी और योअन्ना और याकूब की माता मरियम और उनके साथ की अन्य स्त्रियाँ भी थीं। (IN)

लूका 24:11 परन्तु उनकी बातें उन्हें कहानी के समान लगी और उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया। (IN)

लूका 24:12 तब पतरस उठकर कब्र पर दौड़ा गया, और झुककर केवल कपड़े पड़े देखे, और जो हुआ था, उससे अचम्भा करता हुआ, अपने घर चला गया। (IN)

लूका 24:13 ¶ उसी दिन उनमें से दो जन इम्माऊस नामक एक गाँव को जा रहे थे, जो यरूशलेम से कोई सात मील की दूरी पर था। (IN)

लूका 24:14 और वे इन सब बातों पर जो हुईं थीं, आपस में बातचीत करते जा रहे थे। (IN)

लूका 24:15 और जब वे आपस में बातचीत और पूछ-ताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उनके साथ हो लिया। (IN)

लूका 24:16 परन्तु उनकी आँखें ऐसी बन्द कर दी गईं थी, कि उसे पहचान न सके। (IN)

लूका 24:17 उसने उनसे पूछा, “ये क्या बातें हैं, जो तुम चलते-चलते आपस में करते हो?” वे उदास से खड़े रह गए। (IN)

लूका 24:18 यह सुनकर, उनमें से क्लियुपास नामक एक व्यक्ति ने कहा, “क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है; जो नहीं जानता, कि इन दिनों में उसमें क्या-क्या हुआ है?” (IN)

लूका 24:19 उसने उनसे पूछा, “कौन सी बातें?” उन्होंने उससे कहा, “यीशु नासरी के विषय में जो परमेश्‍वर और सब लोगों के निकट काम और वचन में सामर्थी भविष्यद्वक्ता था। (IN)

लूका 24:20 और प्रधान याजकों और हमारे सरदारों ने उसे पकड़वा दिया, कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए; और उसे क्रूस पर चढ़वाया। (IN)

लूका 24:21 परन्तु हमें आशा थी, कि यही इस्राएल को छुटकारा देगा, और इन सब बातों के सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है। (IN)

लूका 24:22 और हम में से कई स्त्रियों ने भी हमें आश्चर्य में डाल दिया है, जो भोर को कब्र पर गई थीं। (IN)

लूका 24:23 और जब उसका शव न पाया, तो यह कहती हुई आईं, कि हमने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया, जिन्होंने कहा कि वह जीवित है। (IN)

लूका 24:24 तब हमारे साथियों में से कई एक कब्र पर गए, और जैसा स्त्रियों ने कहा था, वैसा ही पाया; परन्तु उसको न देखा।” (IN)

लूका 24:25 तब उसने उनसे कहा, “हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दमतियों! (IN)

लूका 24:26 क्या अवश्य न था, कि मसीह ये दुःख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” (IN)

लूका 24:27 तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्रशास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया। (IN)

लूका 24:28 ¶ इतने में वे उस गाँव के पास पहुँचे, जहाँ वे जा रहे थे, और उसके ढंग से ऐसा जान पड़ा, कि वह आगे बढ़ना चाहता है। (IN)

लूका 24:29 परन्तु उन्होंने यह कहकर उसे रोका, “हमारे साथ रह; क्योंकि संध्या हो चली है और दिन अब बहुत ढल गया है।” तब वह उनके साथ रहने के लिये भीतर गया। (IN)

लूका 24:30 जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया, और उसे तोड़कर उनको देने लगा। (IN)

लूका 24:31 तब उनकी आँखें खुल गईं; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उनकी आँखों से छिप गया। (IN)

लूका 24:32 उन्होंने आपस में कहा, “जब वह मार्ग में हम से बातें करता था, और पवित्रशास्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्‍पन्‍न हुई?” (IN)

लूका 24:33 वे उसी घड़ी उठकर यरूशलेम को लौट गए, और उन ग्यारहों और उनके साथियों को इकट्ठे पाया। (IN)

लूका 24:34 वे कहते थे, “प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है।” (IN)

लूका 24:35 तब उन्होंने मार्ग की बातें उन्हें बता दीं और यह भी कि उन्होंने उसे रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना। (IN)

लूका 24:36 ¶ वे ये बातें कह ही रहे थे, कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ; और उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” (IN)

लूका 24:37 परन्तु वे घबरा गए, और डर गए, और समझे, कि हम किसी भूत को देख रहे हैं। (IN)

लूका 24:38 उसने उनसे कहा, “क्यों घबराते हो? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? (IN)

लूका 24:39 मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो, कि मैं वहीं हूँ; मुझे छूकर देखो; क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।” (IN)

लूका 24:40 ¶ यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ पाँव दिखाए। (IN)

लूका 24:41 जब आनन्द के मारे उनको विश्वास नहीं हो रहा था, और आश्चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?” (IN)

लूका 24:42 उन्होंने उसे भुनी मछली का टुकड़ा दिया। (IN)

लूका 24:43 उसने लेकर उनके सामने खाया। (IN)

लूका 24:44 फिर उसने उनसे कहा, “ये मेरी वे बातें हैं, जो मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।” (IN)

लूका 24:45 तब उसने पवित्रशास्त्र समझने के लिये उनकी समझ खोल दी। (IN)

लूका 24:46 और उनसे कहा, “यह लिखा है कि मसीह दुःख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा, (IN)

लूका 24:47 और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा। (IN)

लूका 24:48 तुम इन सब बातें के गवाह हो। (IN)

लूका 24:49 और जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, मैं उसको तुम पर उतारूँगा और जब तक स्वर्ग से सामर्थ्य न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो।” (IN)

लूका 24:50 ¶ तब वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले गया, और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी; (IN)

लूका 24:51 और उन्हें आशीष देते हुए वह उनसे अलग हो गया और स्वर्ग पर उठा लिया गया। (IN)

लूका 24:52 और वे उसको दण्डवत् करके बड़े आनन्द से यरूशलेम को लौट गए। (IN)

लूका 24:53 और वे लगातार मन्दिर में उपस्थित होकर परमेश्‍वर की स्तुति किया करते थे। (IN)

यूहन्ना 1:1 ¶ आदि में वचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन परमेश्‍वर था। (IN)

यूहन्ना 1:2 यही आदि में परमेश्‍वर के साथ था। (IN)

यूहन्ना 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्‍पन्‍न हुआ और जो कुछ उत्‍पन्‍न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्‍पन्‍न न हुई। (IN)

यूहन्ना 1:4 उसमें जीवन था; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। (IN)

यूहन्ना 1:5 और ज्योति अंधकार में चमकती है; और अंधकार ने उसे ग्रहण न किया। (IN)

यूहन्ना 1:6 एक मनुष्य परमेश्‍वर की ओर से भेजा हुआ, जिसका नाम यूहन्ना था। (IN)

यूहन्ना 1:7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएँ। (IN)

यूहन्ना 1:8 वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था। (IN)

यूहन्ना 1:9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी। (IN)

यूहन्ना 1:10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्‍पन्‍न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहचाना। (IN)

यूहन्ना 1:11 वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। (IN)

यूहन्ना 1:12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्‍वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं (IN)

यूहन्ना 1:13 वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्‍वर से उत्‍पन्‍न हुए हैं। (IN)

यूहन्ना 1:14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। (IN)

यूहन्ना 1:15 यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, “यह वही है, जिसका मैंने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझसे बढ़कर है, क्योंकि वह मुझसे पहले था।” (IN)

यूहन्ना 1:16 क्योंकि उसकी परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह। (IN)

यूहन्ना 1:17 इसलिए कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची। (IN)

यूहन्ना 1:18 परमेश्‍वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया। (IN)

यूहन्ना 1:19 ¶ यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवियों को उससे यह पूछने के लिये भेजा, “तू कौन है?” (IN)

यूहन्ना 1:20 तो उसने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया, परन्तु मान लिया “मैं मसीह नहीं हूँ।” (IN)

यूहन्ना 1:21 तब उन्होंने उससे पूछा, “तो फिर कौन है? क्या तू एलिय्याह है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” “तो क्या तू वह भविष्यद्वक्ता है?” उसने उत्तर दिया, “नहीं।” (IN)

यूहन्ना 1:22 तब उन्होंने उससे पूछा, “फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजनेवालों को उत्तर दें। तू अपने विषय में क्या कहता है?” (IN)

यूहन्ना 1:23 उसने कहा, “जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, ‘मैं जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो’।” (IN)

यूहन्ना 1:24 ये फरीसियों की ओर से भेजे गए थे। (IN)

यूहन्ना 1:25 उन्होंने उससे यह प्रश्न पूछा, “यदि तू न मसीह है, और न एलिय्याह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्मा क्यों देता है?” (IN)

यूहन्ना 1:26 यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “मैं तो जल से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यक्ति खड़ा है, जिसे तुम नहीं जानते। (IN)

यूहन्ना 1:27 अर्थात् मेरे बाद आनेवाला है, जिसकी जूती का फीता मैं खोलने के योग्य नहीं।” (IN)

यूहन्ना 1:28 ये बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुई, जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था। (IN)

यूहन्ना 1:29 ¶ दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, “देखो, यह परमेश्‍वर का मेम्‍ना है, जो जगत के पाप हरता है। (IN)

यूहन्ना 1:30 यह वही है, जिसके विषय में मैंने कहा था, कि एक पुरुष मेरे पीछे आता है, जो मुझसे श्रेष्ठ है, क्योंकि वह मुझसे पहले था। (IN)

यूहन्ना 1:31 और मैं तो उसे पहचानता न था, परन्तु इसलिए मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि वह इस्राएल पर प्रगट हो जाए।” (IN)

यूहन्ना 1:32 और यूहन्ना ने यह गवाही दी, “मैंने आत्मा को कबूतर के रूप में आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया। (IN)

यूहन्ना 1:33 और मैं तो उसे पहचानता नहीं था, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझसे कहा, ‘जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।’ (IN)

यूहन्ना 1:34 और मैंने देखा, और गवाही दी है कि यही परमेश्‍वर का पुत्र है।” (IN)

यूहन्ना 1:35 ¶ दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलों में से दो जन खड़े हुए थे। (IN)

यूहन्ना 1:36 और उसने यीशु पर जो जा रहा था, दृष्टि करके कहा, “देखो, यह परमेश्‍वर का मेम्‍ना है।” (IN)

यूहन्ना 1:37 तब वे दोनों चेले उसकी सुनकर यीशु के पीछे हो लिए। (IN)

यूहन्ना 1:38 यीशु ने मुड़कर और उनको पीछे आते देखकर उनसे कहा, “तुम किस की खोज में हो?” उन्होंने उससे कहा, “हे रब्बी, (अर्थात् हे गुरु), तू कहाँ रहता है?” (IN)

यूहन्ना 1:39 उसने उनसे कहा, “चलो, तो देख लोगे।” तब उन्होंने आकर उसके रहने का स्थान देखा, और उस दिन उसी के साथ रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग था। (IN)

यूहन्ना 1:40 उन दोनों में से, जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था। (IN)

यूहन्ना 1:41 उसने पहले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उससे कहा, “हमको ख्रिस्त अर्थात् मसीह मिल गया।” (IN)

यूहन्ना 1:42 वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, “तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू कैफा अर्थात् पतरस कहलाएगा।” (IN)

यूहन्ना 1:43 ¶ दूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा, और फिलिप्पुस से मिलकर कहा, “मेरे पीछे हो ले।” (IN)

यूहन्ना 1:44 फिलिप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी था। (IN)

यूहन्ना 1:45 फिलिप्पुस ने नतनएल से मिलकर उससे कहा, “जिसका वर्णन मूसा ने व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हमको मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।” (IN)

यूहन्ना 1:46 नतनएल ने उससे कहा, “क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?” फिलिप्पुस ने उससे कहा, “चलकर देख ले।” (IN)

यूहन्ना 1:47 यीशु ने नतनएल को अपनी ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, “देखो, यह सचमुच इस्राएली है: इसमें कपट नहीं।” (IN)

यूहन्ना 1:48 नतनएल ने उससे कहा, “तू मुझे कैसे जानता है?” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “इससे पहले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैंने तुझे देखा था।” (IN)

यूहन्ना 1:49 नतनएल ने उसको उत्तर दिया, “हे रब्बी, तू परमेश्‍वर का पुत्र हे; तू इस्राएल का महाराजा है।” (IN)

यूहन्ना 1:50 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैंने जो तुझ से कहा, कि मैंने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसलिए विश्वास करता है? तू इससे भी बड़े-बड़े काम देखेगा।” (IN)

यूहन्ना 1:51 फिर उससे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखोगे।” (IN)

यूहन्ना 2:1 ¶ फिर तीसरे दिन गलील के काना में किसी का विवाह था, और यीशु की माता भी वहाँ थी। (IN)

यूहन्ना 2:2 यीशु और उसके चेले भी उस विवाह में निमंत्रित थे। (IN)

यूहन्ना 2:3 जब दाखरस खत्म हो गया, तो यीशु की माता ने उससे कहा, “उनके पास दाखरस नहीं रहा।” (IN)

यूहन्ना 2:4 यीशु ने उससे कहा, “हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? अभी मेरा समय नहीं आया।” (IN)

यूहन्ना 2:5 उसकी माता ने सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।” (IN)

यूहन्ना 2:6 वहाँ यहूदियों के शुद्धीकरण के लिए पत्थर के छः मटके रखे थे, जिसमें दो-दो, तीन-तीन मन समाता था। (IN)

यूहन्ना 2:7 यीशु ने उनसे कहा, “मटको में पानी भर दो।” तब उन्होंने उन्हें मुहाँमुहँ भर दिया। (IN)

यूहन्ना 2:8 तब उसने उनसे कहा, “अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।” और वे ले गए। (IN)

यूहन्ना 2:9 जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया था और नहीं जानता था कि वह कहाँ से आया हैं; (परन्तु जिन सेवकों ने पानी निकाला था वे जानते थे), तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उससे कहा (IN)

यूहन्ना 2:10 “हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है, और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।” (IN)

यूहन्ना 2:11 यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहला चिन्ह दिखाकर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 2:12 इसके बाद वह और उसकी माता, उसके भाई, उसके चेले, कफरनहूम को गए और वहाँ कुछ दिन रहे। (IN)

यूहन्ना 2:13 ¶ यहूदियों का फसह का पर्व निकट था, और यीशु यरूशलेम को गया। (IN)

यूहन्ना 2:14 और उसने मन्दिर में बैल, और भेड़ और कबूतर के बेचनेवालों ओर सर्राफों को बैठे हुए पाया। (IN)

यूहन्ना 2:15 तब उसने रस्सियों का कोड़ा बनाकर, सब भेड़ों और बैलों को मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफों के पैसे बिखेर दिये, और मेज़ें उलट दीं, (IN)

यूहन्ना 2:16 और कबूतर बेचनेवालों से कहा, “इन्हें यहाँ से ले जाओ। मेरे पिता के भवन को व्यापार का घर मत बनाओ।” (IN)

यूहन्ना 2:17 तब उसके चेलों को स्मरण आया कि लिखा है, “तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी।” (IN)

यूहन्ना 2:18 इस पर यहूदियों ने उससे कहा, “तू जो यह करता है तो हमें कौन सा चिन्ह दिखाता हैं?” (IN)

यूहन्ना 2:19 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “इस मन्दिर को ढा दो, और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा।” (IN)

यूहन्ना 2:20 यहूदियों ने कहा, “इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हैं, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?” (IN)

यूहन्ना 2:21 परन्तु उसने अपनी देह के मन्दिर के विषय में कहा था। (IN)

यूहन्ना 2:22 फिर जब वह मुर्दों में से जी उठा फिर उसके चेलों को स्मरण आया कि उसने यह कहा था; और उन्होंने पवित्रशास्त्र और उस वचन की जो यीशु ने कहा था, विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 2:23 ¶ जब वह यरूशलेम में फसह के समय, पर्व में था, तो बहुतों ने उन चिन्हों को जो वह दिखाता था देखकर उसके नाम पर विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 2:24 परन्तु यीशु ने अपने आप को उनके भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था, (IN)

यूहन्ना 2:25 और उसे प्रयोजन न था कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप जानता था कि मनुष्य के मन में क्या है? (IN)

यूहन्ना 3:1 ¶ फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम का एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था। (IN)

यूहन्ना 3:2 उसने रात को यीशु के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्‍वर की ओर से गुरु होकर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्‍वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।” (IN)

यूहन्ना 3:3 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्‍वर का राज्य देख नहीं सकता।” (IN)

यूहन्ना 3:4 नीकुदेमुस ने उससे कहा, “मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो कैसे जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है?” (IN)

यूहन्ना 3:5 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। (IN)

यूहन्ना 3:6 क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। (IN)

यूहन्ना 3:7 अचम्भा न कर, कि मैंने तुझ से कहा, ‘तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।’ (IN)

यूहन्ना 3:8 हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसकी आवाज़ सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहाँ से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।” (IN)

यूहन्ना 3:9 नीकुदेमुस ने उसको उत्तर दिया, “ये बातें कैसे हो सकती हैं?” (IN)

यूहन्ना 3:10 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “तू इस्राएलियों का गुरु होकर भी क्या इन बातों को नहीं समझता? (IN)

यूहन्ना 3:11 मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हमने देखा है उसकी गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते। (IN)

यूहन्ना 3:12 जब मैंने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम विश्वास नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ, तो फिर क्यों विश्वास करोगे? (IN)

यूहन्ना 3:13 कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वहीं जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है। (IN)

यूहन्ना 3:14 और जिस तरह से मूसा ने जंगल में साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी रीती से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए। (IN)

यूहन्ना 3:15 ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनन्त जीवन पाए। (IN)

यूहन्ना 3:16 “क्योंकि परमेश्‍वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। (IN)

यूहन्ना 3:17 परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा, कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिए कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। (IN)

यूहन्ना 3:18 जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; इसलिए कि उसने परमेश्‍वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया। (IN)

यूहन्ना 3:19 और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अंधकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। (IN)

यूहन्ना 3:20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। (IN)

यूहन्ना 3:21 परन्तु जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों कि वह परमेश्‍वर की ओर से किए गए हैं।” (IN)

यूहन्ना 3:22 ¶ इसके बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहाँ उनके साथ रहकर बपतिस्मा देने लगा। (IN)

यूहन्ना 3:23 और यूहन्ना भी सालेम के निकट ऐनोन में बपतिस्मा देता था। क्योंकि वहाँ बहुत जल था, और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे। (IN)

यूहन्ना 3:24 क्योंकि यूहन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया था। (IN)

यूहन्ना 3:25 वहाँ यूहन्ना के चेलों का किसी यहूदी के साथ शुद्धि के विषय में वाद-विवाद हुआ। (IN)

यूहन्ना 3:26 और उन्होंने यूहन्ना के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिसकी तूने गवाही दी है; देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं।” (IN)

यूहन्ना 3:27 यूहन्ना ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए, तब तक वह कुछ नहीं पा सकता। (IN)

यूहन्ना 3:28 तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैंने कहा, ‘मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ।’ (IN)

यूहन्ना 3:29 जिसकी दुल्हिन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है। (IN)

यूहन्ना 3:30 अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ। (IN)

यूहन्ना 3:31 ¶ “जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृथ्वी से आता है वह पृथ्वी का है; और पृथ्वी की ही बातें कहता है: जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है। (IN)

यूहन्ना 3:32 जो कुछ उसने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उसकी गवाही ग्रहण नहीं करता। (IN)

यूहन्ना 3:33 जिसने उसकी गवाही ग्रहण कर ली उसने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्‍वर सच्चा है। (IN)

यूहन्ना 3:34 क्योंकि जिसे परमेश्‍वर ने भेजा है, वह परमेश्‍वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्मा नाप नापकर नहीं देता। (IN)

यूहन्ना 3:35 पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उसने सब वस्तुएँ उसके हाथ में दे दी हैं। (IN)

यूहन्ना 3:36 जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्‍वर का क्रोध उस पर रहता है।” (IN)

यूहन्ना 4:1 ¶ फिर जब प्रभु को मालूम हुआ कि फरीसियों ने सुना है कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता और उन्हें बपतिस्मा देता है। (IN)

यूहन्ना 4:2 (यद्यपि यीशु स्वयं नहीं वरन् उसके चेले बपतिस्मा देते थे), (IN)

यूहन्ना 4:3 तब वह यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया, (IN)

यूहन्ना 4:4 और उसको सामरिया से होकर जाना अवश्य था। (IN)

यूहन्ना 4:5 इसलिए वह सूखार नामक सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था। (IN)

यूहन्ना 4:6 और याकूब का कुआँ भी वहीं था। यीशु मार्ग का थका हुआ उस कुएँ पर यों ही बैठ गया। और यह बात दोपहर के समय हुई। (IN)

यूहन्ना 4:7 इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई। यीशु ने उससे कहा, “मुझे पानी पिला।” (IN)

यूहन्ना 4:8 क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे। (IN)

यूहन्ना 4:9 उस सामरी स्त्री ने उससे कहा, “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों माँगता है?” क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते। (IN)

यूहन्ना 4:10 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तू परमेश्‍वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है, ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे माँगती, और वह तुझे जीवन का जल देता।” (IN)

यूहन्ना 4:11 स्त्री ने उससे कहा, “हे स्वामी, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कुआँ गहरा है; तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया? (IN)

यूहन्ना 4:12 क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कुआँ दिया; और आपही अपने सन्तान, और अपने पशुओं समेत उसमें से पीया?” (IN)

यूहन्ना 4:13 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा, (IN)

यूहन्ना 4:14 परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा, जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।” (IN)

यूहन्ना 4:15 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊँ और न जल भरने को इतनी दूर आऊँ।” (IN)

यूहन्ना 4:16 यीशु ने उससे कहा, “जा, अपने पति को यहाँ बुला ला।” (IN)

यूहन्ना 4:17 स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं बिना पति की हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “तू ठीक कहती है, ‘मैं बिना पति की हूँ।’ (IN)

यूहन्ना 4:18 क्योंकि तू पाँच पति कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तूने सच कहा है।” (IN)

यूहन्ना 4:19 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे लगता है कि तू भविष्यद्वक्ता है। (IN)

यूहन्ना 4:20 हमारे पूर्वजों ने इसी पहाड़ पर भजन किया, और तुम कहते हो कि वह जगह जहाँ भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।” (IN)

यूहन्ना 4:21 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी, मेरी बात का विश्वास कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे, न यरूशलेम में। (IN)

यूहन्ना 4:22 तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं, उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है। (IN)

यूहन्ना 4:23 परन्तु वह समय आता है, वरन् अब भी है, जिसमें सच्चे भक्त पिता परमेश्‍वर की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही आराधकों को ढूँढ़ता है। (IN)

यूहन्ना 4:24 परमेश्‍वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें।” (IN)

यूहन्ना 4:25 स्त्री ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रिस्त कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।” (IN)

यूहन्ना 4:26 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ।” (IN)

यूहन्ना 4:27 ¶ इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; फिर भी किसी ने न पूछा, “तू क्या चाहता है?” या “किस लिये उससे बातें करता है?” (IN)

यूहन्ना 4:28 तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई, और लोगों से कहने लगी, (IN)

यूहन्ना 4:29 “आओ, एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैंने किया मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?” (IN)

यूहन्ना 4:30 तब वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे। (IN)

यूहन्ना 4:31 इतने में उसके चेले यीशु से यह विनती करने लगे, “हे रब्बी, कुछ खा ले।” (IN)

यूहन्ना 4:32 परन्तु उसने उनसे कहा, “मेरे पास खाने के लिये ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।” (IN)

यूहन्ना 4:33 तब चेलों ने आपस में कहा, “क्या कोई उसके लिये कुछ खाने को लाया है?” (IN)

यूहन्ना 4:34 यीशु ने उनसे कहा, “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूँ और उसका काम पूरा करूँ। (IN)

यूहन्ना 4:35 क्या तुम नहीं कहते, ‘कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं?’ देखो, मैं तुम से कहता हूँ, अपनी आँखें उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं। (IN)

यूहन्ना 4:36 और काटनेवाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है, ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर आनन्द करें। (IN)

यूहन्ना 4:37 क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है: ‘बोनेवाला और है और काटनेवाला और।’ (IN)

यूहन्ना 4:38 मैंने तुम्हें वह खेत काटने के लिये भेजा जिसमें तुम ने परिश्रम नहीं किया औरों ने परिश्रम किया और तुम उनके परिश्रम के फल में भागी हुए।” (IN)

यूहन्ना 4:39 ¶ और उस नगर के बहुत से सामरियों ने उस स्त्री के कहने से यीशु पर विश्वास किया; जिस ने यह गवाही दी थी, कि उसने सब कुछ जो मैंने किया है, मुझे बता दिया। (IN)

यूहन्ना 4:40 तब जब ये सामरी उसके पास आए, तो उससे विनती करने लगे कि हमारे यहाँ रह, और वह वहाँ दो दिन तक रहा। (IN)

यूहन्ना 4:41 और उसके वचन के कारण और भी बहुतों ने विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 4:42 और उस स्त्री से कहा, “अब हम तेरे कहने ही से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हमने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।” (IN)

यूहन्ना 4:43 फिर उन दो दिनों के बाद वह वहाँ से निकलकर गलील को गया। (IN)

यूहन्ना 4:44 क्योंकि यीशु ने आप ही साक्षी दी कि भविष्यद्वक्ता अपने देश में आदर नहीं पाता। (IN)

यूहन्ना 4:45 जब वह गलील में आया, तो गलीली आनन्द के साथ उससे मिले; क्योंकि जितने काम उसने यरूशलेम में पर्व के समय किए थे, उन्होंने उन सब को देखा था, क्योंकि वे भी पर्व में गए थे। (IN)

यूहन्ना 4:46 ¶ तब वह फिर गलील के काना में आया, जहाँ उसने पानी को दाखरस बनाया था। वहाँ राजा का एक कर्मचारी था जिसका पुत्र कफरनहूम में बीमार था। (IN)

यूहन्ना 4:47 वह यह सुनकर कि यीशु यहूदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उससे विनती करने लगा कि चलकर मेरे पुत्र को चंगा कर दे: क्योंकि वह मरने पर था। (IN)

यूहन्ना 4:48 यीशु ने उससे कहा, “जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।” (IN)

यूहन्ना 4:49 राजा के कर्मचारी ने उससे कहा, “हे प्रभु, मेरे बालक की मृत्यु होने से पहले चल।” (IN)

यूहन्ना 4:50 यीशु ने उससे कहा, “जा, तेरा पुत्र जीवित है।” उस मनुष्य ने यीशु की कही हुई बात पर विश्वास किया और चला गया। (IN)

यूहन्ना 4:51 वह मार्ग में जा ही रहा था, कि उसके दास उससे आ मिले और कहने लगे, “तेरा लड़का जीवित है।” (IN)

यूहन्ना 4:52 उसने उनसे पूछा, “किस घड़ी वह अच्छा होने लगा?” उन्होंने उससे कहा, “कल सातवें घण्टे में उसका ज्वर उतर गया।” (IN)

यूहन्ना 4:53 तब पिता जान गया कि यह उसी घड़ी हुआ जिस घड़ी यीशु ने उससे कहा, “तेरा पुत्र जीवित है,” और उसने और उसके सारे घराने ने विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 4:54 यह दूसरा चिन्ह था जो यीशु ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया। (IN)

यूहन्ना 5:1 ¶ इन बातों के पश्चात् यहूदियों का एक पर्व हुआ, और यीशु यरूशलेम को गया। (IN)

यूहन्ना 5:2 यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में बैतहसदा कहलाता है, और उसके पाँच ओसारे हैं। (IN)

यूहन्ना 5:3 इनमें बहुत से बीमार, अंधे, लँगड़े और सूखे अंगवाले (पानी के हिलने की आशा में) पड़े रहते थे। (IN)

यूहन्ना 5:4 क्योंकि नियुक्त समय पर परमेश्‍वर के स्वर्गदूत कुण्ड में उतरकर पानी को हिलाया करते थे: पानी हिलते ही जो कोई पहले उतरता, वह चंगा हो जाता था, चाहे उसकी कोई बीमारी क्यों न हो। (IN)

यूहन्ना 5:5 वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा था। (IN)

यूहन्ना 5:6 यीशु ने उसे पड़ा हुआ देखकर और यह जानकर कि वह बहुत दिनों से इस दशा में पड़ा है, उससे पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” (IN)

यूहन्ना 5:7 उस बीमार ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, मेरे पास कोई मनुष्य नहीं, कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुँचते-पहुँचते दूसरा मुझसे पहले उतर जाता है।” (IN)

यूहन्ना 5:8 यीशु ने उससे कहा, “उठ, अपनी खाट उठा और चल फिर।” (IN)

यूहन्ना 5:9 वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपनी खाट उठाकर चलने फिरने लगा। (IN)

यूहन्ना 5:10 वह सब्त का दिन था। इसलिए यहूदी उससे जो चंगा हुआ था, कहने लगे, “आज तो सब्त का दिन है, तुझे खाट उठानी उचित नहीं।” (IN)

यूहन्ना 5:11 उसने उन्हें उत्तर दिया, “जिस ने मुझे चंगा किया, उसी ने मुझसे कहा, ‘अपनी खाट उठाकर चल फिर’।” (IN)

यूहन्ना 5:12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कौन मनुष्य है, जिस ने तुझ से कहा, ‘खाट उठा और, चल फिर’?” (IN)

यूहन्ना 5:13 परन्तु जो चंगा हो गया था, वह नहीं जानता था कि वह कौन है; क्योंकि उस जगह में भीड़ होने के कारण यीशु वहाँ से हट गया था। (IN)

यूहन्ना 5:14 इन बातों के बाद वह यीशु को मन्दिर में मिला, तब उसने उससे कहा, “देख, तू तो चंगा हो गया है; फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इससे कोई भारी विपत्ति तुझ पर आ पड़े।” (IN)

यूहन्ना 5:15 उस मनुष्य ने जाकर यहूदियों से कह दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, वह यीशु है। (IN)

यूहन्ना 5:16 इस कारण यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे-ऐसे काम सब्त के दिन करता था। (IN)

यूहन्ना 5:17 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मेरा पिता परमेश्‍वर अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 5:18 इस कारण यहूदी और भी अधिक उसके मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्‍वर को अपना पिता कहकर, अपने आप को परमेश्‍वर के तुल्य ठहराता था। (IN)

यूहन्ना 5:19 ¶ इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन-जिन कामों को वह करता है, उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है। (IN)

यूहन्ना 5:20 क्योंकि पिता पुत्र से प्‍यार करता है और जो-जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इनसे भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो। (IN)

यूहन्ना 5:21 क्योंकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है, उन्हें जिलाता है। (IN)

यूहन्ना 5:22 पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है, (IN)

यूहन्ना 5:23 इसलिए कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें; जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिसने उसे भेजा है, आदर नहीं करता। (IN)

यूहन्ना 5:24 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है। (IN)

यूहन्ना 5:25 ¶ “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, वह समय आता है, और अब है, जिसमें मृतक परमेश्‍वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएँगे। (IN)

यूहन्ना 5:26 क्योंकि जिस रीति से पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उसने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन रखे; (IN)

यूहन्ना 5:27 वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिए कि वह मनुष्य का पुत्र है। (IN)

यूहन्ना 5:28 इससे अचम्भा मत करो; क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। (IN)

यूहन्ना 5:29 जिन्होंने भलाई की है, वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है, वे दण्ड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे। (IN)

यूहन्ना 5:30 ¶ “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ। (IN)

यूहन्ना 5:31 यदि मैं आप ही अपनी गवाही दूँ; तो मेरी गवाही सच्ची नहीं। (IN)

यूहन्ना 5:32 एक और है जो मेरी गवाही देता है, और मैं जानता हूँ कि मेरी जो गवाही वह देता है, वह सच्ची है। (IN)

यूहन्ना 5:33 तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उसने सच्चाई की गवाही दी है। (IN)

यूहन्ना 5:34 परन्तु मैं अपने विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता; फिर भी मैं ये बातें इसलिए कहता हूँ, कि तुम्हें उद्धार मिले। (IN)

यूहन्ना 5:35 वह तो जलता और चमकता हुआ दीपक था; और तुम्हें कुछ देर तक उसकी ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा। (IN)

यूहन्ना 5:36 परन्तु मेरे पास जो गवाही है, वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात् यही काम जो मैं करता हूँ, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है। (IN)

यूहन्ना 5:37 और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है; (IN)

यूहन्ना 5:38 और उसके वचन को मन में स्थिर नहीं रखते, क्योंकि जिसे उसने भेजा तुम उस पर विश्वास नहीं करते। (IN)

यूहन्ना 5:39 तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है; (IN)

यूहन्ना 5:40 फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते। (IN)

यूहन्ना 5:41 मैं मनुष्यों से आदर नहीं चाहता। (IN)

यूहन्ना 5:42 परन्तु मैं तुम्हें जानता हूँ, कि तुम में परमेश्‍वर का प्रेम नहीं। (IN)

यूहन्ना 5:43 मैं अपने पिता परमेश्‍वर के नाम से आया हूँ, और तुम मुझे ग्रहण नहीं करते; यदि कोई और अपने ही नाम से आए, तो उसे ग्रहण कर लोगे। (IN)

यूहन्ना 5:44 तुम जो एक दूसरे से आदर चाहते हो और वह आदर जो एकमात्र परमेश्‍वर की ओर से है, नहीं चाहते, किस प्रकार विश्वास कर सकते हो? (IN)

यूहन्ना 5:45 यह न समझो, कि मैं पिता के सामने तुम पर दोष लगाऊँगा, तुम पर दोष लगानेवाला तो है, अर्थात् मूसा है जिस पर तुम ने भरोसा रखा है। (IN)

यूहन्ना 5:46 क्योंकि यदि तुम मूसा पर विश्वास करते, तो मुझ पर भी विश्वास करते, इसलिए कि उसने मेरे विषय में लिखा है। (IN)

यूहन्ना 5:47 परन्तु यदि तुम उसकी लिखी हुई बातों पर विश्वास नहीं करते, तो मेरी बातों पर क्यों विश्वास करोगे?” (IN)

यूहन्ना 6:1 ¶ इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात् तिबिरियुस की झील के पार गया। (IN)

यूहन्ना 6:2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्यकर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे। (IN)

यूहन्ना 6:3 तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा। (IN)

यूहन्ना 6:4 और यहूदियों के फसह का पर्व निकट था। (IN)

यूहन्ना 6:5 तब यीशु ने अपनी आँखें उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, “हम इनके भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएँ?” (IN)

यूहन्ना 6:6 परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह स्वयं जानता था कि वह क्या करेगा। (IN)

यूहन्ना 6:7 फिलिप्पुस ने उसको उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटी भी उनके लिये पूरी न होंगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए।” (IN)

यूहन्ना 6:8 उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उससे कहा, (IN)

यूहन्ना 6:9 “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं, परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं।” (IN)

यूहन्ना 6:10 यीशु ने कहा, “लोगों को बैठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। तब लोग जिनमें पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हजार की थी, बैठ गए। (IN)

यूहन्ना 6:11 तब यीशु ने रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालों को बाँट दी; और वैसे ही मछलियों में से जितनी वे चाहते थे बाँट दिया। (IN)

यूहन्ना 6:12 जब वे खाकर तृप्त हो गए, तो उसने अपने चेलों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।” (IN)

यूहन्ना 6:13 इसलिए उन्होंने बटोरा, और जौ की पाँच रोटियों के टुकड़े जो खानेवालों से बच रहे थे, उनकी बारह टोकरियाँ भरीं। (IN)

यूहन्ना 6:14 तब जो आश्चर्यकर्म उसने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि “वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।” (IN)

यूहन्ना 6:15 यीशु यह जानकर कि वे उसे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया। (IN)

यूहन्ना 6:16 ¶ फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले झील के किनारे गए, (IN)

यूहन्ना 6:17 और नाव पर चढ़कर झील के पार कफरनहूम को जाने लगे। उस समय अंधेरा हो गया था, और यीशु अभी तक उनके पास नहीं आया था। (IN)

यूहन्ना 6:18 और आँधी के कारण झील में लहरें उठने लगीं। (IN)

यूहन्ना 6:19 तब जब वे खेते-खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए। (IN)

यूहन्ना 6:20 परन्तु उसने उनसे कहा, “मैं हूँ; डरो मत।” (IN)

यूहन्ना 6:21 तब वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिये तैयार हुए और तुरन्त वह नाव उसी स्थान पर जा पहुँची जहाँ वह जाते थे। (IN)

यूहन्ना 6:22 ¶ दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो झील के पार खड़ी थी, यह देखा, कि यहाँ एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न थी, और यीशु अपने चेलों के साथ उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले ही गए थे। (IN)

यूहन्ना 6:23 (तो भी और छोटी नावें तिबिरियुस से उस जगह के निकट आई, जहाँ उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई थी।) (IN)

यूहन्ना 6:24 जब भीड़ ने देखा, कि यहाँ न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी-छोटी नावों पर चढ़ के यीशु को ढूँढ़ते हुए कफरनहूम को पहुँचे। (IN)

यूहन्ना 6:25 ¶ और झील के पार उससे मिलकर कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?” (IN)

यूहन्ना 6:26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिए कि तुम रोटियाँ खाकर तृप्त हुए। (IN)

यूहन्ना 6:27 नाशवान भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात् परमेश्‍वर ने उसी पर छाप कर दी है।” (IN)

यूहन्ना 6:28 उन्होंने उससे कहा, “परमेश्‍वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें?” (IN)

यूहन्ना 6:29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “परमेश्‍वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो।” (IN)

यूहन्ना 6:30 तब उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तुझ पर विश्वास करें? तू कौन सा काम दिखाता है? (IN)

यूहन्ना 6:31 हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी’।” (IN)

यूहन्ना 6:32 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है। (IN)

यूहन्ना 6:33 क्योंकि परमेश्‍वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।” (IN)

यूहन्ना 6:34 तब उन्होंने उससे कहा, “हे स्वामी, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।” (IN)

यूहन्ना 6:35 यीशु ने उनसे कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। (IN)

यूहन्ना 6:36 परन्तु मैंने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते। (IN)

यूहन्ना 6:37 जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी न निकालूँगा। (IN)

यूहन्ना 6:38 क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन् अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूँ। (IN)

यूहन्ना 6:39 और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उसने मुझे दिया है, उसमें से मैं कुछ न खोऊँ परन्तु उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँ। (IN)

यूहन्ना 6:40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा।” (IN)

यूहन्ना 6:41 तब यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिए कि उसने कहा था, “जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूँ।” (IN)

यूहन्ना 6:42 और उन्होंने कहा, “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो वह क्यों कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?” (IN)

यूहन्ना 6:43 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ। (IN)

यूहन्ना 6:44 कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उसको अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा। (IN)

यूहन्ना 6:45 भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, ‘वे सब परमेश्‍वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है। (IN)

यूहन्ना 6:46 यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा है परन्तु जो परमेश्‍वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है। (IN)

यूहन्ना 6:47 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है। (IN)

यूहन्ना 6:48 जीवन की रोटी मैं हूँ। (IN)

यूहन्ना 6:49 तुम्हारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए। (IN)

यूहन्ना 6:50 यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उसमें से खाए और न मरे। (IN)

यूहन्ना 6:51 जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूँगा, वह मेरा माँस है।” (IN)

यूहन्ना 6:52 इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे, “यह मनुष्य कैसे हमें अपना माँस खाने को दे सकता है?” (IN)

यूहन्ना 6:53 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ जब तक मनुष्य के पुत्र का माँस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। (IN)

यूहन्ना 6:54 जो मेरा माँस खाता, और मेरा लहू पीता हैं, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अन्तिम दिन फिर उसे जिला उठाऊँगा। (IN)

यूहन्ना 6:55 क्योंकि मेरा माँस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। (IN)

यूहन्ना 6:56 जो मेरा माँस खाता और मेरा लहू पीता है, वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उसमें। (IN)

यूहन्ना 6:57 जैसा जीविते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूँ वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा। (IN)

यूहन्ना 6:58 जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, पूर्वजों के समान नहीं कि खाया, और मर गए; जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।” (IN)

यूहन्ना 6:59 ये बातें उसने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपदेश देते समय कहीं। (IN)

यूहन्ना 6:60 ¶ इसलिए उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है; इसे कौन मान सकता है?” (IN)

यूहन्ना 6:61 यीशु ने अपने मन में यह जानकर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उनसे पूछा, “क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है? (IN)

यूहन्ना 6:62 और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ वह पहले था, वहाँ ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा? (IN)

यूहन्ना 6:63 आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं। जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं। (IN)

यूहन्ना 6:64 परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।” क्योंकि यीशु तो पहले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं; और कौन मुझे पकड़वाएगा। (IN)

यूहन्ना 6:65 और उसने कहा, “इसलिए मैंने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर से यह वरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।” (IN)

यूहन्ना 6:66 ¶ इस पर उसके चेलों में से बहुत सारे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले। (IN)

यूहन्ना 6:67 तब यीशु ने उन बारहों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” (IN)

यूहन्ना 6:68 शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, हम किस के पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं। (IN)

यूहन्ना 6:69 और हमने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्‍वर का पवित्र जन तू ही है।” (IN)

यूहन्ना 6:70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तो भी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।” (IN)

यूहन्ना 6:71 यह उसने शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के विषय में कहा, क्योंकि यही जो उन बारहों में से था, उसे पकड़वाने को था। (IN)

यूहन्ना 7:1 ¶ इन बातों के बाद यीशु गलील में फिरता रहा, क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिए वह यहूदिया में फिरना न चाहता था। (IN)

यूहन्ना 7:2 और यहूदियों का झोपड़ियों का पर्व निकट था। (IN)

यूहन्ना 7:3 इसलिए उसके भाइयों ने उससे कहा, “यहाँ से कूच करके यहूदिया में चला जा, कि जो काम तू करता है, उन्हें तेरे चेले भी देखें। (IN)

यूहन्ना 7:4 क्योंकि ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करे: यदि तू यह काम करता है, तो अपने आप को जगत पर प्रगट कर।” (IN)

यूहन्ना 7:5 क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे। (IN)

यूहन्ना 7:6 तब यीशु ने उनसे कहा, “मेरा समय अभी नहीं आया; परन्तु तुम्हारे लिये सब समय है। (IN)

यूहन्ना 7:7 जगत तुम से बैर नहीं कर सकता, परन्तु वह मुझसे बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूँ, कि उसके काम बुरे हैं। (IN)

यूहन्ना 7:8 तुम पर्व में जाओ; मैं अभी इस पर्व में नहीं जाता, क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।” (IN)

यूहन्ना 7:9 वह उनसे ये बातें कहकर गलील ही में रह गया। (IN)

यूहन्ना 7:10 ¶ परन्तु जब उसके भाई पर्व में चले गए, तो वह आप ही प्रगट में नहीं, परन्तु मानो गुप्त होकर गया। (IN)

यूहन्ना 7:11 यहूदी पर्व में उसे यह कहकर ढूँढ़ने लगे कि “वह कहाँ है?” (IN)

यूहन्ना 7:12 और लोगों में उसके विषय चुपके-चुपके बहुत सी बातें हुई कितने कहते थे, “वह भला मनुष्य है।” और कितने कहते थे, “नहीं, वह लोगों को भरमाता है।” (IN)

यूहन्ना 7:13 तो भी यहूदियों के भय के मारे कोई व्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता था। (IN)

यूहन्ना 7:14 ¶ और जब पर्व के आधे दिन बीत गए; तो यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश करने लगा। (IN)

यूहन्ना 7:15 तब यहूदियों ने अचम्भा करके कहा, “इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई?” (IN)

यूहन्ना 7:16 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है। (IN)

यूहन्ना 7:17 यदि कोई उसकी इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्‍वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूँ। (IN)

यूहन्ना 7:18 जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बढ़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उसमें अधर्म नहीं। (IN)

यूहन्ना 7:19 क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? तो भी तुम में से कोई व्यवस्था पर नहीं चलता। तुम क्यों मुझे मार डालना चाहते हो?” (IN)

यूहन्ना 7:20 लोगों ने उत्तर दिया; “तुझ में दुष्टात्मा है! कौन तुझे मार डालना चाहता है?” (IN)

यूहन्ना 7:21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैंने एक काम किया, और तुम सब अचम्भा करते हो। (IN)

यूहन्ना 7:22 इसी कारण मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी है, यह नहीं कि वह मूसा की ओर से है परन्तु पूर्वजों से चली आई है, और तुम सब्त के दिन को मनुष्य का खतना करते हो। (IN)

यूहन्ना 7:23 जब सब्त के दिन मनुष्य का खतना किया जाता है ताकि मूसा की व्यवस्था की आज्ञा टल न जाए, तो तुम मुझ पर क्यों इसलिए क्रोध करते हो, कि मैंने सब्त के दिन एक मनुष्य को पूरी रीति से चंगा किया। (IN)

यूहन्ना 7:24 मुँह देखकर न्याय न करो, परन्तु ठीक-ठीक न्याय करो।” (IN)

यूहन्ना 7:25 ¶ तब कितने यरूशलेमवासी कहने लगे, “क्या यह वह नहीं, जिसके मार डालने का प्रयत्न किया जा रहा है? (IN)

यूहन्ना 7:26 परन्तु देखो, वह तो खुल्लमखुल्ला बातें करता है और कोई उससे कुछ नहीं कहता; क्या सम्भव है कि सरदारों ने सच-सच जान लिया है; कि यही मसीह है? (IN)

यूहन्ना 7:27 इसको तो हम जानते हैं, कि यह कहाँ का है; परन्तु मसीह जब आएगा, तो कोई न जानेगा कि वह कहाँ का है।” (IN)

यूहन्ना 7:28 तब यीशु ने मन्दिर में उपदेश देते हुए पुकार के कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं तो आप से नहीं आया परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है, उसको तुम नहीं जानते। (IN)

यूहन्ना 7:29 मैं उसे जानता हूँ; क्योंकि मैं उसकी ओर से हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।” (IN)

यूहन्ना 7:30 इस पर उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तो भी किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया था। (IN)

यूहन्ना 7:31 और भीड़ में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया, और कहने लगे, “मसीह जब आएगा, तो क्या इससे अधिक चिन्हों को दिखाएगा जो इसने दिखाए?” (IN)

यूहन्ना 7:32 ¶ फरीसियों ने लोगों को उसके विषय में ये बातें चुपके-चुपके करते सुना; और प्रधान याजकों और फरीसियों ने उसे पकड़ने को सिपाही भेजे। (IN)

यूहन्ना 7:33 इस पर यीशु ने कहा, “मैं थोड़ी देर तक और तुम्हारे साथ हूँ; तब अपने भेजनेवाले के पास चला जाऊँगा। (IN)

यूहन्ना 7:34 तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु नहीं पाओगे; और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।” (IN)

यूहन्ना 7:35 यहूदियों ने आपस में कहा, “यह कहाँ जाएगा कि हम इसे न पाएँगे? क्या वह उन यहूदियों के पास जाएगा जो यूनानियों में तितर-बितर होकर रहते हैं, और यूनानियों को भी उपदेश देगा? (IN)

यूहन्ना 7:36 यह क्या बात है जो उसने कही, कि ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते’?” (IN)

यूहन्ना 7:37 ¶ फिर पर्व के अन्तिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकारकर कहा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। (IN)

यूहन्ना 7:38 जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी’।” (IN)

यूहन्ना 7:39 उसने यह वचन उस आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्मा अब तक न उतरा था, क्योंकि यीशु अब तक अपनी महिमा को न पहुँचा था। (IN)

यूहन्ना 7:40 तब भीड़ में से किसी-किसी ने ये बातें सुन कर कहा, “सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।” (IN)

यूहन्ना 7:41 औरों ने कहा, “यह मसीह है,” परन्तु किसी ने कहा, “क्यों? क्या मसीह गलील से आएगा? (IN)

यूहन्ना 7:42 क्या पवित्रशास्त्र में नहीं लिखा कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गाँव से आएगा, जहाँ दाऊद रहता था?” (IN)

यूहन्ना 7:43 अतः उसके कारण लोगों में फूट पड़ी। (IN)

यूहन्ना 7:44 उनमें से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला। (IN)

यूहन्ना 7:45 तब सिपाही प्रधान याजकों और फरीसियों के पास आए, और उन्होंने उनसे कहा, “तुम उसे क्यों नहीं लाए?” (IN)

यूहन्ना 7:46 ¶ सिपाहियों ने उत्तर दिया, “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।” (IN)

यूहन्ना 7:47 फरीसियों ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम भी भरमाए गए हो? (IN)

यूहन्ना 7:48 क्या शासकों या फरीसियों में से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है? (IN)

यूहन्ना 7:49 परन्तु ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, श्रापित हैं।” (IN)

यूहन्ना 7:50 नीकुदेमुस ने, (जो पहले उसके पास आया था और उनमें से एक था), उनसे कहा, (IN)

यूहन्ना 7:51 “क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति को जब तक पहले उसकी सुनकर जान न ले कि वह क्या करता है; दोषी ठहराती है?” (IN)

यूहन्ना 7:52 उन्होंने उसे उत्तर दिया, “क्या तू भी गलील का है? ढूँढ़ और देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।” (IN)

यूहन्ना 7:53 तब सब कोई अपने-अपने घर चले गए। (IN)

यूहन्ना 8:1 ¶ यीशु जैतून के पहाड़ पर गया। (IN)

यूहन्ना 8:2 और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा। (IN)

यूहन्ना 8:3 तब शास्त्रियों और फरीसियों ने एक स्त्री को लाकर जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उसको बीच में खड़ा करके यीशु से कहा, (IN)

यूहन्ना 8:4 “हे गुरु, यह स्त्री व्यभिचार करते पकड़ी गई है। (IN)

यूहन्ना 8:5 व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों को पत्थराव करें; अतः तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?” (IN)

यूहन्ना 8:6 उन्होंने उसको परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएँ, परन्तु यीशु झुककर उँगली से भूमि पर लिखने लगा। (IN)

यूहन्ना 8:7 जब वे उससे पूछते रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा, “तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे।” (IN)

यूहन्ना 8:8 और फिर झुककर भूमि पर उँगली से लिखने लगा। (IN)

यूहन्ना 8:9 परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक-एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई। (IN)

यूहन्ना 8:10 यीशु ने सीधे होकर उससे कहा, “हे नारी, वे कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दण्ड की आज्ञा न दी?” (IN)

यूहन्ना 8:11 उसने कहा, “हे प्रभु, किसी ने नहीं।” यीशु ने कहा, “मैं भी तुझ पर दण्ड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।” (IN)

यूहन्ना 8:12 ¶ तब यीशु ने फिर लोगों से कहा, “जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अंधकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।” (IN)

यूहन्ना 8:13 फरीसियों ने उससे कहा; “तू अपनी गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।” (IN)

यूहन्ना 8:14 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “यदि मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, तो भी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ को जाता हूँ? परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आता हूँ या कहाँ को जाता हूँ। (IN)

यूहन्ना 8:15 तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता। (IN)

यूहन्ना 8:16 और यदि मैं न्याय करूँ भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं पिता के साथ हूँ, जिस ने मुझे भेजा है। (IN)

यूहन्ना 8:17 और तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है; कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है। (IN)

यूहन्ना 8:18 एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिस ने मुझे भेजा।” (IN)

यूहन्ना 8:19 उन्होंने उससे कहा, “तेरा पिता कहाँ है?” यीशु ने उत्तर दिया, “न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।” (IN)

यूहन्ना 8:20 ये बातें उसने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था। (IN)

यूहन्ना 8:21 ¶ उसने फिर उनसे कहा, “मैं जाता हूँ, और तुम मुझे ढूँढ़ोगे और अपने पाप में मरोगे; जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।” (IN)

यूहन्ना 8:22 इस पर यहूदियों ने कहा, “क्या वह अपने आप को मार डालेगा, जो कहता है, ‘जहाँ मैं जाता हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’?” (IN)

यूहन्ना 8:23 उसने उनसे कहा, “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं। (IN)

यूहन्ना 8:24 इसलिए मैंने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वही हूँ, तो अपने पापों में मरोगे।” (IN)

यूहन्ना 8:25 उन्होंने उससे कहा, “तू कौन है?” यीशु ने उनसे कहा, “वही हूँ जो प्रारंभ से तुम से कहता आया हूँ। (IN)

यूहन्ना 8:26 तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैंने उससे सुना है, वही जगत से कहता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 8:27 वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है। (IN)

यूहन्ना 8:28 तब यीशु ने कहा, “जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे मेरे पिता परमेश्‍वर ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूँ। (IN)

यूहन्ना 8:29 और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ, जिससे वह प्रसन्‍न होता है।” (IN)

यूहन्ना 8:30 वह ये बातें कह ही रहा था, कि बहुतों ने यीशु पर विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 8:31 ¶ तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्होंने उस पर विश्वास किया था, कहा, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। (IN)

यूहन्ना 8:32 और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (IN)

यूहन्ना 8:33 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हम तो अब्राहम के वंश से हैं, और कभी किसी के दास नहीं हुए; फिर तू क्यों कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे?” (IN)

यूहन्ना 8:34 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है। (IN)

यूहन्ना 8:35 और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है। (IN)

यूहन्ना 8:36 इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे। (IN)

यूहन्ना 8:37 मैं जानता हूँ कि तुम अब्राहम के वंश से हो; तो भी मेरा वचन तुम्हारे हृदय में जगह नहीं पाता, इसलिए तुम मुझे मार डालना चाहते हो। (IN)

यूहन्ना 8:38 मैं वही कहता हूँ, जो अपने पिता के यहाँ देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुम ने अपने पिता से सुना है।” (IN)

यूहन्ना 8:39 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हमारा पिता तो अब्राहम है।” यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अब्राहम के सन्तान होते, तो अब्राहम के समान काम करते। (IN)

यूहन्ना 8:40 परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिस ने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्‍वर से सुना, यह तो अब्राहम ने नहीं किया था। (IN)

यूहन्ना 8:41 तुम अपने पिता के समान काम करते हो” उन्होंने उससे कहा, “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे, हमारा एक पिता है अर्थात् परमेश्‍वर।” (IN)

यूहन्ना 8:42 यीशु ने उनसे कहा, “यदि परमेश्‍वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझसे प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्‍वर में से निकलकर आया हूँ; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा। (IN)

यूहन्ना 8:43 तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते? इसलिए कि मेरा वचन सुन नहीं सकते। (IN)

यूहन्ना 8:44 तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं; जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, वरन् झूठ का पिता है। (IN)

यूहन्ना 8:45 परन्तु मैं जो सच बोलता हूँ, इसलिए तुम मेरा विश्वास नहीं करते। (IN)

यूहन्ना 8:46 तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरा विश्वास क्यों नहीं करते? (IN)

यूहन्ना 8:47 जो परमेश्‍वर से होता है, वह परमेश्‍वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिए नहीं सुनते कि परमेश्‍वर की ओर से नहीं हो।” (IN)

यूहन्ना 8:48 ¶ यह सुन यहूदियों ने उससे कहा, “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है?” (IN)

यूहन्ना 8:49 यीशु ने उत्तर दिया, “मुझ में दुष्टात्मा नहीं; परन्तु मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो। (IN)

यूहन्ना 8:50 परन्तु मैं अपनी प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हाँ, एक है जो चाहता है, और न्याय करता है। (IN)

यूहन्ना 8:51 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु को न देखेगा।” (IN)

यूहन्ना 8:52 लोगों ने उससे कहा, “अब हमने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्मा है: अब्राहम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, ‘यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा।’ (IN)

यूहन्ना 8:53 हमारा पिता अब्राहम तो मर गया, क्या तू उससे बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आप को क्या ठहराता है?” (IN)

यूहन्ना 8:54 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्‍वर है। (IN)

यूहन्ना 8:55 और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूँ; और यदि कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारे समान झूठा ठहरूँगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूँ। (IN)

यूहन्ना 8:56 तुम्हारा पिता अब्राहम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया।” (IN)

यूहन्ना 8:57 लोगों ने उससे कहा, “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं, फिर भी तूने अब्राहम को देखा है?” (IN)

यूहन्ना 8:58 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्‍पन्‍न हुआ, मैं हूँ।” (IN)

यूहन्ना 8:59 तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया। (IN)

यूहन्ना 9:1 ¶ फिर जाते हुए उसने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अंधा था। (IN)

यूहन्ना 9:2 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, किस ने पाप किया था कि यह अंधा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने?” (IN)

यूहन्ना 9:3 यीशु ने उत्तर दिया, “न तो इसने पाप किया था, न इसके माता पिता ने परन्तु यह इसलिए हुआ, कि परमेश्‍वर के काम उसमें प्रगट हों। (IN)

यूहन्ना 9:4 जिस ने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है। वह रात आनेवाली है जिसमें कोई काम नहीं कर सकता। (IN)

यूहन्ना 9:5 जब तक मैं जगत में हूँ, तब तक जगत की ज्योति हूँ।” (IN)

यूहन्ना 9:6 यह कहकर उसने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अंधे की आँखों पर लगाकर। (IN)

यूहन्ना 9:7 उससे कहा, “जा, शीलोह के कुण्ड में धो ले” (शीलोह का अर्थ भेजा हुआ है) अतः उसने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया। (IN)

यूहन्ना 9:8 तब पड़ोसी और जिन्होंने पहले उसे भीख माँगते देखा था, कहने लगे, “क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख माँगा करता था?” (IN)

यूहन्ना 9:9 कुछ लोगों ने कहा, “यह वही है,” औरों ने कहा, “नहीं, परन्तु उसके समान है” उसने कहा, “मैं वही हूँ।” (IN)

यूहन्ना 9:10 तब वे उससे पूछने लगे, “तेरी आँखों कैसे खुल गई?” (IN)

यूहन्ना 9:11 उसने उत्तर दिया, “यीशु नामक एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आँखों पर लगाकर मुझसे कहा, ‘शीलोह में जाकर धो ले,’ तो मैं गया, और धोकर देखने लगा।” (IN)

यूहन्ना 9:12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कहाँ है?” उसने कहा, “मैं नहीं जानता।” (IN)

यूहन्ना 9:13 ¶ लोग उसे जो पहले अंधा था फरीसियों के पास ले गए। (IN)

यूहन्ना 9:14 जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उसकी आँखें खोली थी वह सब्त का दिन था। (IN)

यूहन्ना 9:15 फिर फरीसियों ने भी उससे पूछा; तेरी आँखें किस रीति से खुल गई? उसने उनसे कहा, “उसने मेरी आँखों पर मिट्टी लगाई, फिर मैंने धो लिया, और अब देखता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 9:16 इस पर कई फरीसी कहने लगे, “यह मनुष्य परमेश्‍वर की ओर से नहीं, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।” औरों ने कहा, “पापी मनुष्य कैसे ऐसे चिन्ह दिखा सकता है?” अतः उनमें फूट पड़ी। (IN)

यूहन्ना 9:17 उन्होंने उस अंधे से फिर कहा, “उसने जो तेरी आँखें खोली, तू उसके विषय में क्या कहता है?” उसने कहा, “यह भविष्यद्वक्ता है।” (IN)

यूहन्ना 9:18 परन्तु यहूदियों को विश्वास न हुआ कि यह अंधा था और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिसकी आँखें खुल गई थी, बुलाकर (IN)

यूहन्ना 9:19 उनसे पूछा, “क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अंधा जन्मा था? फिर अब कैसे देखता है?” (IN)

यूहन्ना 9:20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अंधा जन्मा था। (IN)

यूहन्ना 9:21 परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब कैसे देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उसकी आँखें खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपने विषय में आप कह देगा।” (IN)

यूहन्ना 9:22 ये बातें उसके माता-पिता ने इसलिए कहीं क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे; क्योंकि यहूदी एकमत हो चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए। (IN)

यूहन्ना 9:23 इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, “वह सयाना है; उसी से पूछ लो।” (IN)

यूहन्ना 9:24 तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अंधा था दूसरी बार बुलाकर उससे कहा, “परमेश्‍वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।” (IN)

यूहन्ना 9:25 उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 9:26 उन्होंने उससे फिर कहा, “उसने तेरे साथ क्या किया? और किस तरह तेरी आँखें खोली?” (IN)

यूहन्ना 9:27 उसने उनसे कहा, “मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने न सुना; अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?” (IN)

यूहन्ना 9:28 तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, “तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं। (IN)

यूहन्ना 9:29 हम जानते हैं कि परमेश्‍वर ने मूसा से बातें की; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहाँ का है।” (IN)

यूहन्ना 9:30 उसने उनको उत्तर दिया, “यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहाँ का है तो भी उसने मेरी आँखें खोल दीं। (IN)

यूहन्ना 9:31 हम जानते हैं कि परमेश्‍वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्‍वर का भक्त हो, और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है। (IN)

यूहन्ना 9:32 जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अंधे की आँखें खोली हों। (IN)

यूहन्ना 9:33 यदि यह व्यक्ति परमेश्‍वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।” (IN)

यूहन्ना 9:34 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया। (IN)

यूहन्ना 9:35 ¶ यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उससे भेंट हुई तो कहा, “क्या तू परमेश्‍वर के पुत्र पर विश्वास करता है?” (IN)

यूहन्ना 9:36 उसने उत्तर दिया, “हे प्रभु, वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूँ?” (IN)

यूहन्ना 9:37 यीशु ने उससे कहा, “तूने उसे देखा भी है; और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है।” (IN)

यूहन्ना 9:38 उसने कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ।” और उसे दण्डवत् किया। (IN)

यूहन्ना 9:39 तब यीशु ने कहा, “मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूँ, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएँ।” (IN)

यूहन्ना 9:40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने ये बातें सुन कर उससे कहा, “क्या हम भी अंधे हैं?” (IN)

यूहन्ना 9:41 यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अंधे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है। (IN)

यूहन्ना 10:1 ¶ “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई द्वार से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, परन्तु किसी दूसरी ओर से चढ़ जाता है, वह चोर और डाकू है। (IN)

यूहन्ना 10:2 परन्तु जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है वह भेड़ों का चरवाहा है। (IN)

यूहन्ना 10:3 उसके लिये द्वारपाल द्वार खोल देता है, और भेड़ें उसका शब्द सुनती हैं, और वह अपनी भेड़ों को नाम ले लेकर बुलाता है और बाहर ले जाता है। (IN)

यूहन्ना 10:4 और जब वह अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल चुकता है, तो उनके आगे-आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे-पीछे हो लेती हैं; क्योंकि वे उसका शब्द पहचानती हैं। (IN)

यूहन्ना 10:5 परन्तु वे पराये के पीछे नहीं जाएँगी, परन्तु उससे भागेंगी, क्योंकि वे परायों का शब्द नहीं पहचानती।” (IN)

यूहन्ना 10:6 यीशु ने उनसे यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे न समझे कि ये क्या बातें हैं जो वह हम से कहता है। (IN)

यूहन्ना 10:7 ¶ तब यीशु ने उनसे फिर कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि भेड़ों का द्वार मैं हूँ। (IN)

यूहन्ना 10:8 जितने मुझसे पहले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उनकी न सुनी। (IN)

यूहन्ना 10:9 द्वार मैं हूँ; यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया-जाया करेगा और चारा पाएगा। (IN)

यूहन्ना 10:10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और हत्या करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ। (IN)

यूहन्ना 10:11 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है। (IN)

यूहन्ना 10:12 मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िया उन्हें पकड़ता और तितर-बितर कर देता है। (IN)

यूहन्ना 10:13 वह इसलिए भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्ता नहीं। (IN)

यूहन्ना 10:14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। (IN)

यूहन्ना 10:15 जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूँ। और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूँ। (IN)

यूहन्ना 10:16 और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उनका भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा। (IN)

यूहन्ना 10:17 पिता इसलिए मुझसे प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूँ, कि उसे फिर ले लूँ। (IN)

यूहन्ना 10:18 कोई उसे मुझसे छीनता नहीं, वरन् मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है। यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।” (IN)

यूहन्ना 10:19 इन बातों के कारण यहूदियों में फिर फूट पड़ी। (IN)

यूहन्ना 10:20 उनमें से बहुत सारे कहने लगे, “उसमें दुष्टात्मा है, और वह पागल है; उसकी क्यों सुनते हो?” (IN)

यूहन्ना 10:21 औरों ने कहा, “ये बातें ऐसे मनुष्य की नहीं जिसमें दुष्टात्मा हो। क्या दुष्टात्मा अंधों की आँखें खोल सकती है?” (IN)

यूहन्ना 10:22 ¶ यरूशलेम में स्थापन पर्व हुआ, और जाड़े की ऋतु थी। (IN)

यूहन्ना 10:23 और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा था। (IN)

यूहन्ना 10:24 तब यहूदियों ने उसे आ घेरा और पूछा, “तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।” (IN)

यूहन्ना 10:25 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने तुम से कह दिया, और तुम विश्वास करते ही नहीं, जो काम मैं अपने पिता के नाम से करता हूँ वे ही मेरे गवाह हैं। (IN)

यूहन्ना 10:26 परन्तु तुम इसलिए विश्वास नहीं करते, कि मेरी भेड़ों में से नहीं हो। (IN)

यूहन्ना 10:27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। (IN)

यूहन्ना 10:28 और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। (IN)

यूहन्ना 10:29 मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सबसे बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। (IN)

यूहन्ना 10:30 मैं और पिता एक हैं।” (IN)

यूहन्ना 10:31 यहूदियों ने उसे पत्थराव करने को फिर पत्थर उठाए। (IN)

यूहन्ना 10:32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उनमें से किस काम के लिये तुम मुझे पत्थराव करते हो?” (IN)

यूहन्ना 10:33 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझे पत्थराव नहीं करते, परन्तु परमेश्‍वर की निन्दा के कारण और इसलिए कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्‍वर बनाता है।” (IN)

यूहन्ना 10:34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है कि ‘मैंने कहा, तुम ईश्वर हो’? (IN)

यूहन्ना 10:35 यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिनके पास परमेश्‍वर का वचन पहुँचा (और पवित्रशास्त्र की बात लोप नहीं हो सकती।) (IN)

यूहन्ना 10:36 तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, ‘तू निन्दा करता है,’ इसलिए कि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्‍वर का पुत्र हूँ।’ (IN)

यूहन्ना 10:37 यदि मैं अपने पिता का काम नहीं करता, तो मेरा विश्वास न करो। (IN)

यूहन्ना 10:38 परन्तु यदि मैं करता हूँ, तो चाहे मेरा विश्वास न भी करो, परन्तु उन कामों पर विश्वास करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूँ।” (IN)

यूहन्ना 10:39 तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उनके हाथ से निकल गया। (IN)

यूहन्ना 10:40 फिर वह यरदन के पार उस स्थान पर चला गया, जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहा। (IN)

यूहन्ना 10:41 और बहुत सारे उसके पास आकर कहते थे, “यूहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इसके विषय में कहा था वह सब सच था।” (IN)

यूहन्ना 10:42 और वहाँ बहुतों ने उस पर विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 11:1 ¶ मरियम और उसकी बहन मार्था के गाँव बैतनिय्याह का लाज़र नाम एक मनुष्य बीमार था। (IN)

यूहन्ना 11:2 यह वही मरियम थी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पाँवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाज़र बीमार था। (IN)

यूहन्ना 11:3 तब उसकी बहनों ने उसे कहला भेजा, “हे प्रभु, देख, जिससे तू प्‍यार करता है, वह बीमार है।” (IN)

यूहन्ना 11:4 यह सुनकर यीशु ने कहा, “यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्‍वर के पुत्र की महिमा हो।” (IN)

यूहन्ना 11:5 और यीशु मार्था और उसकी बहन और लाज़र से प्रेम रखता था। (IN)

यूहन्ना 11:6 जब उसने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया। (IN)

यूहन्ना 11:7 फिर इसके बाद उसने चेलों से कहा, “आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।” (IN)

यूहन्ना 11:8 चेलों ने उससे कहा, “हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्थराव करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?” (IN)

यूहन्ना 11:9 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते? यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है। (IN)

यूहन्ना 11:10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उसमें प्रकाश नहीं।” (IN)

यूहन्ना 11:11 उसने ये बातें कहीं, और इसके बाद उनसे कहने लगा, “हमारा मित्र लाज़र सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 11:12 तब चेलों ने उससे कहा, “हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।” (IN)

यूहन्ना 11:13 यीशु ने तो उसकी मृत्यु के विषय में कहा था : परन्तु वे समझे कि उसने नींद से सो जाने के विषय में कहा। (IN)

यूहन्ना 11:14 तब यीशु ने उनसे साफ कह दिया, “लाज़र मर गया है। (IN)

यूहन्ना 11:15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूँ कि मैं वहाँ न था जिससे तुम विश्वास करो। परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।” (IN)

यूहन्ना 11:16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, “आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।” (IN)

यूहन्ना 11:17 ¶ फिर यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं। (IN)

यूहन्ना 11:18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था। (IN)

यूहन्ना 11:19 और बहुत से यहूदी मार्था और मरियम के पास उनके भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे। (IN)

यूहन्ना 11:20 जब मार्था यीशु के आने का समाचार सुनकर उससे भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही। (IN)

यूहन्ना 11:21 मार्था ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता। (IN)

यूहन्ना 11:22 और अब भी मैं जानती हूँ, कि जो कुछ तू परमेश्‍वर से माँगेगा, परमेश्‍वर तुझे देगा।” (IN)

यूहन्ना 11:23 यीशु ने उससे कहा, “तेरा भाई जी उठेगा।” (IN)

यूहन्ना 11:24 मार्था ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ, अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।” (IN)

यूहन्ना 11:25 यीशु ने उससे कहा, “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तो भी जीएगा। (IN)

यूहन्ना 11:26 और जो कोई जीवित है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा। क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?” (IN)

यूहन्ना 11:27 उसने उससे कहा, “हाँ, हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूँ, कि परमेश्‍वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है।” (IN)

यूहन्ना 11:28 ¶ यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, “गुरु यहीं है, और तुझे बुलाता है।” (IN)

यूहन्ना 11:29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई। (IN)

यूहन्ना 11:30 (यीशु अभी गाँव में नहीं पहुँचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहाँ मार्था ने उससे भेंट की थी।) (IN)

यूहन्ना 11:31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये। (IN)

यूहन्ना 11:32 जब मरियम वहाँ पहुँची जहाँ यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पाँवों पर गिरके कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” (IN)

यूहन्ना 11:33 जब यीशु ने उसको और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास और व्याकुल हुआ, (IN)

यूहन्ना 11:34 और कहा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले।” (IN)

यूहन्ना 11:35 यीशु रोया। (IN)

यूहन्ना 11:36 तब यहूदी कहने लगे, “देखो, वह उससे कैसा प्‍यार करता था।” (IN)

यूहन्ना 11:37 परन्तु उनमें से कितनों ने कहा, “क्या यह जिस ने अंधे की आँखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता?” (IN)

यूहन्ना 11:38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था। (IN)

यूहन्ना 11:39 यीशु ने कहा, “पत्थर को उठाओ।” उस मरे हुए की बहन मार्था उससे कहने लगी, “हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गन्‍ध आती है, क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।” (IN)

यूहन्ना 11:40 यीशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्‍वर की महिमा को देखेगी।” (IN)

यूहन्ना 11:41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आँखें उठाकर कहा, “हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुन ली है। (IN)

यूहन्ना 11:42 और मैं जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस-पास खड़ी है, उनके कारण मैंने यह कहा, जिससे कि वे विश्वास करें, कि तूने मुझे भेजा है।” (IN)

यूहन्ना 11:43 यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, “हे लाज़र, निकल आ!” (IN)

यूहन्ना 11:44 जो मर गया था, वह कफन से हाथ पाँव बंधे हुए निकल आया और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, “उसे खोलकर जाने दो।” (IN)

यूहन्ना 11:45 ¶ तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 11:46 परन्तु उनमें से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया। (IN)

यूहन्ना 11:47 इस पर प्रधान याजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा, “हम क्या करेंगे? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है। (IN)

यूहन्ना 11:48 यदि हम उसे ऐसे ही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएँगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।” (IN)

यूहन्ना 11:49 तब उनमें से कैफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते; (IN)

यूहन्ना 11:50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।” (IN)

यूहन्ना 11:51 यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा; (IN)

यूहन्ना 11:52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन् इसलिए भी, कि परमेश्‍वर की तितर-बितर सन्तानों को एक कर दे। (IN)

यूहन्ना 11:53 अतः उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे। (IN)

यूहन्ना 11:54 इसलिए यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहाँ से जंगल के निकटवर्ती प्रदेश के एप्रैम नाम, एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा। (IN)

यूहन्ना 11:55 और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुत सारे लोग फसह से पहले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपने आप को शुद्ध करें। (IN)

यूहन्ना 11:56 वे यीशु को ढूँढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम क्या समझते हो? क्या वह पर्व में नहीं आएगा?” (IN)

यूहन्ना 11:57 और प्रधान याजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहाँ है तो बताए, कि उसे पकड़ लें। (IN)

यूहन्ना 12:1 ¶ फिर यीशु फसह से छः दिन पहले बैतनिय्याह में आया, जहाँ लाज़र था; जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया था। (IN)

यूहन्ना 12:2 वहाँ उन्होंने उसके लिये भोजन तैयार किया, और मार्था सेवा कर रही थी, और लाज़र उनमें से एक था, जो उसके साथ भोजन करने के लिये बैठे थे। (IN)

यूहन्ना 12:3 तब मरियम ने जटामांसी का आधा सेर बहुमूल्य इत्र लेकर यीशु के पाँवों पर डाला, और अपने बालों से उसके पाँव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया। (IN)

यूहन्ना 12:4 परन्तु उसके चेलों में से यहूदा इस्करियोती नाम एक चेला जो उसे पकड़वाने पर था, कहने लगा, (IN)

यूहन्ना 12:5 “यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर गरीबों को क्यों न दिया गया?” (IN)

यूहन्ना 12:6 उसने यह बात इसलिए न कही, कि उसे गरीबों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिए कि वह चोर था और उसके पास उनकी थैली रहती थी, और उसमें जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था। (IN)

यूहन्ना 12:7 यीशु ने कहा, “उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिये रहने दे। (IN)

यूहन्ना 12:8 क्योंकि गरीब तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा।” (IN)

यूहन्ना 12:9 ¶ यहूदियों में से साधारण लोग जान गए, कि वह वहाँ है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिए भी कि लाज़र को देखें, जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया था। (IN)

यूहन्ना 12:10 तब प्रधान याजकों ने लाज़र को भी मार डालने की सम्मति की। (IN)

यूहन्ना 12:11 क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 12:12 ¶ दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आ रहा है। (IN)

यूहन्ना 12:13 उन्होंने खजूर की डालियाँ लीं, और उससे भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, “होशाना! धन्य इस्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।” (IN)

यूहन्ना 12:14 जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो वह उस पर बैठा, जैसा लिखा है, (IN)

यूहन्ना 12:15 “हे सिय्योन की बेटी, (IN)

यूहन्ना 12:16 ¶ उसके चेले, ये बातें पहले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उनको स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उससे इस प्रकार का व्यवहार किया था। (IN)

यूहन्ना 12:17 तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उसने लाज़र को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था। (IN)

यूहन्ना 12:18 इसी कारण लोग उससे भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उसने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है। (IN)

यूहन्ना 12:19 तब फरीसियों ने आपस में कहा, “सोचो, तुम लोग कुछ नहीं कर पा रहे हो; देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।” (IN)

यूहन्ना 12:20 ¶ जो लोग उस पर्व में आराधना करने आए थे उनमें से कई यूनानी थे। (IN)

यूहन्ना 12:21 उन्होंने गलील के बैतसैदा के रहनेवाले फिलिप्पुस के पास आकर उससे विनती की, “श्रीमान हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं।” (IN)

यूहन्ना 12:22 फिलिप्पुस ने आकर अन्द्रियास से कहा; तब अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने यीशु से कहा। (IN)

यूहन्ना 12:23 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “वह समय आ गया है, कि मनुष्य के पुत्र कि महिमा हो। (IN)

यूहन्ना 12:24 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है। (IN)

यूहन्ना 12:25 जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिये उसकी रक्षा करेगा। (IN)

यूहन्ना 12:26 यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा। (IN)

यूहन्ना 12:27 ¶ “अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है। इसलिए अब मैं क्या कहूँ? ‘हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा?’ परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुँचा हूँ। (IN)

यूहन्ना 12:28 हे पिता अपने नाम की महिमा कर।” तब यह आकाशवाणी हुई, “मैंने उसकी महिमा की है, और फिर भी करूँगा।” (IN)

यूहन्ना 12:29 तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे, उन्होंने कहा; कि बादल गरजा, औरों ने कहा, “कोई स्वर्गदूत उससे बोला।” (IN)

यूहन्ना 12:30 इस पर यीशु ने कहा, “यह शब्द मेरे लिये नहीं परन्तु तुम्हारे लिये आया है। (IN)

यूहन्ना 12:31 अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार निकाल दिया जाएगा। (IN)

यूहन्ना 12:32 और मैं यदि पृथ्वी पर से ऊँचे पर चढ़ाया जाऊँगा, तो सब को अपने पास खीचूँगा।” (IN)

यूहन्ना 12:33 ऐसा कहकर उसने यह प्रगट कर दिया, कि वह कैसी मृत्यु से मरेगा। (IN)

यूहन्ना 12:34 इस पर लोगों ने उससे कहा, “हमने व्यवस्था की यह बात सुनी है, कि मसीह सर्वदा रहेगा, फिर तू क्यों कहता है, कि मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है? यह मनुष्य का पुत्र कौन है?” (IN)

यूहन्ना 12:35 यीशु ने उनसे कहा, “ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अंधकार तुम्हें आ घेरे; जो अंधकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है। (IN)

यूहन्ना 12:36 जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान बनो।” ये बातें कहकर यीशु चला गया और उनसे छिपा रहा। (IN)

यूहन्ना 12:37 ¶ और उसने उनके सामने इतने चिन्ह दिखाए, तो भी उन्होंने उस पर विश्वास न किया; (IN)

यूहन्ना 12:38 ताकि यशायाह भविष्यद्वक्ता का वचन पूरा हो जो उसने कहा: (IN)

यूहन्ना 12:39 ¶ इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने यह भी कहा है: (IN)

यूहन्ना 12:40 “उसने उनकी आँखें अंधी, (IN)

यूहन्ना 12:41 यशायाह ने ये बातें इसलिए कहीं, कि उसने उसकी महिमा देखी; और उसने उसके विषय में बातें की। (IN)

यूहन्ना 12:42 तो भी सरदारों में से भी बहुतों ने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियों के कारण प्रगट में नहीं मानते थे, ऐसा न हो कि आराधनालय में से निकाले जाएँ। (IN)

यूहन्ना 12:43 क्योंकि मनुष्यों की प्रशंसा उनको परमेश्‍वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी। (IN)

यूहन्ना 12:44 ¶ यीशु ने पुकारकर कहा, “जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, वरन् मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है। (IN)

यूहन्ना 12:45 और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है। (IN)

यूहन्ना 12:46 मैं जगत में ज्योति होकर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अंधकार में न रहे। (IN)

यूहन्ना 12:47 यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। (IN)

यूहन्ना 12:48 जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा। (IN)

यूहन्ना 12:49 क्योंकि मैंने अपनी ओर से बातें नहीं की, परन्तु पिता जिस ने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या-क्या कहूँ और क्या-क्या बोलूँ? (IN)

यूहन्ना 12:50 और मैं जानता हूँ, कि उसकी आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिए मैं जो बोलता हूँ, वह जैसा पिता ने मुझसे कहा है वैसा ही बोलता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 13:1 ¶ फसह के पर्व से पहले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरा वह समय आ पहुँचा है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊँ, तो अपने लोगों से, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा। (IN)

यूहन्ना 13:2 और जब शैतान शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह डाल चुका था, कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय (IN)

यूहन्ना 13:3 यीशु ने, यह जानकर कि पिता ने सब कुछ उसके हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्‍वर के पास से आया हूँ, और परमेश्‍वर के पास जाता हूँ। (IN)

यूहन्ना 13:4 भोजन पर से उठकर अपने कपड़े उतार दिए, और अँगोछा लेकर अपनी कमर बाँधी। (IN)

यूहन्ना 13:5 ¶ तब बर्तन में पानी भरकर चेलों के पाँव धोने और जिस अँगोछे से उसकी कमर बंधी थी उसी से पोंछने लगा। (IN)

यूहन्ना 13:6 जब वह शमौन पतरस के पास आया तब उसने उससे कहा, “हे प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धोता है?” (IN)

यूहन्ना 13:7 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “जो मैं करता हूँ, तू अभी नहीं जानता, परन्तु इसके बाद समझेगा।” (IN)

यूहन्ना 13:8 पतरस ने उससे कहा, “तू मेरे पाँव कभी न धोने पाएगा!” यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी भाग नहीं।” (IN)

यूहन्ना 13:9 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तो मेरे पाँव ही नहीं, वरन् हाथ और सिर भी धो दे।” (IN)

यूहन्ना 13:10 यीशु ने उससे कहा, “जो नहा चुका है, उसे पाँव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं।” (IN)

यूहन्ना 13:11 वह तो अपने पकड़वानेवाले को जानता था इसलिए उसने कहा, “तुम सब के सब शुद्ध नहीं।” (IN)

यूहन्ना 13:12 ¶ जब वह उनके पाँव धो चुका और अपने कपड़े पहनकर फिर बैठ गया तो उनसे कहने लगा, “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया? (IN)

यूहन्ना 13:13 तुम मुझे गुरु, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वहीं हूँ। (IN)

यूहन्ना 13:14 यदि मैंने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए; तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए। (IN)

यूहन्ना 13:15 क्योंकि मैंने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो। (IN)

यूहन्ना 13:16 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ अपने भेजनेवाले से। (IN)

यूहन्ना 13:17 तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो। (IN)

यूहन्ना 13:18 मैं तुम सब के विषय में नहीं कहता: जिन्हें मैंने चुन लिया है, उन्हें मैं जानता हूँ; परन्तु यह इसलिए है, कि पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हो, ‘जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझ पर लात उठाई।’ (IN)

यूहन्ना 13:19 अब मैं उसके होने से पहले तुम्हें जताए देता हूँ कि जब हो जाए तो तुम विश्वास करो कि मैं वहीं हूँ। (IN)

यूहन्ना 13:20 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।” (IN)

यूहन्ना 13:21 ¶ ये बातें कहकर यीशु आत्मा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।” (IN)

यूहन्ना 13:22 चेले यह संदेह करते हुए, कि वह किस के विषय में कहता है, एक दूसरे की ओर देखने लगे। (IN)

यूहन्ना 13:23 उसके चेलों में से एक जिससे यीशु प्रेम रखता था, यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था। (IN)

यूहन्ना 13:24 तब शमौन पतरस ने उसकी ओर संकेत करके पूछा, “बता तो, वह किस के विषय में कहता है?” (IN)

यूहन्ना 13:25 तब उसने उसी तरह यीशु की छाती की ओर झुककर पूछा, “हे प्रभु, वह कौन है?” यीशु ने उत्तर दिया, “जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।” (IN)

यूहन्ना 13:26 और उसने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती को दिया। (IN)

यूहन्ना 13:27 और टुकड़ा लेते ही शैतान उसमें समा गया: तब यीशु ने उससे कहा, “जो तू करनेवाला है, तुरन्त कर।” (IN)

यूहन्ना 13:28 परन्तु बैठनेवालों में से किसी ने न जाना कि उसने यह बात उससे किस लिये कही। (IN)

यूहन्ना 13:29 यहूदा के पास थैली रहती थी, इसलिए किसी-किसी ने समझा, कि यीशु उससे कहता है, कि जो कुछ हमें पर्व के लिये चाहिए वह मोल ले, या यह कि गरीबों को कुछ दे। (IN)

यूहन्ना 13:30 तब वह टुकड़ा लेकर तुरन्त बाहर चला गया, और रात्रि का समय था। (IN)

यूहन्ना 13:31 ¶ जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा, “अब मनुष्य के पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्‍वर की महिमा उसमें हुई; (IN)

यूहन्ना 13:32 और परमेश्‍वर भी अपने में उसकी महिमा करेगा, वरन् तुरन्त करेगा। (IN)

यूहन्ना 13:33 हे बालकों, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ: फिर तुम मुझे ढूँढ़ोगे, और जैसा मैंने यहूदियों से कहा, ‘जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते,’ वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूँ। (IN)

यूहन्ना 13:34 मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ, कि एक दूसरे से प्रेम रखो जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। (IN)

यूहन्ना 13:35 यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (IN)

यूहन्ना 13:36 ¶ शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तू कहाँ जाता है?” यीशु ने उत्तर दिया, “जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता; परन्तु इसके बाद मेरे पीछे आएगा।” (IN)

यूहन्ना 13:37 पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तो तेरे लिये अपना प्राण दूँगा।” (IN)

यूहन्ना 13:38 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू मेरे लिये अपना प्राण देगा? मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि मुर्गा बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा। (IN)

यूहन्ना 14:1 ¶ “तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्‍वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। (IN)

यूहन्ना 14:2 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। (IN)

यूहन्ना 14:3 और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो। (IN)

यूहन्ना 14:4 ¶ और जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।” (IN)

यूहन्ना 14:5 थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है; तो मार्ग कैसे जानें?” (IN)

यूहन्ना 14:6 यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। (IN)

यूहन्ना 14:7 यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।” (IN)

यूहन्ना 14:8 ¶ फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिये बहुत है।” (IN)

यूहन्ना 14:9 यीशु ने उससे कहा, “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? (IN)

यूहन्ना 14:10 क्या तू विश्वास नहीं करता, कि मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। (IN)

यूहन्ना 14:11 मेरा ही विश्वास करो, कि मैं पिता में हूँ; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्वास करो। (IN)

यूहन्ना 14:12 ¶ “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन् इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ। (IN)

यूहन्ना 14:13 और जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूँगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो। (IN)

यूहन्ना 14:14 यदि तुम मुझसे मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं उसे करूँगा। (IN)

यूहन्ना 14:15 ¶ “यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। (IN)

यूहन्ना 14:16 और मैं पिता से विनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। (IN)

यूहन्ना 14:17 अर्थात् सत्य की आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा। (IN)

यूहन्ना 14:18 ¶ “मैं तुम्हें अनाथ न छोडूँगा, मैं तुम्हारे पास वापस आता हूँ। (IN)

यूहन्ना 14:19 और थोड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे। (IN)

यूहन्ना 14:20 उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपने पिता में हूँ, और तुम मुझ में, और मैं तुम में। (IN)

यूहन्ना 14:21 जिसके पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझसे प्रेम रखता है, और जो मुझसे प्रेम रखता है, उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूँगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूँगा।” (IN)

यूहन्ना 14:22 उस यहूदा ने जो इस्करियोती न था, उससे कहा, “हे प्रभु, क्या हुआ कि तू अपने आप को हम पर प्रगट करना चाहता है, और संसार पर नहीं?” (IN)

यूहन्ना 14:23 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यदि कोई मुझसे प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे, और उसके साथ वास करेंगे। (IN)

यूहन्ना 14:24 जो मुझसे प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन् पिता का है, जिस ने मुझे भेजा। (IN)

यूहन्ना 14:25 ¶ “ये बातें मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही। (IN)

यूहन्ना 14:26 परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।” (IN)

यूहन्ना 14:27 ¶ मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। (IN)

यूहन्ना 14:28 तुम ने सुना, कि मैंने तुम से कहा, ‘मैं जाता हूँ, और तुम्हारे पास फिर आता हूँ’ यदि तुम मुझसे प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूँ क्योंकि पिता मुझसे बड़ा है। (IN)

यूहन्ना 14:29 और मैंने अब इसके होने से पहले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम विश्वास करो। (IN)

यूहन्ना 14:30 मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूँगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ पर उसका कुछ अधिकार नहीं। (IN)

यूहन्ना 14:31 परन्तु यह इसलिए होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूँ। उठो, यहाँ से चलें। (IN)

यूहन्ना 15:1 ¶ “सच्ची दाखलता मैं हूँ; और मेरा पिता किसान है। (IN)

यूहन्ना 15:2 जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छाँटता है ताकि और फले। (IN)

यूहन्ना 15:3 तुम तो उस वचन के कारण जो मैंने तुम से कहा है, शुद्ध हो। (IN)

यूहन्ना 15:4 तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। (IN)

यूहन्ना 15:5 मैं दाखलता हूँ: तुम डालियाँ हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते। (IN)

यूहन्ना 15:6 यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली के समान फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं। (IN)

यूहन्ना 15:7 यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। (IN)

यूहन्ना 15:8 मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे। (IN)

यूहन्ना 15:9 जैसा पिता ने मुझसे प्रेम रखा, वैसे ही मैंने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो। (IN)

यूहन्ना 15:10 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे जैसा कि मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। (IN)

यूहन्ना 15:11 मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए। (IN)

यूहन्ना 15:12 ¶ “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। (IN)

यूहन्ना 15:13 इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे। (IN)

यूहन्ना 15:14 जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। (IN)

यूहन्ना 15:15 अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं। (IN)

यूहन्ना 15:16 तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से माँगो, वह तुम्हें दे। (IN)

यूहन्ना 15:17 इन बातों की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिए देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो। (IN)

यूहन्ना 15:18 ¶ “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उसने तुम से पहले मुझसे भी बैर रखा। (IN)

यूहन्ना 15:19 यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं वरन् मैंने तुम्हें संसार में से चुन लिया है; इसलिए संसार तुम से बैर रखता है। (IN)

यूहन्ना 15:20 जो बात मैंने तुम से कही थी, ‘दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता,’ उसको याद रखो यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएँगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे। (IN)

यूहन्ना 15:21 परन्तु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते। (IN)

यूहन्ना 15:22 यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उनके पाप के लिये कोई बहाना नहीं। (IN)

यूहन्ना 15:23 जो मुझसे बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है। (IN)

यूहन्ना 15:24 यदि मैं उनमें वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया। (IN)

यूहन्ना 15:25 और यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उनकी व्यवस्था में लिखा है, ‘उन्होंने मुझसे व्यर्थ बैर किया।’ (IN)

यूहन्ना 15:26 परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात् सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। (IN)

यूहन्ना 15:27 और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ रहे हो। (IN)

यूहन्ना 16:1 ¶ “ये बातें मैंने तुम से इसलिए कहीं कि तुम ठोकर न खाओ। (IN)

यूहन्ना 16:2 वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन् वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्‍वर की सेवा करता हूँ। (IN)

यूहन्ना 16:3 और यह वे इसलिए करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं। (IN)

यूहन्ना 16:4 परन्तु ये बातें मैंने इसलिए तुम से कहीं, कि जब उनके पूरे होने का समय आए तो तुम्हें स्मरण आ जाए, कि मैंने तुम से पहले ही कह दिया था, (IN)

यूहन्ना 16:5 ¶ अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जाता हूँ और तुम में से कोई मुझसे नहीं पूछता, ‘तू कहाँ जाता हैं?’ (IN)

यूहन्ना 16:6 परन्तु मैंने जो ये बातें तुम से कही हैं, इसलिए तुम्हारा मन शोक से भर गया। (IN)

यूहन्ना 16:7 फिर भी मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा। (IN)

यूहन्ना 16:8 और वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा। (IN)

यूहन्ना 16:9 पाप के विषय में इसलिए कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते; (IN)

यूहन्ना 16:10 और धार्मिकता के विषय में इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ, और तुम मुझे फिर न देखोगे; (IN)

यूहन्ना 16:11 न्याय के विषय में इसलिए कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है। (IN)

यूहन्ना 16:12 ¶ “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। (IN)

यूहन्ना 16:13 परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा। (IN)

यूहन्ना 16:14 वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा। (IN)

यूहन्ना 16:15 जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिए मैंने कहा, कि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा। (IN)

यूहन्ना 16:16 ¶ “थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे।” (IN)

यूहन्ना 16:17 तब उसके कितने चेलों ने आपस में कहा, “यह क्या है, जो वह हम से कहता है, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे?’ और यह ‘इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ’?” (IN)

यूहन्ना 16:18 तब उन्होंने कहा, “यह ‘थोड़ी देर’ जो वह कहता है, क्या बात है? हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।” (IN)

यूहन्ना 16:19 यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझसे पूछना चाहते हैं, उनसे कहा, “क्या तुम आपस में मेरी इस बात के विषय में पूछ-ताछ करते हो, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे’? (IN)

यूहन्ना 16:20 मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा। (IN)

यूहन्ना 16:21 जब स्त्री जनने लगती है तो उसको शोक होता है, क्योंकि उसकी दुःख की घड़ी आ पहुँची, परन्तु जब वह बालक को जन्म दे चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्‍पन्‍न हुआ, उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती। (IN)

यूहन्ना 16:22 और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूँगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा। (IN)

यूहन्ना 16:23 उस दिन तुम मुझसे कुछ न पूछोगे; मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ माँगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। (IN)

यूहन्ना 16:24 अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं माँगा; माँगो तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।। (IN)

यूहन्ना 16:25 ¶ “मैंने ये बातें तुम से दृष्टान्तों में कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तों में और फिर नहीं कहूँगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊँगा। (IN)

यूहन्ना 16:26 उस दिन तुम मेरे नाम से माँगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से विनती करूँगा। (IN)

यूहन्ना 16:27 क्योंकि पिता तो स्वयं ही तुम से प्रेम रखता है, इसलिए कि तुम ने मुझसे प्रेम रखा है, और यह भी विश्वास किया, कि मैं पिता की ओर से आया। (IN)

यूहन्ना 16:28 मैं पिता की ओर से जगत में आया हूँ, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास वापस जाता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 16:29 उसके चेलों ने कहा, “देख, अब तो तू खुलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता। (IN)

यूहन्ना 16:30 अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और जरूरत नहीं कि कोई तुझ से प्रश्न करे, इससे हम विश्वास करते हैं, कि तू परमेश्‍वर की ओर से आया है।” (IN)

यूहन्ना 16:31 यह सुन यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम अब विश्वास करते हो? (IN)

यूहन्ना 16:32 देखो, वह घड़ी आती है वरन् आ पहुँची कि तुम सब तितर-बितर होकर अपना-अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, फिर भी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है। (IN)

यूहन्ना 16:33 मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैंने संसार को जीत लिया है।” (IN)

यूहन्ना 17:1 ¶ यीशु ने ये बातें कहीं और अपनी आँखें आकाश की ओर उठाकर कहा, “हे पिता, वह घड़ी आ पहुँची, अपने पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे, (IN)

यूहन्ना 17:2 क्योंकि तूने उसको सब प्राणियों पर अधिकार दिया, कि जिन्हें तूने उसको दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे। (IN)

यूहन्ना 17:3 और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जानें। (IN)

यूहन्ना 17:4 जो काम तूने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है। (IN)

यूहन्ना 17:5 और अब, हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत की सृष्टि पहले, मेरी तेरे साथ थी। (IN)

यूहन्ना 17:6 ¶ “मैंने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रगट किया जिन्हें तूने जगत में से मुझे दिया। वे तेरे थे और तूने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है। (IN)

यूहन्ना 17:7 अब वे जान गए हैं, कि जो कुछ तूने मुझे दिया है, सब तेरी ओर से है। (IN)

यूहन्ना 17:8 क्योंकि जो बातें तूने मुझे पहुँचा दीं, मैंने उन्हें उनको पहुँचा दिया और उन्होंने उनको ग्रहण किया और सच-सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से आया हूँ, और यह विश्वास किया है कि तू ही ने भेजा। (IN)

यूहन्ना 17:9 मैं उनके लिये विनती करता हूँ, संसार के लिये विनती नहीं करता हूँ परन्तु उन्हीं के लिये जिन्हें तूने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं। (IN)

यूहन्ना 17:10 और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है वह मेरा है; और इनसे मेरी महिमा प्रगट हुई है। (IN)

यूहन्ना 17:11 मैं आगे को जगत में न रहूँगा, परन्तु ये जगत में रहेंगे, और मैं तेरे पास आता हूँ; हे पवित्र पिता, अपने उस नाम से जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा कर, कि वे हमारे समान एक हों। (IN)

यूहन्ना 17:12 जब मैं उनके साथ था, तो मैंने तेरे उस नाम से, जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा की, मैंने उनकी देख-रेख की और विनाश के पुत्र को छोड़ उनमें से कोई नाश न हुआ, इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो। (IN)

यूहन्ना 17:13 परन्तु अब मैं तेरे पास आता हूँ, और ये बातें जगत में कहता हूँ, कि वे मेरा आनन्द अपने में पूरा पाएँ। (IN)

यूहन्ना 17:14 मैंने तेरा वचन उन्हें पहुँचा दिया है, और संसार ने उनसे बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। (IN)

यूहन्ना 17:15 मैं यह विनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख। (IN)

यूहन्ना 17:16 जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। (IN)

यूहन्ना 17:17 सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है। (IN)

यूहन्ना 17:18 जैसे तूने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैंने भी उन्हें जगत में भेजा। (IN)

यूहन्ना 17:19 और उनके लिये मैं अपने आप को पवित्र करता हूँ ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएँ। (IN)

यूहन्ना 17:20 ¶ “मैं केवल इन्हीं के लिये विनती नहीं करता, परन्तु उनके लिये भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, (IN)

यूहन्ना 17:21 कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिए कि जगत विश्वास करे, कि तू ही ने मुझे भेजा। (IN)

यूहन्ना 17:22 और वह महिमा जो तूने मुझे दी, मैंने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं। (IN)

यूहन्ना 17:23 मैं उनमें और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तूने मुझसे प्रेम रखा, वैसा ही उनसे प्रेम रखा। (IN)

यूहन्ना 17:24 हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तूने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तूने मुझे दी है, क्योंकि तूने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझसे प्रेम रखा। (IN)

यूहन्ना 17:25 हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैंने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा। (IN)

यूहन्ना 17:26 और मैंने तेरा नाम उनको बताया और बताता रहूँगा कि जो प्रेम तुझको मुझसे था, वह उनमें रहे और मैं उनमें रहूँ।” (IN)

यूहन्ना 18:1 ¶ यीशु ये बातें कहकर अपने चेलों के साथ किद्रोन के नाले के पार गया, वहाँ एक बारी थी, जिसमें वह और उसके चेले गए। (IN)

यूहन्ना 18:2 और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी वह जगह जानता था, क्योंकि यीशु अपने चेलों के साथ वहाँ जाया करता था। (IN)

यूहन्ना 18:3 तब यहूदा सैन्य-दल को और प्रधान याजकों और फरीसियों की ओर से प्यादों को लेकर दीपकों और मशालों और हथियारों को लिए हुए वहाँ आया। (IN)

यूहन्ना 18:4 तब यीशु उन सब बातों को जो उस पर आनेवाली थीं, जानकर निकला, और उनसे कहने लगा, “किसे ढूँढ़ते हो?” (IN)

यूहन्ना 18:5 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं हूँ।” और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी उनके साथ खड़ा था। (IN)

यूहन्ना 18:6 उसके यह कहते ही, “मैं हूँ,” वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े। (IN)

यूहन्ना 18:7 तब उसने फिर उनसे पूछा, “तुम किस को ढूँढ़ते हो।” वे बोले, “यीशु नासरी को।” (IN)

यूहन्ना 18:8 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तो तुम से कह चुका हूँ कि मैं हूँ, यदि मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।” (IN)

यूहन्ना 18:9 यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उसने कहा था: “जिन्हें तूने मुझे दिया, उनमें से मैंने एक को भी न खोया।” (IN)

यूहन्ना 18:10 शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास थी, खींची और महायाजक के दास पर चलाकर, उसका दाहिना कान काट दिया, उस दास का नाम मलखुस था। (IN)

यूहन्ना 18:11 तब यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार काठी में रख। जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊँ?” (IN)

यूहन्ना 18:12 ¶ तब सिपाहियों और उनके सूबेदार और यहूदियों के प्यादों ने यीशु को पकड़कर बाँध लिया, (IN)

यूहन्ना 18:13 और पहले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महायाजक कैफा का ससुर था। (IN)

यूहन्ना 18:14 यह वही कैफा था, जिसने यहूदियों को सलाह दी थी कि हमारे लोगों के लिये एक पुरुष का मरना अच्छा है। (IN)

यूहन्ना 18:15 ¶ शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए। यह चेला महायाजक का जाना पहचाना था और यीशु के साथ महायाजक के आँगन में गया। (IN)

यूहन्ना 18:16 परन्तु पतरस बाहर द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महायाजक का जाना पहचाना था, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया। (IN)

यूहन्ना 18:17 उस दासी ने जो द्वारपालिन थी, पतरस से कहा, “क्या तू भी इस मनुष्य के चेलों में से है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” (IN)

यूहन्ना 18:18 दास और प्यादे जाड़े के कारण कोयले धधकाकर खड़े आग ताप रहे थे और पतरस भी उनके साथ खड़ा आग ताप रहा था। (IN)

यूहन्ना 18:19 ¶ तब महायाजक ने यीशु से उसके चेलों के विषय में और उसके उपदेश के विषय में पूछा। (IN)

यूहन्ना 18:20 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैंने जगत से खुलकर बातें की; मैंने आराधनालयों और मन्दिर में जहाँ सब यहूदी इकट्ठा हुआ करते हैं सदा उपदेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा। (IN)

यूहन्ना 18:21 तू मुझसे क्यों पूछता है? सुननेवालों से पूछ: कि मैंने उनसे क्या कहा? देख वे जानते हैं; कि मैंने क्या-क्या कहा।” (IN)

यूहन्ना 18:22 जब उसने यह कहा, तो प्यादों में से एक ने जो पास खड़ा था, यीशु को थप्पड़ मारकर कहा, “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है?” (IN)

यूहन्ना 18:23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैंने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्यों मारता है?” (IN)

यूहन्ना 18:24 हन्ना ने उसे बंधे हुए कैफा महायाजक के पास भेज दिया। (IN)

यूहन्ना 18:25 ¶ शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था। तब उन्होंने उससे कहा; “क्या तू भी उसके चेलों में से है?” उसने इन्कार करके कहा, “मैं नहीं हूँ।” (IN)

यूहन्ना 18:26 महायाजक के दासों में से एक जो उसके कुटुम्ब में से था, जिसका कान पतरस ने काट डाला था, बोला, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बारी में न देखा था?” (IN)

यूहन्ना 18:27 पतरस फिर इन्कार कर गया और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी। (IN)

यूहन्ना 18:28 ¶ और वे यीशु को कैफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय था, परन्तु वे स्वयं किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न हों परन्तु फसह खा सके। (IN)

यूहन्ना 18:29 तब पिलातुस उनके पास बाहर निकल आया और कहा, “तुम इस मनुष्य पर किस बात का दोषारोपण करते हो?” (IN)

यूहन्ना 18:30 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते।” (IN)

यूहन्ना 18:31 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही इसे ले जाकर अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।” यहूदियों ने उससे कहा, “हमें अधिकार नहीं कि किसी का प्राण लें।” (IN)

यूहन्ना 18:32 यह इसलिए हुआ, कि यीशु की वह बात पूरी हो जो उसने यह दर्शाते हुए कही थी, कि उसका मरना कैसा होगा। (IN)

यूहन्ना 18:33 तब पिलातुस फिर किले के भीतर गया और यीशु को बुलाकर, उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” (IN)

यूहन्ना 18:34 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या औरों ने मेरे विषय में तुझ से कही?” (IN)

यूहन्ना 18:35 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तेरी ही जाति और प्रधान याजकों ने तुझे मेरे हाथ सौंपा, तूने क्या किया है?” (IN)

यूहन्ना 18:36 यीशु ने उत्तर दिया, “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहाँ का नहीं।” (IN)

यूहन्ना 18:37 पिलातुस ने उससे कहा, “तो क्या तू राजा है?” यीशु ने उत्तर दिया, “तू कहता है, कि मैं राजा हूँ; मैंने इसलिए जन्म लिया, और इसलिए जगत में आया हूँ कि सत्य पर गवाही दूँ जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” (IN)

यूहन्ना 18:38 पिलातुस ने उससे कहा, “सत्य क्या है?” और यह कहकर वह फिर यहूदियों के पास निकल गया और उनसे कहा, “मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता। (IN)

यूहन्ना 18:39 ¶ पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिये एक व्यक्ति को छोड़ दूँ। तो क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” (IN)

यूहन्ना 18:40 तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, “इसे नहीं परन्तु हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” और बरअब्बा डाकू था। (IN)

यूहन्ना 19:1 ¶ इस पर पिलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए। (IN)

यूहन्ना 19:2 और सिपाहियों ने काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंगनी ऊपरी वस्त्र पहनाया, (IN)

यूहन्ना 19:3 और उसके पास आ आकर कहने लगे, “हे यहूदियों के राजा, प्रणाम!” और उसे थप्पड़ मारे। (IN)

यूहन्ना 19:4 तब पिलातुस ने फिर बाहर निकलकर लोगों से कहा, “देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूँ; ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता।” (IN)

यूहन्ना 19:5 ¶ तब यीशु काँटों का मुकुट और बैंगनी वस्त्र पहने हुए बाहर निकला और पिलातुस ने उनसे कहा, “देखो, यह पुरुष।” (IN)

यूहन्ना 19:6 जब प्रधान याजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उसमें दोष नहीं पाता।” (IN)

यूहन्ना 19:7 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्‍वर का पुत्र बताया।” (IN)

यूहन्ना 19:8 जब पिलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया। (IN)

यूहन्ना 19:9 और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, “तू कहाँ का है?” परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया। (IN)

यूहन्ना 19:10 पिलातुस ने उससे कहा, “मुझसे क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।” (IN)

यूहन्ना 19:11 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता; इसलिए जिस ने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।” (IN)

यूहन्ना 19:12 ¶ इससे पिलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा, परन्तु यहूदियों ने चिल्ला चिल्लाकर कहा, “यदि तू इसको छोड़ देगा तो तू कैसर का मित्र नहीं; जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर का सामना करता है।” (IN)

यूहन्ना 19:13 ये बातें सुनकर पिलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा था, जो इब्रानी में ‘गब्बता’ कहलाता है, और न्याय आसन पर बैठा। (IN)

यूहन्ना 19:14 यह फसह की तैयारी का दिन था और छठे घंटे के लगभग था : तब उसने यहूदियों से कहा, “देखो, यही है, तुम्हारा राजा!” (IN)

यूहन्ना 19:15 परन्तु वे चिल्लाए, “ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा!” पिलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊँ?” प्रधान याजकों ने उत्तर दिया, “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” (IN)

यूहन्ना 19:16 तब उसने उसे उनके हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए। (IN)

यूहन्ना 19:17 ¶ तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो ‘खोपड़ी का स्थान’ कहलाता है और इब्रानी में ‘गुलगुता’। (IN)

यूहन्ना 19:18 वहाँ उन्होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को। (IN)

यूहन्ना 19:19 और पिलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर क्रूस पर लगा दिया और उसमें यह लिखा हुआ था, “यीशु नासरी यहूदियों का राजा।” (IN)

यूहन्ना 19:20 यह दोष-पत्र बहुत यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि वह स्थान जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था नगर के पास था और पत्र इब्रानी और लतीनी और यूनानी में लिखा हुआ था। (IN)

यूहन्ना 19:21 तब यहूदियों के प्रधान याजकों ने पिलातुस से कहा, “‘यहूदियों का राजा’ मत लिख परन्तु यह कि ‘उसने कहा, मैं यहूदियों का राजा हूँ’।” (IN)

यूहन्ना 19:22 पिलातुस ने उत्तर दिया, “मैंने जो लिख दिया, वह लिख दिया।” (IN)

यूहन्ना 19:23 जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपड़े लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिये एक भाग और कुर्ता भी लिया, परन्तु कुर्ता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था; (IN)

यूहन्ना 19:24 इसलिए उन्होंने आपस में कहा, “हम इसको न फाड़े, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा।” यह इसलिए हुआ, कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो, “उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बाँट लिए और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।” (IN)

यूहन्ना 19:25 ¶ अतः सिपाहियों ने ऐसा ही किया। परन्तु यीशु के क्रूस के पास उसकी माता और उसकी माता की बहन मरियम, क्लोपास की पत्‍नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी। (IN)

यूहन्ना 19:26 यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिससे वह प्रेम रखता था पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा, “हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।” (IN)

यूहन्ना 19:27 तब उस चेले से कहा, “देख, यह तेरी माता है।” और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया। (IN)

यूहन्ना 19:28 ¶ इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो कहा, “मैं प्यासा हूँ।” (IN)

यूहन्ना 19:29 वहाँ एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, इसलिए उन्होंने सिरके के भिगोए हुए पनसोख्‍ता को जूफे पर रखकर उसके मुँह से लगाया। (IN)

यूहन्ना 19:30 जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, “पूरा हुआ”; और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए। (IN)

यूहन्ना 19:31 ¶ और इसलिए कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पिलातुस से विनती की, कि उनकी टाँगें तोड़ दी जाएँ और वे उतारे जाएँ ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था। (IN)

यूहन्ना 19:32 इसलिए सिपाहियों ने आकर पहले की टाँगें तोड़ी तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे। (IN)

यूहन्ना 19:33 परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उसकी टाँगें न तोड़ी। (IN)

यूहन्ना 19:34 परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उसमें से तुरन्त लहू और पानी निकला। (IN)

यूहन्ना 19:35 जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उसकी गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो। (IN)

यूहन्ना 19:36 ये बातें इसलिए हुईं कि पवित्रशास्त्र की यह बात पूरी हो, “उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।” (IN)

यूहन्ना 19:37 फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, “जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।” (IN)

यूहन्ना 19:38 ¶ इन बातों के बाद अरिमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला था, (परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था), पिलातुस से विनती की, कि मैं यीशु के शव को ले जाऊँ, और पिलातुस ने उसकी विनती सुनी, और वह आकर उसका शव ले गया। (IN)

यूहन्ना 19:39 नीकुदेमुस भी जो पहले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया। (IN)

यूहन्ना 19:40 तब उन्होंने यीशु के शव को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध-द्रव्य के साथ कफन में लपेटा। (IN)

यूहन्ना 19:41 उस स्थान पर जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिसमें कभी कोई न रखा गया था। (IN)

यूहन्ना 19:42 अतः यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी। (IN)

यूहन्ना 20:1 ¶ सप्ताह के पहले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्थर को कब्र से हटा हुआ देखा। (IN)

यूहन्ना 20:2 तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिससे यीशु प्रेम रखता था आकर कहा, “वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहाँ रख दिया है।” (IN)

यूहन्ना 20:3 तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले। (IN)

यूहन्ना 20:4 और दोनों साथ-साथ दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहले पहुँचा। (IN)

यूहन्ना 20:5 और झुककर कपड़े पड़े देखे: तो भी वह भीतर न गया। (IN)

यूहन्ना 20:6 तब शमौन पतरस उसके पीछे-पीछे पहुँचा और कब्र के भीतर गया और कपड़े पड़े देखे। (IN)

यूहन्ना 20:7 और वह अँगोछा जो उसके सिर पर बन्धा हुआ था, कपड़ों के साथ पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा। (IN)

यूहन्ना 20:8 तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहले पहुँचा था, भीतर गया और देखकर विश्वास किया। (IN)

यूहन्ना 20:9 वे तो अब तक पवित्रशास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा। (IN)

यूहन्ना 20:10 तब ये चेले अपने घर लौट गए। (IN)

यूहन्ना 20:11 ¶ परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते-रोते कब्र की ओर झुककर, (IN)

यूहन्ना 20:12 दो स्वर्गदूतों को उज्‍ज्वल कपड़े पहने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहाँ यीशु का शव पड़ा था। (IN)

यूहन्ना 20:13 उन्होंने उससे कहा, “हे नारी, तू क्यों रोती है?” उसने उनसे कहा, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहाँ रखा है।” (IN)

यूहन्ना 20:14 यह कहकर वह पीछे फिरी और यीशु को खड़े देखा और न पहचाना कि यह यीशु है। (IN)

यूहन्ना 20:15 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी तू क्यों रोती है? किस को ढूँढ़ती है?” उसने माली समझकर उससे कहा, “हे श्रीमान, यदि तूने उसे उठा लिया है तो मुझसे कह कि उसे कहाँ रखा है और मैं उसे ले जाऊँगी।” (IN)

यूहन्ना 20:16 यीशु ने उससे कहा, “मरियम!” उसने पीछे फिरकर उससे इब्रानी में कहा, “रब्बूनी!” अर्थात् ‘हे गुरु।’ (IN)

यूहन्ना 20:17 यीशु ने उससे कहा, “मुझे मत छू क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया, परन्तु मेरे भाइयों के पास जाकर उनसे कह दे, कि मैं अपने पिता, और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्‍वर और तुम्हारे परमेश्‍वर के पास ऊपर जाता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 20:18 मरियम मगदलीनी ने जाकर चेलों को बताया, “मैंने प्रभु को देखा और उसने मुझसे बातें कहीं।” (IN)

यूहन्ना 20:19 ¶ उसी दिन जो सप्ताह का पहला दिन था, संध्या के समय जब वहाँ के द्वार जहाँ चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” (IN)

यूहन्ना 20:20 और यह कहकर उसने अपना हाथ और अपना पंजर उनको दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए। (IN)

यूहन्ना 20:21 यीशु ने फिर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।” (IN)

यूहन्ना 20:22 यह कहकर उसने उन पर फूँका और उनसे कहा, “पवित्र आत्मा लो। (IN)

यूहन्ना 20:23 जिनके पाप तुम क्षमा करो वे उनके लिये क्षमा किए गए हैं; जिनके तुम रखो, वे रखे गए हैं।” (IN)

यूहन्ना 20:24 ¶ परन्तु बारहों में से एक व्यक्ति अर्थात् थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, जब यीशु आया तो उनके साथ न था। (IN)

यूहन्ना 20:25 जब और चेले उससे कहने लगे, “हमने प्रभु को देखा है,” तब उसने उनसे कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और कीलों के छेदों में अपनी उँगली न डाल लूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।” (IN)

यूहन्ना 20:26 ¶ आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।” (IN)

यूहन्ना 20:27 तब उसने थोमा से कहा, “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।” (IN)

यूहन्ना 20:28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्‍वर!” (IN)

यूहन्ना 20:29 यीशु ने उससे कहा, “तूने तो मुझे देखकर विश्वास किया है? धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।” (IN)

यूहन्ना 20:30 ¶ यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के सामने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए। (IN)

यूहन्ना 20:31 परन्तु ये इसलिए लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ। (IN)

यूहन्ना 21:1 ¶ इन बातों के बाद यीशु ने अपने आप को तिबिरियुस झील के किनारे चेलों पर प्रगट किया और इस रीति से प्रगट किया। (IN)

यूहन्ना 21:2 शमौन पतरस और थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, और गलील के काना नगर का नतनएल और जब्दी के पुत्र, और उसके चेलों में से दो और जन इकट्ठे थे। (IN)

यूहन्ना 21:3 शमौन पतरस ने उनसे कहा, “मैं मछली पकड़ने जाता हूँ।” उन्होंने उससे कहा, “हम भी तेरे साथ चलते हैं।” इसलिए वे निकलकर नाव पर चढ़े, परन्तु उस रात कुछ न पकड़ा। (IN)

यूहन्ना 21:4 भोर होते ही यीशु किनारे पर खड़ा हुआ; फिर भी चेलों ने न पहचाना कि यह यीशु है। (IN)

यूहन्ना 21:5 तब यीशु ने उनसे कहा, “हे बालकों, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है?” उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं।” (IN)

यूहन्ना 21:6 उसने उनसे कहा, “नाव की दाहिनी ओर जाल डालो, तो पाओगे।” तब उन्होंने जाल डाला, और अब मछलियों की बहुतायत के कारण उसे खींच न सके। (IN)

यूहन्ना 21:7 इसलिए उस चेले ने जिससे यीशु प्रेम रखता था पतरस से कहा, “यह तो प्रभु है।” शमौन पतरस ने यह सुनकर कि प्रभु है, कमर में अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह नंगा था, और झील में कूद पड़ा। (IN)

यूहन्ना 21:8 परन्तु और चेले डोंगी पर मछलियों से भरा हुआ जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से अधिक दूर नहीं, कोई दो सौ हाथ पर थे। (IN)

यूहन्ना 21:9 जब किनारे पर उतरे, तो उन्होंने कोयले की आग, और उस पर मछली रखी हुई, और रोटी देखी। (IN)

यूहन्ना 21:10 यीशु ने उनसे कहा, “जो मछलियाँ तुम ने अभी पकड़ी हैं, उनमें से कुछ लाओ।” (IN)

यूहन्ना 21:11 शमौन पतरस ने डोंगी पर चढ़कर एक सौ तिरपन बड़ी मछलियों से भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा, और इतनी मछलियाँ होने पर भी जाल न फटा। (IN)

यूहन्ना 21:12 यीशु ने उनसे कहा, “आओ, भोजन करो।” और चेलों में से किसी को साहस न हुआ, कि उससे पूछे, “तू कौन है?” क्योंकि वे जानते थे कि यह प्रभु है। (IN)

यूहन्ना 21:13 यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी। (IN)

यूहन्ना 21:14 यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलों को दर्शन दिए। (IN)

यूहन्ना 21:15 ¶ भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इनसे बढ़कर मुझसे प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हाँ प्रभु; तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरे मेम्नों को चरा।” (IN)

यूहन्ना 21:16 उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रेम रखता है?” उसने उनसे कहा, “हाँ, प्रभु तू जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” (IN)

यूहन्ना 21:17 उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” पतरस उदास हुआ, कि उसने उसे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा। (IN)

यूहन्ना 21:18 मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तू जवान था, तो अपनी कमर बाँधकर जहाँ चाहता था, वहाँ फिरता था; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपने हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बाँधकर जहाँ तू न चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।” (IN)

यूहन्ना 21:19 उसने इन बातों से दर्शाया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्‍वर की महिमा करेगा; और यह कहकर, उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” (IN)

यूहन्ना 21:20 ¶ पतरस ने फिरकर उस चेले को पीछे आते देखा, जिससे यीशु प्रेम रखता था, और जिस ने भोजन के समय उसकी छाती की और झुककर पूछा “हे प्रभु, तेरा पकड़वानेवाला कौन है?” (IN)

यूहन्ना 21:21 उसे देखकर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, इसका क्या हाल होगा?” (IN)

यूहन्ना 21:22 यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या? तू मेरे पीछे हो ले।” (IN)

यूहन्ना 21:23 इसलिए भाइयों में यह बात फैल गई, कि वह चेला न मरेगा; तो भी यीशु ने उससे यह नहीं कहा, कि यह न मरेगा, परन्तु यह कि “यदि मैं चाहूँ कि यह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इससे क्या?” (IN)

यूहन्ना 21:24 ¶ यह वही चेला है, जो इन बातों की गवाही देता है और जिस ने इन बातों को लिखा है और हम जानते हैं, कि उसकी गवाही सच्ची है। (IN)

यूहन्ना 21:25 और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक-एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं। (IN)

प्रेरितों के काम 1:1 ¶ हे थियुफिलुस, मैंने पहली पुस्तिका उन सब बातों के विषय में लिखी, जो यीशु आरम्भ से करता और सिखाता रहा, (IN)

प्रेरितों के काम 1:2 उस दिन तक जब वह उन प्रेरितों को जिन्हें उसने चुना था, पवित्र आत्मा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया, (IN)

प्रेरितों के काम 1:3 और यीशु के दुःख उठाने के बाद बहुत से पक्के प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह प्रेरितों को दिखाई देता रहा, और परमेश्‍वर के राज्य की बातें करता रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 1:4 ¶ और चेलों से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, “यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करते रहो, जिसकी चर्चा तुम मुझसे सुन चुके हो। (IN)

प्रेरितों के काम 1:5 क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 1:6 ¶ अतः उन्होंने इकट्ठे होकर उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेगा?” (IN)

प्रेरितों के काम 1:7 उसने उनसे कहा, “उन समयों या कालों को जानना, जिनको पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। (IN)

प्रेरितों के काम 1:8 परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ्य पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 1:9 ¶ यह कहकर वह उनके देखते-देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया। (IN)

प्रेरितों के काम 1:10 और उसके जाते समय जब वे आकाश की ओर ताक रहे थे, तब देखो, दो पुरुष श्वेत वस्त्र पहने हुए उनके पास आ खड़े हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 1:11 और कहने लगे, “हे गलीली पुरुषों, तुम क्यों खड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 1:12 ¶ तब वे जैतून नामक पहाड़ से जो यरूशलेम के निकट एक सब्त के दिन की दूरी पर है, यरूशलेम को लौटे। (IN)

प्रेरितों के काम 1:13 और जब वहाँ पहुँचे तो वे उस अटारी पर गए, जहाँ पतरस, यूहन्ना, याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस, थोमा, बरतुल्मै, मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब, शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा रहते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 1:14 ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर प्रार्थना में लगे रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 1:15 ¶ और उन्हीं दिनों में पतरस भाइयों के बीच में जो एक सौ बीस व्यक्ति के लगभग इकट्ठे थे, खड़ा होकर कहने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 1:16 “हे भाइयों, अवश्य था कि पवित्रशास्त्र का वह लेख पूरा हो, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यहूदा के विषय में जो यीशु के पकड़ने वालों का अगुआ था, पहले से कहा था। (IN)

प्रेरितों के काम 1:17 ¶ क्योंकि वह तो हम में गिना गया, और इस सेवकाई में भी सहभागी हुआ। (IN)

प्रेरितों के काम 1:18 (उसने अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया; और सिर के बल गिरा, और उसका पेट फट गया, और उसकी सब अंतड़ियाँ निकल गई। (IN)

प्रेरितों के काम 1:19 और इस बात को यरूशलेम के सब रहनेवाले जान गए, यहाँ तक कि उस खेत का नाम उनकी भाषा में ‘हकलदमा’ अर्थात् ‘लहू का खेत’ पड़ गया।) (IN)

प्रेरितों के काम 1:20 ¶ क्योंकि भजन संहिता में लिखा है, (IN)

प्रेरितों के काम 1:21 ¶ इसलिए जितने दिन तक प्रभु यीशु हमारे साथ आता जाता रहा, अर्थात् यूहन्ना के बपतिस्मा से लेकर उसके हमारे पास से उठाए जाने तक, जो लोग बराबर हमारे साथ रहे, (IN)

प्रेरितों के काम 1:22 उचित है कि उनमें से एक व्यक्ति हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह हो जाए।” (IN)

प्रेरितों के काम 1:23 तब उन्होंने दो को खड़ा किया, एक यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता है, जिसका उपनाम यूस्तुस है, दूसरा मत्तियाह को। (IN)

प्रेरितों के काम 1:24 ¶ और यह कहकर प्रार्थना की, “हे प्रभु, तू जो सब के मन को जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तूने किस को चुना है, (IN)

प्रेरितों के काम 1:25 कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले, जिसे यहूदा छोड़कर अपने स्थान को गया।” (IN)

प्रेरितों के काम 1:26 तब उन्होंने उनके बारे में चिट्ठियाँ डाली, और चिट्ठी मत्तियाह के नाम पर निकली, अतः वह उन ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया। (IN)

प्रेरितों के काम 2:1 ¶ जब पिन्तेकुस्त का दिन आया, तो वे सब एक जगह इकट्ठे थे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:2 और अचानक आकाश से बड़ी आँधी के समान सनसनाहट का शब्द हुआ, और उससे सारा घर जहाँ वे बैठे थे, गूँज गया। (IN)

प्रेरितों के काम 2:3 और उन्हें आग के समान जीभें फटती हुई दिखाई दी और उनमें से हर एक पर आ ठहरी। (IN)

प्रेरितों के काम 2:4 और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य-अन्य भाषा बोलने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:5 ¶ और आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त-यहूदी यरूशलेम में रहते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:6 जब वह शब्द सुनाई दिया, तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्‍योंकि हर एक को यही सुनाई देता था, कि ये मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 2:7 और वे सब चकित और अचम्भित होकर कहने लगे, “देखो, ये जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं? (IN)

प्रेरितों के काम 2:8 ¶ तो फिर क्यों हम में से; हर एक अपनी-अपनी जन्म-भूमि की भाषा सुनता है? (IN)

प्रेरितों के काम 2:9 हम जो पारथी, मेदी, एलाम लोग, मेसोपोटामिया, यहूदिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस और आसिया, (IN)

प्रेरितों के काम 2:10 और फ्रूगिया और पंफूलिया और मिस्र और लीबिया देश जो कुरेने के आस-पास है, इन सब देशों के रहनेवाले और रोमी प्रवासी, (IN)

प्रेरितों के काम 2:11 अर्थात् क्या यहूदी, और क्या यहूदी मत धारण करनेवाले, क्रेती और अरबी भी हैं, परन्तु अपनी-अपनी भाषा में उनसे परमेश्‍वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चा सुनते हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 2:12 ¶ और वे सब चकित हुए, और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे, “यह क्या हो रहा है?” (IN)

प्रेरितों के काम 2:13 परन्तु दूसरों ने उपहास करके कहा, “वे तो नई मदिरा के नशे में हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 2:14 ¶ पतरस उन ग्यारह के साथ खड़ा हुआ और ऊँचे शब्द से कहने लगा, “हे यहूदियों, और हे यरूशलेम के सब रहनेवालों, यह जान लो और कान लगाकर मेरी बातें सुनो। (IN)

प्रेरितों के काम 2:15 जैसा तुम समझ रहे हो, ये नशे में नहीं हैं, क्योंकि अभी तो तीसरा पहर ही दिन चढ़ा है। (IN)

प्रेरितों के काम 2:16 परन्तु यह वह बात है, जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई है: (IN)

प्रेरितों के काम 2:17 ‘परमेश्‍वर कहता है, कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा, कि (IN)

प्रेरितों के काम 2:18 वरन् मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों (IN)

प्रेरितों के काम 2:19 और मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम, (IN)

प्रेरितों के काम 2:20 प्रभु के महान और तेजस्वी दिन के आने से पहले (IN)

प्रेरितों के काम 2:21 और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 2:22 ¶ “हे इस्राएलियों, ये बातें सुनो कि यीशु नासरी एक मनुष्य था जिसका परमेश्‍वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कामों और चिन्हों से प्रगट है, जो परमेश्‍वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए जिसे तुम आप ही जानते हो। (IN)

प्रेरितों के काम 2:23 उसी को, जब वह परमेश्‍वर की ठहराई हुई योजना और पूर्व ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधर्मियों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वाकर मार डाला। (IN)

प्रेरितों के काम 2:24 परन्तु उसी को परमेश्‍वर ने मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता। (IN)

प्रेरितों के काम 2:25 ¶ क्योंकि दाऊद उसके विषय में कहता है, (IN)

प्रेरितों के काम 2:26 इसी कारण मेरा मन आनन्दित हुआ, और मेरी जीभ मगन हुई; (IN)

प्रेरितों के काम 2:27 क्योंकि तू मेरे प्राणों को अधोलोक में न छोड़ेगा; (IN)

प्रेरितों के काम 2:28 तूने मुझे जीवन का मार्ग बताया है; (IN)

प्रेरितों के काम 2:29 ¶ “हे भाइयों, मैं उस कुलपति दाऊद के विषय में तुम से साहस के साथ कह सकता हूँ कि वह तो मर गया और गाड़ा भी गया और उसकी कब्र आज तक हमारे यहाँ वर्तमान है। (IN)

प्रेरितों के काम 2:30 वह भविष्यद्वक्ता था, वह जानता था कि परमेश्‍वर ने उससे शपथ खाई है, “मैं तेरे वंश में से एक व्यक्ति को तेरे सिंहासन पर बैठाऊँगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 2:31 उसने होनेवाली बात को पहले ही से देखकर मसीह के जी उठने के विषय में भविष्यद्वाणी की, (IN)

प्रेरितों के काम 2:32 ¶ इसी यीशु को परमेश्‍वर ने जिलाया, जिसके हम सब गवाह हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 2:33 इस प्रकार परमेश्‍वर के दाहिने हाथ से सर्वो‍च्च पद पा कर, और पिता से वह पवित्र आत्मा प्राप्त करके जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी, उसने यह उण्डेल दिया है जो तुम देखते और सुनते हो। (IN)

प्रेरितों के काम 2:34 ¶ क्योंकि दाऊद तो स्वर्ग पर नहीं चढ़ा; परन्तु वह स्वयं कहता है, (IN)

प्रेरितों के काम 2:35 जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों तले की चौकी न कर दूँ।’ (IN)

प्रेरितों के काम 2:36 अतः अब इस्राएल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्‍वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी।” (IN)

प्रेरितों के काम 2:37 ¶ तब सुननेवालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और अन्य प्रेरितों से पूछने लगे, “हे भाइयों, हम क्या करें?” (IN)

प्रेरितों के काम 2:38 पतरस ने उनसे कहा, “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने-अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:39 क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर-दूर के लोगों के लिये भी है जिनको प्रभु हमारा परमेश्‍वर अपने पास बुलाएगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 2:40 ¶ उसने बहुत और बातों से भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ। (IN)

प्रेरितों के काम 2:41 अतः जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उनमें मिल गए। (IN)

प्रेरितों के काम 2:42 ¶ और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:43 ¶ और सब लोगों पर भय छा गया, और बहुत से अद्भुत काम और चिन्ह प्रेरितों के द्वारा प्रगट होते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:44 और सब विश्वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उनकी सब वस्तुएँ साझे की थीं। (IN)

प्रेरितों के काम 2:45 और वे अपनी-अपनी सम्पत्ति और सामान बेच-बेचकर जैसी जिसकी आवश्यकता होती थी बाँट दिया करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:46 ¶ और वे प्रतिदिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर-घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सिधाई से भोजन किया करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 2:47 और परमेश्‍वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उनसे प्रसन्‍न थे; और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला देता था। (IN)

प्रेरितों के काम 3:1 ¶ पतरस और यूहन्ना तीसरे पहर प्रार्थना के समय मन्दिर में जा रहे थे। (IN)

प्रेरितों के काम 3:2 और लोग एक जन्म के लँगड़े को ला रहे थे, जिसको वे प्रतिदिन मन्दिर के उस द्वार पर जो ‘सुन्दर’ कहलाता है, बैठा देते थे, कि वह मन्दिर में जानेवालों से भीख माँगे। (IN)

प्रेरितों के काम 3:3 जब उसने पतरस और यूहन्ना को मन्दिर में जाते देखा, तो उनसे भीख माँगी। (IN)

प्रेरितों के काम 3:4 ¶ पतरस ने यूहन्ना के साथ उसकी ओर ध्यान से देखकर कहा, “हमारी ओर देख!” (IN)

प्रेरितों के काम 3:5 अतः वह उनसे कुछ पाने की आशा रखते हुए उनकी ओर ताकने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 3:6 तब पतरस ने कहा, “चाँदी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूँ; यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर।” (IN)

प्रेरितों के काम 3:7 ¶ और उसने उसका दाहिना हाथ पकड़ के उसे उठाया; और तुरन्त उसके पाँवों और टखनों में बल आ गया। (IN)

प्रेरितों के काम 3:8 और वह उछलकर खड़ा हो गया, और चलने-फिरने लगा; और चलता, और कूदता, और परमेश्‍वर की स्तुति करता हुआ उनके साथ मन्दिर में गया। (IN)

प्रेरितों के काम 3:9 ¶ सब लोगों ने उसे चलते-फिरते और परमेश्‍वर की स्तुति करते देखकर, (IN)

प्रेरितों के काम 3:10 उसको पहचान लिया कि यह वही है, जो मन्दिर के ‘सुन्दर’ फाटक पर बैठ कर भीख माँगा करता था; और उस घटना से जो उसके साथ हुई थी; वे बहुत अचम्भित और चकित हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 3:11 ¶ जब वह पतरस और यूहन्ना को पकड़े हुए था, तो सब लोग बहुत अचम्भा करते हुए उस ओसारे में जो सुलैमान का कहलाता है, उनके पास दौड़े आए। (IN)

प्रेरितों के काम 3:12 यह देखकर पतरस ने लोगों से कहा, “हे इस्राएलियों, तुम इस मनुष्य पर क्यों अचम्भा करते हो, और हमारी ओर क्यों इस प्रकार देख रहे हो, कि मानो हमने अपनी सामर्थ्य या भक्ति से इसे चलने-फिरने योग्य बना दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 3:13 ¶ अब्राहम और इसहाक और याकूब के परमेश्‍वर, हमारे पूर्वजों के परमेश्‍वर ने अपने सेवक यीशु की महिमा की, जिसे तुम ने पकड़वा दिया, और जब पिलातुस ने उसे छोड़ देने का विचार किया, तब तुम ने उसके सामने यीशु का तिरस्कार किया। (IN)

प्रेरितों के काम 3:14 तुम ने उस पवित्र और धर्मी का तिरस्कार किया, और चाहा कि एक हत्यारे को तुम्हारे लिये छोड़ दिया जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 3:15 ¶ और तुम ने जीवन के कर्ता को मार डाला, जिसे परमेश्‍वर ने मरे हुओं में से जिलाया; और इस बात के हम गवाह हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 3:16 ¶ और उसी के नाम ने, उस विश्वास के द्वारा जो उसके नाम पर है, इस मनुष्य को जिसे तुम देखते हो और जानते भी हो सामर्थ्य दी है; और निश्चय उसी विश्वास ने जो यीशु के द्वारा है, इसको तुम सब के सामने बिलकुल भला चंगा कर दिया है। (IN)

प्रेरितों के काम 3:17 “और अब हे भाइयों, मैं जानता हूँ कि यह काम तुम ने अज्ञानता से किया, और वैसा ही तुम्हारे सरदारों ने भी किया। (IN)

प्रेरितों के काम 3:18 परन्तु जिन बातों को परमेश्‍वर ने सब भविष्यद्वक्ताओं के मुख से पहले ही बताया था, कि उसका मसीह दुःख उठाएगा; उन्हें उसने इस रीति से पूरा किया। (IN)

प्रेरितों के काम 3:19 ¶ इसलिए, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाएँ जाएँ, जिससे प्रभु के सम्मुख से विश्रान्ति के दिन आएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 3:20 और वह उस यीशु को भेजे जो तुम्हारे लिये पहले ही से मसीह ठहराया गया है। (IN)

प्रेरितों के काम 3:21 ¶ अवश्य है कि वह स्वर्ग में उस समय तक रहे जब तक कि वह सब बातों का सुधार न कर ले जिसकी चर्चा प्राचीनकाल से परमेश्‍वर ने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के मुख से की है। (IN)

प्रेरितों के काम 3:22 जैसा कि मूसा ने कहा, ‘प्रभु परमेश्‍वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मुझ जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा, जो कुछ वह तुम से कहे, उसकी सुनना।’ (IN)

प्रेरितों के काम 3:23 ¶ परन्तु प्रत्येक मनुष्य जो उस भविष्यद्वक्ता की न सुने, लोगों में से नाश किया जाएगा। (IN)

प्रेरितों के काम 3:24 ¶ और शमूएल से लेकर उसके बाद वालों तक जितने भविष्यद्वक्ताओं ने बात कहीं उन सब ने इन दिनों का सन्देश दिया है। (IN)

प्रेरितों के काम 3:25 तुम भविष्यद्वक्ताओं की सन्तान और उस वाचा के भागी हो, जो परमेश्‍वर ने तुम्हारे पूर्वजों से बाँधी, जब उसने अब्राहम से कहा, ‘तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएँगे।’ (IN)

प्रेरितों के काम 3:26 ¶ परमेश्‍वर ने अपने सेवक को उठाकर पहले तुम्हारे पास भेजा, कि तुम में से हर एक को उसकी बुराइयों से फेरकर आशीष दे।” (IN)

प्रेरितों के काम 4:1 ¶ जब पतरस और यूहन्ना लोगों से यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आए। (IN)

प्रेरितों के काम 4:2 वे बहुत क्रोधित हुए कि पतरस और यूहन्ना यीशु के विषय में सिखाते थे और उसके मरे हुओं में से जी उठने का प्रचार करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 4:3 और उन्होंने उन्हें पकड़कर दूसरे दिन तक हवालात में रखा क्योंकि संध्या हो गई थी। (IN)

प्रेरितों के काम 4:4 परन्तु वचन के सुननेवालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उनकी गिनती पाँच हजार पुरुषों के लगभग हो गई। (IN)

प्रेरितों के काम 4:5 ¶ दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उनके सरदार और पुरनिए और शास्त्री। (IN)

प्रेरितों के काम 4:6 और महायाजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकन्दर और जितने महायाजक के घराने के थे, सब यरूशलेम में इकट्ठे हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 4:7 और पतरस और यूहन्ना को बीच में खड़ा करके पूछने लगे, “तुम ने यह काम किस सामर्थ्य से और किस नाम से किया है?” (IN)

प्रेरितों के काम 4:8 ¶ तब पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उनसे कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 4:9 “हे लोगों के सरदारों और प्राचीनों, इस दुर्बल मनुष्य के साथ जो भलाई की गई है, यदि आज हम से उसके विषय में पूछ-ताछ की जाती है, कि वह कैसे अच्छा हुआ। (IN)

प्रेरितों के काम 4:10 तो तुम सब और सारे इस्राएली लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्‍वर ने मरे हुओं में से जिलाया, यह मनुष्य तुम्हारे सामने भला चंगा खड़ा है। (IN)

प्रेरितों के काम 4:11 ¶ यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया। (IN)

प्रेरितों के काम 4:12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सके।” (IN)

प्रेरितों के काम 4:13 ¶ जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का साहस देखा, और यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उनको पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 4:14 ¶ परन्तु उस मनुष्य को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़े देखकर, यहूदी उनके विरोध में कुछ न कह सके। (IN)

प्रेरितों के काम 4:15 ¶ परन्तु उन्हें महासभा के बाहर जाने की आज्ञा देकर, वे आपस में विचार करने लगे, (IN)

प्रेरितों के काम 4:16 “हम इन मनुष्यों के साथ क्या करें? क्योंकि यरूशलेम के सब रहनेवालों पर प्रगट है, कि इनके द्वारा एक प्रसिद्ध चिन्ह दिखाया गया है; और हम उसका इन्कार नहीं कर सकते। (IN)

प्रेरितों के काम 4:17 परन्तु इसलिए कि यह बात लोगों में और अधिक फैल न जाए, हम उन्हें धमकाएँ, कि वे इस नाम से फिर किसी मनुष्य से बातें न करें।” (IN)

प्रेरितों के काम 4:18 तब पतरस और यूहन्ना को बुलाया और चेतावनी देकर यह कहा, “यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखाना।” (IN)

प्रेरितों के काम 4:19 ¶ परन्तु पतरस और यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्‍वर के निकट भला है, कि हम परमेश्‍वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें? (IN)

प्रेरितों के काम 4:20 क्योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हमने देखा और सुना है, वह न कहें।” (IN)

प्रेरितों के काम 4:21 ¶ तब उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया, क्योंकि लोगों के कारण उन्हें दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला, इसलिए कि जो घटना हुई थी उसके कारण सब लोग परमेश्‍वर की बड़ाई करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 4:22 क्योंकि वह मनुष्य, जिस पर यह चंगा करने का चिन्ह दिखाया गया था, चालीस वर्ष से अधिक आयु का था। (IN)

प्रेरितों के काम 4:23 ¶ पतरस और यूहन्ना छूटकर अपने साथियों के पास आए, और जो कुछ प्रधान याजकों और प्राचीनों ने उनसे कहा था, उनको सुना दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 4:24 यह सुनकर, उन्होंने एक चित्त होकर ऊँचे शब्द से परमेश्‍वर से कहा, “हे प्रभु, तू वही है जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। (IN)

प्रेरितों के काम 4:25 तूने पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक हमारे पिता दाऊद के मुख से कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 4:26 प्रभु और उसके अभिषिक्त के विरोध में पृथ्वी के राजा खड़े हुए, और हाकिम एक साथ इकट्ठे हो गए।’ (IN)

प्रेरितों के काम 4:27 ¶ क्योंकि सचमुच तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तूने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी अन्यजातियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए, (IN)

प्रेरितों के काम 4:28 कि जो कुछ पहले से तेरी सामर्थ्य और मति से ठहरा था वही करें। (IN)

प्रेरितों के काम 4:29 ¶ अब हे प्रभु, उनकी धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे कि तेरा वचन बड़े साहस से सुनाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 4:30 और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 4:31 जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्‍वर का वचन साहस से सुनाते रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 4:32 ¶ और विश्वास करनेवालों की मण्डली एक चित्त और एक मन की थी, यहाँ तक कि कोई भी अपनी सम्पत्ति अपनी नहीं कहता था, परन्तु सब कुछ साझे का था। (IN)

प्रेरितों के काम 4:33 और प्रेरित बड़ी सामर्थ्य से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे और उन सब पर बड़ा अनुग्रह था। (IN)

प्रेरितों के काम 4:34 ¶ और उनमें कोई भी दरिद्र न था, क्योंकि जिनके पास भूमि या घर थे, वे उनको बेच-बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पाँवों पर रखते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 4:35 और जैसी जिसे आवश्यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बाँट दिया करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 4:36 ¶ और यूसुफ नामक, साइप्रस का एक लेवी था जिसका नाम प्रेरितों ने बरनबास अर्थात् (शान्ति का पुत्र) रखा था। (IN)

प्रेरितों के काम 4:37 उसकी कुछ भूमि थी, जिसे उसने बेचा, और दाम के रुपये लाकर प्रेरितों के पाँवों पर रख दिए। (IN)

प्रेरितों के काम 5:1 ¶ हनन्याह नामक एक मनुष्य, और उसकी पत्‍नी सफीरा ने कुछ भूमि बेची। (IN)

प्रेरितों के काम 5:2 और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उसकी पत्‍नी भी जानती थी, और उसका एक भाग लाकर प्रेरितों के पाँवों के आगे रख दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 5:3 ¶ परन्तु पतरस ने कहा, “हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली है कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े? (IN)

प्रेरितों के काम 5:4 जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी? और जब बिक गई तो उसकी कीमत क्या तेरे वश में न थी? तूने यह बात अपने मन में क्यों सोची? तूने मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर से झूठ बोला है।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:5 ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा, और प्राण छोड़ दिए; और सब सुननेवालों पर बड़ा भय छा गया। (IN)

प्रेरितों के काम 5:6 फिर जवानों ने उठकर उसकी अर्थी बनाई और बाहर ले जाकर गाड़ दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 5:7 ¶ लगभग तीन घंटे के बाद उसकी पत्‍नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई। (IN)

प्रेरितों के काम 5:8 तब पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने ही में।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:9 ¶ पतरस ने उससे कहा, “यह क्या बात है, कि तुम दोनों प्रभु के आत्मा की परीक्षा के लिए एक साथ सहमत हो गए? देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:10 तब वह तुरन्त उसके पाँवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए; और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 5:11 और सारी कलीसिया पर और इन बातों के सब सुननेवालों पर, बड़ा भय छा गया। (IN)

प्रेरितों के काम 5:12 ¶ प्रेरितों के हाथों से बहुत चिन्ह और अद्भुत काम लोगों के बीच में दिखाए जाते थे, और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 5:13 परन्तु औरों में से किसी को यह साहस न होता था कि, उनमें जा मिलें; फिर भी लोग उनकी बड़ाई करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 5:14 ¶ और विश्वास करनेवाले बहुत सारे पुरुष और स्त्रियाँ प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 5:15 यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला-लाकर, खाटों और खटोलों पर लिटा देते थे, कि जब पतरस आए, तो उसकी छाया ही उनमें से किसी पर पड़ जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 5:16 और यरूशलेम के आस-पास के नगरों से भी बहुत लोग बीमारों और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुओं को ला-लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 5:17 ¶ तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, ईर्ष्या से भर उठे। (IN)

प्रेरितों के काम 5:18 और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 5:19 ¶ परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 5:20 “जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:21 वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपदेश देने लगे। परन्तु महायाजक और उसके साथियों ने आकर महासभा को और इस्राएलियों के सब प्राचीनों को इकट्ठा किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 5:22 ¶ परन्तु अधिकारियों ने वहाँ पहुँचकर उन्हें बन्दीगृह में न पाया, और लौटकर सन्देश दिया, (IN)

प्रेरितों के काम 5:23 “हमने बन्दीगृह को बड़ी सावधानी से बन्द किया हुआ, और पहरेवालों को बाहर द्वारों पर खड़े हुए पाया; परन्तु जब खोला, तो भीतर कोई न मिला।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:24 ¶ जब मन्दिर के सरदार और प्रधान याजकों ने ये बातें सुनीं, तो उनके विषय में भारी चिन्ता में पड़ गए कि उनका क्या हुआ! (IN)

प्रेरितों के काम 5:25 इतने में किसी ने आकर उन्हें बताया, “देखो, जिन्हें तुम ने बन्दीगृह में बन्द रखा था, वे मनुष्य मन्दिर में खड़े हुए लोगों को उपदेश दे रहे हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:26 ¶ तब सरदार, अधिकारियों के साथ जाकर, उन्हें ले आया, परन्तु बलपूर्वक नहीं, क्योंकि वे लोगों से डरते थे, कि उन पर पत्थराव न करें। (IN)

प्रेरितों के काम 5:27 उन्होंने उन्हें फिर लाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया और महायाजक ने उनसे पूछा, (IN)

प्रेरितों के काम 5:28 “क्या हमने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से उपदेश न करना? फिर भी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:29 ¶ तब पतरस और, अन्य प्रेरितों ने उत्तर दिया, “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्त्तव्य है। (IN)

प्रेरितों के काम 5:30 हमारे पूर्वजों के परमेश्‍वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटकाकर मार डाला था। (IN)

प्रेरितों के काम 5:31 उसी को परमेश्‍वर ने प्रभु और उद्धारकर्ता ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वो‍च्च किया, कि वह इस्राएलियों को मन फिराव और पापों की क्षमा प्रदान करे। (IN)

प्रेरितों के काम 5:32 और हम इन बातों के गवाह हैं, और पवित्र आत्मा भी, जिसे परमेश्‍वर ने उन्हें दिया है, जो उसकी आज्ञा मानते हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:33 ¶ यह सुनकर वे जल उठे, और उन्हें मार डालना चाहा। (IN)

प्रेरितों के काम 5:34 परन्तु गमलीएल नामक एक फरीसी ने जो व्यवस्थापक और सब लोगों में माननीय था, महासभा में खड़े होकर प्रेरितों को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देने की आज्ञा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 5:35 ¶ तब उसने कहा, “हे इस्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्यों से करना चाहते हो, सोच समझ के करना। (IN)

प्रेरितों के काम 5:36 क्योंकि इन दिनों से पहले थियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूँ; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साथ हो लिए, परन्तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हुए और मिट गए। (IN)

प्रेरितों के काम 5:37 उसके बाद नाम लिखाई के दिनों में यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपनी ओर कर लिए; वह भी नाश हो गया, और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हो गए। (IN)

प्रेरितों के काम 5:38 ¶ इसलिए अब मैं तुम से कहता हूँ, इन मनुष्यों से दूर ही रहो और उनसे कुछ काम न रखो; क्योंकि यदि यह योजना या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा; (IN)

प्रेरितों के काम 5:39 परन्तु यदि परमेश्‍वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्‍वर से भी लड़नेवाले ठहरो।” (IN)

प्रेरितों के काम 5:40 ¶ तब उन्होंने उसकी बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना। (IN)

प्रेरितों के काम 5:41 वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के सामने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे। (IN)

प्रेरितों के काम 5:42 इसके बाद हर दिन, मन्दिर में और घर-घर में, वे लगातार सिखाते और प्रचार करते थे कि यीशु ही मसीह है। (IN)

प्रेरितों के काम 6:1 ¶ उन दिनों में जब चेलों की संख्या बहुत बढ़ने लगी, तब यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रतिदिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती। (IN)

प्रेरितों के काम 6:2 ¶ तब उन बारहों ने चेलों की मण्डली को अपने पास बुलाकर कहा, “यह ठीक नहीं कि हम परमेश्‍वर का वचन छोड़कर खिलाने-पिलाने की सेवा में रहें। (IN)

प्रेरितों के काम 6:3 इसलिए हे भाइयों, अपने में से सात सुनाम पुरुषों को जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हो, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें। (IN)

प्रेरितों के काम 6:4 परन्तु हम तो प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 6:5 ¶ यह बात सारी मण्डली को अच्छी लगी, और उन्होंने स्तिफनुस नामक एक पुरुष को जो विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, फिलिप्पुस, प्रुखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और अन्ताकिया वासी नीकुलाउस को जो यहूदी मत में आ गया था, चुन लिया। (IN)

प्रेरितों के काम 6:6 और इन्हें प्रेरितों के सामने खड़ा किया और उन्होंने प्रार्थना करके उन पर हाथ रखे। (IN)

प्रेरितों के काम 6:7 ¶ और परमेश्‍वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के अधीन हो गया। (IN)

प्रेरितों के काम 6:8 ¶ स्तिफनुस अनुग्रह और सामर्थ्य से परिपूर्ण होकर लोगों में बड़े-बड़े अद्भुत काम और चिन्ह दिखाया करता था। (IN)

प्रेरितों के काम 6:9 तब उस आराधनालय में से जो दासत्व-मुक्त कहलाती थी, और कुरेनी और सिकन्दरिया और किलिकिया और आसिया के लोगों में से कई एक उठकर स्तिफनुस से वाद-विवाद करने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 6:10 ¶ परन्तु उस ज्ञान और उस आत्मा का जिससे वह बातें करता था, वे सामना न कर सके। (IN)

प्रेरितों के काम 6:11 इस पर उन्होंने कई लोगों को उकसाया जो कहने लगे, “हमने इसे मूसा और परमेश्‍वर के विरोध में निन्दा की बातें कहते सुना है।” (IN)

प्रेरितों के काम 6:12 ¶ और लोगों और प्राचीनों और शास्त्रियों को भड़काकर चढ़ आए और उसे पकड़कर महासभा में ले आए। (IN)

प्रेरितों के काम 6:13 और झूठे गवाह खड़े किए, जिन्होंने कहा, “यह मनुष्य इस पवित्रस्‍थान और व्यवस्था के विरोध में बोलना नहीं छोड़ता। (IN)

प्रेरितों के काम 6:14 क्योंकि हमने उसे यह कहते सुना है, कि यही यीशु नासरी इस जगह को ढा देगा, और उन रीतियों को बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 6:15 तब सब लोगों ने जो महासभा में बैठे थे, उसकी ओर ताक कर उसका मुख स्वर्गदूत के समान देखा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:1 ¶ तब महायाजक ने कहा, “क्या ये बातें सत्य है?” (IN)

प्रेरितों के काम 7:2 उसने कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 7:3 ¶ और उससे कहा, ‘तू अपने देश और अपने कुटुम्ब से निकलकर उस देश में चला जा, जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:4 ¶ तब वह कसदियों के देश से निकलकर हारान में जा बसा; और उसके पिता की मृत्यु के बाद परमेश्‍वर ने उसको वहाँ से इस देश में लाकर बसाया जिसमें अब तुम बसते हो, (IN)

प्रेरितों के काम 7:5 और परमेश्‍वर ने उसको कुछ विरासत न दी, वरन् पैर रखने भर की भी उसमें जगह न दी, यद्यपि उस समय उसके कोई पुत्र भी न था। फिर भी प्रतिज्ञा की, ‘मैं यह देश, तेरे और तेरे बाद तेरे वंश के हाथ कर दूँगा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:6 ¶ और परमेश्‍वर ने यह कहा, ‘तेरी सन्तान के लोग पराये देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएँगे, और चार सौ वर्ष तक दुःख देंगे।’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:7 फिर परमेश्‍वर ने कहा, ‘जिस जाति के वे दास होंगे, उसको मैं दण्ड दूँगा; और इसके बाद वे निकलकर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे।’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:8 और उसने उससे खतने की वाचा बाँधी; और इसी दशा में इसहाक उससे उत्‍पन्‍न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्‍पन्‍न हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 7:9 ¶ “और कुलपतियों ने यूसुफ से ईर्ष्या करके उसे मिस्र देश जानेवालों के हाथ बेचा; परन्तु परमेश्‍वर उसके साथ था। (IN)

प्रेरितों के काम 7:10 और उसे उसके सब क्लेशों से छुड़ाकर मिस्र के राजा फ़िरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, उसने उसे मिस्र पर और अपने सारे घर पर राज्यपाल ठहराया। (IN)

प्रेरितों के काम 7:11 ¶ तब मिस्र और कनान के सारे देश में अकाल पड़ा; जिससे भारी क्लेश हुआ, और हमारे पूर्वजों को अन्न नहीं मिलता था। (IN)

प्रेरितों के काम 7:12 परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिस्र में अनाज है, हमारे पूर्वजों को पहली बार भेजा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:13 और दूसरी बार यूसुफ अपने भाइयों पर प्रगट हो गया, और यूसुफ की जाति फ़िरौन को मालूम हो गई। (IN)

प्रेरितों के काम 7:14 ¶ तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को, जो पचहत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:15 तब याकूब मिस्र में गया; और वहाँ वह और हमारे पूर्वज मर गए। (IN)

प्रेरितों के काम 7:16 उनके शव शेकेम में पहुँचाए जाकर उस कब्र में रखे गए, जिसे अब्राहम ने चाँदी देकर शेकेम में हमोर की सन्तान से मोल लिया था। (IN)

प्रेरितों के काम 7:17 ¶ “परन्तु जब उस प्रतिज्ञा के पूरे होने का समय निकट आया, जो परमेश्‍वर ने अब्राहम से की थी, तो मिस्र में वे लोग बढ़ गए; और बहुत हो गए। (IN)

प्रेरितों के काम 7:18 तब मिस्र में दूसरा राजा हुआ जो यूसुफ को नहीं जानता था। (IN)

प्रेरितों के काम 7:19 उसने हमारी जाति से चतुराई करके हमारे बाप-दादों के साथ यहाँ तक बुरा व्यवहार किया, कि उन्हें अपने बालकों को फेंक देना पड़ा कि वे जीवित न रहें। (IN)

प्रेरितों के काम 7:20 उस समय मूसा का जन्म हुआ; और वह परमेश्‍वर की दृष्टि में बहुत ही सुन्दर था; और वह तीन महीने तक अपने पिता के घर में पाला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 7:21 परन्तु जब फेंक दिया गया तो फ़िरौन की बेटी ने उसे उठा लिया, और अपना पुत्र करके पाला। (IN)

प्रेरितों के काम 7:22 और मूसा को मिस्रियों की सारी विद्या पढ़ाई गई, और वह वचन और कामों में सामर्थी था। (IN)

प्रेरितों के काम 7:23 ¶ “जब वह चालीस वर्ष का हुआ, तो उसके मन में आया कि अपने इस्राएली भाइयों से भेंट करे। (IN)

प्रेरितों के काम 7:24 और उसने एक व्यक्ति पर अन्याय होते देखकर, उसे बचाया, और मिस्री को मारकर सताए हुए का पलटा लिया। (IN)

प्रेरितों के काम 7:25 उसने सोचा, कि उसके भाई समझेंगे कि परमेश्‍वर उसके हाथों से उनका उद्धार करेगा, परन्तु उन्होंने न समझा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:26 ¶ दूसरे दिन जब इस्राएली आपस में लड़ रहे थे, तो वह वहाँ जा पहुँचा; और यह कहके उन्हें मेल करने के लिये समझाया, कि हे पुरुषों, ‘तुम तो भाई-भाई हो, एक दूसरे पर क्यों अन्याय करते हो?’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:27 परन्तु जो अपने पड़ोसी पर अन्याय कर रहा था, उसने उसे यह कहकर धक्का दिया, ‘तुझे किस ने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है? (IN)

प्रेरितों के काम 7:28 क्या जिस रीति से तूने कल मिस्री को मार डाला मुझे भी मार डालना चाहता है?’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:29 ¶ यह बात सुनकर, मूसा भागा और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगा: और वहाँ उसके दो पुत्र उत्‍पन्‍न हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 7:30 ¶ “जब पूरे चालीस वर्ष बीत गए, तो एक स्वर्गदूत ने सीनै पहाड़ के जंगल में उसे जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में दर्शन दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 7:31 मूसा ने उस दर्शन को देखकर अचम्भा किया, और जब देखने के लिये पास गया, तो प्रभु की यह वाणी सुनाई दी, (IN)

प्रेरितों के काम 7:32 “मैं तेरे पूर्वज, अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ।” तब तो मूसा काँप उठा, यहाँ तक कि उसे देखने का साहस न रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:33 तब प्रभु ने उससे कहा, ‘अपने पाँवों से जूती उतार ले, क्योंकि जिस जगह तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। (IN)

प्रेरितों के काम 7:34 मैंने सचमुच अपने लोगों की दुर्दशा को जो मिस्र में है, देखी है; और उनकी आहें और उनका रोना सुन लिया है; इसलिए उन्हें छुड़ाने के लिये उतरा हूँ। अब आ, मैं तुझे मिस्र में भेजूँगा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:35 ¶ “जिस मूसा को उन्होंने यह कहकर नकारा था, ‘तुझे किस ने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है?’ उसी को परमेश्‍वर ने अधिपति और छुड़ानेवाला ठहराकर, उस स्वर्गदूत के द्वारा जिस ने उसे झाड़ी में दर्शन दिया था, भेजा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:36 यही व्यक्ति मिस्र और लाल समुद्र और जंगल में चालीस वर्ष तक अद्भुत काम और चिन्ह दिखा दिखाकर उन्हें निकाल लाया। (IN)

प्रेरितों के काम 7:37 यह वही मूसा है, जिस ने इस्राएलियों से कहा, ‘परमेश्‍वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मेरे जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:38 ¶ यह वही है, जिस ने जंगल में मण्डली के बीच उस स्वर्गदूत के साथ सीनै पहाड़ पर उससे बातें की, और हमारे पूर्वजों के साथ था, उसी को जीवित वचन मिले, कि हम तक पहुँचाए। (IN)

प्रेरितों के काम 7:39 परन्तु हमारे पूर्वजों ने उसकी मानना न चाहा; वरन् उसे ठुकराकर अपने मन मिस्र की ओर फेरे, (IN)

प्रेरितों के काम 7:40 और हारून से कहा, ‘हमारे लिये ऐसा देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चलें; क्योंकि यह मूसा जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया, हम नहीं जानते उसे क्या हुआ?’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:41 ¶ उन दिनों में उन्होंने एक बछड़ा बनाकर, उसकी मूरत के आगे बलि चढ़ाया; और अपने हाथों के कामों में मगन होने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 7:42 अतः परमेश्‍वर ने मुँह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया, कि आकाशगण पूजें, जैसा भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखा है, (IN)

प्रेरितों के काम 7:43 और तुम मोलेक के तम्बू (IN)

प्रेरितों के काम 7:44 ¶ “साक्षी का तम्बू जंगल में हमारे पूर्वजों के बीच में था; जैसा उसने ठहराया, जिस ने मूसा से कहा, ‘जो आकार तूने देखा है, उसके अनुसार इसे बना।’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:45 उसी तम्बू को हमारे पूर्वजों ने पूर्वकाल से पा कर यहोशू के साथ यहाँ ले आए; जिस समय कि उन्होंने उन अन्यजातियों पर अधिकार पाया, जिन्हें परमेश्‍वर ने हमारे पूर्वजों के सामने से निकाल दिया, और वह दाऊद के समय तक रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 7:46 उस पर परमेश्‍वर ने अनुग्रह किया; अतः उसने विनती की, कि मैं याकूब के परमेश्‍वर के लिये निवास स्थान बनाऊँ। (IN)

प्रेरितों के काम 7:47 ¶ परन्तु सुलैमान ने उसके लिये घर बनाया। (IN)

प्रेरितों के काम 7:48 ¶ परन्तु परमप्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 7:49 ‘प्रभु कहता है, स्वर्ग मेरा सिंहासन (IN)

प्रेरितों के काम 7:50 क्या ये सब वस्तुएँ मेरे हाथ की बनाई नहीं?’ (IN)

प्रेरितों के काम 7:51 ¶ “हे हठीले, और मन और कान के खतनारहित लोगों, तुम सदा पवित्र आत्मा का विरोध करते हो। जैसा तुम्हारे पूर्वज करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो। (IN)

प्रेरितों के काम 7:52 भविष्यद्वक्ताओं में से किसको तुम्हारे पूर्वजों ने नहीं सताया? और उन्होंने उस धर्मी के आगमन का पूर्वकाल से सन्देश देनेवालों को मार डाला, और अब तुम भी उसके पकड़वानेवाले और मार डालनेवाले हुए (IN)

प्रेरितों के काम 7:53 तुम ने स्वर्गदूतों के द्वारा ठहराई हुई व्यवस्था तो पाई, परन्तु उसका पालन नहीं किया।” (IN)

प्रेरितों के काम 7:54 ¶ ये बातें सुनकर वे क्रोधित हुए और उस पर दाँत पीसने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 7:55 परन्तु उसने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्‍वर की महिमा को और यीशु को परमेश्‍वर की दाहिनी ओर खड़ा देखकर (IN)

प्रेरितों के काम 7:56 कहा, “देखों, मैं स्वर्ग को खुला हुआ, और मनुष्य के पुत्र को परमेश्‍वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखता हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 7:57 ¶ तब उन्होंने बड़े शब्द से चिल्लाकर कान बन्द कर लिए, और एक चित्त होकर उस पर झपटे। (IN)

प्रेरितों के काम 7:58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्थराव करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े शाऊल नामक एक जवान के पाँवों के पास उतार कर रखे। (IN)

प्रेरितों के काम 7:59 ¶ और वे स्तिफनुस को पत्थराव करते रहे, और वह यह कहकर प्रार्थना करता रहा, “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर।” (IN)

प्रेरितों के काम 7:60 फिर घुटने टेककर ऊँचे शब्द से पुकारा, “हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा।” और यह कहकर सो गया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:1 ¶ शाऊल उसकी मृत्यु के साथ सहमत था। (IN)

प्रेरितों के काम 8:2 ¶ और भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा; और उसके लिये बड़ा विलाप किया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:3 पर शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर-घर घुसकर पुरुषों और स्त्रियों को घसीट-घसीट कर बन्दीगृह में डालता था। (IN)

प्रेरितों के काम 8:4 ¶ मगर जो तितर-बितर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे। (IN)

प्रेरितों के काम 8:5 और फिलिप्पुस सामरिया नगर में जाकर लोगों में मसीह का प्रचार करने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 8:6 ¶ जो बातें फिलिप्पुस ने कहीं उन्हें लोगों ने सुनकर और जो चिन्ह वह दिखाता था उन्हें देख-देखकर, एक चित्त होकर मन लगाया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:7 क्योंकि बहुतों में से अशुद्ध आत्माएँ बड़े शब्द से चिल्लाती हुई निकल गईं, और बहुत से लकवे के रोगी और लँगड़े भी अच्छे किए गए। (IN)

प्रेरितों के काम 8:8 और उस नगर में बड़ा आनन्द छा गया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:9 ¶ इससे पहले उस नगर में शमौन नामक एक मनुष्य था, जो जादू-टोना करके सामरिया के लोगों को चकित करता और अपने आप को एक बड़ा पुरुष बताता था। (IN)

प्रेरितों के काम 8:10 और सब छोटे से लेकर बड़े तक उसका सम्मान कर कहते थे, “यह मनुष्य परमेश्‍वर की वह शक्ति है, जो महान कहलाती है।” (IN)

प्रेरितों के काम 8:11 उसने बहुत दिनों से उन्हें अपने जादू के कामों से चकित कर रखा था, इसलिए वे उसको बहुत मानते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 8:12 ¶ परन्तु जब उन्होंने फिलिप्पुस का विश्वास किया जो परमेश्‍वर के राज्य और यीशु मसीह के नाम का सुसमाचार सुनाता था तो लोग, क्या पुरुष, क्या स्त्री बपतिस्मा लेने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 8:13 तब शमौन ने स्वयं भी विश्वास किया और बपतिस्मा लेकर फिलिप्पुस के साथ रहने लगा और चिन्ह और बड़े-बड़े सामर्थ्य के काम होते देखकर चकित होता था। (IN)

प्रेरितों के काम 8:14 ¶ जब प्रेरितों ने जो यरूशलेम में थे सुना कि सामरियों ने परमेश्‍वर का वचन मान लिया है तो पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेजा। (IN)

प्रेरितों के काम 8:15 और उन्होंने जाकर उनके लिये प्रार्थना की ताकि पवित्र आत्मा पाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 8:16 क्योंकि पवित्र आत्मा अब तक उनमें से किसी पर न उतरा था, उन्होंने तो केवल प्रभु यीशु के नाम में बपतिस्मा लिया था। (IN)

प्रेरितों के काम 8:17 तब उन्होंने उन पर हाथ रखे और उन्होंने पवित्र आत्मा पाया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:18 ¶ जब शमौन ने देखा कि प्रेरितों के हाथ रखने से पवित्र आत्मा दिया जाता है, तो उनके पास रुपये लाकर कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 8:19 “यह शक्ति मुझे भी दो, कि जिस किसी पर हाथ रखूँ, वह पवित्र आत्मा पाए।” (IN)

प्रेरितों के काम 8:20 ¶ पतरस ने उससे कहा, “तेरे रुपये तेरे साथ नाश हों, क्योंकि तूने परमेश्‍वर का दान रुपयों से मोल लेने का विचार किया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:21 इस बात में न तेरा हिस्सा है, न भाग; क्योंकि तेरा मन परमेश्‍वर के आगे सीधा नहीं। (IN)

प्रेरितों के काम 8:22 इसलिए अपनी इस बुराई से मन फिराकर प्रभु से प्रार्थना कर, सम्भव है तेरे मन का विचार क्षमा किया जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 8:23 ¶ क्योंकि मैं देखता हूँ, कि तू पित्त की कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है।” (IN)

प्रेरितों के काम 8:24 शमौन ने उत्तर दिया, “तुम मेरे लिये प्रभु से प्रार्थना करो कि जो बातें तुम ने कहीं, उनमें से कोई मुझ पर न आ पड़े।” (IN)

प्रेरितों के काम 8:25 ¶ अतः पतरस और यूहन्ना गवाही देकर और प्रभु का वचन सुनाकर, यरूशलेम को लौट गए, और सामरियों के बहुत से गाँवों में सुसमाचार सुनाते गए। (IN)

प्रेरितों के काम 8:26 ¶ फिर प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस से कहा, “उठकर दक्षिण की ओर उस मार्ग पर जा, जो यरूशलेम से गाज़ा को जाता है। यह रेगिस्तानी मार्ग है। (IN)

प्रेरितों के काम 8:27 वह उठकर चल दिया, और तब, कूश देश का एक मनुष्य आ रहा था, जो खोजा और कूशियों की रानी कन्दाके का मंत्री और खजांची था, और आराधना करने को यरूशलेम आया था। (IN)

प्रेरितों के काम 8:28 ¶ और वह अपने रथ पर बैठा हुआ था, और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ता हुआ लौटा जा रहा था। (IN)

प्रेरितों के काम 8:29 तब पवित्र आत्मा ने फिलिप्पुस से कहा, “निकट जाकर इस रथ के साथ हो ले।” (IN)

प्रेरितों के काम 8:30 फिलिप्पुस उसकी ओर दौड़ा और उसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ते हुए सुना, और पूछा, “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?” (IN)

प्रेरितों के काम 8:31 उसने कहा, “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं कैसे समझूँ?” और उसने फिलिप्पुस से विनती की, कि चढ़कर उसके पास बैठे। (IN)

प्रेरितों के काम 8:32 ¶ पवित्रशास्त्र का जो अध्याय वह पढ़ रहा था, वह यह था : (IN)

प्रेरितों के काम 8:33 उसकी दीनता में उसका न्याय होने नहीं पाया, (IN)

प्रेरितों के काम 8:34 ¶ इस पर खोजे ने फिलिप्पुस से पूछा, “मैं तुझ से विनती करता हूँ, यह बता कि भविष्यद्वक्ता यह किस के विषय में कहता है, अपने या किसी दूसरे के विषय में?” (IN)

प्रेरितों के काम 8:35 तब फिलिप्पुस ने अपना मुँह खोला, और इसी शास्त्र से आरम्भ करके उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:36 ¶ मार्ग में चलते-चलते वे किसी जल की जगह पहुँचे, तब खोजे ने कहा, “देख यहाँ जल है, अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है?” (IN)

प्रेरितों के काम 8:37 फिलिप्पुस ने कहा, “यदि तू सारे मन से विश्वास करता है तो ले सकता है।” उसने उत्तर दिया, “मैं विश्वास करता हूँ कि यीशु मसीह परमेश्‍वर का पुत्र है।” (IN)

प्रेरितों के काम 8:38 तब उसने रथ खड़ा करने की आज्ञा दी, और फिलिप्पुस और खोजा दोनों जल में उतर पड़े, और उसने उसे बपतिस्मा दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:39 ¶ जब वे जल में से निकलकर ऊपर आए, तो प्रभु का आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया, और खोजे ने उसे फिर न देखा, और वह आनन्द करता हुआ अपने मार्ग चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 8:40 पर फिलिप्पुस अश्दोद में आ निकला, और जब तक कैसरिया में न पहुँचा, तब तक नगर-नगर सुसमाचार सुनाता गया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:1 ¶ शाऊल जो अब तक प्रभु के चेलों को धमकाने और मार डालने की धुन में था, महायाजक के पास गया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:2 और उससे दमिश्क के आराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियाँ माँगी, कि क्या पुरुष, क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंथ पर पाए उन्हें बाँधकर यरूशलेम में ले आए। (IN)

प्रेरितों के काम 9:3 ¶ परन्तु चलते-चलते जब वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो एकाएक आकाश से उसके चारों ओर ज्योति चमकी, (IN)

प्रेरितों के काम 9:4 और वह भूमि पर गिर पड़ा, और यह शब्द सुना, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” (IN)

प्रेरितों के काम 9:5 ¶ उसने पूछा, “हे प्रभु, तू कौन है?” उसने कहा, “मैं यीशु हूँ; जिसे तू सताता है। (IN)

प्रेरितों के काम 9:6 परन्तु अब उठकर नगर में जा, और जो तुझे करना है, वह तुझ से कहा जाएगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 9:7 जो मनुष्य उसके साथ थे, वे चुपचाप रह गए; क्योंकि शब्द तो सुनते थे, परन्तु किसी को देखते न थे। (IN)

प्रेरितों के काम 9:8 ¶ तब शाऊल भूमि पर से उठा, परन्तु जब आँखें खोलीं तो उसे कुछ दिखाई न दिया और वे उसका हाथ पकड़ के दमिश्क में ले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 9:9 और वह तीन दिन तक न देख सका, और न खाया और न पीया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:10 ¶ दमिश्क में हनन्याह नामक एक चेला था, उससे प्रभु ने दर्शन में कहा, “हे हनन्याह!” उसने कहा, “हाँ प्रभु।” (IN)

प्रेरितों के काम 9:11 तब प्रभु ने उससे कहा, “उठकर उस गली में जा, जो ‘सीधी’ कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नामक एक तरसुस वासी को पूछ ले; क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है, (IN)

प्रेरितों के काम 9:12 और उसने हनन्याह नामक एक पुरुष को भीतर आते, और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है; ताकि फिर से दृष्टि पाए।” (IN)

प्रेरितों के काम 9:13 ¶ हनन्याह ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैंने इस मनुष्य के विषय में बहुतों से सुना है कि इसने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगों के साथ बड़ी-बड़ी बुराइयाँ की हैं; (IN)

प्रेरितों के काम 9:14 और यहाँ भी इसको प्रधान याजकों की ओर से अधिकार मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बाँध ले।” (IN)

प्रेरितों के काम 9:15 परन्तु प्रभु ने उससे कहा, “तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्राएलियों के सामने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है। (IN)

प्रेरितों के काम 9:16 और मैं उसे बताऊँगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा-कैसा दुःख उठाना पड़ेगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 9:17 ¶ तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, “हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात् यीशु, जो उस रास्ते में, जिससे तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।” (IN)

प्रेरितों के काम 9:18 और तुरन्त उसकी आँखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; (IN)

प्रेरितों के काम 9:19 फिर भोजन करके बल पाया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:20 ¶ और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्‍वर का पुत्र है। (IN)

प्रेरितों के काम 9:21 और सब सुननेवाले चकित होकर कहने लगे, “क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो यरूशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे नाश करता था, और यहाँ भी इसलिए आया था, कि उन्हें बाँधकर प्रधान याजकों के पास ले जाए?” (IN)

प्रेरितों के काम 9:22 परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे-देकर कि यीशु ही मसीह है, दमिश्क के रहनेवाले यहूदियों का मुँह बन्द करता रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 9:23 ¶ जब बहुत दिन बीत गए, तो यहूदियों ने मिलकर उसको मार डालने की युक्ति निकाली। (IN)

प्रेरितों के काम 9:24 परन्तु उनकी युक्ति शाऊल को मालूम हो गई: वे तो उसको मार डालने के लिये रात दिन फाटकों पर घात में लगे रहते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 9:25 परन्तु रात को उसके चेलों ने उसे लेकर टोकरे में बैठाया, और शहरपनाह पर से लटकाकर उतार दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:26 ¶ यरूशलेम में पहुँचकर उसने चेलों के साथ मिल जाने का उपाय किया परन्तु सब उससे डरते थे, क्योंकि उनको विश्वास न होता था, कि वह भी चेला है। (IN)

प्रेरितों के काम 9:27 परन्तु बरनबास ने उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले जाकर उनसे कहा, कि इसने किस रीति से मार्ग में प्रभु को देखा, और उसने इससे बातें की; फिर दमिश्क में इसने कैसे साहस से यीशु के नाम का प्रचार किया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:28 ¶ वह उनके साथ यरूशलेम में आता-जाता रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 9:29 और निधड़क होकर प्रभु के नाम से प्रचार करता था; और यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के साथ बातचीत और वाद-विवाद करता था; परन्तु वे उसे मार डालने का यत्न करने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 9:30 यह जानकर भाइयों ने उसे कैसरिया में ले आए, और तरसुस को भेज दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:31 ¶ इस प्रकार सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती गई। (IN)

प्रेरितों के काम 9:32 ¶ फिर ऐसा हुआ कि पतरस हर जगह फिरता हुआ, उन पवित्र लोगों के पास भी पहुँचा, जो लुद्दा में रहते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 9:33 ¶ वहाँ उसे ऐनियास नामक लकवे का मारा हुआ एक मनुष्य मिला, जो आठ वर्ष से खाट पर पड़ा था। (IN)

प्रेरितों के काम 9:34 पतरस ने उससे कहा, “हे ऐनियास! यीशु मसीह तुझे चंगा करता है। उठ, अपना बिछौना उठा।” तब वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ। (IN)

प्रेरितों के काम 9:35 और लुद्दा और शारोन के सब रहनेवाले उसे देखकर प्रभु की ओर फिरे। (IN)

प्रेरितों के काम 9:36 ¶ याफा में तबीता अर्थात् दोरकास नामक एक विश्वासिनी रहती थी, वह बहुत से भले-भले काम और दान किया करती थी। (IN)

प्रेरितों के काम 9:37 उन्हीं दिनों में वह बीमार होकर मर गई; और उन्होंने उसे नहलाकर अटारी पर रख दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:38 ¶ और इसलिए कि लुद्दा याफा के निकट था, चेलों ने यह सुनकर कि पतरस वहाँ है दो मनुष्य भेजकर उससे विनती की, “हमारे पास आने में देर न कर।” (IN)

प्रेरितों के काम 9:39 तब पतरस उठकर उनके साथ हो लिया, और जब पहुँच गया, तो वे उसे उस अटारी पर ले गए। और सब विधवाएँ रोती हुई, उसके पास आ खड़ी हुईं और जो कुर्ते और कपड़े दोरकास ने उनके साथ रहते हुए बनाए थे, दिखाने लगीं। (IN)

प्रेरितों के काम 9:40 ¶ तब पतरस ने सब को बाहर कर दिया, और घुटने टेककर प्रार्थना की; और शव की ओर देखकर कहा, “हे तबीता, उठ।” तब उसने अपनी आँखें खोल दी; और पतरस को देखकर उठ बैठी। (IN)

प्रेरितों के काम 9:41 उसने हाथ देकर उसे उठाया और पवित्र लोगों और विधवाओं को बुलाकर उसे जीवित और जागृत दिखा दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:42 यह बात सारे याफा में फैल गई; और बहुतों ने प्रभु पर विश्वास किया। (IN)

प्रेरितों के काम 9:43 और पतरस याफा में शमौन नामक किसी चमड़े का धन्धा करनेवाले के यहाँ बहुत दिन तक रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 10:1 ¶ कैसरिया में कुरनेलियुस नामक एक मनुष्य था, जो इतालियानी नाम सैन्य-दल का सूबेदार था। (IN)

प्रेरितों के काम 10:2 वह भक्त था, और अपने सारे घराने समेत परमेश्‍वर से डरता था, और यहूदी लोगों को बहुत दान देता, और बराबर परमेश्‍वर से प्रार्थना करता था। (IN)

प्रेरितों के काम 10:3 ¶ उसने दिन के तीसरे पहर के निकट दर्शन में स्पष्ट रूप से देखा कि परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “हे कुरनेलियुस।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:4 उसने उसे ध्यान से देखा और डरकर कहा, “हे स्वामी क्या है?” उसने उससे कहा, “तेरी प्रार्थनाएँ और तेरे दान स्मरण के लिये परमेश्‍वर के सामने पहुँचे हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 10:5 और अब याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को, जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। (IN)

प्रेरितों के काम 10:6 वह शमौन, चमड़े का धन्धा करनेवाले के यहाँ अतिथि है, जिसका घर समुद्र के किनारे है।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:7 ¶ जब वह स्वर्गदूत जिसने उससे बातें की थी चला गया, तो उसने दो सेवक, और जो उसके पास उपस्थित रहा करते थे उनमें से एक भक्त सिपाही को बुलाया, (IN)

प्रेरितों के काम 10:8 और उन्हें सब बातें बताकर याफा को भेजा। (IN)

प्रेरितों के काम 10:9 ¶ दूसरे दिन जब वे चलते-चलते नगर के पास पहुँचे, तो दोपहर के निकट पतरस छत पर प्रार्थना करने चढ़ा। (IN)

प्रेरितों के काम 10:10 उसे भूख लगी और कुछ खाना चाहता था, परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे तो वह बेसुध हो गया। (IN)

प्रेरितों के काम 10:11 और उसने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक बड़ी चादर, पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, पृथ्वी की ओर उतर रहा है। (IN)

प्रेरितों के काम 10:12 जिसमें पृथ्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे। (IN)

प्रेरितों के काम 10:13 ¶ और उसे एक ऐसी वाणी सुनाई दी, “हे पतरस उठ, मार और खा।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:14 परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैंने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:15 फिर दूसरी बार उसे वाणी सुनाई दी, “जो कुछ परमेश्‍वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कह।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:16 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह चादर आकाश पर उठा लिया गया। (IN)

प्रेरितों के काम 10:17 ¶ जब पतरस अपने मन में दुविधा में था, कि यह दर्शन जो मैंने देखा क्या है, तब वे मनुष्य जिन्हें कुरनेलियुस ने भेजा था, शमौन के घर का पता लगाकर द्वार पर आ खड़े हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 10:18 और पुकारकर पूछने लगे, “क्या शमौन जो पतरस कहलाता है, यहाँ पर अतिथि है?” (IN)

प्रेरितों के काम 10:19 ¶ पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा था, कि आत्मा ने उससे कहा, “देख, तीन मनुष्य तुझे खोज रहे हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 10:20 अतः उठकर नीचे जा, और निःसंकोच उनके साथ हो ले; क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:21 तब पतरस ने नीचे उतरकर उन मनुष्यों से कहा, “देखो, जिसको तुम खोज रहे हो, वह मैं ही हूँ; तुम्हारे आने का क्या कारण है?” (IN)

प्रेरितों के काम 10:22 ¶ उन्होंने कहा, “कुरनेलियुस सूबेदार जो धर्मी और परमेश्‍वर से डरनेवाला और सारी यहूदी जाति में सुनाम मनुष्य है, उसने एक पवित्र स्वर्गदूत से यह निर्देश पाया है, कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से उपदेश सुने। (IN)

प्रेरितों के काम 10:23 तब उसने उन्हें भीतर बुलाकर उनको रहने की जगह दी। (IN)

प्रेरितों के काम 10:24 ¶ दूसरे दिन वे कैसरिया में पहुँचे, और कुरनेलियुस अपने कुटुम्बियों और प्रिय मित्रों को इकट्ठे करके उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। (IN)

प्रेरितों के काम 10:25 ¶ जब पतरस भीतर आ रहा था, तो कुरनेलियुस ने उससे भेंट की, और उसके पाँवों पर गिरकर उसे प्रणाम किया। (IN)

प्रेरितों के काम 10:26 परन्तु पतरस ने उसे उठाकर कहा, “खड़ा हो, मैं भी तो मनुष्य ही हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:27 ¶ और उसके साथ बातचीत करता हुआ भीतर गया, और बहुत से लोगों को इकट्ठे देखकर (IN)

प्रेरितों के काम 10:28 उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिये अधर्म है, परन्तु परमेश्‍वर ने मुझे बताया है कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूँ। (IN)

प्रेरितों के काम 10:29 इसलिए मैं जब बुलाया गया तो बिना कुछ कहे चला आया। अब मैं पूछता हूँ कि मुझे किस काम के लिये बुलाया गया है?” (IN)

प्रेरितों के काम 10:30 ¶ कुरनेलियुस ने कहा, “चार दिन पहले, इसी समय, मैं अपने घर में तीसरे पहर को प्रार्थना कर रहा था; कि एक पुरुष चमकीला वस्त्र पहने हुए, मेरे सामने आ खड़ा हुआ। (IN)

प्रेरितों के काम 10:31 और कहने लगा, ‘हे कुरनेलियुस, तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरे दान परमेश्‍वर के सामने स्मरण किए गए हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 10:32 इसलिए किसी को याफा भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुला। वह समुद्र के किनारे शमौन जो, चमड़े का धन्धा करनेवाले के घर में अतिथि है। (IN)

प्रेरितों के काम 10:33 तब मैंने तुरन्त तेरे पास लोग भेजे, और तूने भला किया जो आ गया। अब हम सब यहाँ परमेश्‍वर के सामने हैं, ताकि जो कुछ परमेश्‍वर ने तुझ से कहा है उसे सुनें।” (IN)

प्रेरितों के काम 10:34 ¶ तब पतरस ने मुँह खोलकर कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 10:35 ¶ वरन् हर जाति में जो उससे डरता और धार्मिक काम करता है, वह उसे भाता है। (IN)

प्रेरितों के काम 10:36 ¶ जो वचन उसने इस्राएलियों के पास भेजा, जब कि उसने यीशु मसीह के द्वारा जो सब का प्रभु है, शान्ति का सुसमाचार सुनाया। (IN)

प्रेरितों के काम 10:37 वह वचन तुम जानते हो, जो यूहन्ना के बपतिस्मा के प्रचार के बाद गलील से आरम्भ होकर सारे यहूदिया में फैल गया: (IN)

प्रेरितों के काम 10:38 परमेश्‍वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया; वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा, क्योंकि परमेश्‍वर उसके साथ था। (IN)

प्रेरितों के काम 10:39 ¶ और हम उन सब कामों के गवाह हैं; जो उसने यहूदिया के देश और यरूशलेम में भी किए, और उन्होंने उसे काठ पर लटकाकर मार डाला। (IN)

प्रेरितों के काम 10:40 उसको परमेश्‍वर ने तीसरे दिन जिलाया, और प्रगट भी कर दिया है। (IN)

प्रेरितों के काम 10:41 सब लोगों को नहीं वरन् उन गवाहों को जिन्हें परमेश्‍वर ने पहले से चुन लिया था, अर्थात् हमको जिन्होंने उसके मरे हुओं में से जी उठने के बाद उसके साथ खाया पीया; (IN)

प्रेरितों के काम 10:42 ¶ और उसने हमें आज्ञा दी कि लोगों में प्रचार करो और गवाही दो, कि यह वही है जिसे परमेश्‍वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है। (IN)

प्रेरितों के काम 10:43 उसकी सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, उसको उसके नाम के द्वारा पापों की क्षमा मिलेगी। (IN)

प्रेरितों के काम 10:44 ¶ पतरस ये बातें कह ही रहा था कि पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया। (IN)

प्रेरितों के काम 10:45 और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साथ आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उण्डेला गया है। (IN)

प्रेरितों के काम 10:46 ¶ क्योंकि उन्होंने उन्हें भाँति-भाँति की भाषा बोलते और परमेश्‍वर की बड़ाई करते सुना। इस पर पतरस ने कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 10:47 “क्या अब कोई इन्हें जल से रोक सकता है कि ये बपतिस्मा न पाएँ, जिन्होंने हमारे समान पवित्र आत्मा पाया है?” (IN)

प्रेरितों के काम 10:48 और उसने आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह के नाम में बपतिस्मा दिया जाए। तब उन्होंने उससे विनती की, कि कुछ दिन और हमारे साथ रह। (IN)

प्रेरितों के काम 11:1 ¶ और प्रेरितों और भाइयों ने जो यहूदिया में थे सुना, कि अन्यजातियों ने भी परमेश्‍वर का वचन मान लिया है। (IN)

प्रेरितों के काम 11:2 और जब पतरस यरूशलेम में आया, तो खतना किए हुए लोग उससे वाद-विवाद करने लगे, (IN)

प्रेरितों के काम 11:3 “तूने खतनारहित लोगों के यहाँ जाकर उनके साथ खाया।” (IN)

प्रेरितों के काम 11:4 ¶ तब पतरस ने उन्हें आरम्भ से क्रमानुसार कह सुनाया; (IN)

प्रेरितों के काम 11:5 “मैं याफा नगर में प्रार्थना कर रहा था, और बेसुध होकर एक दर्शन देखा, कि एक बड़ी चादर, एक पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, आकाश से उतरकर मेरे पास आया। (IN)

प्रेरितों के काम 11:6 जब मैंने उस पर ध्यान किया, तो पृथ्वी के चौपाए और वन पशु और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी देखे; (IN)

प्रेरितों के काम 11:7 ¶ और यह आवाज़ भी सुना, ‘हे पतरस उठ मार और खा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 11:8 मैंने कहा, ‘नहीं प्रभु, नहीं; क्योंकि कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु मेरे मुँह में कभी नहीं गई।’ (IN)

प्रेरितों के काम 11:9 इसके उत्तर में आकाश से दोबारा आवाज़ आई, ‘जो कुछ परमेश्‍वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे अशुद्ध मत कह।’ (IN)

प्रेरितों के काम 11:10 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब सब कुछ फिर आकाश पर खींच लिया गया। (IN)

प्रेरितों के काम 11:11 ¶ तब तुरन्त तीन मनुष्य जो कैसरिया से मेरे पास भेजे गए थे, उस घर पर जिसमें हम थे, आ खड़े हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 11:12 तब आत्मा ने मुझसे उनके साथ बेझिझक हो लेने को कहा, और ये छः भाई भी मेरे साथ हो लिए; और हम उस मनुष्य के घर में गए। (IN)

प्रेरितों के काम 11:13 और उसने बताया, कि मैंने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़ा देखा, जिसने मुझसे कहा, ‘याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। (IN)

प्रेरितों के काम 11:14 वह तुझ से ऐसी बातें कहेगा, जिनके द्वारा तू और तेरा सारा घराना उद्धार पाएगा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 11:15 ¶ जब मैं बातें करने लगा, तो पवित्र आत्मा उन पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से आरम्भ में हम पर उतरा था। (IN)

प्रेरितों के काम 11:16 तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा, ‘यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।’ (IN)

प्रेरितों के काम 11:17 ¶ अतः जब कि परमेश्‍वर ने उन्हें भी वही दान दिया, जो हमें प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला; तो मैं कौन था जो परमेश्‍वर को रोक सकता था?” (IN)

प्रेरितों के काम 11:18 यह सुनकर, वे चुप रहे, और परमेश्‍वर की बड़ाई करके कहने लगे, “तब तो परमेश्‍वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिये मन फिराव का दान दिया है।” (IN)

प्रेरितों के काम 11:19 ¶ जो लोग उस क्लेश के मारे जो स्तिफनुस के कारण पड़ा था, तितर-बितर हो गए थे, वे फिरते-फिरते फीनीके और साइप्रस और अन्ताकिया में पहुँचे; परन्तु यहूदियों को छोड़ किसी और को वचन न सुनाते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 11:20 परन्तु उनमें से कुछ साइप्रस वासी और कुरेनी थे, जो अन्ताकिया में आकर यूनानियों को भी प्रभु यीशु का सुसमाचार की बातें सुनाने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 11:21 और प्रभु का हाथ उन पर था, और बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे। (IN)

प्रेरितों के काम 11:22 ¶ तब उनकी चर्चा यरूशलेम की कलीसिया के सुनने में आई, और उन्होंने बरनबास को अन्ताकिया भेजा। (IN)

प्रेरितों के काम 11:23 वह वहाँ पहुँचकर, और परमेश्‍वर के अनुग्रह को देखकर आनन्दित हुआ; और सब को उपदेश दिया कि तन मन लगाकर प्रभु से लिपटे रहें। (IN)

प्रेरितों के काम 11:24 क्योंकि वह एक भला मनुष्य था; और पवित्र आत्मा और विश्वास से परिपूर्ण था; और बहुत से लोग प्रभु में आ मिले। (IN)

प्रेरितों के काम 11:25 ¶ तब वह शाऊल को ढूँढ़ने के लिये तरसुस को चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 11:26 और जब उनसे मिला तो उसे अन्ताकिया में लाया, और ऐसा हुआ कि वे एक वर्ष तक कलीसिया के साथ मिलते और बहुत से लोगों को उपदेश देते रहे, और चेले सबसे पहले अन्ताकिया ही में मसीही कहलाए। (IN)

प्रेरितों के काम 11:27 ¶ उन्हीं दिनों में कई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम से अन्ताकिया में आए। (IN)

प्रेरितों के काम 11:28 उनमें से अगबुस ने खड़े होकर आत्मा की प्रेरणा से यह बताया, कि सारे जगत में बड़ा अकाल पड़ेगा, और वह अकाल क्लौदियुस के समय में पड़ा। (IN)

प्रेरितों के काम 11:29 ¶ तब चेलों ने निर्णय किया कि हर एक अपनी-अपनी पूँजी के अनुसार यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की सेवा के लिये कुछ भेजे। (IN)

प्रेरितों के काम 11:30 और उन्होंने ऐसा ही किया; और बरनबास और शाऊल के हाथ प्राचीनों के पास कुछ भेज दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 12:1 ¶ उस समय हेरोदेस राजा ने कलीसिया के कई एक व्यक्तियों को दुःख देने के लिये उन पर हाथ डाले। (IN)

प्रेरितों के काम 12:2 उसने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला। (IN)

प्रेरितों के काम 12:3 ¶ जब उसने देखा, कि यहूदी लोग इससे आनन्दित होते हैं, तो उसने पतरस को भी पकड़ लिया। वे दिन अख़मीरी रोटी के दिन थे। (IN)

प्रेरितों के काम 12:4 और उसने उसे पकड़कर बन्दीगृह में डाला, और रखवाली के लिये, चार-चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा, इस मनसा से कि फसह के बाद उसे लोगों के सामने लाए। (IN)

प्रेरितों के काम 12:5 ¶ बन्दीगृह में पतरस की रखवाली हो रही थी; परन्तु कलीसिया उसके लिये लौ लगाकर परमेश्‍वर से प्रार्थना कर रही थी। (IN)

प्रेरितों के काम 12:6 और जब हेरोदेस उसे उनके सामने लाने को था, तो उसी रात पतरस दो जंजीरों से बंधा हुआ, दो सिपाहियों के बीच में सो रहा था; और पहरेदार द्वार पर बन्दीगृह की रखवाली कर रहे थे। (IN)

प्रेरितों के काम 12:7 ¶ तब प्रभु का एक स्वर्गदूत आ खड़ा हुआ और उस कोठरी में ज्योति चमकी, और उसने पतरस की पसली पर हाथ मार कर उसे जगाया, और कहा, “उठ, जल्दी कर।” और उसके हाथ से जंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। (IN)

प्रेरितों के काम 12:8 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “कमर बाँध, और अपने जूते पहन ले।” उसने वैसा ही किया, फिर उसने उससे कहा, “अपना वस्त्र पहनकर मेरे पीछे हो ले।” (IN)

प्रेरितों के काम 12:9 ¶ वह निकलकर उसके पीछे हो लिया; परन्तु यह न जानता था कि जो कुछ स्वर्गदूत कर रहा है, वह सच है, बल्कि यह समझा कि मैं दर्शन देख रहा हूँ। (IN)

प्रेरितों के काम 12:10 तब वे पहले और दूसरे पहरे से निकलकर उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो नगर की ओर है। वह उनके लिये आप से आप खुल गया, और वे निकलकर एक ही गली होकर गए, इतने में स्वर्गदूत उसे छोड़कर चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 12:11 ¶ तब पतरस ने सचेत होकर कहा, “अब मैंने सच जान लिया कि प्रभु ने अपना स्वर्गदूत भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से छुड़ा लिया, और यहूदियों की सारी आशा तोड़ दी।” (IN)

प्रेरितों के काम 12:12 और यह सोचकर, वह उस यूहन्ना की माता मरियम के घर आया, जो मरकुस कहलाता है। वहाँ बहुत लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना कर रहे थे। (IN)

प्रेरितों के काम 12:13 ¶ जब उसने फाटक की खिड़की खटखटाई तो रूदे नामक एक दासी सुनने को आई। (IN)

प्रेरितों के काम 12:14 और पतरस का शब्द पहचानकर, उसने आनन्द के मारे फाटक न खोला; परन्तु दौड़कर भीतर गई, और बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है। (IN)

प्रेरितों के काम 12:15 उन्होंने उससे कहा, “तू पागल है।” परन्तु वह दृढ़ता से बोली कि ऐसा ही है: तब उन्होंने कहा, “उसका स्वर्गदूत होगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 12:16 ¶ परन्तु पतरस खटखटाता ही रहा अतः उन्होंने खिड़की खोली, और उसे देखकर चकित रह गए। (IN)

प्रेरितों के काम 12:17 तब उसने उन्हें हाथ से संकेत किया कि चुप रहें; और उनको बताया कि प्रभु किस रीति से मुझे बन्दीगृह से निकाल लाया है। फिर कहा, “याकूब और भाइयों को यह बात कह देना।” तब निकलकर दूसरी जगह चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 12:18 ¶ भोर को सिपाहियों में बड़ी हलचल होने लगी कि पतरस कहाँ गया। (IN)

प्रेरितों के काम 12:19 जब हेरोदेस ने उसकी खोज की और न पाया, तो पहरुओं की जाँच करके आज्ञा दी कि वे मार डाले जाएँ: और वह यहूदिया को छोड़कर कैसरिया में जाकर रहने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 12:20 ¶ हेरोदेस सोर और सीदोन के लोगों से बहुत अप्रसन्न था। तब वे एक चित्त होकर उसके पास आए और बलास्तुस को जो राजा का एक कर्मचारी था, मनाकर मेल करना चाहा; क्योंकि राजा के देश से उनके देश का पालन-पोषण होता था। (IN)

प्रेरितों के काम 12:21 ठहराए हुए दिन हेरोदेस राजवस्त्र पहनकर सिंहासन पर बैठा; और उनको व्याख्यान देने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 12:22 ¶ और लोग पुकार उठे, “यह तो मनुष्य का नहीं ईश्वर का शब्द है।” (IN)

प्रेरितों के काम 12:23 उसी क्षण प्रभु के एक स्वर्गदूत ने तुरन्त उसे आघात पहुँचाया, क्योंकि उसने परमेश्‍वर की महिमा नहीं की और उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और वह मर गया। (IN)

प्रेरितों के काम 12:24 ¶ परन्तु परमेश्‍वर का वचन बढ़ता और फैलता गया। (IN)

प्रेरितों के काम 12:25 ¶ जब बरनबास और शाऊल अपनी सेवा पूरी कर चुके तो यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेकर यरूशलेम से लौटे। (IN)

प्रेरितों के काम 13:1 ¶ अन्ताकिया की कलीसिया में कई भविष्यद्वक्ता और उपदेशक थे; अर्थात् बरनबास और शमौन जो नीगर कहलाता है; और लूकियुस कुरेनी, और चौथाई देश के राजा हेरोदेस का दूधभाई मनाहेम और शाऊल। (IN)

प्रेरितों के काम 13:2 जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने कहा, “मेरे लिये बरनबास और शाऊल को उस काम के लिये अलग करो जिसके लिये मैंने उन्हें बुलाया है।” (IN)

प्रेरितों के काम 13:3 तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना करके और उन पर हाथ रखकर उन्हें विदा किया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:4 ¶ अतः वे पवित्र आत्मा के भेजे हुए सिलूकिया को गए; और वहाँ से जहाज पर चढ़कर साइप्रस को चले। (IN)

प्रेरितों के काम 13:5 और सलमीस में पहुँचकर, परमेश्‍वर का वचन यहूदियों के आराधनालयों में सुनाया; और यूहन्ना उनका सेवक था। (IN)

प्रेरितों के काम 13:6 ¶ और उस सारे टापू में से होते हुए, पाफुस तक पहुँचे। वहाँ उन्हें बार-यीशु नामक एक जादूगर मिला, जो यहूदी और झूठा भविष्यद्वक्ता था। (IN)

प्रेरितों के काम 13:7 वह हाकिम सिरगियुस पौलुस के साथ था, जो बुद्धिमान पुरुष था। उसने बरनबास और शाऊल को अपने पास बुलाकर परमेश्‍वर का वचन सुनना चाहा। (IN)

प्रेरितों के काम 13:8 परन्तु एलीमास जादूगर ने, (क्योंकि यही उसके नाम का अर्थ है) उनका सामना करके, हाकिम को विश्वास करने से रोकना चाहा। (IN)

प्रेरितों के काम 13:9 ¶ तब शाऊल ने जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उसकी ओर टकटकी लगाकर कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 13:10 “हे सारे कपट और सब चतुराई से भरे हुए शैतान की सन्तान, सकल धार्मिकता के बैरी, क्या तू प्रभु के सीधे मार्गों को टेढ़ा करना न छोड़ेगा? (IN)

प्रेरितों के काम 13:11 ¶ अब देख, प्रभु का हाथ तुझ पर पड़ा है; और तू कुछ समय तक अंधा रहेगा और सूर्य को न देखेगा।” तब तुरन्त धुंधलापन और अंधेरा उस पर छा गया, और वह इधर-उधर टटोलने लगा ताकि कोई उसका हाथ पकड़कर ले चले। (IN)

प्रेरितों के काम 13:12 तब हाकिम ने जो कुछ हुआ था, देखकर और प्रभु के उपदेश से चकित होकर विश्वास किया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:13 ¶ पौलुस और उसके साथी पाफुस से जहाज खोलकर पंफूलिया के पिरगा में आए; और यूहन्ना उन्हें छोड़कर यरूशलेम को लौट गया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:14 और पिरगा से आगे बढ़कर पिसिदिया के अन्ताकिया में पहुँचे; और सब्त के दिन आराधनालय में जाकर बैठ गए। (IN)

प्रेरितों के काम 13:15 व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक से पढ़ने के बाद आराधनालय के सरदारों ने उनके पास कहला भेजा, “हे भाइयों, यदि लोगों के उपदेश के लिये तुम्हारे मन में कोई बात हो तो कहो।” (IN)

प्रेरितों के काम 13:16 ¶ तब पौलुस ने खड़े होकर और हाथ से इशारा करके कहा, “हे इस्राएलियों, और परमेश्‍वर से डरनेवालों, सुनो (IN)

प्रेरितों के काम 13:17 इन इस्राएली लोगों के परमेश्‍वर ने हमारे पूर्वजों को चुन लिया, और जब ये मिस्र देश में परदेशी होकर रहते थे, तो उनकी उन्नति की; और बलवन्त भुजा से निकाल लाया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:18 और वह कोई चालीस वर्ष तक जंगल में उनकी सहता रहा, (IN)

प्रेरितों के काम 13:19 ¶ और कनान देश में सात जातियों का नाश करके उनका देश लगभग साढ़े चार सौ वर्ष में इनकी विरासत में कर दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:20 इसके बाद उसने शमूएल भविष्यद्वक्ता तक उनमें न्यायी ठहराए। (IN)

प्रेरितों के काम 13:21 ¶ उसके बाद उन्होंने एक राजा माँगा; तब परमेश्‍वर ने चालीस वर्ष के लिये बिन्यामीन के गोत्र में से एक मनुष्य अर्थात् कीश के पुत्र शाऊल को उन पर राजा ठहराया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:22 ¶ फिर उसे अलग करके दाऊद को उनका राजा बनाया; जिसके विषय में उसने गवाही दी, ‘मुझे एक मनुष्य, यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है। वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 13:23 ¶ उसी के वंश में से परमेश्‍वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएल के पास एक उद्धारकर्ता, अर्थात् यीशु को भेजा। (IN)

प्रेरितों के काम 13:24 जिसके आने से पहले यूहन्ना ने सब इस्राएलियों को मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार किया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:25 और जब यूहन्ना अपनी सेवा पूरी करने पर था, तो उसने कहा, ‘तुम मुझे क्या समझते हो? मैं वह नहीं! वरन् देखो, मेरे बाद एक आनेवाला है, जिसके पाँवों की जूती के बन्ध भी मैं खोलने के योग्य नहीं।’ (IN)

प्रेरितों के काम 13:26 ¶ “हे भाइयों, तुम जो अब्राहम की सन्तान हो; और तुम जो परमेश्‍वर से डरते हो, तुम्हारे पास इस उद्धार का वचन भेजा गया है। (IN)

प्रेरितों के काम 13:27 क्योंकि यरूशलेम के रहनेवालों और उनके सरदारों ने, न उसे पहचाना, और न भविष्यद्वक्ताओं की बातें समझी; जो हर सब्त के दिन पढ़ी जाती हैं, इसलिए उसे दोषी ठहराकर उनको पूरा किया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:28 ¶ उन्होंने मार डालने के योग्य कोई दोष उसमें न पाया, फिर भी पिलातुस से विनती की, कि वह मार डाला जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 13:29 और जब उन्होंने उसके विषय में लिखी हुई सब बातें पूरी की, तो उसे क्रूस पर से उतार कर कब्र में रखा। (IN)

प्रेरितों के काम 13:30 ¶ परन्तु परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, (IN)

प्रेरितों के काम 13:31 और वह उन्हें जो उसके साथ गलील से यरूशलेम आए थे, बहुत दिनों तक दिखाई देता रहा; लोगों के सामने अब वे ही उसके गवाह हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 13:32 ¶ और हम तुम्हें उस प्रतिज्ञा के विषय में जो पूर्वजों से की गई थी, यह सुसमाचार सुनाते हैं, (IN)

प्रेरितों के काम 13:33 कि परमेश्‍वर ने यीशु को जिलाकर, वही प्रतिज्ञा हमारी सन्तान के लिये पूरी की; जैसा दूसरे भजन में भी लिखा है, (IN)

प्रेरितों के काम 13:34 और उसके इस रीति से मरे हुओं में से जिलाने के विषय में भी, कि वह कभी न सड़े, उसने यह कहा है, (IN)

प्रेरितों के काम 13:35 ¶ इसलिए उसने एक और भजन में भी कहा है, (IN)

प्रेरितों के काम 13:36 क्योंकि दाऊद तो परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार अपने समय में सेवा करके सो गया, और अपने पूर्वजों में जा मिला, और सड़ भी गया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:37 परन्तु जिसको परमेश्‍वर ने जिलाया, वह सड़ने नहीं पाया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:38 ¶ इसलिए, हे भाइयों; तुम जान लो कि यीशु के द्वारा पापों की क्षमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है। (IN)

प्रेरितों के काम 13:39 और जिन बातों से तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सबसे हर एक विश्वास करनेवाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है। (IN)

प्रेरितों के काम 13:40 ¶ इसलिए चौकस रहो, ऐसा न हो, कि जो भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखित है, तुम पर भी आ पड़े: (IN)

प्रेरितों के काम 13:41 ‘हे निन्दा करनेवालों, देखो, और चकित हो, और मिट जाओ; (IN)

प्रेरितों के काम 13:42 ¶ उनके बाहर निकलते समय लोग उनसे विनती करने लगे, कि अगले सब्त के दिन हमें ये बातें फिर सुनाई जाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 13:43 और जब आराधनालय उठ गई तो यहूदियों और यहूदी मत में आए हुए भक्तों में से बहुत से पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए; और उन्होंने उनसे बातें करके समझाया, कि परमेश्‍वर के अनुग्रह में बने रहो। (IN)

प्रेरितों के काम 13:44 ¶ अगले सब्त के दिन नगर के प्रायः सब लोग परमेश्‍वर का वचन सुनने को इकट्ठे हो गए। (IN)

प्रेरितों के काम 13:45 परन्तु यहूदी भीड़ को देखकर ईर्ष्या से भर गए, और निन्दा करते हुए पौलुस की बातों के विरोध में बोलने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 13:46 ¶ तब पौलुस और बरनबास ने निडर होकर कहा, “अवश्य था, कि परमेश्‍वर का वचन पहले तुम्हें सुनाया जाता; परन्तु जब कि तुम उसे दूर करते हो, और अपने को अनन्त जीवन के योग्य नहीं ठहराते, तो अब, हम अन्यजातियों की ओर फिरते हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 13:47 क्योंकि प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है, (IN)

प्रेरितों के काम 13:48 ¶ यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्‍वर के वचन की बड़ाई करने लगे, और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:49 तब प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 13:50 ¶ परन्तु यहूदियों ने भक्त और कुलीन स्त्रियों को और नगर के प्रमुख लोगों को भड़काया, और पौलुस और बरनबास पर उपद्रव करवाकर उन्हें अपनी सीमा से बाहर निकाल दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 13:51 तब वे उनके सामने अपने पाँवों की धूल झाड़कर इकुनियुम को चले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 13:52 और चेले आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 14:1 ¶ इकुनियुम में ऐसा हुआ कि पौलुस और बरनबास यहूदियों की आराधनालय में साथ-साथ गए, और ऐसी बातें की, कि यहूदियों और यूनानियों दोनों में से बहुतों ने विश्वास किया। (IN)

प्रेरितों के काम 14:2 परन्तु विश्वास न करनेवाले यहूदियों ने अन्यजातियों के मन भाइयों के विरोध में भड़काए, और कटुता उत्‍पन्‍न कर दी। (IN)

प्रेरितों के काम 14:3 ¶ और वे बहुत दिन तक वहाँ रहे, और प्रभु के भरोसे पर साहस के साथ बातें करते थे: और वह उनके हाथों से चिन्ह और अद्भुत काम करवाकर अपने अनुग्रह के वचन पर गवाही देता था। (IN)

प्रेरितों के काम 14:4 परन्तु नगर के लोगों में फूट पड़ गई थी; इससे कितने तो यहूदियों की ओर, और कितने प्रेरितों की ओर हो गए। (IN)

प्रेरितों के काम 14:5 ¶ परन्तु जब अन्यजाति और यहूदी उनका अपमान और उन्हें पत्थराव करने के लिये अपने सरदारों समेत उन पर दौड़े। (IN)

प्रेरितों के काम 14:6 तो वे इस बात को जान गए, और लुकाउनिया के लुस्त्रा और दिरबे नगरों में, और आस-पास के प्रदेशों में भाग गए। (IN)

प्रेरितों के काम 14:7 और वहाँ सुसमाचार सुनाने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 14:8 ¶ लुस्त्रा में एक मनुष्य बैठा था, जो पाँवों का निर्बल था। वह जन्म ही से लँगड़ा था, और कभी न चला था। (IN)

प्रेरितों के काम 14:9 वह पौलुस को बातें करते सुन रहा था और पौलुस ने उसकी ओर टकटकी लगाकर देखा कि इसको चंगा हो जाने का विश्वास है। (IN)

प्रेरितों के काम 14:10 और ऊँचे शब्द से कहा, “अपने पाँवों के बल सीधा खड़ा हो।” तब वह उछलकर चलने फिरने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 14:11 ¶ लोगों ने पौलुस का यह काम देखकर लुकाउनिया भाषा में ऊँचे शब्द से कहा, “देवता मनुष्यों के रूप में होकर हमारे पास उतर आए हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 14:12 और उन्होंने बरनबास को ज्यूस, और पौलुस को हिर्मेस कहा क्योंकि वह बातें करने में मुख्य था। (IN)

प्रेरितों के काम 14:13 और ज्यूस के उस मन्दिर का पुजारी जो उनके नगर के सामने था, बैल और फूलों के हार फाटकों पर लाकर लोगों के साथ बलिदान करना चाहता था। (IN)

प्रेरितों के काम 14:14 ¶ परन्तु बरनबास और पौलुस प्रेरितों ने जब सुना, तो अपने कपड़े फाड़े, और भीड़ की ओर लपक गए, और पुकारकर कहने लगे, (IN)

प्रेरितों के काम 14:15 “हे लोगों, तुम क्या करते हो? हम भी तो तुम्हारे समान दुःख-सुख भोगी मनुष्य हैं, और तुम्हें सुसमाचार सुनाते हैं, कि तुम इन व्यर्थ वस्तुओं से अलग होकर जीविते परमेश्‍वर की ओर फिरो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। (IN)

प्रेरितों के काम 14:16 उसने बीते समयों में सब जातियों को अपने-अपने मार्गों में चलने दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 14:17 ¶ तो भी उसने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।” (IN)

प्रेरितों के काम 14:18 यह कहकर भी उन्होंने लोगों को बड़ी कठिनाई से रोका कि उनके लिये बलिदान न करें। (IN)

प्रेरितों के काम 14:19 ¶ परन्तु कितने यहूदियों ने अन्ताकिया और इकुनियुम से आकर लोगों को अपनी ओर कर लिया, और पौलुस पर पत्थराव किया, और मरा समझकर उसे नगर के बाहर घसीट ले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 14:20 पर जब चेले उसकी चारों ओर आ खड़े हुए, तो वह उठकर नगर में गया और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे को चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 14:21 ¶ और वे उस नगर के लोगों को सुसमाचार सुनाकर, और बहुत से चेले बनाकर, लुस्त्रा और इकुनियुम और अन्ताकिया को लौट आए। (IN)

प्रेरितों के काम 14:22 और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे कि विश्वास में बने रहो; और यह कहते थे, “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 14:23 ¶ और उन्होंने हर एक कलीसिया में उनके लिये प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना करके उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया था। (IN)

प्रेरितों के काम 14:24 और पिसिदिया से होते हुए वे पंफूलिया में पहुँचे; (IN)

प्रेरितों के काम 14:25 और पिरगा में वचन सुनाकर अत्तलिया में आए। (IN)

प्रेरितों के काम 14:26 ¶ और वहाँ से जहाज द्वारा अन्ताकिया गये, जहाँ वे उस काम के लिये जो उन्होंने पूरा किया था परमेश्‍वर के अनुग्रह में सौंपे गए। (IN)

प्रेरितों के काम 14:27 वहाँ पहुँचकर, उन्होंने कलीसिया इकट्ठी की और बताया, कि परमेश्‍वर ने हमारे साथ होकर कैसे बड़े-बड़े काम किए! और अन्यजातियों के लिये विश्वास का द्वार खोल दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 14:28 और वे चेलों के साथ बहुत दिन तक रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 15:1 ¶ फिर कुछ लोग यहूदिया से आकर भाइयों को सिखाने लगे: “यदि मूसा की रीति पर तुम्हारा खतना न हो तो तुम उद्धार नहीं पा सकते।” (IN)

प्रेरितों के काम 15:2 जब पौलुस और बरनबास का उनसे बहुत मतभेद और विवाद हुआ तो यह ठहराया गया, कि पौलुस और बरनबास, और उनमें से कुछ व्यक्ति इस बात के विषय में प्रेरितों और प्राचीनों के पास यरूशलेम को जाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 15:3 ¶ अतः कलीसिया ने उन्हें कुछ दूर तक पहुँचाया; और वे फीनीके और सामरिया से होते हुए अन्यजातियों के मन फिराने का समाचार सुनाते गए, और सब भाइयों को बहुत आनन्दित किया। (IN)

प्रेरितों के काम 15:4 जब वे यरूशलेम में पहुँचे, तो कलीसिया और प्रेरित और प्राचीन उनसे आनन्द के साथ मिले, और उन्होंने बताया कि परमेश्‍वर ने उनके साथ होकर कैसे-कैसे काम किए थे। (IN)

प्रेरितों के काम 15:5 ¶ परन्तु फरीसियों के पंथ में से जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से कितनों ने उठकर कहा, “उन्हें खतना कराने और मूसा की व्यवस्था को मानने की आज्ञा देनी चाहिए।” (IN)

प्रेरितों के काम 15:6 तब प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिये इकट्ठे हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 15:7 ¶ तब पतरस ने बहुत वाद-विवाद हो जाने के बाद खड़े होकर उनसे कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 15:8 ¶ और मन के जाँचने वाले परमेश्‍वर ने उनको भी हमारे समान पवित्र आत्मा देकर उनकी गवाही दी; (IN)

प्रेरितों के काम 15:9 और विश्वास के द्वारा उनके मन शुद्ध करके हम में और उनमें कुछ भेद न रखा। (IN)

प्रेरितों के काम 15:10 ¶ तो अब तुम क्यों परमेश्‍वर की परीक्षा करते हो, कि चेलों की गर्दन पर ऐसा जूआ रखो, जिसे न हमारे पूर्वज उठा सकते थे और न हम उठा सकते हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 15:11 हाँ, हमारा यह तो निश्चय है कि जिस रीति से वे प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएँगे; उसी रीति से हम भी पाएँगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 15:12 ¶ तब सारी सभा चुपचाप होकर बरनबास और पौलुस की सुनने लगी, कि परमेश्‍वर ने उनके द्वारा अन्यजातियों में कैसे-कैसे बड़े चिन्ह, और अद्भुत काम दिखाए। (IN)

प्रेरितों के काम 15:13 ¶ जब वे चुप हुए, तो याकूब कहने लगा, (IN)

प्रेरितों के काम 15:14 ¶ शमौन ने बताया, कि परमेश्‍वर ने पहले पहल अन्यजातियों पर कैसी कृपादृष्टि की, कि उनमें से अपने नाम के लिये एक लोग बना ले। (IN)

प्रेरितों के काम 15:15 ¶ और इससे भविष्यद्वक्ताओं की बातें भी मिलती हैं, जैसा लिखा है, (IN)

प्रेरितों के काम 15:16 ‘इसके बाद मैं फिर आकर दाऊद का गिरा हुआ डेरा उठाऊँगा, (IN)

प्रेरितों के काम 15:17 इसलिए कि शेष मनुष्य, अर्थात् सब अन्यजाति जो मेरे नाम के कहलाते हैं, प्रभु को ढूँढ़ें, (IN)

प्रेरितों के काम 15:18 यह वही प्रभु कहता है जो जगत की उत्पत्ति से इन बातों का समाचार देता आया है।’ (IN)

प्रेरितों के काम 15:19 ¶ इसलिए मेरा विचार यह है, कि अन्यजातियों में से जो लोग परमेश्‍वर की ओर फिरते हैं, हम उन्हें दुःख न दें; (IN)

प्रेरितों के काम 15:20 परन्तु उन्हें लिख भेजें, कि वे मूरतों की अशुद्धताओं और व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के माँस से और लहू से परे रहें। (IN)

प्रेरितों के काम 15:21 क्योंकि पुराने समय से नगर-नगर मूसा की व्यवस्था के प्रचार करनेवाले होते चले आए है, और वह हर सब्त के दिन आराधनालय में पढ़ी जाती है।” (IN)

प्रेरितों के काम 15:22 ¶ तब सारी कलीसिया सहित प्रेरितों और प्राचीनों को अच्छा लगा, कि अपने में से कुछ मनुष्यों को चुनें, अर्थात् यहूदा, जो बरसब्बास कहलाता है, और सीलास को जो भाइयों में मुखिया थे; और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें। (IN)

प्रेरितों के काम 15:23 और उन्होंने उनके हाथ यह लिख भेजा: “अन्ताकिया और सीरिया और किलिकिया के रहनेवाले भाइयों को जो अन्यजातियों में से हैं, प्रेरितों और प्राचीन भाइयों का नमस्कार! (IN)

प्रेरितों के काम 15:24 ¶ हमने सुना है, कि हम में से कुछ ने वहाँ जाकर, तुम्हें अपनी बातों से घबरा दिया; और तुम्हारे मन उलट दिए हैं परन्तु हमने उनको आज्ञा नहीं दी थी। (IN)

प्रेरितों के काम 15:25 इसलिए हमने एक चित्त होकर ठीक समझा, कि चुने हुए मनुष्यों को अपने प्रिय बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें। (IN)

प्रेरितों के काम 15:26 ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने अपने प्राण हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिये जोखिम में डाले हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 15:27 ¶ और हमने यहूदा और सीलास को भेजा है, जो अपने मुँह से भी ये बातें कह देंगे। (IN)

प्रेरितों के काम 15:28 पवित्र आत्मा को, और हमको भी ठीक जान पड़ा कि इन आवश्यक बातों को छोड़; तुम पर और बोझ न डालें; (IN)

प्रेरितों के काम 15:29 कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से दूर रहो। इनसे दूर रहो तो तुम्हारा भला होगा। आगे शुभकामना।” (IN)

प्रेरितों के काम 15:30 ¶ फिर वे विदा होकर अन्ताकिया में पहुँचे, और सभा को इकट्ठी करके उन्हें पत्री दे दी। (IN)

प्रेरितों के काम 15:31 और वे पढ़कर उस उपदेश की बात से अति आनन्दित हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 15:32 और यहूदा और सीलास ने जो आप भी भविष्यद्वक्ता थे, बहुत बातों से भाइयों को उपदेश देकर स्थिर किया। (IN)

प्रेरितों के काम 15:33 ¶ वे कुछ दिन रहकर भाइयों से शान्ति के साथ विदा हुए कि अपने भेजनेवालों के पास जाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 15:34 (परन्तु सीलास को वहाँ रहना अच्छा लगा।) (IN)

प्रेरितों के काम 15:35 और पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में रह गए: और अन्य बहुत से लोगों के साथ प्रभु के वचन का उपदेश करते और सुसमाचार सुनाते रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 15:36 ¶ कुछ दिन बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, “जिन-जिन नगरों में हमने प्रभु का वचन सुनाया था, आओ, फिर उनमें चलकर अपने भाइयों को देखें कि कैसे हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 15:37 तब बरनबास ने यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेने का विचार किया। (IN)

प्रेरितों के काम 15:38 परन्तु पौलुस ने उसे जो पंफूलिया में उनसे अलग हो गया था, और काम पर उनके साथ न गया, साथ ले जाना अच्छा न समझा। (IN)

प्रेरितों के काम 15:39 ¶ अतः ऐसा विवाद उठा कि वे एक दूसरे से अलग हो गए; और बरनबास, मरकुस को लेकर जहाज से साइप्रस को चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 15:40 ¶ परन्तु पौलुस ने सीलास को चुन लिया, और भाइयों से परमेश्‍वर के अनुग्रह में सौंपा जाकर वहाँ से चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 15:41 और कलीसियाओं को स्थिर करता हुआ, सीरिया और किलिकिया से होते हुए निकला। (IN)

प्रेरितों के काम 16:1 ¶ फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और वहाँ तीमुथियुस नामक एक चेला था। उसकी माँ यहूदी विश्वासी थी, परन्तु उसका पिता यूनानी था। (IN)

प्रेरितों के काम 16:2 वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था। (IN)

प्रेरितों के काम 16:3 पौलुस की इच्छा थी कि वह उसके साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उनके कारण उसे लेकर उसका खतना किया, क्योंकि वे सब जानते थे, कि उसका पिता यूनानी था। (IN)

प्रेरितों के काम 16:4 ¶ और नगर-नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुँचाते जाते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 16:5 इस प्रकार कलीसियाएँ विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रतिदिन बढ़ती गई। (IN)

प्रेरितों के काम 16:6 ¶ और वे फ्रूगिया और गलातिया प्रदेशों में से होकर गए, क्योंकि पवित्र आत्मा ने उन्हें आसिया में वचन सुनाने से मना किया। (IN)

प्रेरितों के काम 16:7 और उन्होंने मूसिया के निकट पहुँचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने न दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 16:8 अतः वे मूसिया से होकर त्रोआस में आए। (IN)

प्रेरितों के काम 16:9 ¶ वहाँ पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा हुआ, उससे विनती करके कहता है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ, और हमारी सहायता कर।” (IN)

प्रेरितों के काम 16:10 उसके यह दर्शन देखते ही हमने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर कि परमेश्‍वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिये बुलाया है। (IN)

प्रेरितों के काम 16:11 ¶ इसलिए त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए। (IN)

प्रेरितों के काम 16:12 वहाँ से हम फिलिप्पी में पहुँचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियों की बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 16:13 सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए कि वहाँ प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 16:14 ¶ और लुदिया नाम थुआतीरा नगर की बैंगनी कपड़े बेचनेवाली एक भक्त स्त्री सुन रही थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर ध्यान लगाए। (IN)

प्रेरितों के काम 16:15 और जब उसने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो,” और वह हमें मनाकर ले गई। (IN)

प्रेरितों के काम 16:16 ¶ जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली, जिसमें भावी कहनेवाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी। (IN)

प्रेरितों के काम 16:17 वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी, “ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्‍वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 16:18 वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस परेशान हुआ, और मुड़कर उस आत्मा से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ, कि उसमें से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई।” (IN)

प्रेरितों के काम 16:19 ¶ जब उसके स्वामियों ने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़कर चौक में प्रधानों के पास खींच ले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 16:20 और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर कहा, “ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं; (IN)

प्रेरितों के काम 16:21 और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं। (IN)

प्रेरितों के काम 16:22 ¶ तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 16:23 और बहुत बेंत लगवाकर उन्होंने उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया और दरोगा को आज्ञा दी कि उन्हें सावधानी से रखे। (IN)

प्रेरितों के काम 16:24 उसने ऐसी आज्ञा पा कर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए। (IN)

प्रेरितों के काम 16:25 ¶ आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्‍वर के भजन गा रहे थे, और कैदी उनकी सुन रहे थे। (IN)

प्रेरितों के काम 16:26 कि इतने में अचानक एक बड़ा भूकम्प हुआ, यहाँ तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गई, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल गए। (IN)

प्रेरितों के काम 16:27 ¶ और दरोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि कैदी भाग गए, अतः उसने तलवार खींचकर अपने आपको मार डालना चाहा। (IN)

प्रेरितों के काम 16:28 परन्तु पौलुस ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, “अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहीं हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 16:29 ¶ तब वह दिया मँगवाकर भीतर आया और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा; (IN)

प्रेरितों के काम 16:30 ¶ और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?” (IN)

प्रेरितों के काम 16:31 उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 16:32 ¶ और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। (IN)

प्रेरितों के काम 16:33 और रात को उसी घड़ी उसने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया। (IN)

प्रेरितों के काम 16:34 और उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उनके आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्‍वर पर विश्वास करके आनन्द किया। (IN)

प्रेरितों के काम 16:35 ¶ जब दिन हुआ तब हाकिमों ने सिपाहियों के हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्यों को छोड़ दो। (IN)

प्रेरितों के काम 16:36 दरोगा ने ये बातें पौलुस से कह सुनाई, “हाकिमों ने तुम्हें छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, इसलिए अब निकलकर कुशल से चले जाओ।” (IN)

प्रेरितों के काम 16:37 ¶ परन्तु पौलुस ने उससे कहा, “उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहराए बिना लोगों के सामने मारा और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या चुपके से निकाल देते हैं? ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 16:38 सिपाहियों ने ये बातें हाकिमों से कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए, (IN)

प्रेरितों के काम 16:39 और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर विनती की, कि नगर से चले जाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 16:40 ¶ वे बन्दीगृह से निकलकर लुदिया के यहाँ गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 17:1 ¶ फिर वे अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीके में आए, जहाँ यहूदियों का एक आराधनालय था। (IN)

प्रेरितों के काम 17:2 और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उनके पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्रशास्त्रों से उनके साथ वाद-विवाद किया; (IN)

प्रेरितों के काम 17:3 ¶ और उनका अर्थ खोल-खोलकर समझाता था कि मसीह का दुःख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; “यही यीशु जिसकी मैं तुम्हें कथा सुनाता हूँ, मसीह है।” (IN)

प्रेरितों के काम 17:4 उनमें से कितनों ने, और भक्त यूनानियों में से बहुतों ने और बहुत सारी प्रमुख स्त्रियों ने मान लिया, और पौलुस और सीलास के साथ मिल गए। (IN)

प्रेरितों के काम 17:5 ¶ परन्तु यहूदियों ने ईर्ष्या से भरकर बाजार से लोगों में से कई दुष्ट मनुष्यों को अपने साथ में लिया, और भीड़ लगाकर नगर में हुल्लड़ मचाने लगे, और यासोन के घर पर चढ़ाई करके उन्हें लोगों के सामने लाना चाहा। (IN)

प्रेरितों के काम 17:6 और उन्हें न पा कर, वे यह चिल्लाते हुए यासोन और कुछ भाइयों को नगर के हाकिमों के सामने खींच लाए, “ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आए हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 17:7 ¶ और यासोन ने उन्हें अपने यहाँ ठहराया है, और ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 17:8 जब भीड़ और नगर के हाकिमों ने ये बातें सुनीं, तो वे परेशान हो गये। (IN)

प्रेरितों के काम 17:9 और उन्होंने यासोन और बाकी लोगों को जमानत पर छोड़ दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 17:10 ¶ भाइयों ने तुरन्त रात ही रात पौलुस और सीलास को बिरीया में भेज दिया, और वे वहाँ पहुँचकर यहूदियों के आराधनालय में गए। (IN)

प्रेरितों के काम 17:11 ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रतिदिन पवित्रशास्त्रों में ढूँढ़ते रहे कि ये बातें ऐसी ही हैं कि नहीं। (IN)

प्रेरितों के काम 17:12 इसलिए उनमें से बहुतों ने, और यूनानी कुलीन स्त्रियों में से और पुरुषों में से बहुतों ने विश्वास किया। (IN)

प्रेरितों के काम 17:13 ¶ किन्तु जब थिस्सलुनीके के यहूदी जान गए कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्‍वर का वचन सुनाता है, तो वहाँ भी आकर लोगों को भड़काने और हलचल मचाने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 17:14 तब भाइयों ने तुरन्त पौलुस को विदा किया कि समुद्र के किनारे चला जाए; परन्तु सीलास और तीमुथियुस वहीं रह गए। (IN)

प्रेरितों के काम 17:15 पौलुस के पहुँचाने वाले उसे एथेंस तक ले गए, और सीलास और तीमुथियुस के लिये यह निर्देश लेकर विदा हुए कि मेरे पास अति शीघ्र आओ। (IN)

प्रेरितों के काम 17:16 ¶ जब पौलुस एथेंस में उनकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल उठा। (IN)

प्रेरितों के काम 17:17 अतः वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उनसे हर दिन वाद-विवाद किया करता था। (IN)

प्रेरितों के काम 17:18 ¶ तब इपिकूरी और स्तोईकी दार्शनिकों में से कुछ उससे तर्क करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” परन्तु दूसरों ने कहा, “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है,” क्योंकि वह यीशु का और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। (IN)

प्रेरितों के काम 17:19 ¶ तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, “क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? (IN)

प्रेरितों के काम 17:20 क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि इनका अर्थ क्या है?” (IN)

प्रेरितों के काम 17:21 (इसलिए कि सब एथेंस वासी और परदेशी जो वहाँ रहते थे नई-नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे।) (IN)

प्रेरितों के काम 17:22 ¶ तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 17:23 ¶ क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, ‘अनजाने ईश्वर के लिये।’ इसलिए जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ। (IN)

प्रेरितों के काम 17:24 ¶ जिस परमेश्‍वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। (IN)

प्रेरितों के काम 17:25 न किसी वस्तु की आवश्यकता के कारण मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और श्‍वास और सब कुछ देता है। (IN)

प्रेरितों के काम 17:26 ¶ उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उनके ठहराए हुए समय और निवास के सीमाओं को इसलिए बाँधा है, (IN)

प्रेरितों के काम 17:27 कि वे परमेश्‍वर को ढूँढ़े, और शायद वे उसके पास पहुँच सके, और वास्तव में, वह हम में से किसी से दूर नहीं हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 17:28 ¶ क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, (IN)

प्रेरितों के काम 17:29 ¶ अतः परमेश्‍वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं कि ईश्वरत्व, सोने या चाँदी या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। (IN)

प्रेरितों के काम 17:30 ¶ इसलिए परमेश्‍वर ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। (IN)

प्रेरितों के काम 17:31 क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धार्मिकता से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” (IN)

प्रेरितों के काम 17:32 ¶ मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो उपहास करने लगे, और कितनों ने कहा, “यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 17:33 इस पर पौलुस उनके बीच में से चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 17:34 परन्तु कुछ मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया; जिनमें दियुनुसियुस जो अरियुपगुस का सदस्य था, और दमरिस नामक एक स्त्री थी, और उनके साथ और भी कितने लोग थे। (IN)

प्रेरितों के काम 18:1 ¶ इसके बाद पौलुस एथेंस को छोड़कर कुरिन्थुस में आया। (IN)

प्रेरितों के काम 18:2 और वहाँ अक्विला नामक एक यहूदी मिला, जिसका जन्म पुन्तुस में हुआ था; और अपनी पत्‍नी प्रिस्किल्ला के साथ इतालिया से हाल ही में आया था, क्योंकि क्लौदियुस ने सब यहूदियों को रोम से निकल जाने की आज्ञा दी थी, इसलिए वह उनके यहाँ गया। (IN)

प्रेरितों के काम 18:3 और उसका और उनका एक ही व्यापार था; इसलिए वह उनके साथ रहा, और वे काम करने लगे, और उनका व्यापार तम्बू बनाने का था। (IN)

प्रेरितों के काम 18:4 ¶ और वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद-विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता था। (IN)

प्रेरितों के काम 18:5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियों को गवाही देता था कि यीशु ही मसीह है। (IN)

प्रेरितों के काम 18:6 परन्तु जब वे विरोध और निन्दा करने लगे, तो उसने अपने कपड़े झाड़कर उनसे कहा, “तुम्हारा लहू तुम्हारी सिर पर रहे! मैं निर्दोष हूँ। अब से मैं अन्यजातियों के पास जाऊँगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 18:7 ¶ और वहाँ से चलकर वह तीतुस यूस्तुस नामक परमेश्‍वर के एक भक्त के घर में आया, जिसका घर आराधनालय से लगा हुआ था। (IN)

प्रेरितों के काम 18:8 ¶ तब आराधनालय के सरदार क्रिस्पुस ने अपने सारे घराने समेत प्रभु पर विश्वास किया; और बहुत से कुरिन्थवासियों ने सुनकर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया। (IN)

प्रेरितों के काम 18:9 और प्रभु ने रात को दर्शन के द्वारा पौलुस से कहा, “मत डर, वरन् कहे जा और चुप मत रह; (IN)

प्रेरितों के काम 18:10 क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 18:11 इसलिए वह उनमें परमेश्‍वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 18:12 ¶ जब गल्लियो अखाया देश का राज्यपाल था तो यहूदी लोग एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे न्याय आसन के सामने लाकर कहने लगे, (IN)

प्रेरितों के काम 18:13 “यह लोगों को समझाता है, कि परमेश्‍वर की उपासना ऐसी रीति से करें, जो व्यवस्था के विपरीत है।” (IN)

प्रेरितों के काम 18:14 ¶ जब पौलुस बोलने पर था, तो गल्लियो ने यहूदियों से कहा, “हे यहूदियों, यदि यह कुछ अन्याय या दुष्टता की बात होती तो उचित था कि मैं तुम्हारी सुनता। (IN)

प्रेरितों के काम 18:15 परन्तु यदि यह वाद-विवाद शब्दों, और नामों, और तुम्हारे यहाँ की व्यवस्था के विषय में है, तो तुम ही जानो; क्योंकि मैं इन बातों का न्यायी बनना नहीं चाहता।” (IN)

प्रेरितों के काम 18:16 ¶ और उसने उन्हें न्याय आसन के सामने से निकलवा दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 18:17 तब सब लोगों ने आराधनालय के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ के न्याय आसन के सामने मारा। परन्तु गल्लियो ने इन बातों की कुछ भी चिन्ता न की। (IN)

प्रेरितों के काम 18:18 ¶ अतः पौलुस बहुत दिन तक वहाँ रहा, फिर भाइयों से विदा होकर किंख्रिया में इसलिए सिर मुण्डाया, क्योंकि उसने मन्नत मानी थी और जहाज पर सीरिया को चल दिया और उसके साथ प्रिस्किल्ला और अक्विला थे। (IN)

प्रेरितों के काम 18:19 और उसने इफिसुस में पहुँचकर उनको वहाँ छोड़ा, और आप ही आराधनालय में जाकर यहूदियों से विवाद करने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 18:20 ¶ जब उन्होंने उससे विनती की, “हमारे साथ और कुछ दिन रह।” तो उसने स्वीकार न किया; (IN)

प्रेरितों के काम 18:21 परन्तु यह कहकर उनसे विदा हुआ, “यदि परमेश्‍वर चाहे तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊँगा।” तब इफिसुस से जहाज खोलकर चल दिया; (IN)

प्रेरितों के काम 18:22 ¶ और कैसरिया में उतर कर (यरूशलेम को) गया और कलीसिया को नमस्कार करके अन्ताकिया में आया। (IN)

प्रेरितों के काम 18:23 ¶ फिर कुछ दिन रहकर वहाँ से चला गया, और एक ओर से गलातिया और फ्रूगिया में सब चेलों को स्थिर करता फिरा। (IN)

प्रेरितों के काम 18:24 ¶ अपुल्लोस नामक एक यहूदी जिसका जन्म सिकन्दरिया में हुआ था, जो विद्वान पुरुष था और पवित्रशास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया। (IN)

प्रेरितों के काम 18:25 उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक-ठीक सुनाता और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था। (IN)

प्रेरितों के काम 18:26 वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा, पर प्रिस्किल्ला और अक्विला उसकी बातें सुनकर, उसे अपने यहाँ ले गए और परमेश्‍वर का मार्ग उसको और भी स्पष्ट रूप से बताया। (IN)

प्रेरितों के काम 18:27 ¶ और जब उसने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयों ने उसे ढाढ़स देकर चेलों को लिखा कि वे उससे अच्छी तरह मिलें, और उसने पहुँचकर वहाँ उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्होंने अनुग्रह के कारण विश्वास किया था। (IN)

प्रेरितों के काम 18:28 अपुल्लोस ने अपनी शक्ति और कौशल के साथ यहूदियों को सार्वजनिक रूप से अभिभूत किया, पवित्रशास्त्र से प्रमाण दे देकर कि यीशु ही मसीह है। (IN)

प्रेरितों के काम 19:1 ¶ जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, तो पौलुस ऊपर के सारे देश से होकर इफिसुस में आया और वहाँ कुछ चेले मिले। (IN)

प्रेरितों के काम 19:2 उसने कहा, “क्या तुम ने विश्वास करते समय पवित्र आत्मा पाया?” उन्होंने उससे कहा, “हमने तो पवित्र आत्मा की चर्चा भी नहीं सुनी।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:3 ¶ उसने उनसे कहा, “तो फिर तुम ने किसका बपतिस्मा लिया?” उन्होंने कहा, “यूहन्ना का बपतिस्मा।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:4 पौलुस ने कहा, “यूहन्ना ने यह कहकर मन फिराव का बपतिस्मा दिया, कि जो मेरे बाद आनेवाला है, उस पर अर्थात् यीशु पर विश्वास करना।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:5 ¶ यह सुनकर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा लिया। (IN)

प्रेरितों के काम 19:6 और जब पौलुस ने उन पर हाथ रखे, तो उन पर पवित्र आत्मा उतरा, और वे भिन्न-भिन्न भाषा बोलने और भविष्यद्वाणी करने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 19:7 ये सब लगभग बारह पुरुष थे। (IN)

प्रेरितों के काम 19:8 ¶ और वह आराधनालय में जाकर तीन महीने तक निडर होकर बोलता रहा, और परमेश्‍वर के राज्य के विषय में विवाद करता और समझाता रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 19:9 परन्तु जब कुछ लोगों ने कठोर होकर उसकी नहीं मानी वरन् लोगों के सामने इस पंथ को बुरा कहने लगे, तो उसने उनको छोड़कर चेलों को अलग कर लिया, और प्रतिदिन तुरन्नुस की पाठशाला में वाद-विवाद किया करता था। (IN)

प्रेरितों के काम 19:10 दो वर्ष तक यही होता रहा, यहाँ तक कि आसिया के रहनेवाले क्या यहूदी, क्या यूनानी सब ने प्रभु का वचन सुन लिया। (IN)

प्रेरितों के काम 19:11 ¶ और परमेश्‍वर पौलुस के हाथों से सामर्थ्य के अद्भुत काम दिखाता था। (IN)

प्रेरितों के काम 19:12 यहाँ तक कि रूमाल और अँगोछे उसकी देह से स्पर्श कराकर बीमारों पर डालते थे, और उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थी; और दुष्टात्माएँ उनमें से निकल जाया करती थीं। (IN)

प्रेरितों के काम 19:13 ¶ परन्तु कुछ यहूदी जो झाड़ा फूँकी करते फिरते थे, यह करने लगे कि जिनमें दुष्टात्मा हों उन पर प्रभु यीशु का नाम यह कहकर फूँकने लगे, “जिस यीशु का प्रचार पौलुस करता है, मैं तुम्हें उसी की शपथ देता हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:14 और स्क्किवा नाम के एक यहूदी प्रधान याजक के सात पुत्र थे, जो ऐसा ही करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 19:15 ¶ पर दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, “यीशु को मैं जानती हूँ, और पौलुस को भी पहचानती हूँ; परन्तु तुम कौन हो?” (IN)

प्रेरितों के काम 19:16 और उस मनुष्य ने जिसमें दुष्ट आत्मा थी; उन पर लपककर, और उन्हें काबू में लाकर, उन पर ऐसा उपद्रव किया, कि वे नंगे और घायल होकर उस घर से निकल भागे। (IN)

प्रेरितों के काम 19:17 और यह बात इफिसुस के रहनेवाले यहूदी और यूनानी भी सब जान गए, और उन सब पर भय छा गया; और प्रभु यीशु के नाम की बड़ाई हुई। (IN)

प्रेरितों के काम 19:18 ¶ और जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से बहुतों ने आकर अपने-अपने बुरे कामों को मान लिया और प्रगट किया। (IN)

प्रेरितों के काम 19:19 और जादू टोना करनेवालों में से बहुतों ने अपनी-अपनी पोथियाँ इकट्ठी करके सब के सामने जला दीं; और जब उनका दाम जोड़ा गया, जो पचास हजार चाँदी के सिक्कों के बराबर निकला। (IN)

प्रेरितों के काम 19:20 इस प्रकार प्रभु का वचन सामर्थ्यपूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया। (IN)

प्रेरितों के काम 19:21 ¶ जब ये बातें हो चुकी तो पौलुस ने आत्मा में ठाना कि मकिदुनिया और अखाया से होकर यरूशलेम को जाऊँ, और कहा, “वहाँ जाने के बाद मुझे रोम को भी देखना अवश्य है।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:22 इसलिए अपनी सेवा करनेवालों में से तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया में भेजकर आप कुछ दिन आसिया में रह गया। (IN)

प्रेरितों के काम 19:23 ¶ उस समय उस पन्थ के विषय में बड़ा हुल्लड़ हुआ। (IN)

प्रेरितों के काम 19:24 क्योंकि दिमेत्रियुस नाम का एक सुनार अरतिमिस के चाँदी के मन्दिर बनवाकर, कारीगरों को बहुत काम दिलाया करता था। (IN)

प्रेरितों के काम 19:25 उसने उनको और ऐसी वस्तुओं के कारीगरों को इकट्ठे करके कहा, “हे मनुष्यों, तुम जानते हो कि इस काम से हमें कितना धन मिलता है। (IN)

प्रेरितों के काम 19:26 और तुम देखते और सुनते हो कि केवल इफिसुस ही में नहीं, वरन् प्रायः सारे आसिया में यह कह कहकर इस पौलुस ने बहुत लोगों को समझाया और भरमाया भी है, कि जो हाथ की कारीगरी है, वे ईश्वर नहीं। (IN)

प्रेरितों के काम 19:27 और अब केवल इसी एक बात का ही डर नहीं कि हमारे इस धन्धे की प्रतिष्ठा जाती रहेगी; वरन् यह कि महान देवी अरतिमिस का मन्दिर तुच्छ समझा जाएगा और जिसे सारा आसिया और जगत पूजता है उसका महत्व भी जाता रहेगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:28 ¶ वे यह सुनकर क्रोध से भर गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है!” (IN)

प्रेरितों के काम 19:29 और सारे नगर में बड़ा कोलाहल मच गया और लोगों ने गयुस और अरिस्तर्खुस, मकिदुनियों को जो पौलुस के संगी यात्री थे, पकड़ लिया, और एक साथ होकर रंगशाला में दौड़ गए। (IN)

प्रेरितों के काम 19:30 ¶ जब पौलुस ने लोगों के पास भीतर जाना चाहा तो चेलों ने उसे जाने न दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 19:31 आसिया के हाकिमों में से भी उसके कई मित्रों ने उसके पास कहला भेजा और विनती की, कि रंगशाला में जाकर जोखिम न उठाना। (IN)

प्रेरितों के काम 19:32 वहाँ कोई कुछ चिल्लाता था, और कोई कुछ; क्योंकि सभा में बड़ी गड़बड़ी हो रही थी, और बहुत से लोग तो यह जानते भी नहीं थे कि वे किस लिये इकट्ठे हुए हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 19:33 ¶ तब उन्होंने सिकन्दर को, जिसे यहूदियों ने खड़ा किया था, भीड़ में से आगे बढ़ाया, और सिकन्दर हाथ से संकेत करके लोगों के सामने उत्तर देना चाहता था। (IN)

प्रेरितों के काम 19:34 ¶ परन्तु जब उन्होंने जान लिया कि वह यहूदी है, तो सब के सब एक स्वर से कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:35 तब नगर के मंत्री ने लोगों को शान्त करके कहा, “हे इफिसियों, कौन नहीं जानता, कि इफिसियों का नगर महान देवी अरतिमिस के मन्दिर, और आकाश से गिरी हुई मूरत का रखवाला है। (IN)

प्रेरितों के काम 19:36 अतः जब कि इन बातों का खण्डन ही नहीं हो सकता, तो उचित है, कि तुम शान्त रहो; और बिना सोचे-विचारे कुछ न करो। (IN)

प्रेरितों के काम 19:37 क्योंकि तुम इन मनुष्यों को लाए हो, जो न मन्दिर के लूटनेवाले हैं, और न हमारी देवी के निन्दक हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 19:38 ¶ यदि दिमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी से विवाद हो तो कचहरी खुली है, और हाकिम भी हैं; वे एक दूसरे पर आरोप लगाए। (IN)

प्रेरितों के काम 19:39 परन्तु यदि तुम किसी और बात के विषय में कुछ पूछना चाहते हो, तो नियत सभा में फैसला किया जाएगा। (IN)

प्रेरितों के काम 19:40 क्योंकि आज के बलवे के कारण हम पर दोष लगाए जाने का डर है, इसलिए कि इसका कोई कारण नहीं, अतः हम इस भीड़ के इकट्ठा होने का कोई उत्तर न दे सकेंगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 19:41 और यह कह के उसने सभा को विदा किया। (IN)

प्रेरितों के काम 20:1 ¶ जब हुल्लड़ थम गया तो पौलुस ने चेलों को बुलवाकर समझाया, और उनसे विदा होकर मकिदुनिया की ओर चल दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 20:2 उस सारे प्रदेश में से होकर और चेलों को बहुत उत्साहित कर वह यूनान में आया। (IN)

प्रेरितों के काम 20:3 जब तीन महीने रहकर वह वहाँ से जहाज पर सीरिया की ओर जाने पर था, तो यहूदी उसकी घात में लगे, इसलिए उसने यह निश्चय किया कि मकिदुनिया होकर लौट जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 20:4 ¶ बिरीया के पुरूर्स का पुत्र सोपत्रुस और थिस्सलुनीकियों में से अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस और दिरबे का गयुस, और तीमुथियुस और आसिया का तुखिकुस और त्रुफिमुस आसिया तक उसके साथ हो लिए। (IN)

प्रेरितों के काम 20:5 पर वे आगे जाकर त्रोआस में हमारी प्रतीक्षा करते रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:6 और हम अख़मीरी रोटी के दिनों के बाद फिलिप्पी से जहाज पर चढ़कर पाँच दिन में त्रोआस में उनके पास पहुँचे, और सात दिन तक वहीं रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:7 ¶ सप्ताह के पहले दिन जब हम रोटी तोड़ने के लिये इकट्ठे हुए, तो पौलुस ने जो दूसरे दिन चले जाने पर था, उनसे बातें की, और आधी रात तक उपदेश देता रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 20:8 जिस अटारी पर हम इकट्ठे थे, उसमें बहुत दीये जल रहे थे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:9 ¶ और यूतुखुस नाम का एक जवान खिड़की पर बैठा हुआ गहरी नींद से झुक रहा था, और जब पौलुस देर तक बातें करता रहा तो वह नींद के झोके में तीसरी अटारी पर से गिर पड़ा, और मरा हुआ उठाया गया। (IN)

प्रेरितों के काम 20:10 परन्तु पौलुस उतरकर उससे लिपट गया, और गले लगाकर कहा, “घबराओ नहीं; क्योंकि उसका प्राण उसी में है।” (IN)

प्रेरितों के काम 20:11 ¶ और ऊपर जाकर रोटी तोड़ी और खाकर इतनी देर तक उनसे बातें करता रहा कि पौ फट गई; फिर वह चला गया। (IN)

प्रेरितों के काम 20:12 ¶ और वे उस जवान को जीवित ले आए, और बहुत शान्ति पाई। (IN)

प्रेरितों के काम 20:13 ¶ हम पहले से जहाज पर चढ़कर अस्सुस को इस विचार से आगे गए, कि वहाँ से हम पौलुस को चढ़ा लें क्योंकि उसने यह इसलिए ठहराया था, कि आप ही पैदल जानेवाला था। (IN)

प्रेरितों के काम 20:14 जब वह अस्सुस में हमें मिला तो हम उसे चढ़ाकर मितुलेने में आए। (IN)

प्रेरितों के काम 20:15 ¶ और वहाँ से जहाज खोलकर हम दूसरे दिन खियुस के सामने पहुँचे, और अगले दिन सामुस में जा पहुँचे, फिर दूसरे दिन मीलेतुस में आए। (IN)

प्रेरितों के काम 20:16 क्योंकि पौलुस ने इफिसुस के पास से होकर जाने की ठानी थी, कि कहीं ऐसा न हो, कि उसे आसिया में देर लगे; क्योंकि वह जल्दी में था, कि यदि हो सके, तो वह पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:17 ¶ और उसने मीलेतुस से इफिसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया। (IN)

प्रेरितों के काम 20:18 जब वे उसके पास आए, तो उनसे कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 20:19 ¶ अर्थात् बड़ी दीनता से, और आँसू बहा-बहाकर, और उन परीक्षाओं में जो यहूदियों के षड़यंत्र के कारण जो मुझ पर आ पड़ी; मैं प्रभु की सेवा करता ही रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 20:20 और जो-जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उनको बताने और लोगों के सामने और घर-घर सिखाने से कभी न झिझका। (IN)

प्रेरितों के काम 20:21 वरन् यहूदियों और यूनानियों को चेतावनी देता रहा कि परमेश्‍वर की ओर मन फिराए, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:22 ¶ और अब, मैं आत्मा में बंधा हुआ यरूशलेम को जाता हूँ, और नहीं जानता, कि वहाँ मुझ पर क्या-क्या बीतेगा, (IN)

प्रेरितों के काम 20:23 केवल यह कि पवित्र आत्मा हर नगर में गवाही दे-देकर मुझसे कहता है कि बन्धन और क्लेश तेरे लिये तैयार है। (IN)

प्रेरितों के काम 20:24 परन्तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता कि उसे प्रिय जानूँ, वरन् यह कि मैं अपनी दौड़ को, और उस सेवा को पूरी करूँ, जो मैंने परमेश्‍वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिये प्रभु यीशु से पाई है। (IN)

प्रेरितों के काम 20:25 ¶ और अब मैं जानता हूँ, कि तुम सब जिनमें मैं परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करता फिरा, मेरा मुँह फिर न देखोगे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:26 इसलिए मैं आज के दिन तुम से गवाही देकर कहता हूँ, कि मैं सब के लहू से निर्दोष हूँ। (IN)

प्रेरितों के काम 20:27 क्योंकि मैं परमेश्‍वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बताने से न झिझका। (IN)

प्रेरितों के काम 20:28 इसलिए अपनी और पूरे झुण्ड की देख-रेख करो; जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है कि तुम परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने लहू से मोल लिया है। (IN)

प्रेरितों के काम 20:29 मैं जानता हूँ, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेड़िए तुम में आएँगे, जो झुण्ड को न छोड़ेंगे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:30 तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे-ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:31 ¶ इसलिए जागते रहो, और स्मरण करो कि मैंने तीन वर्ष तक रात दिन आँसू बहा-बहाकर, हर एक को चितौनी देना न छोड़ा। (IN)

प्रेरितों के काम 20:32 और अब मैं तुम्हें परमेश्‍वर को, और उसके अनुग्रह के वचन को सौंप देता हूँ; जो तुम्हारी उन्नति कर सकता है, और सब पवित्र किये गये लोगों में सहभागी होकर विरासत दे सकता है। (IN)

प्रेरितों के काम 20:33 ¶ मैंने किसी के चाँदी, सोने या कपड़े का लालच नहीं किया। (IN)

प्रेरितों के काम 20:34 तुम आप ही जानते हो कि इन्हीं हाथों ने मेरी और मेरे साथियों की आवश्यकताएँ पूरी की। (IN)

प्रेरितों के काम 20:35 मैंने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु के वचन स्मरण रखना अवश्य है, कि उसने आप ही कहा है: ‘लेने से देना धन्य है’।” (IN)

प्रेरितों के काम 20:36 ¶ यह कहकर उसने घुटने टेके और उन सब के साथ प्रार्थना की। (IN)

प्रेरितों के काम 20:37 तब वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले लिपट कर उसे चूमने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 20:38 वे विशेष करके इस बात का शोक करते थे, जो उसने कही थी, कि तुम मेरा मुँह फिर न देखोगे। और उन्होंने उसे जहाज तक पहुँचाया। (IN)

प्रेरितों के काम 21:1 ¶ जब हमने उनसे अलग होकर समुद्री यात्रा प्रारंभ किया, तो सीधे मार्ग से कोस में आए, और दूसरे दिन रुदुस में, और वहाँ से पतरा में; (IN)

प्रेरितों के काम 21:2 और एक जहाज फीनीके को जाता हुआ मिला, और हमने उस पर चढ़कर, उसे खोल दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 21:3 ¶ जब साइप्रस दिखाई दिया, तो हमने उसे बाएँ हाथ छोड़ा, और सीरिया को चलकर सोर में उतरे; क्योंकि वहाँ जहाज का बोझ उतारना था। (IN)

प्रेरितों के काम 21:4 और चेलों को पा कर हम वहाँ सात दिन तक रहे। उन्होंने आत्मा के सिखाए पौलुस से कहा कि यरूशलेम में पाँव न रखना। (IN)

प्रेरितों के काम 21:5 ¶ जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहाँ से चल दिए; और सब स्त्रियों और बालकों समेत हमें नगर के बाहर तक पहुँचाया और हमने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्थना की। (IN)

प्रेरितों के काम 21:6 तब एक दूसरे से विदा होकर, हम तो जहाज पर चढ़े, और वे अपने-अपने घर लौट गए। (IN)

प्रेरितों के काम 21:7 ¶ जब हम सोर से जलयात्रा पूरी करके पतुलिमयिस में पहुँचे, और भाइयों को नमस्कार करके उनके साथ एक दिन रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 21:8 दूसरे दिन हम वहाँ से चलकर कैसरिया में आए, और फिलिप्पुस सुसमाचार प्रचारक के घर में जो सातों में से एक था, जाकर उसके यहाँ रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 21:9 उसकी चार कुँवारी पुत्रियाँ थीं; जो भविष्यद्वाणी करती थीं। (IN)

प्रेरितों के काम 21:10 ¶ जब हम वहाँ बहुत दिन रह चुके, तो अगबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता यहूदिया से आया। (IN)

प्रेरितों के काम 21:11 उसने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया, और अपने हाथ पाँव बाँधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है, कि जिस मनुष्य का यह कमरबन्द है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बाँधेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 21:12 ¶ जब हमने ये बातें सुनी, तो हम और वहाँ के लोगों ने उससे विनती की, कि यरूशलेम को न जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 21:13 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “तुम क्या करते हो, कि रो-रोकर मेरा मन तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 21:14 जब उसने न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, “प्रभु की इच्छा पूरी हो।” (IN)

प्रेरितों के काम 21:15 ¶ उन दिनों के बाद हमने तैयारी की और यरूशलेम को चल दिए। (IN)

प्रेरितों के काम 21:16 कैसरिया के भी कुछ चेले हमारे साथ हो लिए, और मनासोन नामक साइप्रस के एक पुराने चेले को साथ ले आए, कि हम उसके यहाँ टिकें। (IN)

प्रेरितों के काम 21:17 ¶ जब हम यरूशलेम में पहुँचे, तब भाइयों ने बड़े आनन्द के साथ हमारा स्वागत किया। (IN)

प्रेरितों के काम 21:18 दूसरे दिन पौलुस हमें लेकर याकूब के पास गया, जहाँ सब प्राचीन इकट्ठे थे। (IN)

प्रेरितों के काम 21:19 तब उसने उन्हें नमस्कार करके, जो-जो काम परमेश्‍वर ने उसकी सेवकाई के द्वारा अन्यजातियों में किए थे, एक-एक करके सब बताया। (IN)

प्रेरितों के काम 21:20 ¶ उन्होंने यह सुनकर परमेश्‍वर की महिमा की, फिर उससे कहा, “हे भाई, तू देखता है, कि यहूदियों में से कई हजार ने विश्वास किया है; और सब व्यवस्था के लिये धुन लगाए हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 21:21 और उनको तेरे विषय में सिखाया गया है, कि तू अन्यजातियों में रहनेवाले यहूदियों को मूसा से फिर जाने को सिखाता है, और कहता है, कि न अपने बच्चों का खतना कराओ ओर न रीतियों पर चलो। (IN)

प्रेरितों के काम 21:22 ¶ तो फिर क्या किया जाए? लोग अवश्य सुनेंगे कि तू यहाँ आया है। (IN)

प्रेरितों के काम 21:23 इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं, वह कर। हमारे यहाँ चार मनुष्य हैं, जिन्होंने मन्नत मानी है। (IN)

प्रेरितों के काम 21:24 उन्हें लेकर उसके साथ अपने आप को शुद्ध कर; और उनके लिये खर्चा दे, कि वे सिर मुँड़ाएँ। तब सब जान लेंगे, कि जो बातें उन्हें तेरे विषय में सिखाई गईं, उनकी कुछ जड़ नहीं है परन्तु तू आप भी व्यवस्था को मानकर उसके अनुसार चलता है। (IN)

प्रेरितों के काम 21:25 ¶ परन्तु उन अन्यजातियों के विषय में जिन्होंने विश्वास किया है, हमने यह निर्णय करके लिख भेजा है कि वे मूर्तियों के सामने बलि किए हुए माँस से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से, बचे रहें।” (IN)

प्रेरितों के काम 21:26 तब पौलुस उन मनुष्यों को लेकर, और दूसरे दिन उनके साथ शुद्ध होकर मन्दिर में गया, और वहाँ बता दिया, कि शुद्ध होने के दिन, अर्थात् उनमें से हर एक के लिये चढ़ावा चढ़ाए जाने तक के दिन कब पूरे होंगे। (IN)

प्रेरितों के काम 21:27 ¶ जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो आसिया के यहूदियों ने पौलुस को मन्दिर में देखकर सब लोगों को भड़काया, और यह चिल्ला-चिल्लाकर उसको पकड़ लिया, (IN)

प्रेरितों के काम 21:28 “हे इस्राएलियों, सहायता करो; यह वही मनुष्य है, जो लोगों के, और व्यवस्था के, और इस स्थान के विरोध में हर जगह सब लोगों को सिखाता है, यहाँ तक कि यूनानियों को भी मन्दिर में लाकर उसने इस पवित्रस्‍थान को अपवित्र किया है।” (IN)

प्रेरितों के काम 21:29 उन्होंने तो इससे पहले इफिसुस वासी त्रुफिमुस को उसके साथ नगर में देखा था, और समझते थे कि पौलुस उसे मन्दिर में ले आया है। (IN)

प्रेरितों के काम 21:30 ¶ तब सारे नगर में कोलाहल मच गया, और लोग दौड़कर इकट्ठे हुए, और पौलुस को पकड़कर मन्दिर के बाहर घसीट लाए, और तुरन्त द्वार बन्द किए गए। (IN)

प्रेरितों के काम 21:31 जब वे उसे मार डालना चाहते थे, तो सैन्य-दल के सरदार को सन्देश पहुँचा कि सारे यरूशलेम में कोलाहल मच रहा है। (IN)

प्रेरितों के काम 21:32 ¶ तब वह तुरन्त सिपाहियों और सूबेदारों को लेकर उनके पास नीचे दौड़ आया; और उन्होंने सैन्य-दल के सरदार को और सिपाहियों को देखकर पौलुस को मारना-पीटना रोक दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 21:33 तब सैन्य-दल के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरों से बाँधने की आज्ञा देकर पूछने लगा, “यह कौन है, और इसने क्या किया है?” (IN)

प्रेरितों के काम 21:34 ¶ परन्तु भीड़ में से कोई कुछ और कोई कुछ चिल्लाते रहे और जब हुल्लड़ के मारे ठीक सच्चाई न जान सका, तो उसे गढ़ में ले जाने की आज्ञा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 21:35 जब वह सीढ़ी पर पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि भीड़ के दबाव के मारे सिपाहियों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। (IN)

प्रेरितों के काम 21:36 क्योंकि लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी, “उसका अन्त कर दो।” (IN)

प्रेरितों के काम 21:37 ¶ जब वे पौलुस को गढ़ में ले जाने पर थे, तो उसने सैन्य-दल के सरदार से कहा, “क्या मुझे आज्ञा है कि मैं तुझ से कुछ कहूँ?” उसने कहा, “क्या तू यूनानी जानता है? (IN)

प्रेरितों के काम 21:38 क्या तू वह मिस्री नहीं, जो इन दिनों से पहले बलवाई बनाकर चार हजार हथियारबंद लोगों को जंगल में ले गया?” (IN)

प्रेरितों के काम 21:39 ¶ पौलुस ने कहा, “मैं तो तरसुस का यहूदी मनुष्य हूँ! किलिकिया के प्रसिद्ध नगर का निवासी हूँ। और मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मुझे लोगों से बातें करने दे।” (IN)

प्रेरितों के काम 21:40 जब उसने आज्ञा दी, तो पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े होकर लोगों को हाथ से संकेत किया। जब वे चुप हो गए, तो वह इब्रानी भाषा में बोलने लगा: (IN)

प्रेरितों के काम 22:1 ¶ “हे भाइयों और पिताओं, मेरा प्रत्युत्तर सुनो, जो मैं अब तुम्हारे सामने कहता हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 22:2 ¶ वे यह सुनकर कि वह उनसे इब्रानी भाषा में बोलता है, वे चुप रहे। तब उसने कहा: (IN)

प्रेरितों के काम 22:3 ¶ “मैं तो यहूदी हूँ, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पाँवों के पास बैठकर शिक्षा प्राप्त की, और पूर्वजों की व्यवस्था भी ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्‍वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो। (IN)

प्रेरितों के काम 22:4 मैंने पुरुष और स्त्री दोनों को बाँधकर, और बन्दीगृह में डालकर, इस पंथ को यहाँ तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला। (IN)

प्रेरितों के काम 22:5 स्वयं महायाजक और सब पुरनिए गवाह हैं; कि उनमें से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियाँ लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहाँ हों उन्हें दण्ड दिलाने के लिये बाँधकर यरूशलेम में लाऊँ। (IN)

प्रेरितों के काम 22:6 ¶ “जब मैं यात्रा करके दमिश्क के निकट पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग अचानक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी। (IN)

प्रेरितों के काम 22:7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह वाणी सुनी, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?’ (IN)

प्रेरितों के काम 22:8 मैंने उत्तर दिया, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ उसने मुझसे कहा, ‘मैं यीशु नासरी हूँ, जिसे तू सताता है।’ (IN)

प्रेरितों के काम 22:9 ¶ और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझसे बोलता था उसकी वाणी न सुनी। (IN)

प्रेरितों के काम 22:10 तब मैंने कहा, ‘हे प्रभु, मैं क्या करूँ?’ प्रभु ने मुझसे कहा, ‘उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहाँ तुझे सब बता दिया जाएगा।’ (IN)

प्रेरितों के काम 22:11 जब उस ज्योति के तेज के कारण मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया। (IN)

प्रेरितों के काम 22:12 ¶ “तब हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहाँ के रहनेवाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया, (IN)

प्रेरितों के काम 22:13 और खड़ा होकर मुझसे कहा, ‘हे भाई शाऊल, फिर देखने लग।’ उसी घड़ी मेरी आँखें खुल गई और मैंने उसे देखा। (IN)

प्रेरितों के काम 22:14 ¶ तब उसने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्‍वर ने तुझे इसलिए ठहराया है कि तू उसकी इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुँह से बातें सुने। (IN)

प्रेरितों के काम 22:15 क्योंकि तू उसकी ओर से सब मनुष्यों के सामने उन बातों का गवाह होगा, जो तूने देखी और सुनी हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 22:16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल।’ (IN)

प्रेरितों के काम 22:17 ¶ “जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया। (IN)

प्रेरितों के काम 22:18 और उसको देखा कि मुझसे कहता है, ‘जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा; क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।’ (IN)

प्रेरितों के काम 22:19 ¶ मैंने कहा, ‘हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करनेवालों को बन्दीगृह में डालता और जगह-जगह आराधनालय में पिटवाता था। (IN)

प्रेरितों के काम 22:20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लहू बहाया जा रहा था तब भी मैं वहाँ खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके हत्यारों के कपड़ों की रखवाली करता था।’ (IN)

प्रेरितों के काम 22:21 और उसने मुझसे कहा, ‘चला जा: क्योंकि मैं तुझे अन्यजातियों के पास दूर-दूर भेजूँगा’।” (IN)

प्रेरितों के काम 22:22 ¶ वे इस बात तक उसकी सुनते रहे; तब ऊँचे शब्द से चिल्लाए, “ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहना उचित नहीं!” (IN)

प्रेरितों के काम 22:23 जब वे चिल्लाते और कपड़े फेंकते और आकाश में धूल उड़ाते थे; (IN)

प्रेरितों के काम 22:24 तो सैन्य-दल के सूबेदार ने कहा, “इसे गढ़ में ले जाओ; और कोड़े मारकर जाँचो, कि मैं जानूँ कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 22:25 ¶ जब उन्होंने उसे तसमों से बाँधा तो पौलुस ने उस सूबेदार से जो उसके पास खड़ा था कहा, “क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो?” (IN)

प्रेरितों के काम 22:26 सूबेदार ने यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार के पास जाकर कहा, “तू यह क्या करता है? यह तो रोमी मनुष्य है।” (IN)

प्रेरितों के काम 22:27 ¶ तब सैन्य-दल के सरदार ने उसके पास आकर कहा, “मुझे बता, क्या तू रोमी है?” उसने कहा, “हाँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 22:28 यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार ने कहा, “मैंने रोमी होने का पद बहुत रुपये देकर पाया है।” पौलुस ने कहा, “मैं तो जन्म से रोमी हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 22:29 तब जो लोग उसे जाँचने पर थे, वे तुरन्त उसके पास से हट गए; और सैन्य-दल का सरदार भी यह जानकर कि यह रोमी है, और उसने उसे बाँधा है, डर गया। (IN)

प्रेरितों के काम 22:30 ¶ दूसरे दिन वह ठीक-ठीक जानने की इच्छा से कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगाते हैं, इसलिए उसके बन्धन खोल दिए; और प्रधान याजकों और सारी महासभा को इकट्ठे होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 23:1 ¶ पौलुस ने महासभा की ओर टकटकी लगाकर देखा, और कहा, “हे भाइयों, मैंने आज तक परमेश्‍वर के लिये बिलकुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया है।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:2 हनन्याह महायाजक ने, उनको जो उसके पास खड़े थे, उसके मुँह पर थप्पड़ मारने की आज्ञा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 23:3 तब पौलुस ने उससे कहा, “हे चूना फिरी हुई दीवार, परमेश्‍वर तुझे मारेगा। तू व्यवस्था के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्था के विरुद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है?” (IN)

प्रेरितों के काम 23:4 ¶ जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, “क्या तू परमेश्‍वर के महायाजक को बुरा-भला कहता है?” (IN)

प्रेरितों के काम 23:5 पौलुस ने कहा, “हे भाइयों, मैं नहीं जानता था, कि यह महायाजक है; क्योंकि लिखा है, (IN)

प्रेरितों के काम 23:6 ¶ तब पौलुस ने यह जानकर, कि एक दल सदूकियों और दूसरा फरीसियों का है, महासभा में पुकारकर कहा, “हे भाइयों, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूँ, मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:7 जब उसने यह बात कही तो फरीसियों और सदूकियों में झगड़ा होने लगा; और सभा में फूट पड़ गई। (IN)

प्रेरितों के काम 23:8 क्योंकि सदूकी तो यह कहते हैं, कि न पुनरुत्थान है, न स्वर्गदूत और न आत्मा है; परन्तु फरीसी इन सबको मानते हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 23:9 ¶ तब बड़ा हल्ला मचा और कुछ शास्त्री जो फरीसियों के दल के थे, उठकर यह कहकर झगड़ने लगे, “हम इस मनुष्य में कुछ बुराई नहीं पाते; और यदि कोई आत्मा या स्वर्गदूत उससे बोला है तो फिर क्या?” (IN)

प्रेरितों के काम 23:10 जब बहुत झगड़ा हुआ, तो सैन्य-दल के सरदार ने इस डर से कि वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर डालें, सैन्य-दल को आज्ञा दी कि उतरकर उसको उनके बीच में से जबरदस्ती निकालो, और गढ़ में ले आओ। (IN)

प्रेरितों के काम 23:11 ¶ उसी रात प्रभु ने उसके पास आ खड़े होकर कहा, “हे पौलुस, धैर्य रख; क्योंकि जैसी तूने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:12 ¶ जब दिन हुआ, तो यहूदियों ने एका किया, और शपथ खाई कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, यदि हम खाएँ या पीएँ तो हम पर धिक्कार। (IN)

प्रेरितों के काम 23:13 जिन्होंने यह शपथ खाई थी, वे चालीस जन से अधिक थे। (IN)

प्रेरितों के काम 23:14 ¶ उन्होंने प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास आकर कहा, “हमने यह ठाना है कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक यदि कुछ भी खाएँ, तो हम पर धिक्कार है। (IN)

प्रेरितों के काम 23:15 इसलिए अब महासभा समेत सैन्य-दल के सरदार को समझाओ, कि उसे तुम्हारे पास ले आए, मानो कि तुम उसके विषय में और भी ठीक से जाँच करना चाहते हो, और हम उसके पहुँचने से पहले ही उसे मार डालने के लिये तैयार रहेंगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:16 ¶ और पौलुस के भांजे ने सुना कि वे उसकी घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 23:17 पौलुस ने सूबेदारों में से एक को अपने पास बुलाकर कहा, “इस जवान को सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाओ, यह उससे कुछ कहना चाहता है।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:18 ¶ अतः उसने उसको सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाकर कहा, “बन्दी पौलुस ने मुझे बुलाकर विनती की, कि यह जवान सैन्य-दल के सरदार से कुछ कहना चाहता है; इसे उसके पास ले जा।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:19 सैन्य-दल के सरदार ने उसका हाथ पकड़कर, और उसे अलग ले जाकर पूछा, “तू मुझसे क्या कहना चाहता है?” (IN)

प्रेरितों के काम 23:20 ¶ उसने कहा, “यहूदियों ने एका किया है, कि तुझ से विनती करें कि कल पौलुस को महासभा में लाए, मानो तू और ठीक से उसकी जाँच करना चाहता है। (IN)

प्रेरितों के काम 23:21 परन्तु उनकी मत मानना, क्योंकि उनमें से चालीस के ऊपर मनुष्य उसकी घात में हैं, जिन्होंने यह ठान लिया है कि जब तक वे पौलुस को मार न डालें, तब तक न खाएँगे और न पीएँगे, और अब वे तैयार हैं और तेरे वचन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:22 ¶ तब सैन्य-दल के सरदार ने जवान को यह निर्देश देकर विदा किया, “किसी से न कहना कि तूने मुझ को ये बातें बताई हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:23 ¶ उसने तब दो सूबेदारों को बुलाकर कहा, “दो सौ सिपाही, सत्तर सवार, और दो सौ भालैत को कैसरिया जाने के लिये तैयार कर रख, तू रात के तीसरे पहर को निकलना।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:24 और पौलुस की सवारी के लिये घोड़े तैयार रखो कि उसे फेलिक्स राज्यपाल के पास सुरक्षित पहुँचा दें।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:25 ¶ उसने इस प्रकार की चिट्ठी भी लिखी: (IN)

प्रेरितों के काम 23:26 ¶ “महाप्रतापी फेलिक्स राज्यपाल को क्लौदियुस लूसियास को नमस्कार; (IN)

प्रेरितों के काम 23:27 इस मनुष्य को यहूदियों ने पकड़कर मार डालना चाहा, परन्तु जब मैंने जाना कि वो रोमी है, तो सैन्य-दल लेकर छुड़ा लाया। (IN)

प्रेरितों के काम 23:28 ¶ और मैं जानना चाहता था, कि वे उस पर किस कारण दोष लगाते हैं, इसलिए उसे उनकी महासभा में ले गया। (IN)

प्रेरितों के काम 23:29 तब मैंने जान लिया, कि वे अपनी व्यवस्था के विवादों के विषय में उस पर दोष लगाते हैं, परन्तु मार डाले जाने या बाँधे जाने के योग्य उसमें कोई दोष नहीं। (IN)

प्रेरितों के काम 23:30 और जब मुझे बताया गया, कि वे इस मनुष्य की घात में लगे हैं तो मैंने तुरन्त उसको तेरे पास भेज दिया; और मुद्दइयों को भी आज्ञा दी, कि तेरे सामने उस पर आरोप लगाए।” (IN)

प्रेरितों के काम 23:31 ¶ अतः जैसे सिपाहियों को आज्ञा दी गई थी, वैसे ही पौलुस को लेकर रातों-रात अन्तिपत्रिस में लाए। (IN)

प्रेरितों के काम 23:32 दूसरे दिन वे सवारों को उसके साथ जाने के लिये छोड़कर आप गढ़ को लौटे। (IN)

प्रेरितों के काम 23:33 उन्होंने कैसरिया में पहुँचकर राज्यपाल को चिट्ठी दी; और पौलुस को भी उसके सामने खड़ा किया। (IN)

प्रेरितों के काम 23:34 ¶ उसने पढ़कर पूछा, “यह किस प्रदेश का है?” (IN)

प्रेरितों के काम 23:35 और जब जान लिया कि किलिकिया का है; तो उससे कहा, “जब तेरे मुद्दई भी आएँगें, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूँगा।” और उसने उसे हेरोदेस के किले में, पहरे में रखने की आज्ञा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 24:1 ¶ पाँच दिन के बाद हनन्याह महायाजक कई प्राचीनों और तिरतुल्लुस नामक किसी वकील को साथ लेकर आया; उन्होंने राज्यपाल के सामने पौलुस पर दोषारोपण किया। (IN)

प्रेरितों के काम 24:2 जब वह बुलाया गया तो तिरतुल्लुस उस पर दोष लगाकर कहने लगा, “हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरे द्वारा हमें जो बड़ा कुशल होता है; और तेरे प्रबन्ध से इस जाति के लिये कितनी बुराइयाँ सुधरती जाती हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 24:3 ¶ इसको हम हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद के साथ मानते हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 24:4 ¶ परन्तु इसलिए कि तुझे और दुःख नहीं देना चाहता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि कृपा करके हमारी दो एक बातें सुन ले। (IN)

प्रेरितों के काम 24:5 क्योंकि हमने इस मनुष्य को उपद्रवी और जगत के सारे यहूदियों में बलवा करानेवाला, और नासरियों के कुपंथ का मुखिया पाया है। (IN)

प्रेरितों के काम 24:6 उसने मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा, और तब हमने उसे बन्दी बना लिया। [हमने उसे अपनी व्यवस्था के अनुसार दण्ड दिया होता; (IN)

प्रेरितों के काम 24:7 ¶ परन्तु सैन्य-दल के सरदार लूसियास ने आकर उसे बलपूर्वक हमारे हाथों से छीन लिया, (IN)

प्रेरितों के काम 24:8 और इस पर दोष लगाने वालों को तेरे सम्मुख आने की आज्ञा दी।] इन सब बातों को जिनके विषय में हम उस पर दोष लगाते हैं, तू स्वयं उसको जाँच करके जान लेगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 24:9 यहूदियों ने भी उसका साथ देकर कहा, ये बातें इसी प्रकार की हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 24:10 ¶ जब राज्यपाल ने पौलुस को बोलने के लिये संकेत किया तो उसने उत्तर दिया: “मैं यह जानकर कि तू बहुत वर्षों से इस जाति का न्याय करता है, आनन्द से अपना प्रत्युत्तर देता हूँ।, (IN)

प्रेरितों के काम 24:11 तू आप जान सकता है, कि जब से मैं यरूशलेम में आराधना करने को आया, मुझे बारह दिन से ऊपर नहीं हुए। (IN)

प्रेरितों के काम 24:12 उन्होंने मुझे न मन्दिर में, न आराधनालयों में, न नगर में किसी से विवाद करते या भीड़ लगाते पाया; (IN)

प्रेरितों के काम 24:13 और न तो वे उन बातों को, जिनके विषय में वे अब मुझ पर दोष लगाते हैं, तेरे सामने उन्हें सच प्रमाणित कर सकते हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 24:14 ¶ परन्तु यह मैं तेरे सामने मान लेता हूँ, कि जिस पंथ को वे कुपंथ कहते हैं, उसी की रीति पर मैं अपने पूर्वजों के परमेश्‍वर की सेवा करता हूँ; और जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी हैं, उन सब पर विश्वास करता हूँ। (IN)

प्रेरितों के काम 24:15 और परमेश्‍वर से आशा रखता हूँ जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा। (IN)

प्रेरितों के काम 24:16 इससे मैं आप भी यत्न करता हूँ, कि परमेश्‍वर की और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 24:17 ¶ बहुत वर्षों के बाद मैं अपने लोगों को दान पहुँचाने, और भेंट चढ़ाने आया था। (IN)

प्रेरितों के काम 24:18 उन्होंने मुझे मन्दिर में, शुद्ध दशा में, बिना भीड़ के साथ, और बिना दंगा करते हुए इस काम में पाया। परन्तु वहाँ आसिया के कुछ यहूदी थे - और उनको उचित था, (IN)

प्रेरितों के काम 24:19 कि यदि मेरे विरोध में उनकी कोई बात हो तो यहाँ तेरे सामने आकर मुझ पर दोष लगाते। (IN)

प्रेरितों के काम 24:20 ¶ या ये आप ही कहें, कि जब मैं महासभा के सामने खड़ा था, तो उन्होंने मुझ में कौन सा अपराध पाया? (IN)

प्रेरितों के काम 24:21 इस एक बात को छोड़ जो मैंने उनके बीच में खड़े होकर पुकारकर कहा था, ‘मरे हुओं के जी उठने के विषय में आज मेरा तुम्हारे सामने मुकद्दमा हो रहा है’।” (IN)

प्रेरितों के काम 24:22 ¶ फेलिक्स ने जो इस पंथ की बातें ठीक-ठीक जानता था, उन्हें यह कहकर टाल दिया, “जब सैन्य-दल का सरदार लूसियास आएगा, तो तुम्हारी बात का निर्णय करूँगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 24:23 और सूबेदार को आज्ञा दी, कि पौलुस को कुछ छूट में रखकर रखवाली करना, और उसके मित्रों में से किसी को भी उसकी सेवा करने से न रोकना। (IN)

प्रेरितों के काम 24:24 ¶ कुछ दिनों के बाद फेलिक्स अपनी पत्‍नी द्रुसिल्ला को, जो यहूदिनी थी, साथ लेकर आया और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उससे सुना। (IN)

प्रेरितों के काम 24:25 जब वह धार्मिकता और संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा कर रहा था, तो फेलिक्स ने भयभीत होकर उत्तर दिया, “अभी तो जा; अवसर पा कर मैं तुझे फिर बुलाऊँगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 24:26 ¶ उसे पौलुस से कुछ धन मिलने की भी आशा थी; इसलिए और भी बुला-बुलाकर उससे बातें किया करता था। (IN)

प्रेरितों के काम 24:27 परन्तु जब दो वर्ष बीत गए, तो पुरकियुस फेस्तुस, फेलिक्स की जगह पर आया, और फेलिक्स यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को बन्दी ही छोड़ गया। (IN)

प्रेरितों के काम 25:1 ¶ फेस्तुस उस प्रान्त में पहुँचकर तीन दिन के बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। (IN)

प्रेरितों के काम 25:2 तब प्रधान याजकों ने, और यहूदियों के प्रमुख लोगों ने, उसके सामने पौलुस पर दोषारोपण की; (IN)

प्रेरितों के काम 25:3 और उससे विनती करके उसके विरोध में यह चाहा कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात लगाए हुए थे। (IN)

प्रेरितों के काम 25:4 ¶ फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में कैदी है, और मैं स्वयं जल्द वहाँ जाऊँगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 25:5 फिर कहा, “तुम से जो अधिकार रखते हैं, वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 25:6 ¶ उनके बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस को लाने की आज्ञा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 25:7 जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस-पास खड़े होकर उस पर बहुत से गम्भीर दोष लगाए, जिनका प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 25:8 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के और न मन्दिर के, और न कैसर के विरुद्ध कोई अपराध किया है।” (IN)

प्रेरितों के काम 25:9 ¶ तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, “क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहाँ मेरे सामने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए?” (IN)

प्रेरितों के काम 25:10 ¶ पौलुस ने कहा, “मैं कैसर के न्याय आसन के सामने खड़ा हूँ; मेरे मुकद्दमें का यहीं फैसला होना चाहिए। जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैंने कुछ अपराध नहीं किया। (IN)

प्रेरितों के काम 25:11 ¶ यदि अपराधी हूँ और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है, तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उनमें से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उनके हाथ नहीं सौंप सकता। मैं कैसर की दुहाई देता हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 25:12 तब फेस्तुस ने मंत्रियों की सभा के साथ विचार करके उत्तर दिया, “तूने कैसर की दुहाई दी है, तो तू कैसर के पास ही जाएगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 25:13 ¶ कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। (IN)

प्रेरितों के काम 25:14 उनके बहुत दिन वहाँ रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस के विषय में राजा को बताया, “एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्दी छोड़ गया है। (IN)

प्रेरितों के काम 25:15 जब मैं यरूशलेम में था, तो प्रधान याजकों और यहूदियों के प्राचीनों ने उस पर दोषारोपण किया और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 25:16 परन्तु मैंने उनको उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक आरोपी को अपने दोष लगाने वालों के सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले। (IN)

प्रेरितों के काम 25:17 ¶ अतः जब वे यहाँ उपस्थित हुए, तो मैंने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 25:18 जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। (IN)

प्रेरितों के काम 25:19 परन्तु अपने मत के, और यीशु नामक किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था, और पौलुस उसको जीवित बताता था, विवाद करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 25:20 और मैं उलझन में था, कि इन बातों का पता कैसे लगाऊँ? इसलिए मैंने उससे पूछा, ‘क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहाँ इन बातों का फैसला हो?’ (IN)

प्रेरितों के काम 25:21 ¶ परन्तु जब पौलुस ने दुहाई दी, कि मेरे मुकद्दमें का फैसला महाराजाधिराज के यहाँ हो; तो मैंने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूँ, उसकी रखवाली की जाए।” (IN)

प्रेरितों के काम 25:22 तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “मैं भी उस मनुष्य की सुनना चाहता हूँ। उसने कहा, “तू कल सुन लेगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 25:23 ¶ अतः दूसरे दिन, जब अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम से आकर सैन्य-दल के सरदारों और नगर के प्रमुख लोगों के साथ दरबार में पहुँचे। तब फेस्तुस ने आज्ञा दी, कि वे पौलुस को ले आएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 25:24 फेस्तुस ने कहा, “हे महाराजा अग्रिप्पा, और हे सब मनुष्यों जो यहाँ हमारे साथ हो, तुम इस मनुष्य को देखते हो, जिसके विषय में सारे यहूदियों ने यरूशलेम में और यहाँ भी चिल्ला-चिल्लाकर मुझसे विनती की, कि इसका जीवित रहना उचित नहीं। (IN)

प्रेरितों के काम 25:25 ¶ परन्तु मैंने जान लिया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया कि मार डाला जाए; और जब कि उसने आप ही महाराजाधिराज की दुहाई दी, तो मैंने उसे भेजने का निर्णय किया। (IN)

प्रेरितों के काम 25:26 परन्तु मैंने उसके विषय में कोई ठीक बात नहीं पाई कि महाराजाधिराज को लिखूँ, इसलिए मैं उसे तुम्हारे सामने और विशेष करके हे राजा अग्रिप्पा तेरे सामने लाया हूँ, कि जाँचने के बाद मुझे कुछ लिखने को मिले। (IN)

प्रेरितों के काम 25:27 क्योंकि बन्दी को भेजना और जो दोष उस पर लगाए गए, उन्हें न बताना, मुझे व्यर्थ समझ पड़ता है।” (IN)

प्रेरितों के काम 26:1 ¶ अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तुझे अपने विषय में बोलने की अनुमति है।” तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा, (IN)

प्रेरितों के काम 26:2 ¶ “हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातों का यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं, आज तेरे सामने उनका उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूँ, (IN)

प्रेरितों के काम 26:3 विशेष करके इसलिए कि तू यहूदियों के सब प्रथाओं और विवादों को जानता है। अतः मैं विनती करता हूँ, धीरज से मेरी सुन ले। (IN)

प्रेरितों के काम 26:4 ¶ “जैसा मेरा चाल-चलन आरम्भ से अपनी जाति के बीच और यरूशलेम में जैसा था, यह सब यहूदी जानते हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 26:5 वे यदि गवाही देना चाहते हैं, तो आरम्भ से मुझे पहचानते हैं, कि मैं फरीसी होकर अपने धर्म के सबसे खरे पंथ के अनुसार चला। (IN)

प्रेरितों के काम 26:6 ¶ और अब उस प्रतिज्ञा की आशा के कारण जो परमेश्‍वर ने हमारे पूर्वजों से की थी, मुझ पर मुकद्दमा चल रहा है। (IN)

प्रेरितों के काम 26:7 उसी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए, हमारे बारहों गोत्र अपने सारे मन से रात-दिन परमेश्‍वर की सेवा करते आए हैं। हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 26:8 जब कि परमेश्‍वर मरे हुओं को जिलाता है, तो तुम्हारे यहाँ यह बात क्यों विश्वास के योग्य नहीं समझी जाती? (IN)

प्रेरितों के काम 26:9 ¶ “मैंने भी समझा था कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए। (IN)

प्रेरितों के काम 26:10 और मैंने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और प्रधान याजकों से अधिकार पा कर बहुत से पवित्र लोगों को बन्दीगृह में डाला, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उनके विरोध में अपनी सम्मति देता था। (IN)

प्रेरितों के काम 26:11 और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला-दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहाँ तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था। (IN)

प्रेरितों के काम 26:12 ¶ “इसी धुन में जब मैं प्रधान याजकों से अधिकार और आज्ञा-पत्र लेकर दमिश्क को जा रहा था; (IN)

प्रेरितों के काम 26:13 तो हे राजा, मार्ग में दोपहर के समय मैंने आकाश से सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति, अपने और अपने साथ चलनेवालों के चारों ओर चमकती हुई देखी। (IN)

प्रेरितों के काम 26:14 और जब हम सब भूमि पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में, मुझसे कहते हुए यह वाणी सुनी, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है।’ (IN)

प्रेरितों के काम 26:15 ¶ मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है। (IN)

प्रेरितों के काम 26:16 परन्तु तू उठ, अपने पाँवों पर खड़ा हो; क्योंकि मैंने तुझे इसलिए दर्शन दिया है कि तुझे उन बातों का भी सेवक और गवाह ठहराऊँ, जो तूने देखी हैं, और उनका भी जिनके लिये मैं तुझे दर्शन दूँगा। (IN)

प्रेरितों के काम 26:17 और मैं तुझे तेरे लोगों से और अन्यजातियों से बचाता रहूँगा, जिनके पास मैं अब तुझे इसलिए भेजता हूँ। (IN)

प्रेरितों के काम 26:18 कि तू उनकी आँखें खोले, कि वे अंधकार से ज्योति की ओर, और शैतान के अधिकार से परमेश्‍वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और उन लोगों के साथ जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, विरासत पाएँ।’ (IN)

प्रेरितों के काम 26:19 ¶ अतः हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की बात न टाली, (IN)

प्रेरितों के काम 26:20 परन्तु पहले दमिश्क के, फिर यरूशलेम के रहनेवालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्‍वर की ओर फिरकर मन फिराव के योग्य काम करो। (IN)

प्रेरितों के काम 26:21 इन बातों के कारण यहूदी मुझे मन्दिर में पकड़कर मार डालने का यत्न करते थे। (IN)

प्रेरितों के काम 26:22 ¶ परन्तु परमेश्‍वर की सहायता से मैं आज तक बना हूँ और छोटे बड़े सभी के सामने गवाही देता हूँ, और उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं, (IN)

प्रेरितों के काम 26:23 कि मसीह को दुःख उठाना होगा, और वही सबसे पहले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगों में और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 26:24 ¶ जब वह इस रीति से उत्तर दे रहा था, तो फेस्तुस ने ऊँचे शब्द से कहा, “हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है।” (IN)

प्रेरितों के काम 26:25 परन्तु उसने कहा, “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ। (IN)

प्रेरितों के काम 26:26 राजा भी जिसके सामने मैं निडर होकर बोल रहा हूँ, ये बातें जानता है, और मुझे विश्वास है, कि इन बातों में से कोई उससे छिपी नहीं, क्योंकि वह घटना तो कोने में नहीं हुई। (IN)

प्रेरितों के काम 26:27 ¶ हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करता है? हाँ, मैं जानता हूँ, कि तू विश्वास करता है।” (IN)

प्रेरितों के काम 26:28 अब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “क्या तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है?” (IN)

प्रेरितों के काम 26:29 पौलुस ने कहा, “परमेश्‍वर से मेरी प्रार्थना यह है कि क्या थोड़े में, क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं, परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, मेरे इन बन्धनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 26:30 ¶ तब राजा और राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठनेवाले उठ खड़े हुए; (IN)

प्रेरितों के काम 26:31 और अलग जाकर आपस में कहने लगे, “यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता, जो मृत्यु-दण्ड या बन्दीगृह में डाले जाने के योग्य हो। (IN)

प्रेरितों के काम 26:32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि यह मनुष्य कैसर की दुहाई न देता, तो छूट सकता था।” (IN)

प्रेरितों के काम 27:1 ¶ जब यह निश्चित हो गया कि हम जहाज द्वारा इतालिया जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और कुछ अन्य बन्दियों को भी यूलियुस नामक औगुस्तुस की सैन्य-दल के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 27:2 अद्रमुत्तियुम के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हमने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नामक थिस्सलुनीके का एक मकिदुनी हमारे साथ था। (IN)

प्रेरितों के काम 27:3 ¶ दूसरे दिन हमने सीदोन में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। (IN)

प्रेरितों के काम 27:4 वहाँ से जहाज खोलकर हवा विरुद्ध होने के कारण हम साइप्रस की आड़ में होकर चले; (IN)

प्रेरितों के काम 27:5 और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया के मूरा में उतरे। (IN)

प्रेरितों के काम 27:6 वहाँ सूबेदार को सिकन्दरिया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 27:7 ¶ जब हम बहुत दिनों तक धीरे-धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के सामने पहुँचे, तो इसलिए कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले; (IN)

प्रेरितों के काम 27:8 और उसके किनारे-किनारे कठिनता से चलकर ‘शुभलंगरबारी’ नामक एक जगह पहुँचे, जहाँ से लसया नगर निकट था। (IN)

प्रेरितों के काम 27:9 ¶ जब बहुत दिन बीत गए, और जलयात्रा में जोखिम इसलिए होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर चेतावनी दी, (IN)

प्रेरितों के काम 27:10 “हे सज्जनों, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” (IN)

प्रेरितों के काम 27:11 परन्तु सूबेदार ने कप्ता‍न और जहाज के स्वामी की बातों को पौलुस की बातों से बढ़कर माना। (IN)

प्रेरितों के काम 27:12 ¶ वह बन्दरगाह जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिए बहुतों का विचार हुआ कि वहाँ से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके तो फीनिक्स में पहुँचकर जाड़ा काटें। यह तो क्रेते का एक बन्दरगाह है जो दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर खुलता है। (IN)

प्रेरितों के काम 27:13 ¶ जब दक्षिणी हवा बहने लगी, तो उन्होंने सोचा कि उन्हें जिसकी जरूरत थी वह उनके पास थी, इसलिए लंगर उठाया और किनारे के किनारे, समुद्र तट के पास चल दिए। (IN)

प्रेरितों के काम 27:14 ¶ परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आँधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है। (IN)

प्रेरितों के काम 27:15 जब आँधी जहाज पर लगी, तब वह हवा के सामने ठहर न सका, अतः हमने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 27:16 तब कौदा नामक एक छोटे से टापू की आड़ में बहते-बहते हम कठिनता से डोंगी को वश में कर सके। (IN)

प्रेरितों के काम 27:17 ¶ फिर मल्लाहों ने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बाँधा, और सुरतिस के रेत पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर बहते हुए चले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 27:18 और जब हमने आँधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे; (IN)

प्रेरितों के काम 27:19 ¶ और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज-सामान भी फेंक दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 27:20 और जब बहुत दिनों तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आँधी चल रही थी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। (IN)

प्रेरितों के काम 27:21 ¶ जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़ा होकर कहा, “हे लोगों, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हानि उठाते। (IN)

प्रेरितों के काम 27:22 ¶ परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूँ कि ढाढ़स बाँधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की। (IN)

प्रेरितों के काम 27:23 क्योंकि परमेश्‍वर जिसका मैं हूँ, और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 27:24 ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। और देख, परमेश्‍वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’ (IN)

प्रेरितों के काम 27:25 इसलिए, हे सज्जनों, ढाढ़स बाँधो; क्योंकि मैं परमेश्‍वर पर विश्वास करता हूँ, कि जैसा मुझसे कहा गया है, वैसा ही होगा। (IN)

प्रेरितों के काम 27:26 परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 27:27 ¶ जब चौदहवीं रात हुई, और हम अद्रिया समुद्र में भटक रहे थे, तो आधी रात के निकट मल्लाहों ने अनुमान से जाना कि हम किसी देश के निकट पहुँच रहे हैं। (IN)

प्रेरितों के काम 27:28 थाह लेकर उन्होंने बीस पुरसा गहरा पाया और थोड़ा आगे बढ़कर फिर थाह ली, तो पन्द्रह पुरसा पाया। (IN)

प्रेरितों के काम 27:29 तब पत्थरीली जगहों पर पड़ने के डर से उन्होंने जहाज के पीछे चार लंगर डाले, और भोर होने की कामना करते रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 27:30 ¶ परन्तु जब मल्लाह जहाज पर से भागना चाहते थे, और गलही से लंगर डालने के बहाने डोंगी समुद्र में उतार दी; (IN)

प्रेरितों के काम 27:31 तो पौलुस ने सूबेदार और सिपाहियों से कहा, “यदि ये जहाज पर न रहें, तो तुम भी नहीं बच सकते।” (IN)

प्रेरितों के काम 27:32 तब सिपाहियों ने रस्से काटकर डोंगी गिरा दी। (IN)

प्रेरितों के काम 27:33 ¶ जब भोर होने पर था, तो पौलुस ने यह कहकर, सब को भोजन करने को समझाया, “आज चौदह दिन हुए कि तुम आस देखते-देखते भूखे रहे, और कुछ भोजन न किया। (IN)

प्रेरितों के काम 27:34 इसलिए तुम्हें समझाता हूँ कि कुछ खा लो, जिससे तुम्हारा बचाव हो; क्योंकि तुम में से किसी के सिर का एक बाल भी न गिरेगा।” (IN)

प्रेरितों के काम 27:35 और यह कहकर उसने रोटी लेकर सब के सामने परमेश्‍वर का धन्यवाद किया और तोड़कर खाने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 27:36 ¶ तब वे सब भी ढाढ़स बाँधकर भोजन करने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 27:37 हम सब मिलकर जहाज पर दो सौ छिहत्तर जन थे। (IN)

प्रेरितों के काम 27:38 जब वे भोजन करके तृप्त हुए, तो गेहूँ को समुद्र में फेंककर जहाज हलका करने लगे। (IN)

प्रेरितों के काम 27:39 ¶ जब दिन निकला, तो उन्होंने उस देश को नहीं पहचाना, परन्तु एक खाड़ी देखी जिसका चौरस किनारा था, और विचार किया कि यदि हो सके तो इसी पर जहाज को टिकाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 27:40 तब उन्होंने लंगरों को खोलकर समुद्र में छोड़ दिया और उसी समय पतवारों के बन्धन खोल दिए, और हवा के सामने अगला पाल चढ़ाकर किनारे की ओर चले। (IN)

प्रेरितों के काम 27:41 परन्तु दो समुद्र के संगम की जगह पड़कर उन्होंने जहाज को टिकाया, और गलही तो धक्का खाकर गड़ गई, और टल न सकी; परन्तु जहाज का पीछला भाग लहरों के बल से टूटने लगा। (IN)

प्रेरितों के काम 27:42 ¶ तब सिपाहियों का यह विचार हुआ कि बन्दियों को मार डालें; ऐसा न हो कि कोई तैर कर निकल भागे। (IN)

प्रेरितों के काम 27:43 परन्तु सूबेदार ने पौलुस को बचाने की इच्छा से उन्हें इस विचार से रोका, और यह कहा, कि जो तैर सकते हैं, पहले कूदकर किनारे पर निकल जाएँ। (IN)

प्रेरितों के काम 27:44 और बाकी कोई पटरों पर, और कोई जहाज की अन्य वस्तुओं के सहारे निकल जाएँ, इस रीति से सब कोई भूमि पर बच निकले। (IN)

प्रेरितों के काम 28:1 ¶ जब हम बच निकले, तो पता चला कि यह टापू माल्टा कहलाता है। (IN)

प्रेरितों के काम 28:2 और वहाँ के निवासियों ने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह के कारण जो बरस रहा था और जाड़े के कारण, उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया। (IN)

प्रेरितों के काम 28:3 ¶ जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो एक साँप आँच पा कर निकला और उसके हाथ से लिपट गया। (IN)

प्रेरितों के काम 28:4 जब उन निवासियों ने साँप को उसके हाथ में लटके हुए देखा, तो आपस में कहा, “सचमुच यह मनुष्य हत्यारा है, कि यद्यपि समुद्र से बच गया, तो भी न्याय ने जीवित रहने न दिया।” (IN)

प्रेरितों के काम 28:5 ¶ तब उसने साँप को आग में झटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुँची। (IN)

प्रेरितों के काम 28:6 परन्तु वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह सूज जाएगा, या एकाएक गिरके मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे और देखा कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो और ही विचार कर कहा, “यह तो कोई देवता है।” (IN)

प्रेरितों के काम 28:7 ¶ उस जगह के आस-पास पुबलियुस नामक उस टापू के प्रधान की भूमि थी: उसने हमें अपने घर ले जाकर तीन दिन मित्रभाव से पहुनाई की। (IN)

प्रेरितों के काम 28:8 पुबलियुस के पिता तेज बुखार और पेचिश से रोगी पड़ा था। अतः पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्थना की, और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया। (IN)

प्रेरितों के काम 28:9 जब ऐसा हुआ, तो उस टापू के बाकी बीमार आए, और चंगे किए गए। (IN)

प्रेरितों के काम 28:10 उन्होंने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे, तो जो कुछ हमारे लिये आवश्यक था, जहाज पर रख दिया। (IN)

प्रेरितों के काम 28:11 ¶ तीन महीने के बाद हम सिकन्दरिया के एक जहाज पर चल निकले, जो उस टापू में जाड़े काट रहा था, और जिसका चिन्ह दियुसकूरी था। (IN)

प्रेरितों के काम 28:12 सुरकूसा में लंगर डाल करके हम तीन दिन टिके रहे। (IN)

प्रेरितों के काम 28:13 ¶ वहाँ से हम घूमकर रेगियुम में आए; और एक दिन के बाद दक्षिणी हवा चली, तब दूसरे दिन पुतियुली में आए। (IN)

प्रेरितों के काम 28:14 वहाँ हमको कुछ भाई मिले, और उनके कहने से हम उनके यहाँ सात दिन तक रहे; और इस रीति से हम रोम को चले। (IN)

प्रेरितों के काम 28:15 वहाँ से वे भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन-सराए तक हमारी भेंट करने को निकल आए, जिन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्‍वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बाँधा। (IN)

प्रेरितों के काम 28:16 ¶ जब हम रोम में पहुँचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उसकी रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई। (IN)

प्रेरितों के काम 28:17 ¶ तीन दिन के बाद उसने यहूदियों के प्रमुख लोगों को बुलाया, और जब वे इकट्ठे हुए तो उनसे कहा, “हे भाइयों, मैंने अपने लोगों के या पूर्वजों की प्रथाओं के विरोध में कुछ भी नहीं किया, फिर भी बन्दी बनाकर यरूशलेम से रोमियों के हाथ सौंपा गया। (IN)

प्रेरितों के काम 28:18 उन्होंने मुझे जाँच कर छोड़ देना चाहा, क्योंकि मुझ में मृत्यु के योग्य कोई दोष न था। (IN)

प्रेरितों के काम 28:19 ¶ परन्तु जब यहूदी इसके विरोध में बोलने लगे, तो मुझे कैसर की दुहाई देनी पड़ी; यह नहीं कि मुझे अपने लोगों पर कोई दोष लगाना था। (IN)

प्रेरितों के काम 28:20 इसलिए मैंने तुम को बुलाया है, कि तुम से मिलूँ और बातचीत करूँ; क्योंकि इस्राएल की आशा के लिये मैं इस जंजीर से जकड़ा हुआ हूँ।” (IN)

प्रेरितों के काम 28:21 ¶ उन्होंने उससे कहा, “न हमने तेरे विषय में यहूदियों से चिट्ठियाँ पाईं, और न भाइयों में से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा। (IN)

प्रेरितों के काम 28:22 परन्तु तेरा विचार क्या है? वही हम तुझ से सुनना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें करते हैं।” (IN)

प्रेरितों के काम 28:23 ¶ तब उन्होंने उसके लिये एक दिन ठहराया, और बहुत से लोग उसके यहाँ इकट्ठे हुए, और वह परमेश्‍वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा-समझाकर भोर से सांझ तक वर्णन करता रहा। (IN)

प्रेरितों के काम 28:24 तब कुछ ने उन बातों को मान लिया, और कुछ ने विश्वास न किया। (IN)

प्रेरितों के काम 28:25 ¶ जब वे आपस में एकमत न हुए, तो पौलुस के इस एक बात के कहने पर चले गए, “पवित्र आत्मा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा तुम्हारे पूर्वजों से ठीक ही कहा, (IN)

प्रेरितों के काम 28:26 ‘जाकर इन लोगों से कह, (IN)

प्रेरितों के काम 28:27 क्योंकि इन लोगों का मन मोटा, (IN)

प्रेरितों के काम 28:28 ¶ अतः तुम जानो, कि परमेश्‍वर के इस उद्धार की कथा अन्यजातियों के पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे।” (IN)

प्रेरितों के काम 28:29 ¶ जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहाँ से चले गए। (IN)

प्रेरितों के काम 28:30 ¶ और पौलुस पूरे दो वर्ष अपने किराये के घर में रहा, (IN)

प्रेरितों के काम 28:31 और जो उसके पास आते थे, उन सबसे मिलता रहा और बिना रोक-टोक बहुत निडर होकर परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा। (IN)

रोमियों 1:1 ¶ पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और प्रेरित होने के लिये बुलाया गया, और परमेश्‍वर के उस सुसमाचार के लिये अलग किया गया है (IN)

रोमियों 1:2 जिसकी उसने पहले ही से अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्रशास्त्र में, (IN)

रोमियों 1:3 अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की थी, जो शरीर के भाव से तो दाऊद के वंश से उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

रोमियों 1:4 ¶ और पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ्य के साथ परमेश्‍वर का पुत्र ठहरा है। (IN)

रोमियों 1:5 जिसके द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली कि उसके नाम के कारण सब जातियों के लोग विश्वास करके उसकी मानें, (IN)

रोमियों 1:6 जिनमें से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिये बुलाए गए हो। (IN)

रोमियों 1:7 ¶ उन सब के नाम जो रोम में परमेश्‍वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिये बुलाए गए है: हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

रोमियों 1:8 ¶ पहले मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है। (IN)

रोमियों 1:9 परमेश्‍वर जिसकी सेवा मैं अपनी आत्मा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूँ, वही मेरा गवाह है, कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्मरण करता रहता हूँ, (IN)

रोमियों 1:10 और नित्य अपनी प्रार्थनाओं में विनती करता हूँ, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्‍वर की इच्छा से सफल हो। (IN)

रोमियों 1:11 ¶ क्योंकि मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूँ, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक वरदान दूँ जिससे तुम स्थिर हो जाओ, (IN)

रोमियों 1:12 अर्थात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पाऊँ। (IN)

रोमियों 1:13 ¶ और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम इससे अनजान रहो कि मैंने बार-बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियों में फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रुका रहा। (IN)

रोमियों 1:14 मैं यूनानियों और अन्यभाषियों का, और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूँ। (IN)

रोमियों 1:15 इसलिए मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूँ। (IN)

रोमियों 1:16 ¶ क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लज्जाता, इसलिए कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिये, पहले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये, उद्धार के निमित्त परमेश्‍वर की सामर्थ्य है। (IN)

रोमियों 1:17 क्योंकि उसमें परमेश्‍वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, “विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।” (IN)

रोमियों 1:18 ¶ परमेश्‍वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं। (IN)

रोमियों 1:19 इसलिए कि परमेश्‍वर के विषय का ज्ञान उनके मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्‍वर ने उन पर प्रगट किया है। (IN)

रोमियों 1:20 ¶ क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्‍वरत्व, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहाँ तक कि वे निरुत्तर हैं। (IN)

रोमियों 1:21 इस कारण कि परमेश्‍वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्‍वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहाँ तक कि उनका निर्बुद्धि मन अंधेरा हो गया। (IN)

रोमियों 1:22 ¶ वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए, (IN)

रोमियों 1:23 और अविनाशी परमेश्‍वर की महिमा को नाशवान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला। (IN)

रोमियों 1:24 ¶ इस कारण परमेश्‍वर ने उन्हें उनके मन की अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें। (IN)

रोमियों 1:25 क्योंकि उन्होंने परमेश्‍वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन। (IN)

रोमियों 1:26 ¶ इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहाँ तक कि उनकी स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को उससे जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला। (IN)

रोमियों 1:27 वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया। (IN)

रोमियों 1:28 ¶ और जब उन्होंने परमेश्‍वर को पहचानना न चाहा, इसलिए परमेश्‍वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें। (IN)

रोमियों 1:29 ¶ वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैर-भाव से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर, (IN)

रोमियों 1:30 गपशप करनेवाले, निन्दा करनेवाले, परमेश्‍वर से घृणा करनेवाले, हिंसक, अभिमानी, डींगमार, बुरी-बुरी बातों के बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले, (IN)

रोमियों 1:31 निर्बुद्धि, विश्वासघाती, प्रेम और दया का आभाव है और निर्दयी हो गए। (IN)

रोमियों 1:32 ¶ वे तो परमेश्‍वर की यह विधि जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले मृत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तो भी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं वरन् करनेवालों से प्रसन्‍न भी होते हैं। (IN)

रोमियों 2:1 ¶ अतः हे दोष लगानेवाले, तू कोई क्यों न हो, तू निरुत्तर है; क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिए कि तू जो दोष लगाता है, स्वयं ही वही काम करता है। (IN)

रोमियों 2:2 और हम जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवालों पर परमेश्‍वर की ओर से सच्चे दण्ड की आज्ञा होती है। (IN)

रोमियों 2:3 ¶ और हे मनुष्य, तू जो ऐसे-ऐसे काम करनेवालों पर दोष लगाता है, और स्वयं वे ही काम करता है; क्या यह समझता है कि तू परमेश्‍वर की दण्ड की आज्ञा से बच जाएगा? (IN)

रोमियों 2:4 क्या तू उसकी भलाई, और सहनशीलता, और धीरजरूपी धन को तुच्छ जानता है? और क्या यह नहीं समझता कि परमेश्‍वर की भलाई तुझे मन फिराव को सिखाती है? (IN)

रोमियों 2:5 ¶ पर अपनी कठोरता और हठीले मन के अनुसार उसके क्रोध के दिन के लिये, जिसमें परमेश्‍वर का सच्चा न्याय प्रगट होगा, अपने लिये क्रोध कमा रहा है। (IN)

रोमियों 2:6 वह हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला देगा। (IN)

रोमियों 2:7 जो सुकर्म में स्थिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में हैं, उन्हें वह अनन्त जीवन देगा; (IN)

रोमियों 2:8 ¶ पर जो स्वार्थी हैं और सत्य को नहीं मानते, वरन् अधर्म को मानते हैं, उन पर क्रोध और कोप पड़ेगा। (IN)

रोमियों 2:9 और क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है आएगा, पहले यहूदी पर फिर यूनानी पर; (IN)

रोमियों 2:10 ¶ परन्तु महिमा और आदर और कल्याण हर एक को मिलेगा, जो भला करता है, पहले यहूदी को फिर यूनानी को। (IN)

रोमियों 2:11 क्योंकि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता। (IN)

रोमियों 2:12 इसलिए कि जिन्होंने बिना व्यवस्था पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्था के नाश भी होंगे, और जिन्होंने व्यवस्था पा कर पाप किया, उनका दण्ड व्यवस्था के अनुसार होगा; (IN)

रोमियों 2:13 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर के यहाँ व्यवस्था के सुननेवाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्था पर चलनेवाले धर्मी ठहराए जाएँगे। (IN)

रोमियों 2:14 फिर जब अन्यजाति लोग जिनके पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों पर चलते हैं, तो व्यवस्था उनके पास न होने पर भी वे अपने लिये आप ही व्यवस्था हैं। (IN)

रोमियों 2:15 ¶ वे व्यवस्था की बातें अपने-अपने हृदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उनके विवेक भी गवाही देते हैं, और उनकी चिन्ताएँ परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है। (IN)

रोमियों 2:16 जिस दिन परमेश्‍वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्यों की गुप्त बातों का न्याय करेगा। (IN)

रोमियों 2:17 ¶ यदि तू स्वयं को यहूदी कहता है, व्यवस्था पर भरोसा रखता है, परमेश्‍वर के विषय में घमण्ड करता है, (IN)

रोमियों 2:18 और उसकी इच्‍छा जानता और व्यवस्था की शिक्षा पा कर उत्तम-उत्तम बातों को प्रिय जानता है; (IN)

रोमियों 2:19 यदि तू अपने पर भरोसा रखता है, कि मैं अंधों का अगुआ, और अंधकार में पड़े हुओं की ज्योति, (IN)

रोमियों 2:20 और बुद्धिहीनों का सिखानेवाला, और बालकों का उपदेशक हूँ, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्था में है, मुझे मिला है। (IN)

रोमियों 2:21 ¶ अत: क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? क्या तू जो चोरी न करने का उपदेश देता है, आप ही चोरी करता है? (IN)

रोमियों 2:22 तू जो कहता है, “व्यभिचार न करना,” क्या आप ही व्यभिचार करता है? तू जो मूरतों से घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरों को लूटता है? (IN)

रोमियों 2:23 ¶ तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्था न मानकर, परमेश्‍वर का अनादर करता है? (IN)

रोमियों 2:24 “क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्‍वर का नाम अपमानित हो रहा है,” जैसा लिखा भी है। (IN)

रोमियों 2:25 ¶ यदि तू व्यवस्था पर चले, तो खतने से लाभ तो है, परन्तु यदि तू व्यवस्था को न माने, तो तेरा खतना बिन खतना की दशा ठहरा। (IN)

रोमियों 2:26 तो यदि खतनारहित मनुष्य व्यवस्था की विधियों को माना करे, तो क्या उसकी बिन खतना की दशा खतने के बराबर न गिनी जाएगी? (IN)

रोमियों 2:27 और जो मनुष्य शारीरिक रूप से बिन खतना रहा यदि वह व्यवस्था को पूरा करे, तो क्या तुझे जो लेख पाने और खतना किए जाने पर भी व्यवस्था को माना नहीं करता है, दोषी न ठहराएगा? (IN)

रोमियों 2:28 ¶ क्योंकि वह यहूदी नहीं जो केवल बाहरी रूप में यहूदी है; और न वह खतना है जो प्रगट में है और देह में है। (IN)

रोमियों 2:29 पर यहूदी वही है, जो आंतरिक है; और खतना वही है, जो हृदय का और आत्मा में है; न कि लेख का; ऐसे की प्रशंसा मनुष्यों की ओर से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की ओर से होती है। (IN)

रोमियों 3:1 ¶ फिर यहूदी की क्या बड़ाई, या खतने का क्या लाभ? (IN)

रोमियों 3:2 हर प्रकार से बहुत कुछ। पहले तो यह कि परमेश्‍वर के वचन उनको सौंपे गए। (IN)

रोमियों 3:3 ¶ यदि कुछ विश्वासघाती निकले भी तो क्या हुआ? क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्‍वर की सच्चाई व्यर्थ ठहरेगी? (IN)

रोमियों 3:4 कदापि नहीं! वरन् परमेश्‍वर सच्चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे, जैसा लिखा है, (IN)

रोमियों 3:5 ¶ पर यदि हमारा अधर्म परमेश्‍वर की धार्मिकता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें? क्या यह कि परमेश्‍वर जो क्रोध करता है अन्यायी है? (यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ)। (IN)

रोमियों 3:6 कदापि नहीं! नहीं तो परमेश्‍वर कैसे जगत का न्याय करेगा? (IN)

रोमियों 3:7 ¶ यदि मेरे झूठ के कारण परमेश्‍वर की सच्चाई उसकी महिमा के लिये अधिक करके प्रगट हुई, तो फिर क्यों पापी के समान मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूँ? (IN)

रोमियों 3:8 “हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले?” जैसा हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कुछ कहते हैं कि इनका यही कहना है। परन्तु ऐसों का दोषी ठहराना ठीक है। (IN)

रोमियों 3:9 ¶ तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। (IN)

रोमियों 3:10 जैसा लिखा है: (IN)

रोमियों 3:11 कोई समझदार नहीं; (IN)

रोमियों 3:12 सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए; (IN)

रोमियों 3:13 उनका गला खुली हुई कब्र है: (IN)

रोमियों 3:14 और उनका मुँह श्राप और कड़वाहट से भरा है। (IN)

रोमियों 3:15 उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं। (IN)

रोमियों 3:16 उनके मार्गों में नाश और क्लेश है। (IN)

रोमियों 3:17 उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। (IN)

रोमियों 3:18 उनकी आँखों के सामने परमेश्‍वर का भय नहीं।” (IN)

रोमियों 3:19 ¶ हम जानते हैं, कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन हैं इसलिए कि हर एक मुँह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्‍वर के दण्ड के योग्य ठहरे। (IN)

रोमियों 3:20 क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिए कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहचान होती है। (IN)

रोमियों 3:21 ¶ पर अब बिना व्यवस्था परमेश्‍वर की धार्मिकता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं, (IN)

रोमियों 3:22 अर्थात् परमेश्‍वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं; (IN)

रोमियों 3:23 ¶ इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित है, (IN)

रोमियों 3:24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत-मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। (IN)

रोमियों 3:25 ¶ उसे परमेश्‍वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए, और जिन पर परमेश्‍वर ने अपनी सहनशीलता से ध्यान नहीं दिया; उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। (IN)

रोमियों 3:26 वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो। (IN)

रोमियों 3:27 ¶ तो घमण्ड करना कहाँ रहा? उसकी तो जगह ही नहीं। कौन सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्वास की व्यवस्था के कारण। (IN)

रोमियों 3:28 इसलिए हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है। (IN)

रोमियों 3:29 ¶ क्या परमेश्‍वर केवल यहूदियों का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हाँ, अन्यजातियों का भी है। (IN)

रोमियों 3:30 ¶ क्योंकि एक ही परमेश्‍वर है, जो खतनावालों को विश्वास से और खतनारहितों को भी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा। (IN)

रोमियों 3:31 तो क्या हम व्यवस्था को विश्वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं? कदापि नहीं! वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं। (IN)

रोमियों 4:1 ¶ तो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता अब्राहम को क्या प्राप्त हुआ? (IN)

रोमियों 4:2 क्योंकि यदि अब्राहम कामों से धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्ड करने का कारण होता है, परन्तु परमेश्‍वर के निकट नहीं। (IN)

रोमियों 4:3 पवित्रशास्त्र क्या कहता है? यह कि “अब्राहम ने परमेश्‍वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।” (IN)

रोमियों 4:4 ¶ काम करनेवाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक़ समझा जाता है। (IN)

रोमियों 4:5 ¶ परन्तु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है। (IN)

रोमियों 4:6 ¶ जिसे परमेश्‍वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाऊद भी धन्य कहता है: (IN)

रोमियों 4:7 “धन्य वे हैं, जिनके अधर्म क्षमा हुए, (IN)

रोमियों 4:8 धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्‍वर पापी न ठहराए।” (IN)

रोमियों 4:9 ¶ तो यह धन्य वचन, क्या खतनावालों ही के लिये है, या खतनारहितों के लिये भी? हम यह कहते हैं, “अब्राहम के लिये उसका विश्वास धार्मिकता गिना गया।” (IN)

रोमियों 4:10 तो वह कैसे गिना गया? खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में? खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में। (IN)

रोमियों 4:11 ¶ और उसने खतने का चिन्ह पाया, कि उस विश्वास की धार्मिकता पर छाप हो जाए, जो उसने बिना खतने की दशा में रखा था, जिससे वह उन सब का पिता ठहरे, जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं, ताकि वे भी धर्मी ठहरें; (IN)

रोमियों 4:12 और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता अब्राहम के उस विश्वास के पथ पर भी चलते हैं, जो उसने बिन खतने की दशा में किया था। (IN)

रोमियों 4:13 ¶ क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न अब्राहम को, न उसके वंश को व्यवस्था के द्वारा दी गई थी, परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली। (IN)

रोमियों 4:14 क्योंकि यदि व्यवस्थावाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी। (IN)

रोमियों 4:15 व्यवस्था तो क्रोध उपजाती है और जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ उसका उल्लंघन भी नहीं। (IN)

रोमियों 4:16 ¶ इसी कारण प्रतिज्ञा विश्वास पर आधारित है कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि वह सब वंश के लिये दृढ़ हो, न कि केवल उसके लिये जो व्यवस्थावाला है, वरन् उनके लिये भी जो अब्राहम के समान विश्वासवाले हैं वही तो हम सब का पिता है (IN)

रोमियों 4:17 जैसा लिखा है, “मैंने तुझे बहुत सी जातियों का पिता ठहराया है” उस परमेश्‍वर के सामने जिस पर उसने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उनका नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं। (IN)

रोमियों 4:18 ¶ उसने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिए कि उस वचन के अनुसार कि “तेरा वंश ऐसा होगा,” वह बहुत सी जातियों का पिता हो। (IN)

रोमियों 4:19 वह जो सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ, (IN)

रोमियों 4:20 ¶ और न अविश्वासी होकर परमेश्‍वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्‍वर की महिमा की, (IN)

रोमियों 4:21 और निश्चय जाना कि जिस बात की उसने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में भी सामर्थी है। (IN)

रोमियों 4:22 इस कारण, यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया। (IN)

रोमियों 4:23 ¶ और यह वचन, “विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया,” न केवल उसी के लिये लिखा गया, (IN)

रोमियों 4:24 वरन् हमारे लिये भी जिनके लिये विश्वास धार्मिकता गिना जाएगा, अर्थात् हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। (IN)

रोमियों 4:25 वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया। (IN)

रोमियों 5:1 ¶ क्योंकि हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर के साथ मेल रखें, (IN)

रोमियों 5:2 जिसके द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक जिसमें हम बने हैं, हमारी पहुँच भी हुई, और परमेश्‍वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें। (IN)

रोमियों 5:3 ¶ केवल यही नहीं, वरन् हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज, (IN)

रोमियों 5:4 और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्‍पन्‍न होती है; (IN)

रोमियों 5:5 और आशा से लज्जा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्‍वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है। (IN)

रोमियों 5:6 ¶ क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा। (IN)

रोमियों 5:7 किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है; परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का धैर्य दिखाए। (IN)

रोमियों 5:8 ¶ परन्तु परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। (IN)

रोमियों 5:9 तो जब कि हम, अब उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा परमेश्‍वर के क्रोध से क्यों न बचेंगे? (IN)

रोमियों 5:10 ¶ क्योंकि बैरी होने की दशा में उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्‍वर के साथ हुआ, फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएँगे? (IN)

रोमियों 5:11 और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा, जिसके द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्‍वर में आनन्दित होते हैं। (IN)

रोमियों 5:12 ¶ इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया। (IN)

रोमियों 5:13 क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, परन्तु जहाँ व्यवस्था नहीं, वहाँ पाप गिना नहीं जाता। (IN)

रोमियों 5:14 ¶ तो भी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगों पर भी राज्य किया, जिन्होंने उस आदम, जो उस आनेवाले का चिह्न है, के अपराध के समान पाप न किया। (IN)

रोमियों 5:15 ¶ पर जैसी अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्‍वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुत से लोगों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ। (IN)

रोमियों 5:16 ¶ और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुत से अपराधों से ऐसा वरदान उत्‍पन्‍न हुआ कि लोग धर्मी ठहरे। (IN)

रोमियों 5:17 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। (IN)

रोमियों 5:18 ¶ इसलिए जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धार्मिकता का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। (IN)

रोमियों 5:19 क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे। (IN)

रोमियों 5:20 ¶ व्यवस्था बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ, (IN)

रोमियों 5:21 कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे। (IN)

रोमियों 6:1 ¶ तो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें कि अनुग्रह बहुत हो? (IN)

रोमियों 6:2 कदापि नहीं! हम जब पाप के लिये मर गए तो फिर आगे को उसमें कैसे जीवन बिताएँ? (IN)

रोमियों 6:3 क्या तुम नहीं जानते कि हम सब जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उसकी मृत्यु का बपतिस्मा लिया? (IN)

रोमियों 6:4 ¶ इसलिए उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नये जीवन के अनुसार चाल चलें। (IN)

रोमियों 6:5 क्योंकि यदि हम उसकी मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएँगे। (IN)

रोमियों 6:6 ¶ क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर नाश हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें। (IN)

रोमियों 6:7 क्योंकि जो मर गया, वह पाप से मुक्त हो गया है। (IN)

रोमियों 6:8 ¶ इसलिए यदि हम मसीह के साथ मर गए, तो हमारा विश्वास यह है कि उसके साथ जीएँगे भी, (IN)

रोमियों 6:9 क्योंकि हम जानते है कि मसीह मरे हुओं में से जी उठा और फिर कभी नहीं मरेगा। मृत्यु उस पर प्रभुता नहीं करती। (IN)

रोमियों 6:10 ¶ क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिये एक ही बार मर गया; परन्तु जो जीवित है, तो परमेश्‍वर के लिये जीवित है। (IN)

रोमियों 6:11 ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्‍वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो। (IN)

रोमियों 6:12 ¶ इसलिए पाप तुम्हारे नाशवान शरीर में राज्य न करे, कि तुम उसकी लालसाओं के अधीन रहो। (IN)

रोमियों 6:13 और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आपको मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्‍वर को सौंपो, और अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिये परमेश्‍वर को सौंपो। (IN)

रोमियों 6:14 तब तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हो। (IN)

रोमियों 6:15 ¶ तो क्या हुआ? क्या हम इसलिए पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं! (IN)

रोमियों 6:16 क्या तुम नहीं जानते कि जिसकी आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों के समान सौंप देते हो उसी के दास हो: चाहे पाप के, जिसका अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिसका अन्त धार्मिकता है? (IN)

रोमियों 6:17 ¶ परन्तु परमेश्‍वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे अब मन से उस उपदेश के माननेवाले हो गए, जिसके साँचे में ढाले गए थे, (IN)

रोमियों 6:18 और पाप से छुड़ाए जाकर धार्मिकता के दास हो गए। (IN)

रोमियों 6:19 ¶ मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूँ। जैसे तुम ने अपने अंगों को अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धार्मिकता के दास करके सौंप दो। (IN)

रोमियों 6:20 जब तुम पाप के दास थे, तो धार्मिकता की ओर से स्वतंत्र थे। (IN)

रोमियों 6:21 तो जिन बातों से अब तुम लज्जित होते हो, उनसे उस समय तुम क्या फल पाते थे? क्योंकि उनका अन्त तो मृत्यु है। (IN)

रोमियों 6:22 ¶ परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्‍वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिससे पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है। (IN)

रोमियों 6:23 क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्‍वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है। (IN)

रोमियों 7:1 ¶ हे भाइयों, क्या तुम नहीं जानते (मैं व्यवस्था के जाननेवालों से कहता हूँ) कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है? (IN)

रोमियों 7:2 ¶ क्योंकि विवाहित स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उससे बंधी है, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई। (IN)

रोमियों 7:3 इसलिए यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरुष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्था से छूट गई, यहाँ तक कि यदि किसी दूसरे पुरुष की हो जाए तो भी व्यभिचारिणी न ठहरेगी। (IN)

रोमियों 7:4 ¶ तो हे मेरे भाइयों, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्‍वर के लिये फल लाएँ। (IN)

रोमियों 7:5 क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषाएँ जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्‍पन्‍न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं। (IN)

रोमियों 7:6 ¶ परन्तु जिसके बन्धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन् आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं। (IN)

रोमियों 7:7 ¶ तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है? कदापि नहीं! वरन् बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहचानता व्यवस्था यदि न कहती, “लालच मत कर” तो मैं लालच को न जानता। (IN)

रोमियों 7:8 परन्तु पाप ने अवसर पा कर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्‍पन्‍न किया, क्योंकि बिना व्यवस्था के पाप मुर्दा है। (IN)

रोमियों 7:9 ¶ मैं तो व्यवस्था बिना पहले जीवित था, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गया। (IN)

रोमियों 7:10 और वही आज्ञा जो जीवन के लिये थी, मेरे लिये मृत्यु का कारण ठहरी। (IN)

रोमियों 7:11 ¶ क्योंकि पाप ने अवसर पा कर आज्ञा के द्वारा मुझे बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला। (IN)

रोमियों 7:12 इसलिए व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा पवित्र, धर्मी, और अच्छी है। (IN)

रोमियों 7:13 ¶ तो क्या वह जो अच्छी थी, मेरे लिये मृत्यु ठहरी? कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिये मृत्यु का उत्‍पन्‍न करनेवाला हुआ कि उसका पाप होना प्रगट हो, और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे। (IN)

रोमियों 7:14 क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शारीरिक हूँ और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ। (IN)

रोमियों 7:15 ¶ और जो मैं करता हूँ उसको नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिससे मुझे घृणा आती है, वही करता हूँ। (IN)

रोमियों 7:16 और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूँ, तो मैं मान लेता हूँ कि व्यवस्था भली है। (IN)

रोमियों 7:17 ¶ तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, वरन् पाप है जो मुझ में बसा हुआ है। (IN)

रोमियों 7:18 क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझसे बन नहीं पड़ते। (IN)

रोमियों 7:19 ¶ क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। (IN)

रोमियों 7:20 परन्तु यदि मैं वही करता हूँ जिसकी इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। (IN)

रोमियों 7:21 तो मैं यह व्यवस्था पाता हूँ कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है। (IN)

रोमियों 7:22 ¶ क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्‍न रहता हूँ। (IN)

रोमियों 7:23 परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है। (IN)

रोमियों 7:24 ¶ मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? (IN)

रोमियों 7:25 हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद हो। इसलिए मैं आप बुद्धि से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था की सेवा करता हूँ। (IN)

रोमियों 8:1 ¶ इसलिए अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। (IN)

रोमियों 8:2 क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया। (IN)

रोमियों 8:3 ¶ क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर न कर सकी, उसको परमेश्‍वर ने किया, अर्थात् अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिये भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी। (IN)

रोमियों 8:4 इसलिए कि व्यवस्था की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए। (IN)

रोमियों 8:5 क्योंकि शारीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं। (IN)

रोमियों 8:6 ¶ शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है। (IN)

रोमियों 8:7 क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्‍वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्‍वर की व्यवस्था के अधीन है, और न हो सकता है। (IN)

रोमियों 8:8 और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्‍वर को प्रसन्‍न नहीं कर सकते। (IN)

रोमियों 8:9 ¶ परन्तु जब कि परमेश्‍वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं। (IN)

रोमियों 8:10 यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धार्मिकता के कारण जीवित है। (IN)

रोमियों 8:11 ¶ और यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरनहार देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा। (IN)

रोमियों 8:12 ¶ तो हे भाइयों, हम शरीर के कर्जदार नहीं, कि शरीर के अनुसार दिन काटें। (IN)

रोमियों 8:13 क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगे, तो जीवित रहोगे। (IN)

रोमियों 8:14 ¶ इसलिए कि जितने लोग परमेश्‍वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्‍वर के पुत्र हैं। (IN)

रोमियों 8:15 क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिससे हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं। (IN)

रोमियों 8:16 ¶ पवित्र आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्‍वर की सन्तान हैं। (IN)

रोमियों 8:17 और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन् परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब हम उसके साथ दुःख उठाए तो उसके साथ महिमा भी पाएँ। (IN)

रोमियों 8:18 ¶ क्योंकि मैं समझता हूँ, कि इस समय के दुःख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं। (IN)

रोमियों 8:19 क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्‍वर के पुत्रों के प्रगट होने की प्रतीक्षा कर रही है। (IN)

रोमियों 8:20 ¶ क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर अधीन करनेवाले की ओर से व्यर्थता के अधीन इस आशा से की गई। (IN)

रोमियों 8:21 कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पा कर, परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी। (IN)

रोमियों 8:22 क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है। (IN)

रोमियों 8:23 ¶ और केवल वही नहीं पर हम भी जिनके पास आत्मा का पहला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की, अर्थात् अपनी देह के छुटकारे की प्रतीक्षा करते हैं। (IN)

रोमियों 8:24 आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहाँ रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उसकी आशा क्या करेगा? (IN)

रोमियों 8:25 परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उसकी आशा रखते हैं, तो धीरज से उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं। (IN)

रोमियों 8:26 ¶ इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये विनती करता है। (IN)

रोमियों 8:27 और मनों का जाँचनेवाला जानता है, कि पवित्र आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है। (IN)

रोमियों 8:28 ¶ और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्‍न करती है; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। (IN)

रोमियों 8:29 क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहलौठा ठहरे। (IN)

रोमियों 8:30 फिर जिन्हें उनसे पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है। (IN)

रोमियों 8:31 ¶ तो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्‍वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? (IN)

रोमियों 8:32 जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा? (IN)

रोमियों 8:33 ¶ परमेश्‍वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्‍वर वह है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है। (IN)

रोमियों 8:34 फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह वह है जो मर गया वरन् मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्‍वर की दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है। (IN)

रोमियों 8:35 ¶ कौन हमको मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? (IN)

रोमियों 8:36 जैसा लिखा है, “तेरे लिये हम दिन भर मार डाले जाते हैं; हम वध होनेवाली भेड़ों के समान गिने गए हैं।” (IN)

रोमियों 8:37 ¶ परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, विजेता से भी बढ़कर हैं। (IN)

रोमियों 8:38 क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊँचाई, (IN)

रोमियों 8:39 न गहराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्‍वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी। (IN)

रोमियों 9:1 ¶ मैं मसीह में सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है। (IN)

रोमियों 9:2 कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुःखता रहता है। (IN)

रोमियों 9:3 ¶ क्योंकि मैं यहाँ तक चाहता था, कि अपने भाइयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से श्रापित और अलग हो जाता। (IN)

रोमियों 9:4 वे इस्राएली हैं, लेपालकपन का हक़, महिमा, वाचाएँ, व्यवस्था का उपहार, परमेश्‍वर की उपासना, और प्रतिज्ञाएँ उन्हीं की हैं। (IN)

रोमियों 9:5 पूर्वज भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ, जो सब के ऊपर परम परमेश्‍वर युगानुयुग धन्य है। आमीन। (IN)

रोमियों 9:6 ¶ परन्तु यह नहीं, कि परमेश्‍वर का वचन टल गया, इसलिए कि जो इस्राएल के वंश हैं, वे सब इस्राएली नहीं; (IN)

रोमियों 9:7 और न अब्राहम के वंश होने के कारण सब उसकी सन्तान ठहरे, परन्तु (लिखा है) “इसहाक ही से तेरा वंश कहलाएगा।” (IN)

रोमियों 9:8 ¶ अर्थात् शरीर की सन्तान परमेश्‍वर की सन्तान नहीं, परन्तु प्रतिज्ञा के सन्तान वंश गिने जाते हैं। (IN)

रोमियों 9:9 क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है, “मैं इस समय के अनुसार आऊँगा, और सारा का एक पुत्र होगा।” (IN)

रोमियों 9:10 ¶ और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी। (IN)

रोमियों 9:11 और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था, इसलिए कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं, परन्तु बुलानेवाले पर बनी रहे। (IN)

रोमियों 9:12 उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” (IN)

रोमियों 9:13 जैसा लिखा है, “मैंने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।” (IN)

रोमियों 9:14 ¶ तो हम क्या कहें? क्या परमेश्‍वर के यहाँ अन्याय है? कदापि नहीं! (IN)

रोमियों 9:15 क्योंकि वह मूसा से कहता है, “मैं जिस किसी पर दया करना चाहूँ, उस पर दया करूँगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूँ उसी पर कृपा करूँगा।” (IN)

रोमियों 9:16 इसलिए यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्‍वर की बात है। (IN)

रोमियों 9:17 ¶ क्योंकि पवित्रशास्त्र में फ़िरौन से कहा गया, “मैंने तुझे इसलिए खड़ा किया है, कि तुझ में अपनी सामर्थ्य दिखाऊँ, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।” (IN)

रोमियों 9:18 तो फिर, वह जिस पर चाहता है, उस पर दया करता है; और जिसे चाहता है, उसे कठोर कर देता है। (IN)

रोमियों 9:19 ¶ फिर तू मुझसे कहेगा, “वह फिर क्यों दोष लगाता है? कौन उसकी इच्छा का सामना करता हैं?” (IN)

रोमियों 9:20 हे मनुष्य, भला तू कौन है, जो परमेश्‍वर का सामना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है, “तूने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?” (IN)

रोमियों 9:21 क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं, कि एक ही लोंदे में से, एक बर्तन आदर के लिये, और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? (IN)

रोमियों 9:22 ¶ कि परमेश्‍वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ्य प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। (IN)

रोमियों 9:23 और दया के बरतनों पर जिन्हें उसने महिमा के लिये पहले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की? (IN)

रोमियों 9:24 अर्थात् हम पर जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से वरन् अन्यजातियों में से भी बुलाया। (IN)

रोमियों 9:25 ¶ जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, (IN)

रोमियों 9:26 और ऐसा होगा कि जिस जगह में उनसे यह कहा गया था, कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो, (IN)

रोमियों 9:27 ¶ और यशायाह इस्राएल के विषय में पुकारकर कहता है, “चाहे इस्राएल की सन्तानों की गिनती समुद्र के रेत के बराबर हो, तो भी उनमें से थोड़े ही बचेंगे। (IN)

रोमियों 9:28 क्योंकि प्रभु अपना वचन पृथ्वी पर पूरा करके, धार्मिकता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।” (IN)

रोमियों 9:29 जैसा यशायाह ने पहले भी कहा था, (IN)

रोमियों 9:30 ¶ तो हम क्या कहें? यह कि अन्यजातियों ने जो धार्मिकता की खोज नहीं करते थे, धार्मिकता प्राप्त की अर्थात् उस धार्मिकता को जो विश्वास से है; (IN)

रोमियों 9:31 परन्तु इस्राएली; जो धार्मिकता की व्यवस्था की खोज करते हुए उस व्यवस्था तक नहीं पहुँचे। (IN)

रोमियों 9:32 ¶ किस लिये? इसलिए कि वे विश्वास से नहीं, परन्तु मानो कर्मों से उसकी खोज करते थे: उन्होंने उस ठोकर के पत्थर पर ठोकर खाई। (IN)

रोमियों 9:33 जैसा लिखा है, (IN)

रोमियों 10:1 ¶ हे भाइयों, मेरे मन की अभिलाषा और उनके लिये परमेश्‍वर से मेरी प्रार्थना है, कि वे उद्धार पाएँ। (IN)

रोमियों 10:2 क्योंकि मैं उनकी गवाही देता हूँ, कि उनको परमेश्‍वर के लिये धुन रहती है, परन्तु बुद्धिमानी के साथ नहीं। (IN)

रोमियों 10:3 क्योंकि वे परमेश्‍वर की धार्मिकता से अनजान होकर, अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करके, परमेश्‍वर की धार्मिकता के अधीन न हुए। (IN)

रोमियों 10:4 ¶ क्योंकि हर एक विश्वास करनेवाले के लिये धार्मिकता के निमित्त मसीह व्यवस्था का अन्त है। (IN)

रोमियों 10:5 क्योंकि मूसा व्यवस्था से प्राप्त धार्मिकता के विषय में यह लिखता है: “जो व्यक्ति उनका पालन करता है, वह उनसे जीवित रहेगा।” (IN)

रोमियों 10:6 ¶ परन्तु जो धार्मिकता विश्वास से है, वह यह कहती है, “तू अपने मन में यह न कहना कि स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा?” (अर्थात् मसीह को उतार लाने के लिये), (IN)

रोमियों 10:7 या “अधोलोक में कौन उतरेगा?” (अर्थात् मसीह को मरे हुओं में से जिलाकर ऊपर लाने के लिये!) (IN)

रोमियों 10:8 ¶ परन्तु क्या कहती है? यह, कि (IN)

रोमियों 10:9 ¶ कि यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। (IN)

रोमियों 10:10 क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है। (IN)

रोमियों 10:11 ¶ क्योंकि पवित्रशास्त्र यह कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।” (IN)

रोमियों 10:12 यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिए कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेनेवालों के लिये उदार है। (IN)

रोमियों 10:13 क्योंकि “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।” (IN)

रोमियों 10:14 ¶ फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्यों लें? और जिसकी नहीं सुनी उस पर क्यों विश्वास करें? और प्रचारक बिना क्यों सुनें? (IN)

रोमियों 10:15 और यदि भेजे न जाएँ, तो क्यों प्रचार करें? जैसा लिखा है, “उनके पाँव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (IN)

रोमियों 10:16 ¶ परन्तु सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया। यशायाह कहता है, “हे प्रभु, किस ने हमारे समाचार पर विश्वास किया है?” (IN)

रोमियों 10:17 इसलिए विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है। (IN)

रोमियों 10:18 ¶ परन्तु मैं कहता हूँ, “क्या उन्होंने नहीं सुना?” सुना तो सही क्योंकि लिखा है, (IN)

रोमियों 10:19 ¶ फिर मैं कहता हूँ। क्या इस्राएली नहीं जानते थे? पहले तो मूसा कहता है, (IN)

रोमियों 10:20 ¶ फिर यशायाह बड़े साहस के साथ कहता है, (IN)

रोमियों 10:21 परन्तु इस्राएल के विषय में वह यह कहता है “मैं सारे दिन अपने हाथ एक आज्ञा न माननेवाली और विवाद करनेवाली प्रजा की ओर पसारे रहा।” (IN)

रोमियों 11:1 ¶ इसलिए मैं कहता हूँ, क्या परमेश्‍वर ने अपनी प्रजा को त्याग दिया? कदापि नहीं! मैं भी तो इस्राएली हूँ; अब्राहम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र में से हूँ। (IN)

रोमियों 11:2 परमेश्‍वर ने अपनी उस प्रजा को नहीं त्यागा, जिसे उसने पहले ही से जाना: क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्रशास्त्र एलिय्याह की कथा में क्या कहता है; कि वह इस्राएल के विरोध में परमेश्‍वर से विनती करता है। (IN)

रोमियों 11:3 “हे प्रभु, उन्होंने तेरे भविष्यद्वक्ताओं को मार डाला, और तेरी वेदियों को ढा दिया है; और मैं ही अकेला बच रहा हूँ, और वे मेरे प्राण के भी खोजी हैं।” (IN)

रोमियों 11:4 ¶ परन्तु परमेश्‍वर से उसे क्या उत्तर मिला “मैंने अपने लिये सात हजार पुरुषों को रख छोड़ा है जिन्होंने बाल के आगे घुटने नहीं टेके हैं।” (IN)

रोमियों 11:5 इसी रीति से इस समय भी, अनुग्रह से चुने हुए कुछ लोग बाकी हैं। (IN)

रोमियों 11:6 ¶ यदि यह अनुग्रह से हुआ है, तो फिर कर्मों से नहीं, नहीं तो अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा। (IN)

रोमियों 11:7 फिर परिणाम क्या हुआ? यह कि इस्राएली जिसकी खोज में हैं, वह उनको नहीं मिला; परन्तु चुने हुओं को मिला और शेष लोग कठोर किए गए हैं। (IN)

रोमियों 11:8 जैसा लिखा है, “परमेश्‍वर ने उन्हें आज के दिन तक मंदता की आत्मा दे रखी है और ऐसी आँखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।” (IN)

रोमियों 11:9 ¶ और दाऊद कहता है, (IN)

रोमियों 11:10 उनकी आँखों पर अंधेरा छा जाए ताकि न देखें, (IN)

रोमियों 11:11 ¶ तो मैं कहता हूँ क्या उन्होंने इसलिए ठोकर खाई, कि गिर पड़ें? कदापि नहीं परन्तु उनके गिरने के कारण अन्यजातियों को उद्धार मिला, कि उन्हें जलन हो। (IN)

रोमियों 11:12 अब यदि उनका गिरना जगत के लिये धन और उनकी घटी अन्यजातियों के लिये सम्पत्ति का कारण हुआ, तो उनकी भरपूरी से कितना न होगा। (IN)

रोमियों 11:13 ¶ मैं तुम अन्यजातियों से यह बातें कहता हूँ। जब कि मैं अन्यजातियों के लिये प्रेरित हूँ, तो मैं अपनी सेवा की बड़ाई करता हूँ, (IN)

रोमियों 11:14 ताकि किसी रीति से मैं अपने कुटुम्बियों से जलन करवाकर उनमें से कई एक का उद्धार कराऊँ। (IN)

रोमियों 11:15 ¶ क्योंकि जब कि उनका त्याग दिया जाना जगत के मिलाप का कारण हुआ, तो क्या उनका ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा? (IN)

रोमियों 11:16 जब भेंट का पहला पेड़ा पवित्र ठहरा, तो पूरा गूँधा हुआ आटा भी पवित्र है: और जब जड़ पवित्र ठहरी, तो डालियाँ भी ऐसी ही हैं। (IN)

रोमियों 11:17 ¶ और यदि कई एक डाली तोड़ दी गई, और तू जंगली जैतून होकर उनमें साटा गया, और जैतून की जड़ की चिकनाई का भागी हुआ है। (IN)

रोमियों 11:18 तो डालियों पर घमण्ड न करना; और यदि तू घमण्ड करे, तो जान रख, कि तू जड़ को नहीं, परन्तु जड़ तुझे सम्भालती है। (IN)

रोमियों 11:19 ¶ फिर तू कहेगा, “डालियाँ इसलिए तोड़ी गई, कि मैं साटा जाऊँ।” (IN)

रोमियों 11:20 भला, वे तो अविश्वास के कारण तोड़ी गई, परन्तु तू विश्वास से बना रहता है इसलिए अभिमानी न हो, परन्तु भय मान, (IN)

रोमियों 11:21 क्योंकि जब परमेश्‍वर ने स्वाभाविक डालियाँ न छोड़ी, तो तुझे भी न छोड़ेगा। (IN)

रोमियों 11:22 ¶ इसलिए परमेश्‍वर की दयालुता और कड़ाई को देख! जो गिर गए, उन पर कड़ाई, परन्तु तुझ पर दयालुता, यदि तू उसमें बना रहे, नहीं तो, तू भी काट डाला जाएगा। (IN)

रोमियों 11:23 ¶ और वे भी यदि अविश्वास में न रहें, तो साटे जाएँगे क्योंकि परमेश्‍वर उन्हें फिर साट सकता है। (IN)

रोमियों 11:24 क्योंकि यदि तू उस जैतून से, जो स्वभाव से जंगली है, काटा गया और स्वभाव के विरुद्ध अच्छी जैतून में साटा गया, तो ये जो स्वाभाविक डालियाँ हैं, अपने ही जैतून में साटे क्यों न जाएँगे। (IN)

रोमियों 11:25 ¶ हे भाइयों, कहीं ऐसा न हो, कि तुम अपने आप को बुद्धिमान समझ लो; इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो, कि जब तक अन्यजातियाँ पूरी रीति से प्रवेश न कर लें, तब तक इस्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा। (IN)

रोमियों 11:26 ¶ और इस रीति से सारा इस्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है, (IN)

रोमियों 11:27 और उनके साथ मेरी यही वाचा होगी, (IN)

रोमियों 11:28 ¶ वे सुसमाचार के भाव से तो तुम्हारे लिए वे परमेश्‍वर के बैरी हैं, परन्तु चुन लिये जाने के भाव से पूर्वजों के कारण प्यारे हैं। (IN)

रोमियों 11:29 क्योंकि परमेश्‍वर अपने वरदानों से, और बुलाहट से कभी पीछे नहीं हटता। (IN)

रोमियों 11:30 ¶ क्योंकि जैसे तुम ने पहले परमेश्‍वर की आज्ञा न मानी परन्तु अभी उनके आज्ञा न मानने से तुम पर दया हुई। (IN)

रोमियों 11:31 वैसे ही उन्होंने भी अब आज्ञा न मानी कि तुम पर जो दया होती है इससे उन पर भी दया हो। (IN)

रोमियों 11:32 क्योंकि परमेश्‍वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा ताकि वह सब पर दया करे। (IN)

रोमियों 11:33 ¶ अहा, परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गम्भीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं! (IN)

रोमियों 11:34 “प्रभु कि बुद्धि को किस ने जाना? (IN)

रोमियों 11:35 या किस ने पहले उसे कुछ दिया है (IN)

रोमियों 11:36 ¶ क्योंकि उसकी ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिये सब कुछ है: उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

रोमियों 12:1 ¶ इसलिए हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्‍वर की दया स्मरण दिलाकर विनती करता हूँ, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्‍वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ; यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। (IN)

रोमियों 12:2 ¶ और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिससे तुम परमेश्‍वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो। (IN)

रोमियों 12:3 ¶ क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूँ, कि जैसा समझना चाहिए, उससे बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे; पर जैसा परमेश्‍वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बाँट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। (IN)

रोमियों 12:4 ¶ क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही जैसा काम नहीं; (IN)

रोमियों 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं। (IN)

रोमियों 12:6 ¶ और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न-भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिसको भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे। (IN)

रोमियों 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे; (IN)

रोमियों 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे। (IN)

रोमियों 12:9 ¶ प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो। (IN)

रोमियों 12:10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। (IN)

रोमियों 12:11 ¶ प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरे रहो; प्रभु की सेवा करते रहो। (IN)

रोमियों 12:12 आशा के विषय में, आनन्दित; क्लेश के विषय में, धैर्य रखें; प्रार्थना के विषय में, स्थिर रहें। (IN)

रोमियों 12:13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उसमें उनकी सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो। (IN)

रोमियों 12:14 ¶ अपने सतानेवालों को आशीष दो; आशीष दो श्राप न दो। (IN)

रोमियों 12:15 आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द करो, और रोनेवालों के साथ रोओ। (IN)

रोमियों 12:16 आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनों के साथ संगति रखो; अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो। (IN)

रोमियों 12:17 ¶ बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उनकी चिन्ता किया करो। (IN)

रोमियों 12:18 जहाँ तक हो सके, तुम भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। (IN)

रोमियों 12:19 ¶ हे प्रियों अपना बदला न लेना; परन्तु परमेश्‍वर को क्रोध का अवसर दो, क्योंकि लिखा है, “बदला लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूँगा।” (IN)

रोमियों 12:20 परन्तु “यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला, (IN)

रोमियों 12:21 बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो। (IN)

रोमियों 13:1 ¶ हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के अधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्‍वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं। (IN)

रोमियों 13:2 इसलिए जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्‍वर की विधि का विरोध करता है, और विरोध करनेवाले दण्ड पाएँगे। (IN)

रोमियों 13:3 ¶ क्योंकि अधिपति अच्छे काम के नहीं, परन्तु बुरे काम के लिये डर का कारण हैं; क्या तू अधिपति से निडर रहना चाहता है, तो अच्छा काम कर और उसकी ओर से तेरी सराहना होगी; (IN)

रोमियों 13:4 क्योंकि वह तेरी भलाई के लिये परमेश्‍वर का सेवक है। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योंकि वह तलवार व्यर्थ लिए हुए नहीं और परमेश्‍वर का सेवक है; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे। (IN)

रोमियों 13:5 इसलिए अधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्तु डर से अवश्य है, वरन् विवेक भी यही गवाही देता है। (IN)

रोमियों 13:6 ¶ इसलिए कर भी दो, क्योंकि शासन करनेवाले परमेश्‍वर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं। (IN)

रोमियों 13:7 इसलिए हर एक का हक़ चुकाया करो; जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे चुंगी चाहिए, उसे चुंगी दो; जिससे डरना चाहिए, उससे डरो; जिसका आदर करना चाहिए उसका आदर करो। (IN)

रोमियों 13:8 ¶ आपस के प्रेम को छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है। (IN)

रोमियों 13:9 क्योंकि यह कि “व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, लालच न करना,” और इनको छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (IN)

रोमियों 13:10 प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिए प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है। (IN)

रोमियों 13:11 ¶ और समय को पहचान कर ऐसा ही करो, इसलिए कि अब तुम्हारे लिये नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुँची है; क्योंकि जिस समय हमने विश्वास किया था, उस समय की तुलना से अब हमारा उद्धार निकट है। (IN)

रोमियों 13:12 रात बहुत बीत गई है, और दिन निकलने पर है; इसलिए हम अंधकार के कामों को तजकर ज्योति के हथियार बाँध लें। (IN)

रोमियों 13:13 ¶ जैसे दिन में, वैसे ही हमें उचित रूप से चलना चाहिए; न कि लीलाक्रीड़ा, और पियक्कड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न झगड़े और ईर्ष्या में। (IN)

रोमियों 13:14 वरन् प्रभु यीशु मसीह को पहन लो, और शरीर की अभिलाषाओं को पूरा करने का उपाय न करो। (IN)

रोमियों 14:1 ¶ जो विश्वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो, परन्तु उसकी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं। (IN)

रोमियों 14:2 क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग-पात ही खाता है। (IN)

रोमियों 14:3 ¶ और खानेवाला न-खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे ग्रहण किया है। (IN)

रोमियों 14:4 तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, वरन् वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है। (IN)

रोमियों 14:5 ¶ कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर मानता है, और कोई सब दिन एक सा मानता है: हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले। (IN)

रोमियों 14:6 जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्‍वर का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्‍वर का धन्यवाद करता है। (IN)

रोमियों 14:7 ¶ क्योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है, और न कोई अपने लिये मरता है। (IN)

रोमियों 14:8 क्योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; फिर हम जीएँ या मरें, हम प्रभु ही के हैं। (IN)

रोमियों 14:9 क्योंकि मसीह इसलिए मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवितों, दोनों का प्रभु हो। (IN)

रोमियों 14:10 ¶ तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्‍वर के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे। (IN)

रोमियों 14:11 क्योंकि लिखा है, (IN)

रोमियों 14:12 ¶ तो फिर, हम में से हर एक परमेश्‍वर को अपना-अपना लेखा देगा। (IN)

रोमियों 14:13 ¶ इसलिए आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ पर तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे। (IN)

रोमियों 14:14 ¶ मैं जानता हूँ, और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है, कि कोई वस्तु अपने आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उसको अशुद्ध समझता है, उसके लिये अशुद्ध है। (IN)

रोमियों 14:15 यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता; जिसके लिये मसीह मरा उसको तू अपने भोजन के द्वारा नाश न कर। (IN)

रोमियों 14:16 ¶ अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए। (IN)

रोमियों 14:17 क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य खाना-पीना नहीं; परन्तु धार्मिकता और मिलाप और वह आनन्द है जो पवित्र आत्मा से होता है। (IN)

रोमियों 14:18 ¶ जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्‍वर को भाता है और मनुष्यों में ग्रहणयोग्य ठहरता है। (IN)

रोमियों 14:19 इसलिए हम उन बातों का प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो। (IN)

रोमियों 14:20 ¶ भोजन के लिये परमेश्‍वर का काम न बिगाड़; सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिये बुरा है, जिसको उसके भोजन करने से ठोकर लगती है। (IN)

रोमियों 14:21 ¶ भला तो यह है, कि तू न माँस खाए, और न दाखरस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिससे तेरा भाई ठोकर खाए। (IN)

रोमियों 14:22 ¶ तेरा जो विश्वास हो, उसे परमेश्‍वर के सामने अपने ही मन में रख। धन्य है वह, जो उस बात में, जिसे वह ठीक समझता है, अपने आप को दोषी नहीं ठहराता। (IN)

रोमियों 14:23 परन्तु जो सन्देह कर के खाता है, वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह विश्वास से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है। (IN)

रोमियों 15:1 ¶ अतः हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलताओं में सहायता करे, न कि अपने आप को प्रसन्‍न करें। (IN)

रोमियों 15:2 हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उसकी भलाई के लिये सुधारने के निमित्त प्रसन्‍न करे। (IN)

रोमियों 15:3 ¶ क्योंकि मसीह ने अपने आप को प्रसन्‍न नहीं किया, पर जैसा लिखा है, “तेरे निन्दकों की निन्दा मुझ पर आ पड़ी।” (IN)

रोमियों 15:4 जितनी बातें पहले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन के द्वारा आशा रखें। (IN)

रोमियों 15:5 ¶ धीरज, और प्रोत्साहन का दाता परमेश्‍वर तुम्हें यह वरदान दे, कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो। (IN)

रोमियों 15:6 ताकि तुम एक मन और एक स्वर होकर हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता परमेश्‍वर की स्‍तुति करो। (IN)

रोमियों 15:7 ¶ इसलिए, जैसा मसीह ने भी परमेश्‍वर की महिमा के लिये तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो। (IN)

रोमियों 15:8 ¶ मैं कहता हूँ, कि जो प्रतिज्ञाएँ पूर्वजों को दी गई थीं, उन्हें दृढ़ करने के लिये मसीह, परमेश्‍वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिये खतना किए हुए लोगों का सेवक बना। (IN)

रोमियों 15:9 और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्‍वर की स्‍तुति करो, जैसा लिखा है, (IN)

रोमियों 15:10 ¶ फिर कहा है, (IN)

रोमियों 15:11 ¶ और फिर, (IN)

रोमियों 15:12 ¶ और फिर यशायाह कहता है, (IN)

रोमियों 15:13 ¶ परमेश्‍वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए। (IN)

रोमियों 15:14 ¶ हे मेरे भाइयों; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूँ, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को समझा सकते हो। (IN)

रोमियों 15:15 ¶ तो भी मैंने कहीं-कहीं याद दिलाने के लिये तुम्हें जो बहुत साहस करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ, जो परमेश्‍वर ने मुझे दिया है। (IN)

रोमियों 15:16 कि मैं अन्यजातियों के लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्‍वर के सुसमाचार की सेवा याजक के समान करूँ; जिससे अन्यजातियों का मानो चढ़ाया जाना, पवित्र आत्मा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए। (IN)

रोमियों 15:17 ¶ इसलिए उन बातों के विषय में जो परमेश्‍वर से सम्बन्ध रखती हैं, मैं मसीह यीशु में बड़ाई कर सकता हूँ। (IN)

रोमियों 15:18 क्योंकि उन बातों को छोड़ मुझे और किसी बात के विषय में कहने का साहस नहीं, जो मसीह ने अन्यजातियों की अधीनता के लिये वचन, और कर्म। (IN)

रोमियों 15:19 और चिन्हों और अद्भुत कामों की सामर्थ्य से, और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से मेरे ही द्वारा किए। यहाँ तक कि मैंने यरूशलेम से लेकर चारों ओर इल्लुरिकुम तक मसीह के सुसमाचार का पूरा-पूरा प्रचार किया। (IN)

रोमियों 15:20 ¶ पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहाँ-जहाँ मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनाऊँ; ऐसा न हो, कि दूसरे की नींव पर घर बनाऊँ। (IN)

रोमियों 15:21 परन्तु जैसा लिखा है, वैसा ही हो, (IN)

रोमियों 15:22 ¶ इसलिए मैं तुम्हारे पास आने से बार-बार रोका गया। (IN)

रोमियों 15:23 परन्तु अब इन देशों में मेरे कार्य के लिए जगह नहीं रही, और बहुत वर्षों से मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है। (IN)

रोमियों 15:24 ¶ इसलिए जब इसपानिया को जाऊँगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जाऊँगा क्योंकि मुझे आशा है, कि उस यात्रा में तुम से भेंट करूँ, और जब तुम्हारी संगति से मेरा जी कुछ भर जाए, तो तुम मुझे कुछ दूर आगे पहुँचा दो। (IN)

रोमियों 15:25 परन्तु अभी तो पवित्र लोगों की सेवा करने के लिये यरूशलेम को जाता हूँ। (IN)

रोमियों 15:26 ¶ क्योंकि मकिदुनिया और अखाया के लोगों को यह अच्छा लगा, कि यरूशलेम के पवित्र लोगों के कंगालों के लिये कुछ चन्दा करें। (IN)

रोमियों 15:27 अच्छा तो लगा, परन्तु वे उनके कर्जदार भी हैं, क्योंकि यदि अन्यजाति उनकी आत्मिक बातों में भागी हुए, तो उन्हें भी उचित है, कि शारीरिक बातों में उनकी सेवा करें। (IN)

रोमियों 15:28 ¶ इसलिए मैं यह काम पूरा करके और उनको यह चन्दा सौंपकर तुम्हारे पास होता हुआ इसपानिया को जाऊँगा। (IN)

रोमियों 15:29 और मैं जानता हूँ, कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मसीह की पूरी आशीष के साथ आऊँगा। (IN)

रोमियों 15:30 ¶ और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्मा के प्रेम का स्मरण दिलाकर, तुम से विनती करता हूँ, कि मेरे लिये परमेश्‍वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ मिलकर लौलीन रहो। (IN)

रोमियों 15:31 कि मैं यहूदिया के अविश्वासियों से बचा रहूँ, और मेरी वह सेवा जो यरूशलेम के लिये है, पवित्र लोगों को स्वीकार्य हो। (IN)

रोमियों 15:32 और मैं परमेश्‍वर की इच्छा से तुम्हारे पास आनन्द के साथ आकर तुम्हारे साथ विश्राम पाऊँ। (IN)

रोमियों 15:33 ¶ शान्ति का परमेश्‍वर तुम सब के साथ रहे। आमीन। (IN)

रोमियों 16:1 ¶ मैं तुम से फीबे के लिए, जो हमारी बहन और किंख्रिया की कलीसिया की सेविका है, विनती करता हूँ। (IN)

रोमियों 16:2 कि तुम जैसा कि पवित्र लोगों को चाहिए, उसे प्रभु में ग्रहण करो; और जिस किसी बात में उसको तुम से प्रयोजन हो, उसकी सहायता करो; क्योंकि वह भी बहुतों की वरन् मेरी भी उपकारिणी हुई है। (IN)

रोमियों 16:3 ¶ प्रिस्का और अक्विला को जो यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:4 उन्होंने मेरे प्राण के लिये अपना ही सिर दे रखा था और केवल मैं ही नहीं, वरन् अन्यजातियों की सारी कलीसियाएँ भी उनका धन्यवाद करती हैं। (IN)

रोमियों 16:5 और उस कलीसिया को भी नमस्कार जो उनके घर में है। मेरे प्रिय इपैनितुस को जो मसीह के लिये आसिया का पहला फल है, नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:6 ¶ मरियम को जिस ने तुम्हारे लिये बहुत परिश्रम किया, नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:7 अन्द्रुनीकुस और यूनियास को जो मेरे कुटुम्बी हैं, और मेरे साथ कैद हुए थे, और प्रेरितों में नामी हैं, और मुझसे पहले मसीही हुए थे, नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:8 अम्पलियातुस को, जो प्रभु में मेरा प्रिय है, नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:9 ¶ उरबानुस को, जो मसीह में हमारा सहकर्मी है, और मेरे प्रिय इस्तखुस को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:10 अपिल्लेस को जो मसीह में खरा निकला, नमस्कार। अरिस्तुबुलुस के घराने को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:11 मेरे कुटुम्बी हेरोदियोन को नमस्कार। नरकिस्सुस के घराने के जो लोग प्रभु में हैं, उनको नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:12 त्रूफैना और त्रूफोसा को जो प्रभु में परिश्रम करती हैं, नमस्कार। प्रिय पिरसिस को जिस ने प्रभु में बहुत परिश्रम किया, नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:13 रूफुस को जो प्रभु में चुना हुआ है, और उसकी माता को जो मेरी भी है, दोनों को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:14 असुंक्रितुस और फिलगोन और हिर्मेस, पत्रुबास, हर्मास और उनके साथ के भाइयों को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:15 फिलुलुगुस और यूलिया और नेर्युस और उसकी बहन, और उलुम्पास और उनके साथ के सब पवित्र लोगों को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:16 आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो: तुम को मसीह की सारी कलीसियाओं की ओर से नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:17 ¶ अब हे भाइयों, मैं तुम से विनती करता हूँ, कि जो लोग उस शिक्षा के विपरीत जो तुम ने पाई है, फूट डालने, और ठोकर खिलाने का कारण होते हैं, उनसे सावधान रहो; और उनसे दूर रहो। (IN)

रोमियों 16:18 क्योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्तु अपने पेट की सेवा करते है; और चिकनी चुपड़ी बातों से सीधे सादे मन के लोगों को बहका देते हैं। (IN)

रोमियों 16:19 ¶ तुम्हारे आज्ञा मानने की चर्चा सब लोगों में फैल गई है; इसलिए मैं तुम्हारे विषय में आनन्द करता हूँ; परन्तु मैं यह चाहता हूँ, कि तुम भलाई के लिये बुद्धिमान, परन्तु बुराई के लिये भोले बने रहो। (IN)

रोमियों 16:20 शान्ति का परमेश्‍वर शैतान को तुम्हारे पाँवों के नीचे शीघ्र कुचल देगा। (IN)

रोमियों 16:21 ¶ तीमुथियुस मेरे सहकर्मी का, और लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस मेरे कुटुम्बियों का, तुम को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:22 मुझ पत्री के लिखनेवाले तिरतियुस का प्रभु में तुम को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:23 ¶ गयुस का जो मेरी और कलीसिया का पहुनाई करनेवाला है उसका तुम्हें नमस्कार: इरास्तुस जो नगर का भण्डारी है, और भाई क्वारतुस का, तुम को नमस्कार। (IN)

रोमियों 16:24 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे। आमीन। (IN)

रोमियों 16:25 ¶ अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्थात् यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्थिर कर सकता है, उस भेद के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा। (IN)

रोमियों 16:26 परन्तु अब प्रगट होकर सनातन परमेश्‍वर की आज्ञा से भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों के द्वारा सब जातियों को बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा माननेवाले हो जाएँ। (IN)

रोमियों 16:27 ¶ उसी एकमात्र अद्वैत बुद्धिमान परमेश्‍वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:1 ¶ पौलुस की ओर से जो परमेश्‍वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित होने के लिये बुलाया गया और भाई सोस्थिनेस की ओर से। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:2 परमेश्‍वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, अर्थात् उनके नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करते हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:3 हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:4 ¶ मैं तुम्हारे विषय में अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद सदा करता हूँ, इसलिए कि परमेश्‍वर का यह अनुग्रह तुम पर मसीह यीशु में हुआ, (IN)

1 कुरिन्थियों 1:5 कि उसमें होकर तुम हर बात में अर्थात् सारे वचन और सारे ज्ञान में धनी किए गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:6 कि मसीह की गवाही तुम में पक्की निकली। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:7 ¶ यहाँ तक कि किसी वरदान में तुम्हें घटी नहीं, और तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने की प्रतीक्षा करते रहते हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:8 वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:9 परमेश्‍वर विश्वासयोग्य है; जिस ने तुम को अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:10 ¶ हे भाइयों, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा विनती करता हूँ, कि तुम सब एक ही बात कहो और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:11 क्योंकि हे मेरे भाइयों, खलोए के घराने के लोगों ने मुझे तुम्हारे विषय में बताया है, कि तुम में झगड़े हो रहे हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:12 ¶ मेरा कहना यह है, कि तुम में से कोई तो अपने आप को “पौलुस का,” कोई “अपुल्लोस का,” कोई “कैफा का,” कोई “मसीह का” कहता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:13 क्या मसीह बँट गया? क्या पौलुस तुम्हारे लिये क्रूस पर चढ़ाया गया? या तुम्हें पौलुस के नाम पर बपतिस्मा मिला? (IN)

1 कुरिन्थियों 1:14 ¶ मैं परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ, कि क्रिस्पुस और गयुस को छोड़, मैंने तुम में से किसी को भी बपतिस्मा नहीं दिया। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:15 कहीं ऐसा न हो, कि कोई कहे, कि तुम्हें मेरे नाम पर बपतिस्मा मिला। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:16 और मैंने स्तिफनास के घराने को भी बपतिस्मा दिया; इनको छोड़, मैं नहीं जानता कि मैंने और किसी को बपतिस्मा दिया। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:17 ¶ क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने को नहीं, वरन् सुसमाचार सुनाने को भेजा है, और यह भी मनुष्यों के शब्दों के ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्थ ठहरे। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:18 ¶ क्योंकि क्रूस की कथा नाश होनेवालों के निकट मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पानेवालों के निकट परमेश्‍वर की सामर्थ्य है। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:19 क्योंकि लिखा है, (IN)

1 कुरिन्थियों 1:20 ¶ कहाँ रहा ज्ञानवान? कहाँ रहा शास्त्री? कहाँ रहा इस संसार का विवादी? क्या परमेश्‍वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया? (IN)

1 कुरिन्थियों 1:21 क्योंकि जब परमेश्‍वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्‍वर को न जाना तो परमेश्‍वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालों को उद्धार दे। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:22 ¶ यहूदी तो चिन्ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं, (IN)

1 कुरिन्थियों 1:23 परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है; (IN)

1 कुरिन्थियों 1:24 ¶ परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उनके निकट मसीह परमेश्‍वर की सामर्थ्य, और परमेश्‍वर का ज्ञान है। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:25 क्योंकि परमेश्‍वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्‍वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:26 ¶ हे भाइयों, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:27 परन्तु परमेश्‍वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञानियों को लज्जित करे; और परमेश्‍वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:28 ¶ और परमेश्‍वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, वरन् जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:29 ताकि कोई प्राणी परमेश्‍वर के सामने घमण्ड न करने पाए। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:30 ¶ परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्‍वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान ठहरा अर्थात् धार्मिकता, और पवित्रता, और छुटकारा। (IN)

1 कुरिन्थियों 1:31 ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, “जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।” (IN)

1 कुरिन्थियों 2:1 ¶ हे भाइयों, जब मैं परमेश्‍वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:2 क्योंकि मैंने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन् क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:3 ¶ और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:4 और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं; परन्तु आत्मा और सामर्थ्य का प्रमाण था, (IN)

1 कुरिन्थियों 2:5 इसलिए कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की सामर्थ्य पर निर्भर हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:6 ¶ फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमों का ज्ञान नहीं; (IN)

1 कुरिन्थियों 2:7 परन्तु हम परमेश्‍वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्‍वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:8 ¶ जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:9 परन्तु जैसा लिखा है, (IN)

1 कुरिन्थियों 2:10 ¶ परन्तु परमेश्‍वर ने उनको अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन् परमेश्‍वर की गूढ़ बातें भी जाँचता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:11 मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उसमें है? वैसे ही परमेश्‍वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्‍वर का आत्मा। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:12 ¶ परन्तु हमने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्‍वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्‍वर ने हमें दी हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:13 जिनको हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु पवित्र आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मा, आत्मिक ज्ञान से आत्मिक बातों की व्याख्या करती है। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:14 ¶ परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्‍वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जाँच आत्मिक रीति से होती है। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:15 आत्मिक जन सब कुछ जाँचता है, परन्तु वह आप किसी से जाँचा नहीं जाता। (IN)

1 कुरिन्थियों 2:16 “क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखाए?” (IN)

1 कुरिन्थियों 3:1 ¶ हे भाइयों, मैं तुम से इस रीति से बातें न कर सका, जैसे आत्मिक लोगों से परन्तु जैसे शारीरिक लोगों से, और उनसे जो मसीह में बालक हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:2 मैंने तुम्हें दूध पिलाया, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उसको न खा सकते थे; वरन् अब तक भी नहीं खा सकते हो, (IN)

1 कुरिन्थियों 3:3 ¶ क्योंकि अब तक शारीरिक हो। इसलिए, कि जब तुम में ईर्ष्या और झगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं? और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते? (IN)

1 कुरिन्थियों 3:4 इसलिए कि जब एक कहता है, “मैं पौलुस का हूँ,” और दूसरा, “मैं अपुल्लोस का हूँ,” तो क्या तुम मनुष्य नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 3:5 ¶ अपुल्लोस कौन है? और पौलुस कौन है? केवल सेवक, जिनके द्वारा तुम लोगों ने विश्वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:6 ¶ मैंने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्‍वर ने बढ़ाया। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:7 इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्‍वर जो बढ़ानेवाला है। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:8 ¶ लगानेवाला और सींचनेवाला दोनों एक हैं; परन्तु हर एक व्यक्ति अपने ही परिश्रम के अनुसार अपनी ही मजदूरी पाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:9 क्योंकि हम परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्‍वर की खेती और परमेश्‍वर के भवन हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:10 परमेश्‍वर के उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझे दिया गया, मैंने बुद्धिमान राजमिस्त्री के समान नींव डाली, और दूसरा उस पर रद्दा रखता है। परन्तु हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:11 क्योंकि उस नींव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है, कोई दूसरी नींव नहीं डाल सकता। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:12 ¶ और यदि कोई इस नींव पर सोना या चाँदी या बहुमूल्य पत्थर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखे, (IN)

1 कुरिन्थियों 3:13 तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिए कि आग के साथ प्रगट होगा और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:14 ¶ जिसका काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:15 और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो वह हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते-जलते। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:16 ¶ क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्‍वर का मन्दिर हो, और परमेश्‍वर का आत्मा तुम में वास करता है? (IN)

1 कुरिन्थियों 3:17 यदि कोई परमेश्‍वर के मन्दिर को नाश करेगा तो परमेश्‍वर उसे नाश करेगा; क्योंकि परमेश्‍वर का मन्दिर पवित्र है, और वह तुम हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:18 ¶ कोई अपने आप को धोखा न दे। यदि तुम में से कोई इस संसार में अपने आप को ज्ञानी समझे, तो मूर्ख बने कि ज्ञानी हो जाए। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:19 क्योंकि इस संसार का ज्ञान परमेश्‍वर के निकट मूर्खता है, जैसा लिखा है, (IN)

1 कुरिन्थियों 3:20 और फिर, “प्रभु ज्ञानियों के विचारों को जानता है, कि व्यर्थ हैं।” (IN)

1 कुरिन्थियों 3:21 ¶ इसलिए मनुष्यों पर कोई घमण्ड न करे, क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है। (IN)

1 कुरिन्थियों 3:22 क्या पौलुस, क्या अपुल्लोस, क्या कैफा, क्या जगत, क्या जीवन, क्या मरण, क्या वर्तमान, क्या भविष्य, सब कुछ तुम्हारा है, (IN)

1 कुरिन्थियों 3:23 और तुम मसीह के हो, और मसीह परमेश्‍वर का है। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:1 ¶ मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्‍वर के भेदों के भण्डारी समझे। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:2 फिर यहाँ भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्वासयोग्य निकले। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:3 ¶ परन्तु मेरी दृष्टि में यह बहुत छोटी बात है, कि तुम या मनुष्यों का कोई न्यायी मुझे परखे, वरन् मैं आप ही अपने आप को नहीं परखता। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:4 क्योंकि मेरा मन मुझे किसी बात में दोषी नहीं ठहराता, परन्तु इससे मैं निर्दोष नहीं ठहरता, क्योंकि मेरा परखनेवाला प्रभु है। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:5 ¶ इसलिए जब तक प्रभु न आए, समय से पहले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अंधकार की छिपी बातें ज्योति में दिखाएगा, और मनों के उद्देश्यों को प्रगट करेगा, तब परमेश्‍वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:6 ¶ हे भाइयों, मैंने इन बातों में तुम्हारे लिये अपनी और अपुल्लोस की चर्चा दृष्टान्त की रीति पर की है, इसलिए कि तुम हमारे द्वारा यह सीखो, (IN)

1 कुरिन्थियों 4:7 क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है? और तेरे पास क्या है जो तूने (दूसरे से) नहीं पाया और जब कि तूने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है, कि मानो नहीं पाया? (IN)

1 कुरिन्थियों 4:8 ¶ तुम तो तृप्त हो चुके; तुम धनी हो चुके, तुम ने हमारे बिना राज्य किया; परन्तु भला होता कि तुम राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साथ राज्य करते। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:9 मेरी समझ में परमेश्‍वर ने हम प्रेरितों को सब के बाद उन लोगों के समान ठहराया है, जिनकी मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो; क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये एक तमाशा ठहरे हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:10 ¶ हम मसीह के लिये मूर्ख है; परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो; हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो। तुम आदर पाते हो, परन्तु हम निरादर होते हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:11 हम इस घड़ी तक भूखे-प्यासे और नंगे हैं, और घूसे खाते हैं और मारे-मारे फिरते हैं; (IN)

1 कुरिन्थियों 4:12 ¶ और अपने ही हाथों के काम करके परिश्रम करते हैं। लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:13 वे बदनाम करते हैं, हम विनती करते हैं हम आज तक जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन के समान ठहरे हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:14 ¶ मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये ये बातें नहीं लिखता, परन्तु अपने प्रिय बालक जानकर तुम्हें चिताता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:15 क्योंकि यदि मसीह में तुम्हारे सिखानेवाले दस हजार भी होते, तो भी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिए कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:16 इसलिए मैं तुम से विनती करता हूँ, कि मेरी जैसी चाल चलो। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:17 ¶ इसलिए मैंने तीमुथियुस को जो प्रभु में मेरा प्रिय और विश्वासयोग्य पुत्र है, तुम्हारे पास भेजा है, और वह तुम्हें मसीह में मेरा चरित्र स्मरण कराएगा, जैसे कि मैं हर जगह हर एक कलीसिया में उपदेश देता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:18 कितने तो ऐसे फूल गए हैं, मानो मैं तुम्हारे पास आने ही का नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:19 ¶ परन्तु प्रभु चाहे तो मैं तुम्हारे पास शीघ्र ही आऊँगा, और उन फूले हुओं की बातों को नहीं, परन्तु उनकी सामर्थ्य को जान लूँगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:20 क्योंकि परमेश्‍वर का राज्य बातों में नहीं, परन्तु सामर्थ्य में है। (IN)

1 कुरिन्थियों 4:21 तुम क्या चाहते हो? क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊँ या प्रेम और नम्रता की आत्मा के साथ? (IN)

1 कुरिन्थियों 5:1 ¶ यहाँ तक सुनने में आता है, कि तुम में व्यभिचार होता है, वरन् ऐसा व्यभिचार जो अन्यजातियों में भी नहीं होता, कि एक पुरुष अपने पिता की पत्‍नी को रखता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:2 और तुम शोक तो नहीं करते, जिससे ऐसा काम करनेवाला तुम्हारे बीच में से निकाला जाता, परन्तु घमण्ड करते हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:3 ¶ मैं तो शरीर के भाव से दूर था, परन्तु आत्मा के भाव से तुम्हारे साथ होकर, मानो उपस्थिति की दशा में ऐसे काम करनेवाले के विषय में न्याय कर चुका हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:4 कि जब तुम, और मेरी आत्मा, हमारे प्रभु यीशु की सामर्थ्य के साथ इकट्ठे हों, तो ऐसा मनुष्य, हमारे प्रभु यीशु के नाम से। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:5 शरीर के विनाश के लिये शैतान को सौंपा जाए, ताकि उसकी आत्मा प्रभु यीशु के दिन में उद्धार पाए। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:6 ¶ तुम्हारा घमण्ड करना अच्छा नहीं; क्या तुम नहीं जानते, कि थोड़ा सा ख़मीर पूरे गुँधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:7 पुराना ख़मीर निकालकर, अपने आप को शुद्ध करो कि नया गूँधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अख़मीरी हो, क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:8 इसलिए आओ हम उत्सव में आनन्द मनायें, न तो पुराने ख़मीर से और न बुराई और दुष्टता के ख़मीर से, परन्तु सिधाई और सच्चाई की अख़मीरी रोटी से। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:9 ¶ मैंने अपनी पत्री में तुम्हें लिखा है, कि व्यभिचारियों की संगति न करना। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:10 यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अंधेर करनेवालों, या मूर्तिपूजकों की संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:11 ¶ मेरा कहना यह है; कि यदि कोई भाई कहलाकर, व्यभिचारी, या लोभी, या मूर्तिपूजक, या गाली देनेवाला, या पियक्कड़, या अंधेर करनेवाला हो, तो उसकी संगति मत करना; वरन् ऐसे मनुष्य के साथ खाना भी न खाना। (IN)

1 कुरिन्थियों 5:12 क्योंकि मुझे बाहरवालों का न्याय करने से क्या काम? क्या तुम भीतरवालों का न्याय नहीं करते? (IN)

1 कुरिन्थियों 5:13 परन्तु बाहरवालों का न्याय परमेश्‍वर करता है: (IN)

1 कुरिन्थियों 6:1 ¶ क्या तुम में से किसी को यह साहस है, कि जब दूसरे के साथ झगड़ा हो, तो फैसले के लिये अधर्मियों के पास जाए; और पवित्र लोगों के पास न जाए? (IN)

1 कुरिन्थियों 6:2 क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे? और जब तुम्हें जगत का न्याय करना है, तो क्या तुम छोटे से छोटे झगड़ों का भी निर्णय करने के योग्य नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 6:3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? तो क्या सांसारिक बातों का निर्णय न करे? (IN)

1 कुरिन्थियों 6:4 ¶ यदि तुम्हें सांसारिक बातों का निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 6:5 मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये यह कहता हूँ। क्या सचमुच तुम में से एक भी बुद्धिमान नहीं मिलता, जो अपने भाइयों का निर्णय कर सके? (IN)

1 कुरिन्थियों 6:6 वरन् भाई-भाई में मुकद्दमा होता है, और वह भी अविश्वासियों के सामने। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:7 ¶ सचमुच तुम में बड़ा दोष तो यह है, कि आपस में मुकद्दमा करते हो। वरन् अन्याय क्यों नहीं सहते? अपनी हानि क्यों नहीं सहते? (IN)

1 कुरिन्थियों 6:8 वरन् अन्याय करते और हानि पहुँचाते हो, और वह भी भाइयों को। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:9 ¶ क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्‍वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:10 न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अंधेर करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस होंगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:11 और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्‍वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:12 ¶ सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुएँ लाभ की नहीं, सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित हैं, परन्तु मैं किसी बात के अधीन न हूँगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:13 भोजन पेट के लिये, और पेट भोजन के लिये है, परन्तु परमेश्‍वर इसको और उसको दोनों को नाश करेगा, परन्तु देह व्यभिचार के लिये नहीं, वरन् प्रभु के लिये; और प्रभु देह के लिये है। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:14 ¶ और परमेश्‍वर ने अपनी सामर्थ्य से प्रभु को जिलाया, और हमें भी जिलाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:15 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह मसीह के अंग हैं? तो क्या मैं मसीह के अंग लेकर उन्हें वेश्या के अंग बनाऊँ? कदापि नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:16 ¶ क्या तुम नहीं जानते, कि जो कोई वेश्या से संगति करता है, वह उसके साथ एक तन हो जाता है क्योंकि लिखा है, “वे दोनों एक तन होंगे।” (IN)

1 कुरिन्थियों 6:17 और जो प्रभु की संगति में रहता है, वह उसके साथ एक आत्मा हो जाता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:18 ¶ व्यभिचार से बचे रहो जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करनेवाला अपनी ही देह के विरुद्ध पाप करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 6:19 ¶ क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्‍वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? (IN)

1 कुरिन्थियों 6:20 क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिए अपनी देह के द्वारा परमेश्‍वर की महिमा करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:1 ¶ उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:2 परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्‍नी, और हर एक स्त्री का पति हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:3 ¶ पति अपनी पत्‍नी का हक़ पूरा करे; और वैसे ही पत्‍नी भी अपने पति का। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:4 पत्‍नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्‍नी को। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:5 ¶ तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:6 ¶ परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है न कि आज्ञा। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:7 मैं यह चाहता हूँ, कि जैसा मैं हूँ, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्‍वर की ओर से विशेष वरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:8 ¶ परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ, कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:9 परन्तु यदि वे संयम न कर सके, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:10 ¶ जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्‍नी अपने पति से अलग न हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:11 (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिना दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपनी पत्‍नी को छोड़े। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:12 ¶ दूसरों से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्‍नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्‍न हो, तो वह उसे न छोड़े। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:13 और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्‍न हो; वह पति को न छोड़े। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:14 क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्‍नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्‍नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल-बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:15 ¶ परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्‍वर ने तो हमें मेल-मिलाप के लिये बुलाया है। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:16 क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्‍नी का उद्धार करा लेगा? (IN)

1 कुरिन्थियों 7:17 ¶ पर जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्‍वर ने हर एक को बुलाया है; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:18 जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित न बने: जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना न कराए। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:19 न खतना कुछ है, और न खतनारहित परन्तु परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:20 ¶ हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:21 यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:22 क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:23 तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, मनुष्यों के दास न बनो। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:24 हे भाइयों, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्‍वर के साथ रहे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:25 ¶ कुँवारियों के विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली, परन्तु विश्वासयोग्य होने के लिये जैसी दया प्रभु ने मुझ पर की है, उसी के अनुसार सम्मति देता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:26 इसलिए मेरी समझ में यह अच्छा है, कि आजकल क्लेश के कारण मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:27 ¶ यदि तेरे पत्‍नी है, तो उससे अलग होने का यत्न न कर: और यदि तेरे पत्‍नी नहीं, तो पत्‍नी की खोज न कर: (IN)

1 कुरिन्थियों 7:28 परन्तु यदि तू विवाह भी करे, तो पाप नहीं; और यदि कुँवारी ब्याही जाए तो कोई पाप नहीं; परन्तु ऐसों को शारीरिक दुःख होगा, और मैं बचाना चाहता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:29 ¶ हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ, कि समय कम किया गया है, इसलिए चाहिए कि जिनके पत्‍नी हों, वे ऐसे हों मानो उनके पत्‍नी नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:30 और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले ऐसे हों, कि मानो उनके पास कुछ है नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:31 और इस संसार के साथ व्यवहार करनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:32 ¶ मैं यह चाहता हूँ, कि तुम्हें चिन्ता न हो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को कैसे प्रसन्‍न रखे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:33 परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातों की चिन्ता में रहता है, कि अपनी पत्‍नी को किस रीति से प्रसन्‍न रखे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:34 विवाहिता और अविवाहिता में भी भेद है: अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, कि वह देह और आत्मा दोनों में पवित्र हो, परन्तु विवाहिता संसार की चिन्ता में रहती है, कि अपने पति को प्रसन्‍न रखे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:35 ¶ यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिये कहता हूँ, न कि तुम्हें फँसाने के लिये, वरन् इसलिए कि जैसा उचित है; ताकि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:36 ¶ और यदि कोई यह समझे, कि मैं अपनी उस कुँवारी का हक़ मार रहा हूँ, जिसकी जवानी ढल रही है, और प्रयोजन भी हो, तो जैसा चाहे, वैसा करे, इसमें पाप नहीं, वह उसका विवाह होने दे। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:37 परन्तु यदि वह मन में फैसला करता है, और कोई अत्यावश्यकता नहीं है, और वह अपनी अभिलाषाओं को नियंत्रित कर सकता है, तो वह विवाह न करके अच्छा करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:38 तो जो अपनी कुँवारी का विवाह कर देता है, वह अच्छा करता है और जो विवाह नहीं कर देता, वह और भी अच्छा करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:39 ¶ जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तब तक वह उससे बंधी हुई है, परन्तु जब उसका पति मर जाए, तो जिससे चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में। (IN)

1 कुरिन्थियों 7:40 परन्तु जैसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूँ, कि परमेश्‍वर का आत्मा मुझ में भी है। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:1 ¶ अब मूरतों के सामने बलि की हुई वस्तुओं के विषय में हम जानते हैं, कि हम सब को ज्ञान है: ज्ञान घमण्ड उत्‍पन्‍न करता है, परन्तु प्रेम से उन्नति होती है। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:2 यदि कोई समझे, कि मैं कुछ जानता हूँ, तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:3 परन्तु यदि कोई परमेश्‍वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्‍वर पहचानता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:4 ¶ अतः मूरतों के सामने बलि की हुई वस्तुओं के खाने के विषय में हम जानते हैं, कि मूरत जगत में कोई वस्तु नहीं, और एक को छोड़ और कोई परमेश्‍वर नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:5 यद्यपि आकाश में और पृथ्वी पर बहुत से ईश्वर कहलाते हैं, (जैसा कि बहुत से ईश्वर और बहुत से प्रभु हैं)। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:6 तो भी हमारे निकट तो एक ही परमेश्‍वर है: (IN)

1 कुरिन्थियों 8:7 ¶ परन्तु सब को यह ज्ञान नहीं; परन्तु कितने तो अब तक मूरत को कुछ समझने के कारण मूरतों के सामने बलि की हुई को कुछ वस्तु समझकर खाते हैं, और उनका विवेक निर्बल होकर अशुद्ध होता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:8 ¶ भोजन हमें परमेश्‍वर के निकट नहीं पहुँचाता, यदि हम न खाएँ, तो हमारी कुछ हानि नहीं, और यदि खाएँ, तो कुछ लाभ नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:9 परन्तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता कहीं निर्बलों के लिये ठोकर का कारण हो जाए। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:10 क्योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूरत के मन्दिर में भोजन करते देखे, और वह निर्बल जन हो, तो क्या उसके विवेक में मूरत के सामने बलि की हुई वस्तु के खाने का साहस न हो जाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:11 ¶ इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिसके लिये मसीह मरा नाश हो जाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:12 तो भाइयों का अपराध करने से और उनके निर्बल विवेक को चोट देने से तुम मसीह का अपराध करते हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 8:13 इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाएँ, तो मैं कभी किसी रीति से माँस न खाऊँगा, न हो कि मैं अपने भाई के ठोकर का कारण बनूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:1 ¶ क्या मैं स्वतंत्र नहीं? क्या मैं प्रेरित नहीं? क्या मैंने यीशु को जो हमारा प्रभु है, नहीं देखा? क्या तुम प्रभु में मेरे बनाए हुए नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 9:2 यदि मैं औरों के लिये प्रेरित नहीं, फिर भी तुम्हारे लिये तो हूँ; क्योंकि तुम प्रभु में मेरी प्रेरिताई पर छाप हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:3 ¶ जो मुझे जाँचते हैं, उनके लिये यही मेरा उत्तर है। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:4 क्या हमें खाने-पीने का अधिकार नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 9:5 क्या हमें यह अधिकार नहीं, कि किसी मसीही बहन को विवाह कर के साथ लिए फिरें, जैसा अन्य प्रेरित और प्रभु के भाई और कैफा करते हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 9:6 या केवल मुझे और बरनबास को ही जीवन-निर्वाह के लिए काम करना चाहिए। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:7 ¶ कौन कभी अपनी गिरह से खाकर सिपाही का काम करता है? कौन दाख की बारी लगाकर उसका फल नहीं खाता? कौन भेड़ों की रखवाली करके उनका दूध नहीं पीता? (IN)

1 कुरिन्थियों 9:8 क्या मैं ये बातें मनुष्य ही की रीति पर बोलता हूँ? (IN)

1 कुरिन्थियों 9:9 ¶ क्या व्यवस्था भी यही नहीं कहती? क्योंकि मूसा की व्यवस्था में लिखा है “दाँवते समय चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना।” क्या परमेश्‍वर बैलों ही की चिन्ता करता है? (IN)

1 कुरिन्थियों 9:10 या विशेष करके हमारे लिये कहता है। हाँ, हमारे लिये ही लिखा गया, क्योंकि उचित है, कि जोतनेवाला आशा से जोते, और दाँवनेवाला भागी होने की आशा से दाँवनी करे। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:11 यदि हमने तुम्हारे लिये आत्मिक वस्तुएँ बोई, तो क्या यह कोई बड़ी बात है, कि तुम्हारी शारीरिक वस्तुओं की फसल काटें। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:12 ¶ जब औरों का तुम पर यह अधिकार है, तो क्या हमारा इससे अधिक न होगा? परन्तु हम यह अधिकार काम में नहीं लाए; परन्तु सब कुछ सहते हैं, कि हमारे द्वारा मसीह के सुसमाचार की कुछ रोक न हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:13 क्या तुम नहीं जानते कि जो मन्दिर में सेवा करते हैं, वे मन्दिर में से खाते हैं; और जो वेदी की सेवा करते हैं; वे वेदी के साथ भागी होते हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 9:14 इसी रीति से प्रभु ने भी ठहराया, कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं, उनकी जीविका सुसमाचार से हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:15 ¶ परन्तु मैं इनमें से कोई भी बात काम में न लाया, और मैंने तो ये बातें इसलिए नहीं लिखीं, कि मेरे लिये ऐसा किया जाए, क्योंकि इससे तो मेरा मरना ही भला है; कि कोई मेरा घमण्ड व्यर्थ ठहराए। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:16 यदि मैं सुसमाचार सुनाऊँ, तो मेरा कुछ घमण्ड नहीं; क्योंकि यह तो मेरे लिये अवश्य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊँ, तो मुझ पर हाय! (IN)

1 कुरिन्थियों 9:17 ¶ क्योंकि यदि अपनी इच्छा से यह करता हूँ, तो मजदूरी मुझे मिलती है, और यदि अपनी इच्छा से नहीं करता, तो भी भण्डारीपन मुझे सौंपा गया है। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:18 तो फिर मेरी कौन सी मजदूरी है? यह कि सुसमाचार सुनाने में मैं मसीह का सुसमाचार सेंत-मेंत कर दूँ; यहाँ तक कि सुसमाचार में जो मेरा अधिकार है, उसको मैं पूरी रीति से काम में लाऊँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:19 ¶ क्योंकि सबसे स्वतंत्र होने पर भी मैंने अपने आप को सब का दास बना दिया है; कि अधिक लोगों को खींच लाऊँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:20 मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना कि यहूदियों को खींच लाऊँ, जो लोग व्यवस्था के अधीन हैं उनके लिये मैं व्यवस्था के अधीन न होने पर भी व्यवस्था के अधीन बना, कि उन्हें जो व्यवस्था के अधीन हैं, खींच लाऊँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:21 ¶ व्यवस्थाहीनों के लिये मैं (जो परमेश्‍वर की व्यवस्था से हीन नहीं, परन्तु मसीह की व्यवस्था के अधीन हूँ) व्यवस्थाहीन सा बना, कि व्यवस्थाहीनों को खींच लाऊँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:22 मैं निर्बलों के लिये निर्बल सा बना, कि निर्बलों को खींच लाऊँ, मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूँ, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:23 और मैं सब कुछ सुसमाचार के लिये करता हूँ, कि औरों के साथ उसका भागी हो जाऊँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:24 ¶ क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है? तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:25 और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझानेवाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:26 इसलिए मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूँ, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूँ, परन्तु उसके समान नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 9:27 परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूँ; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:1 ¶ हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस बात से अज्ञात रहो, कि हमारे सब पूर्वज बादल के नीचे थे, और सब के सब समुद्र के बीच से पार हो गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:2 और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपतिस्मा लिया। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:3 और सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:4 और सब ने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे, जो उनके साथ-साथ चलती थी; और वह चट्टान मसीह था। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:5 ¶ परन्तु परमेश्‍वर उनमें से बहुतों से प्रसन्‍न ना था, इसलिए वे जंगल में ढेर हो गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:6 ये बातें हमारे लिये दृष्टान्त ठहरी, कि जैसे उन्होंने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:7 ¶ और न तुम मूरत पूजनेवाले बनो; जैसे कि उनमें से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, “लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने उठे।” (IN)

1 कुरिन्थियों 10:8 और न हम व्यभिचार करें; जैसा उनमें से कितनों ने किया और एक दिन में तेईस हजार मर गये। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:9 ¶ और न हम प्रभु को परखें; जैसा उनमें से कितनों ने किया, और साँपों के द्वारा नाश किए गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:10 और न तुम कुड़कुड़ाओ, जिस रीति से उनमें से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:11 ¶ परन्तु ये सब बातें, जो उन पर पड़ी, दृष्टान्त की रीति पर थीं; और वे हमारी चेतावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:12 इसलिए जो समझता है, “मैं स्थिर हूँ,” वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:13 तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने के बाहर है: और परमेश्‍वर विश्वासयोग्य है: वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:14 ¶ इस कारण, हे मेरे प्यारों मूर्ति पूजा से बचे रहो। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:15 मैं बुद्धिमान जानकर, तुम से कहता हूँ: जो मैं कहता हूँ, उसे तुम परखो। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:16 वह धन्यवाद का कटोरा, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं, क्या वह मसीह के लहू की सहभागिता नहीं? वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या मसीह की देह की सहभागिता नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 10:17 इसलिए, कि एक ही रोटी है तो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:18 ¶ जो शरीर के भाव से इस्राएली हैं, उनको देखो: क्या बलिदानों के खानेवाले वेदी के सहभागी नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 10:19 फिर मैं क्या कहता हूँ? क्या यह कि मूर्ति का बलिदान कुछ है, या मूरत कुछ है? (IN)

1 कुरिन्थियों 10:20 ¶ नहीं, बस यह, कि अन्यजाति जो बलिदान करते हैं, वे परमेश्‍वर के लिये नहीं, परन्तु दुष्टात्माओं के लिये बलिदान करते हैं और मैं नहीं चाहता, कि तुम दुष्टात्माओं के सहभागी हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:21 तुम प्रभु के कटोरे, और दुष्टात्माओं के कटोरे दोनों में से नहीं पी सकते! तुम प्रभु की मेज और दुष्टात्माओं की मेज दोनों के सहभागी नहीं हो सकते। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:22 क्या हम प्रभु को क्रोध दिलाते हैं? क्या हम उससे शक्तिमान हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 10:23 ¶ सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं। सब वस्तुएँ मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुओं से उन्नति नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:24 कोई अपनी ही भलाई को न ढूँढ़े वरन् औरों की। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:25 ¶ जो कुछ कस्साइयों के यहाँ बिकता है, वह खाओ और विवेक के कारण कुछ न पूछो। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:26 “क्योंकि पृथ्वी और उसकी भरपूरी प्रभु की है।” (IN)

1 कुरिन्थियों 10:27 और यदि अविश्वासियों में से कोई तुम्हें नेवता दे, और तुम जाना चाहो, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ: और विवेक के कारण कुछ न पूछो। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:28 ¶ परन्तु यदि कोई तुम से कहे, “यह तो मूरत को बलि की हुई वस्तु है,” तो उसी बतानेवाले के कारण, और विवेक के कारण न खाओ। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:29 मेरा मतलब, तेरा विवेक नहीं, परन्तु उस दूसरे का। भला, मेरी स्वतंत्रता दूसरे के विचार से क्यों परखी जाए? (IN)

1 कुरिन्थियों 10:30 यदि मैं धन्यवाद करके सहभागी होता हूँ, तो जिस पर मैं धन्यवाद करता हूँ, उसके कारण मेरी बदनामी क्यों होती है? (IN)

1 कुरिन्थियों 10:31 ¶ इसलिए तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:32 तुम न यहूदियों, न यूनानियों, और न परमेश्‍वर की कलीसिया के लिये ठोकर के कारण बनो। (IN)

1 कुरिन्थियों 10:33 जैसा मैं भी सब बातों में सब को प्रसन्‍न रखता हूँ, और अपना नहीं, परन्तु बहुतों का लाभ ढूँढ़ता हूँ, कि वे उद्धार पाएँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:1 ¶ तुम मेरी जैसी चाल चलो जैसा मैं मसीह के समान चाल चलता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:2 ¶ मैं तुम्हें सराहता हूँ, कि सब बातों में तुम मुझे स्मरण करते हो; और जो व्यवहार मैंने तुम्हें सौंप दिए हैं, उन्हें धारण करते हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:3 पर मैं चाहता हूँ, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्‍वर है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:4 जो पुरुष सिर ढाँके हुए प्रार्थना या भविष्यद्वाणी करता है, वह अपने सिर का अपमान करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:5 ¶ परन्तु जो स्त्री बिना सिर ढके प्रार्थना या भविष्यद्वाणी करती है, वह अपने सिर का अपमान करती है, क्योंकि वह मुण्डी होने के बराबर है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:6 यदि स्त्री ओढ़नी न ओढ़े, तो बाल भी कटा ले; यदि स्त्री के लिये बाल कटाना या मुण्डाना लज्जा की बात है, तो ओढ़नी ओढ़े। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:7 ¶ हाँ पुरुष को अपना सिर ढाँकना उचित नहीं, क्योंकि वह परमेश्‍वर का स्वरूप और महिमा है; परन्तु स्त्री पुरुष की शोभा है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:8 क्योंकि पुरुष स्त्री से नहीं हुआ, परन्तु स्त्री पुरुष से हुई है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:9 ¶ और पुरुष स्त्री के लिये नहीं सिरजा गया, परन्तु स्त्री पुरुष के लिये सिरजी गई है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:10 इसलिए स्वर्गदूतों के कारण स्त्री को उचित है, कि अधिकार अपने सिर पर रखे। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:11 ¶ तो भी प्रभु में न तो स्त्री बिना पुरुष और न पुरुष बिना स्त्री के है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:12 क्योंकि जैसे स्त्री पुरुष से है, वैसे ही पुरुष स्त्री के द्वारा है; परन्तु सब वस्तुएँ परमेश्‍वर से हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:13 ¶ तुम स्वयं ही विचार करो, क्या स्त्री को बिना सिर ढके परमेश्‍वर से प्रार्थना करना उचित है? (IN)

1 कुरिन्थियों 11:14 क्या स्वाभाविक रीति से भी तुम नहीं जानते, कि यदि पुरुष लम्बे बाल रखे, तो उसके लिये अपमान है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:15 परन्तु यदि स्त्री लम्बे बाल रखे; तो उसके लिये शोभा है क्योंकि बाल उसको ओढ़नी के लिये दिए गए हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:16 परन्तु यदि कोई विवाद करना चाहे, तो यह जाने कि न हमारी और न परमेश्‍वर की कलीसियाओं की ऐसी रीति है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:17 ¶ परन्तु यह निर्देश देते हुए, मैं तुम्हें नहीं सराहता, इसलिए कि तुम्हारे इकट्ठे होने से भलाई नहीं, परन्तु हानि होती है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:18 क्योंकि पहले तो मैं यह सुनता हूँ, कि जब तुम कलीसिया में इकट्ठे होते हो, तो तुम में फूट होती है और मैं कुछ-कुछ विश्वास भी करता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:19 क्योंकि विधर्म भी तुम में अवश्य होंगे, इसलिए कि जो लोग तुम में खरे निकले हैं, वे प्रगट हो जाएँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:20 ¶ जब तुम एक जगह में इकट्ठे होते हो तो यह प्रभु भोज खाने के लिये नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:21 क्योंकि खाने के समय एक दूसरे से पहले अपना भोज खा लेता है, तब कोई भूखा रहता है, और कोई मतवाला हो जाता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:22 क्या खाने-पीने के लिये तुम्हारे घर नहीं? या परमेश्‍वर की कलीसिया को तुच्छ जानते हो, और जिनके पास नहीं है उन्हें लज्जित करते हो? मैं तुम से क्या कहूँ? क्या इस बात में तुम्हारी प्रशंसा करूँ? मैं प्रशंसा नहीं करता। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:23 ¶ क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुँची, और मैंने तुम्हें भी पहुँचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात पकड़वाया गया रोटी ली, (IN)

1 कुरिन्थियों 11:24 और धन्यवाद करके उसे तोड़ी, और कहा, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (IN)

1 कुरिन्थियों 11:25 ¶ इसी रीति से उसने बियारी के बाद कटोरा भी लिया, और कहा, “यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (IN)

1 कुरिन्थियों 11:26 क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:27 ¶ इसलिए जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लहू का अपराधी ठहरेगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:28 इसलिए मनुष्य अपने आप को जाँच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:29 क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहचाने, वह इस खाने और पीने से अपने ऊपर दण्ड लाता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:30 इसी कारण तुम में बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:31 ¶ यदि हम अपने आप को जाँचते, तो दण्ड न पाते। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:32 परन्तु प्रभु हमें दण्ड देकर हमारी ताड़ना करता है इसलिए कि हम संसार के साथ दोषी न ठहरें। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:33 ¶ इसलिए, हे मेरे भाइयों, जब तुम खाने के लिये इकट्ठे होते हो, तो एक दूसरे के लिये ठहरा करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 11:34 यदि कोई भूखा हो, तो अपने घर में खा ले जिससे तुम्हारा इकट्ठा होना दण्ड का कारण न हो। और शेष बातों को मैं आकर ठीक कर दूँगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:1 ¶ हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम आत्मिक वरदानों के विषय में अज्ञात रहो। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:2 तुम जानते हो, कि जब तुम अन्यजाति थे, तो गूंगी मूरतों के पीछे जैसे चलाए जाते थे वैसे चलते थे। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:3 इसलिए मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ कि जो कोई परमेश्‍वर की आत्मा की अगुआई से बोलता है, वह नहीं कहता कि यीशु श्रापित है; और न कोई पवित्र आत्मा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:4 ¶ वरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्मा एक ही है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:5 और सेवा भी कई प्रकार की है, परन्तु प्रभु एक ही है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:6 और प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमेश्‍वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्‍पन्‍न करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:7 ¶ किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:8 क्योंकि एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:9 ¶ और किसी को उसी आत्मा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्मा से चंगा करने का वरदान दिया जाता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:10 फिर किसी को सामर्थ्य के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को आत्माओं की परख, और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्थ बताना। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:11 परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बाँट देता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:12 ¶ क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:13 क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या यूनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:14 ¶ इसलिए कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:15 यदि पाँव कहे: कि मैं हाथ नहीं, इसलिए देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 12:16 और यदि कान कहे, “मैं आँख नहीं, इसलिए देह का नहीं,” तो क्या वह इस कारण देह का नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 12:17 यदि सारी देह आँख ही होती तो सुनना कहाँ से होता? यदि सारी देह कान ही होती तो सूँघना कहाँ होता? (IN)

1 कुरिन्थियों 12:18 ¶ परन्तु सचमुच परमेश्‍वर ने अंगों को अपनी इच्छा के अनुसार एक-एक करके देह में रखा है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:19 यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहाँ होती? (IN)

1 कुरिन्थियों 12:20 परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:21 ¶ आँख हाथ से नहीं कह सकती, “मुझे तेरा प्रयोजन नहीं,” और न सिर पाँवों से कह सकता है, “मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।” (IN)

1 कुरिन्थियों 12:22 परन्तु देह के वे अंग जो औरों से निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:23 और देह के जिन अंगों को हम कम आदरणीय समझते हैं उन्हीं को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं, (IN)

1 कुरिन्थियों 12:24 फिर भी हमारे शोभायमान अंगों को इसका प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्‍वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:25 ¶ ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:26 इसलिए यदि एक अंग दुःख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दुःख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साथ सब अंग आनन्द मनाते हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:27 इसी प्रकार तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और अलग-अलग उसके अंग हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:28 ¶ और परमेश्‍वर ने कलीसिया में अलग-अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं; प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ्य के काम करनेवाले, फिर चंगा करनेवाले, और उपकार करनेवाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बोलनेवाले। (IN)

1 कुरिन्थियों 12:29 क्या सब प्रेरित हैं? क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं? क्या सब उपदेशक हैं? क्या सब सामर्थ्य के काम करनेवाले हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 12:30 ¶ क्या सब को चंगा करने का वरदान मिला है? क्या सब नाना प्रकार की भाषा बोलते हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 12:31 क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़े से बड़े वरदानों की धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सबसे उत्तम मार्ग बताता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:1 ¶ यदि मैं मनुष्यों, और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झाँझ हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परन्तु प्रेम न रखूँ, तो मैं कुछ भी नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:4 ¶ प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:5 अशोभनीय व्यवहार नहीं करता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुँझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:8 ¶ प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियाँ हों, तो समाप्त हो जाएँगी, भाषाएँ मौन हो जाएँगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:10 परन्तु जब सर्वसिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:11 ¶ जब मैं बालक था, तो मैं बालकों के समान बोलता था, बालकों के समान मन था बालकों सी समझ थी; परन्तु सयाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:12 अब हमें दर्पण में धुँधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने-सामने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहचानूँगा, जैसा मैं पहचाना गया हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी है, पर इनमें सबसे बड़ा प्रेम है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:1 ¶ प्रेम का अनुकरण करो, और आत्मिक वरदानों की भी धुन में रहो विशेष करके यह, कि भविष्यद्वाणी करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:2 क्योंकि जो अन्य भाषा में बातें करता है; वह मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर से बातें करता है; इसलिए कि उसकी बातें कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:3 परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:4 जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपनी ही उन्नति करता है; परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उन्नति करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:5 ¶ मैं चाहता हूँ, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूँ कि भविष्यद्वाणी करो: क्योंकि यदि अन्य भाषा बोलनेवाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यद्वाणी करनेवाला उससे बढ़कर है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:6 ¶ इसलिए हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य भाषा में बातें करूँ, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपदेश की बातें तुम से न कहूँ, तो मुझसे तुम्हें क्या लाभ होगा? (IN)

1 कुरिन्थियों 14:7 इसी प्रकार यदि निर्जीव वस्तुएँ भी, जिनसे ध्वनि निकलती है जैसे बाँसुरी, या बीन, यदि उनके स्वरों में भेद न हो तो जो फूँका या बजाया जाता है, वह क्यों पहचाना जाएगा? (IN)

1 कुरिन्थियों 14:8 और यदि तुरही का शब्द साफ न हो तो कौन लड़ाई के लिये तैयारी करेगा? (IN)

1 कुरिन्थियों 14:9 ऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है? वह कैसे समझा जाएगा? तुम तो हवा से बातें करनेवाले ठहरोगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:10 ¶ जगत में कितने ही प्रकार की भाषाएँ क्यों न हों, परन्तु उनमें से कोई भी बिना अर्थ की न होगी। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:11 ¶ इसलिए यदि मैं किसी भाषा का अर्थ न समझूँ, तो बोलनेवाले की दृष्टि में परदेशी ठहरूँगा; और बोलनेवाला मेरी दृष्टि में परदेशी ठहरेगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:12 इसलिए तुम भी जब आत्मिक वरदानों की धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:13 इस कारण जो अन्य भाषा बोले, तो वह प्रार्थना करे, कि उसका अनुवाद भी कर सके। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:14 इसलिए यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करूँ, तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:15 ¶ तो क्या करना चाहिए? मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूँगा, और बुद्धि से भी प्रार्थना करूँगा; मैं आत्मा से गाऊँगा, और बुद्धि से भी गाऊँगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:16 नहीं तो यदि तू आत्मा ही से धन्यवाद करेगा, तो फिर अज्ञानी तेरे धन्यवाद पर आमीन क्यों कहेगा? इसलिए कि वह तो नहीं जानता, कि तू क्या कहता है? (IN)

1 कुरिन्थियों 14:17 ¶ तू तो भली भाँति से धन्यवाद करता है, परन्तु दूसरे की उन्नति नहीं होती। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:18 मैं अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ, कि मैं तुम सबसे अधिक अन्य भाषा में बोलता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:19 परन्तु कलीसिया में अन्य भाषा में दस हजार बातें कहने से यह मुझे और भी अच्छा जान पड़ता है, कि औरों के सिखाने के लिये बुद्धि से पाँच ही बातें कहूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:20 ¶ हे भाइयों, तुम समझ में बालक न बनो: फिर भी बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सयाने बनो। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:21 व्यवस्था में लिखा है, (IN)

1 कुरिन्थियों 14:22 ¶ इसलिए अन्य भाषाएँ विश्वासियों के लिये नहीं, परन्तु अविश्वासियों के लिये चिन्ह हैं, और भविष्यद्वाणी अविश्वासियों के लिये नहीं परन्तु विश्वासियों के लिये चिन्ह हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:23 तो यदि कलीसिया एक जगह इकट्ठी हो, और सब के सब अन्य भाषा बोलें, और बाहरवाले या अविश्वासी लोग भीतर आ जाएँ तो क्या वे तुम्हें पागल न कहेंगे? (IN)

1 कुरिन्थियों 14:24 ¶ परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्वासी या बाहरवाले मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परख लेंगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:25 और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएँगे, और तब वह मुँह के बल गिरकर परमेश्‍वर को दण्डवत् करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्‍वर तुम्हारे बीच में है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:26 ¶ इसलिए हे भाइयों क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन, या उपदेश, या अन्य भाषा, या प्रकाश, या अन्य भाषा का अर्थ बताना रहता है: सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:27 यदि अन्य भाषा में बातें करनी हों, तो दो-दो, या बहुत हो तो तीन-तीन जन बारी-बारी बोलें, और एक व्यक्ति अनुवाद करे। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:28 परन्तु यदि अनुवाद करनेवाला न हो, तो अन्य भाषा बोलनेवाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपने मन से, और परमेश्‍वर से बातें करे। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:29 ¶ भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उनके वचन को परखें। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:30 परन्तु यदि दूसरे पर जो बैठा है, कुछ ईश्वरीय प्रकाश हो, तो पहला चुप हो जाए। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:31 ¶ क्योंकि तुम सब एक-एक करके भविष्यद्वाणी कर सकते हो ताकि सब सीखें, और सब शान्ति पाएँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:32 और भविष्यद्वक्ताओं की आत्मा भविष्यद्वक्ताओं के वश में है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:33 क्योंकि परमेश्‍वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्ता है; (IN)

1 कुरिन्थियों 14:34 ¶ स्त्रियाँ कलीसिया की सभा में चुप रहें, क्योंकि उन्हें बातें करने की अनुमति नहीं, परन्तु अधीन रहने की आज्ञा है: जैसा व्यवस्था में लिखा भी है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:35 और यदि वे कुछ सीखना चाहें, तो घर में अपने-अपने पति से पूछें, क्योंकि स्त्री का कलीसिया में बातें करना लज्जा की बात है। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:36 क्यों परमेश्‍वर का वचन तुम में से निकला? या केवल तुम ही तक पहुँचा है? (IN)

1 कुरिन्थियों 14:37 ¶ यदि कोई मनुष्य अपने आप को भविष्यद्वक्ता या आत्मिक जन समझे, तो यह जान ले, कि जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूँ, वे प्रभु की आज्ञायें हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:38 परन्तु यदि कोई न माने, तो न माने। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:39 ¶ अतः हे भाइयों, भविष्यद्वाणी करने की धुन में रहो और अन्य भाषा बोलने से मना न करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 14:40 पर सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:1 ¶ हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूँ जो पहले सुना चुका हूँ, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिसमें तुम स्थिर भी हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:2 उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैंने तुम्हें सुनाया था स्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:3 ¶ इसी कारण मैंने सबसे पहले तुम्हें वही बात पहुँचा दी, जो मुझे पहुँची थी, कि पवित्रशास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:4 और गाड़ा गया; और पवित्रशास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:5 ¶ और कैफा को तब बारहों को दिखाई दिया। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:6 फिर पाँच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया, जिनमें से बहुत सारे अब तक वर्तमान हैं पर कितने सो गए। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:7 फिर याकूब को दिखाई दिया तब सब प्रेरितों को दिखाई दिया। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:8 ¶ और सब के बाद मुझ को भी दिखाई दिया, जो मानो अधूरे दिनों का जन्मा हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:9 क्योंकि मैं प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ, वरन् प्रेरित कहलाने के योग्य भी नहीं, क्योंकि मैंने परमेश्‍वर की कलीसिया को सताया था। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:10 ¶ परन्तु मैं जो कुछ भी हूँ, परमेश्‍वर के अनुग्रह से हूँ। और उसका अनुग्रह जो मुझ पर हुआ, वह व्यर्थ नहीं हुआ परन्तु मैंने उन सबसे बढ़कर परिश्रम भी किया तो भी यह मेरी ओर से नहीं हुआ परन्तु परमेश्‍वर के अनुग्रह से जो मुझ पर था। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:11 इसलिए चाहे मैं हूँ, चाहे वे हों, हम यही प्रचार करते हैं, और इसी पर तुम ने विश्वास भी किया। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:12 ¶ अतः जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा, तो तुम में से कितने क्यों कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 15:13 यदि मरे हुओं का पुनरुत्थान ही नहीं, तो मसीह भी नहीं जी उठा। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:14 और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:15 ¶ वरन् हम परमेश्‍वर के झूठे गवाह ठहरे; क्योंकि हमने परमेश्‍वर के विषय में यह गवाही दी कि उसने मसीह को जिला दिया यद्यपि नहीं जिलाया, यदि मरे हुए नहीं जी उठते। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:16 और यदि मुर्दे नहीं जी उठते, तो मसीह भी नहीं जी उठा। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:17 और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो तुम्हारा विश्वास व्यर्थ है; और तुम अब तक अपने पापों में फँसे हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:18 ¶ वरन् जो मसीह में सो गए हैं, वे भी नाश हुए। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:19 यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्यों से अधिक अभागे हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:20 ¶ परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उनमें पहला फल हुआ। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:21 क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:22 ¶ और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएँगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:23 परन्तु हर एक अपनी-अपनी बारी से; पहला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:24 ¶ इसके बाद अन्त होगा; उस समय वह सारी प्रधानता और सारा अधिकार और सामर्थ्य का अन्त करके राज्य को परमेश्‍वर पिता के हाथ में सौंप देगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:25 क्योंकि जब तक कि वह अपने बैरियों को अपने पाँवों तले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:26 सबसे अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:27 ¶ क्योंकि “परमेश्‍वर ने सब कुछ उसके पाँवों तले कर दिया है,” परन्तु जब वह कहता है कि सब कुछ उसके अधीन कर दिया गया है तो स्पष्ट है, कि जिस ने सब कुछ मसीह के अधीन कर दिया, वह आप अलग रहा। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:28 और जब सब कुछ उसके अधीन हो जाएगा, तो पुत्र आप भी उसके अधीन हो जाएगा जिस ने सब कुछ उसके अधीन कर दिया; ताकि सब में परमेश्‍वर ही सब कुछ हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:29 ¶ नहीं तो जो लोग मरे हुओं के लिये बपतिस्मा लेते हैं, वे क्या करेंगे? यदि मुर्दे जी उठते ही नहीं तो फिर क्यों उनके लिये बपतिस्मा लेते हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 15:30 और हम भी क्यों हर घड़ी जोखिम में पड़े रहते हैं? (IN)

1 कुरिन्थियों 15:31 ¶ हे भाइयों, मुझे उस घमण्ड की शपथ जो हमारे मसीह यीशु में मैं तुम्हारे विषय में करता हूँ, कि मैं प्रतिदिन मरता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:32 यदि मैं मनुष्य की रीति पर इफिसुस में वन-पशुओं से लड़ा, तो मुझे क्या लाभ हुआ? यदि मुर्दे जिलाए नहीं जाएँगे, “तो आओ, खाएँ-पीएँ, क्योंकि कल तो मर ही जाएँगे।” (IN)

1 कुरिन्थियों 15:33 ¶ धोखा न खाना, “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (IN)

1 कुरिन्थियों 15:34 ¶ धार्मिकता के लिये जाग उठो और पाप न करो; क्योंकि कितने ऐसे हैं जो परमेश्‍वर को नहीं जानते, मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये यह कहता हूँ। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:35 ¶ अब कोई यह कहेगा, “मुर्दे किस रीति से जी उठते हैं, और किस देह के साथ आते हैं?” (IN)

1 कुरिन्थियों 15:36 हे निर्बुद्धि, जो कुछ तू बोता है, जब तक वह न मरे जिलाया नहीं जाता। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:37 ¶ और जो तू बोता है, यह वह देह नहीं जो उत्‍पन्‍न होनेवाली है, परन्तु केवल दाना है, चाहे गेहूँ का, चाहे किसी और अनाज का। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:38 परन्तु परमेश्‍वर अपनी इच्छा के अनुसार उसको देह देता है; और हर एक बीज को उसकी विशेष देह। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:39 सब शरीर एक समान नहीं, परन्तु मनुष्यों का शरीर और है, पशुओं का शरीर और है; पक्षियों का शरीर और है; मछलियों का शरीर और है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:40 ¶ स्वर्गीय देह है, और पार्थिव देह भी है: परन्तु स्वर्गीय देहों का तेज और हैं, और पार्थिव का और। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:41 सूर्य का तेज और है, चाँद का तेज और है, और तारागणों का तेज और है, क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:42 ¶ मुर्दों का जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशवान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:43 वह अनादर के साथ बोया जाता है, और तेज के साथ जी उठता है; निर्बलता के साथ बोया जाता है; और सामर्थ्य के साथ जी उठता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:44 स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है: जब कि स्वाभाविक देह है, तो आत्मिक देह भी है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:45 ¶ ऐसा ही लिखा भी है, “प्रथम मनुष्य, अर्थात् आदम, जीवित प्राणी बना” और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्मा बना। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:46 परन्तु पहले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इसके बाद आत्मिक हुआ। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:47 ¶ प्रथम मनुष्य धरती से अर्थात् मिट्टी का था; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:48 जैसा वह मिट्टी का था वैसे ही वे भी हैं जो मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही वे भी स्वर्गीय हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:49 और जैसे हमने उसका रूप जो मिट्टी का था धारण किया वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:50 ¶ हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ कि माँस और लहू परमेश्‍वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते, और न नाशवान अविनाशी का अधिकारी हो सकता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:51 देखो, मैं तुम से भेद की बात कहता हूँ: कि हम सब तो नहीं सोएँगे, परन्तु सब बदल जाएँगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:52 ¶ और यह क्षण भर में, पलक मारते ही अन्तिम तुरही फूँकते ही होगा क्योंकि तुरही फूँकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएँगे, और हम बदल जाएँगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:53 क्योंकि अवश्य है, कि वह नाशवान देह अविनाश को पहन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहन ले। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:54 ¶ और जब यह नाशवान अविनाश को पहन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहन लेगा, तब वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, (IN)

1 कुरिन्थियों 15:55 हे मृत्यु तेरी जय कहाँ रहीं? (IN)

1 कुरिन्थियों 15:56 ¶ मृत्यु का डंक पाप है; और पाप का बल व्यवस्था है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:57 परन्तु परमेश्‍वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्त करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 15:58 ¶ इसलिए हे मेरे प्रिय भाइयों, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:1 ¶ अब उस चन्दे के विषय में जो पवित्र लोगों के लिये किया जाता है, जैसा निर्देश मैंने गलातिया की कलीसियाओं को दी, वैसा ही तुम भी करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:2 सप्ताह के पहले दिन तुम में से हर एक अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अपने पास रख छोड़ा करे, कि मेरे आने पर चन्दा न करना पड़े। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:3 ¶ और जब मैं आऊँगा, तो जिन्हें तुम चाहोगे उन्हें मैं चिट्ठियाँ देकर भेज दूँगा, कि तुम्हारा दान यरूशलेम पहुँचा दें। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:4 और यदि मेरा भी जाना उचित हुआ, तो वे मेरे साथ जाएँगे। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:5 ¶ और मैं मकिदुनिया होकर तुम्हारे पास आऊँगा, क्योंकि मुझे मकिदुनिया होकर जाना ही है। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:6 परन्तु सम्भव है कि तुम्हारे यहाँ ही ठहर जाऊँ और शरद ऋतु तुम्हारे यहाँ काटूँ, तब जिस ओर मेरा जाना हो, उस ओर तुम मुझे पहुँचा दो। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:7 ¶ क्योंकि मैं अब मार्ग में तुम से भेंट करना नहीं चाहता; परन्तु मुझे आशा है, कि यदि प्रभु चाहे तो कुछ समय तक तुम्हारे साथ रहूँगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:8 परन्तु मैं पिन्तेकुस्त तक इफिसुस में रहूँगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:9 क्योंकि मेरे लिये एक बड़ा और उपयोगी द्वार खुला है, और विरोधी बहुत से हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:10 ¶ यदि तीमुथियुस आ जाए, तो देखना, कि वह तुम्हारे यहाँ निडर रहे; क्योंकि वह मेरे समान प्रभु का काम करता है। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:11 इसलिए कोई उसे तुच्छ न जाने, परन्तु उसे कुशल से इस ओर पहुँचा देना, कि मेरे पास आ जाए; क्योंकि मैं उसकी प्रतीक्षा करता रहा हूँ, कि वह भाइयों के साथ आए। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:12 और भाई अपुल्लोस से मैंने बहुत विनती की है कि तुम्हारे पास भाइयों के साथ जाए; परन्तु उसने इस समय जाने की कुछ भी इच्छा न की, परन्तु जब अवसर पाएगा, तब आ जाएगा। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:13 ¶ जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो, पुरुषार्थ करो, बलवन्त हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:14 जो कुछ करते हो प्रेम से करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:15 ¶ हे भाइयों, तुम स्तिफनास के घराने को जानते हो, कि वे अखाया के पहले फल हैं, और पवित्र लोगों की सेवा के लिये तैयार रहते हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:16 इसलिए मैं तुम से विनती करता हूँ कि ऐसों के अधीन रहो, वरन् हर एक के जो इस काम में परिश्रमी और सहकर्मी हैं। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:17 ¶ और मैं स्तिफनास और फूरतूनातुस और अखइकुस के आने से आनन्दित हूँ, क्योंकि उन्होंने तुम्हारी घटी को पूरी की है। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:18 और उन्होंने मेरी और तुम्हारी आत्मा को चैन दिया है इसलिए ऐसों को मानो। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:19 ¶ आसिया की कलीसियाओं की ओर से तुम को नमस्कार; अक्विला और प्रिस्का का और उनके घर की कलीसिया का भी तुम को प्रभु में बहुत-बहुत नमस्कार। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:20 सब भाइयों का तुम को नमस्कार: पवित्र चुम्बन से आपस में नमस्कार करो। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:21 ¶ मुझ पौलुस का अपने हाथ का लिखा हुआ नमस्कार: यदि कोई प्रभु से प्रेम न रखे तो वह श्रापित हो। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:22 हमारा प्रभु आनेवाला है। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:23 प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे। (IN)

1 कुरिन्थियों 16:24 मेरा प्रेम मसीह यीशु में तुम सब के साथ रहे। आमीन। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:1 ¶ पौलुस की ओर से जो परमेश्‍वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से परमेश्‍वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस में है, और सारे अखाया के सब पवित्र लोगों के नाम: (IN)

2 कुरिन्थियों 1:2 हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:3 ¶ हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्‍वर है। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:4 वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्‍वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सके, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:5 ¶ क्योंकि जैसे मसीह के दुःख हमको अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्ति में भी मसीह के द्वारा अधिक सहभागी होते है। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:6 यदि हम क्लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति और उद्धार के लिये है और यदि शान्ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति के लिये है; जिसके प्रभाव से तुम धीरज के साथ उन क्लेशों को सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:7 और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुःखों के वैसे ही शान्ति के भी सहभागी हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:8 ¶ हे भाइयों, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ्य से बाहर था, यहाँ तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:9 वरन् हमने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की सजा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, वरन् परमेश्‍वर का जो मरे हुओं को जिलाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:10 उसी ने हमें मृत्यु के ऐसे बड़े संकट से बचाया, और बचाएगा; और उससे हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:11 ¶ और तुम भी मिलकर प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करोगे, कि जो वरदान बहुतों के द्वारा हमें मिला, उसके कारण बहुत लोग हमारी ओर से धन्यवाद करें। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:12 ¶ क्योंकि हम अपने विवेक की इस गवाही पर घमण्ड करते हैं, कि जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच हमारा चरित्र परमेश्‍वर के योग्य ऐसी पवित्रता और सच्चाई सहित था, जो शारीरिक ज्ञान से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर के अनुग्रह के साथ था। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:13 हम तुम्हें और कुछ नहीं लिखते, केवल वह जो तुम पढ़ते या मानते भी हो, और मुझे आशा है, कि अन्त तक भी मानते रहोगे। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:14 जैसा तुम में से कितनों ने मान लिया है, कि हम तुम्हारे घमण्ड का कारण है; वैसे तुम भी प्रभु यीशु के दिन हमारे लिये घमण्ड का कारण ठहरोगे। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:15 ¶ और इस भरोसे से मैं चाहता था कि पहले तुम्हारे पास आऊँ; कि तुम्हें एक और दान मिले। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:16 और तुम्हारे पास से होकर मकिदुनिया को जाऊँ, और फिर मकिदुनिया से तुम्हारे पास आऊँ और तुम मुझे यहूदिया की ओर कुछ दूर तक पहुँचाओ। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:17 ¶ इसलिए मैंने जो यह इच्छा की थी तो क्या मैंने चंचलता दिखाई? या जो करना चाहता हूँ क्या शरीर के अनुसार करना चाहता हूँ, कि मैं बात में ‘हाँ, हाँ’ भी करूँ; और ‘नहीं, नहीं’ भी करूँ? (IN)

2 कुरिन्थियों 1:18 परमेश्‍वर विश्वासयोग्य है, कि हमारे उस वचन में जो तुम से कहा ‘हाँ’ और ‘नहीं’ दोनों पाए नहीं जाते। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:19 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर का पुत्र यीशु मसीह जिसका हमारे द्वारा अर्थात् मेरे और सिलवानुस और तीमुथियुस के द्वारा तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उसमें ‘हाँ’ और ‘नहीं’ दोनों न थी; परन्तु, उसमें ‘हाँ’ ही ‘हाँ’ हुई। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:20 क्योंकि परमेश्‍वर की जितनी प्रतिज्ञाएँ हैं, वे सब उसी में ‘हाँ’ के साथ हैं इसलिए उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्‍वर की महिमा हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:21 ¶ और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्‍वर है। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:22 जिस ने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:23 ¶ मैं परमेश्‍वर को गवाह करता हूँ, कि मैं अब तक कुरिन्थुस में इसलिए नहीं आया, कि मुझे तुम पर तरस आता था। (IN)

2 कुरिन्थियों 1:24 यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्थिर रहते हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:1 ¶ मैंने अपने मन में यही ठान लिया था कि फिर तुम्हारे पास उदास होकर न आऊँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:2 क्योंकि यदि मैं तुम्हें उदास करूँ, तो मुझे आनन्द देनेवाला कौन होगा, केवल वही जिसको मैंने उदास किया? (IN)

2 कुरिन्थियों 2:3 ¶ और मैंने यही बात तुम्हें इसलिए लिखी, कि कहीं ऐसा न हो, कि मेरे आने पर जिनसे मुझे आनन्द मिलना चाहिए, मैं उनसे उदास होऊँ; क्योंकि मुझे तुम सब पर इस बात का भरोसा है, कि जो मेरा आनन्द है, वही तुम सब का भी है। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:4 बड़े क्लेश, और मन के कष्ट से, मैंने बहुत से आँसू बहा बहाकर तुम्हें लिखा था इसलिए नहीं, कि तुम उदास हो, परन्तु इसलिए कि तुम उस बड़े प्रेम को जान लो, जो मुझे तुम से है। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:5 ¶ और यदि किसी ने उदास किया है, तो मुझे ही नहीं वरन् (कि उसके साथ बहुत कड़ाई न करूँ) कुछ-कुछ तुम सब को भी उदास किया है। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:6 ऐसे जन के लिये यह दण्ड जो भाइयों में से बहुतों ने दिया, बहुत है। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:7 इसलिए इससे यह भला है कि उसका अपराध क्षमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य उदासी में डूब जाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:8 ¶ इस कारण मैं तुम से विनती करता हूँ, कि उसको अपने प्रेम का प्रमाण दो। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:9 क्योंकि मैंने इसलिए भी लिखा था, कि तुम्हें परख लूँ, कि तुम सब बातों के मानने के लिये तैयार हो, कि नहीं। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:10 ¶ जिसका तुम कुछ क्षमा करते हो उसे मैं भी क्षमा करता हूँ, क्योंकि मैंने भी जो कुछ क्षमा किया है, यदि किया हो, तो तुम्हारे कारण मसीह की जगह में होकर क्षमा किया है। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:11 कि शैतान का हम पर दाँव न चले, क्योंकि हम उसकी युक्तियों से अनजान नहीं। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:12 ¶ और जब मैं मसीह का सुसमाचार, सुनाने को त्रोआस में आया, और प्रभु ने मेरे लिये एक द्वार खोल दिया। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:13 तो मेरे मन में चैन न मिला, इसलिए कि मैंने अपने भाई तीतुस को नहीं पाया; इसलिए उनसे विदा होकर मैं मकिदुनिया को चला गया। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:14 ¶ परन्तु परमेश्‍वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हमको जय के उत्सव में लिये फिरता है, और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:15 क्योंकि हम परमेश्‍वर के निकट उद्धार पानेवालों, और नाश होनेवालों, दोनों के लिये मसीह की सुगन्ध हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 2:16 ¶ कितनों के लिये तो मरने के निमित्त मृत्यु की गन्ध, और कितनों के लिये जीवन के निमित्त जीवन की सुगन्ध, और इन बातों के योग्य कौन है? (IN)

2 कुरिन्थियों 2:17 क्योंकि हम उन बहुतों के समान नहीं, जो परमेश्‍वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्‍वर की ओर से परमेश्‍वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:1 ¶ क्या हम फिर अपनी बड़ाई करने लगे? या हमें कितनों के समान सिफारिश की पत्रियाँ तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं? (IN)

2 कुरिन्थियों 3:2 हमारी पत्री तुम ही हो, जो हमारे हृदयों पर लिखी हुई है, और उसे सब मनुष्य पहचानते और पढ़ते है। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:3 यह प्रगट है, कि तुम मसीह की पत्री हो, जिसको हमने सेवकों के समान लिखा; और जो स्याही से नहीं, परन्तु जीविते परमेश्‍वर के आत्मा से पत्थर की पटियों पर नहीं, परन्तु हृदय की माँस रूपी पटियों पर लिखी है। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:4 ¶ हम मसीह के द्वारा परमेश्‍वर पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:5 यह नहीं, कि हम अपने आप से इस योग्य हैं, कि अपनी ओर से किसी बात का विचार कर सके; पर हमारी योग्यता परमेश्‍वर की ओर से है। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:6 जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन् आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:7 ¶ और यदि मृत्यु की यह वाचा जिसके अक्षर पत्थरों पर खोदे गए थे, यहाँ तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुँह पर के तेज के कारण जो घटता भी जाता था, इस्राएल उसके मुँह पर दृष्टि नहीं कर सकते थे। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:8 तो आत्मा की वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी? (IN)

2 कुरिन्थियों 3:9 ¶ क्योंकि जब दोषी ठहरानेवाली वाचा तेजोमय थी, तो धर्मी ठहरानेवाली वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी? (IN)

2 कुरिन्थियों 3:10 और जो तेजोमय था, वह भी उस तेज के कारण जो उससे बढ़कर तेजोमय था, कुछ तेजोमय न ठहरा। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:11 क्योंकि जब वह जो घटता जाता था तेजोमय था, तो वह जो स्थिर रहेगा, और भी तेजोमय क्यों न होगा? (IN)

2 कुरिन्थियों 3:12 ¶ इसलिए ऐसी आशा रखकर हम साहस के साथ बोलते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:13 और मूसा के समान नहीं, जिस ने अपने मुँह पर परदा डाला था ताकि इस्राएली उस घटनेवाले तेज के अन्त को न देखें। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:14 ¶ परन्तु वे मतिमन्द हो गए, क्योंकि आज तक पुराने नियम के पढ़ते समय उनके हृदयों पर वही परदा पड़ा रहता है; पर वह मसीह में उठ जाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:15 और आज तक जब कभी मूसा की पुस्तक पढ़ी जाती है, तो उनके हृदय पर परदा पड़ा रहता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:16 परन्तु जब कभी उनका हृदय प्रभु की ओर फिरेगा, तब वह परदा उठ जाएगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:17 ¶ प्रभु तो आत्मा है: और जहाँ कहीं प्रभु का आत्मा है वहाँ स्वतंत्रता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 3:18 परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश-अंश कर के बदलते जाते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:1 ¶ इसलिए जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम साहस नहीं छोड़ते। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:2 परन्तु हमने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्‍वर के वचन में मिलावट करते हैं, परन्तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्‍वर के सामने हर एक मनुष्य के विवेक में अपनी भलाई बैठाते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:3 ¶ परन्तु यदि हमारे सुसमाचार पर परदा पड़ा है, तो यह नाश होनेवालों ही के लिये पड़ा है। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:4 और उन अविश्वासियों के लिये, जिनकी बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अंधी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्‍वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:5 ¶ क्योंकि हम अपने को नहीं, परन्तु मसीह यीशु को प्रचार करते हैं, कि वह प्रभु है; और उसके विषय में यह कहते हैं, कि हम यीशु के कारण तुम्हारे सेवक हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:6 इसलिए कि परमेश्‍वर ही है, जिस ने कहा, “अंधकार में से ज्योति चमके,” और वही हमारे हृदयों में चमका, कि परमेश्‍वर की महिमा की पहचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:7 ¶ परन्तु हमारे पास यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ्य हमारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्‍वर ही की ओर से ठहरे। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:8 हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:9 सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:10 हम यीशु की मृत्यु को अपनी देह में हर समय लिये फिरते हैं; कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:11 ¶ क्योंकि हम जीते जी सर्वदा यीशु के कारण मृत्यु के हाथ में सौंपे जाते हैं कि यीशु का जीवन भी हमारे मरनहार शरीर में प्रगट हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:12 इस कारण मृत्यु तो हम पर प्रभाव डालती है और जीवन तुम पर। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:13 ¶ और इसलिए कि हम में वही विश्वास की आत्मा है, “जिसके विषय में लिखा है, कि मैंने विश्वास किया, इसलिए मैं बोला।” (IN)

2 कुरिन्थियों 4:14 ¶ क्योंकि हम जानते हैं, जिस ने प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर जिलाएगा, और तुम्हारे साथ अपने सामने उपस्थित करेगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:15 क्योंकि सब वस्तुएँ तुम्हारे लिये हैं, ताकि अनुग्रह बहुतों के द्वारा अधिक होकर परमेश्‍वर की महिमा के लिये धन्यवाद भी बढ़ाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:16 ¶ इसलिए हम साहस नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तो भी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:17 क्योंकि हमारा पल भर का हलका सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्‍पन्‍न करता जाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 4:18 और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएँ थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएँ सदा बनी रहती हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:1 ¶ क्योंकि हम जानते हैं, कि जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा तो हमें परमेश्‍वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथों से बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्थाई है। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:2 इसमें तो हम कराहते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपने स्वर्गीय घर को पहन लें। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:3 कि इसके पहनने से हम नंगे न पाए जाएँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:4 ¶ और हम इस डेरे में रहते हुए बोझ से दबे कराहते रहते हैं; क्योंकि हम उतारना नहीं, वरन् और पहनना चाहते हैं, ताकि वह जो मरनहार है जीवन में डूब जाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:5 और जिस ने हमें इसी बात के लिये तैयार किया है वह परमेश्‍वर है, जिस ने हमें बयाने में आत्मा भी दिया है। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:6 ¶ इसलिए हम सदा ढाढ़स बाँधे रहते हैं और यह जानते हैं; कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:7 क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:8 इसलिए हम ढाढ़स बाँधे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:9 ¶ इस कारण हमारे मन की उमंग यह है, कि चाहे साथ रहें, चाहे अलग रहें पर हम उसे भाते रहें। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:10 क्योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने-अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों, पाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:11 ¶ इसलिए प्रभु का भय मानकर हम लोगों को समझाते हैं और परमेश्‍वर पर हमारा हाल प्रगट है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:12 हम फिर भी अपनी बड़ाई तुम्हारे सामने नहीं करते वरन् हम अपने विषय में तुम्हें घमण्ड करने का अवसर देते हैं, कि तुम उन्हें उत्तर दे सको, जो मन पर नहीं, वरन् दिखावटी बातों पर घमण्ड करते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:13 ¶ यदि हम बेसुध हैं, तो परमेश्‍वर के लिये; और यदि चैतन्य हैं, तो तुम्हारे लिये हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:14 क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिए कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:15 और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएँ परन्तु उसके लिये जो उनके लिये मरा और फिर जी उठा। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:16 ¶ इस कारण अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हमने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना था, तो भी अब से उसको ऐसा नहीं जानेंगे। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:17 इसलिए यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:18 ¶ और सब बातें परमेश्‍वर की ओर से हैं, जिस ने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारा मेल मिलाप कर लिया, और मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:19 अर्थात् परमेश्‍वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उनके अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उसने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:20 ¶ इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्‍वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्‍वर के साथ मेल मिलाप कर लो। (IN)

2 कुरिन्थियों 5:21 जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उसमें होकर परमेश्‍वर की धार्मिकता बन जाएँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:1 ¶ हम जो परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं यह भी समझाते हैं, कि परमेश्‍वर का अनुग्रह जो तुम पर हुआ, व्यर्थ न रहने दो। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:2 क्योंकि वह तो कहता है, (IN)

2 कुरिन्थियों 6:3 ¶ हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:4 ¶ परन्तु हर बात में परमेश्‍वर के सेवकों के समान अपने सद्गुणों को प्रगट करते हैं, बड़े धैर्य से, क्लेशों से, दरिद्रता से, संकटों से, (IN)

2 कुरिन्थियों 6:5 कोड़े खाने से, कैद होने से, हुल्लड़ों से, परिश्रम से, जागते रहने से, उपवास करने से, (IN)

2 कुरिन्थियों 6:6 पवित्रता से, ज्ञान से, धीरज से, कृपालुता से, पवित्र आत्मा से। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:7 सच्चे प्रेम से, सत्य के वचन से, परमेश्‍वर की सामर्थ्य से; धार्मिकता के हथियारों से जो दाहिने, बाएँ हैं, (IN)

2 कुरिन्थियों 6:8 ¶ आदर और निरादर से, दुर्नाम और सुनाम से, यद्यपि भरमानेवालों के जैसे मालूम होते हैं तो भी सच्चे हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:9 अनजानों के सदृश्य हैं; तो भी प्रसिद्ध हैं; मरते हुओं के समान हैं और देखो जीवित हैं; मार खानेवालों के सदृश हैं परन्तु प्राण से मारे नहीं जाते। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:10 शोक करनेवालों के समान हैं, परन्तु सर्वदा आनन्द करते हैं, कंगालों के समान हैं, परन्तु बहुतों को धनवान बना देते हैं; ऐसे हैं जैसे हमारे पास कुछ नहीं फिर भी सब कुछ रखते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:11 ¶ हे कुरिन्थियों, हमने खुलकर तुम से बातें की हैं, हमारा हृदय तुम्हारी ओर खुला हुआ है। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:12 तुम्हारे लिये हमारे मन में कुछ संकोच नहीं, पर तुम्हारे ही मनों में संकोच है। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:13 पर अपने बच्चे जानकर तुम से कहता हूँ, कि तुम भी उसके बदले में अपना हृदय खोल दो। (IN)

2 कुरिन्थियों 6:14 ¶ अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल? या ज्योति और अंधकार की क्या संगति? (IN)

2 कुरिन्थियों 6:15 और मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव? या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? (IN)

2 कुरिन्थियों 6:16 और मूरतों के साथ परमेश्‍वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध? क्योंकि हम तो जीविते परमेश्‍वर के मन्दिर हैं; जैसा परमेश्‍वर ने कहा है (IN)

2 कुरिन्थियों 6:17 ¶ इसलिए प्रभु कहता है, (IN)

2 कुरिन्थियों 6:18 और तुम्हारा पिता हूँगा, (IN)

2 कुरिन्थियों 7:1 ¶ हे प्यारों जब कि ये प्रतिज्ञाएँ हमें मिली हैं, तो आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्‍वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:2 ¶ हमें अपने हृदय में जगह दो: हमने न किसी से अन्याय किया, न किसी को बिगाड़ा, और न किसी को ठगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:3 मैं तुम्हें दोषी ठहराने के लिये यह नहीं कहता क्योंकि मैं पहले ही कह चूका हूँ, कि तुम हमारे हृदय में ऐसे बस गए हो कि हम तुम्हारे साथ मरने जीने के लिये तैयार हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:4 मैं तुम से बहुत साहस के साथ बोल रहा हूँ, मुझे तुम पर बड़ा घमण्ड है: मैं शान्ति से भर गया हूँ; अपने सारे क्लेश में मैं आनन्द से अति भरपूर रहता हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:5 ¶ क्योंकि जब हम मकिदुनिया में आए, तब भी हमारे शरीर को चैन नहीं मिला, परन्तु हम चारों ओर से क्लेश पाते थे; बाहर लड़ाइयाँ थीं, भीतर भयंकर बातें थी। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:6 तो भी दीनों को शान्ति देनेवाले परमेश्‍वर ने तीतुस के आने से हमको शान्ति दी। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:7 और न केवल उसके आने से परन्तु उसकी उस शान्ति से भी, जो उसको तुम्हारी ओर से मिली थी; और उसने तुम्हारी लालसा, और तुम्हारे दुःख और मेरे लिये तुम्हारी धुन का समाचार हमें सुनाया, जिससे मुझे और भी आनन्द हुआ। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:8 ¶ क्योंकि यद्यपि मैंने अपनी पत्री से तुम्हें शोकित किया, परन्तु उससे पछताता नहीं जैसा कि पहले पछताता था क्योंकि मैं देखता हूँ, कि उस पत्री से तुम्हें शोक तो हुआ परन्तु वह थोड़ी देर के लिये था। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:9 अब मैं आनन्दित हूँ पर इसलिए नहीं कि तुम को शोक पहुँचा वरन् इसलिए कि तुम ने उस शोक के कारण मन फिराया, क्योंकि तुम्हारा शोक परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार था, कि हमारी ओर से तुम्हें किसी बात में हानि न पहुँचे। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:10 क्योंकि परमेश्‍वर-भक्ति का शोक ऐसा पश्चाताप उत्‍पन्‍न करता है; जिसका परिणाम उद्धार है और फिर उससे पछताना नहीं पड़ता: परन्तु सांसारिक शोक मृत्यु उत्‍पन्‍न करता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:11 ¶ अतः देखो, इसी बात से कि तुम्हें परमेश्‍वर-भक्ति का शोक हुआ; तुम में कितनी उत्साह, प्रत्युत्तर, रिस, भय, लालसा, धुन और पलटा लेने का विचार उत्‍पन्‍न हुआ? तुम ने सब प्रकार से यह सिद्ध कर दिखाया, कि तुम इस बात में निर्दोष हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:12 फिर मैंने जो तुम्हारे पास लिखा था, वह न तो उसके कारण लिखा, जिस ने अन्याय किया, और न उसके कारण जिस पर अन्याय किया गया, परन्तु इसलिए कि तुम्हारी उत्तेजना जो हमारे लिये है, वह परमेश्‍वर के सामने तुम पर प्रगट हो जाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:13 ¶ इसलिए हमें शान्ति हुई; (IN)

2 कुरिन्थियों 7:14 ¶ क्योंकि यदि मैंने उसके सामने तुम्हारे विषय में कुछ घमण्ड दिखाया, तो लज्जित नहीं हुआ, परन्तु जैसे हमने तुम से सब बातें सच-सच कह दी थीं, वैसे ही हमारा घमण्ड दिखाना तीतुस के सामने भी सच निकला। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:15 ¶ जब उसको तुम सब के आज्ञाकारी होने का स्मरण आता है, कि कैसे तुम ने डरते और काँपते हुए उससे भेंट की; तो उसका प्रेम तुम्हारी ओर और भी बढ़ता जाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 7:16 मैं आनन्द करता हूँ, कि तुम्हारी ओर से मुझे हर बात में भरोसा होता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:1 ¶ अब हे भाइयों, हम तुम्हें परमेश्‍वर के उस अनुग्रह का समाचार देते हैं, जो मकिदुनिया की कलीसियाओं पर हुआ है। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:2 कि क्लेश की बड़ी परीक्षा में उनके बड़े आनन्द और भारी कंगालपन के बढ़ जाने से उनकी उदारता बहुत बढ़ गई। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:3 ¶ और उनके विषय में मेरी यह गवाही है, कि उन्होंने अपनी सामर्थ्य भर वरन् सामर्थ्य से भी बाहर मन से दिया। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:4 और इस दान में और पवित्र लोगों की सेवा में भागी होने के अनुग्रह के विषय में हम से बार-बार बहुत विनती की। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:5 और जैसी हमने आशा की थी, वैसी ही नहीं, वरन् उन्होंने प्रभु को, फिर परमेश्‍वर की इच्छा से हमको भी अपने आपको दे दिया। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:6 ¶ इसलिए हमने तीतुस को समझाया, कि जैसा उसने पहले आरम्भ किया था, वैसा ही तुम्हारे बीच में इस दान के काम को पूरा भी कर ले। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:7 पर जैसे हर बात में अर्थात् विश्वास, वचन, ज्ञान और सब प्रकार के यत्न में, और उस प्रेम में, जो हम से रखते हो, बढ़ते जाते हो, वैसे ही इस दान के काम में भी बढ़ते जाओ। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:8 ¶ मैं आज्ञा की रीति पर तो नहीं, परन्तु औरों के उत्साह से तुम्हारे प्रेम की सच्चाई को परखने के लिये कहता हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:9 तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह जानते हो, कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिये कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:10 ¶ और इस बात में मेरा विचार यही है: यह तुम्हारे लिये अच्छा है; जो एक वर्ष से न तो केवल इस काम को करने ही में, परन्तु इस बात के चाहने में भी प्रथम हुए थे। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:11 इसलिए अब यह काम पूरा करो; कि जिस प्रकार इच्छा करने में तुम तैयार थे, वैसा ही अपनी-अपनी पूँजी के अनुसार पूरा भी करो। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:12 क्योंकि यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:13 ¶ यह नहीं कि औरों को चैन और तुम को क्लेश मिले। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:14 परन्तु बराबरी के विचार से इस समय तुम्हारी बढ़ती उनकी घटी में काम आए, ताकि उनकी बढ़ती भी तुम्हारी घटी में काम आए, कि बराबरी हो जाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:15 जैसा लिखा है, (IN)

2 कुरिन्थियों 8:16 ¶ परमेश्‍वर का धन्यवाद हो, जिसने तुम्हारे लिये वही उत्साह तीतुस के हृदय में डाल दिया है। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:17 कि उसने हमारा समझाना मान लिया वरन् बहुत उत्साही होकर वह अपनी इच्छा से तुम्हारे पास गया है। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:18 ¶ और हमने उसके साथ उस भाई को भेजा है जिसका नाम सुसमाचार के विषय में सब कलीसिया में फैला हुआ है; (IN)

2 कुरिन्थियों 8:19 और इतना ही नहीं, परन्तु वह कलीसिया द्वारा ठहराया भी गया कि इस दान के काम के लिये हमारे साथ जाए और हम यह सेवा इसलिए करते हैं, कि प्रभु की महिमा और हमारे मन की तैयारी प्रगट हो जाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:20 ¶ हम इस बात में चौकस रहते हैं, कि इस उदारता के काम के विषय में जिसकी सेवा हम करते हैं, कोई हम पर दोष न लगाने पाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:21 क्योंकि जो बातें केवल प्रभु ही के निकट नहीं, परन्तु मनुष्यों के निकट भी भली हैं हम उनकी चिन्ता करते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:22 ¶ और हमने उसके साथ अपने भाई को भेजा है, जिसको हमने बार-बार परख के बहुत बातों में उत्साही पाया है; परन्तु अब तुम पर उसको बड़ा भरोसा है, इस कारण वह और भी अधिक उत्साही है। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:23 यदि कोई तीतुस के विषय में पूछे, तो वह मेरा साथी, और तुम्हारे लिये मेरा सहकर्मी है, और यदि हमारे भाइयों के विषय में पूछे, तो वे कलीसियाओं के भेजे हुए और मसीह की महिमा हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 8:24 अतः अपना प्रेम और हमारा वह घमण्ड जो तुम्हारे विषय में है कलीसियाओं के सामने उन्हें सिद्ध करके दिखाओ। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:1 ¶ अब उस सेवा के विषय में जो पवित्र लोगों के लिये की जाती है, मुझे तुम को लिखना अवश्य नहीं। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:2 क्योंकि मैं तुम्हारे मन की तैयारी को जानता हूँ, जिसके कारण मैं तुम्हारे विषय में मकिदुनियों के सामने घमण्ड दिखाता हूँ, कि अखाया के लोग एक वर्ष से तैयार हुए हैं, और तुम्हारे उत्साह ने और बहुतों को भी उभारा है। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:3 ¶ परन्तु मैंने भाइयों को इसलिए भेजा है, कि हमने जो घमण्ड तुम्हारे विषय में दिखाया, वह इस बात में व्यर्थ न ठहरे; परन्तु जैसा मैंने कहा; वैसे ही तुम तैयार हो रहो। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:4 ऐसा न हो, कि यदि कोई मकिदुनी मेरे साथ आए, और तुम्हें तैयार न पाए, तो क्या जानें, इस भरोसे के कारण हम (यह नहीं कहते कि तुम) लज्जित हों। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:5 इसलिए मैंने भाइयों से यह विनती करना अवश्य समझा कि वे पहले से तुम्हारे पास जाएँ, और तुम्हारी उदारता का फल जिसके विषय में पहले से वचन दिया गया था, तैयार कर रखें, कि यह दबाव से नहीं परन्तु उदारता के फल की तरह तैयार हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:6 ¶ परन्तु बात तो यह है, कि जो थोड़ा बोता है वह थोड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:7 हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़-कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्‍वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:8 ¶ परमेश्‍वर सब प्रकार का अनुग्रह तुम्हें बहुतायत से दे सकता है। जिससे हर बात में और हर समय, सब कुछ, जो तुम्हें आवश्यक हो, तुम्हारे पास रहे, और हर एक भले काम के लिये तुम्हारे पास बहुत कुछ हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:9 जैसा लिखा है, (IN)

2 कुरिन्थियों 9:10 ¶ अतः जो बोनेवाले को बीज, और भोजन के लिये रोटी देता है वह तुम्हें बीज देगा, और उसे फलवन्त करेगा; और तुम्हारे धार्मिकता के फलों को बढ़ाएगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:11 तुम हर बात में सब प्रकार की उदारता के लिये जो हमारे द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद करवाती है, धनवान किए जाओ। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:12 ¶ क्योंकि इस सेवा के पूरा करने से, न केवल पवित्र लोगों की घटियाँ पूरी होती हैं, परन्तु लोगों की ओर से परमेश्‍वर का बहुत धन्यवाद होता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:13 क्योंकि इस सेवा को प्रमाण स्वीकार कर वे परमेश्‍वर की महिमा प्रगट करते हैं, कि तुम मसीह के सुसमाचार को मान कर उसके अधीन रहते हो, और उनकी, और सब की सहायता करने में उदारता प्रगट करते रहते हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:14 और वे तुम्हारे लिये प्रार्थना करते हैं; और इसलिए कि तुम पर परमेश्‍वर का बड़ा ही अनुग्रह है, तुम्हारी लालसा करते रहते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 9:15 परमेश्‍वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:1 ¶ मैं वही पौलुस जो तुम्हारे सामने दीन हूँ, परन्तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूँ; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता के कारण समझाता हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:2 मैं यह विनती करता हूँ, कि तुम्हारे सामने मुझे निर्भय होकर साहस करना न पड़े; जैसा मैं कितनों पर जो हमको शरीर के अनुसार चलनेवाले समझते हैं, वीरता दिखाने का विचार करता हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:3 ¶ क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तो भी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:4 क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्‍वर के द्वारा सामर्थी हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:5 ¶ हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊँची बात को, जो परमेश्‍वर की पहचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:6 और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए, तो हर एक प्रकार के आज्ञा न मानने का पलटा लें। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:7 ¶ तुम इन्हीं बातों को देखते हो, जो आँखों के सामने हैं, यदि किसी का अपने पर यह भरोसा हो, कि मैं मसीह का हूँ, तो वह यह भी जान ले, कि जैसा वह मसीह का है, वैसे ही हम भी हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:8 क्योंकि यदि मैं उस अधिकार के विषय में और भी घमण्ड दिखाऊँ, जो प्रभु ने तुम्हारे बिगाड़ने के लिये नहीं पर बनाने के लिये हमें दिया है, तो लज्जित न हूँगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:9 ¶ यह मैं इसलिए कहता हूँ, कि पत्रियों के द्वारा तुम्हें डरानेवाला न ठहरूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:10 क्योंकि वे कहते हैं, “उसकी पत्रियाँ तो गम्भीर और प्रभावशाली हैं; परन्तु जब देखते हैं, तो कहते है वह देह का निर्बल और वक्तव्य में हलका जान पड़ता है।” (IN)

2 कुरिन्थियों 10:11 ¶ इसलिए जो ऐसा कहता है, कि वह यह समझ रखे, कि जैसे पीठ पीछे पत्रियों में हमारे वचन हैं, वैसे ही तुम्हारे सामने हमारे काम भी होंगे। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:12 ¶ क्योंकि हमें यह साहस नहीं कि हम अपने आप को उनके साथ गिनें, या उनसे अपने को मिलाएँ, जो अपनी प्रशंसा करते हैं, और अपने आप को आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से तुलना करके मूर्ख ठहरते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:13 ¶ हम तो सीमा से बाहर घमण्ड कदापि न करेंगे, परन्तु उसी सीमा तक जो परमेश्‍वर ने हमारे लिये ठहरा दी है, और उसमें तुम भी आ गए हो और उसी के अनुसार घमण्ड भी करेंगे। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:14 क्योंकि हम अपनी सीमा से बाहर अपने आप को बढ़ाना नहीं चाहते, जैसे कि तुम तक न पहुँचने की दशा में होता, वरन् मसीह का सुसमाचार सुनाते हुए तुम तक पहुँच चुके हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:15 ¶ और हम सीमा से बाहर औरों के परिश्रम पर घमण्ड नहीं करते; परन्तु हमें आशा है, कि ज्यों-ज्यों तुम्हारा विश्वास बढ़ता जाएगा त्यों-त्यों हम अपनी सीमा के अनुसार तुम्हारे कारण और भी बढ़ते जाएँगे। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:16 कि हम तुम्हारी सीमा से आगे बढ़कर सुसमाचार सुनाएँ, और यह नहीं, कि हम औरों की सीमा के भीतर बने बनाए कामों पर घमण्ड करें। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:17 परन्तु जो घमण्ड करे, वह प्रभु पर घमण्ड करें। (IN)

2 कुरिन्थियों 10:18 क्योंकि जो अपनी बड़ाई करता है, वह नहीं, परन्तु जिसकी बड़ाई प्रभु करता है, वही ग्रहण किया जाता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:1 ¶ यदि तुम मेरी थोड़ी मूर्खता सह लेते तो क्या ही भला होता; हाँ, मेरी सह भी लेते हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:2 क्योंकि मैं तुम्हारे विषय में ईश्वरीय धुन लगाए रहता हूँ, इसलिए कि मैंने एक ही पुरुष से तुम्हारी बात लगाई है, कि तुम्हें पवित्र कुँवारी के समान मसीह को सौंप दूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:3 ¶ परन्तु मैं डरता हूँ कि जैसे साँप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सिधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:4 यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिसका प्रचार हमने नहीं किया या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:5 ¶ मैं तो समझता हूँ, कि मैं किसी बात में बड़े से बड़े प्रेरितों से कम नहीं हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:6 यदि मैं वक्तव्य में अनाड़ी हूँ, तो भी ज्ञान में नहीं; वरन् हमने इसको हर बात में सब पर तुम्हारे लिये प्रगट किया है। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:7 ¶ क्या इसमें मैंने कुछ पाप किया; कि मैंने तुम्हें परमेश्‍वर का सुसमाचार सेंत-मेंत सुनाया; और अपने आप को नीचा किया, कि तुम ऊँचे हो जाओ? (IN)

2 कुरिन्थियों 11:8 मैंने और कलीसियाओं को लूटा अर्थात् मैंने उनसे मजदूरी ली, ताकि तुम्हारी सेवा करूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:9 और जब तुम्हारे साथ था, और मुझे घटी हुई, तो मैंने किसी पर भार नहीं डाला, क्योंकि भाइयों ने, मकिदुनिया से आकर मेरी घटी को पूरी की: और मैंने हर बात में अपने आप को तुम पर भार बनने से रोका, और रोके रहूँगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:10 ¶ मसीह की सच्चाई मुझ में है, तो अखाया देश में कोई मुझे इस घमण्ड से न रोकेगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:11 किस लिये? क्या इसलिए कि मैं तुम से प्रेम नहीं रखता? परमेश्‍वर यह जानता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:12 ¶ परन्तु जो मैं करता हूँ, वही करता रहूँगा; कि जो लोग दाँव ढूँढ़ते हैं, उन्हें मैं दाँव पाने न दूँ, ताकि जिस बात में वे घमण्ड करते हैं, उसमें वे हमारे ही समान ठहरें। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:13 क्योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करनेवाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरनेवाले हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:14 ¶ और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:15 इसलिए यदि उसके सेवक भी धार्मिकता के सेवकों जैसा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं, परन्तु उनका अन्त उनके कामों के अनुसार होगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:16 ¶ मैं फिर कहता हूँ, कोई मुझे मूर्ख न समझे; नहीं तो मूर्ख ही समझकर मेरी सह लो, ताकि थोड़ा सा मैं भी घमण्ड कर सकूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:17 इस बेधड़क में जो कुछ मैं कहता हूँ वह प्रभु की आज्ञा के अनुसार नहीं पर मानो मूर्खता से ही कहता हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:18 जब कि बहुत लोग शरीर के अनुसार घमण्ड करते हैं, तो मैं भी घमण्ड करूँगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:19 ¶ तुम तो समझदार होकर आनन्द से मूर्खों की सह लेते हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:20 क्योंकि जब तुम्हें कोई दास बना लेता है, या खा जाता है, या फँसा लेता है, या अपने आप को बड़ा बनाता है, या तुम्हारे मुँह पर थप्पड़ मारता है, तो तुम सह लेते हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:21 मेरा कहना अनादर की रीति पर है, मानो कि हम निर्बल से थे; परन्तु जिस किसी बात में कोई साहस करता है, मैं मूर्खता से कहता हूँ तो मैं भी साहस करता हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:22 ¶ क्या वे ही इब्रानी हैं? मैं भी हूँ। क्या वे ही इस्राएली हैं? मैं भी हूँ; क्या वे ही अब्राहम के वंश के हैं? मैं भी हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:23 क्या वे ही मसीह के सेवक हैं? (मैं पागल के समान कहता हूँ) मैं उनसे बढ़कर हूँ! अधिक परिश्रम करने में; बार-बार कैद होने में; कोड़े खाने में; बार-बार मृत्यु के जोखिमों में। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:24 ¶ पाँच बार मैंने यहूदियों के हाथ से उनतालीस कोड़े खाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:25 तीन बार मैंने बेंतें खाई; एक बार पत्थराव किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैंने समुद्र में काटा। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:26 मैं बार-बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जातिवालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जोखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जोखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में रहा; (IN)

2 कुरिन्थियों 11:27 ¶ परिश्रम और कष्ट में; बार-बार जागते रहने में; भूख-प्यास में; बार-बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:28 और अन्य बातों को छोड़कर जिनका वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रतिदिन मुझे दबाती है। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:29 किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के पाप में गिरने से मेरा जी नहीं दुःखता? (IN)

2 कुरिन्थियों 11:30 ¶ यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं अपनी निर्बलता की बातों पर घमण्ड करूँगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:31 प्रभु यीशु का परमेश्‍वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं झूठ नहीं बोलता। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:32 ¶ दमिश्क में अरितास राजा की ओर से जो राज्यपाल था, उसने मेरे पकड़ने को दमिश्कियों के नगर पर पहरा बैठा रखा था। (IN)

2 कुरिन्थियों 11:33 और मैं टोकरे में खिड़की से होकर दीवार पर से उतारा गया, और उसके हाथ से बच निकला। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:1 ¶ यद्यपि घमण्ड करना तो मेरे लिये ठीक नहीं, फिर भी करना पड़ता है; पर मैं प्रभु के दिए हुए दर्शनों और प्रकशनों की चर्चा करूँगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:2 मैं मसीह में एक मनुष्य को जानता हूँ, चौदह वर्ष हुए कि न जाने देहसहित, न जाने देहरहित, परमेश्‍वर जानता है, ऐसा मनुष्य तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:3 ¶ मैं ऐसे मनुष्य को जानता हूँ न जाने देहसहित, न जाने देहरहित परमेश्‍वर ही जानता है। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:4 कि स्वर्गलोक पर उठा लिया गया, और ऐसी बातें सुनीं जो कहने की नहीं; और जिनका मुँह में लाना मनुष्य को उचित नहीं। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:5 ऐसे मनुष्य पर तो मैं घमण्ड करूँगा, परन्तु अपने पर अपनी निर्बलताओं को छोड़, अपने विषय में घमण्ड न करूँगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:6 ¶ क्योंकि यदि मैं घमण्ड करना चाहूँ भी तो मूर्ख न हूँगा, क्योंकि सच बोलूँगा; तो भी रुक जाता हूँ, ऐसा न हो, कि जैसा कोई मुझे देखता है, या मुझसे सुनता है, मुझे उससे बढ़कर समझे। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:7 ¶ और इसलिए कि मैं प्रकशनों की बहुतायत से फूल न जाऊँ, मेरे शरीर में एक काँटा चुभाया गया अर्थात् शैतान का एक दूत कि मुझे घूँसे मारे ताकि मैं फूल न जाऊँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:8 ¶ इसके विषय में मैंने प्रभु से तीन बार विनती की, कि मुझसे यह दूर हो जाए। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:9 और उसने मुझसे कहा, “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है।” इसलिए मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूँगा, कि मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया करती रहे। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:10 इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्‍न हूँ; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी बलवन्त होता हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:11 ¶ मैं मूर्ख तो बना, परन्तु तुम ही ने मुझसे यह बरबस करवाया: तुम्हें तो मेरी प्रशंसा करनी चाहिए थी, क्योंकि यद्यपि मैं कुछ भी नहीं, फिर भी उन बड़े से बड़े प्रेरितों से किसी बात में कम नहीं हूँ। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:12 प्रेरित के लक्षण भी तुम्हारे बीच सब प्रकार के धीरज सहित चिन्हों, और अद्भुत कामों, और सामर्थ्य के कामों से दिखाए गए। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:13 तुम कौन सी बात में और कलीसियाओं से कम थे, केवल इसमें कि मैंने तुम पर अपना भार न रखा मेरा यह अन्याय क्षमा करो। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:14 ¶ अब, मैं तीसरी बार तुम्हारे पास आने को तैयार हूँ, और मैं तुम पर कोई भार न रखूँगा; क्योंकि मैं तुम्हारी सम्पत्ति नहीं, वरन् तुम ही को चाहता हूँ। क्योंकि बच्चों को माता-पिता के लिये धन बटोरना न चाहिए, पर माता-पिता को बच्चों के लिये। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:15 मैं तुम्हारी आत्माओं के लिये बहुत आनन्द से खर्च करूँगा, वरन् आप भी खर्च हो जाऊँगा क्या जितना बढ़कर मैं तुम से प्रेम रखता हूँ, उतना ही घटकर तुम मुझसे प्रेम रखोगे? (IN)

2 कुरिन्थियों 12:16 ¶ ऐसा हो सकता है, कि मैंने तुम पर बोझ नहीं डाला, परन्तु चतुराई से तुम्हें धोखा देकर फँसा लिया। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:17 भला, जिन्हें मैंने तुम्हारे पास भेजा, क्या उनमें से किसी के द्वारा मैंने छल करके तुम से कुछ ले लिया? (IN)

2 कुरिन्थियों 12:18 मैंने तीतुस को समझाकर उसके साथ उस भाई को भेजा, तो क्या तीतुस ने छल करके तुम से कुछ लिया? क्या हम एक ही आत्मा के चलाए न चले? क्या एक ही मार्ग पर न चले? (IN)

2 कुरिन्थियों 12:19 ¶ तुम अभी तक समझ रहे होंगे कि हम तुम्हारे सामने प्रत्युत्तर दे रहे हैं, हम तो परमेश्‍वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं, और हे प्रियों, सब बातें तुम्हारी उन्नति ही के लिये कहते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:20 ¶ क्योंकि मुझे डर है, कहीं ऐसा न हो, कि मैं आकर जैसा चाहता हूँ, वैसा तुम्हें न पाऊँ; और मुझे भी जैसा तुम नहीं चाहते वैसा ही पाओ, कि तुम में झगड़ा, डाह, क्रोध, विरोध, ईर्ष्या, चुगली, अभिमान और बखेड़े हों। (IN)

2 कुरिन्थियों 12:21 और कहीं ऐसा न हो कि जब मैं वापस आऊँगा, मेरा परमेश्‍वर मुझे अपमानित करे और मुझे बहुतों के लिये फिर शोक करना पड़े, जिन्होंने पहले पाप किया था, और उस गंदे काम, और व्यभिचार, और लुचपन से, जो उन्होंने किया, मन नहीं फिराया। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:1 ¶ अब तीसरी बार तुम्हारे पास आता हूँ: दो या तीन गवाहों के मुँह से हर एक बात ठहराई जाएगी। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:2 जैसे मैं जब दूसरी बार तुम्हारे साथ था, वैसे ही अब दूर रहते हुए उन लोगों से जिन्होंने पहले पाप किया, और अन्य सब लोगों से अब पहले से कह देता हूँ, कि यदि मैं फिर आऊँगा, तो नहीं छोडूँगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:3 ¶ तुम तो इसका प्रमाण चाहते हो, कि मसीह मुझ में बोलता है, जो तुम्हारे लिये निर्बल नहीं; परन्तु तुम में सामर्थी है। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:4 वह निर्बलता के कारण क्रूस पर चढ़ाया तो गया, फिर भी परमेश्‍वर की सामर्थ्य से जीवित है, हम भी तो उसमें निर्बल हैं; परन्तु परमेश्‍वर की सामर्थ्य से जो तुम्हारे लिये है, उसके साथ जीएँगे। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:5 ¶ अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जाँचो, क्या तुम अपने विषय में यह नहीं जानते, कि यीशु मसीह तुम में है? नहीं तो तुम निकम्मे निकले हो। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:6 पर मेरी आशा है, कि तुम जान लोगे, कि हम निकम्मे नहीं। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:7 ¶ और हम अपने परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं, कि तुम कोई बुराई न करो; इसलिए नहीं, कि हम खरे देख पड़ें, पर इसलिए कि तुम भलाई करो, चाहे हम निकम्मे ही ठहरें। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:8 क्योंकि हम सत्य के विरोध में कुछ नहीं कर सकते, पर सत्य के लिये ही कर सकते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:9 ¶ जब हम निर्बल हैं, और तुम बलवन्त हो, तो हम आनन्दित होते हैं, और यह प्रार्थना भी करते हैं, कि तुम सिद्ध हो जाओ। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:10 इस कारण मैं तुम्हारे पीठ पीछे ये बातें लिखता हूँ, कि उपस्थित होकर मुझे उस अधिकार के अनुसार जिसे प्रभु ने बिगाड़ने के लिये नहीं पर बनाने के लिये मुझे दिया है, कड़ाई से कुछ करना न पड़े। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:11 ¶ अतः हे भाइयों, आनन्दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; धैर्य रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्‍वर तुम्हारे साथ होगा। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:12 एक दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:13 ¶ सब पवित्र लोग तुम्हें नमस्कार कहते हैं। (IN)

2 कुरिन्थियों 13:14 ¶ प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्‍वर का प्रेम और पवित्र आत्मा की सहभागिता तुम सब के साथ होती रहे। (IN)

गलातियों 1:1 ¶ पौलुस की, जो न मनुष्यों की ओर से, और न मनुष्य के द्वारा, वरन् यीशु मसीह और परमेश्‍वर पिता के द्वारा, जिस ने उसको मरे हुओं में से जिलाया, प्रेरित है। (IN)

गलातियों 1:2 और सारे भाइयों की ओर से, जो मेरे साथ हैं; गलातिया की कलीसियाओं के नाम। (IN)

गलातियों 1:3 ¶ परमेश्‍वर पिता, और हमारे प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

गलातियों 1:4 उसी ने अपने आप को हमारे पापों के लिये दे दिया, ताकि हमारे परमेश्‍वर और पिता की इच्छा के अनुसार हमें इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए। (IN)

गलातियों 1:5 उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

गलातियों 1:6 ¶ मुझे आश्चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिरकर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। (IN)

गलातियों 1:7 परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। (IN)

गलातियों 1:8 ¶ परन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हमने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो। (IN)

गलातियों 1:9 जैसा हम पहले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूँ, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो श्रापित हो। (IN)

गलातियों 1:10 अब मैं क्या मनुष्यों को मानता हूँ या परमेश्‍वर को? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्‍न करना चाहता हूँ? यदि मैं अब तक मनुष्यों को ही प्रसन्‍न करता रहता, तो मसीह का दास न होता। (IN)

गलातियों 1:11 ¶ हे भाइयों, मैं तुम्हें जताए देता हूँ, कि जो सुसमाचार मैंने सुनाया है, वह मनुष्य का नहीं। (IN)

गलातियों 1:12 क्योंकि वह मुझे मनुष्य की ओर से नहीं पहुँचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाशन से मिला। (IN)

गलातियों 1:13 ¶ यहूदी मत में जो पहले मेरा चाल-चलन था, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्‍वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता था। (IN)

गलातियों 1:14 और मैं यहूदी धर्म में अपने साथी यहूदियों से अधिक आगे बढ़ रहा था और अपने पूर्वजों की परम्पराओं में बहुत ही उत्तेजित था। (IN)

गलातियों 1:15 ¶ परन्तु परमेश्‍वर की जब इच्छा हुई, उसने मेरी माता के गर्भ ही से मुझे ठहराया और अपने अनुग्रह से बुला लिया, (IN)

गलातियों 1:16 कि मुझ में अपने पुत्र को प्रगट करे कि मैं अन्यजातियों में उसका सुसमाचार सुनाऊँ; तो न मैंने माँस और लहू से सलाह ली; (IN)

गलातियों 1:17 और न यरूशलेम को उनके पास गया जो मुझसे पहले प्रेरित थे, पर तुरन्त अरब को चला गया और फिर वहाँ से दमिश्क को लौट आया। (IN)

गलातियों 1:18 ¶ फिर तीन वर्षों के बाद मैं कैफा से भेंट करने के लिये यरूशलेम को गया, और उसके पास पन्द्रह दिन तक रहा। (IN)

गलातियों 1:19 परन्तु प्रभु के भाई याकूब को छोड़ और प्रेरितों में से किसी से न मिला। (IN)

गलातियों 1:20 जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूँ, परमेश्‍वर को उपस्थित जानकर कहता हूँ, कि वे झूठी नहीं। (IN)

गलातियों 1:21 ¶ इसके बाद मैं सीरिया और किलिकिया के देशों में आया। (IN)

गलातियों 1:22 परन्तु यहूदिया की कलीसियाओं ने जो मसीह में थी, मेरा मुँह तो कभी नहीं देखा था। (IN)

गलातियों 1:23 परन्तु यही सुना करती थीं, कि जो हमें पहले सताता था, वह अब उसी विश्वास का सुसमाचार सुनाता है, जिसे पहले नाश करता था। (IN)

गलातियों 1:24 और मेरे विषय में परमेश्‍वर की महिमा करती थीं। (IN)

गलातियों 2:1 ¶ चौदह वर्ष के बाद मैं बरनबास के साथ यरूशलेम को गया और तीतुस को भी साथ ले गया। (IN)

गलातियों 2:2 और मेरा जाना ईश्वरीय प्रकाश के अनुसार हुआ और जो सुसमाचार मैं अन्यजातियों में प्रचार करता हूँ, उसको मैंने उन्हें बता दिया, पर एकान्त में उन्हीं को जो बड़े समझे जाते थे, ताकि ऐसा न हो, कि मेरी इस समय की, या पिछली भाग-दौड़ व्यर्थ ठहरे। (IN)

गलातियों 2:3 ¶ परन्तु तीतुस भी जो मेरे साथ था और जो यूनानी है; खतना कराने के लिये विवश नहीं किया गया। (IN)

गलातियों 2:4 और यह उन झूठे भाइयों के कारण हुआ, जो चोरी से घुस आए थे, कि उस स्वतंत्रता का जो मसीह यीशु में हमें मिली है, भेद कर, हमें दास बनाएँ। (IN)

गलातियों 2:5 उनके अधीन होना हमने एक घड़ी भर न माना, इसलिए कि सुसमाचार की सच्चाई तुम में बनी रहे। (IN)

गलातियों 2:6 ¶ फिर जो लोग कुछ समझे जाते थे वे चाहे कैसे भी थे, मुझे इससे कुछ काम नहीं, परमेश्‍वर किसी का पक्षपात नहीं करता उनसे मुझे कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ। (IN)

गलातियों 2:7 परन्तु इसके विपरीत उन्होंने देखा, कि जैसा खतना किए हुए लोगों के लिये सुसमाचार का काम पतरस को सौंपा गया वैसा ही खतनारहितों के लिये मुझे सुसमाचार सुनाना सौंपा गया। (IN)

गलातियों 2:8 क्योंकि जिस ने पतरस से खतना किए हुओं में प्रेरिताई का कार्य बड़े प्रभाव सहित करवाया, उसी ने मुझसे भी अन्यजातियों में प्रभावशाली कार्य करवाया। (IN)

गलातियों 2:9 ¶ और जब उन्होंने उस अनुग्रह को जो मुझे मिला था जान लिया, तो याकूब, और कैफा, और यूहन्ना ने जो कलीसिया के खम्भे समझे जाते थे, मुझ को और बरनबास को संगति का दाहिना हाथ देकर संग कर लिया, कि हम अन्यजातियों के पास जाएँ, और वे खतना किए हुओं के पास। (IN)

गलातियों 2:10 केवल यह कहा, कि हम कंगालों की सुधि लें, और इसी काम को करने का मैं आप भी यत्न कर रहा था। (IN)

गलातियों 2:11 ¶ पर जब कैफा अन्ताकिया में आया तो मैंने उसके मुँह पर उसका सामना किया, क्योंकि वह दोषी ठहरा था। (IN)

गलातियों 2:12 इसलिए कि याकूब की ओर से कुछ लोगों के आने से पहले वह अन्यजातियों के साथ खाया करता था, परन्तु जब वे आए, तो खतना किए हुए लोगों के डर के मारे उनसे हट गया और किनारा करने लगा। (IN)

गलातियों 2:13 ¶ और उसके साथ शेष यहूदियों ने भी कपट किया, यहाँ तक कि बरनबास भी उनके कपट में पड़ गया। (IN)

गलातियों 2:14 पर जब मैंने देखा, कि वे सुसमाचार की सच्चाई पर सीधी चाल नहीं चलते, तो मैंने सब के सामने कैफा से कहा, “जब तू यहूदी होकर अन्यजातियों के समान चलता है, और यहूदियों के समान नहीं तो तू अन्यजातियों को यहूदियों के समान चलने को क्यों कहता है?” (IN)

गलातियों 2:15 ¶ हम जो जन्म के यहूदी हैं, और पापी अन्यजातियों में से नहीं। (IN)

गलातियों 2:16 तो भी यह जानकर कि मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है, हमने आप भी मसीह यीशु पर विश्वास किया, कि हम व्यवस्था के कामों से नहीं पर मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरें; इसलिए कि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी धर्मी न ठहरेगा। (IN)

गलातियों 2:17 ¶ हम जो मसीह में धर्मी ठहरना चाहते हैं, यदि आप ही पापी निकलें, तो क्या मसीह पाप का सेवक है? कदापि नहीं! (IN)

गलातियों 2:18 क्योंकि जो कुछ मैंने गिरा दिया, यदि उसी को फिर बनाता हूँ, तो अपने आप को अपराधी ठहराता हूँ। (IN)

गलातियों 2:19 मैं तो व्यवस्था के द्वारा व्यवस्था के लिये मर गया, कि परमेश्‍वर के लिये जीऊँ। (IN)

गलातियों 2:20 ¶ मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूँ तो केवल उस विश्वास से जीवित हूँ, जो परमेश्‍वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझसे प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया। (IN)

गलातियों 2:21 मैं परमेश्‍वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता, क्योंकि यदि व्यवस्था के द्वारा धार्मिकता होती, तो मसीह का मरना व्यर्थ होता। (IN)

गलातियों 3:1 ¶ हे निर्बुद्धि गलातियों, किस ने तुम्हें मोह लिया? तुम्हारी तो मानो आँखों के सामने यीशु मसीह क्रूस पर दिखाया गया! (IN)

गलातियों 3:2 मैं तुम से केवल यह जानना चाहता हूँ, कि तुम ने पवित्र आत्मा को, क्या व्यवस्था के कामों से, या विश्वास के समाचार से पाया? (IN)

गलातियों 3:3 क्या तुम ऐसे निर्बुद्धि हो, कि आत्मा की रीति पर आरम्भ करके अब शरीर की रीति पर अन्त करोगे? (IN)

गलातियों 3:4 ¶ क्या तुम ने इतना दुःख व्यर्थ उठाया? परन्तु कदाचित् व्यर्थ नहीं। (IN)

गलातियों 3:5 इसलिए जो तुम्हें आत्मा दान करता और तुम में सामर्थ्य के काम करता है, वह क्या व्यवस्था के कामों से या विश्वास के सुसमाचार से ऐसा करता है? (IN)

गलातियों 3:6 ¶ “अब्राहम ने तो परमेश्‍वर पर विश्वास किया और यह उसके लिये धार्मिकता गिनी गई।” (IN)

गलातियों 3:7 तो यह जान लो, कि जो विश्वास करनेवाले हैं, वे ही अब्राहम की सन्तान हैं। (IN)

गलातियों 3:8 और पवित्रशास्त्र ने पहले ही से यह जानकर, कि परमेश्‍वर अन्यजातियों को विश्वास से धर्मी ठहराएगा, पहले ही से अब्राहम को यह सुसमाचार सुना दिया, कि “तुझ में सब जातियाँ आशीष पाएँगी।” (IN)

गलातियों 3:9 तो जो विश्वास करनेवाले हैं, वे विश्वासी अब्राहम के साथ आशीष पाते हैं। (IN)

गलातियों 3:10 ¶ अतः जितने लोग व्यवस्था के कामों पर भरोसा रखते हैं, वे सब श्राप के अधीन हैं, क्योंकि लिखा है, “जो कोई व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हुई सब बातों के करने में स्थिर नहीं रहता, वह श्रापित है।” (IN)

गलातियों 3:11 पर यह बात प्रगट है, कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्‍वर के यहाँ कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा। (IN)

गलातियों 3:12 पर व्यवस्था का विश्वास से कुछ सम्बन्ध नहीं; पर “जो उनको मानेगा, वह उनके कारण जीवित रहेगा।” (IN)

गलातियों 3:13 ¶ मसीह ने जो हमारे लिये श्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, “जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है।” (IN)

गलातियों 3:14 यह इसलिए हुआ, कि अब्राहम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियों तक पहुँचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्मा को प्राप्त करें, जिसकी प्रतिज्ञा हुई है। (IN)

गलातियों 3:15 ¶ हे भाइयों, मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूँ, कि मनुष्य की वाचा भी जो पक्की हो जाती है, तो न कोई उसे टालता है और न उसमें कुछ बढ़ाता है। (IN)

गलातियों 3:16 अतः प्रतिज्ञाएँ अब्राहम को, और उसके वंश को दी गईं; वह यह नहीं कहता, “वंशों को,” जैसे बहुतों के विषय में कहा, पर जैसे एक के विषय में कि “तेरे वंश को” और वह मसीह है। (IN)

गलातियों 3:17 ¶ पर मैं यह कहता हूँ कि जो वाचा परमेश्‍वर ने पहले से पक्की की थी, उसको व्यवस्था चार सौ तीस वर्षों के बाद आकर नहीं टाल सकती, कि प्रतिज्ञा व्यर्थ ठहरे। (IN)

गलातियों 3:18 क्योंकि यदि विरासत व्यवस्था से मिली है, तो फिर प्रतिज्ञा से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा के द्वारा दे दी है। (IN)

गलातियों 3:19 ¶ तब फिर व्यवस्था क्या रही? वह तो अपराधों के कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिसको प्रतिज्ञा दी गई थी, और व्यवस्था स्वर्गदूतों के द्वारा एक मध्यस्थ के हाथ ठहराई गई। (IN)

गलातियों 3:20 मध्यस्थ तो एक का नहीं होता, परन्तु परमेश्‍वर एक ही है। (IN)

गलातियों 3:21 ¶ तो क्या व्यवस्था परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि नहीं! क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धार्मिकता व्यवस्था से होती। (IN)

गलातियों 3:22 परन्तु पवित्रशास्त्र ने सब को पाप के अधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिसका आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करनेवालों के लिये पूरी हो जाए। (IN)

गलातियों 3:23 ¶ पर विश्वास के आने से पहले व्यवस्था की अधीनता में हम कैद थे, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होनेवाला था, हम उसी के बन्धन में रहे। (IN)

गलातियों 3:24 इसलिए व्यवस्था मसीह तक पहुँचाने के लिए हमारी शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें। (IN)

गलातियों 3:25 परन्तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिक्षक के अधीन न रहे। (IN)

गलातियों 3:26 ¶ क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्‍वर की सन्तान हो। (IN)

गलातियों 3:27 ¶ और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्होंने मसीह को पहन लिया है। (IN)

गलातियों 3:28 अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो। (IN)

गलातियों 3:29 और यदि तुम मसीह के हो, तो अब्राहम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो। (IN)

गलातियों 4:1 ¶ मैं यह कहता हूँ, कि वारिस जब तक बालक है, यद्यपि सब वस्तुओं का स्वामी है, तो भी उसमें और दास में कुछ भेद नहीं। (IN)

गलातियों 4:2 परन्तु पिता के ठहराए हुए समय तक रक्षकों और भण्डारियों के वश में रहता है। (IN)

गलातियों 4:3 ¶ वैसे ही हम भी, जब बालक थे, तो संसार की आदि शिक्षा के वश में होकर दास बने हुए थे। (IN)

गलातियों 4:4 परन्तु जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के अधीन उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

गलातियों 4:5 ताकि व्यवस्था के अधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, और हमको लेपालक होने का पद मिले। (IN)

गलातियों 4:6 ¶ और तुम जो पुत्र हो, इसलिए परमेश्‍वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो ‘हे अब्बा, हे पिता’ कहकर पुकारता है, हमारे हृदय में भेजा है। (IN)

गलातियों 4:7 इसलिए तू अब दास नहीं, परन्तु पुत्र है; और जब पुत्र हुआ, तो परमेश्‍वर के द्वारा वारिस भी हुआ। (IN)

गलातियों 4:8 ¶ फिर पहले, तो तुम परमेश्‍वर को न जानकर उनके दास थे जो स्वभाव में देवता नहीं। (IN)

गलातियों 4:9 पर अब जो तुम ने परमेश्‍वर को पहचान लिया वरन् परमेश्‍वर ने तुम को पहचाना, तो उन निर्बल और निकम्मी आदि शिक्षा की बातों की ओर क्यों फिरते हो, जिनके तुम दोबारा दास होना चाहते हो? (IN)

गलातियों 4:10 ¶ तुम दिनों और महीनों और नियत समयों और वर्षों को मानते हो। (IN)

गलातियों 4:11 मैं तुम्हारे विषय में डरता हूँ, कहीं ऐसा न हो, कि जो परिश्रम मैंने तुम्हारे लिये किया है वह व्यर्थ ठहरे। (IN)

गलातियों 4:12 ¶ हे भाइयों, मैं तुम से विनती करता हूँ, तुम मेरे समान हो जाओ: क्योंकि मैं भी तुम्हारे समान हुआ हूँ; तुम ने मेरा कुछ बिगाड़ा नहीं। (IN)

गलातियों 4:13 पर तुम जानते हो, कि पहले पहल मैंने शरीर की निर्बलता के कारण तुम्हें सुसमाचार सुनाया। (IN)

गलातियों 4:14 और तुम ने मेरी शारीरिक दशा को जो तुम्हारी परीक्षा का कारण थी, तुच्छ न जाना; न उसने घृणा की; और परमेश्‍वर के दूत वरन् मसीह के समान मुझे ग्रहण किया। (IN)

गलातियों 4:15 ¶ तो वह तुम्हारा आनन्द कहाँ गया? मैं तुम्हारा गवाह हूँ, कि यदि हो सकता, तो तुम अपनी आँखें भी निकालकर मुझे दे देते। (IN)

गलातियों 4:16 तो क्या तुम से सच बोलने के कारण मैं तुम्हारा बैरी हो गया हूँ। (IN)

गलातियों 4:17 ¶ वे तुम्हें मित्र बनाना तो चाहते हैं, पर भली मनसा से नहीं; वरन् तुम्हें मुझसे अलग करना चाहते हैं, कि तुम उन्हीं के साथ हो जाओ। (IN)

गलातियों 4:18 पर उत्साही होना अच्छा है, कि भली बात में हर समय यत्न किया जाए, न केवल उसी समय, कि जब मैं तुम्हारे साथ रहता हूँ। (IN)

गलातियों 4:19 ¶ हे मेरे बालकों, जब तक तुम में मसीह का रूप न बन जाए, तब तक मैं तुम्हारे लिये फिर जच्चा के समान पीड़ाएँ सहता हूँ। (IN)

गलातियों 4:20 इच्छा तो यह होती है, कि अब तुम्हारे पास आकर और ही प्रकार से बोलूँ, क्योंकि तुम्हारे विषय में मैं विकल हूँ। (IN)

गलातियों 4:21 ¶ तुम जो व्यवस्था के अधीन होना चाहते हो, मुझसे कहो, क्या तुम व्यवस्था की नहीं सुनते? (IN)

गलातियों 4:22 यह लिखा है, कि अब्राहम के दो पुत्र हुए; एक दासी से, और एक स्वतंत्र स्त्री से। (IN)

गलातियों 4:23 परन्तु जो दासी से हुआ, वह शारीरिक रीति से जन्मा, और जो स्वतंत्र स्त्री से हुआ, वह प्रतिज्ञा के अनुसार जन्मा। (IN)

गलातियों 4:24 ¶ इन बातों में दृष्टान्त है, ये स्त्रियाँ मानो दो वाचाएँ हैं, एक तो सीनै पहाड़ की जिससे दास ही उत्‍पन्‍न होते हैं; और वह हाजिरा है। (IN)

गलातियों 4:25 और हाजिरा मानो अरब का सीनै पहाड़ है, और आधुनिक यरूशलेम उसके तुल्य है, क्योंकि वह अपने बालकों समेत दासत्व में है। (IN)

गलातियों 4:26 ¶ पर ऊपर की यरूशलेम स्वतंत्र है, और वह हमारी माता है। (IN)

गलातियों 4:27 क्योंकि लिखा है, (IN)

गलातियों 4:28 ¶ हे भाइयों, हम इसहाक के समान प्रतिज्ञा की सन्तान हैं। (IN)

गलातियों 4:29 और जैसा उस समय शरीर के अनुसार जन्मा हुआ आत्मा के अनुसार जन्मे हुए को सताता था, वैसा ही अब भी होता है। (IN)

गलातियों 4:30 ¶ परन्तु पवित्रशास्त्र क्या कहता है? “दासी और उसके पुत्र को निकाल दे, क्योंकि दासी का पुत्र स्वतंत्र स्त्री के पुत्र के साथ उत्तराधिकारी नहीं होगा।” (IN)

गलातियों 4:31 इसलिए हे भाइयों, हम दासी के नहीं परन्तु स्वतंत्र स्त्री की सन्तान हैं। (IN)

गलातियों 5:1 ¶ मसीह ने स्वतंत्रता के लिये हमें स्वतंत्र किया है; इसलिए इसमें स्थिर रहो, और दासत्व के जूए में फिर से न जुतो। (IN)

गलातियों 5:2 ¶ मैं पौलुस तुम से कहता हूँ, कि यदि खतना कराओगे, तो मसीह से तुम्हें कुछ लाभ न होगा। (IN)

गलातियों 5:3 ¶ फिर भी मैं हर एक खतना करानेवाले को जताए देता हूँ, कि उसे सारी व्यवस्था माननी पड़ेगी। (IN)

गलातियों 5:4 ¶ तुम जो व्यवस्था के द्वारा धर्मी ठहरना चाहते हो, मसीह से अलग और अनुग्रह से गिर गए हो। (IN)

गलातियों 5:5 क्योंकि आत्मा के कारण, हम विश्वास से, आशा की हुई धार्मिकता की प्रतीक्षा करते हैं। (IN)

गलातियों 5:6 और मसीह यीशु में न खतना, न खतनारहित कुछ काम का है, परन्तु केवल विश्वास का जो प्रेम के द्वारा प्रभाव करता है। (IN)

गलातियों 5:7 ¶ तुम तो भली भाँति दौड़ रहे थे, अब किस ने तुम्हें रोक दिया, कि सत्य को न मानो। (IN)

गलातियों 5:8 ऐसी सीख तुम्हारे बुलानेवाले की ओर से नहीं। (IN)

गलातियों 5:9 ¶ थोड़ा सा ख़मीर सारे गुँधे हुए आटे को ख़मीर कर डालता है। (IN)

गलातियों 5:10 मैं प्रभु पर तुम्हारे विषय में भरोसा रखता हूँ, कि तुम्हारा कोई दूसरा विचार न होगा; परन्तु जो तुम्हें घबरा देता है, वह कोई क्यों न हो दण्ड पाएगा। (IN)

गलातियों 5:11 ¶ हे भाइयों, यदि मैं अब तक खतना का प्रचार करता हूँ, तो क्यों अब तक सताया जाता हूँ; फिर तो क्रूस की ठोकर जाती रही। (IN)

गलातियों 5:12 भला होता, कि जो तुम्हें डाँवाडोल करते हैं, वे अपना अंग ही काट डालते! (IN)

गलातियों 5:13 ¶ हे भाइयों, तुम स्वतंत्र होने के लिये बुलाए गए हो; परन्तु ऐसा न हो, कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामों के लिये अवसर बने, वरन् प्रेम से एक दूसरे के दास बनो। (IN)

गलातियों 5:14 क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (IN)

गलातियों 5:15 पर यदि तुम एक दूसरे को दाँत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो, कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो। (IN)

गलातियों 5:16 ¶ पर मैं कहता हूँ, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे। (IN)

गलातियों 5:17 क्योंकि शरीर आत्मा के विरोध में और आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करता है, और ये एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिए कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ। (IN)

गलातियों 5:18 और यदि तुम आत्मा के चलाए चलते हो तो व्यवस्था के अधीन न रहे। (IN)

गलातियों 5:19 ¶ शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात् व्यभिचार, गंदे काम, लुचपन, (IN)

गलातियों 5:20 मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, (IN)

गलातियों 5:21 डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इनके जैसे और-और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम को पहले से कह देता हूँ जैसा पहले कह भी चुका हूँ, कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस न होंगे। (IN)

गलातियों 5:22 ¶ पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, और दया, भलाई, विश्वास, (IN)

गलातियों 5:23 नम्रता, और संयम हैं; ऐसे-ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं। (IN)

गलातियों 5:24 और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है। (IN)

गलातियों 5:25 ¶ यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी। (IN)

गलातियों 5:26 हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें। (IN)

गलातियों 6:1 ¶ हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी देख-रेख करो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो। (IN)

गलातियों 6:2 तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो। (IN)

गलातियों 6:3 ¶ क्योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है। (IN)

गलातियों 6:4 पर हर एक अपने ही काम को जाँच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा। (IN)

गलातियों 6:5 क्योंकि हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा। (IN)

गलातियों 6:6 ¶ जो वचन की शिक्षा पाता है, वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखानेवाले को भागी करे। (IN)

गलातियों 6:7 धोखा न खाओ, परमेश्‍वर उपहास में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा। (IN)

गलातियों 6:8 क्योंकि जो अपने शरीर के लिये बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्मा के लिये बोता है, वह आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा। (IN)

गलातियों 6:9 ¶ हम भले काम करने में साहस न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे। (IN)

गलातियों 6:10 इसलिए जहाँ तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ। (IN)

गलातियों 6:11 ¶ देखो, मैंने कैसे बड़े-बड़े अक्षरों में तुम को अपने हाथ से लिखा है। (IN)

गलातियों 6:12 जितने लोग शारीरिक दिखावा चाहते हैं वे तुम्हारे खतना करवाने के लिये दबाव देते हैं, केवल इसलिए कि वे मसीह के क्रूस के कारण सताए न जाएँ। (IN)

गलातियों 6:13 क्योंकि खतना करानेवाले आप तो, व्यवस्था पर नहीं चलते, पर तुम्हारा खतना कराना इसलिए चाहते हैं, कि तुम्हारी शारीरिक दशा पर घमण्ड करें। (IN)

गलातियों 6:14 ¶ पर ऐसा न हो, कि मैं और किसी बात का घमण्ड करूँ, केवल हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस का जिसके द्वारा संसार मेरी दृष्टि में और मैं संसार की दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ। (IN)

गलातियों 6:15 क्योंकि न खतना, और न खतनारहित कुछ है, परन्तु नई सृष्टि महत्वपूर्ण है। (IN)

गलातियों 6:16 और जितने इस नियम पर चलेंगे उन पर, और परमेश्‍वर के इस्राएल पर, शान्ति और दया होती रहे। (IN)

गलातियों 6:17 ¶ आगे को कोई मुझे दुःख न दे, क्योंकि मैं यीशु के दागों को अपनी देह में लिये फिरता हूँ। (IN)

गलातियों 6:18 ¶ हे भाइयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा के साथ रहे। आमीन। (IN)

इफिसियों 1:1 ¶ पौलुस की ओर से जो परमेश्‍वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित है, उन पवित्र और मसीह यीशु में विश्वासी लोगों के नाम जो इफिसुस में हैं, (IN)

इफिसियों 1:2 हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

इफिसियों 1:3 ¶ हमारे परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह के पिता का धन्यवाद हो कि उसने हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आत्मिक आशीष दी है। (IN)

इफिसियों 1:4 जैसा उसने हमें जगत की उत्पत्ति से पहले उसमें चुन लिया कि हम उसकी दृष्टि में पवित्र और निर्दोष हों। (IN)

इफिसियों 1:5 ¶ और प्रेम में उसने अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों, (IN)

इफिसियों 1:6 कि उसके उस अनुग्रह की महिमा की स्तुति हो, जिसे उसने हमें अपने प्रिय पुत्र के द्वारा सेंत-मेंत दिया। (IN)

इफिसियों 1:7 ¶ हमको मसीह में उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात् अपराधों की क्षमा, परमेश्‍वर के उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है, (IN)

इफिसियों 1:8 जिसे उसने सारे ज्ञान और समझ सहित हम पर बहुतायत से किया। (IN)

इफिसियों 1:9 ¶ उसने अपनी इच्छा का भेद, अपने भले अभिप्राय के अनुसार हमें बताया, जिसे उसने अपने आप में ठान लिया था, (IN)

इफिसियों 1:10 कि परमेश्‍वर की योजना के अनुसार, समय की पूर्ति होने पर, जो कुछ स्वर्ग में और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे। (IN)

इफिसियों 1:11 ¶ मसीह में हम भी उसी की मनसा से जो अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है, पहले से ठहराए जाकर विरासत बने। (IN)

इफिसियों 1:12 कि हम जिन्होंने पहले से मसीह पर आशा रखी थी, उसकी महिमा की स्तुति का कारण हों। (IN)

इफिसियों 1:13 ¶ और उसी में तुम पर भी जब तुम ने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी। (IN)

इफिसियों 1:14 वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिये हमारी विरासत का बयाना है, कि उसकी महिमा की स्तुति हो। (IN)

इफिसियों 1:15 ¶ इस कारण, मैं भी उस विश्वास जो तुम लोगों में प्रभु यीशु पर है और सब पवित्र लोगों के प्रति प्रेम का समाचार सुनकर, (IN)

इफिसियों 1:16 तुम्हारे लिये परमेश्‍वर का धन्यवाद करना नहीं छोड़ता, और अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें स्मरण किया करता हूँ। (IN)

इफिसियों 1:17 ¶ कि हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्‍वर जो महिमा का पिता है, तुम्हें बुद्धि की आत्मा और अपने ज्ञान का प्रकाश दे। (IN)

इफिसियों 1:18 और तुम्हारे मन की आँखें ज्योतिर्मय हों कि तुम जान लो कि हमारे बुलाहट की आशा क्या है, और पवित्र लोगों में उसकी विरासत की महिमा का धन कैसा है। (IN)

इफिसियों 1:19 ¶ और उसकी सामर्थ्य हमारी ओर जो विश्वास करते हैं, कितनी महान है, उसकी शक्ति के प्रभाव के उस कार्य के अनुसार। (IN)

इफिसियों 1:20 जो उसने मसीह के विषय में किया, कि उसको मरे हुओं में से जिलाकर स्वर्गीय स्थानों में अपनी दाहिनी ओर, (IN)

इफिसियों 1:21 सब प्रकार की प्रधानता, और अधिकार, और सामर्थ्य, और प्रभुता के, और हर एक नाम के ऊपर, जो न केवल इस लोक में, पर आनेवाले लोक में भी लिया जाएगा, बैठाया; (IN)

इफिसियों 1:22 ¶ और सब कुछ उसके पाँवों तले कर दिया और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया, (IN)

इफिसियों 1:23 यह उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है, जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है। (IN)

इफिसियों 2:1 ¶ और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। (IN)

इफिसियों 2:2 जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के अधिपति अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है। (IN)

इफिसियों 2:3 इनमें हम भी सब के सब पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएँ पूरी करते थे, और अन्य लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। (IN)

इफिसियों 2:4 ¶ परन्तु परमेश्‍वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण जिससे उसने हम से प्रेम किया, (IN)

इफिसियों 2:5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, (IN)

इफिसियों 2:6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। (IN)

इफिसियों 2:7 कि वह अपनी उस दया से जो मसीह यीशु में हम पर है, आनेवाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। (IN)

इफिसियों 2:8 ¶ क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्‍वर का दान है; (IN)

इफिसियों 2:9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। (IN)

इफिसियों 2:10 क्योंकि हम परमेश्‍वर की रचना हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्‍वर ने पहले से हमारे करने के लिये तैयार किया। (IN)

इफिसियों 2:11 ¶ इस कारण स्मरण करो, कि तुम जो शारीरिक रीति से अन्यजाति हो, और जो लोग शरीर में हाथ के किए हुए खतने से खतनावाले कहलाते हैं, वे तुम को खतनारहित कहते हैं, (IN)

इफिसियों 2:12 तुम लोग उस समय मसीह से अलग और इस्राएल की प्रजा के पद से अलग किए हुए, और प्रतिज्ञा की वाचाओं के भागी न थे, और आशाहीन और जगत में ईश्वर रहित थे। (IN)

इफिसियों 2:13 ¶ पर अब मसीह यीशु में तुम जो पहले दूर थे, मसीह के लहू के द्वारा निकट हो गए हो। (IN)

इफिसियों 2:14 ¶ क्योंकि वही हमारा मेल है, जिसने यहूदियों और अन्यजातियों को एक कर दिया और अलग करनेवाले दीवार को जो बीच में थी, ढा दिया। (IN)

इफिसियों 2:15 और अपने शरीर में बैर अर्थात् वह व्यवस्था जिसकी आज्ञाएँ विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया कि दोनों से अपने में एक नई जाति उत्‍पन्‍न करके मेल करा दे, (IN)

इफिसियों 2:16 और क्रूस पर बैर को नाश करके इसके द्वारा दोनों को एक देह बनाकर परमेश्‍वर से मिलाए। (IN)

इफिसियों 2:17 ¶ और उसने आकर तुम्हें जो दूर थे, और उन्हें जो निकट थे, दोनों को मेल-मिलाप का सुसमाचार सुनाया। (IN)

इफिसियों 2:18 क्योंकि उस ही के द्वारा हम दोनों की एक आत्मा में पिता के पास पहुँच होती है। (IN)

इफिसियों 2:19 ¶ इसलिए तुम अब परदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्‍वर के घराने के हो गए। (IN)

इफिसियों 2:20 और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही है, बनाए गए हो। (IN)

इफिसियों 2:21 जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है, (IN)

इफिसियों 2:22 जिसमें तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्‍वर का निवास-स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो। (IN)

इफिसियों 3:1 ¶ इसी कारण मैं पौलुस जो तुम अन्यजातियों के लिये मसीह यीशु का बन्दी हूँ (IN)

इफिसियों 3:2 यदि तुम ने परमेश्‍वर के उस अनुग्रह के प्रबन्ध का समाचार सुना हो, जो तुम्हारे लिये मुझे दिया गया। (IN)

इफिसियों 3:3 ¶ अर्थात् यह कि वह भेद मुझ पर प्रकाश के द्वारा प्रगट हुआ, जैसा मैं पहले संक्षेप में लिख चुका हूँ। (IN)

इफिसियों 3:4 जिससे तुम पढ़कर जान सकते हो कि मैं मसीह का वह भेद कहाँ तक समझता हूँ। (IN)

इफिसियों 3:5 जो अन्य समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया हैं। (IN)

इफिसियों 3:6 ¶ अर्थात् यह कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लोग विरासत में सहभागी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं। (IN)

इफिसियों 3:7 और मैं परमेश्‍वर के अनुग्रह के उस दान के अनुसार, जो सामर्थ्य के प्रभाव के अनुसार मुझे दिया गया, उस सुसमाचार का सेवक बना। (IN)

इफिसियों 3:8 ¶ मुझ पर जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूँ, यह अनुग्रह हुआ कि मैं अन्यजातियों को मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाऊँ, (IN)

इफिसियों 3:9 और सब पर यह बात प्रकाशित करूँ कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्‍वर में आदि से गुप्त था। (IN)

इफिसियों 3:10 ¶ ताकि अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्‍वर का विभिन्न प्रकार का ज्ञान, उन प्रधानों और अधिकारियों पर, जो स्वर्गीय स्थानों में हैं प्रगट किया जाए। (IN)

इफिसियों 3:11 उस सनातन मनसा के अनुसार जो उसने हमारे प्रभु मसीह यीशु में की थीं। (IN)

इफिसियों 3:12 ¶ जिसमें हमको उस पर विश्वास रखने से साहस और भरोसे से निकट आने का अधिकार है। (IN)

इफिसियों 3:13 इसलिए मैं विनती करता हूँ कि जो क्लेश तुम्हारे लिये मुझे हो रहे हैं, उनके कारण साहस न छोड़ो, क्योंकि उनमें तुम्हारी महिमा है। (IN)

इफिसियों 3:14 ¶ मैं इसी कारण उस पिता के सामने घुटने टेकता हूँ, (IN)

इफिसियों 3:15 जिससे स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है, (IN)

इफिसियों 3:16 कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्व में सामर्थ्य पा कर बलवन्त होते जाओ, (IN)

इफिसियों 3:17 ¶ और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़कर और नींव डालकर, (IN)

इफिसियों 3:18 सब पवित्र लोगों के साथ भली-भाँति समझने की शक्ति पाओ; कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊँचाई, और गहराई कितनी है। (IN)

इफिसियों 3:19 और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है कि तुम परमेश्‍वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ। (IN)

इफिसियों 3:20 ¶ अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ्य के अनुसार जो हम में कार्य करता है, (IN)

इफिसियों 3:21 कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उसकी महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

इफिसियों 4:1 ¶ इसलिए मैं जो प्रभु में बन्दी हूँ तुम से विनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो, (IN)

इफिसियों 4:2 अर्थात् सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो, (IN)

इफिसियों 4:3 और मेल के बन्धन में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो। (IN)

इफिसियों 4:4 ¶ एक ही देह है, और एक ही आत्मा; जैसे तुम्हें जो बुलाए गए थे अपने बुलाए जाने से एक ही आशा है। (IN)

इफिसियों 4:5 एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा, (IN)

इफिसियों 4:6 और सब का एक ही परमेश्‍वर और पिता है, जो सब के ऊपर और सब के मध्य में, और सब में है। (IN)

इफिसियों 4:7 ¶ पर हम में से हर एक को मसीह के दान के परिमाण से अनुग्रह मिला है। (IN)

इफिसियों 4:8 इसलिए वह कहता है, (IN)

इफिसियों 4:9 ¶ (उसके चढ़ने से, और क्या अर्थ पाया जाता है केवल यह कि वह पृथ्वी की निचली जगहों में उतरा भी था। (IN)

इफिसियों 4:10 और जो उतर गया यह वही है जो सारे आकाश के ऊपर चढ़ भी गया कि सब कुछ परिपूर्ण करे।) (IN)

इफिसियों 4:11 ¶ और उसने कुछ को प्रेरित नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कुछ को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कुछ को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया। (IN)

इफिसियों 4:12 जिससे पवित्र लोग सिद्ध हो जाएँ और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। (IN)

इफिसियों 4:13 जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्‍वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाएँ, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएँ और मसीह के पूरे डील-डौल तक न बढ़ जाएँ। (IN)

इफिसियों 4:14 ¶ ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उनके भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक वायु से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों। (IN)

इफिसियों 4:15 वरन् प्रेम में सच बोलें और सब बातों में उसमें जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते जाएँ, (IN)

इफिसियों 4:16 जिससे सारी देह हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर, और एक साथ गठकर, उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक अंग के ठीक-ठीक कार्य करने के द्वारा उसमें होता है, अपने आप को बढ़ाती है कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए। (IN)

इफिसियों 4:17 ¶ इसलिए मैं यह कहता हूँ और प्रभु में जताए देता हूँ कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ की रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। (IN)

इफिसियों 4:18 क्योंकि उनकी बुद्धि अंधेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उनमें है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्‍वर के जीवन से अलग किए हुए हैं; (IN)

इफिसियों 4:19 और वे सुन्न होकर लुचपन में लग गए हैं कि सब प्रकार के गंदे काम लालसा से किया करें। (IN)

इफिसियों 4:20 ¶ पर तुम ने मसीह की ऐसी शिक्षा नहीं पाई। (IN)

इफिसियों 4:21 वरन् तुम ने सचमुच उसी की सुनी, और जैसा यीशु में सत्य है, उसी में सिखाए भी गए। (IN)

इफिसियों 4:22 कि तुम अपने चाल-चलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो। (IN)

इफिसियों 4:23 ¶ और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ, (IN)

इफिसियों 4:24 और नये मनुष्यत्व को पहन लो, जो परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है। (IN)

इफिसियों 4:25 ¶ इस कारण झूठ बोलना छोड़कर, हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं। (IN)

इफिसियों 4:26 क्रोध तो करो, पर पाप मत करो; सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। (IN)

इफिसियों 4:27 और न शैतान को अवसर दो। (IN)

इफिसियों 4:28 ¶ चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; वरन् भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे; इसलिए कि जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो। (IN)

इफिसियों 4:29 कोई गंदी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही निकले जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उससे सुननेवालों पर अनुग्रह हो। (IN)

इफिसियों 4:30 परमेश्‍वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो, जिससे तुम पर छुटकारे के दिन के लिये छाप दी गई है। (IN)

इफिसियों 4:31 ¶ सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैर-भाव समेत तुम से दूर की जाए। (IN)

इफिसियों 4:32 एक दूसरे पर कृपालु, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्‍वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो। (IN)

इफिसियों 5:1 ¶ इसलिए प्रिय बच्चों के समान परमेश्‍वर का अनुसरण करो; (IN)

इफिसियों 5:2 और प्रेम में चलो जैसे मसीह ने भी तुम से प्रेम किया; और हमारे लिये अपने आप को सुखदायक सुगन्ध के लिये परमेश्‍वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया। (IN)

इफिसियों 5:3 ¶ जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार, और किसी प्रकार के अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो। (IN)

इफिसियों 5:4 और न निर्लज्जता, न मूर्खता की बातचीत की, न उपहास किया, क्योंकि ये बातें शोभा नहीं देती, वरन् धन्यवाद ही सुना जाए। (IN)

इफिसियों 5:5 ¶ क्योंकि तुम यह जानते हो कि किसी व्यभिचारी, या अशुद्ध जन, या लोभी मनुष्य की, जो मूर्तिपूजक के बराबर है, मसीह और परमेश्‍वर के राज्य में विरासत नहीं। (IN)

इफिसियों 5:6 कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा न दे; क्योंकि इन ही कामों के कारण परमेश्‍वर का क्रोध आज्ञा न माननेवालों पर भड़कता है। (IN)

इफिसियों 5:7 इसलिए तुम उनके सहभागी न हो। (IN)

इफिसियों 5:8 ¶ क्योंकि तुम तो पहले अंधकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, अतः ज्योति की सन्तान के समान चलो। (IN)

इफिसियों 5:9 (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता, और सत्य है), (IN)

इफिसियों 5:10 और यह परखो, कि प्रभु को क्या भाता है? (IN)

इफिसियों 5:11 और अंधकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन् उन पर उलाहना दो। (IN)

इफिसियों 5:12 क्योंकि उनके गुप्त कामों की चर्चा भी लज्जा की बात है। (IN)

इफिसियों 5:13 ¶ पर जितने कामों पर उलाहना दिया जाता है वे सब ज्योति से प्रगट होते हैं, क्योंकि जो सब कुछ को प्रगट करता है, वह ज्योति है। (IN)

इफिसियों 5:14 इस कारण वह कहता है, (IN)

इफिसियों 5:15 ¶ इसलिए ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों के समान नहीं पर बुद्धिमानों के समान चलो। (IN)

इफिसियों 5:16 और अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। (IN)

इफिसियों 5:17 इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो, कि प्रभु की इच्छा क्या है। (IN)

इफिसियों 5:18 ¶ और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इससे लुचपन होता है, पर पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ, (IN)

इफिसियों 5:19 और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने-अपने मन में प्रभु के सामने गाते और स्तुति करते रहो। (IN)

इफिसियों 5:20 और सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्‍वर पिता का धन्यवाद करते रहो। (IN)

इफिसियों 5:21 और मसीह के भय से एक दूसरे के अधीन रहो। (IN)

इफिसियों 5:22 ¶ हे पत्नियों, अपने-अपने पति के ऐसे अधीन रहो, जैसे प्रभु के। (IN)

इफिसियों 5:23 क्योंकि पति तो पत्‍नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है। (IN)

इफिसियों 5:24 पर जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियाँ भी हर बात में अपने-अपने पति के अधीन रहें। (IN)

इफिसियों 5:25 ¶ हे पतियों, अपनी-अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया, (IN)

इफिसियों 5:26 कि उसको वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध करके पवित्र बनाए, (IN)

इफिसियों 5:27 और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बनाकर अपने पास खड़ी करे, जिसमें न कलंक, न झुर्री, न कोई ऐसी वस्तु हो, वरन् पवित्र और निर्दोष हो। (IN)

इफिसियों 5:28 ¶ इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी-अपनी पत्‍नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्‍नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। (IN)

इफिसियों 5:29 क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा वरन् उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है। (IN)

इफिसियों 5:30 इसलिए कि हम उसकी देह के अंग हैं। (IN)

इफिसियों 5:31 ¶ “इस कारण पुरुष माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे।” (IN)

इफिसियों 5:32 यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूँ। (IN)

इफिसियों 5:33 पर तुम में से हर एक अपनी पत्‍नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्‍नी भी अपने पति का भय माने। (IN)

इफिसियों 6:1 ¶ हे बच्चों, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। (IN)

इफिसियों 6:2 “अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहली आज्ञा है, जिसके साथ प्रतिज्ञा भी है), (IN)

इफिसियों 6:3 कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।” (IN)

इफिसियों 6:4 ¶ और हे पिताओं, अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चेतावनी देते हुए, उनका पालन-पोषण करो। (IN)

इफिसियों 6:5 ¶ हे दासों, जो लोग संसार के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, अपने मन की सिधाई से डरते, और काँपते हुए, जैसे मसीह की, वैसे ही उनकी भी आज्ञा मानो। (IN)

इफिसियों 6:6 और मनुष्यों को प्रसन्‍न करनेवालों के समान दिखाने के लिये सेवा न करो, पर मसीह के दासों के समान मन से परमेश्‍वर की इच्छा पर चलो, (IN)

इफिसियों 6:7 और उस सेवा को मनुष्यों की नहीं, परन्तु प्रभु की जानकर सुइच्छा से करो। (IN)

इफिसियों 6:8 क्योंकि तुम जानते हो, कि जो कोई जैसा अच्छा काम करेगा, चाहे दास हो, चाहे स्वतंत्र, प्रभु से वैसा ही पाएगा। (IN)

इफिसियों 6:9 ¶ और हे स्वामियों, तुम भी धमकियाँ छोड़कर उनके साथ वैसा ही व्यवहार करो, क्योंकि जानते हो, कि उनका और तुम्हारा दोनों का स्वामी स्वर्ग में है, और वह किसी का पक्ष नहीं करता। (IN)

इफिसियों 6:10 ¶ इसलिए प्रभु में और उसकी शक्ति के प्रभाव में बलवन्त बनो। (IN)

इफिसियों 6:11 परमेश्‍वर के सारे हथियार बाँध लो कि तुम शैतान की युक्तियों के सामने खड़े रह सको। (IN)

इफिसियों 6:12 ¶ क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लहू और माँस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अंधकार के शासकों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। (IN)

इफिसियों 6:13 इसलिए परमेश्‍वर के सारे हथियार बाँध लो कि तुम बुरे दिन में सामना कर सको, और सब कुछ पूरा करके स्थिर रह सको। (IN)

इफिसियों 6:14 ¶ इसलिए सत्य से अपनी कमर कसकर, और धार्मिकता की झिलम पहनकर, (IN)

इफिसियों 6:15 और पाँवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहनकर; (IN)

इफिसियों 6:16 और उन सब के साथ विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो जिससे तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको। (IN)

इफिसियों 6:17 ¶ और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार जो परमेश्‍वर का वचन है, ले लो। (IN)

इफिसियों 6:18 और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और विनती करते रहो, और जागते रहो कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार विनती किया करो, (IN)

इफिसियों 6:19 ¶ और मेरे लिये भी कि मुझे बोलने के समय ऐसा प्रबल वचन दिया जाए कि मैं साहस से सुसमाचार का भेद बता सकूँ, (IN)

इफिसियों 6:20 जिसके लिये मैं जंजीर से जकड़ा हुआ राजदूत हूँ। और यह भी कि मैं उसके विषय में जैसा मुझे चाहिए साहस से बोलूँ। (IN)

इफिसियों 6:21 ¶ तुखिकुस जो प्रिय भाई और प्रभु में विश्वासयोग्य सेवक है, तुम्हें सब बातें बताएगा कि तुम भी मेरी दशा जानो कि मैं कैसा रहता हूँ। (IN)

इफिसियों 6:22 उसे मैंने तुम्हारे पास इसलिए भेजा है, कि तुम हमारी दशा जानो, और वह तुम्हारे मनों को शान्ति दे। (IN)

इफिसियों 6:23 ¶ परमेश्‍वर पिता और प्रभु यीशु मसीह की ओर से भाइयों को शान्ति और विश्वास सहित प्रेम मिले। (IN)

इफिसियों 6:24 जो हमारे प्रभु यीशु मसीह से अमर प्रेम रखते हैं, उन सब पर अनुग्रह होता रहे। (IN)

फिलिप्पियों 1:1 ¶ मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुथियुस की ओर से सब पवित्र लोगों के नाम, जो मसीह यीशु में होकर फिलिप्पी में रहते हैं, अध्यक्षों और सेवकों समेत, (IN)

फिलिप्पियों 1:2 हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

फिलिप्पियों 1:3 ¶ मैं जब-जब तुम्हें स्मरण करता हूँ, तब-तब अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ, (IN)

फिलिप्पियों 1:4 और जब कभी तुम सब के लिये विनती करता हूँ, तो सदा आनन्द के साथ विनती करता हूँ (IN)

फिलिप्पियों 1:5 इसलिए कि तुम पहले दिन से लेकर आज तक सुसमाचार के फैलाने में मेरे सहभागी रहे हो। (IN)

फिलिप्पियों 1:6 मुझे इस बात का भरोसा है कि जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा। (IN)

फिलिप्पियों 1:7 ¶ उचित है कि मैं तुम सब के लिये ऐसा ही विचार करूँ, क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिये उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी हो। (IN)

फिलिप्पियों 1:8 इसमें परमेश्‍वर मेरा गवाह है कि मैं मसीह यीशु के समान प्रेम करके तुम सब की लालसा करता हूँ। (IN)

फिलिप्पियों 1:9 ¶ और मैं यह प्रार्थना करता हूँ, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए, (IN)

फिलिप्पियों 1:10 यहाँ तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो, और ठोकर न खाओ; (IN)

फिलिप्पियों 1:11 और उस धार्मिकता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिससे परमेश्‍वर की महिमा और स्तुति होती रहे। (IN)

फिलिप्पियों 1:12 ¶ हे भाइयों, मैं चाहता हूँ, कि तुम यह जान लो कि मुझ पर जो बीता है, उससे सुसमाचार ही की उन्नति हुई है। (IN)

फिलिप्पियों 1:13 यहाँ तक कि कैसर के राजभवन की सारी सैन्य-दल और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूँ, (IN)

फिलिप्पियों 1:14 और प्रभु में जो भाई हैं, उनमें से अधिकांश मेरे कैद होने के कारण, साहस बाँध कर, परमेश्‍वर का वचन बेधड़क सुनाने का और भी साहस करते हैं। (IN)

फिलिप्पियों 1:15 ¶ कुछ तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कुछ भली मनसा से। (IN)

फिलिप्पियों 1:16 कई एक तो यह जानकर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूँ प्रेम से प्रचार करते हैं। (IN)

फिलिप्पियों 1:17 और कई एक तो सिधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझकर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्लेश उत्‍पन्‍न करें। (IN)

फिलिप्पियों 1:18 ¶ तो क्या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इससे आनन्दित हूँ, और आनन्दित रहूँगा भी। (IN)

फिलिप्पियों 1:19 क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम्हारी विनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा के दान के द्वारा, इसका प्रतिफल, मेरा उद्धार होगा। (IN)

फिलिप्पियों 1:20 ¶ मैं तो यही हार्दिक लालसा और आशा रखता हूँ कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊँ, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ। (IN)

फिलिप्पियों 1:21 क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है। (IN)

फिलिप्पियों 1:22 ¶ पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता कि किसको चुनूँ। (IN)

फिलिप्पियों 1:23 क्योंकि मैं दोनों के बीच असमंजस में हूँ; जी तो चाहता है कि देह-त्याग के मसीह के पास जा रहूँ, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है, (IN)

फिलिप्पियों 1:24 परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है। (IN)

फिलिप्पियों 1:25 ¶ और इसलिए कि मुझे इसका भरोसा है। अतः मैं जानता हूँ कि मैं जीवित रहूँगा, वरन् तुम सब के साथ रहूँगा, जिससे तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उसमें आनन्दित रहो; (IN)

फिलिप्पियों 1:26 और जो घमण्ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए। (IN)

फिलिप्पियों 1:27 ¶ केवल इतना करो कि तुम्हारा चाल-चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो कि चाहे मैं आकर तुम्हें देखूँ, चाहे न भी आऊँ, तुम्हारे विषय में यह सुनूँ कि तुम एक ही आत्मा में स्थिर हो, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिये परिश्रम करते रहते हो। (IN)

फिलिप्पियों 1:28 ¶ और किसी बात में विरोधियों से भय नहीं खाते। यह उनके लिये विनाश का स्पष्ट चिन्ह है, परन्तु तुम्हारे लिये उद्धार का, और यह परमेश्‍वर की ओर से है। (IN)

फिलिप्पियों 1:29 क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करो पर उसके लिये दुःख भी उठाओ, (IN)

फिलिप्पियों 1:30 और तुम्हें वैसा ही परिश्रम करना है, जैसा तुम ने मुझे करते देखा है, और अब भी सुनते हो कि मैं वैसा ही करता हूँ। (IN)

फिलिप्पियों 2:1 ¶ अतः यदि मसीह में कुछ प्रोत्साहन और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करुणा और दया हो, (IN)

फिलिप्पियों 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। (IN)

फिलिप्पियों 2:3 ¶ स्वार्थ या मिथ्यागर्व के लिये कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। (IN)

फिलिप्पियों 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे। (IN)

फिलिप्पियों 2:5 ¶ जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो; (IN)

फिलिप्पियों 2:6 जिसने परमेश्‍वर के स्वरूप में होकर भी (IN)

फिलिप्पियों 2:7 वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, (IN)

फिलिप्पियों 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर (IN)

फिलिप्पियों 2:9 इस कारण परमेश्‍वर ने उसको अति महान भी किया, (IN)

फिलिप्पियों 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; (IN)

फिलिप्पियों 2:11 और परमेश्‍वर पिता की महिमा के लिये (IN)

फिलिप्पियों 2:12 ¶ इसलिए हे मेरे प्रियों, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साथ रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और काँपते हुए अपने-अपने उद्धार का कार्य पूरा करते जाओ। (IN)

फिलिप्पियों 2:13 क्योंकि परमेश्‍वर ही है, जिसने अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है। (IN)

फिलिप्पियों 2:14 ¶ सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो; (IN)

फिलिप्पियों 2:15 ताकि तुम निर्दोष और निष्कपट होकर टेढ़े और विकृत लोगों के बीच परमेश्‍वर के निष्कलंक सन्तान बने रहो, जिनके बीच में तुम जीवन का वचन लिए हुए जगत में जलते दीपकों के समान दिखाई देते हो, (IN)

फिलिप्पियों 2:16 कि मसीह के दिन मुझे घमण्ड करने का कारण हो कि न मेरा दौड़ना और न मेरा परिश्रम करना व्यर्थ हुआ। (IN)

फिलिप्पियों 2:17 ¶ यदि मुझे तुम्हारे विश्वास के बलिदान और सेवा के साथ अपना लहू भी बहाना पड़े तो भी मैं आनन्दित हूँ, और तुम सब के साथ आनन्द करता हूँ। (IN)

फिलिप्पियों 2:18 वैसे ही तुम भी आनन्दित हो, और मेरे साथ आनन्द करो। (IN)

फिलिप्पियों 2:19 ¶ मुझे प्रभु यीशु में आशा है कि मैं तीमुथियुस को तुम्हारे पास तुरन्त भेजूँगा, ताकि तुम्हारी दशा सुनकर मुझे शान्ति मिले। (IN)

फिलिप्पियों 2:20 क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वभाव का और कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे। (IN)

फिलिप्पियों 2:21 क्योंकि सब अपने स्वार्थ की खोज में रहते हैं, न कि यीशु मसीह की। (IN)

फिलिप्पियों 2:22 ¶ पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है कि जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उसने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया। (IN)

फिलिप्पियों 2:23 इसलिए मुझे आशा है कि ज्यों ही मुझे जान पड़ेगा कि मेरी क्या दशा होगी, त्यों ही मैं उसे तुरन्त भेज दूँगा। (IN)

फिलिप्पियों 2:24 और मुझे प्रभु में भरोसा है कि मैं आप भी शीघ्र आऊँगा। (IN)

फिलिप्पियों 2:25 ¶ पर मैंने इपफ्रुदीतुस को जो मेरा भाई, और सहकर्मी और संगी योद्धा और तुम्हारा दूत, और आवश्यक बातों में मेरी सेवा टहल करनेवाला है, तुम्हारे पास भेजना अवश्य समझा। (IN)

फिलिप्पियों 2:26 क्योंकि उसका मन तुम सब में लगा हुआ था, इस कारण वह व्याकुल रहता था क्योंकि तुम ने उसकी बीमारी का हाल सुना था। (IN)

फिलिप्पियों 2:27 और निश्चय वह बीमार तो हो गया था, यहाँ तक कि मरने पर था, परन्तु परमेश्‍वर ने उस पर दया की; और केवल उस पर ही नहीं, पर मुझ पर भी कि मुझे शोक पर शोक न हो। (IN)

फिलिप्पियों 2:28 ¶ इसलिए मैंने उसे भेजने का और भी यत्न किया कि तुम उससे फिर भेंट करके आनन्दित हो जाओ और मेरा भी शोक घट जाए। (IN)

फिलिप्पियों 2:29 इसलिए तुम प्रभु में उससे बहुत आनन्द के साथ भेंट करना, और ऐसों का आदर किया करना, (IN)

फिलिप्पियों 2:30 क्योंकि वह मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई उसे पूरा करे। (IN)

फिलिप्पियों 3:1 ¶ इसलिए हे मेरे भाइयों, प्रभु में आनन्दित रहो। वे ही बातें तुम को बार-बार लिखने में मुझे तो कोई कष्ट नहीं होता, और इसमें तुम्हारी कुशलता है। (IN)

फिलिप्पियों 3:2 कुत्तों से चौकस रहो, उन बुरे काम करनेवालों से चौकस रहो, उन काट-कूट करनेवालों से चौकस रहो। (IN)

फिलिप्पियों 3:3 क्योंकि यथार्थ खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्‍वर के आत्मा की अगुआई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते। (IN)

फिलिप्पियों 3:4 ¶ पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूँ। यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उससे भी बढ़कर रख सकता हूँ। (IN)

फिलिप्पियों 3:5 आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूँ; इब्रानियों का इब्रानी हूँ; व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूँ। (IN)

फिलिप्पियों 3:6 ¶ उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सतानेवाला; और व्यवस्था की धार्मिकता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष था। (IN)

फिलिप्पियों 3:7 परन्तु जो-जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्हीं को मैंने मसीह के कारण हानि समझ लिया है। (IN)

फिलिप्पियों 3:8 ¶ वरन् मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूँ। जिसके कारण मैंने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूँ, ताकि मैं मसीह को प्राप्त करुँ। (IN)

फिलिप्पियों 3:9 और उसमें पाया जाऊँ; न कि अपनी उस धार्मिकता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन् उस धार्मिकता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्‍वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है, (IN)

फिलिप्पियों 3:10 ताकि मैं उसको और उसके पुनरुत्थान की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुःखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करुँ। (IN)

फिलिप्पियों 3:11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुँचूँ। (IN)

फिलिप्पियों 3:12 ¶ यह मतलब नहीं कि मैं पा चुका हूँ, या सिद्ध हो चुका हूँ; पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूँ, जिसके लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था। (IN)

फिलिप्पियों 3:13 हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूँ; परन्तु केवल यह एक काम करता हूँ, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, (IN)

फिलिप्पियों 3:14 निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊँ, जिसके लिये परमेश्‍वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है। (IN)

फिलिप्पियों 3:15 ¶ अतः हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें, और यदि किसी बात में तुम्हारा और ही विचार हो तो परमेश्‍वर उसे भी तुम पर प्रगट कर देगा। (IN)

फिलिप्पियों 3:16 इसलिए जहाँ तक हम पहुँचे हैं, उसी के अनुसार चलें। (IN)

फिलिप्पियों 3:17 ¶ हे भाइयों, तुम सब मिलकर मेरी जैसी चाल चलो, और उन्हें पहचानों, जो इस रीति पर चलते हैं जिसका उदाहरण तुम हम में पाते हो। (IN)

फिलिप्पियों 3:18 क्योंकि अनेक लोग ऐसी चाल चलते हैं, जिनकी चर्चा मैंने तुम से बार-बार की है और अब भी रो-रोकर कहता हूँ, कि वे अपनी चाल-चलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं, (IN)

फिलिप्पियों 3:19 उनका अन्त विनाश है, उनका ईश्वर पेट है, वे अपनी लज्जा की बातों पर घमण्ड करते हैं, और पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं। (IN)

फिलिप्पियों 3:20 ¶ पर हमारा स्वदेश स्वर्ग में है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की प्रतीक्षा करते हैं। (IN)

फिलिप्पियों 3:21 वह अपनी शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिसके द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रूप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा। (IN)

फिलिप्पियों 4:1 ¶ इसलिए हे मेरे प्रिय भाइयों, जिनमें मेरा जी लगा रहता है, जो मेरे आनन्द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयों, प्रभु में इसी प्रकार स्थिर रहो। (IN)

फिलिप्पियों 4:2 ¶ मैं यूओदिया से निवेदन करता हूँ, और सुन्तुखे से भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें। (IN)

फिलिप्पियों 4:3 हे सच्चे सहकर्मी, मैं तुझ से भी विनती करता हूँ, कि तू उन स्त्रियों की सहायता कर, क्योंकि उन्होंने मेरे साथ सुसमाचार फैलाने में, क्लेमेंस और मेरे अन्य सहकर्मियों समेत परिश्रम किया, जिनके नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं। (IN)

फिलिप्पियों 4:4 ¶ प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहो। (IN)

फिलिप्पियों 4:5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो। प्रभु निकट है। (IN)

फिलिप्पियों 4:6 किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। (IN)

फिलिप्पियों 4:7 तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो सारी समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी। (IN)

फिलिप्पियों 4:8 ¶ इसलिए, हे भाइयों, जो-जो बातें सत्य हैं, और जो-जो बातें आदरणीय हैं, और जो-जो बातें उचित हैं, और जो-जो बातें पवित्र हैं, और जो-जो बातें सुहावनी हैं, और जो-जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात्, जो भी सद्‍गुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। (IN)

फिलिप्पियों 4:9 जो बातें तुम ने मुझसे सीखी, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्‍वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा। (IN)

फिलिप्पियों 4:10 ¶ मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूँ कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इसका विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। (IN)

फिलिप्पियों 4:11 यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूँ; क्योंकि मैंने यह सीखा है कि जिस दशा में हूँ, उसी में सन्तोष करुँ। (IN)

फिलिप्पियों 4:12 मैं दीन होना भी जानता हूँ और बढ़ना भी जानता हूँ; हर एक बात और सब दशाओं में मैंने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। (IN)

फिलिप्पियों 4:13 जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ। (IN)

फिलिप्पियों 4:14 ¶ तो भी तुम ने भला किया कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए। (IN)

फिलिप्पियों 4:15 हे फिलिप्पियों, तुम आप भी जानते हो कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैंने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी कलीसिया ने लेने-देने के विषय में मेरी सहायता नहीं की। (IN)

फिलिप्पियों 4:16 इसी प्रकार जब मैं थिस्सलुनीके में था; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिये एक बार क्या वरन् दो बार कुछ भेजा था। (IN)

फिलिप्पियों 4:17 यह नहीं कि मैं दान चाहता हूँ परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूँ, जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए। (IN)

फिलिप्पियों 4:18 ¶ मेरे पास सब कुछ है, वरन् बहुतायत से भी है; जो वस्तुएँ तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी थीं उन्हें पा कर मैं तृप्त हो गया हूँ, वह तो सुखदायक सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्‍वर को भाता है। (IN)

फिलिप्पियों 4:19 और मेरा परमेश्‍वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा। (IN)

फिलिप्पियों 4:20 हमारे परमेश्‍वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

फिलिप्पियों 4:21 ¶ हर एक पवित्र जन को जो यीशु मसीह में हैं नमस्कार कहो। जो भाई मेरे साथ हैं तुम्हें नमस्कार कहते हैं। (IN)

फिलिप्पियों 4:22 सब पवित्र लोग, विशेष करके जो कैसर के घराने के हैं तुम को नमस्कार कहते हैं। (IN)

फिलिप्पियों 4:23 ¶ हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा के साथ रहे। (IN)

कुलुस्सियों 1:1 ¶ पौलुस की ओर से, जो परमेश्‍वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से, (IN)

कुलुस्सियों 1:2 मसीह में उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं। हमारे पिता परमेश्‍वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त होती रहे। (IN)

कुलुस्सियों 1:3 ¶ हम तुम्हारे लिये नित प्रार्थना करके अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्थात् परमेश्‍वर का धन्यवाद करते हैं। (IN)

कुलुस्सियों 1:4 ¶ क्योंकि हमने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगों से प्रेम रखते हो; (IN)

कुलुस्सियों 1:5 उस आशा की हुई वस्तु के कारण जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी हुई है, जिसका वर्णन तुम उस सुसमाचार के सत्य वचन में सुन चुके हो। (IN)

कुलुस्सियों 1:6 जो तुम्हारे पास पहुँचा है और जैसा जगत में भी फल लाता, और बढ़ता जाता है; वैसे ही जिस दिन से तुम ने उसको सुना, और सच्चाई से परमेश्‍वर का अनुग्रह पहचाना है, तुम में भी ऐसा ही करता है। (IN)

कुलुस्सियों 1:7 ¶ उसी की शिक्षा तुम ने हमारे प्रिय सहकर्मी इपफ्रास से पाई, जो हमारे लिये मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है। (IN)

कुलुस्सियों 1:8 उसी ने तुम्हारे प्रेम को जो आत्मा में है हम पर प्रगट किया। (IN)

कुलुस्सियों 1:9 ¶ इसलिए जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और विनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्‍वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण हो जाओ, (IN)

कुलुस्सियों 1:10 ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्‍न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्‍वर की पहचान में बढ़ते जाओ, (IN)

कुलुस्सियों 1:11 ¶ और उसकी महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ्य से बलवन्त होते जाओ, यहाँ तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको। (IN)

कुलुस्सियों 1:12 और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिस ने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ विरासत में सहभागी हों। (IN)

कुलुस्सियों 1:13 ¶ उसी ने हमें अंधकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया, (IN)

कुलुस्सियों 1:14 जिसमें हमें छुटकारा अर्थात् पापों की क्षमा प्राप्त होती है। (IN)

कुलुस्सियों 1:15 ¶ पुत्र तो अदृश्य परमेश्‍वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहलौठा है। (IN)

कुलुस्सियों 1:16 क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। (IN)

कुलुस्सियों 1:17 और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं। (IN)

कुलुस्सियों 1:18 ¶ वही देह, अर्थात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। (IN)

कुलुस्सियों 1:19 क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उसमें सारी परिपूर्णता वास करे। (IN)

कुलुस्सियों 1:20 और उसके क्रूस पर बहे हुए लहू के द्वारा मेल-मिलाप करके, सब वस्तुओं को उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग की। (IN)

कुलुस्सियों 1:21 ¶ तुम जो पहले पराये थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे। (IN)

कुलुस्सियों 1:22 उसने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे। (IN)

कुलुस्सियों 1:23 यदि तुम विश्वास की नींव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिसका प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया; और जिसका मैं पौलुस सेवक बना। (IN)

कुलुस्सियों 1:24 ¶ अब मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूँ, जो तुम्हारे लिये उठाता हूँ, और मसीह के क्लेशों की घटी उसकी देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी किए देता हूँ, (IN)

कुलुस्सियों 1:25 जिसका मैं परमेश्‍वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिये मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्‍वर के वचन को पूरा-पूरा प्रचार करूँ। (IN)

कुलुस्सियों 1:26 अर्थात् उस भेद को जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है। (IN)

कुलुस्सियों 1:27 जिन पर परमेश्‍वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है, और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है। (IN)

कुलुस्सियों 1:28 ¶ जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्थित करें। (IN)

कुलुस्सियों 1:29 और इसी के लिये मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ्य के साथ प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूँ। (IN)

कुलुस्सियों 2:1 ¶ मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उनके जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिये जिन्होंने मेरा शारीरिक मुँह नहीं देखा मैं कैसा परिश्रम करता हूँ। (IN)

कुलुस्सियों 2:2 ताकि उनके मनों को प्रोत्साहन मिले और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्‍वर पिता के भेद को अर्थात् मसीह को पहचान लें। (IN)

कुलुस्सियों 2:3 जिसमें बुद्धि और ज्ञान के सारे भण्डार छिपे हुए हैं। (IN)

कुलुस्सियों 2:4 ¶ यह मैं इसलिए कहता हूँ, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभानेवाली बातों से धोखा न दे। (IN)

कुलुस्सियों 2:5 क्योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूँ, तो भी आत्मिक भाव से तुम्हारे निकट हूँ, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्‍न होता हूँ। (IN)

कुलुस्सियों 2:6 ¶ इसलिए, जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो। (IN)

कुलुस्सियों 2:7 और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो। (IN)

कुलुस्सियों 2:8 ¶ चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न कर ले, जो मनुष्यों की परम्पराओं और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं। (IN)

कुलुस्सियों 2:9 क्योंकि उसमें ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है। (IN)

कुलुस्सियों 2:10 ¶ और तुम मसीह में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिकार का शिरोमणि है। (IN)

कुलुस्सियों 2:11 उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता, परन्तु मसीह का खतना हुआ, जिससे पापमय शारीरिक देह उतार दी जाती है। (IN)

कुलुस्सियों 2:12 और उसी के साथ बपतिस्मा में गाड़े गए, और उसी में परमेश्‍वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिस ने उसको मरे हुओं में से जिलाया, उसके साथ जी भी उठे। (IN)

कुलुस्सियों 2:13 ¶ और उसने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारहित दशा में मुर्दा थे, उसके साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया। (IN)

कुलुस्सियों 2:14 और विधियों का वह लेख और सहायक नियम जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में था मिटा डाला; और उसे क्रूस पर कीलों से जड़कर सामने से हटा दिया है। (IN)

कुलुस्सियों 2:15 और उसने प्रधानताओं और अधिकारों को अपने ऊपर से उतार कर उनका खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय-जयकार की ध्वनि सुनाई। (IN)

कुलुस्सियों 2:16 ¶ इसलिए खाने-पीने या पर्व या नये चाँद, या सब्त के विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे। (IN)

कुलुस्सियों 2:17 क्योंकि ये सब आनेवाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएँ मसीह की हैं। (IN)

कुलुस्सियों 2:18 ¶ कोई मनुष्य दीनता और स्वर्गदूतों की पूजा करके तुम्हें दौड़ के प्रतिफल से वंचित न करे। ऐसा मनुष्य देखी हुई बातों में लगा रहता है और अपनी शारीरिक समझ पर व्यर्थ फूलता है। (IN)

कुलुस्सियों 2:19 और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिससे सारी देह जोड़ों और पट्ठों के द्वारा पालन-पोषण पा कर और एक साथ गठकर, परमेश्‍वर की ओर से बढ़ती जाती है। (IN)

कुलुस्सियों 2:20 ¶ जब कि तुम मसीह के साथ संसार की आदि शिक्षा की ओर से मर गए हो, तो फिर क्यों उनके समान जो संसार में जीवन बिताते हैं और ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो? (IN)

कुलुस्सियों 2:21 कि ‘यह न छूना,’ ‘उसे न चखना,’ और ‘उसे हाथ न लगाना’?, (IN)

कुलुस्सियों 2:22 क्योंकि ये सब वस्तु काम में लाते-लाते नाश हो जाएँगी क्योंकि ये मनुष्यों की आज्ञाओं और शिक्षाओं के अनुसार है। (IN)

कुलुस्सियों 2:23 इन विधियों में अपनी इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक अभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इनसे कुछ भी लाभ नहीं होता। (IN)

कुलुस्सियों 3:1 ¶ तो जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहाँ मसीह वर्तमान है और परमेश्‍वर के दाहिनी ओर बैठा है। (IN)

कुलुस्सियों 3:2 पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ। (IN)

कुलुस्सियों 3:3 क्योंकि तुम तो मर गए, और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्‍वर में छिपा हुआ है। (IN)

कुलुस्सियों 3:4 जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा सहित प्रगट किए जाओगे। (IN)

कुलुस्सियों 3:5 ¶ इसलिए अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्ति पूजा के बराबर है। (IN)

कुलुस्सियों 3:6 इन ही के कारण परमेश्‍वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है। (IN)

कुलुस्सियों 3:7 और तुम भी, जब इन बुराइयों में जीवन बिताते थे, तो इन्हीं के अनुसार चलते थे। (IN)

कुलुस्सियों 3:8 पर अब तुम भी इन सब को अर्थात् क्रोध, रोष, बैर-भाव, निन्दा, और मुँह से गालियाँ बकना ये सब बातें छोड़ दो। (IN)

कुलुस्सियों 3:9 ¶ एक दूसरे से झूठ मत बोलो क्योंकि तुम ने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डाला है। (IN)

कुलुस्सियों 3:10 और नये मनुष्यत्व को पहन लिया है जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिये नया बनता जाता है। (IN)

कुलुस्सियों 3:11 उसमें न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारहित, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र केवल मसीह सब कुछ और सब में है। (IN)

कुलुस्सियों 3:12 ¶ इसलिए परमेश्‍वर के चुने हुओं के समान जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो; (IN)

कुलुस्सियों 3:13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। (IN)

कुलुस्सियों 3:14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बाँध लो। (IN)

कुलुस्सियों 3:15 ¶ और मसीह की शान्ति, जिसके लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो। (IN)

कुलुस्सियों 3:16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने-अपने मन में कृतज्ञता के साथ परमेश्‍वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ। (IN)

कुलुस्सियों 3:17 वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्‍वर पिता का धन्यवाद करो। (IN)

कुलुस्सियों 3:18 ¶ हे पत्नियों, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने-अपने पति के अधीन रहो। (IN)

कुलुस्सियों 3:19 हे पतियों, अपनी-अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो, और उनसे कठोरता न करो। (IN)

कुलुस्सियों 3:20 हे बच्चों, सब बातों में अपने-अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्‍न होता है। (IN)

कुलुस्सियों 3:21 हे पिताओं, अपने बच्चों को भड़काया न करो, न हो कि उनका साहस टूट जाए। (IN)

कुलुस्सियों 3:22 ¶ हे सेवकों, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, सब बातों में उनकी आज्ञा का पालन करो, मनुष्यों को प्रसन्‍न करनेवालों के समान दिखाने के लिये नहीं, परन्तु मन की सिधाई और परमेश्‍वर के भय से। (IN)

कुलुस्सियों 3:23 और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो। (IN)

कुलुस्सियों 3:24 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इसके बदले प्रभु से विरासत मिलेगी। तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो। (IN)

कुलुस्सियों 3:25 क्योंकि जो बुरा करता है, वह अपनी बुराई का फल पाएगा; वहाँ किसी का पक्षपात नहीं। (IN)

कुलुस्सियों 4:1 ¶ हे स्वामियों, अपने-अपने दासों के साथ न्याय और ठीक-ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है। (IN)

कुलुस्सियों 4:2 ¶ प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उसमें जागृत रहो; (IN)

कुलुस्सियों 4:3 और इसके साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करते रहो, कि परमेश्‍वर हमारे लिये वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें जिसके कारण मैं कैद में हूँ। (IN)

कुलुस्सियों 4:4 और उसे ऐसा प्रगट करूँ, जैसा मुझे करना उचित है। (IN)

कुलुस्सियों 4:5 ¶ अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो। (IN)

कुलुस्सियों 4:6 तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सुहावना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए। (IN)

कुलुस्सियों 4:7 ¶ प्रिय भाई और विश्वासयोग्य सेवक, तुखिकुस जो प्रभु में मेरा सहकर्मी है, मेरी सब बातें तुम्हें बता देगा। (IN)

कुलुस्सियों 4:8 उसे मैंने इसलिए तुम्हारे पास भेजा है, कि तुम्हें हमारी दशा मालूम हो जाए और वह तुम्हारे हृदयों को प्रोत्साहित करे। (IN)

कुलुस्सियों 4:9 और उसके साथ उनेसिमुस को भी भेजा है; जो विश्वासयोग्य और प्रिय भाई और तुम ही में से है, वे तुम्हें यहाँ की सारी बातें बता देंगे। (IN)

कुलुस्सियों 4:10 ¶ अरिस्तर्खुस जो मेरे साथ कैदी है, और मरकुस जो बरनबास का भाई लगता है। (जिसके विषय में तुम ने निर्देश पाया था कि यदि वह तुम्हारे पास आए, तो उससे अच्छी तरह व्यवहार करना।) (IN)

कुलुस्सियों 4:11 और यीशु जो यूस्तुस कहलाता है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं। खतना किए हुए लोगों में से केवल ये ही परमेश्‍वर के राज्य के लिये मेरे सहकर्मी और मेरे लिए सांत्वना ठहरे हैं। (IN)

कुलुस्सियों 4:12 ¶ इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम्हें नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिये प्रार्थनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्‍वर की इच्छा पर स्थिर रहो। (IN)

कुलुस्सियों 4:13 मैं उसका गवाह हूँ, कि वह तुम्हारे लिये और लौदीकिया और हियरापुलिसवालों के लिये बड़ा यत्न करता रहता है। (IN)

कुलुस्सियों 4:14 प्रिय वैद्य लूका और देमास का तुम्हें नमस्कार। (IN)

कुलुस्सियों 4:15 ¶ लौदीकिया के भाइयों को और नुमफास और उसकी घर की कलीसिया को नमस्कार कहना। (IN)

कुलुस्सियों 4:16 और जब यह पत्र तुम्हारे यहाँ पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना। (IN)

कुलुस्सियों 4:17 फिर अरखिप्पुस से कहना कि जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साथ पूरी करना। (IN)

कुलुस्सियों 4:18 ¶ मुझ पौलुस का अपने हाथ से लिखा हुआ नमस्कार। मेरी जंजीरों को स्मरण रखना; तुम पर अनुग्रह होता रहे। आमीन। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:1 ¶ पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के नाम जो पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह में है। अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:2 ¶ हम अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें स्मरण करते और सदा तुम सब के विषय में परमेश्‍वर का धन्यवाद करते हैं, (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:3 और अपने परमेश्‍वर और पिता के सामने तुम्हारे विश्वास के काम, और प्रेम का परिश्रम, और हमारे प्रभु यीशु मसीह में आशा की धीरता को लगातार स्मरण करते हैं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:4 ¶ और हे भाइयों, परमेश्‍वर के प्रिय लोगों हम जानते हैं, कि तुम चुने हुए हो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:5 क्योंकि हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में वरन् सामर्थ्य और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्चय के साथ पहुँचा है; जैसा तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:6 ¶ और तुम बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को मानकर हमारी और प्रभु के समान चाल चलने लगे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:7 यहाँ तक कि मकिदुनिया और अखाया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:8 ¶ क्योंकि तुम्हारे यहाँ से न केवल मकिदुनिया और अखाया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्‍वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फैल गई है, कि हमें कहने की आवश्यकता ही नहीं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:9 क्योंकि वे आप ही हमारे विषय में बताते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ; और तुम क्यों मूरतों से परमेश्‍वर की ओर फिरें ताकि जीविते और सच्चे परमेश्‍वर की सेवा करो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 1:10 और उसके पुत्र के स्वर्ग पर से आने की प्रतीक्षा करते रहो जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया, अर्थात् यीशु को, जो हमें आनेवाले प्रकोप से बचाता है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:1 ¶ हे भाइयों, तुम आप ही जानते हो कि हमारा तुम्हारे पास आना व्यर्थ न हुआ। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:2 वरन् तुम आप ही जानते हो, कि पहले फिलिप्पी में दुःख उठाने और उपद्रव सहने पर भी हमारे परमेश्‍वर ने हमें ऐसा साहस दिया, कि हम परमेश्‍वर का सुसमाचार भारी विरोधों के होते हुए भी तुम्हें सुनाएँ। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:3 ¶ क्योंकि हमारा उपदेश न भ्रम से है और न अशुद्धता से, और न छल के साथ है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:4 पर जैसा परमेश्‍वर ने हमें योग्य ठहराकर सुसमाचार सौंपा, हम वैसा ही वर्णन करते हैं; और इसमें मनुष्यों को नहीं, परन्तु परमेश्‍वर को, जो हमारे मनों को जाँचता है, प्रसन्‍न करते हैं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:5 ¶ क्योंकि तुम जानते हो, कि हम न तो कभी चापलूसी की बातें किया करते थे, और न लोभ के लिये बहाना करते थे, परमेश्‍वर गवाह है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:6 और यद्यपि हम मसीह के प्रेरित होने के कारण तुम पर बोझ डाल सकते थे, फिर भी हम मनुष्यों से आदर नहीं चाहते थे, और न तुम से, न और किसी से। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:7 ¶ परन्तु जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हमने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:8 और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्‍वर का सुसमाचार, पर अपना-अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिए कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:9 क्योंकि, हे भाइयों, तुम हमारे परिश्रम और कष्ट को स्मरण रखते हो, कि हमने इसलिए रात दिन काम धन्धा करते हुए तुम में परमेश्‍वर का सुसमाचार प्रचार किया, कि तुम में से किसी पर भार न हों। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:10 ¶ तुम आप ही गवाह हो, और परमेश्‍वर भी गवाह है, कि तुम विश्वासियों के बीच में हमारा व्यवहार कैसा पवित्र और धार्मिक और निर्दोष रहा। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:11 जैसे तुम जानते हो, कि जैसा पिता अपने बालकों के साथ बर्ताव करता है, वैसे ही हम भी तुम में से हर एक को उपदेश देते और प्रोत्साहित करते और समझाते थे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:12 कि तुम्हारा चाल-चलन परमेश्‍वर के योग्य हो, जो तुम्हें अपने राज्य और महिमा में बुलाता है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:13 ¶ इसलिए हम भी परमेश्‍वर का धन्यवाद निरन्तर करते हैं; कि जब हमारे द्वारा परमेश्‍वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुँचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्‍वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया और वह तुम में जो विश्वास रखते हो, कार्य करता है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:14 ¶ इसलिए कि तुम, हे भाइयों, परमेश्‍वर की उन कलीसियाओं के समान चाल चलने लगे, जो यहूदिया में मसीह यीशु में हैं, क्योंकि तुम ने भी अपने लोगों से वैसा ही दुःख पाया, जैसा उन्होंने यहूदियों से पाया था। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:15 जिन्होंने प्रभु यीशु को और भविष्यद्वक्ताओं को भी मार डाला और हमको सताया, और परमेश्‍वर उनसे प्रसन्‍न नहीं; और वे सब मनुष्यों का विरोध करते हैं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:16 और वे अन्यजातियों से उनके उद्धार के लिये बातें करने से हमें रोकते हैं, कि सदा अपने पापों का घड़ा भरते रहें; पर उन पर भयानक प्रकोप आ पहुँचा है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:17 ¶ हे भाइयों, जब हम थोड़ी देर के लिये मन में नहीं वरन् प्रगट में तुम से अलग हो गए थे, तो हमने बड़ी लालसा के साथ तुम्हारा मुँह देखने के लिये और भी अधिक यत्न किया। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:18 इसलिए हमने (अर्थात् मुझ पौलुस ने) एक बार नहीं, वरन् दो बार तुम्हारे पास आना चाहा, परन्तु शैतान हमें रोके रहा। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:19 हमारी आशा, या आनन्द या बड़ाई का मुकुट क्या है? क्या हमारे प्रभु यीशु मसीह के सम्मुख उसके आने के समय, क्या वह तुम नहीं हो? (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 2:20 हमारी बड़ाई और आनन्द तुम ही हो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:1 ¶ इसलिए जब हम से और न रहा गया, तो हमने यह ठहराया कि एथेंस में अकेले रह जाएँ। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:2 और हमने तीमुथियुस को जो मसीह के सुसमाचार में हमारा भाई, और परमेश्‍वर का सेवक है, इसलिए भेजा, कि वह तुम्हें स्थिर करे; और तुम्हारे विश्वास के विषय में तुम्हें समझाए। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:3 कि कोई इन क्लेशों के कारण डगमगा न जाए; क्योंकि तुम आप जानते हो, कि हम इन ही के लिये ठहराए गए हैं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:4 ¶ क्योंकि पहले भी, जब हम तुम्हारे यहाँ थे, तो तुम से कहा करते थे, कि हमें क्लेश उठाने पड़ेंगे, और ऐसा ही हुआ है, और तुम जानते भी हो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:5 इस कारण जब मुझसे और न रहा गया, तो तुम्हारे विश्वास का हाल जानने के लिये भेजा, कि कहीं ऐसा न हो, कि परीक्षा करनेवाले ने तुम्हारी परीक्षा की हो, और हमारा परिश्रम व्यर्थ हो गया हो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:6 ¶ पर अभी तीमुथियुस ने जो तुम्हारे पास से हमारे यहाँ आकर तुम्हारे विश्वास और प्रेम का समाचार सुनाया और इस बात को भी सुनाया, कि तुम सदा प्रेम के साथ हमें स्मरण करते हो, और हमारे देखने की लालसा रखते हो, जैसा हम भी तुम्हें देखने की। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:7 इसलिए हे भाइयों, हमने अपनी सारी सकेती और क्लेश में तुम्हारे विश्वास से तुम्हारे विषय में शान्ति पाई। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:8 ¶ क्योंकि अब यदि तुम प्रभु में स्थिर रहो तो हम जीवित हैं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:9 और जैसा आनन्द हमें तुम्हारे कारण अपने परमेश्‍वर के सामने है, उसके बदले तुम्हारे विषय में हम किस रीति से परमेश्‍वर का धन्यवाद करें? (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:10 हम रात दिन बहुत ही प्रार्थना करते रहते हैं, कि तुम्हारा मुँह देखें, और तुम्हारे विश्वास की घटी पूरी करें। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:11 ¶ अब हमारा परमेश्‍वर और पिता आप ही और हमारा प्रभु यीशु, तुम्हारे यहाँ आने के लिये हमारी अगुआई करे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:12 और प्रभु ऐसा करे, कि जैसा हम तुम से प्रेम रखते हैं; वैसा ही तुम्हारा प्रेम भी आपस में, और सब मनुष्यों के साथ बढ़े, और उन्नति करता जाए, (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 3:13 ताकि वह तुम्हारे मनों को ऐसा स्थिर करे, कि जब हमारा प्रभु यीशु अपने सब पवित्र लोगों के साथ आए, तो वे हमारे परमेश्‍वर और पिता के सामने पवित्रता में निर्दोष ठहरें। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:1 ¶ इसलिए हे भाइयों, हम तुम से विनती करते हैं, और तुम्हें प्रभु यीशु में समझाते हैं, कि जैसे तुम ने हम से योग्य चाल चलना, और परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करना सीखा है, और जैसा तुम चलते भी हो, वैसे ही और भी बढ़ते जाओ। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:2 क्योंकि तुम जानते हो, कि हमने प्रभु यीशु की ओर से तुम्हें कौन-कौन से निर्देश पहुँचाए। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:3 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर की इच्छा यह है, कि तुम पवित्र बनो अर्थात् व्यभिचार से बचे रहो, (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:4 और तुम में से हर एक पवित्रता और आदर के साथ अपने पात्र को प्राप्त करना जाने। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:5 और यह काम अभिलाषा से नहीं, और न अन्यजातियों के समान, जो परमेश्‍वर को नहीं जानतीं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:6 कि इस बात में कोई अपने भाई को न ठगे, और न उस पर दाँव चलाए, क्योंकि प्रभु इस सब बातों का पलटा लेनेवाला है; जैसा कि हमने पहले तुम से कहा, और चिताया भी था। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:7 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें अशुद्ध होने के लिये नहीं, परन्तु पवित्र होने के लिये बुलाया है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:8 इसलिए जो इसे तुच्छ जानता है, वह मनुष्य को नहीं, परन्तु परमेश्‍वर को तुच्छ जानता है, जो अपना पवित्र आत्मा तुम्हें देता है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:9 ¶ किन्तु भाईचारे के प्रेम के विषय में यह आवश्यक नहीं, कि मैं तुम्हारे पास कुछ लिखूँ; क्योंकि आपस में प्रेम रखना तुम ने आप ही परमेश्‍वर से सीखा है; (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:10 और सारे मकिदुनिया के सब भाइयों के साथ ऐसा करते भी हो, पर हे भाइयों, हम तुम्हें समझाते हैं, कि और भी बढ़ते जाओ, (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:11 और जैसा हमने तुम्हें समझाया, वैसे ही चुपचाप रहने और अपना-अपना काम-काज करने, और अपने-अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:12 कि बाहरवालों के साथ सभ्यता से बर्ताव करो, और तुम्हें किसी वस्तु की घटी न हो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:13 ¶ हे भाइयों, हम नहीं चाहते, कि तुम उनके विषय में जो सोते हैं, अज्ञानी रहो; ऐसा न हो, कि तुम औरों के समान शोक करो जिन्हें आशा नहीं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:14 क्योंकि यदि हम विश्वास करते हैं, कि यीशु मरा, और जी भी उठा, तो वैसे ही परमेश्‍वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं, उसी के साथ ले आएगा। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:15 क्योंकि हम प्रभु के वचन के अनुसार तुम से यह कहते हैं, कि हम जो जीवित हैं, और प्रभु के आने तक बचे रहेंगे तो सोए हुओं से कभी आगे न बढ़ेंगे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:16 ¶ क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्‍वर की तुरही फूँकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहले जी उठेंगे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:17 तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उनके साथ बादलों पर उठा लिए जाएँगे, कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 4:18 इसलिए इन बातों से एक दूसरे को शान्ति दिया करो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:1 ¶ पर हे भाइयों, इसका प्रयोजन नहीं, कि समयों और कालों के विषय में तुम्हारे पास कुछ लिखा जाए। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:2 क्योंकि तुम आप ठीक जानते हो कि जैसा रात को चोर आता है, वैसा ही प्रभु का दिन आनेवाला है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:3 जब लोग कहते होंगे, “कुशल हैं, और कुछ भय नहीं,” तो उन पर एकाएक विनाश आ पड़ेगा, जिस प्रकार गर्भवती पर पीड़ा; और वे किसी रीति से न बचेंगे। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:4 ¶ पर हे भाइयों, तुम तो अंधकार में नहीं हो, कि वह दिन तुम पर चोर के समान आ पड़े। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:5 क्योंकि तुम सब ज्योति की सन्तान, और दिन की सन्तान हो, हम न रात के हैं, न अंधकार के हैं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:6 इसलिए हम औरों की समान सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:7 क्योंकि जो सोते हैं, वे रात ही को सोते हैं, और जो मतवाले होते हैं, वे रात ही को मतवाले होते हैं। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:8 ¶ पर हम जो दिन के हैं, विश्वास और प्रेम की झिलम पहनकर और उद्धार की आशा का टोप पहनकर सावधान रहें। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:9 क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें क्रोध के लिये नहीं, परन्तु इसलिए ठहराया कि हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा उद्धार प्राप्त करें। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:10 वह हमारे लिये इस कारण मरा, कि हम चाहे जागते हों, चाहे सोते हों, सब मिलकर उसी के साथ जीएँ। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:11 इस कारण एक दूसरे को शान्ति दो, और एक दूसरे की उन्नति का कारण बनो, जैसा कि तुम करते भी हो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:12 ¶ हे भाइयों, हम तुम से विनती करते हैं, कि जो तुम में परिश्रम करते हैं, और प्रभु में तुम्हारे अगुवे हैं, और तुम्हें शिक्षा देते हैं, उन्हें मानो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:13 और उनके काम के कारण प्रेम के साथ उनको बहुत ही आदर के योग्य समझो आपस में मेल-मिलाप से रहो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:14 और हे भाइयों, हम तुम्हें समझाते हैं, कि जो ठीक चाल नहीं चलते, उनको समझाओ, निरुत्साहित को प्रोत्साहित करों, निर्बलों को संभालो, सब की ओर सहनशीलता दिखाओ। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:15 ¶ देखो की कोई किसी से बुराई के बदले बुराई न करे; पर सदा भलाई करने पर तत्पर रहो आपस में और सबसे भी भलाई ही की चेष्टा करो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:16 सदा आनन्दित रहो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:17 निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:18 हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्‍वर की यहीं इच्छा है। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:19 ¶ आत्मा को न बुझाओ। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:20 भविष्यद्वाणियों को तुच्छ न जानो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:21 सब बातों को परखो जो अच्छी है उसे पकड़े रहो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:22 सब प्रकार की बुराई से बचे रहो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:23 ¶ शान्ति का परमेश्‍वर आप ही तुम्हें पूरी रीति से पवित्र करे; तुम्हारी आत्मा, प्राण और देह हमारे प्रभु यीशु मसीह के आने तक पूरे और निर्दोष सुरक्षित रहें। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:24 तुम्हारा बुलानेवाला विश्वासयोग्य है, और वह ऐसा ही करेगा। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:25 ¶ हे भाइयों, हमारे लिये प्रार्थना करो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:26 ¶ सब भाइयों को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:27 मैं तुम्हें प्रभु की शपथ देता हूँ, कि यह पत्री सब भाइयों को पढ़कर सुनाई जाए। (IN)

1 थिस्सलुनीकियों 5:28 ¶ हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:1 ¶ पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के नाम, जो हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह में है: (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:2 ¶ हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह में तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:3 ¶ हे भाइयों, तुम्हारे विषय में हमें हर समय परमेश्‍वर का धन्यवाद करना चाहिए, और यह उचित भी है इसलिए कि तुम्हारा विश्वास बहुत बढ़ता जाता है, और आपस में तुम सब में प्रेम बहुत ही बढ़ता जाता है। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:4 यहाँ तक कि हम आप परमेश्‍वर की कलीसिया में तुम्हारे विषय में घमण्ड करते हैं, कि जितने उपद्रव और क्लेश तुम सहते हो, उन सब में तुम्हारा धीरज और विश्वास प्रगट होता है। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:5 यह परमेश्‍वर के सच्चे न्याय का स्पष्ट प्रमाण है; कि तुम परमेश्‍वर के राज्य के योग्य ठहरो, जिसके लिये तुम दुःख भी उठाते हो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:6 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर के निकट यह न्याय है, कि जो तुम्हें क्लेश देते हैं, उन्हें बदले में क्लेश दे। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:7 और तुम जो क्लेश पाते हो, हमारे साथ चैन दे; उस समय जब कि प्रभु यीशु अपने सामर्थी स्वर्गदूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:8 और जो परमेश्‍वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उनसे पलटा लेगा। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:9 ¶ वे प्रभु के सामने से, और उसकी शक्ति के तेज से दूर होकर अनन्त विनाश का दण्ड पाएँगे। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:10 यह उस दिन होगा, जब वह अपने पवित्र लोगों में महिमा पाने, और सब विश्वास करनेवालों में आश्चर्य का कारण होने को आएगा; क्योंकि तुम ने हमारी गवाही पर विश्वास किया। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:11 ¶ इसलिए हम सदा तुम्हारे निमित्त प्रार्थना भी करते हैं, कि हमारा परमेश्‍वर तुम्हें इस बुलाहट के योग्य समझे, और भलाई की हर एक इच्छा, और विश्वास के हर एक काम को सामर्थ्य सहित पूरा करे, (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 1:12 कि हमारे परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह के अनुसार हमारे प्रभु यीशु का नाम तुम में महिमा पाए, और तुम उसमें। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:1 ¶ हे भाइयों, हम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुम से विनती करते हैं। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:2 कि किसी आत्मा, या वचन, या पत्री के द्वारा जो कि मानो हमारी ओर से हो, यह समझकर कि प्रभु का दिन आ पहुँचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाए; और न तुम घबराओ। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:3 ¶ किसी रीति से किसी के धोखे में न आना क्योंकि वह दिन न आएगा, जब तक विद्रोह नहीं होता, और वह अधर्मी पुरुष अर्थात् विनाश का पुत्र प्रगट न हो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:4 जो विरोध करता है, और हर एक से जो परमेश्‍वर, या पूज्य कहलाता है, अपने आप को बड़ा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्‍वर के मन्दिर में बैठकर अपने आप को परमेश्‍वर प्रगट करता है। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:5 ¶ क्या तुम्हें स्मरण नहीं, कि जब मैं तुम्हारे यहाँ था, तो तुम से ये बातें कहा करता था? (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:6 और अब तुम उस वस्तु को जानते हो, जो उसे रोक रही है, कि वह अपने ही समय में प्रगट हो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:7 क्योंकि अधर्म का भेद अब भी कार्य करता जाता है, पर अभी एक रोकनेवाला है, और जब तक वह दूर न हो जाए, वह रोके रहेगा। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:8 ¶ तब वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु अपने मुँह की फूँक से मार डालेगा, और अपने आगमन के तेज से भस्म करेगा। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:9 उस अधर्मी का आना शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ्य, चिन्ह, और अद्भुत काम के साथ। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:10 और नाश होनेवालों के लिये अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ होगा; क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिससे उनका उद्धार होता। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:11 ¶ और इसी कारण परमेश्‍वर उनमें एक भटका देनेवाली सामर्थ्य को भेजेगा ताकि वे झूठ पर विश्वास करें। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:12 और जितने लोग सत्य पर विश्वास नहीं करते, वरन् अधर्म से प्रसन्‍न होते हैं, सब दण्ड पाएँ। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:13 ¶ पर हे भाइयों, और प्रभु के प्रिय लोगों चाहिये कि हम तुम्हारे विषय में सदा परमेश्‍वर का धन्यवाद करते रहें, कि परमेश्‍वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया; कि आत्मा के द्वारा पवित्र बनकर, और सत्य पर विश्वास करके उद्धार पाओ। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:14 जिसके लिये उसने तुम्हें हमारे सुसमाचार के द्वारा बुलाया, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्त करो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:15 इसलिए, हे भाइयों, स्थिर रहो; और जो शिक्षा तुमने हमारे वचन या पत्र के द्वारा प्राप्त किया है, उन्हें थामे रहो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:16 ¶ हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्‍वर जिस ने हम से प्रेम रखा, और अनुग्रह से अनन्त शान्ति और उत्तम आशा दी है। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 2:17 तुम्हारे मनों में शान्ति दे, और तुम्हें हर एक अच्छे काम, और वचन में दृढ़ करे।। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:1 ¶ अन्त में, हे भाइयों, हमारे लिये प्रार्थना किया करो, कि प्रभु का वचन ऐसा शीघ्र फैले, और महिमा पाए, जैसा तुम में हुआ। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:2 और हम टेढ़े और दुष्ट मनुष्यों से बचे रहें क्योंकि हर एक में विश्वास नहीं। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:3 परन्तु प्रभु विश्वासयोग्य है; वह तुम्हें दृढ़ता से स्थिर करेगा: और उस दुष्ट से सुरक्षित रखेगा। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:4 ¶ और हमें प्रभु में तुम्हारे ऊपर भरोसा है, कि जो-जो आज्ञा हम तुम्हें देते हैं, उन्हें तुम मानते हो, और मानते भी रहोगे। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:5 परमेश्‍वर के प्रेम और मसीह के धीरज की ओर प्रभु तुम्हारे मन की अगुआई करे। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:6 ¶ हे भाइयों, हम तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देते हैं; कि हर एक ऐसे भाई से अलग रहो, जो आलस्य में रहता है, और जो शिक्षा तुमने हम से पाई उसके अनुसार नहीं करता। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:7 क्योंकि तुम आप जानते हो, कि किस रीति से हमारी सी चाल चलनी चाहिए; क्योंकि हम तुम्हारे बीच में आलसी तरीके से न चले। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:8 और किसी की रोटी मुफ़्त में न खाई; पर परिश्रम और कष्ट से रात दिन काम धन्धा करते थे, कि तुम में से किसी पर भार न हो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:9 यह नहीं, कि हमें अधिकार नहीं; पर इसलिए कि अपने आप को तुम्हारे लिये आदर्श ठहराएँ, कि तुम हमारी सी चाल चलो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:10 ¶ और जब हम तुम्हारे यहाँ थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे, कि यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाए। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:11 हम सुनते हैं, कि कितने लोग तुम्हारे बीच में आलसी चाल चलते हैं; और कुछ काम नहीं करते, पर औरों के काम में हाथ डाला करते हैं। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:12 ऐसों को हम प्रभु यीशु मसीह में आज्ञा देते और समझाते हैं, कि चुपचाप काम करके अपनी ही रोटी खाया करें। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:13 ¶ और तुम, हे भाइयों, भलाई करने में साहस न छोड़ो। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:14 यदि कोई हमारी इस पत्री की बात को न माने, तो उस पर दृष्टि रखो; और उसकी संगति न करो, जिससे वह लज्जित हो; (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:15 तो भी उसे बैरी मत समझो पर भाई जानकर चिताओ। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:16 ¶ अब प्रभु जो शान्ति का सोता है आप ही तुम्हें सदा और हर प्रकार से शान्ति दे: प्रभु तुम सब के साथ रहे। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:17 मैं पौलुस अपने हाथ से नमस्कार लिखता हूँ। हर पत्री में मेरा यही चिन्ह है: मैं इसी प्रकार से लिखता हूँ। (IN)

2 थिस्सलुनीकियों 3:18 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम सब पर होता रहे। (IN)

1 तीमुथियुस 1:1 ¶ पौलुस की ओर से जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर, और हमारी आशा के आधार मसीह यीशु की आज्ञा से मसीह यीशु का प्रेरित है, (IN)

1 तीमुथियुस 1:2 तीमुथियुस के नाम जो विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र है: पिता परमेश्‍वर, और हमारे प्रभु मसीह यीशु की ओर से, तुझे अनुग्रह और दया, और शान्ति मिलती रहे। (IN)

1 तीमुथियुस 1:3 ¶ जैसे मैंने मकिदुनिया को जाते समय तुझे समझाया था, कि इफिसुस में रहकर कुछ लोगों को आज्ञा दे कि अन्य प्रकार की शिक्षा न दें, (IN)

1 तीमुथियुस 1:4 और उन कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर मन न लगाएँ, जिनसे विवाद होते हैं; और परमेश्‍वर के उस प्रबन्ध के अनुसार नहीं, जो विश्वास से सम्बन्ध रखता है; वैसे ही फिर भी कहता हूँ। (IN)

1 तीमुथियुस 1:5 ¶ आज्ञा का सारांश यह है कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक, और निष्कपट विश्वास से प्रेम उत्‍पन्‍न हो। (IN)

1 तीमुथियुस 1:6 इनको छोड़कर कितने लोग फिरकर बकवाद की ओर भटक गए हैं, (IN)

1 तीमुथियुस 1:7 और व्यवस्थापक तो होना चाहते हैं, पर जो बातें कहते और जिनको दृढ़ता से बोलते हैं, उनको समझते भी नहीं। (IN)

1 तीमुथियुस 1:8 पर हम जानते हैं कि यदि कोई व्यवस्था को व्यवस्था की रीति पर काम में लाए तो वह भली है। (IN)

1 तीमुथियुस 1:9 ¶ यह जानकर कि व्यवस्था धर्मी जन के लिये नहीं पर अधर्मियों, निरंकुशों, भक्तिहीनों, पापियों, अपवित्रों और अशुद्धों, माँ-बाप के मारनेवाले, हत्यारों, (IN)

1 तीमुथियुस 1:10 व्यभिचारियों, पुरुषगामियों, मनुष्य के बेचनेवालों, झूठ बोलनेवालों, और झूठी शपथ खानेवालों, और इनको छोड़ खरे उपदेश के सब विरोधियों के लिये ठहराई गई है। (IN)

1 तीमुथियुस 1:11 यही परमधन्य परमेश्‍वर की महिमा के उस सुसमाचार के अनुसार है, जो मुझे सौंपा गया है। (IN)

1 तीमुथियुस 1:12 ¶ और मैं अपने प्रभु मसीह यीशु का, जिस ने मुझे सामर्थ्य दी है, धन्यवाद करता हूँ; कि उसने मुझे विश्वासयोग्य समझकर अपनी सेवा के लिये ठहराया। (IN)

1 तीमुथियुस 1:13 मैं तो पहले निन्दा करनेवाला, और सतानेवाला, और अंधेर करनेवाला था; तो भी मुझ पर दया हुई, क्योंकि मैंने अविश्वास की दशा में बिन समझे बूझे ये काम किए थे। (IN)

1 तीमुथियुस 1:14 और हमारे प्रभु का अनुग्रह उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, बहुतायत से हुआ। (IN)

1 तीमुथियुस 1:15 ¶ यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है कि मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया, जिनमें सबसे बड़ा मैं हूँ। (IN)

1 तीमुथियुस 1:16 पर मुझ पर इसलिए दया हुई कि मुझ सबसे बड़े पापी में यीशु मसीह अपनी पूरी सहनशीलता दिखाए, कि जो लोग उस पर अनन्त जीवन के लिये विश्वास करेंगे, उनके लिये मैं एक आदर्श बनूँ। (IN)

1 तीमुथियुस 1:17 अब सनातन राजा अर्थात् अविनाशी अनदेखे अद्वैत परमेश्‍वर का आदर और महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

1 तीमुथियुस 1:18 ¶ हे पुत्र तीमुथियुस, उन भविष्यद्वाणियों के अनुसार जो पहले तेरे विषय में की गई थीं, मैं यह आज्ञा सौंपता हूँ, कि तू उनके अनुसार अच्छी लड़ाई को लड़ता रह। (IN)

1 तीमुथियुस 1:19 और विश्वास और उस अच्छे विवेक को थामे रह जिसे दूर करने के कारण कितनों का विश्वास रूपी जहाज डूब गया। (IN)

1 तीमुथियुस 1:20 उन्हीं में से हुमिनयुस और सिकन्दर हैं जिन्हें मैंने शैतान को सौंप दिया कि वे निन्दा करना न सीखें। (IN)

1 तीमुथियुस 2:1 ¶ अब मैं सबसे पहले यह आग्रह करता हूँ, कि विनती, प्रार्थना, निवेदन, धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएँ। (IN)

1 तीमुथियुस 2:2 राजाओं और सब ऊँचे पदवालों के निमित्त इसलिए कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गरिमा में जीवन बिताएँ। (IN)

1 तीमुथियुस 2:3 यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर को अच्छा लगता और भाता भी है, (IN)

1 तीमुथियुस 2:4 जो यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली-भाँति पहचान लें। (IN)

1 तीमुथियुस 2:5 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर एक ही है, और परमेश्‍वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है, (IN)

1 तीमुथियुस 2:6 जिसने अपने आप को सबके छुटकारे के दाम में दे दिया; ताकि उसकी गवाही ठीक समयों पर दी जाए। (IN)

1 तीमुथियुस 2:7 मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिये विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया। (IN)

1 तीमुथियुस 2:8 ¶ इसलिए मैं चाहता हूँ, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें। (IN)

1 तीमुथियुस 2:9 वैसे ही स्त्रियाँ भी संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूँथने, सोने, मोतियों, और बहुमूल्य कपड़ों से, (IN)

1 तीमुथियुस 2:10 पर भले कामों से, क्योंकि परमेश्‍वर की भक्ति करनेवाली स्त्रियों को यही उचित भी है। (IN)

1 तीमुथियुस 2:11 ¶ और स्त्री को चुपचाप पूरी अधीनता में सीखना चाहिए। (IN)

1 तीमुथियुस 2:12 मैं कहता हूँ, कि स्त्री न उपदेश करे और न पुरुष पर अधिकार चलाए, परन्तु चुपचाप रहे। (IN)

1 तीमुथियुस 2:13 ¶ क्योंकि आदम पहले, उसके बाद हव्वा बनाई गई। (IN)

1 तीमुथियुस 2:14 और आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकावे में आकर अपराधिनी हुई। (IN)

1 तीमुथियुस 2:15 तो भी स्त्री बच्चे जनने के द्वारा उद्धार पाएगी, यदि वह संयम सहित विश्वास, प्रेम, और पवित्रता में स्थिर रहें। (IN)

1 तीमुथियुस 3:1 ¶ यह बात सत्य है कि जो अध्यक्ष होना चाहता है, तो वह भले काम की इच्छा करता है। (IN)

1 तीमुथियुस 3:2 यह आवश्यक है कि अध्यक्ष निर्दोष, और एक ही पत्‍नी का पति, संयमी, सुशील, सभ्य, अतिथि-सत्कार करनेवाला, और सिखाने में निपुण हो। (IN)

1 तीमुथियुस 3:3 पियक्कड़ या मार पीट करनेवाला न हो; वरन् कोमल हो, और न झगड़ालू, और न धन का लोभी हो। (IN)

1 तीमुथियुस 3:4 ¶ अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करता हो, और बाल-बच्चों को सारी गम्भीरता से अधीन रखता हो। (IN)

1 तीमुथियुस 3:5 जब कोई अपने घर ही का प्रबन्ध करना न जानता हो, तो परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली कैसे करेगा? (IN)

1 तीमुथियुस 3:6 ¶ फिर यह कि नया चेला न हो, ऐसा न हो कि अभिमान करके शैतान के समान दण्ड पाए। (IN)

1 तीमुथियुस 3:7 और बाहरवालों में भी उसका सुनाम हो ऐसा न हो कि निन्दित होकर शैतान के फंदे में फंस जाए। (IN)

1 तीमुथियुस 3:8 ¶ वैसे ही सेवकों को भी गम्भीर होना चाहिए, दो रंगी, पियक्कड़, और नीच कमाई के लोभी न हों; (IN)

1 तीमुथियुस 3:9 पर विश्वास के भेद को शुद्ध विवेक से सुरक्षित रखें। (IN)

1 तीमुथियुस 3:10 और ये भी पहले परखे जाएँ, तब यदि निर्दोष निकलें तो सेवक का काम करें। (IN)

1 तीमुथियुस 3:11 ¶ इसी प्रकार से स्त्रियों को भी गम्भीर होना चाहिए; दोष लगानेवाली न हों, पर सचेत और सब बातों में विश्वासयोग्य हों। (IN)

1 तीमुथियुस 3:12 सेवक एक ही पत्‍नी के पति हों और बाल-बच्चों और अपने घरों का अच्छा प्रबन्ध करना जानते हों। (IN)

1 तीमुथियुस 3:13 क्योंकि जो सेवक का काम अच्छी तरह से कर सकते हैं, वे अपने लिये अच्छा पद और उस विश्वास में, जो मसीह यीशु पर है, बड़ा साहस प्राप्त करते हैं। (IN)

1 तीमुथियुस 3:14 ¶ मैं तेरे पास जल्द आने की आशा रखने पर भी ये बातें तुझे इसलिए लिखता हूँ, (IN)

1 तीमुथियुस 3:15 कि यदि मेरे आने में देर हो तो तू जान ले कि परमेश्‍वर के घराने में जो जीविते परमेश्‍वर की कलीसिया है, और जो सत्य का खम्भा और नींव है; कैसा बर्ताव करना चाहिए। (IN)

1 तीमुथियुस 3:16 ¶ और इसमें सन्देह नहीं कि (IN)

1 तीमुथियुस 4:1 ¶ परन्तु आत्मा स्पष्टता से कहता है कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएँगे, (IN)

1 तीमुथियुस 4:2 यह उन झूठे मनुष्यों के कपट के कारण होगा, जिनका विवेक मानो जलते हुए लोहे से दागा गया है, (IN)

1 तीमुथियुस 4:3 ¶ जो विवाह करने से रोकेंगे, और भोजन की कुछ वस्तुओं से परे रहने की आज्ञा देंगे; जिन्हें परमेश्‍वर ने इसलिए सृजा कि विश्वासी और सत्य के पहचाननेवाले उन्हें धन्यवाद के साथ खाएँ। (IN)

1 तीमुथियुस 4:4 क्योंकि परमेश्‍वर की सृजी हुई हर एक वस्तु अच्छी है, और कोई वस्तु अस्वीकार करने के योग्य नहीं; पर यह कि धन्यवाद के साथ खाई जाए; (IN)

1 तीमुथियुस 4:5 क्योंकि परमेश्‍वर के वचन और प्रार्थना के द्वारा शुद्ध हो जाती है। (IN)

1 तीमुथियुस 4:6 ¶ यदि तू भाइयों को इन बातों की सुधि दिलाता रहेगा, तो मसीह यीशु का अच्छा सेवक ठहरेगा; और विश्वास और उस अच्छे उपदेश की बातों से, जो तू मानता आया है, तेरा पालन-पोषण होता रहेगा। (IN)

1 तीमुथियुस 4:7 पर अशुद्ध और बूढ़ियों की सी कहानियों से अलग रह; और भक्ति में खुद को प्रशिक्षित कर। (IN)

1 तीमुथियुस 4:8 क्योंकि देह के प्रशिक्षण से कम लाभ होता है, पर भक्ति सब बातों के लिये लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आनेवाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिये है। (IN)

1 तीमुथियुस 4:9 ¶ यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है। (IN)

1 तीमुथियुस 4:10 क्योंकि हम परिश्रम और यत्न इसलिए करते हैं कि हमारी आशा उस जीविते परमेश्‍वर पर है; जो सब मनुष्यों का और विशेष रूप से विश्वासियों का उद्धारकर्ता है। (IN)

1 तीमुथियुस 4:11 ¶ इन बातों की आज्ञा देकर और सिखाता रह। (IN)

1 तीमुथियुस 4:12 ¶ कोई तेरी जवानी को तुच्छ न समझने पाए; पर वचन, चाल चलन, प्रेम, विश्वास, और पवित्रता में विश्वासियों के लिये आदर्श बन जा। (IN)

1 तीमुथियुस 4:13 जब तक मैं न आऊँ, तब तक पढ़ने और उपदेश देने और सिखाने में लौलीन रह। (IN)

1 तीमुथियुस 4:14 ¶ उस वरदान से जो तुझ में है, और भविष्यद्वाणी के द्वारा प्राचीनों के हाथ रखते समय तुझे मिला था, निश्चिन्त मत रह। (IN)

1 तीमुथियुस 4:15 उन बातों को सोचता रह और इन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो। (IN)

1 तीमुथियुस 4:16 अपनी और अपने उपदेश में सावधानी रख। इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि यदि ऐसा करता रहेगा, तो तू अपने, और अपने सुननेवालों के लिये भी उद्धार का कारण होगा। (IN)

1 तीमुथियुस 5:1 ¶ किसी बूढ़े को न डाँट; पर उसे पिता जानकर समझा दे, और जवानों को भाई जानकर; (IN)

1 तीमुथियुस 5:2 बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर; और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहन जानकर, समझा दे। (IN)

1 तीमुथियुस 5:3 ¶ उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर। (IN)

1 तीमुथियुस 5:4 और यदि किसी विधवा के बच्चे या नाती-पोते हों, तो वे पहले अपने ही घराने के साथ आदर का बर्ताव करना, और अपने माता-पिता आदि को उनका हक़ देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्‍वर को भाता है। (IN)

1 तीमुथियुस 5:5 ¶ जो सचमुच विधवा है, और उसका कोई नहीं; वह परमेश्‍वर पर आशा रखती है, और रात-दिन विनती और प्रार्थना में लौलीन रहती है। (IN)

1 तीमुथियुस 5:6 पर जो भोग विलास में पड़ गई, वह जीते जी मर गई है। (IN)

1 तीमुथियुस 5:7 ¶ इन बातों की भी आज्ञा दिया कर ताकि वे निर्दोष रहें। (IN)

1 तीमुथियुस 5:8 पर यदि कोई अपने रिश्तेदारों की, विशेष रूप से अपने परिवार की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है। (IN)

1 तीमुथियुस 5:9 ¶ उसी विधवा का नाम लिखा जाए जो साठ वर्ष से कम की न हो, और एक ही पति की पत्‍नी रही हो, (IN)

1 तीमुथियुस 5:10 और भले काम में सुनाम रही हो, जिसने बच्चों का पालन-पोषण किया हो; अतिथि की सेवा की हो, पवित्र लोगों के पाँव धोए हो, दुःखियों की सहायता की हो, और हर एक भले काम में मन लगाया हो। (IN)

1 तीमुथियुस 5:11 ¶ पर जवान विधवाओं के नाम न लिखना, क्योंकि जब वे मसीह का विरोध करके सुख-विलास में पड़ जाती हैं, तो विवाह करना चाहती हैं, (IN)

1 तीमुथियुस 5:12 और दोषी ठहरती हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी पहली प्रतिज्ञा को छोड़ दिया है। (IN)

1 तीमुथियुस 5:13 ¶ और इसके साथ ही साथ वे घर-घर फिरकर आलसी होना सीखती है, और केवल आलसी नहीं, पर बक-बक करती रहती और दूसरों के काम में हाथ भी डालती हैं और अनुचित बातें बोलती हैं। (IN)

1 तीमुथियुस 5:14 इसलिए मैं यह चाहता हूँ, कि जवान विधवाएँ विवाह करें; और बच्चे जनें और घरबार संभालें, और किसी विरोधी को बदनाम करने का अवसर न दें। (IN)

1 तीमुथियुस 5:15 क्योंकि कई एक तो बहक कर शैतान के पीछे हो चुकी हैं। (IN)

1 तीमुथियुस 5:16 यदि किसी विश्वासिनी के यहाँ विधवाएँ हों, तो वही उनकी सहायता करे कि कलीसिया पर भार न हो ताकि वह उनकी सहायता कर सके, जो सचमुच में विधवाएँ हैं। (IN)

1 तीमुथियुस 5:17 ¶ जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते हैं, विशेष करके वे जो वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं, दो गुने आदर के योग्य समझे जाएँ। (IN)

1 तीमुथियुस 5:18 क्योंकि पवित्रशास्त्र कहता है, “दाँवनेवाले बैल का मुँह न बाँधना,” क्योंकि “मजदूर अपनी मजदूरी का हकदार है।” (IN)

1 तीमुथियुस 5:19 ¶ कोई दोष किसी प्राचीन पर लगाया जाए तो बिना दो या तीन गवाहों के उसको स्वीकार न करना। (IN)

1 तीमुथियुस 5:20 पाप करनेवालों को सब के सामने समझा दे, ताकि और लोग भी डरे। (IN)

1 तीमुथियुस 5:21 ¶ परमेश्‍वर, और मसीह यीशु, और चुने हुए स्वर्गदूतों को उपस्थित जानकर मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि तू मन खोलकर इन बातों को माना कर, और कोई काम पक्षपात से न कर। (IN)

1 तीमुथियुस 5:22 किसी पर शीघ्र हाथ न रखना और दूसरों के पापों में भागी न होना; अपने आपको पवित्र बनाए रख। (IN)

1 तीमुथियुस 5:23 ¶ भविष्य में केवल जल ही का पीनेवाला न रह, पर अपने पेट के और अपने बार-बार बीमार होने के कारण थोड़ा-थोड़ा दाखरस भी लिया कर। (IN)

1 तीमुथियुस 5:24 कुछ मनुष्यों के पाप प्रगट हो जाते हैं, और न्याय के लिये पहले से पहुँच जाते हैं, लेकिन दूसरों के पाप बाद में दिखाई देते हैं। (IN)

1 तीमुथियुस 5:25 वैसे ही कुछ भले काम भी प्रगट होते हैं, और जो ऐसे नहीं होते, वे भी छिप नहीं सकते। (IN)

1 तीमुथियुस 6:1 ¶ जितने दास जूए के नीचे हैं, वे अपने-अपने स्वामी को बड़े आदर के योग्य जानें, ताकि परमेश्‍वर के नाम और उपदेश की निन्दा न हो। (IN)

1 तीमुथियुस 6:2 और जिनके स्वामी विश्वासी हैं, इन्हें वे भाई होने के कारण तुच्छ न जानें; वरन् उनकी और भी सेवा करें, क्योंकि इससे लाभ उठानेवाले विश्वासी और प्रेमी हैं। इन बातों का उपदेश किया कर और समझाता रह। (IN)

1 तीमुथियुस 6:3 ¶ यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है और खरी बातों को, अर्थात् हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है। (IN)

1 तीमुथियुस 6:4 तो वह अभिमानी है और कुछ नहीं जानता, वरन् उसे विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिनसे डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे-बुरे सन्देह, (IN)

1 तीमुथियुस 6:5 और उन मनुष्यों में व्यर्थ रगड़े-झगड़े उत्‍पन्‍न होते हैं, जिनकी बुद्धि बिगड़ गई है और वे सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति लाभ का द्वार है। (IN)

1 तीमुथियुस 6:6 ¶ पर सन्तोष सहित भक्ति बड़ी लाभ है। (IN)

1 तीमुथियुस 6:7 क्योंकि न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं। (IN)

1 तीमुथियुस 6:8 और यदि हमारे पास खाने और पहनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए। (IN)

1 तीमुथियुस 6:9 ¶ पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुत सी व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फँसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डुबा देती हैं। (IN)

1 तीमुथियुस 6:10 क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आपको विभिन्न प्रकार के दुःखों से छलनी बना लिया है। (IN)

1 तीमुथियुस 6:11 ¶ पर हे परमेश्‍वर के जन, तू इन बातों से भाग; और धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज, और नम्रता का पीछा कर। (IN)

1 तीमुथियुस 6:12 विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिसके लिये तू बुलाया गया, और बहुत गवाहों के सामने अच्छा अंगीकार किया था। (IN)

1 तीमुथियुस 6:13 ¶ मैं तुझे परमेश्‍वर को जो सबको जीवित रखता है, और मसीह यीशु को गवाह करके जिसने पुन्तियुस पिलातुस के सामने अच्छा अंगीकार किया, यह आज्ञा देता हूँ, (IN)

1 तीमुथियुस 6:14 कि तू हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने तक इस आज्ञा को निष्कलंक और निर्दोष रख, (IN)

1 तीमुथियुस 6:15 ¶ जिसे वह ठीक समय पर दिखाएगा, जो परमधन्य और एकमात्र अधिपति और राजाओं का राजा, और प्रभुओं का प्रभु है, (IN)

1 तीमुथियुस 6:16 और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा और न कभी देख सकता है। उसकी प्रतिष्ठा और राज्य युगानुयुग रहेगा। आमीन। (IN)

1 तीमुथियुस 6:17 ¶ इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे कि वे अभिमानी न हों और अनिश्चित धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्‍वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है। (IN)

1 तीमुथियुस 6:18 और भलाई करें, और भले कामों में धनी बनें, और उदार और सहायता देने में तत्पर हों, (IN)

1 तीमुथियुस 6:19 और आनेवाले जीवन के लिये एक अच्छी नींव डाल रखें, कि सत्य जीवन को वश में कर लें। (IN)

1 तीमुथियुस 6:20 ¶ हे तीमुथियुस इस धरोहर की रखवाली कर। जो तुझे दी गई है और मूर्ख बातों से और विरोध के तर्क जो झूठा ज्ञान कहलाता है दूर रह। (IN)

1 तीमुथियुस 6:21 कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके विश्वास से भटक गए हैं। तुम पर अनुग्रह होता रहे। (IN)

2 तीमुथियुस 1:1 ¶ पौलुस की ओर से जो उस जीवन की प्रतिज्ञा के अनुसार जो मसीह यीशु में है, परमेश्‍वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, (IN)

2 तीमुथियुस 1:2 प्रिय पुत्र तीमुथियुस के नाम। परमेश्‍वर पिता और हमारे प्रभु मसीह यीशु की ओर से तुझे अनुग्रह और दया और शान्ति मिलती रहे। (IN)

2 तीमुथियुस 1:3 ¶ जिस परमेश्‍वर की सेवा मैं अपने पूर्वजों की रीति पर शुद्ध विवेक से करता हूँ, उसका धन्यवाद हो कि अपनी प्रार्थनाओं में रात दिन तुझे लगातार स्मरण करता हूँ, (IN)

2 तीमुथियुस 1:4 और तेरे आँसुओं की सुधि कर करके तुझ से भेंट करने की लालसा रखता हूँ, कि आनन्द से भर जाऊँ। (IN)

2 तीमुथियुस 1:5 और मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहले तेरी नानी लोइस, और तेरी माता यूनीके में थी, और मुझे निश्चय हुआ है, कि तुझ में भी है। (IN)

2 तीमुथियुस 1:6 ¶ इसी कारण मैं तुझे सुधि दिलाता हूँ, कि तू परमेश्‍वर के उस वरदान को जो मेरे हाथ रखने के द्वारा तुझे मिला है प्रज्वलित रहे। (IN)

2 तीमुथियुस 1:7 क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ्य, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है। (IN)

2 तीमुथियुस 1:8 ¶ इसलिए हमारे प्रभु की गवाही से, और मुझसे जो उसका कैदी हूँ, लज्जित न हो, पर उस परमेश्‍वर की सामर्थ्य के अनुसार सुसमाचार के लिये मेरे साथ दुःख उठा। (IN)

2 तीमुथियुस 1:9 जिस ने हमारा उद्धार किया, और पवित्र बुलाहट से बुलाया, और यह हमारे कामों के अनुसार नहीं; पर अपनी मनसा और उस अनुग्रह के अनुसार है; जो मसीह यीशु में अनादि काल से हम पर हुआ है। (IN)

2 तीमुथियुस 1:10 पर अब हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु के प्रगट होने के द्वारा प्रकाशित हुआ, जिस ने मृत्यु का नाश किया, और जीवन और अमरता को उस सुसमाचार के द्वारा प्रकाशमान कर दिया। (IN)

2 तीमुथियुस 1:11 जिसके लिये मैं प्रचारक, और प्रेरित, और उपदेशक भी ठहरा। (IN)

2 तीमुथियुस 1:12 इस कारण मैं इन दुःखों को भी उठाता हूँ, पर लजाता नहीं, क्योंकि जिस पर मैंने विश्वास रखा है, जानता हूँ; और मुझे निश्चय है, कि वह मेरी धरोहर की उस दिन तक रखवाली कर सकता है। (IN)

2 तीमुथियुस 1:13 ¶ जो खरी बातें तूने मुझसे सुनी हैं उनको उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख। (IN)

2 तीमुथियुस 1:14 और पवित्र आत्मा के द्वारा जो हम में बसा हुआ है, इस अच्छी धरोहर की रखवाली कर। (IN)

2 तीमुथियुस 1:15 ¶ तू जानता है, कि आसियावाले सब मुझसे फिर गए हैं, जिनमें फूगिलुस और हिरमुगिनेस हैं। (IN)

2 तीमुथियुस 1:16 उनेसिफुरूस के घराने पर प्रभु दया करे, क्योंकि उसने बहुत बार मेरे जी को ठण्डा किया, और मेरी जंजीरों से लज्जित न हुआ। (IN)

2 तीमुथियुस 1:17 पर जब वह रोम में आया, तो बड़े यत्न से ढूँढ़कर मुझसे भेंट की। (IN)

2 तीमुथियुस 1:18 (प्रभु करे, कि उस दिन उस पर प्रभु की दया हो)। और जो-जो सेवा उसने इफिसुस में की है उन्हें भी तू भली भाँति जानता है। (IN)

2 तीमुथियुस 2:1 ¶ इसलिए हे मेरे पुत्र, तू उस अनुग्रह से जो मसीह यीशु में है, बलवन्त हो जा। (IN)

2 तीमुथियुस 2:2 और जो बातें तूने बहुत गवाहों के सामने मुझसे सुनी हैं, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों। (IN)

2 तीमुथियुस 2:3 ¶ मसीह यीशु के अच्छे योद्धा के समान मेरे साथ दुःख उठा। (IN)

2 तीमुथियुस 2:4 जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिए कि अपने वरिष्ठ अधिकारी को प्रसन्‍न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फँसाता (IN)

2 तीमुथियुस 2:5 फिर अखाड़े में लड़नेवाला यदि विधि के अनुसार न लड़े तो मुकुट नहीं पाता। (IN)

2 तीमुथियुस 2:6 ¶ जो किसान परिश्रम करता है, फल का अंश पहले उसे मिलना चाहिए। (IN)

2 तीमुथियुस 2:7 जो मैं कहता हूँ, उस पर ध्यान दे और प्रभु तुझे सब बातों की समझ देगा। (IN)

2 तीमुथियुस 2:8 ¶ यीशु मसीह को स्मरण रख, जो दाऊद के वंश से हुआ, और मरे हुओं में से जी उठा; और यह मेरे सुसमाचार के अनुसार है। (IN)

2 तीमुथियुस 2:9 जिसके लिये मैं कुकर्मी के समान दुःख उठाता हूँ, यहाँ तक कि कैद भी हूँ; परन्तु परमेश्‍वर का वचन कैद नहीं। (IN)

2 तीमुथियुस 2:10 इस कारण मैं चुने हुए लोगों के लिये सब कुछ सहता हूँ, कि वे भी उस उद्धार को जो मसीह यीशु में हैं अनन्त महिमा के साथ पाएँ। (IN)

2 तीमुथियुस 2:11 ¶ यह बात सच है, कि (IN)

2 तीमुथियुस 2:12 यदि हम धीरज से सहते रहेंगे, तो उसके साथ राज्य भी करेंगे; (IN)

2 तीमुथियुस 2:13 यदि हम विश्वासघाती भी हों तो भी वह विश्वासयोग्य बना रहता है, (IN)

2 तीमुथियुस 2:14 ¶ इन बातों की सुधि उन्हें दिला, और प्रभु के सामने चिता दे, कि शब्दों पर तर्क-वितर्क न किया करें, जिनसे कुछ लाभ नहीं होता; वरन् सुननेवाले बिगड़ जाते हैं। (IN)

2 तीमुथियुस 2:15 अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो। (IN)

2 तीमुथियुस 2:16 ¶ पर अशुद्ध बकवाद से बचा रह; क्योंकि ऐसे लोग और भी अभक्ति में बढ़ते जाएँगे। (IN)

2 तीमुथियुस 2:17 और उनका वचन सड़े-घाव की तरह फैलता जाएगा: हुमिनयुस और फिलेतुस उन्हीं में से हैं, (IN)

2 तीमुथियुस 2:18 जो यह कहकर कि पुनरुत्थान हो चुका है सत्य से भटक गए हैं, और कितनों के विश्वास को उलट पुलट कर देते हैं। (IN)

2 तीमुथियुस 2:19 तो भी परमेश्‍वर की पक्की नींव बनी रहती है, और उस पर यह छाप लगी है: “प्रभु अपनों को पहचानता है,” और “जो कोई प्रभु का नाम लेता है, वह अधर्म से बचा रहे।” (IN)

2 तीमुथियुस 2:20 बड़े घर में न केवल सोने-चाँदी ही के, पर काठ और मिट्टी के बर्तन भी होते हैं; कोई-कोई आदर, और कोई-कोई अनादर के लिये। (IN)

2 तीमुथियुस 2:21 यदि कोई अपने आप को इनसे शुद्ध करेगा, तो वह आदर का पात्र, और पवित्र ठहरेगा; और स्वामी के काम आएगा, और हर भले काम के लिये तैयार होगा। (IN)

2 तीमुथियुस 2:22 जवानी की अभिलाषाओं से भाग; और जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम लेते हैं, उनके साथ धार्मिकता, और विश्वास, और प्रेम, और मेल-मिलाप का पीछा कर। (IN)

2 तीमुथियुस 2:23 पर मूर्खता, और अविद्या के विवादों से अलग रह; क्योंकि तू जानता है, कि इनसे झगड़े होते हैं। (IN)

2 तीमुथियुस 2:24 ¶ और प्रभु के दास को झगड़ालू नहीं होना चाहिए, पर सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो। (IN)

2 तीमुथियुस 2:25 और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्‍वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहचानें। (IN)

2 तीमुथियुस 2:26 और इसके द्वारा शैतान की इच्‍छा पूरी करने के लिये सचेत होकर शैतान के फंदे से छूट जाएँ। (IN)

2 तीमुथियुस 3:1 ¶ पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएँगे। (IN)

2 तीमुथियुस 3:2 क्योंकि मनुष्य स्वार्थी, धन का लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्‍न, अपवित्र, (IN)

2 तीमुथियुस 3:3 दया रहित, क्षमा रहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी, (IN)

2 तीमुथियुस 3:4 विश्वासघाती, हठी, अभिमानी और परमेश्‍वर के नहीं वरन् सुख-विलास ही के चाहनेवाले होंगे। (IN)

2 तीमुथियुस 3:5 ¶ वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उसकी शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना। (IN)

2 तीमुथियुस 3:6 इन्हीं में से वे लोग हैं, जो घरों में दबे पाँव घुस आते हैं और उन दुर्बल स्त्रियों को वश में कर लेते हैं, जो पापों से दबी और हर प्रकार की अभिलाषाओं के वश में हैं। (IN)

2 तीमुथियुस 3:7 और सदा सीखती तो रहती हैं पर सत्य की पहचान तक कभी नहीं पहुँचतीं। (IN)

2 तीमुथियुस 3:8 ¶ और जैसे यन्नेस और यम्ब्रेस ने मूसा का विरोध किया था वैसे ही ये भी सत्य का विरोध करते हैं ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है और वे विश्वास के विषय में निकम्मे हैं। (IN)

2 तीमुथियुस 3:9 पर वे इससे आगे नहीं बढ़ सकते, क्योंकि जैसे उनकी अज्ञानता सब मनुष्यों पर प्रगट हो गई थी, वैसे ही इनकी भी हो जाएगी। (IN)

2 तीमुथियुस 3:10 ¶ पर तूने उपदेश, चाल-चलन, मनसा, विश्वास, सहनशीलता, प्रेम, धीरज, (IN)

2 तीमुथियुस 3:11 उत्पीड़न, और पीड़ा में मेरा साथ दिया, और ऐसे दुःखों में भी जो अन्ताकिया और इकुनियुम और लुस्त्रा में मुझ पर पड़े थे। मैंने ऐसे उत्पीड़नों को सहा, और प्रभु ने मुझे उन सबसे छुड़ाया। (IN)

2 तीमुथियुस 3:12 पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएँगे। (IN)

2 तीमुथियुस 3:13 और दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएँगे। (IN)

2 तीमुथियुस 3:14 ¶ पर तू इन बातों पर जो तूने सीखी हैं और विश्वास किया था, यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तूने उन्हें किन लोगों से सीखा है, (IN)

2 तीमुथियुस 3:15 और बालकपन से पवित्रशास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है। (IN)

2 तीमुथियुस 3:16 ¶ सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धार्मिकता की शिक्षा के लिये लाभदायक है, (IN)

2 तीमुथियुस 3:17 ताकि परमेश्‍वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए। (IN)

2 तीमुथियुस 4:1 ¶ परमेश्‍वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवितों और मरे हुओं का न्याय करेगा, उसे और उसके प्रगट होने, और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूँ। (IN)

2 तीमुथियुस 4:2 कि तू वचन का प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दे, और डाँट, और समझा। (IN)

2 तीमुथियुस 4:3 ¶ क्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुत सारे उपदेशक बटोर लेंगे। (IN)

2 तीमुथियुस 4:4 और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएँगे। (IN)

2 तीमुथियुस 4:5 पर तू सब बातों में सावधान रह, दुःख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर। (IN)

2 तीमुथियुस 4:6 ¶ क्योंकि अब मैं अर्घ के समान उण्डेला जाता हूँ, और मेरे संसार से जाने का समय आ पहुँचा है। (IN)

2 तीमुथियुस 4:7 मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। (IN)

2 तीमुथियुस 4:8 भविष्य में मेरे लिये धार्मिकता का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन् उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं। (IN)

2 तीमुथियुस 4:9 ¶ मेरे पास शीघ्र आने का प्रयत्न कर। (IN)

2 तीमुथियुस 4:10 क्योंकि देमास ने इस संसार को प्रिय जानकर मुझे छोड़ दिया है, और थिस्सलुनीके को चला गया है, और क्रेसकेंस गलातिया को और तीतुस दलमतिया को चला गया है। (IN)

2 तीमुथियुस 4:11 ¶ केवल लूका मेरे साथ है मरकुस को लेकर चला आ; क्योंकि सेवा के लिये वह मेरे बहुत काम का है। (IN)

2 तीमुथियुस 4:12 तुखिकुस को मैंने इफिसुस को भेजा है। (IN)

2 तीमुथियुस 4:13 जो बागा मैं त्रोआस में करपुस के यहाँ छोड़ आया हूँ, जब तू आए, तो उसे और पुस्तकें विशेष करके चर्मपत्रों को लेते आना। (IN)

2 तीमुथियुस 4:14 ¶ सिकन्दर ठठेरे ने मुझसे बहुत बुराइयाँ की हैं प्रभु उसे उसके कामों के अनुसार बदला देगा। (IN)

2 तीमुथियुस 4:15 तू भी उससे सावधान रह, क्योंकि उसने हमारी बातों का बहुत ही विरोध किया। (IN)

2 तीमुथियुस 4:16 मेरे पहले प्रत्युत्तर करने के समय में किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया, वरन् सब ने मुझे छोड़ दिया था भला हो, कि इसका उनको लेखा देना न पड़े। (IN)

2 तीमुथियुस 4:17 ¶ परन्तु प्रभु मेरा सहायक रहा, और मुझे सामर्थ्य दी; ताकि मेरे द्वारा पूरा-पूरा प्रचार हो, और सब अन्यजाति सुन ले; और मैं तो सिंह के मुँह से छुड़ाया गया। (IN)

2 तीमुथियुस 4:18 और प्रभु मुझे हर एक बुरे काम से छुड़ाएगा, और अपने स्वर्गीय राज्य में उद्धार करके पहुँचाएगा उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

2 तीमुथियुस 4:19 ¶ प्रिस्का और अक्विला को, और उनेसिफुरूस के घराने को नमस्कार। (IN)

2 तीमुथियुस 4:20 इरास्तुस कुरिन्थुस में रह गया, और त्रुफिमुस को मैंने मीलेतुस में बीमार छोड़ा है। (IN)

2 तीमुथियुस 4:21 जाड़े से पहले चले आने का प्रयत्न कर: यूबूलुस, और पूदेंस, और लीनुस और क्लौदिया, और सब भाइयों का तुझे नमस्कार। (IN)

2 तीमुथियुस 4:22 ¶ प्रभु तेरी आत्मा के साथ रहे, तुम पर अनुग्रह होता रहे। (IN)

तीतुस 1:1 ¶ पौलुस की ओर से, जो परमेश्‍वर का दास और यीशु मसीह का प्रेरित है, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों के विश्वास को स्थापित करने और सच्चाई का ज्ञान स्थापित करने के लिए जो भक्ति के साथ सहमत हैं, (IN)

तीतुस 1:2 उस अनन्त जीवन की आशा पर, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्‍वर ने जो झूठ बोल नहीं सकता सनातन से की है, (IN)

तीतुस 1:3 पर ठीक समय पर अपने वचन को उस प्रचार के द्वारा प्रगट किया, जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की आज्ञा के अनुसार मुझे सौंपा गया। (IN)

तीतुस 1:4 ¶ तीतुस के नाम जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है: परमेश्‍वर पिता और हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु की ओर से तुझे अनुग्रह और शान्ति होती रहे। (IN)

तीतुस 1:5 ¶ मैं इसलिए तुझे क्रेते में छोड़ आया था, कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारें, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर-नगर प्राचीनों को नियुक्त करे। (IN)

तीतुस 1:6 ¶ जो निर्दोष और एक ही पत्‍नी का पति हों, जिनके बच्चे विश्वासी हो, और जिन पर लुचपन और निरंकुशता का दोष नहीं। (IN)

तीतुस 1:7 क्योंकि अध्यक्ष को परमेश्‍वर का भण्डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़, न मार पीट करनेवाला, और न नीच कमाई का लोभी। (IN)

तीतुस 1:8 ¶ पर पहुनाई करनेवाला, भलाई का चाहनेवाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो; (IN)

तीतुस 1:9 और विश्वासयोग्य वचन पर जो धर्मोपदेश के अनुसार है, स्थिर रहे; कि खरी शिक्षा से उपदेश दे सके; और विवादियों का मुँह भी बन्द कर सके। (IN)

तीतुस 1:10 ¶ क्योंकि बहुत से अनुशासनहीन लोग, निरंकुश बकवादी और धोखा देनेवाले हैं; विशेष करके खतनावालों में से। (IN)

तीतुस 1:11 इनका मुँह बन्द करना चाहिए: ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखाकर घर के घर बिगाड़ देते हैं। (IN)

तीतुस 1:12 ¶ उन्हीं में से एक जन ने जो उन्हीं का भविष्यद्वक्ता हैं, कहा है, “क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं।” (IN)

तीतुस 1:13 यह गवाही सच है, इसलिए उन्हें कड़ाई से चेतावनी दिया कर, कि वे विश्वास में पक्के हो जाएँ। (IN)

तीतुस 1:14 ¶ यहूदियों की कथा कहानियों और उन मनुष्यों की आज्ञाओं पर मन न लगाएँ, जो सत्य से भटक जाते हैं। (IN)

तीतुस 1:15 ¶ शुद्ध लोगों के लिये सब वस्तुएँ शुद्ध हैं, पर अशुद्ध और अविश्वासियों के लिये कुछ भी शुद्ध नहीं वरन् उनकी बुद्धि और विवेक दोनों अशुद्ध हैं। (IN)

तीतुस 1:16 वे कहते हैं, कि हम परमेश्‍वर को जानते हैं पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं, क्योंकि वे घृणित और आज्ञा न माननेवाले हैं और किसी अच्छे काम के योग्य नहीं। (IN)

तीतुस 2:1 ¶ पर तू, ऐसी बातें कहा कर जो खरे सिद्धांत के योग्य हैं। (IN)

तीतुस 2:2 अर्थात् वृद्ध पुरुष सचेत और गम्भीर और संयमी हों, और उनका विश्वास और प्रेम और धीरज पक्का हो। (IN)

तीतुस 2:3 ¶ इसी प्रकार बूढ़ी स्त्रियों का चाल चलन भक्तियुक्त लोगों के समान हो, वे दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नहीं; पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों। (IN)

तीतुस 2:4 ताकि वे जवान स्त्रियों को चेतावनी देती रहें, कि अपने पतियों और बच्चों से प्रेम रखें; (IN)

तीतुस 2:5 और संयमी, पतिव्रता, घर का कारबार करनेवाली, भली और अपने-अपने पति के अधीन रहनेवाली हों, ताकि परमेश्‍वर के वचन की निन्दा न होने पाए। (IN)

तीतुस 2:6 ¶ ऐसे ही जवान पुरुषों को भी समझाया कर, कि संयमी हों। (IN)

तीतुस 2:7 सब बातों में अपने आप को भले कामों का नमूना बना; तेरे उपदेश में सफाई, गम्भीरता (IN)

तीतुस 2:8 और ऐसी खराई पाई जाए, कि कोई उसे बुरा न कह सके; जिससे विरोधी हम पर कोई दोष लगाने का अवसर न पा कर लज्जित हों। (IN)

तीतुस 2:9 ¶ दासों को समझा, कि अपने-अपने स्वामी के अधीन रहें, और सब बातों में उन्हें प्रसन्‍न रखें, और उलटकर जवाब न दें; (IN)

तीतुस 2:10 चोरी चालाकी न करें; पर सब प्रकार से पूरे विश्वासी निकलें, कि वे सब बातों में हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर के उपदेश की शोभा बढ़ा दें। (IN)

तीतुस 2:11 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर का अनुग्रह प्रगट है, जो सब मनुष्यों में उद्धार लाने में सक्षम है। (IN)

तीतुस 2:12 और हमें चिताता है, कि हम अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर इस युग में संयम और धार्मिकता से और भक्ति से जीवन बिताएँ; (IN)

तीतुस 2:13 और उस धन्य आशा की अर्थात् अपने महान परमेश्‍वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की महिमा के प्रगट होने की प्रतीक्षा करते रहें। (IN)

तीतुस 2:14 ¶ जिस ने अपने आप को हमारे लिये दे दिया, कि हमें हर प्रकार के अधर्म से छुड़ा ले, और शुद्ध करके अपने लिये एक ऐसी जाति बना ले जो भले-भले कामों में सरगर्म हो। (IN)

तीतुस 2:15 ¶ पूरे अधिकार के साथ ये बातें कह और समझा और सिखाता रह। कोई तुझे तुच्छ न जानने पाए। (IN)

तीतुस 3:1 ¶ लोगों को सुधि दिला, कि हाकिमों और अधिकारियों के अधीन रहें, और उनकी आज्ञा मानें, और हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रहे, (IN)

तीतुस 3:2 किसी को बदनाम न करें; झगड़ालू न हों; पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें। (IN)

तीतुस 3:3 ¶ क्योंकि हम भी पहले, निर्बुद्धि और आज्ञा न माननेवाले, और भ्रम में पड़े हुए, और विभिन्न प्रकार की अभिलाषाओं और सुख-विलास के दासत्व में थे, और बैर-भाव, और डाह करने में जीवन निर्वाह करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे। (IN)

तीतुस 3:4 ¶ पर जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की भलाई, और मनुष्यों पर उसका प्रेम प्रकट हुआ (IN)

तीतुस 3:5 तो उसने हमारा उद्धार किया और यह धार्मिक कामों के कारण नहीं, जो हमने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार, नये जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ। (IN)

तीतुस 3:6 ¶ जिसे उसने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर अधिकाई से उण्डेला। (IN)

तीतुस 3:7 जिससे हम उसके अनुग्रह से धर्मी ठहरकर, अनन्त जीवन की आशा के अनुसार वारिस बनें। (IN)

तीतुस 3:8 ¶ यह बात सच है, और मैं चाहता हूँ, कि तू इन बातों के विषय में दृढ़ता से बोले इसलिए कि जिन्होंने परमेश्‍वर पर विश्वास किया है, वे भले-भले कामों में लगे रहने का ध्यान रखें ये बातें भली, और मनुष्यों के लाभ की हैं। (IN)

तीतुस 3:9 ¶ पर मूर्खता के विवादों, और वंशावलियों, और बैर विरोध, और उन झगड़ों से, जो व्यवस्था के विषय में हों बचा रह; क्योंकि वे निष्फल और व्यर्थ हैं। (IN)

तीतुस 3:10 किसी पाखण्डी को एक दो बार समझा बुझाकर उससे अलग रह। (IN)

तीतुस 3:11 यह जानकर कि ऐसा मनुष्य भटक गया है, और अपने आप को दोषी ठहराकर पाप करता रहता है। (IN)

तीतुस 3:12 ¶ जब मैं तेरे पास अरतिमास या तुखिकुस को भेजूँ, तो मेरे पास निकुपुलिस आने का यत्न करना: क्योंकि मैंने वहीं जाड़ा काटने का निश्चय किया है। (IN)

तीतुस 3:13 जेनास व्यवस्थापक और अपुल्लोस को यत्न करके आगे पहुँचा दे, और देख, कि उन्हें किसी वस्तु की घटी न होने पाए। (IN)

तीतुस 3:14 ¶ हमारे लोग भी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अच्छे कामों में लगे रहना सीखें ताकि निष्फल न रहें। (IN)

तीतुस 3:15 ¶ मेरे सब साथियों का तुझे नमस्कार और जो विश्वास के कारण हम से प्रेम रखते हैं, उनको नमस्कार। तुम सब पर अनुग्रह होता रहे। (IN)

फिलेमोन 1:1 ¶ पौलुस की ओर से जो मसीह यीशु का कैदी है, और भाई तीमुथियुस की ओर से हमारे प्रिय सहकर्मी फिलेमोन। (IN)

फिलेमोन 1:2 और बहन अफफिया, और हमारे साथी योद्धा अरखिप्पुस और फिलेमोन के घर की कलीसिया के नाम। (IN)

फिलेमोन 1:3 हमारे पिता परमेश्‍वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे। (IN)

फिलेमोन 1:4 ¶ मैं सदा परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ; और अपनी प्रार्थनाओं में भी तुझे स्मरण करता हूँ। (IN)

फिलेमोन 1:5 क्योंकि मैं तेरे उस प्रेम और विश्वास की चर्चा सुनकर, जो प्रभु यीशु पर और सब पवित्र लोगों के साथ है। (IN)

फिलेमोन 1:6 मैं प्रार्थना करता हूँ कि, विश्वास में तुम्हारी सहभागिता हर अच्छी बात के ज्ञान के लिए प्रभावी हो जो मसीह में हमारे पास है। (IN)

फिलेमोन 1:7 क्योंकि हे भाई, मुझे तेरे प्रेम से बहुत आनन्द और शान्ति मिली है, इसलिए, कि तेरे द्वारा पवित्र लोगों के मन हरे भरे हो गए हैं। (IN)

फिलेमोन 1:8 ¶ इसलिए यद्यपि मुझे मसीह में बड़ा साहस है, कि जो बात ठीक है, उसकी आज्ञा तुझे दूँ। (IN)

फिलेमोन 1:9 तो भी मुझ बूढ़े पौलुस को जो अब मसीह यीशु के लिये कैदी हूँ, यह और भी भला जान पड़ा कि प्रेम से विनती करूँ। (IN)

फिलेमोन 1:10 ¶ मैं अपने बच्चे उनेसिमुस के लिये जो मुझसे मेरी कैद में जन्मा है तुझ से विनती करता हूँ। (IN)

फिलेमोन 1:11 वह तो पहले तेरे कुछ काम का न था, पर अब तेरे और मेरे दोनों के बड़े काम का है। (IN)

फिलेमोन 1:12 उसी को अर्थात् जो मेरे हृदय का टुकड़ा है, मैंने उसे तेरे पास लौटा दिया है। (IN)

फिलेमोन 1:13 उसे मैं अपने ही पास रखना चाहता था कि तेरी ओर से इस कैद में जो सुसमाचार के कारण हैं, मेरी सेवा करे। (IN)

फिलेमोन 1:14 ¶ पर मैंने तेरी इच्छा बिना कुछ भी करना न चाहा कि तेरा यह उपकार दबाव से नहीं पर आनन्द से हो। (IN)

फिलेमोन 1:15 क्योंकि क्या जाने वह तुझ से कुछ दिन तक के लिये इसी कारण अलग हुआ कि सदैव तेरे निकट रहे। (IN)

फिलेमोन 1:16 परन्तु अब से दास के समान नहीं, वरन् दास से भी उत्तम, अर्थात् भाई के समान रहे जो मेरा तो विशेष प्रिय है ही, पर अब शरीर में और प्रभु में भी, तेरा भी विशेष प्रिय हो। (IN)

फिलेमोन 1:17 ¶ यदि तू मुझे अपना सहभागी समझता है, तो उसे इस प्रकार ग्रहण कर जैसे मुझे। (IN)

फिलेमोन 1:18 और यदि उसने तेरी कुछ हानि की है, या उस पर तेरा कुछ आता है, तो मेरे नाम पर लिख ले। (IN)

फिलेमोन 1:19 मैं पौलुस अपने हाथ से लिखता हूँ, कि मैं आप भर दूँगा; और इसके कहने की कुछ आवश्यकता नहीं, कि मेरा कर्ज जो तुझ पर है वह तू ही है। (IN)

फिलेमोन 1:20 हे भाई, यह आनन्द मुझे प्रभु में तेरी ओर से मिले, मसीह में मेरे जी को हरा भरा कर दे। (IN)

फिलेमोन 1:21 ¶ मैं तेरे आज्ञाकारी होने का भरोसा रखकर, तुझे लिखता हूँ और यह जानता हूँ, कि जो कुछ मैं कहता हूँ, तू उससे कहीं बढ़कर करेगा। (IN)

फिलेमोन 1:22 और यह भी, कि मेरे लिये ठहरने की जगह तैयार रख; मुझे आशा है, कि तुम्हारी प्रार्थनाओं के द्वारा मैं तुम्हें दे दिया जाऊँगा। (IN)

फिलेमोन 1:23 ¶ इपफ्रास जो मसीह यीशु में मेरे साथ कैदी है (IN)

फिलेमोन 1:24 और मरकुस और अरिस्तर्खुस और देमास और लूका जो मेरे सहकर्मी है; इनका तुझे नमस्कार। (IN)

फिलेमोन 1:25 ¶ हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा पर होता रहे। आमीन। (IN)

इब्रानियों 1:1 ¶ पूर्व युग में परमेश्‍वर ने पूर्वजों से थोड़ा-थोड़ा करके और भाँति-भाँति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें की, (IN)

इब्रानियों 1:2 पर इन अन्तिम दिनों में हम से अपने पुत्र के द्वारा बातें की, जिसे उसने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया और उसी के द्वारा उसने सारी सृष्टि भी रची है। (IN)

इब्रानियों 1:3 वह उसकी महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है, और सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ्य के वचन से संभालता है: वह पापों को धोकर ऊँचे स्थानों पर महामहिमन् के दाहिने जा बैठा। (IN)

इब्रानियों 1:4 ¶ और स्वर्गदूतों से उतना ही उत्तम ठहरा, जितना उसने उनसे बड़े पद का वारिस होकर उत्तम नाम पाया। (IN)

इब्रानियों 1:5 ¶ क्योंकि स्वर्गदूतों में से उसने कब किसी से कहा, (IN)

इब्रानियों 1:6 ¶ और जब पहलौठे को जगत में फिर लाता है, तो कहता है, “परमेश्‍वर के सब स्वर्गदूत उसे दण्डवत् करें।” (IN)

इब्रानियों 1:7 और स्वर्गदूतों के विषय में यह कहता है, (IN)

इब्रानियों 1:8 ¶ परन्तु पुत्र के विषय में कहता है, (IN)

इब्रानियों 1:9 तूने धार्मिकता से प्रेम और अधर्म से बैर रखा; (IN)

इब्रानियों 1:10 और यह कि, “हे प्रभु, आदि में तूने पृथ्वी की नींव डाली, (IN)

इब्रानियों 1:11 वे तो नाश हो जाएँगे; परन्तु तू बना रहेगा और (IN)

इब्रानियों 1:12 और तू उन्हें चादर के समान लपेटेगा, (IN)

इब्रानियों 1:13 ¶ और स्वर्गदूतों में से उसने किस से कभी कहा, (IN)

इब्रानियों 1:14 ¶ क्या वे सब परमेश्‍वर की सेवा टहल करनेवाली आत्माएँ नहीं; जो उद्धार पानेवालों के लिये सेवा करने को भेजी जाती हैं? (IN)

इब्रानियों 2:1 ¶ इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हमने सुनी हैं अधिक ध्यान दे, ऐसा न हो कि बहक कर उनसे दूर चले जाएँ। (IN)

इब्रानियों 2:2 ¶ क्योंकि जो वचन स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया था, जब वह स्थिर रहा और हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का ठीक-ठीक बदला मिला। (IN)

इब्रानियों 2:3 तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से उपेक्षा करके कैसे बच सकते हैं? जिसकी चर्चा पहले-पहल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ। (IN)

इब्रानियों 2:4 और साथ ही परमेश्‍वर भी अपनी इच्छा के अनुसार चिन्हों, और अद्भुत कामों, और नाना प्रकार के सामर्थ्य के कामों, और पवित्र आत्मा के वरदानों के बाँटने के द्वारा इसकी गवाही देता रहा। (IN)

इब्रानियों 2:5 ¶ उसने उस आनेवाले जगत को जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन न किया। (IN)

इब्रानियों 2:6 वरन् किसी ने कहीं, यह गवाही दी है, (IN)

इब्रानियों 2:7 तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया; (IN)

इब्रानियों 2:8 तूने सब कुछ उसके पाँवों के नीचे कर दिया।” (IN)

इब्रानियों 2:9 ¶ पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुःख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्‍वर के अनुग्रह से वह हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे। (IN)

इब्रानियों 2:10 क्योंकि जिसके लिये सब कुछ है, और जिसके द्वारा सब कुछ है, उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुँचाए, तो उनके उद्धार के कर्ता को दुःख उठाने के द्वारा सिद्ध करे। (IN)

इब्रानियों 2:11 ¶ क्योंकि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जाते हैं, सब एक ही मूल से हैं, अर्थात् परमेश्‍वर, इसी कारण वह उन्हें भाई कहने से नहीं लजाता। (IN)

इब्रानियों 2:12 पर वह कहता है, (IN)

इब्रानियों 2:13 ¶ और फिर यह, (IN)

इब्रानियों 2:14 ¶ इसलिए जब कि बच्चे माँस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात् शैतान को निकम्मा कर दे, (IN)

इब्रानियों 2:15 और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फँसे थे, उन्हें छुड़ा ले। (IN)

इब्रानियों 2:16 ¶ क्योंकि वह तो स्वर्गदूतों को नहीं वरन् अब्राहम के वंश को संभालता है। (IN)

इब्रानियों 2:17 इस कारण उसको चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने; जिससे वह उन बातों में जो परमेश्‍वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने ताकि लोगों के पापों के लिये प्रायश्चित करे। (IN)

इब्रानियों 2:18 क्योंकि जब उसने परीक्षा की दशा में दुःख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है, जिनकी परीक्षा होती है। (IN)

इब्रानियों 3:1 ¶ इसलिए, हे पवित्र भाइयों, तुम जो स्वर्गीय बुलाहट में भागी हो, उस प्रेरित और महायाजक यीशु पर जिसे हम अंगीकार करते हैं ध्यान करो। (IN)

इब्रानियों 3:2 जो अपने नियुक्त करनेवाले के लिये विश्वासयोग्य था, जैसा मूसा भी परमेश्‍वर के सारे घर में था। (IN)

इब्रानियों 3:3 क्योंकि यीशु मूसा से इतना बढ़कर महिमा के योग्य समझा गया है, जितना कि घर का बनानेवाला घर से बढ़कर आदर रखता है। (IN)

इब्रानियों 3:4 क्योंकि हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, पर जिस ने सब कुछ बनाया वह परमेश्‍वर है। (IN)

इब्रानियों 3:5 ¶ मूसा तो परमेश्‍वर के सारे घर में सेवक के समान विश्वासयोग्य रहा, कि जिन बातों का वर्णन होनेवाला था, उनकी गवाही दे। (IN)

इब्रानियों 3:6 पर मसीह पुत्र के समान परमेश्‍वर के घर का अधिकारी है, और उसका घर हम हैं, यदि हम साहस पर, और अपनी आशा के गर्व पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें। (IN)

इब्रानियों 3:7 ¶ इसलिए जैसा पवित्र आत्मा कहता है, (IN)

इब्रानियों 3:8 तो अपने मन को कठोर न करो, (IN)

इब्रानियों 3:9 जहाँ तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे जाँच कर परखा (IN)

इब्रानियों 3:10 इस कारण मैं उस समय के लोगों से क्रोधित रहा, (IN)

इब्रानियों 3:11 तब मैंने क्रोध में आकर शपथ खाई, (IN)

इब्रानियों 3:12 ¶ हे भाइयों, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीविते परमेश्‍वर से दूर हटा ले जाए। (IN)

इब्रानियों 3:13 वरन् जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए। (IN)

इब्रानियों 3:14 ¶ क्योंकि हम मसीह के भागीदार हुए हैं, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें। (IN)

इब्रानियों 3:15 ¶ जैसा कहा जाता है, (IN)

इब्रानियों 3:16 ¶ भला किन लोगों ने सुनकर भी क्रोध दिलाया? क्या उन सब ने नहीं जो मूसा के द्वारा मिस्र से निकले थे? (IN)

इब्रानियों 3:17 और वह चालीस वर्ष तक किन लोगों से क्रोधित रहा? क्या उन्हीं से नहीं, जिन्होंने पाप किया, और उनके शव जंगल में पड़े रहे? (IN)

इब्रानियों 3:18 और उसने किन से शपथ खाई, कि तुम मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाओगे: केवल उनसे जिन्होंने आज्ञा न मानी? (IN)

इब्रानियों 3:19 इस प्रकार हम देखते हैं, कि वे अविश्वास के कारण प्रवेश न कर सके। (IN)

इब्रानियों 4:1 ¶ इसलिए जब कि उसके विश्राम में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा अब तक है, तो हमें डरना चाहिए; ऐसा ने हो, कि तुम में से कोई जन उससे वंचित रह जाए। (IN)

इब्रानियों 4:2 क्योंकि हमें उन्हीं के समान सुसमाचार सुनाया गया है, पर सुने हुए वचन से उन्हें कुछ लाभ न हुआ; क्योंकि सुननेवालों के मन में विश्वास के साथ नहीं बैठा। (IN)

इब्रानियों 4:3 ¶ और हम जिन्होंने विश्वास किया है, उस विश्राम में प्रवेश करते हैं; (IN)

इब्रानियों 4:4 ¶ क्योंकि सातवें दिन के विषय में उसने कहीं ऐसा कहा है, (IN)

इब्रानियों 4:5 और इस जगह फिर यह कहता है, (IN)

इब्रानियों 4:6 ¶ तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्राम में प्रवेश करें, और इस्राएलियों को, जिन्हें उसका सुसमाचार पहले सुनाया गया, उन्होंने आज्ञा न मानने के कारण उसमें प्रवेश न किया। (IN)

इब्रानियों 4:7 तो फिर वह किसी विशेष दिन को ठहराकर इतने दिन के बाद दाऊद की पुस्तक में उसे ‘आज का दिन’ कहता है, जैसे पहले कहा गया, (IN)

इब्रानियों 4:8 ¶ और यदि यहोशू उन्हें विश्राम में प्रवेश करा लेता, तो उसके बाद दूसरे दिन की चर्चा न होती। (IN)

इब्रानियों 4:9 इसलिए जान लो कि परमेश्‍वर के लोगों के लिये सब्त का विश्राम बाकी है। (IN)

इब्रानियों 4:10 क्योंकि जिस ने उसके विश्राम में प्रवेश किया है, उसने भी परमेश्‍वर के समान अपने कामों को पूरा करके विश्राम किया है। (IN)

इब्रानियों 4:11 इसलिए हम उस विश्राम में प्रवेश करने का प्रयत्न करें, ऐसा न हो, कि कोई जन उनके समान आज्ञा न मानकर गिर पड़े। (IN)

इब्रानियों 4:12 ¶ क्योंकि परमेश्‍वर का वचन जीवित, प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत तेज है, प्राण, आत्मा को, गाँठ-गाँठ, और गूदे-गूदे को अलग करके, आर-पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है। (IN)

इब्रानियों 4:13 और सृष्टि की कोई वस्तु परमेश्‍वर से छिपी नहीं है वरन् जिसे हमें लेखा देना है, उसकी आँखों के सामने सब वस्तुएँ खुली और प्रगट हैं। (IN)

इब्रानियों 4:14 ¶ इसलिए, जब हमारा ऐसा बड़ा महायाजक है, जो स्वर्गों से होकर गया है, अर्थात् परमेश्‍वर का पुत्र यीशु; तो आओ, हम अपने अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें। (IN)

इब्रानियों 4:15 क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुःखी न हो सके; वरन् वह सब बातों में हमारे समान परखा तो गया, तो भी निष्पाप निकला। (IN)

इब्रानियों 4:16 इसलिए आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट साहस बाँधकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे। (IN)

इब्रानियों 5:1 ¶ क्योंकि हर एक महायाजक मनुष्यों में से लिया जाता है, और मनुष्यों ही के लिये उन बातों के विषय में जो परमेश्‍वर से सम्बन्ध रखती हैं, ठहराया जाता है: कि भेंट और पापबलि चढ़ाया करे। (IN)

इब्रानियों 5:2 और वह अज्ञानियों, और भूले भटकों के साथ नर्मी से व्यवहार कर सकता है इसलिए कि वह आप भी निर्बलता से घिरा है। (IN)

इब्रानियों 5:3 और इसलिए उसे चाहिए, कि जैसे लोगों के लिये, वैसे ही अपने लिये भी पाप-बलि चढ़ाया करे। (IN)

इब्रानियों 5:4 ¶ और यह आदर का पद कोई अपने आप से नहीं लेता, जब तक कि हारून के समान परमेश्‍वर की ओर से ठहराया न जाए। (IN)

इब्रानियों 5:5 ¶ वैसे ही मसीह ने भी महायाजक बनने की महिमा अपने आप से नहीं ली, पर उसको उसी ने दी, जिस ने उससे कहा था, (IN)

इब्रानियों 5:6 ¶ इसी प्रकार वह दूसरी जगह में भी कहता है, (IN)

इब्रानियों 5:7 ¶ यीशु ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार-पुकारकर, और आँसू बहा-बहाकर उससे जो उसको मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएँ और विनती की और भक्ति के कारण उसकी सुनी गई। (IN)

इब्रानियों 5:8 और पुत्र होने पर भी, उसने दुःख उठा-उठाकर आज्ञा माननी सीखी। (IN)

इब्रानियों 5:9 ¶ और सिद्ध बनकर, अपने सब आज्ञा माननेवालों के लिये सदा काल के उद्धार का कारण हो गया। (IN)

इब्रानियों 5:10 और उसे परमेश्‍वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक का पद मिला। (IN)

इब्रानियों 5:11 ¶ इसके विषय में हमें बहुत सी बातें कहनी हैं, जिनका समझाना भी कठिन है; इसलिए कि तुम ऊँचा सुनने लगे हो। (IN)

इब्रानियों 5:12 ¶ समय के विचार से तो तुम्हें गुरु हो जाना चाहिए था, तो भी यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्‍वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए? तुम तो ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। (IN)

इब्रानियों 5:13 क्योंकि दूध पीनेवाले को तो धार्मिकता के वचन की पहचान नहीं होती, क्योंकि वह बच्चा है। (IN)

इब्रानियों 5:14 पर अन्न सयानों के लिये है, जिनकी ज्ञानेन्द्रियाँ अभ्यास करते-करते, भले-बुरे में भेद करने में निपुण हो गई हैं। (IN)

इब्रानियों 6:1 ¶ इसलिए आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएँ, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्‍वर पर विश्वास करने, (IN)

इब्रानियों 6:2 और बपतिस्मा और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अनन्त न्याय की शिक्षारूपी नींव, फिर से न डालें। (IN)

इब्रानियों 6:3 और यदि परमेश्‍वर चाहे, तो हम यही करेंगे। (IN)

इब्रानियों 6:4 ¶ क्योंकि जिन्होंने एक बार ज्योति पाई है, और जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं और पवित्र आत्मा के भागी हो गए हैं, (IN)

इब्रानियों 6:5 और परमेश्‍वर के उत्तम वचन का और आनेवाले युग की सामर्थ्य का स्वाद चख चुके हैं। (IN)

इब्रानियों 6:6 यदि वे भटक जाएँ; तो उन्हें मन फिराव के लिये फिर नया बनाना अनहोना है; क्योंकि वे परमेश्‍वर के पुत्र को अपने लिये फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं और प्रगट में उस पर कलंक लगाते हैं। (IN)

इब्रानियों 6:7 ¶ क्योंकि जो भूमि वर्षा के पानी को जो उस पर बार-बार पड़ता है, पी पीकर जिन लोगों के लिये वह जोती-बोई जाती है, उनके काम का साग-पात उपजाती है, वह परमेश्‍वर से आशीष पाती है। (IN)

इब्रानियों 6:8 पर यदि वह झाड़ी और ऊँटकटारे उगाती है, तो निकम्मी और श्रापित होने पर है, और उसका अन्त जलाया जाना है। (IN)

इब्रानियों 6:9 ¶ पर हे प्रियों यद्यपि हम ये बातें कहते हैं तो भी तुम्हारे विषय में हम इससे अच्छी और उद्धारवाली बातों का भरोसा करते हैं। (IN)

इब्रानियों 6:10 क्योंकि परमेश्‍वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो। (IN)

इब्रानियों 6:11 ¶ पर हम बहुत चाहते हैं, कि तुम में से हर एक जन अन्त तक पूरी आशा के लिये ऐसा ही प्रयत्न करता रहे। (IN)

इब्रानियों 6:12 ताकि तुम आलसी न हो जाओ; वरन् उनका अनुकरण करो, जो विश्वास और धीरज के द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस होते हैं। (IN)

इब्रानियों 6:13 ¶ और परमेश्‍वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा देते समय जब कि शपथ खाने के लिये किसी को अपने से बड़ा न पाया, तो अपनी ही शपथ खाकर कहा, (IN)

इब्रानियों 6:14 “मैं सचमुच तुझे बहुत आशीष दूँगा, और तेरी सन्तान को बढ़ाता जाऊँगा।” (IN)

इब्रानियों 6:15 और इस रीति से उसने धीरज धरकर प्रतिज्ञा की हुई बात प्राप्त की। (IN)

इब्रानियों 6:16 ¶ मनुष्य तो अपने से किसी बड़े की शपथ खाया करते हैं और उनके हर एक विवाद का फैसला शपथ से पक्का होता है। (IN)

इब्रानियों 6:17 इसलिए जब परमेश्‍वर ने प्रतिज्ञा के वारिसों पर और भी साफ रीति से प्रगट करना चाहा, कि उसकी मनसा बदल नहीं सकती तो शपथ को बीच में लाया। (IN)

इब्रानियों 6:18 ताकि दो बे-बदल बातों के द्वारा जिनके विषय में परमेश्‍वर का झूठा ठहरना अनहोना है, हमारा दृढ़ता से ढाढ़स बन्ध जाए, जो शरण लेने को इसलिए दौड़े हैं, कि उस आशा को जो सामने रखी हुई है प्राप्त करें। (IN)

इब्रानियों 6:19 ¶ वह आशा हमारे प्राण के लिये ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है, और परदे के भीतर तक पहुँचता है। (IN)

इब्रानियों 6:20 जहाँ यीशु ने मलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महायाजक बनकर, हमारे लिये अगुआ के रूप में प्रवेश किया है। (IN)

इब्रानियों 7:1 ¶ यह मलिकिसिदक शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्‍वर का याजक, जब अब्राहम राजाओं को मारकर लौटा जाता था, तो इसी ने उससे भेंट करके उसे आशीष दी, (IN)

इब्रानियों 7:2 इसी को अब्राहम ने सब वस्तुओं का दसवाँ अंश भी दिया। यह पहले अपने नाम के अर्थ के अनुसार, धार्मिकता का राजा और फिर शालेम अर्थात् शान्ति का राजा है। (IN)

इब्रानियों 7:3 जिसका न पिता, न माता, न वंशावली है, जिसके न दिनों का आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्‍वर के पुत्र के स्वरूप ठहरकर वह सदा के लिए याजक बना रहता है। (IN)

इब्रानियों 7:4 ¶ अब इस पर ध्यान करो कि यह कैसा महान था जिसको कुलपति अब्राहम ने अच्छे से अच्छे माल की लूट का दसवाँ अंश दिया। (IN)

इब्रानियों 7:5 लेवी की सन्तान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है, कि लोगों, अर्थात् अपने भाइयों से, चाहे वे अब्राहम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवाँ अंश लें। (IN)

इब्रानियों 7:6 पर इसने, जो उनकी वंशावली में का भी न था अब्राहम से दसवाँ अंश लिया और जिसे प्रतिज्ञाएँ मिली थीं उसे आशीष दी। (IN)

इब्रानियों 7:7 ¶ और उसमें संदेह नहीं, कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। (IN)

इब्रानियों 7:8 और यहाँ तो मरनहार मनुष्य दसवाँ अंश लेते हैं पर वहाँ वही लेता है, जिसकी गवाही दी जाती है, कि वह जीवित है। (IN)

इब्रानियों 7:9 तो हम यह भी कह सकते हैं, कि लेवी ने भी, जो दसवाँ अंश लेता है, अब्राहम के द्वारा दसवाँ अंश दिया। (IN)

इब्रानियों 7:10 क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय यह अपने पिता की देह में था। (IN)

इब्रानियों 7:11 ¶ तब यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिसके सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए? (IN)

इब्रानियों 7:12 क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है। (IN)

इब्रानियों 7:13 ¶ क्योंकि जिसके विषय में ये बातें कही जाती हैं, वह दूसरे गोत्र का है, जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की। (IN)

इब्रानियों 7:14 तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की। (IN)

इब्रानियों 7:15 ¶ हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रकट हो जाता है, जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्‍पन्‍न होनेवाला था। (IN)

इब्रानियों 7:16 जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ्य के अनुसार नियुक्त हो। (IN)

इब्रानियों 7:17 क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, (IN)

इब्रानियों 7:18 ¶ इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। (IN)

इब्रानियों 7:19 (इसलिए कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम परमेश्‍वर के समीप जा सकते हैं। (IN)

इब्रानियों 7:20 ¶ और इसलिए मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई। (IN)

इब्रानियों 7:21 क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्त किया गया जिस ने उसके विषय में कहा, (IN)

इब्रानियों 7:22 ¶ इस कारण यीशु एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा। (IN)

इब्रानियों 7:23 वे तो बहुत से याजक बनते आए, इसका कारण यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी। (IN)

इब्रानियों 7:24 पर यह युगानुयुग रहता है; इस कारण उसका याजक पद अटल है। (IN)

इब्रानियों 7:25 ¶ इसलिए जो उसके द्वारा परमेश्‍वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा-पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है। (IN)

इब्रानियों 7:26 क्योंकि ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊँचा किया हुआ हो। (IN)

इब्रानियों 7:27 ¶ और उन महायाजकों के समान उसे आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिये बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उसने अपने आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार निपटा दिया। (IN)

इब्रानियों 7:28 क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है; परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया है। (IN)

इब्रानियों 8:1 ¶ अब जो बातें हम कह रहे हैं, उनमें से सबसे बड़ी बात यह है, कि हमारा ऐसा महायाजक है, जो स्वर्ग पर महामहिमन् के सिंहासन के दाहिने जा बैठा। (IN)

इब्रानियों 8:2 और पवित्रस्‍थान और उस सच्चे तम्बू का सेवक हुआ, जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, वरन् प्रभु ने खड़ा किया था। (IN)

इब्रानियों 8:3 ¶ क्योंकि हर एक महायाजक भेंट, और बलिदान चढ़ाने के लिये ठहराया जाता है, इस कारण अवश्य है, कि इसके पास भी कुछ चढ़ाने के लिये हो। (IN)

इब्रानियों 8:4 और यदि मसीह पृथ्वी पर होता तो कभी याजक न होता, इसलिए कि पृथ्वी पर व्यवस्था के अनुसार भेंट चढ़ानेवाले तो हैं। (IN)

इब्रानियों 8:5 जो स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब की सेवा करते हैं, जैसे जब मूसा तम्बू बनाने पर था, तो उसे यह चेतावनी मिली, “देख जो नमूना तुझे पहाड़ पर दिखाया गया था, उसके अनुसार सब कुछ बनाना।” (IN)

इब्रानियों 8:6 ¶ पर उन याजकों से बढ़कर सेवा यीशु को मिली, क्योंकि वह और भी उत्तम वाचा का मध्यस्थ ठहरा, जो और उत्तम प्रतिज्ञाओं के सहारे बाँधी गई है। (IN)

इब्रानियों 8:7 ¶ क्योंकि यदि वह पहली वाचा निर्दोष होती, तो दूसरी के लिये अवसर न ढूँढ़ा जाता। (IN)

इब्रानियों 8:8 ¶ पर परमेश्‍वर लोगों पर दोष लगाकर कहता है, (IN)

इब्रानियों 8:9 यह उस वाचा के समान न होगी, जो मैंने उनके पूर्वजों के साथ उस समय बाँधी थी, (IN)

इब्रानियों 8:10 फिर प्रभु कहता है, (IN)

इब्रानियों 8:11 और हर एक अपने देशवाले को (IN)

इब्रानियों 8:12 क्योंकि मैं उनके अधर्म के विषय में दयावन्त हूँगा, (IN)

इब्रानियों 8:13 ¶ नई वाचा की स्थापना से उसने प्रथम वाचा को पुराना ठहराया, और जो वस्तु पुरानी और जीर्ण हो जाती है उसका मिट जाना अनिवार्य है। (IN)

इब्रानियों 9:1 ¶ उस पहली वाचा में भी सेवा के नियम थे; और ऐसा पवित्रस्‍थान था जो इस जगत का था। (IN)

इब्रानियों 9:2 अर्थात् एक तम्बू बनाया गया, पहले तम्बू में दीवट, और मेज, और भेंट की रोटियाँ थीं; और वह पवित्रस्‍थान कहलाता है। (IN)

इब्रानियों 9:3 ¶ और दूसरे परदे के पीछे वह तम्बू था, जो परमपवित्र स्थान कहलाता है। (IN)

इब्रानियों 9:4 उसमें सोने की धूपदानी, और चारों ओर सोने से मढ़ा हुआ वाचा का सन्दूक और इसमें मन्ना से भरा हुआ सोने का मर्तबान और हारून की छड़ी जिसमें फूल फल आ गए थे और वाचा की पटियाँ थीं। (IN)

इब्रानियों 9:5 उसके ऊपर दोनों तेजोमय करूब थे, जो प्रायश्चित के ढक्कन पर छाया किए हुए थे: इन्हीं का एक-एक करके वर्णन करने का अभी अवसर नहीं है। (IN)

इब्रानियों 9:6 ¶ ये वस्तुएँ इस रीति से तैयार हो चुकीं, उस पहले तम्बू में तो याजक हर समय प्रवेश करके सेवा के काम सम्पन्न करते हैं, (IN)

इब्रानियों 9:7 पर दूसरे में केवल महायाजक वर्ष भर में एक ही बार जाता है; और बिना लहू लिये नहीं जाता; जिसे वह अपने लिये और लोगों की भूल चूक के लिये चढ़ाता है। (IN)

इब्रानियों 9:8 ¶ इससे पवित्र आत्मा यही दिखाता है, कि जब तक पहला तम्बू खड़ा है, तब तक पवित्रस्‍थान का मार्ग प्रगट नहीं हुआ। (IN)

इब्रानियों 9:9 और यह तम्बू तो वर्तमान समय के लिये एक दृष्टान्त है; जिसमें ऐसी भेंट और बलिदान चढ़ाए जाते हैं, जिनसे आराधना करनेवालों के विवेक सिद्ध नहीं हो सकते। (IN)

इब्रानियों 9:10 इसलिए कि वे केवल खाने-पीने की वस्तुओं, और भाँति-भाँति के स्नान विधि के आधार पर शारीरिक नियम हैं, जो सुधार के समय तक के लिये नियुक्त किए गए हैं। (IN)

इब्रानियों 9:11 ¶ परन्तु जब मसीह आनेवाली अच्छी-अच्छी वस्तुओं का महायाजक होकर आया, तो उसने और भी बड़े और सिद्ध तम्बू से होकर जो हाथ का बनाया हुआ नहीं, अर्थात् सृष्टि का नहीं। (IN)

इब्रानियों 9:12 और बकरों और बछड़ों के लहू के द्वारा नहीं, पर अपने ही लहू के द्वारा एक ही बार पवित्रस्‍थान में प्रवेश किया, और अनन्त छुटकारा प्राप्त किया। (IN)

इब्रानियों 9:13 ¶ क्योंकि जब बकरों और बैलों का लहू और बछिया की राख अपवित्र लोगों पर छिड़के जाने से शरीर की शुद्धता के लिये पवित्र करती है। (IN)

इब्रानियों 9:14 तो मसीह का लहू जिस ने अपने आप को सनातन आत्मा के द्वारा परमेश्‍वर के सामने निर्दोष चढ़ाया, तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामों से क्यों न शुद्ध करेगा, ताकि तुम जीविते परमेश्‍वर की सेवा करो। (IN)

इब्रानियों 9:15 और इसी कारण वह नई वाचा का मध्यस्थ है, ताकि उस मृत्यु के द्वारा जो पहली वाचा के समय के अपराधों से छुटकारा पाने के लिये हुई है, बुलाए हुए लोग प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त विरासत को प्राप्त करें। (IN)

इब्रानियों 9:16 ¶ क्योंकि जहाँ वाचा बाँधी गई है वहाँ वाचा बाँधनेवाले की मृत्यु का समझ लेना भी अवश्य है। (IN)

इब्रानियों 9:17 क्योंकि ऐसी वाचा मरने पर पक्की होती है, और जब तक वाचा बाँधनेवाला जीवित रहता है, तब तक वाचा काम की नहीं होती। (IN)

इब्रानियों 9:18 ¶ इसलिए पहली वाचा भी बिना लहू के नहीं बाँधी गई। (IN)

इब्रानियों 9:19 क्योंकि जब मूसा सब लोगों को व्यवस्था की हर एक आज्ञा सुना चुका, तो उसने बछड़ों और बकरों का लहू लेकर, पानी और लाल ऊन, और जूफा के साथ, उस पुस्तक पर और सब लोगों पर छिड़क दिया। (IN)

इब्रानियों 9:20 और कहा, “यह उस वाचा का लहू है, जिसकी आज्ञा परमेश्‍वर ने तुम्हारे लिये दी है।” (IN)

इब्रानियों 9:21 ¶ और इसी रीति से उसने तम्बू और सेवा के सारे सामान पर लहू छिड़का। (IN)

इब्रानियों 9:22 और व्यवस्था के अनुसार प्रायः सब वस्तुएँ लहू के द्वारा शुद्ध की जाती हैं; और बिना लहू बहाए क्षमा नहीं होती। (IN)

इब्रानियों 9:23 ¶ इसलिए अवश्य है, कि स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप इन बलिदानों के द्वारा शुद्ध किए जाएँ; पर स्वर्ग में की वस्तुएँ आप इनसे उत्तम बलिदानों के द्वारा शुद्ध की जातीं। (IN)

इब्रानियों 9:24 क्योंकि मसीह ने उस हाथ के बनाए हुए पवित्रस्‍थान में जो सच्चे पवित्रस्‍थान का नमूना है, प्रवेश नहीं किया, पर स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिये अब परमेश्‍वर के सामने दिखाई दे। (IN)

इब्रानियों 9:25 ¶ यह नहीं कि वह अपने आप को बार-बार चढ़ाए, जैसा कि महायाजक प्रति वर्ष दूसरे का लहू लिये पवित्रस्‍थान में प्रवेश किया करता है। (IN)

इब्रानियों 9:26 नहीं तो जगत की उत्पत्ति से लेकर उसको बार-बार दुःख उठाना पड़ता; पर अब युग के अन्त में वह एक बार प्रगट हुआ है, ताकि अपने ही बलिदान के द्वारा पाप को दूर कर दे। (IN)

इब्रानियों 9:27 ¶ और जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है। (IN)

इब्रानियों 9:28 वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ और जो लोग उसकी प्रतीक्षा करते हैं, उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप के दिखाई देगा। (IN)

इब्रानियों 10:1 ¶ क्योंकि व्यवस्था जिसमें आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है, पर उनका असली स्वरूप नहीं, इसलिए उन एक ही प्रकार के बलिदानों के द्वारा, जो प्रति वर्ष अचूक चढ़ाए जाते हैं, पास आनेवालों को कदापि सिद्ध नहीं कर सकती। (IN)

इब्रानियों 10:2 नहीं तो उनका चढ़ाना बन्द क्यों न हो जाता? इसलिए कि जब सेवा करनेवाले एक ही बार शुद्ध हो जाते, तो फिर उनका विवेक उन्हें पापी न ठहराता। (IN)

इब्रानियों 10:3 परन्तु उनके द्वारा प्रति वर्ष पापों का स्मरण हुआ करता है। (IN)

इब्रानियों 10:4 क्योंकि अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे। (IN)

इब्रानियों 10:5 ¶ इसी कारण मसीह जगत में आते समय कहता है, (IN)

इब्रानियों 10:6 होमबलियों और पापबलियों से तू प्रसन्‍न नहीं हुआ। (IN)

इब्रानियों 10:7 तब मैंने कहा, ‘देख, मैं आ गया हूँ, (पवित्रशास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्‍वर तेरी इच्छा पूरी करूँ’।” (IN)

इब्रानियों 10:8 ऊपर तो वह कहता है, “न तूने बलिदान और भेंट और होमबलियों और पापबलियों को चाहा, और न उनसे प्रसन्‍न हुआ,” यद्यपि ये बलिदान तो व्यवस्था के अनुसार चढ़ाए जाते हैं। (IN)

इब्रानियों 10:9 फिर यह भी कहता है, “देख, मैं आ गया हूँ, ताकि तेरी इच्छा पूरी करूँ,” अतः वह पहले को हटा देता है, ताकि दूसरे को स्थापित करे। (IN)

इब्रानियों 10:10 उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं। (IN)

इब्रानियों 10:11 ¶ और हर एक याजक तो खड़े होकर प्रतिदिन सेवा करता है, और एक ही प्रकार के बलिदान को जो पापों को कभी भी दूर नहीं कर सकते; बार-बार चढ़ाता है। (IN)

इब्रानियों 10:12 पर यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्‍वर के दाहिने जा बैठा। (IN)

इब्रानियों 10:13 और उसी समय से इसकी प्रतीक्षा कर रहा है, कि उसके बैरी उसके पाँवों के नीचे की चौकी बनें। (IN)

इब्रानियों 10:14 क्योंकि उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिये सिद्ध कर दिया है। (IN)

इब्रानियों 10:15 ¶ और पवित्र आत्मा भी हमें यही गवाही देता है; क्योंकि उसने पहले कहा था (IN)

इब्रानियों 10:16 “प्रभु कहता है; कि जो वाचा मैं (IN)

इब्रानियों 10:17 (फिर वह यह कहता है,) “मैं उनके पापों को, और उनके अधर्म के कामों को फिर कभी स्मरण न करूँगा।” (IN)

इब्रानियों 10:18 ¶ और जब इनकी क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा। (IN)

इब्रानियों 10:19 ¶ इसलिए हे भाइयों, जब कि हमें यीशु के लहू के द्वारा उस नये और जीविते मार्ग से पवित्रस्‍थान में प्रवेश करने का साहस हो गया है, (IN)

इब्रानियों 10:20 जो उसने परदे अर्थात् अपने शरीर में से होकर, हमारे लिये अभिषेक किया है, (IN)

इब्रानियों 10:21 और इसलिए कि हमारा ऐसा महान याजक है, जो परमेश्‍वर के घर का अधिकारी है। (IN)

इब्रानियों 10:22 तो आओ; हम सच्चे मन, और पूरे विश्वास के साथ, और विवेक का दोष दूर करने के लिये हृदय पर छिड़काव लेकर, और देह को शुद्ध जल से धुलवाकर परमेश्‍वर के समीप जाएँ। (IN)

इब्रानियों 10:23 ¶ और अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें; क्योंकि जिस ने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य है। (IN)

इब्रानियों 10:24 और प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। (IN)

इब्रानियों 10:25 और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों-ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों-त्यों और भी अधिक यह किया करो। (IN)

इब्रानियों 10:26 ¶ क्योंकि सच्चाई की पहचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान-बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। (IN)

इब्रानियों 10:27 हाँ, दण्ड की एक भयानक उम्मीद और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा। (IN)

इब्रानियों 10:28 ¶ जब कि मूसा की व्यवस्था का न माननेवाला दो या तीन जनों की गवाही पर, बिना दया के मार डाला जाता है। (IN)

इब्रानियों 10:29 तो सोच लो कि वह कितने और भी भारी दण्ड के योग्य ठहरेगा, जिस ने परमेश्‍वर के पुत्र को पाँवों से रौंदा, और वाचा के लहू को जिसके द्वारा वह पवित्र ठहराया गया था, अपवित्र जाना हैं, और अनुग्रह की आत्मा का अपमान किया। (IN)

इब्रानियों 10:30 ¶ क्योंकि हम उसे जानते हैं, जिस ने कहा, “पलटा लेना मेरा काम है, मैं ही बदला दूँगा।” और फिर यह, कि “प्रभु अपने लोगों का न्याय करेगा।” (IN)

इब्रानियों 10:31 जीविते परमेश्‍वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है। (IN)

इब्रानियों 10:32 ¶ परन्तु उन पहले दिनों को स्मरण करो, जिनमें तुम ज्योति पा कर दुःखों के बड़े संघर्ष में स्थिर रहे। (IN)

इब्रानियों 10:33 कुछ तो यह, कि तुम निन्दा, और क्लेश सहते हुए तमाशा बने, और कुछ यह, कि तुम उनके सहभागी हुए जिनकी दुर्दशा की जाती थी। (IN)

इब्रानियों 10:34 क्योंकि तुम कैदियों के दुःख में भी दुःखी हुए, और अपनी संपत्ति भी आनन्द से लुटने दी; यह जानकर, कि तुम्हारे पास एक और भी उत्तम और सर्वदा ठहरनेवाली संपत्ति है। (IN)

इब्रानियों 10:35 ¶ इसलिए, अपना साहस न छोड़ो क्योंकि उसका प्रतिफल बड़ा है। (IN)

इब्रानियों 10:36 क्योंकि तुम्हें धीरज रखना अवश्य है, ताकि परमेश्‍वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ। (IN)

इब्रानियों 10:37 “क्योंकि अब बहुत ही थोड़ा समय रह गया है (IN)

इब्रानियों 10:38 और मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा, (IN)

इब्रानियों 10:39 ¶ पर हम हटनेवाले नहीं, कि नाश हो जाएँ पर विश्वास करनेवाले हैं, कि प्राणों को बचाएँ। (IN)

इब्रानियों 11:1 ¶ अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है। (IN)

इब्रानियों 11:2 क्योंकि इसी के विषय में पूर्वजों की अच्छी गवाही दी गई। (IN)

इब्रानियों 11:3 विश्वास ही से हम जान जाते हैं, कि सारी सृष्टि की रचना परमेश्‍वर के वचन के द्वारा हुई है। यह नहीं, कि जो कुछ देखने में आता है, वह देखी हुई वस्तुओं से बना हो। (IN)

इब्रानियों 11:4 ¶ विश्वास ही से हाबिल ने कैन से उत्तम बलिदान परमेश्‍वर के लिये चढ़ाया; और उसी के द्वारा उसके धर्मी होने की गवाही भी दी गई: क्योंकि परमेश्‍वर ने उसकी भेंटों के विषय में गवाही दी; और उसी के द्वारा वह मरने पर भी अब तक बातें करता है। (IN)

इब्रानियों 11:5 ¶ विश्वास ही से हनोक उठा लिया गया, कि मृत्यु को न देखे, और उसका पता नहीं मिला; क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे उठा लिया था, और उसके उठाए जाने से पहले उसकी यह गवाही दी गई थी, कि उसने परमेश्‍वर को प्रसन्‍न किया है। (IN)

इब्रानियों 11:6 और विश्वास बिना उसे प्रसन्‍न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्‍वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है। (IN)

इब्रानियों 11:7 ¶ विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चेतावनी पा कर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया; और उस धार्मिकता का वारिस हुआ, जो विश्वास से होता है। (IN)

इब्रानियों 11:8 ¶ विश्वास ही से अब्राहम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे विरासत में लेनेवाला था, और यह न जानता था, कि मैं किधर जाता हूँ; तो भी निकल गया। (IN)

इब्रानियों 11:9 विश्वास ही से उसने प्रतिज्ञा किए हुए देश में जैसे पराए देश में परदेशी रहकर इसहाक और याकूब समेत जो उसके साथ उसी प्रतिज्ञा के वारिस थे, तम्‍बुओं में वास किया। (IN)

इब्रानियों 11:10 क्योंकि वह उस स्थिर नींव वाले नगर की प्रतीक्षा करता था, जिसका रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्‍वर है। (IN)

इब्रानियों 11:11 ¶ विश्वास से सारा ने आप बूढ़ी होने पर भी गर्भ धारण करने की सामर्थ्य पाई; क्योंकि उसने प्रतिज्ञा करनेवाले को सच्चा जाना था। (IN)

इब्रानियों 11:12 इस कारण एक ही जन से जो मरा हुआ सा था, आकाश के तारों और समुद्र तट के रेत के समान, अनगिनत वंश उत्‍पन्‍न हुआ। (IN)

इब्रानियों 11:13 ¶ ये सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएँ नहीं पाईं; पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया, कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं। (IN)

इब्रानियों 11:14 जो ऐसी-ऐसी बातें कहते हैं, वे प्रगट करते हैं, कि स्वदेश की खोज में हैं। (IN)

इब्रानियों 11:15 ¶ और जिस देश से वे निकल आए थे, यदि उसकी सुधि करते तो उन्हें लौट जाने का अवसर था। (IN)

इब्रानियों 11:16 पर वे एक उत्तम अर्थात् स्वर्गीय देश के अभिलाषी हैं, इसलिए परमेश्‍वर उनका परमेश्‍वर कहलाने में नहीं लजाता, क्योंकि उसने उनके लिये एक नगर तैयार किया है। (IN)

इब्रानियों 11:17 ¶ विश्वास ही से अब्राहम ने, परखे जाने के समय में, इसहाक को बलिदान चढ़ाया, और जिस ने प्रतिज्ञाओं को सच माना था। (IN)

इब्रानियों 11:18 और जिससे यह कहा गया था, “इसहाक से तेरा वंश कहलाएगा,” वह अपने एकलौते को चढ़ाने लगा। (IN)

इब्रानियों 11:19 क्योंकि उसने मान लिया, कि परमेश्‍वर सामर्थी है, कि उसे मरे हुओं में से जिलाए, इस प्रकार उन्हीं में से दृष्टान्त की रीति पर वह उसे फिर मिला। (IN)

इब्रानियों 11:20 ¶ विश्वास ही से इसहाक ने याकूब और एसाव को आनेवाली बातों के विषय में आशीष दी। (IN)

इब्रानियों 11:21 विश्वास ही से याकूब ने मरते समय यूसुफ के दोनों पुत्रों में से एक-एक को आशीष दी, और अपनी लाठी के सिरे पर सहारा लेकर दण्डवत् किया। (IN)

इब्रानियों 11:22 विश्वास ही से यूसुफ ने, जब वह मरने पर था, तो इस्राएल की सन्तान के निकल जाने की चर्चा की, और अपनी हड्डियों के विषय में आज्ञा दी। (IN)

इब्रानियों 11:23 ¶ विश्वास ही से मूसा के माता पिता ने उसको, उत्‍पन्‍न होने के बाद तीन महीने तक छिपा रखा; क्योंकि उन्होंने देखा, कि बालक सुन्दर है, और वे राजा की आज्ञा से न डरे। (IN)

इब्रानियों 11:24 विश्वास ही से मूसा ने सयाना होकर फ़िरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। (IN)

इब्रानियों 11:25 इसलिए कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्‍वर के लोगों के साथ दुःख भोगना और भी उत्तम लगा। (IN)

इब्रानियों 11:26 और मसीह के कारण निन्दित होने को मिस्र के भण्डार से बड़ा धन समझा क्योंकि उसकी आँखें फल पाने की ओर लगी थीं। (IN)

इब्रानियों 11:27 ¶ विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डरकर उसने मिस्र को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा। (IN)

इब्रानियों 11:28 विश्वास ही से उसने फसह और लहू छिड़कने की विधि मानी, कि पहलौठों का नाश करनेवाला इस्राएलियों पर हाथ न डाले। (IN)

इब्रानियों 11:29 ¶ विश्वास ही से वे लाल समुद्र के पार ऐसे उतर गए, जैसे सूखी भूमि पर से; और जब मिस्रियों ने वैसा ही करना चाहा, तो सब डूब मरे। (IN)

इब्रानियों 11:30 विश्वास ही से यरीहो की शहरपनाह, जब सात दिन तक उसका चक्कर लगा चुके तो वह गिर पड़ी। (IN)

इब्रानियों 11:31 विश्वास ही से राहाब वेश्या आज्ञा न माननेवालों के साथ नाश नहीं हुई; इसलिए कि उसने भेदियों को कुशल से रखा था। (IN)

इब्रानियों 11:32 ¶ अब और क्या कहूँ? क्योंकि समय नहीं रहा, कि गिदोन का, और बाराक और शिमशोन का, और यिफतह का, और दाऊद का और शमूएल का, और भविष्यद्वक्ताओं का वर्णन करूँ। (IN)

इब्रानियों 11:33 इन्होंने विश्वास ही के द्वारा राज्य जीते; धार्मिकता के काम किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएँ प्राप्त कीं, सिंहों के मुँह बन्द किए, (IN)

इब्रानियों 11:34 आग की ज्वाला को ठण्डा किया; तलवार की धार से बच निकले, निर्बलता में बलवन्त हुए; लड़ाई में वीर निकले; विदेशियों की फौजों को मार भगाया। (IN)

इब्रानियों 11:35 ¶ स्त्रियों ने अपने मरे हुओं को फिर जीविते पाया; कितने तो मार खाते-खाते मर गए; और छुटकारा न चाहा; इसलिए कि उत्तम पुनरुत्थान के भागी हों। (IN)

इब्रानियों 11:36 दूसरे लोग तो उपहास में उड़ाएँ जाने; और कोड़े खाने; वरन् बाँधे जाने; और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए। (IN)

इब्रानियों 11:37 पत्थराव किए गए; आरे से चीरे गए; उनकी परीक्षा की गई; तलवार से मारे गए; वे कंगाली में और क्लेश में और दुःख भोगते हुए भेड़ों और बकरियों की खालें ओढ़े हुए, इधर-उधर मारे-मारे फिरे। (IN)

इब्रानियों 11:38 और जंगलों, और पहाड़ों, और गुफाओं में, और पृथ्वी की दरारों में भटकते फिरे। संसार उनके योग्य न था। (IN)

इब्रानियों 11:39 ¶ विश्वास ही के द्वारा इन सब के विषय में अच्छी गवाही दी गई, तो भी उन्हें प्रतिज्ञा की हुई वस्तु न मिली। (IN)

इब्रानियों 11:40 क्योंकि परमेश्‍वर ने हमारे लिये पहले से एक उत्तम बात ठहराई, कि वे हमारे बिना सिद्धता को न पहुँचे। (IN)

इब्रानियों 12:1 ¶ इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हमको घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें। (IN)

इब्रानियों 12:2 और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुःख सहा; और सिंहासन पर परमेश्‍वर के दाहिने जा बैठा। (IN)

इब्रानियों 12:3 ¶ इसलिए उस पर ध्यान करो, जिस ने अपने विरोध में पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया कि तुम निराश होकर साहस न छोड़ दो। (IN)

इब्रानियों 12:4 ¶ तुम ने पाप से लड़ते हुए उससे ऐसी मुठभेड़ नहीं की, कि तुम्हारा लहू बहा हो। (IN)

इब्रानियों 12:5 और तुम उस उपदेश को जो तुम को पुत्रों के समान दिया जाता है, भूल गए हो: (IN)

इब्रानियों 12:6 क्योंकि प्रभु, जिससे प्रेम करता है, उसको अनुशासित भी करता है; (IN)

इब्रानियों 12:7 ¶ तुम दुःख को अनुशासन समझकर सह लो; परमेश्‍वर तुम्हें पुत्र जानकर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिसकी ताड़ना पिता नहीं करता? (IN)

इब्रानियों 12:8 यदि वह ताड़ना जिसके भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे! (IN)

इब्रानियों 12:9 ¶ फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे और हमने उनका आदर किया, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी अधीन न रहें जिससे हम जीवित रहें। (IN)

इब्रानियों 12:10 वे तो अपनी-अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उसकी पवित्रता के भागी हो जाएँ। (IN)

इब्रानियों 12:11 ¶ और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तो भी जो उसको सहते-सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धार्मिकता का प्रतिफल मिलता है। (IN)

इब्रानियों 12:12 ¶ इसलिए ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो। (IN)

इब्रानियों 12:13 और अपने पाँवों के लिये सीधे मार्ग बनाओ, कि लँगड़ा भटक न जाए, पर भला चंगा हो जाए। (IN)

इब्रानियों 12:14 ¶ सबसे मेल मिलाप रखो, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा। (IN)

इब्रानियों 12:15 और ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्‍वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूटकर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएँ। (IN)

इब्रानियों 12:16 ऐसा न हो, कि कोई जन व्यभिचारी, या एसाव के समान अधर्मी हो, जिसने एक बार के भोजन के बदले अपने पहलौठे होने का पद बेच डाला। (IN)

इब्रानियों 12:17 तुम जानते तो हो, कि बाद में जब उसने आशीष पानी चाही, तो अयोग्य गिना गया, और आँसू बहा बहाकर खोजने पर भी मन फिराव का अवसर उसे न मिला। (IN)

इब्रानियों 12:18 ¶ तुम तो उस पहाड़ के पास जो छुआ जा सकता था और आग से प्रज्वलित था, और काली घटा, और अंधेरा, और आँधी के पास। (IN)

इब्रानियों 12:19 और तुरही की ध्वनि, और बोलनेवाले के ऐसे शब्द के पास नहीं आए, जिसके सुननेवालों ने विनती की, कि अब हम से और बातें न की जाएँ। (IN)

इब्रानियों 12:20 क्योंकि वे उस आज्ञा को न सह सके “यदि कोई पशु भी पहाड़ को छूए, तो पत्थराव किया जाए।” (IN)

इब्रानियों 12:21 और वह दर्शन ऐसा डरावना था, कि मूसा ने कहा, “मैं बहुत डरता और काँपता हूँ।” (IN)

इब्रानियों 12:22 ¶ पर तुम सिय्योन के पहाड़ के पास, और जीविते परमेश्‍वर के नगर स्वर्गीय यरूशलेम के पास और लाखों स्वर्गदूतों, (IN)

इब्रानियों 12:23 और उन पहलौठों की साधारण सभा और कलीसिया जिनके नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं और सब के न्यायी परमेश्‍वर के पास, और सिद्ध किए हुए धर्मियों की आत्माओं। (IN)

इब्रानियों 12:24 और नई वाचा के मध्यस्थ यीशु, और छिड़काव के उस लहू के पास आए हो, जो हाबिल के लहू से उत्तम बातें कहता है। (IN)

इब्रानियों 12:25 ¶ सावधान रहो, और उस कहनेवाले से मुँह न फेरो, क्योंकि वे लोग जब पृथ्वी पर के चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर न बच सके, तो हम स्वर्ग पर से चेतावनी देनेवाले से मुँह मोड़कर कैसे बच सकेंगे? (IN)

इब्रानियों 12:26 उस समय तो उसके शब्द ने पृथ्वी को हिला दिया पर अब उसने यह प्रतिज्ञा की है, “एक बार फिर मैं केवल पृथ्वी को नहीं, वरन् आकाश को भी हिला दूँगा।” (IN)

इब्रानियों 12:27 ¶ और यह वाक्य ‘एक बार फिर’ इस बात को प्रगट करता है, कि जो वस्तुएँ हिलाई जाती हैं, वे सृजी हुई वस्तुएँ होने के कारण टल जाएँगी; ताकि जो वस्तुएँ हिलाई नहीं जातीं, वे अटल बनी रहें। (IN)

इब्रानियों 12:28 इस कारण हम इस राज्य को पा कर जो हिलने का नहीं, उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिसके द्वारा हम भक्ति, और भय सहित, परमेश्‍वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिससे वह प्रसन्‍न होता है। (IN)

इब्रानियों 12:29 क्योंकि हमारा परमेश्‍वर भस्म करनेवाली आग है। (IN)

इब्रानियों 13:1 ¶ भाईचारे का प्रेम बना रहे। (IN)

इब्रानियों 13:2 अतिथि-सत्कार करना न भूलना, क्योंकि इसके द्वारा कितनों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का आदर-सत्कार किया है। (IN)

इब्रानियों 13:3 ¶ कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उनके साथ तुम भी कैद हो; और जिनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उनकी भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है। (IN)

इब्रानियों 13:4 विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और विवाह बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्‍वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा। (IN)

इब्रानियों 13:5 ¶ तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, “मैं तुझे कभी न छोड़ूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा।” (IN)

इब्रानियों 13:6 इसलिए हम बेधड़क होकर कहते हैं, “प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूँगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?” (IN)

इब्रानियों 13:7 ¶ जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्होंने तुम्हें परमेश्‍वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उनके चाल-चलन का अन्त देखकर उनके विश्वास का अनुकरण करो। (IN)

इब्रानियों 13:8 यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक जैसा है। (IN)

इब्रानियों 13:9 ¶ नाना प्रकार के और ऊपरी उपदेशों से न भरमाए जाओ, क्योंकि मन का अनुग्रह से दृढ़ रहना भला है, न कि उन खाने की वस्तुओं से जिनसे काम रखनेवालों को कुछ लाभ न हुआ। (IN)

इब्रानियों 13:10 हमारी एक ऐसी वेदी है, जिस पर से खाने का अधिकार उन लोगों को नहीं, जो तम्बू की सेवा करते हैं। (IN)

इब्रानियों 13:11 क्योंकि जिन पशुओं का लहू महायाजक पाप-बलि के लिये पवित्रस्‍थान में ले जाता है, उनकी देह छावनी के बाहर जलाई जाती है। (IN)

इब्रानियों 13:12 ¶ इसी कारण, यीशु ने भी लोगों को अपने ही लहू के द्वारा पवित्र करने के लिये फाटक के बाहर दुःख उठाया। (IN)

इब्रानियों 13:13 इसलिए, आओ उसकी निन्दा अपने ऊपर लिए हुए छावनी के बाहर उसके पास निकल चलें। (IN)

इब्रानियों 13:14 क्योंकि यहाँ हमारा कोई स्थिर रहनेवाला नगर नहीं, वरन् हम एक आनेवाले नगर की खोज में हैं। (IN)

इब्रानियों 13:15 ¶ इसलिए हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होंठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्‍वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें। (IN)

इब्रानियों 13:16 पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्‍न होता है। (IN)

इब्रानियों 13:17 ¶ अपने अगुओं की मानो; और उनके अधीन रहो, क्योंकि वे उनके समान तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी साँस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं। (IN)

इब्रानियों 13:18 ¶ हमारे लिये प्रार्थना करते रहो, क्योंकि हमें भरोसा है, कि हमारा विवेक शुद्ध है; और हम सब बातों में अच्छी चाल चलना चाहते हैं। (IN)

इब्रानियों 13:19 प्रार्थना करने के लिये मैं तुम्हें और भी उत्साहित करता हूँ, ताकि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूँ। (IN)

इब्रानियों 13:20 ¶ अब शान्तिदाता परमेश्‍वर जो हमारे प्रभु यीशु को जो भेड़ों का महान रखवाला है सनातन वाचा के लहू के गुण से मरे हुओं में से जिलाकर ले आया, (IN)

इब्रानियों 13:21 तुम्हें हर एक भली बात में सिद्ध करे, जिससे तुम उसकी इच्छा पूरी करो, और जो कुछ उसको भाता है, उसे यीशु मसीह के द्वारा हम में पूरा करे, उसकी महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

इब्रानियों 13:22 ¶ हे भाइयों मैं तुम से विनती करता हूँ, कि इन उपदेश की बातों को सह लो; क्योंकि मैंने तुम्हें बहुत संक्षेप में लिखा है। (IN)

इब्रानियों 13:23 तुम यह जान लो कि तीमुथियुस हमारा भाई छूट गया है और यदि वह शीघ्र आ गया, तो मैं उसके साथ तुम से भेंट करूँगा। (IN)

इब्रानियों 13:24 ¶ अपने सब अगुओं और सब पवित्र लोगों को नमस्कार कहो। इतालियावाले तुम्हें नमस्कार कहते हैं। (IN)

इब्रानियों 13:25 ¶ तुम सब पर अनुग्रह होता रहे। आमीन। (IN)

याकूब 1:1 ¶ परमेश्‍वर के और प्रभु यीशु मसीह के दास याकूब की ओर से उन बारहों गोत्रों को जो तितर-बितर होकर रहते हैं नमस्कार पहुँचे। (IN)

याकूब 1:2 ¶ हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, (IN)

याकूब 1:3 यह जानकर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्‍पन्‍न होता है। (IN)

याकूब 1:4 ¶ पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे। (IN)

याकूब 1:5 पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्‍वर से माँगो, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उसको दी जाएगी। (IN)

याकूब 1:6 ¶ पर विश्वास से माँगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। (IN)

याकूब 1:7 ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा, (IN)

याकूब 1:8 वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है। (IN)

याकूब 1:9 ¶ दीन भाई अपने ऊँचे पद पर घमण्ड करे। (IN)

याकूब 1:10 और धनवान अपनी नीच दशा पर; क्योंकि वह घास के फूल की तरह मिट जाएगा। (IN)

याकूब 1:11 क्योंकि सूर्य उदय होते ही कड़ी धूप पड़ती है और घास को सूखा देती है, और उसका फूल झड़ जाता है, और उसकी शोभा मिटती जाती है; उसी प्रकार धनवान भी अपने कार्यों के मध्य में ही लोप हो जाएँगे। (IN)

याकूब 1:12 ¶ धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों को दी है। (IN)

याकूब 1:13 जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्‍वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है। (IN)

याकूब 1:14 ¶ परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फँसकर परीक्षा में पड़ता है। (IN)

याकूब 1:15 फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्‍पन्‍न करता है। (IN)

याकूब 1:16 हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ। (IN)

याकूब 1:17 ¶ क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिसमें न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न ही वह परछाई के समान बदलता है। (IN)

याकूब 1:18 उसने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्‍पन्‍न किया, ताकि हम उसकी सृष्टि किए हुए प्राणियों के बीच पहले फल के समान हो। (IN)

याकूब 1:19 ¶ हे मेरे प्रिय भाइयों, यह बात तुम जान लो, हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो। (IN)

याकूब 1:20 क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्‍वर के धार्मिकता का निर्वाह नहीं कर सकता है। (IN)

याकूब 1:21 इसलिए सारी मलिनता और बैर-भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है। (IN)

याकूब 1:22 ¶ परन्तु वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। (IN)

याकूब 1:23 क्योंकि जो कोई वचन का सुननेवाला हो, और उस पर चलनेवाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुँह दर्पण में देखता है। (IN)

याकूब 1:24 इसलिए कि वह अपने आप को देखकर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि वह कैसा था। (IN)

याकूब 1:25 पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिए आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है। (IN)

याकूब 1:26 ¶ यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उसकी भक्ति व्यर्थ है। (IN)

याकूब 1:27 हमारे परमेश्‍वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उनकी सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें। (IN)

याकूब 2:1 ¶ हे मेरे भाइयों, हमारे महिमायुक्त प्रभु यीशु मसीह का विश्वास तुम में पक्षपात के साथ न हो। (IN)

याकूब 2:2 क्योंकि यदि एक पुरुष सोने के छल्ले और सुन्दर वस्त्र पहने हुए तुम्हारी सभा में आए और एक कंगाल भी मैले कुचैले कपड़े पहने हुए आए। (IN)

याकूब 2:3 और तुम उस सुन्दर वस्त्रवाले पर ध्यान केन्द्रित करके कहो, “तू यहाँ अच्छी जगह बैठ,” और उस कंगाल से कहो, “तू वहाँ खड़ा रह,” या “मेरे पाँवों के पास बैठ।” (IN)

याकूब 2:4 तो क्या तुम ने आपस में भेद भाव न किया और कुविचार से न्याय करनेवाले न ठहरे? (IN)

याकूब 2:5 ¶ हे मेरे प्रिय भाइयों सुनो; क्या परमेश्‍वर ने इस जगत के कंगालों को नहीं चुना कि वह विश्वास में धनी, और उस राज्य के अधिकारी हों, जिसकी प्रतिज्ञा उसने उनसे की है जो उससे प्रेम रखते हैं? (IN)

याकूब 2:6 पर तुम ने उस कंगाल का अपमान किया। क्या धनी लोग तुम पर अत्याचार नहीं करते और क्या वे ही तुम्हें कचहरियों में घसीट-घसीट कर नहीं ले जाते? (IN)

याकूब 2:7 क्या वे उस उत्तम नाम की निन्दा नहीं करते जिसके तुम कहलाए जाते हो? (IN)

याकूब 2:8 ¶ तो भी यदि तुम पवित्रशास्त्र के इस वचन के अनुसार, “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख,” सचमुच उस राज व्यवस्था को पूरी करते हो, तो अच्छा करते हो। (IN)

याकूब 2:9 पर यदि तुम पक्षपात करते हो, तो पाप करते हो; और व्यवस्था तुम्हें अपराधी ठहराती है। (IN)

याकूब 2:10 ¶ क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों में दोषी ठहरा। (IN)

याकूब 2:11 इसलिए कि जिस ने यह कहा, “तू व्यभिचार न करना” उसी ने यह भी कहा, “तू हत्या न करना” इसलिए यदि तूने व्यभिचार तो नहीं किया, पर हत्या की तो भी तू व्यवस्था का उल्लंघन करनेवाला ठहरा। (IN)

याकूब 2:12 ¶ तुम उन लोगों के समान वचन बोलो, और काम भी करो, जिनका न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार होगा। (IN)

याकूब 2:13 क्योंकि जिस ने दया नहीं की, उसका न्याय बिना दया के होगा। दया न्याय पर जयवन्त होती है। (IN)

याकूब 2:14 ¶ हे मेरे भाइयों, यदि कोई कहे कि मुझे विश्वास है पर वह कर्म न करता हो, तो उससे क्या लाभ? क्या ऐसा विश्वास कभी उसका उद्धार कर सकता है? (IN)

याकूब 2:15 यदि कोई भाई या बहन नंगे उघाड़े हों, और उन्हें प्रतिदिन भोजन की घटी हो, (IN)

याकूब 2:16 और तुम में से कोई उनसे कहे, “शान्ति से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्त रहो,” पर जो वस्तुएँ देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे, तो क्या लाभ? (IN)

याकूब 2:17 वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है। (IN)

याकूब 2:18 ¶ वरन् कोई कह सकता है, “तुझे विश्वास है, और मैं कर्म करता हूँ।” तू अपना विश्वास मुझे कर्म बिना दिखा; और मैं अपना विश्वास अपने कर्मों के द्वारा तुझे दिखाऊँगा। (IN)

याकूब 2:19 तुझे विश्वास है कि एक ही परमेश्‍वर है; तू अच्छा करता है; दुष्टात्मा भी विश्वास रखते, और थरथराते हैं। (IN)

याकूब 2:20 पर हे निकम्मे मनुष्य क्या तू यह भी नहीं जानता, कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है? (IN)

याकूब 2:21 ¶ जब हमारे पिता अब्राहम ने अपने पुत्र इसहाक को वेदी पर चढ़ाया, तो क्या वह कर्मों से धार्मिक न ठहरा था? (IN)

याकूब 2:22 तूने देख लिया कि विश्वास ने उसके कामों के साथ मिलकर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ। (IN)

याकूब 2:23 और पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हुआ, “अब्राहम ने परमेश्‍वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिनी गई,” और वह परमेश्‍वर का मित्र कहलाया। (IN)

याकूब 2:24 तुम ने देख लिया कि मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं, वरन् कर्मों से भी धर्मी ठहरता है। (IN)

याकूब 2:25 ¶ वैसे ही राहाब वेश्या भी जब उसने दूतों को अपने घर में उतारा, और दूसरे मार्ग से विदा किया, तो क्या कर्मों से धार्मिक न ठहरी? (IN)

याकूब 2:26 जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है। (IN)

याकूब 3:1 ¶ हे मेरे भाइयों, तुम में से बहुत उपदेशक न बनें, क्योंकि तुम जानते हो, कि हम उपदेशकों का और भी सख्‍ती से न्याय किया जाएगा। (IN)

याकूब 3:2 इसलिए कि हम सब बहुत बार चूक जाते हैं जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है; और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है। (IN)

याकूब 3:3 ¶ जब हम अपने वश में करने के लिये घोड़ों के मुँह में लगाम लगाते हैं, तो हम उनकी सारी देह को भी फेर सकते हैं। (IN)

याकूब 3:4 देखो, जहाज भी, यद्यपि ऐसे बड़े होते हैं, और प्रचण्ड वायु से चलाए जाते हैं, तो भी एक छोटी सी पतवार के द्वारा माँझी की इच्छा के अनुसार घुमाए जाते हैं। (IN)

याकूब 3:5 ¶ वैसे ही जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी-बड़ी डींगे मारती है; देखो कैसे, थोड़ी सी आग से कितने बड़े वन में आग लग जाती है। (IN)

याकूब 3:6 जीभ भी एक आग है; जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है और सारी देह पर कलंक लगाती है, और भवचक्र में आग लगा देती है और नरक कुण्ड की आग से जलती रहती है। (IN)

याकूब 3:7 ¶ क्योंकि हर प्रकार के वन-पशु, पक्षी, और रेंगनेवाले जन्तु और जलचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गए हैं। (IN)

याकूब 3:8 पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं; वह प्राणनाशक विष से भरी हुई है। (IN)

याकूब 3:9 ¶ इसी से हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्‍वर के स्वरूप में उत्‍पन्‍न हुए हैं श्राप देते हैं। (IN)

याकूब 3:10 एक ही मुँह से स्‍तुति और श्राप दोनों निकलते हैं। हे मेरे भाइयों, ऐसा नहीं होना चाहिए। (IN)

याकूब 3:11 ¶ क्या सोते के एक ही मुँह से मीठा और खारा जल दोनों निकलते है? (IN)

याकूब 3:12 हे मेरे भाइयों, क्या अंजीर के पेड़ में जैतून, या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता। (IN)

याकूब 3:13 ¶ तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्छे चाल-चलन से उस नम्रता सहित प्रगट करे जो ज्ञान से उत्‍पन्‍न होती है। (IN)

याकूब 3:14 पर यदि तुम अपने-अपने मन में कड़वी ईर्ष्या और स्वार्थ रखते हो, तो डींग न मारना और न ही सत्य के विरुद्ध झूठ बोलना। (IN)

याकूब 3:15 ¶ यह ज्ञान वह नहीं, जो ऊपर से उतरता है वरन् सांसारिक, और शारीरिक, और शैतानी है। (IN)

याकूब 3:16 इसलिए कि जहाँ ईर्ष्या और विरोध होता है, वहाँ बखेड़ा और हर प्रकार का दुष्कर्म भी होता है। (IN)

याकूब 3:17 पर जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपटरहित होता है। (IN)

याकूब 3:18 और मिलाप करानेवालों के लिये धार्मिकता का फल शान्ति के साथ बोया जाता है। (IN)

याकूब 4:1 ¶ तुम में लड़ाइयाँ और झगड़े कहाँ से आते है? क्या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं? (IN)

याकूब 4:2 तुम लालसा रखते हो, और तुम्हें मिलता नहीं; तुम हत्या और डाह करते हो, और कुछ प्राप्त नहीं कर सकते; तुम झगड़ते और लड़ते हो; तुम्हें इसलिए नहीं मिलता, कि माँगते नहीं। (IN)

याकूब 4:3 तुम माँगते हो और पाते नहीं, इसलिए कि बुरी इच्छा से माँगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो। (IN)

याकूब 4:4 ¶ हे व्यभिचारिणियों, क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्‍वर से बैर करना है? इसलिए जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्‍वर का बैरी बनाता है। (IN)

याकूब 4:5 क्या तुम यह समझते हो, कि पवित्रशास्त्र व्यर्थ कहता है? “जिस पवित्र आत्मा को उसने हमारे भीतर बसाया है, क्या वह ऐसी लालसा करता है, जिसका प्रतिफल डाह हो”? (IN)

याकूब 4:6 ¶ वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, “परमेश्‍वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर नम्रों पर अनुग्रह करता है।” (IN)

याकूब 4:7 इसलिए परमेश्‍वर के अधीन हो जाओ; और शैतान का सामना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा। (IN)

याकूब 4:8 ¶ परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा: हे पापियों, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगों अपने हृदय को पवित्र करो। (IN)

याकूब 4:9 दुःखी हो, और शोक करो, और रोओ, तुम्हारी हँसी शोक में और तुम्हारा आनन्द उदासी में बदल जाए। (IN)

याकूब 4:10 प्रभु के सामने नम्र बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा। (IN)

याकूब 4:11 ¶ हे भाइयों, एक दूसरे की निन्दा न करो, जो अपने भाई की निन्दा करता है, या भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की निन्दा करता है, और व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलनेवाला नहीं, पर उस पर न्यायाधीश ठहरा। (IN)

याकूब 4:12 व्यवस्था देनेवाला और न्यायाधीश तो एक ही है, जिसे बचाने और नाश करने की सामर्थ्य है; पर तू कौन है, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है? (IN)

याकूब 4:13 ¶ तुम जो यह कहते हो, “आज या कल हम किसी और नगर में जाकर वहाँ एक वर्ष बिताएँगे, और व्यापार करके लाभ उठाएँगे।” (IN)

याकूब 4:14 और यह नहीं जानते कि कल क्या होगा सुन तो लो, तुम्हारा जीवन है ही क्या? तुम तो मानो धुंध के समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है, फिर लोप हो जाती है। (IN)

याकूब 4:15 ¶ इसके विपरीत तुम्हें यह कहना चाहिए, “यदि प्रभु चाहे तो हम जीवित रहेंगे, और यह या वह काम भी करेंगे।” (IN)

याकूब 4:16 पर अब तुम अपनी ड़ींग मारने पर घमण्ड करते हो; ऐसा सब घमण्ड बुरा होता है। (IN)

याकूब 4:17 इसलिए जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, उसके लिये यह पाप है। (IN)

याकूब 5:1 ¶ हे धनवानों सुन तो लो; तुम अपने आनेवाले क्लेशों पर चिल्ला-चिल्लाकर रोओ। (IN)

याकूब 5:2 तुम्हारा धन बिगड़ गया और तुम्हारे वस्त्रों को कीड़े खा गए। (IN)

याकूब 5:3 तुम्हारे सोने-चाँदी में काई लग गई है; और वह काई तुम पर गवाही देगी, और आग के समान तुम्हारा माँस खा जाएगी: तुम ने अन्तिम युग में धन बटोरा है। (IN)

याकूब 5:4 ¶ देखो, जिन मजदूरों ने तुम्हारे खेत काटे, उनकी मजदूरी जो तुमने उन्हें नहीं दी; चिल्ला रही है, और लवनेवालों की दुहाई, सेनाओं के प्रभु के कानों तक पहुँच गई है। (IN)

याकूब 5:5 तुम पृथ्वी पर भोग-विलास में लगे रहे और बड़ा ही सुख भोगा; तुम ने इस वध के दिन के लिये अपने हृदय का पालन-पोषण करके मोटा ताजा किया। (IN)

याकूब 5:6 तुम ने धर्मी को दोषी ठहराकर मार डाला; वह तुम्हारा सामना नहीं करता। (IN)

याकूब 5:7 ¶ इसलिए हे भाइयों, प्रभु के आगमन तक धीरज धरो, जैसे, किसान पृथ्वी के बहुमूल्य फल की आशा रखता हुआ प्रथम और अन्तिम वर्षा होने तक धीरज धरता है। (IN)

याकूब 5:8 तुम भी धीरज धरो, और अपने हृदय को दृढ़ करो, क्योंकि प्रभु का आगमन निकट है। (IN)

याकूब 5:9 ¶ हे भाइयों, एक दूसरे पर दोष न लगाओ ताकि तुम दोषी न ठहरो, देखो, न्यायाधीश द्वार पर खड़ा है। (IN)

याकूब 5:10 हे भाइयों, जिन भविष्यद्वक्ताओं ने प्रभु के नाम से बातें की, उन्हें दुःख उठाने और धीरज धरने का एक आदर्श समझो। (IN)

याकूब 5:11 देखो, हम धीरज धरनेवालों को धन्य कहते हैं। तुम ने अय्यूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिससे प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है। (IN)

याकूब 5:12 ¶ पर हे मेरे भाइयों, सबसे श्रेष्ठ बात यह है, कि शपथ न खाना; न स्वर्ग की न पृथ्वी की, न किसी और वस्तु की, पर तुम्हारी बातचीत हाँ की हाँ, और नहीं की नहीं हो, कि तुम दण्ड के योग्य न ठहरो। (IN)

याकूब 5:13 ¶ यदि तुम में कोई दुःखी हो तो वह प्रार्थना करे; यदि आनन्दित हो, तो वह स्तुति के भजन गाएँ। (IN)

याकूब 5:14 यदि तुम में कोई रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना करें। (IN)

याकूब 5:15 और विश्वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उसको उठाकर खड़ा करेगा; यदि उसने पाप भी किए हों, तो परमेश्‍वर उसको क्षमा करेगा। (IN)

याकूब 5:16 ¶ इसलिए तुम आपस में एक दूसरे के सामने अपने-अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिससे चंगे हो जाओ; धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है। (IN)

याकूब 5:17 एलिय्याह भी तो हमारे समान दुःख-सुख भोगी मनुष्य था; और उसने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की; कि बारिश न बरसे; और साढ़े तीन वर्ष तक भूमि पर बारिश नहीं बरसा। (IN)

याकूब 5:18 फिर उसने प्रार्थना की, तो आकाश से वर्षा हुई, और भूमि फलवन्त हुई। (IN)

याकूब 5:19 ¶ हे मेरे भाइयों, यदि तुम में कोई सत्य के मार्ग से भटक जाए, और कोई उसको फेर लाए। (IN)

याकूब 5:20 तो वह यह जान ले, कि जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा, और अनेक पापों पर परदा डालेगा। (IN)

1 पतरस 1:1 ¶ पतरस की ओर से जो यीशु मसीह का प्रेरित है, उन परदेशियों के नाम, जो पुन्तुस, गलातिया, कप्पदूकिया, आसिया, और बितूनिया में तितर-बितर होकर रहते हैं। (IN)

1 पतरस 1:2 और परमेश्‍वर पिता के भविष्य ज्ञान के अनुसार, पवित्र आत्मा के पवित्र करने के द्वारा आज्ञा मानने, और यीशु मसीह के लहू के छिड़के जाने के लिये चुने गए हैं। तुम्हें अत्यन्त अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। (IN)

1 पतरस 1:3 ¶ हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता का धन्यवाद हो, जिसने यीशु मसीह को मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया, (IN)

1 पतरस 1:4 अर्थात् एक अविनाशी और निर्मल, और अजर विरासत के लिये जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है, (IN)

1 पतरस 1:5 जिनकी रक्षा परमेश्‍वर की सामर्थ्य से, विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आनेवाले समय में प्रगट होनेवाली है, की जाती है। (IN)

1 पतरस 1:6 ¶ इस कारण तुम मगन होते हो, यद्यपि अवश्य है कि अब कुछ दिन तक नाना प्रकार की परीक्षाओं के कारण दुःख में हो, (IN)

1 पतरस 1:7 और यह इसलिए है कि तुम्हारा परखा हुआ विश्वास, जो आग से ताए हुए नाशवान सोने से भी कहीं अधिक बहुमूल्य है, यीशु मसीह के प्रगट होने पर प्रशंसा, महिमा, और आदर का कारण ठहरे। (IN)

1 पतरस 1:8 ¶ उससे तुम बिन देखे प्रेम रखते हो, और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो, जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है, (IN)

1 पतरस 1:9 और अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् आत्माओं का उद्धार प्राप्त करते हो। (IN)

1 पतरस 1:10 ¶ इसी उद्धार के विषय में उन भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत ढूँढ़-ढाँढ़ और जाँच-पड़ताल की, जिन्होंने उस अनुग्रह के विषय में जो तुम पर होने को था, भविष्यद्वाणी की थी। (IN)

1 पतरस 1:11 ¶ उन्होंने इस बात की खोज की कि मसीह का आत्मा जो उनमें था, और पहले ही से मसीह के दुःखों की और उनके बाद होनेवाली महिमा की गवाही देता था, वह कौन से और कैसे समय की ओर संकेत करता था। (IN)

1 पतरस 1:12 उन पर यह प्रगट किया गया कि वे अपनी नहीं वरन् तुम्हारी सेवा के लिये ये बातें कहा करते थे, जिनका समाचार अब तुम्हें उनके द्वारा मिला जिन्होंने पवित्र आत्मा के द्वारा जो स्वर्ग से भेजा गया, तुम्हें सुसमाचार सुनाया, और इन बातों को स्वर्गदूत भी ध्यान से देखने की लालसा रखते हैं। (IN)

1 पतरस 1:13 ¶ इस कारण अपनी-अपनी बुद्धि की कमर बाँधकर, और सचेत रहकर उस अनुग्रह की पूरी आशा रखो, जो यीशु मसीह के प्रगट होने के समय तुम्हें मिलनेवाला है। (IN)

1 पतरस 1:14 और आज्ञाकारी बालकों के समान अपनी अज्ञानता के समय की पुरानी अभिलाषाओं के सदृश न बनो। (IN)

1 पतरस 1:15 ¶ पर जैसा तुम्हारा बुलानेवाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चाल-चलन में पवित्र बनो। (IN)

1 पतरस 1:16 क्योंकि लिखा है, “पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।” (IN)

1 पतरस 1:17 और जब कि तुम, ‘हे पिता’ कहकर उससे प्रार्थना करते हो, जो बिना पक्षपात हर एक के काम के अनुसार न्याय करता है, तो अपने परदेशी होने का समय भय से बिताओ। (IN)

1 पतरस 1:18 ¶ क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो पूर्वजों से चला आता है उससे तुम्हारा छुटकारा चाँदी-सोने अर्थात् नाशवान वस्तुओं के द्वारा नहीं हुआ, (IN)

1 पतरस 1:19 पर निर्दोष और निष्कलंक मेम्‍ने अर्थात् मसीह के बहुमूल्य लहू के द्वारा हुआ। (IN)

1 पतरस 1:20 ¶ मसीह को जगत की सृष्टि से पहले चुना गया था, पर अब इस अन्तिम युग में तुम्हारे लिये प्रगट हुआ। (IN)

1 पतरस 1:21 जो उसके द्वारा उस परमेश्‍वर पर विश्वास करते हो, जिसने उसे मरे हुओं में से जिलाया, और महिमा दी कि तुम्हारा विश्वास और आशा परमेश्‍वर पर हो। (IN)

1 पतरस 1:22 ¶ अतः जब कि तुम ने भाईचारे के निष्कपट प्रेम के निमित्त सत्य के मानने से अपने मनों को पवित्र किया है, तो तन-मन लगाकर एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो। (IN)

1 पतरस 1:23 क्योंकि तुम ने नाशवान नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्‍वर के जीविते और सदा ठहरनेवाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है। (IN)

1 पतरस 1:24 ¶ क्योंकि “हर एक प्राणी घास के समान है, और उसकी सारी शोभा घास के फूल के समान है: (IN)

1 पतरस 1:25 परन्तु प्रभु का वचन युगानुयुग स्थिर रहता है।” (IN)

1 पतरस 2:1 ¶ इसलिए सब प्रकार का बैर-भाव, छल, कपट, डाह और बदनामी को दूर करके, (IN)

1 पतरस 2:2 नये जन्मे हुए बच्चों के समान निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ, (IN)

1 पतरस 2:3 क्योंकि तुम ने प्रभु की भलाई का स्वाद चख लिया है। (IN)

1 पतरस 2:4 ¶ उसके पास आकर, जिसे मनुष्यों ने तो निकम्मा ठहराया, परन्तु परमेश्‍वर के निकट चुना हुआ, और बहुमूल्य जीविता पत्थर है। (IN)

1 पतरस 2:5 तुम भी आप जीविते पत्थरों के समान आत्मिक घर बनते जाते हो, जिससे याजकों का पवित्र समाज बनकर, ऐसे आत्मिक बलिदान चढ़ाओ, जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर को ग्रहणयोग्य हो। (IN)

1 पतरस 2:6 ¶ इस कारण पवित्रशास्त्र में भी लिखा है, (IN)

1 पतरस 2:7 ¶ अतः तुम्हारे लिये जो विश्वास करते हो, वह तो बहुमूल्य है, पर जो विश्वास नहीं करते उनके लिये, (IN)

1 पतरस 2:8 ¶ और, (IN)

1 पतरस 2:9 ¶ पर तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और परमेश्‍वर की निज प्रजा हो, इसलिए कि जिसने तुम्हें अंधकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो। (IN)

1 पतरस 2:10 तुम पहले तो कुछ भी नहीं थे, (IN)

1 पतरस 2:11 ¶ हे प्रियों मैं तुम से विनती करता हूँ कि तुम अपने आपको परदेशी और यात्री जानकर उन सांसारिक अभिलाषाओं से जो आत्मा से युद्ध करती हैं, बचे रहो। (IN)

1 पतरस 2:12 अन्यजातियों में तुम्हारा चाल-चलन भला हो; इसलिए कि जिन-जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर उन्हीं के कारण कृपा-दृष्टि के दिन परमेश्‍वर की महिमा करें। (IN)

1 पतरस 2:13 ¶ प्रभु के लिये मनुष्यों के ठहराए हुए हर एक प्रबन्ध के अधीन रहो, राजा के इसलिए कि वह सब पर प्रधान है, (IN)

1 पतरस 2:14 और राज्यपालों के, क्योंकि वे कुकर्मियों को दण्ड देने और सुकर्मियों की प्रशंसा के लिये उसके भेजे हुए हैं। (IN)

1 पतरस 2:15 क्योंकि परमेश्‍वर की इच्छा यह है, कि तुम भले काम करने से निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बन्द कर दो। (IN)

1 पतरस 2:16 अपने आप को स्वतंत्र जानो पर अपनी इस स्वतंत्रता को बुराई के लिये आड़ न बनाओ, परन्तु अपने आपको परमेश्‍वर के दास समझकर चलो। (IN)

1 पतरस 2:17 सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्‍वर से डरो, राजा का सम्मान करो। (IN)

1 पतरस 2:18 ¶ हे सेवकों, हर प्रकार के भय के साथ अपने स्वामियों के अधीन रहो, न केवल भलों और नम्रों के, पर कुटिलों के भी। (IN)

1 पतरस 2:19 क्योंकि यदि कोई परमेश्‍वर का विचार करके अन्याय से दुःख उठाता हुआ क्लेश सहता है, तो यह सुहावना है। (IN)

1 पतरस 2:20 क्योंकि यदि तुमने अपराध करके घूँसे खाए और धीरज धरा, तो उसमें क्या बड़ाई की बात है? पर यदि भला काम करके दुःख उठाते हो और धीरज धरते हो, तो यह परमेश्‍वर को भाता है। (IN)

1 पतरस 2:21 ¶ और तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुःख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है कि तुम भी उसके पद-चिन्ह पर चलो। (IN)

1 पतरस 2:22 न तो उसने पाप किया, (IN)

1 पतरस 2:23 वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुःख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आपको सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था। (IN)

1 पतरस 2:24 ¶ वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया, जिससे हम पापों के लिये मर करके धार्मिकता के लिये जीवन बिताएँ। उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए। (IN)

1 पतरस 2:25 क्योंकि तुम पहले भटकी हुई भेड़ों के समान थे, पर अब अपने प्राणों के रखवाले और चरवाहे के पास फिर लौट आ गए हो। (IN)

1 पतरस 3:1 ¶ हे पत्नियों, तुम भी अपने पति के अधीन रहो। इसलिए कि यदि इनमें से कोई ऐसे हो जो वचन को न मानते हों, (IN)

1 पतरस 3:2 तो भी तुम्हारे भय सहित पवित्र चाल-चलन को देखकर बिना वचन के अपनी-अपनी पत्‍नी के चाल-चलन के द्वारा खिंच जाएँ। (IN)

1 पतरस 3:3 ¶ और तुम्हारा श्रृंगार दिखावटी न हो, अर्थात् बाल गूँथने, और सोने के गहने, या भाँति-भाँति के कपड़े पहनना। (IN)

1 पतरस 3:4 वरन् तुम्हारा छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्जित रहे, क्योंकि परमेश्‍वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है। (IN)

1 पतरस 3:5 ¶ और पूर्वकाल में पवित्र स्त्रियाँ भी, जो परमेश्‍वर पर आशा रखती थीं, अपने आपको इसी रीति से संवारती और अपने-अपने पति के अधीन रहती थीं। (IN)

1 पतरस 3:6 जैसे सारा अब्राहम की आज्ञा मानती थी और उसे स्वामी कहती थी। अतः तुम भी यदि भलाई करो और किसी प्रकार के भय से भयभीत न हो तो उसकी बेटियाँ ठहरोगी। (IN)

1 पतरस 3:7 ¶ वैसे ही हे पतियों, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के वरदान के वारिस हैं, जिससे तुम्हारी प्रार्थनाएँ रुक न जाएँ। (IN)

1 पतरस 3:8 ¶ अतः सब के सब एक मन और दयालु और भाईचारे के प्रेम रखनेवाले, और करुणामय, और नम्र बनो। (IN)

1 पतरस 3:9 बुराई के बदले बुराई मत करो और न गाली के बदले गाली दो; पर इसके विपरीत आशीष ही दो: क्योंकि तुम आशीष के वारिस होने के लिये बुलाए गए हो। (IN)

1 पतरस 3:10 क्योंकि (IN)

1 पतरस 3:11 वह बुराई का साथ छोड़े, और भलाई ही करे; वह मेल मिलाप को ढूँढ़े, और उसके यत्न में रहे। (IN)

1 पतरस 3:12 क्योंकि प्रभु की आँखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान उसकी विनती की ओर लगे रहते हैं, परन्तु प्रभु बुराई करनेवालों के विमुख रहता है।” (IN)

1 पतरस 3:13 ¶ यदि तुम भलाई करने में उत्तेजित रहो तो तुम्हारी बुराई करनेवाला फिर कौन है? (IN)

1 पतरस 3:14 यदि तुम धार्मिकता के कारण दुःख भी उठाओ, तो धन्य हो; पर उनके डराने से मत डरो, और न घबराओ, (IN)

1 पतरस 3:15 ¶ पर मसीह को प्रभु जानकर अपने-अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ; (IN)

1 पतरस 3:16 और विवेक भी शुद्ध रखो, इसलिए कि जिन बातों के विषय में तुम्हारी बदनामी होती है उनके विषय में वे, जो मसीह में तुम्हारे अच्छे चाल-चलन का अपमान करते हैं, लज्जित हों। (IN)

1 पतरस 3:17 क्योंकि यदि परमेश्‍वर की यही इच्छा हो कि तुम भलाई करने के कारण दुःख उठाओ, तो यह बुराई करने के कारण दुःख उठाने से उत्तम है। (IN)

1 पतरस 3:18 ¶ इसलिए कि मसीह ने भी, अर्थात् अधर्मियों के लिये धर्मी ने पापों के कारण एक बार दुःख उठाया, ताकि हमें परमेश्‍वर के पास पहुँचाए; वह शरीर के भाव से तो मारा गया, पर आत्मा के भाव से जिलाया गया। (IN)

1 पतरस 3:19 उसी में उसने जाकर कैदी आत्माओं को भी प्रचार किया। (IN)

1 पतरस 3:20 जिन्होंने उस बीते समय में आज्ञा न मानी जब परमेश्‍वर नूह के दिनों में धीरज धरकर ठहरा रहा, और वह जहाज बन रहा था, जिसमें बैठकर कुछ लोग अर्थात् आठ प्राणी पानी के द्वारा बच गए। (IN)

1 पतरस 3:21 ¶ और उसी पानी का दृष्टान्त भी, अर्थात् बपतिस्मा, यीशु मसीह के जी उठने के द्वारा, अब तुम्हें बचाता है; उससे शरीर के मैल को दूर करने का अर्थ नहीं है, परन्तु शुद्ध विवेक से परमेश्‍वर के वश में हो जाने का अर्थ है। (IN)

1 पतरस 3:22 वह स्वर्ग पर जाकर परमेश्‍वर के दाहिनी ओर है; और स्वर्गदूतों, अधिकारियों और सामर्थियों को उसके अधीन किए गए हैं। (IN)

1 पतरस 4:1 ¶ इसलिए जब कि मसीह ने शरीर में होकर दुःख उठाया तो तुम भी उसी मनसा को हथियार के समान धारण करो, क्योंकि जिसने शरीर में दुःख उठाया, वह पाप से छूट गया, (IN)

1 पतरस 4:2 ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं वरन् परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो। (IN)

1 पतरस 4:3 ¶ क्योंकि अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्ति पूजा में जहाँ तक हमने पहले से समय गँवाया, वही बहुत हुआ। (IN)

1 पतरस 4:4 ¶ इससे वे अचम्भा करते हैं, कि तुम ऐसे भारी लुचपन में उनका साथ नहीं देते, और इसलिए वे बुरा-भला कहते हैं। (IN)

1 पतरस 4:5 पर वे उसको जो जीवितों और मरे हुओं का न्याय करने को तैयार हैं, लेखा देंगे। (IN)

1 पतरस 4:6 क्योंकि मरे हुओं को भी सुसमाचार इसलिए सुनाया गया, कि शरीर में तो मनुष्यों के अनुसार उनका न्याय हुआ, पर आत्मा में वे परमेश्‍वर के अनुसार जीवित रहें। (IN)

1 पतरस 4:7 ¶ सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; इसलिए संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो। (IN)

1 पतरस 4:8 सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढाँप देता है। (IN)

1 पतरस 4:9 बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो। (IN)

1 पतरस 4:10 ¶ जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए। (IN)

1 पतरस 4:11 यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले मानो परमेश्‍वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्ति से करे जो परमेश्‍वर देता है; जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्‍वर की महिमा प्रगट हो। महिमा और सामर्थ्य युगानुयुग उसी की है। आमीन। (IN)

1 पतरस 4:12 ¶ हे प्रियों, जो दुःख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इससे यह समझकर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है। (IN)

1 पतरस 4:13 पर जैसे-जैसे मसीह के दुःखों में सहभागी होते हो, आनन्द करो, जिससे उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनन्दित और मगन हो। (IN)

1 पतरस 4:14 फिर यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्दा की जाती है, तो धन्य हो; क्योंकि महिमा की आत्मा, जो परमेश्‍वर की आत्मा है, तुम पर छाया करती है। (IN)

1 पतरस 4:15 ¶ तुम में से कोई व्यक्ति हत्यारा या चोर, या कुकर्मी होने, या पराए काम में हाथ डालने के कारण दुःख न पाए। (IN)

1 पतरस 4:16 पर यदि मसीही होने के कारण दुःख पाए, तो लज्जित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्‍वर की महिमा करे। (IN)

1 पतरस 4:17 ¶ क्योंकि वह समय आ पहुँचा है, कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उनका क्या अन्त होगा जो परमेश्‍वर के सुसमाचार को नहीं मानते? (IN)

1 पतरस 4:18 और (IN)

1 पतरस 4:19 इसलिए जो परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार दुःख उठाते हैं, वे भलाई करते हुए, अपने-अपने प्राण को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ में सौंप दें। (IN)

1 पतरस 5:1 ¶ तुम में जो प्राचीन हैं, मैं उनके समान प्राचीन और मसीह के दुःखों का गवाह और प्रगट होनेवाली महिमा में सहभागी होकर उन्हें यह समझाता हूँ। (IN)

1 पतरस 5:2 कि परमेश्‍वर के उस झुण्ड की, जो तुम्हारे बीच में हैं रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच-कमाई के लिये नहीं, पर मन लगाकर। (IN)

1 पतरस 5:3 जो लोग तुम्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताओ, वरन् झुण्ड के लिये आदर्श बनो। (IN)

1 पतरस 5:4 और जब प्रधान रखवाला प्रगट होगा, तो तुम्हें महिमा का मुकुट दिया जाएगा, जो मुरझाने का नहीं। (IN)

1 पतरस 5:5 ¶ हे नवयुवकों, तुम भी वृद्ध पुरुषों के अधीन रहो, वरन् तुम सब के सब एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बाँधे रहो, क्योंकि (IN)

1 पतरस 5:6 इसलिए परमेश्‍वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिससे वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। (IN)

1 पतरस 5:7 अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उसको तुम्हारा ध्यान है। (IN)

1 पतरस 5:8 ¶ सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के समान इस खोज में रहता है, कि किसको फाड़ खाए। (IN)

1 पतरस 5:9 विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका सामना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुःख भुगत रहे हैं। (IN)

1 पतरस 5:10 ¶ अब परमेश्‍वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, जिसने तुम्हें मसीह में अपनी अनन्त महिमा के लिये बुलाया, तुम्हारे थोड़ी देर तक दुःख उठाने के बाद आप ही तुम्हें सिद्ध और स्थिर और बलवन्त करेगा। (IN)

1 पतरस 5:11 उसी का साम्राज्य युगानुयुग रहे। आमीन। (IN)

1 पतरस 5:12 ¶ मैंने सिलवानुस के हाथ, जिसे मैं विश्वासयोग्य भाई समझता हूँ, संक्षेप में लिखकर तुम्हें समझाया है, और यह गवाही दी है कि परमेश्‍वर का सच्चा अनुग्रह यही है, इसी में स्थिर रहो। (IN)

1 पतरस 5:13 जो बाबेल में तुम्हारे समान चुने हुए लोग हैं, वह और मेरा पुत्र मरकुस तुम्हें नमस्कार कहते हैं। (IN)

1 पतरस 5:14 प्रेम से चुम्बन लेकर एक दूसरे को नमस्कार करो। (IN)

2 पतरस 1:1 ¶ शमौन पतरस की और से जो यीशु मसीह का दास और प्रेरित है, उन लोगों के नाम जिन्होंने हमारे परमेश्‍वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की धार्मिकता से हमारा जैसा बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है। (IN)

2 पतरस 1:2 परमेश्‍वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शान्ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए। (IN)

2 पतरस 1:3 ¶ क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ्य ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है। (IN)

2 पतरस 1:4 जिनके द्वारा उसने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएँ दी हैं ताकि इनके द्वारा तुम उस सड़ाहट से छूटकर जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है, ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाओ। (IN)

2 पतरस 1:5 ¶ और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्न करके, अपने विश्वास पर सद्गुण, और सद्गुण पर समझ, (IN)

2 पतरस 1:6 और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति। (IN)

2 पतरस 1:7 और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ। (IN)

2 पतरस 1:8 ¶ क्योंकि यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएँ, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह की पहचान में निकम्मे और निष्फल न होने देंगी। (IN)

2 पतरस 1:9 क्योंकि जिसमें ये बातें नहीं, वह अंधा है, और धुन्धला देखता है, और अपने पूर्वकाली पापों से धुलकर शुद्ध होने को भूल बैठा है। (IN)

2 पतरस 1:10 ¶ इस कारण हे भाइयों, अपने बुलाए जाने, और चुन लिये जाने को सिद्ध करने का भली भाँति यत्न करते जाओ, क्योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे; (IN)

2 पतरस 1:11 वरन् इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाओगे। (IN)

2 पतरस 1:12 ¶ इसलिए यद्यपि तुम ये बातें जानते हो, और जो सत्य वचन तुम्हें मिला है, उसमें बने रहते हो, तो भी मैं तुम्हें इन बातों की सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूँगा। (IN)

2 पतरस 1:13 और मैं यह अपने लिये उचित समझता हूँ, कि जब तक मैं इस डेरे में हूँ, तब तक तुम्हें सुधि दिलाकर उभारता रहूँ। (IN)

2 पतरस 1:14 क्योंकि यह जानता हूँ, कि मसीह के वचन के अनुसार मेरे डेरे के गिराए जाने का समय शीघ्र आनेवाला है, जैसा कि हमारे प्रभु यीशु मसीह ने मुझ पर प्रकट किया है। (IN)

2 पतरस 1:15 इसलिए मैं ऐसा यत्न करूँगा, कि मेरे संसार से जाने के बाद तुम इन सब बातों को सर्वदा स्मरण कर सको। (IN)

2 पतरस 1:16 ¶ क्योंकि जब हमने तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह की सामर्थ्य का, और आगमन का समाचार दिया था तो वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों का अनुकरण नहीं किया था वरन् हमने आप ही उसके प्रताप को देखा था। (IN)

2 पतरस 1:17 कि उसने परमेश्‍वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं प्रसन्‍न हूँ।” (IN)

2 पतरस 1:18 और जब हम उसके साथ पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुनी। (IN)

2 पतरस 1:19 ¶ और हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो, कि जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अंधियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे। (IN)

2 पतरस 1:20 पर पहले यह जान लो कि पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी की अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। (IN)

2 पतरस 1:21 क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे। (IN)

2 पतरस 2:1 ¶ जिस प्रकार उन लोगों में झूठे भविष्यद्वक्ता थे उसी प्रकार तुम में भी झूठे उपदेशक होंगे, जो नाश करनेवाले पाखण्ड का उद्घाटन छिप छिपकर करेंगे और उस प्रभु का जिस ने उन्हें मोल लिया है इन्कार करेंगे और अपने आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे। (IN)

2 पतरस 2:2 और बहुत सारे उनके समान लुचपन करेंगे, जिनके कारण सत्य के मार्ग की निन्दा की जाएगी। (IN)

2 पतरस 2:3 और वे लोभ के लिये बातें गढ़कर तुम्हें अपने लाभ का कारण बनाएँगे, और जो दण्ड की आज्ञा उन पर पहले से हो चुकी है, उसके आने में कुछ भी देर नहीं, और उनका विनाश उँघता नहीं। (IN)

2 पतरस 2:4 ¶ क्योंकि जब परमेश्‍वर ने उन दूतों को जिन्होंने पाप किया नहीं छोड़ा, पर नरक में भेजकर अंधेरे कुण्डों में डाल दिया, ताकि न्याय के दिन तक बन्दी रहें। (IN)

2 पतरस 2:5 और प्राचीन युग के संसार को भी न छोड़ा, वरन् भक्तिहीन संसार पर महा जल-प्रलय भेजकर धार्मिकता का प्रचारक नूह समेत आठ व्यक्तियों को बचा लिया; (IN)

2 पतरस 2:6 और सदोम और गमोरा के नगरों को विनाश का ऐसा दण्ड दिया, कि उन्हें भस्म करके राख में मिला दिया ताकि वे आनेवाले भक्तिहीन लोगों की शिक्षा के लिये एक दृष्टान्त बनें (IN)

2 पतरस 2:7 ¶ और धर्मी लूत को जो अधर्मियों के अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुःखी था छुटकारा दिया। (IN)

2 पतरस 2:8 (क्योंकि वह धर्मी उनके बीच में रहते हुए, और उनके अधर्म के कामों को देख देखकर, और सुन सुनकर, हर दिन अपने सच्चे मन को पीड़ित करता था)। (IN)

2 पतरस 2:9 तो प्रभु के भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है। (IN)

2 पतरस 2:10 ¶ विशेष करके उन्हें जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं वे ढीठ, और हठी हैं, और ऊँचे पदवालों को बुरा-भला कहने से नहीं डरते। (IN)

2 पतरस 2:11 तो भी स्वर्गदूत जो शक्ति और सामर्थ्य में उनसे बड़े हैं, प्रभु के सामने उन्हें बुरा-भला कहकर दोष नहीं लगाते। (IN)

2 पतरस 2:12 ¶ पर ये लोग निर्बुद्धि पशुओं ही के तुल्य हैं, जो पकड़े जाने और नाश होने के लिये उत्‍पन्‍न हुए हैं; और जिन बातों को जानते ही नहीं, उनके विषय में औरों को बुरा-भला कहते हैं, वे अपनी सड़ाहट में आप ही सड़ जाएँगे। (IN)

2 पतरस 2:13 औरों का बुरा करने के बदले उन्हीं का बुरा होगा; उन्हें दिन दोपहर सुख-विलास करना भला लगता है; यह कलंक और दोष है जब वे तुम्हारे साथ खाते पीते हैं, तो अपनी ओर से प्रेम भोज करके भोग-विलास करते हैं। (IN)

2 पतरस 2:14 उनकी आँखों में व्यभिचार बसा हुआ है, और वे पाप किए बिना रुक नहीं सकते; वे चंचल मनवालों को फुसला लेते हैं; उनके मन को लोभ करने का अभ्यास हो गया है, वे सन्ताप के सन्तान हैं। (IN)

2 पतरस 2:15 ¶ वे सीधे मार्ग को छोड़कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग पर हो लिए हैं; जिस ने अधर्म की मजदूरी को प्रिय जाना; (IN)

2 पतरस 2:16 पर उसके अपराध के विषय में उलाहना दिया गया, यहाँ तक कि अबोल गदही ने मनुष्य की बोली से उस भविष्यद्वक्ता को उसके बावलेपन से रोका। (IN)

2 पतरस 2:17 ¶ ये लोग सूखे कुएँ, और आँधी के उड़ाए हुए बादल हैं, उनके लिये अनन्त अंधकार ठहराया गया है। (IN)

2 पतरस 2:18 ¶ वे व्यर्थ घमण्ड की बातें कर करके लुचपन के कामों के द्वारा, उन लोगों को शारीरिक अभिलाषाओं में फँसा लेते हैं, जो भटके हुओं में से अभी निकल ही रहे हैं। (IN)

2 पतरस 2:19 वे उन्हें स्वतंत्र होने की प्रतिज्ञा तो देते हैं, पर आप ही सड़ाहट के दास हैं, क्योंकि जो व्यक्ति जिससे हार गया है, वह उसका दास बन जाता है। (IN)

2 पतरस 2:20 ¶ और जब वे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की पहचान के द्वारा संसार की नाना प्रकार की अशुद्धता से बच निकले, और फिर उनमें फँसकर हार गए, तो उनकी पिछली दशा पहली से भी बुरी हो गई है। (IN)

2 पतरस 2:21 क्योंकि धार्मिकता के मार्ग का न जानना ही उनके लिये इससे भला होता, कि उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई थी। (IN)

2 पतरस 2:22 उन पर यह कहावत ठीक बैठती है, कि कुत्ता अपनी छाँट की ओर और नहलाई हुई सूअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है। (IN)

2 पतरस 3:1 ¶ हे प्रियों, अब मैं तुम्हें यह दूसरी पत्री लिखता हूँ, और दोनों में सुधि दिलाकर तुम्हारे शुद्ध मन को उभारता हूँ, (IN)

2 पतरस 3:2 कि तुम उन बातों को, जो पवित्र भविष्यद्वक्ताओं ने पहले से कही हैं और प्रभु, और उद्धारकर्ता की उस आज्ञा को स्मरण करो, जो तुम्हारे प्रेरितों के द्वारा दी गई थी। (IN)

2 पतरस 3:3 ¶ और यह पहले जान लो, कि अन्तिम दिनों में हँसी-उपहास करनेवाले आएँगे, जो अपनी ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे। (IN)

2 पतरस 3:4 और कहेंगे, “उसके आने की प्रतिज्ञा कहाँ गई? क्योंकि जब से पूर्वज सो गए हैं, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से था।” (IN)

2 पतरस 3:5 ¶ वे तो जान-बूझकर यह भूल गए, कि परमेश्‍वर के वचन के द्वारा से आकाश प्राचीनकाल से विद्यमान है और पृथ्वी भी जल में से बनी और जल में स्थिर है (IN)

2 पतरस 3:6 इन्हीं के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया। (IN)

2 पतरस 3:7 पर वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिए रखे हैं, कि जलाए जाएँ; और वह भक्तिहीन मनुष्यों के न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे। (IN)

2 पतरस 3:8 ¶ हे प्रियों, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहाँ एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं। (IN)

2 पतरस 3:9 प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन् यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले। (IN)

2 पतरस 3:10 ¶ परन्तु प्रभु का दिन चोर के समान आ जाएगा, उस दिन आकाश बड़े शोर के साथ जाता रहेगा, और तत्व बहुत ही तप्त होकर पिघल जाएँगे, और पृथ्वी और उसके कामों का न्याय होगा। (IN)

2 पतरस 3:11 ¶ तो जब कि ये सब वस्तुएँ, इस रीति से पिघलनेवाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चाल चलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए, (IN)

2 पतरस 3:12 और परमेश्‍वर के उस दिन की प्रतीक्षा किस रीति से करना चाहिए और उसके जल्द आने के लिये कैसा यत्न करना चाहिए; जिसके कारण आकाश आग से पिघल जाएँगे, और आकाश के गण बहुत ही तप्त होकर गल जाएँगे। (IN)

2 पतरस 3:13 पर उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नये आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिनमें धार्मिकता वास करेगी। (IN)

2 पतरस 3:14 ¶ इसलिए, हे प्रियों, जब कि तुम इन बातों की आस देखते हो तो यत्न करो कि तुम शान्ति से उसके सामने निष्कलंक और निर्दोष ठहरो। (IN)

2 पतरस 3:15 और हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो, जैसा हमारे प्रिय भाई पौलुस ने भी उस ज्ञान के अनुसार जो उसे मिला, तुम्हें लिखा है। (IN)

2 पतरस 3:16 वैसे ही उसने अपनी सब पत्रियों में भी इन बातों की चर्चा की है जिनमें कितनी बातें ऐसी है, जिनका समझना कठिन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उनके अर्थों को भी पवित्रशास्त्र की अन्य बातों के समान खींच तानकर अपने ही नाश का कारण बनाते हैं। (IN)

2 पतरस 3:17 ¶ इसलिए हे प्रियों तुम लोग पहले ही से इन बातों को जानकर चौकस रहो, ताकि अधर्मियों के भ्रम में फँसकर अपनी स्थिरता को हाथ से कहीं खो न दो। (IN)

2 पतरस 3:18 पर हमारे प्रभु, और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन। (IN)

1 यूहन्ना 1:1 ¶ उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हमने सुना, और जिसे अपनी आँखों से देखा, वरन् जिसे हमने ध्यान से देखा और हाथों से छुआ। (IN)

1 यूहन्ना 1:2 (यह जीवन प्रगट हुआ, और हमने उसे देखा, और उसकी गवाही देते हैं, और तुम्हें उस अनन्त जीवन का समाचार देते हैं जो पिता के साथ था और हम पर प्रगट हुआ)। (IN)

1 यूहन्ना 1:3 ¶ जो कुछ हमने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिए कि तुम भी हमारे साथ सहभागी हो; और हमारी यह सहभागिता पिता के साथ, और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ है। (IN)

1 यूहन्ना 1:4 और ये बातें हम इसलिए लिखते हैं, कि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए। (IN)

1 यूहन्ना 1:5 ¶ जो समाचार हमने उससे सुना, और तुम्हें सुनाते हैं, वह यह है; कि परमेश्‍वर ज्योति है और उसमें कुछ भी अंधकार नहीं। (IN)

1 यूहन्ना 1:6 यदि हम कहें, कि उसके साथ हमारी सहभागिता है, और फिर अंधकार में चलें, तो हम झूठ बोलते हैं और सत्य पर नहीं चलते। (IN)

1 यूहन्ना 1:7 पर यदि जैसा वह ज्योति में है, वैसे ही हम भी ज्योति में चलें, तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं और उसके पुत्र यीशु मसीह का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है। (IN)

1 यूहन्ना 1:8 ¶ यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं। (IN)

1 यूहन्ना 1:9 यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। (IN)

1 यूहन्ना 1:10 यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है। (IN)

1 यूहन्ना 2:1 ¶ मेरे प्रिय बालकों, मैं ये बातें तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात् धर्मी यीशु मसीह। (IN)

1 यूहन्ना 2:2 और वही हमारे पापों का प्रायश्चित है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन् सारे जगत के पापों का भी। (IN)

1 यूहन्ना 2:3 ¶ यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे, तो इससे हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं। (IN)

1 यूहन्ना 2:4 ¶ जो कोई यह कहता है, “मैं उसे जान गया हूँ,” और उसकी आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है; और उसमें सत्य नहीं। (IN)

1 यूहन्ना 2:5 पर जो कोई उसके वचन पर चले, उसमें सचमुच परमेश्‍वर का प्रेम सिद्ध हुआ है। हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उसमें हैं। (IN)

1 यूहन्ना 2:6 जो कोई यह कहता है, कि मैं उसमें बना रहता हूँ, उसे चाहिए कि वह स्वयं भी वैसे ही चले जैसे यीशु मसीह चलता था। (IN)

1 यूहन्ना 2:7 ¶ हे प्रियों, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं लिखता, पर वही पुरानी आज्ञा जो आरम्भ से तुम्हें मिली है; यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम ने सुना है। (IN)

1 यूहन्ना 2:8 फिर भी मैं तुम्हें नई आज्ञा लिखता हूँ; और यह तो उसमें और तुम में सच्ची ठहरती है; क्योंकि अंधकार मिटता जा रहा है और सत्य की ज्योति अभी चमकने लगी है। (IN)

1 यूहन्ना 2:9 ¶ जो कोई यह कहता है, कि मैं ज्योति में हूँ; और अपने भाई से बैर रखता है, वह अब तक अंधकार ही में है। (IN)

1 यूहन्ना 2:10 जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता। (IN)

1 यूहन्ना 2:11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अंधकार में है, और अंधकार में चलता है; और नहीं जानता, कि कहाँ जाता है, क्योंकि अंधकार ने उसकी आँखें अंधी कर दी हैं। (IN)

1 यूहन्ना 2:12 ¶ हे बालकों, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि उसके नाम से तुम्हारे पाप क्षमा हुए। (IN)

1 यूहन्ना 2:13 हे पिताओं, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि जो आदि से है, तुम उसे जानते हो हे जवानों, मैं तुम्हें इसलिए लिखता हूँ, कि तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है: हे बालकों, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि तुम पिता को जान गए हो। (IN)

1 यूहन्ना 2:14 हे पिताओं, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि जो आदि से है तुम उसे जान गए हो। हे जवानों, मैंने तुम्हें इसलिए लिखा है, कि बलवन्त हो, और परमेश्‍वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है। (IN)

1 यूहन्ना 2:15 ¶ तुम न तो संसार से और न संसार की वस्तुओं से प्रेम रखो यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है। (IN)

1 यूहन्ना 2:16 क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आँखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। (IN)

1 यूहन्ना 2:17 संसार और उसकी अभिलाषाएँ दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा। (IN)

1 यूहन्ना 2:18 ¶ हे लड़कों, यह अन्तिम समय है, और जैसा तुम ने सुना है, कि मसीह का विरोधी आनेवाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह के विरोधी उठे हैं; इससे हम जानते हैं, कि यह अन्तिम समय है। (IN)

1 यूहन्ना 2:19 वे निकले तो हम में से ही, परन्तु हम में से न थे; क्योंकि यदि वे हम में से होते, तो हमारे साथ रहते, पर निकल इसलिए गए ताकि यह प्रगट हो कि वे सब हम में से नहीं हैं। (IN)

1 यूहन्ना 2:20 ¶ और तुम्हारा तो उस पवित्र से अभिषेक हुआ है, और तुम सब सत्य जानते हो। (IN)

1 यूहन्ना 2:21 मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिखा, कि तुम सत्य को नहीं जानते, पर इसलिए, कि तुम उसे जानते हो, और इसलिए कि कोई झूठ, सत्य की ओर से नहीं। (IN)

1 यूहन्ना 2:22 ¶ झूठा कौन है? वह, जो यीशु के मसीह होने का इन्कार करता है; और मसीह का विरोधी वही है, जो पिता का और पुत्र का इन्कार करता है। (IN)

1 यूहन्ना 2:23 जो कोई पुत्र का इन्कार करता है उसके पास पिता भी नहीं जो पुत्र को मान लेता है, उसके पास पिता भी है। (IN)

1 यूहन्ना 2:24 ¶ जो कुछ तुम ने आरम्भ से सुना है वही तुम में बना रहे; जो तुम ने आरम्भ से सुना है, यदि वह तुम में बना रहे, तो तुम भी पुत्र में, और पिता में बने रहोगे। (IN)

1 यूहन्ना 2:25 ¶ और जिसकी उसने हम से प्रतिज्ञा की वह अनन्त जीवन है। (IN)

1 यूहन्ना 2:26 मैंने ये बातें तुम्हें उनके विषय में लिखी हैं, जो तुम्हें भरमाते हैं। (IN)

1 यूहन्ना 2:27 ¶ और तुम्हारा वह अभिषेक, जो उसकी ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इसका प्रयोजन नहीं, कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन् जैसे वह अभिषेक जो उसकी ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और यह सच्चा है, और झूठा नहीं और जैसा उसने तुम्हें सिखाया है वैसे ही तुम उसमें बने रहते हो। (IN)

1 यूहन्ना 2:28 ¶ अतः हे बालकों, उसमें बने रहो; कि जब वह प्रगट हो, तो हमें साहस हो, और हम उसके आने पर उसके सामने लज्जित न हों। (IN)

1 यूहन्ना 2:29 यदि तुम जानते हो, कि वह धर्मी है, तो यह भी जानते हो, कि जो कोई धार्मिकता का काम करता है, वह उससे जन्मा है। (IN)

1 यूहन्ना 3:1 ¶ देखो, पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्‍वर की सन्तान कहलाएँ, और हम हैं भी; इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उसने उसे भी नहीं जाना। (IN)

1 यूहन्ना 3:2 हे प्रियों, अब हम परमेश्‍वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब यीशु मसीह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि हम उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। (IN)

1 यूहन्ना 3:3 और जो कोई उस पर यह आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है, जैसा वह पवित्र है। (IN)

1 यूहन्ना 3:4 ¶ जो कोई पाप करता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है; और पाप तो व्यवस्था का विरोध है। (IN)

1 यूहन्ना 3:5 और तुम जानते हो, कि यीशु मसीह इसलिए प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए; और उसमें कोई पाप नहीं। (IN)

1 यूहन्ना 3:6 जो कोई उसमें बना रहता है, वह पाप नहीं करता: जो कोई पाप करता है, उसने न तो उसे देखा है, और न उसको जाना है। (IN)

1 यूहन्ना 3:7 ¶ प्रिय बालकों, किसी के भरमाने में न आना; जो धार्मिकता का काम करता है, वही उसके समान धर्मी है। (IN)

1 यूहन्ना 3:8 जो कोई पाप करता है, वह शैतान की ओर से है, क्योंकि शैतान आरम्भ ही से पाप करता आया है। परमेश्‍वर का पुत्र इसलिए प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे। (IN)

1 यूहन्ना 3:9 ¶ जो कोई परमेश्‍वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका बीज उसमें बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता, क्योंकि वह परमेश्‍वर से जन्मा है। (IN)

1 यूहन्ना 3:10 इसी से परमेश्‍वर की सन्तान, और शैतान की सन्तान जाने जाते हैं; जो कोई धार्मिकता नहीं करता, वह परमेश्‍वर से नहीं, और न वह जो अपने भाई से प्रेम नहीं रखता। (IN)

1 यूहन्ना 3:11 ¶ क्योंकि जो समाचार तुम ने आरम्भ से सुना, वह यह है, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें। (IN)

1 यूहन्ना 3:12 और कैन के समान न बनें, जो उस दुष्ट से था, और जिस ने अपने भाई की हत्या की। और उसकी हत्या किस कारण की? इसलिए कि उसके काम बुरे थे, और उसके भाई के काम धार्मिक थे। (भज. 38: 20) (IN)

1 यूहन्ना 3:13 ¶ हे भाइयों, यदि संसार तुम से बैर करता है तो अचम्भा न करना। (IN)

1 यूहन्ना 3:14 हम जानते हैं, कि हम मृत्यु से पार होकर जीवन में पहुँचे हैं; क्योंकि हम भाइयों से प्रेम रखते हैं जो प्रेम नहीं रखता, वह मृत्यु की दशा में रहता है। (IN)

1 यूहन्ना 3:15 जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता। (IN)

1 यूहन्ना 3:16 ¶ हमने प्रेम इसी से जाना, कि उसने हमारे लिए अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए। (IN)

1 यूहन्ना 3:17 पर जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को जरूरत में देखकर उस पर तरस न खाना चाहे, तो उसमें परमेश्‍वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है? (IN)

1 यूहन्ना 3:18 हे मेरे प्रिय बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें। (IN)

1 यूहन्ना 3:19 ¶ इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उस विषय में हम उसके सामने अपने मन को आश्वस्त कर सकेंगे। (IN)

1 यूहन्ना 3:20 क्योंकि परमेश्‍वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है। (IN)

1 यूहन्ना 3:21 हे प्रियों, यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्‍वर के सामने साहस होता है। (IN)

1 यूहन्ना 3:22 और जो कुछ हम माँगते हैं, वह हमें उससे मिलता है; क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं। (IN)

1 यूहन्ना 3:23 ¶ और उसकी आज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र यीशु मसीह के नाम पर विश्वास करें और जैसा उसने हमें आज्ञा दी है उसी के अनुसार आपस में प्रेम रखें। (IN)

1 यूहन्ना 3:24 और जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानता है, वह उसमें, और परमेश्‍वर उनमें बना रहता है: और इसी से, अर्थात् उस पवित्र आत्मा से जो उसने हमें दिया है, हम जानते हैं, कि वह हम में बना रहता है। (IN)

1 यूहन्ना 4:1 ¶ हे प्रियों, हर एक आत्मा पर विश्वास न करो: वरन् आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्‍वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। (IN)

1 यूहन्ना 4:2 परमेश्‍वर की आत्मा को तुम इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है वह परमेश्‍वर की ओर से है। (IN)

1 यूहन्ना 4:3 और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्‍वर की ओर से नहीं है; यही मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिसकी चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आनेवाला है और अब भी जगत में है। (IN)

1 यूहन्ना 4:4 ¶ हे प्रिय बालकों, तुम परमेश्‍वर के हो और उन आत्माओं पर जय पाई है; क्योंकि जो तुम में है, वह उससे जो संसार में है, बड़ा है। (IN)

1 यूहन्ना 4:5 वे आत्माएँ संसार के हैं, इस कारण वे संसार की बातें बोलते हैं, और संसार उनकी सुनता है। (IN)

1 यूहन्ना 4:6 हम परमेश्‍वर के हैं। जो परमेश्‍वर को जानता है, वह हमारी सुनता है; जो परमेश्‍वर को नहीं जानता वह हमारी नहीं सुनता; इसी प्रकार हम सत्य की आत्मा और भ्रम की आत्मा को पहचान लेते हैं। (IN)

1 यूहन्ना 4:7 ¶ हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्‍वर से है और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्‍वर से जन्मा है और परमेश्‍वर को जानता है। (IN)

1 यूहन्ना 4:8 जो प्रेम नहीं रखता वह परमेश्‍वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्‍वर प्रेम है। (IN)

1 यूहन्ना 4:9 ¶ जो प्रेम परमेश्‍वर हम से रखता है, वह इससे प्रगट हुआ कि परमेश्‍वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है कि हम उसके द्वारा जीवन पाएँ। (IN)

1 यूहन्ना 4:10 प्रेम इसमें नहीं कि हमने परमेश्‍वर से प्रेम किया पर इसमें है, कि उसने हम से प्रेम किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिये अपने पुत्र को भेजा। (IN)

1 यूहन्ना 4:11 ¶ हे प्रियों, जब परमेश्‍वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हमको भी आपस में प्रेम रखना चाहिए। (IN)

1 यूहन्ना 4:12 ¶ परमेश्‍वर को कभी किसी ने नहीं देखा; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्‍वर हम में बना रहता है; और उसका प्रेम हम में सिद्ध होता है। (IN)

1 यूहन्ना 4:13 इसी से हम जानते हैं, कि हम उसमें बने रहते हैं, और वह हम में; क्योंकि उसने अपनी आत्मा में से हमें दिया है। (IN)

1 यूहन्ना 4:14 और हमने देख भी लिया और गवाही देते हैं कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता होने के लिए भेजा है। (IN)

1 यूहन्ना 4:15 ¶ जो कोई यह मान लेता है, कि यीशु परमेश्‍वर का पुत्र है परमेश्‍वर उसमें बना रहता है, और वह परमेश्‍वर में। (IN)

1 यूहन्ना 4:16 और जो प्रेम परमेश्‍वर हम से रखता है, उसको हम जान गए, और हमें उस पर विश्वास है। परमेश्‍वर प्रेम है; जो प्रेम में बना रहता है वह परमेश्‍वर में बना रहता है; और परमेश्‍वर उसमें बना रहता है। (IN)

1 यूहन्ना 4:17 ¶ इसी से प्रेम हम में सिद्ध हुआ, कि हमें न्याय के दिन साहस हो; क्योंकि जैसा वह है, वैसे ही संसार में हम भी हैं। (IN)

1 यूहन्ना 4:18 प्रेम में भय नहीं होता, वरन् सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय का सम्बन्ध दण्ड से होता है, और जो भय करता है, वह प्रेम में सिद्ध नहीं हुआ। (IN)

1 यूहन्ना 4:19 ¶ हम इसलिए प्रेम करते हैं, क्योंकि पहले उसने हम से प्रेम किया। (IN)

1 यूहन्ना 4:20 यदि कोई कहे, “मैं परमेश्‍वर से प्रेम रखता हूँ,” और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है; क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उसने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्‍वर से भी जिसे उसने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता। (IN)

1 यूहन्ना 4:21 और उससे हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई अपने परमेश्‍वर से प्रेम रखता है, वह अपने भाई से भी प्रेम रखे। (IN)

1 यूहन्ना 5:1 ¶ जिसका यह विश्वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्‍वर से उत्‍पन्‍न हुआ है और जो कोई उत्‍पन्‍न करनेवाले से प्रेम रखता है, वह उससे भी प्रेम रखता है, जो उससे उत्‍पन्‍न हुआ है। (IN)

1 यूहन्ना 5:2 जब हम परमेश्‍वर से प्रेम रखते हैं, और उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, तो इसी से हम यह जान लेते हैं, कि हम परमेश्‍वर की सन्तानों से प्रेम रखते हैं। (IN)

1 यूहन्ना 5:3 क्योंकि परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उसकी आज्ञाओं को मानें; और उसकी आज्ञाएँ बोझदायक नहीं। (IN)

1 यूहन्ना 5:4 ¶ क्योंकि जो कुछ परमेश्‍वर से उत्‍पन्‍न हुआ है, वह संसार पर जय प्राप्त करता है, और वह विजय जिससे संसार पर जय प्राप्त होती है हमारा विश्वास है। (IN)

1 यूहन्ना 5:5 संसार पर जय पानेवाला कौन है? केवल वह जिसका विश्वास है, कि यीशु, परमेश्‍वर का पुत्र है। (IN)

1 यूहन्ना 5:6 ¶ यह वही है, जो पानी और लहू के द्वारा आया था; अर्थात् यीशु मसीह: वह न केवल पानी के द्वारा, वरन् पानी और लहू दोनों के द्वारा आया था। और यह आत्मा है जो गवाही देता है, क्योंकि आत्मा सत्य है। (IN)

1 यूहन्ना 5:7 और गवाही देनेवाले तीन हैं; (IN)

1 यूहन्ना 5:8 आत्मा, पानी, और लहू; और तीनों एक ही बात पर सहमत हैं। (IN)

1 यूहन्ना 5:9 ¶ जब हम मनुष्यों की गवाही मान लेते हैं, तो परमेश्‍वर की गवाही तो उससे बढ़कर है; और परमेश्‍वर की गवाही यह है, कि उसने अपने पुत्र के विषय में गवाही दी है। (IN)

1 यूहन्ना 5:10 जो परमेश्‍वर के पुत्र पर विश्वास करता है, वह अपने ही में गवाही रखता है; जिस ने परमेश्‍वर पर विश्वास नहीं किया, उसने उसे झूठा ठहराया; क्योंकि उसने उस गवाही पर विश्वास नहीं किया, जो परमेश्‍वर ने अपने पुत्र के विषय में दी है। (IN)

1 यूहन्ना 5:11 ¶ और वह गवाही यह है, कि परमेश्‍वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है और यह जीवन उसके पुत्र में है। (IN)

1 यूहन्ना 5:12 जिसके पास पुत्र है, उसके पास जीवन है; और जिसके पास परमेश्‍वर का पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है। (IN)

1 यूहन्ना 5:13 ¶ मैंने तुम्हें, जो परमेश्‍वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हो, इसलिए लिखा है कि तुम जानो कि अनन्त जीवन तुम्हारा है। (IN)

1 यूहन्ना 5:14 ¶ और हमें उसके सामने जो साहस होता है, वह यह है; कि यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार कुछ माँगते हैं, तो हमारी सुनता है। (IN)

1 यूहन्ना 5:15 और जब हम जानते हैं, कि जो कुछ हम माँगते हैं वह हमारी सुनता है, तो यह भी जानते हैं, कि जो कुछ हमने उससे माँगा, वह पाया है। (IN)

1 यूहन्ना 5:16 ¶ यदि कोई अपने भाई को ऐसा पाप करते देखे, जिसका फल मृत्यु न हो, तो विनती करे, और परमेश्‍वर उसे उनके लिये, जिन्होंने ऐसा पाप किया है जिसका फल मृत्यु न हो, जीवन देगा। पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है इसके विषय में मैं विनती करने के लिये नहीं कहता। (IN)

1 यूहन्ना 5:17 सब प्रकार का अधर्म तो पाप है, परन्तु ऐसा पाप भी है, जिसका फल मृत्यु नहीं।। (IN)

1 यूहन्ना 5:18 ¶ हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्‍वर से उत्‍पन्‍न हुआ है, वह पाप नहीं करता; पर जो परमेश्‍वर से उत्‍पन्‍न हुआ, उसे वह बचाए रखता है: और वह दुष्ट उसे छूने नहीं पाता। (IN)

1 यूहन्ना 5:19 हम जानते हैं, कि हम परमेश्‍वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है। (IN)

1 यूहन्ना 5:20 ¶ और यह भी जानते हैं, कि परमेश्‍वर का पुत्र आ गया है और उसने हमें समझ दी है, कि हम उस सच्चे को पहचानें, और हम उसमें जो सत्य है, अर्थात् उसके पुत्र यीशु मसीह में रहते हैं। सच्चा परमेश्‍वर और अनन्त जीवन यही है। (IN)

1 यूहन्ना 5:21 हे बालकों, अपने आप को मूरतों से बचाए रखो। (IN)

2 यूहन्ना 1:1 ¶ मुझ प्राचीन की ओर से उस चुनी हुई महिला और उसके बच्चों के नाम जिनसे मैं सच्‍चा प्रेम रखता हूँ, और केवल मैं ही नहीं, वरन् वह सब भी प्रेम रखते हैं, जो सच्चाई को जानते हैं। (IN)

2 यूहन्ना 1:2 वह सत्य जो हम में स्थिर रहता है, और सर्वदा हमारे साथ अटल रहेगा; (IN)

2 यूहन्ना 1:3 परमेश्‍वर पिता, और पिता के पुत्र यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह, दया, और शान्ति हमारे साथ सत्य और प्रेम सहित रहेंगे।। (IN)

2 यूहन्ना 1:4 ¶ मैं बहुत आनन्दित हुआ, कि मैंने तेरे कुछ बच्चों को उस आज्ञा के अनुसार, जो हमें पिता की ओर से मिली थी, सत्य पर चलते हुए पाया। (IN)

2 यूहन्ना 1:5 अब हे महिला, मैं तुझे कोई नई आज्ञा नहीं, पर वही जो आरम्भ से हमारे पास है, लिखता हूँ; और तुझ से विनती करता हूँ, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें। (IN)

2 यूहन्ना 1:6 और प्रेम यह है कि हम उसकी आज्ञाओं के अनुसार चलें: यह वही आज्ञा है, जो तुम ने आरम्भ से सुनी है और तुम्हें इस पर चलना भी चाहिए। (IN)

2 यूहन्ना 1:7 ¶ क्योंकि बहुत से ऐसे भरमानेवाले जगत में निकल आए हैं, जो यह नहीं मानते, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया; भरमानेवाला और मसीह का विरोधी यही है। (IN)

2 यूहन्ना 1:8 अपने विषय में चौकस रहो; कि जो परिश्रम हम सब ने किया है, उसको तुम न खोना, वरन् उसका पूरा प्रतिफल पाओ। (IN)

2 यूहन्ना 1:9 ¶ जो कोई आगे बढ़ जाता है, और मसीह की शिक्षा में बना नहीं रहता, उसके पास परमेश्‍वर नहीं। जो कोई उसकी शिक्षा में स्थिर रहता है, उसके पास पिता भी है, और पुत्र भी। (IN)

2 यूहन्ना 1:10 यदि कोई तुम्हारे पास आए, और यही शिक्षा न दे, उसे न तो घर में आने दो, और न नमस्कार करो। (IN)

2 यूहन्ना 1:11 क्योंकि जो कोई ऐसे जन को नमस्कार करता है, वह उसके बुरे कामों में सहभागी होता है। (IN)

2 यूहन्ना 1:12 ¶ मुझे बहुत सी बातें तुम्हें लिखनी हैं, पर कागज और स्याही से लिखना नहीं चाहता; पर आशा है, कि मैं तुम्हारे पास आऊँ, और सम्मुख होकर बातचीत करूँ: जिससे हमारा आनन्द पूरा हो। (IN)

2 यूहन्ना 1:13 तेरी चुनी हुई बहन के बच्चे तुझे नमस्कार करते हैं। (IN)

3 यूहन्ना 1:1 ¶ मुझ प्राचीन की ओर से उस प्रिय गयुस के नाम, जिससे मैं सच्चा प्रेम रखता हूँ। (IN)

3 यूहन्ना 1:2 ¶ हे प्रिय, मेरी यह प्रार्थना है; कि जैसे तू आत्मिक उन्नति कर रहा है, वैसे ही तू सब बातों में उन्नति करे, और भला चंगा रहे। (IN)

3 यूहन्ना 1:3 क्योंकि जब भाइयों ने आकर, तेरे उस सत्य की गवाही दी, जिस पर तू सचमुच चलता है, तो मैं बहुत ही आनन्दित हुआ। (IN)

3 यूहन्ना 1:4 मुझे इससे बढ़कर और कोई आनन्द नहीं, कि मैं सुनूँ, कि मेरे बच्चे सत्य पर चलते हैं। (IN)

3 यूहन्ना 1:5 ¶ हे प्रिय, जब भी तू भाइयों के लिए कार्य करे और अजनबियों के लिए भी तो विश्वासयोग्यता के साथ कर। (IN)

3 यूहन्ना 1:6 उन्होंने कलीसिया के सामने तेरे प्रेम की गवाही दी थी। यदि तू उन्हें उस प्रकार विदा करेगा जिस प्रकार परमेश्‍वर के लोगों के लिये उचित है तो अच्छा करेगा। (IN)

3 यूहन्ना 1:7 क्योंकि वे उस नाम के लिये निकले हैं, और अन्यजातियों से कुछ नहीं लेते। (IN)

3 यूहन्ना 1:8 इसलिए ऐसों का स्वागत करना चाहिए, जिससे हम भी सत्य के पक्ष में उनके सहकर्मी हों। (IN)

3 यूहन्ना 1:9 ¶ मैंने कलीसिया को कुछ लिखा था; पर दियुत्रिफेस जो उनमें बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता। (IN)

3 यूहन्ना 1:10 इसलिए यदि मैं आऊँगा, तो उसके कामों की जो वह करता है सुधि दिलाऊँगा, कि वह हमारे विषय में बुरी-बुरी बातें बकता है; और इस पर भी सन्तोष न करके स्वयं ही भाइयों को ग्रहण नहीं करता, और उन्हें जो ग्रहण करना चाहते हैं, मना करता है और कलीसिया से निकाल देता है। (IN)

3 यूहन्ना 1:11 ¶ हे प्रिय, बुराई के नहीं, पर भलाई के अनुयायी हो। जो भलाई करता है, वह परमेश्‍वर की ओर से है; पर जो बुराई करता है, उसने परमेश्‍वर को नहीं देखा। (IN)

3 यूहन्ना 1:12 दिमेत्रियुस के विषय में सब ने वरन् सत्य ने भी आप ही गवाही दी: और हम भी गवाही देते हैं, और तू जानता है, कि हमारी गवाही सच्ची है। (IN)

3 यूहन्ना 1:13 ¶ मुझे तुझको बहुत कुछ लिखना तो था; पर स्याही और कलम से लिखना नहीं चाहता। (IN)

3 यूहन्ना 1:14 पर मुझे आशा है कि तुझ से शीघ्र भेंट करूँगा: तब हम आमने-सामने बातचीत करेंगे: 3 यूहन्ना 1:15 तुझे शान्ति मिलती रहे। यहाँ के मित्र तुझे नमस्कार करते हैं वहाँ के मित्रों के नाम ले लेकर नमस्कार कह देना। (IN)

यहूदा 1:1 ¶ यहूदा की ओर से जो यीशु मसीह का दास और याकूब का भाई है, उन बुलाए हुओं के नाम जो परमेश्‍वर पिता में प्रिय और यीशु मसीह के लिये सुरक्षित हैं। (IN)

यहूदा 1:2 ¶ दया और शान्ति और प्रेम तुम्हें बहुतायत से प्राप्त होता रहे। (IN)

यहूदा 1:3 ¶ हे प्रियों, जब मैं तुम्हें उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यन्त परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था, जिसमें हम सब सहभागी हैं; तो मैंने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था। (IN)

यहूदा 1:4 क्योंकि कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं, जिनसे इस दण्ड का वर्णन पुराने समय में पहले ही से लिखा गया था: ये भक्तिहीन हैं, और हमारे परमेश्‍वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते है, और हमारे एकमात्र स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं। (IN)

यहूदा 1:5 ¶ यद्यपि तुम सब बात एक बार जान चुके हो, तो भी मैं तुम्हें इस बात की सुधि दिलाना चाहता हूँ, कि प्रभु ने एक कुल को मिस्र देश से छुड़ाने के बाद विश्वास न लानेवालों को नाश कर दिया। (IN)

यहूदा 1:6 फिर जिन स्वर्गदूतों ने अपने पद को स्थिर न रखा वरन् अपने निज निवास को छोड़ दिया, उसने उनको भी उस भीषण दिन के न्याय के लिये अंधकार में जो सनातन के लिये है बन्धनों में रखा है। (IN)

यहूदा 1:7 ¶ जिस रीति से सदोम और गमोरा और उनके आस-पास के नगर, जो इनके समान व्यभिचारी हो गए थे और पराये शरीर के पीछे लग गए थे आग के अनन्त दण्ड में पड़कर दृष्टान्त ठहरे हैं। (IN)

यहूदा 1:8 उसी रीति से ये स्वप्नदर्शी भी अपने-अपने शरीर को अशुद्ध करते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं; और ऊँचे पदवालों को बुरा-भला कहते हैं। (IN)

यहूदा 1:9 ¶ परन्तु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने, जब शैतान से मूसा के शव के विषय में वाद-विवाद किया, तो उसको बुरा-भला कहके दोष लगाने का साहस न किया; पर यह कहा, “प्रभु तुझे डाँटे।” (IN)

यहूदा 1:10 पर ये लोग जिन बातों को नहीं जानते, उनको बुरा-भला कहते हैं; पर जिन बातों को अचेतन पशुओं के समान स्वभाव ही से जानते हैं, उनमें अपने आप को नाश करते हैं। (IN)

यहूदा 1:11 उन पर हाय! कि वे कैन के समान चाल चले, और मजदूरी के लिये बिलाम के समान भ्रष्ट हो गए हैं और कोरह के समान विरोध करके नाश हुए हैं। (IN)

यहूदा 1:12 ¶ यह तुम्हारी प्रेम-भोजों में तुम्हारे साथ खाते-पीते, समुद्र में छिपी हुई चट्टान सरीखे हैं, और बेधड़क अपना ही पेट भरनेवाले रखवाले हैं; वे निर्जल बादल हैं; जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है; पतझड़ के निष्फल पेड़ हैं, जो दो बार मर चुके हैं; और जड़ से उखड़ गए हैं; (IN)

यहूदा 1:13 ये समुद्र के प्रचण्ड हिलकोरे हैं, जो अपनी लज्जा का फेन उछालते हैं। ये डाँवाडोल तारे हैं, जिनके लिये सदा काल तक घोर अंधकार रखा गया है। (IN)

यहूदा 1:14 ¶ और हनोक ने भी जो आदम से सातवीं पीढ़ी में था, इनके विषय में यह भविष्यद्वाणी की, “देखो, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया। (IN)

यहूदा 1:15 कि सब का न्याय करे, और सब भक्तिहीनों को उनके अभक्‍ति के सब कामों के विषय में जो उन्होंने भक्‍तिहीन होकर किए हैं, और उन सब कठोर बातों के विषय में जो भक्‍तिहीन पापियों ने उसके विरोध में कही हैं, दोषी ठहराए।” (IN)

यहूदा 1:16 ये तो असंतुष्ट, कुड़कुड़ानेवाले, और अपने अभिलाषाओं के अनुसार चलनेवाले हैं; और अपने मुँह से घमण्ड की बातें बोलते हैं; और वे लाभ के लिये मुँह देखी बड़ाई किया करते हैं। (IN)

यहूदा 1:17 ¶ पर हे प्रियों, तुम उन बातों को स्मरण रखो; जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रेरित पहले कह चुके हैं। (IN)

यहूदा 1:18 वे तुम से कहा करते थे, “पिछले दिनों में ऐसे उपहास करनेवाले होंगे, जो अपनी अभक्ति की अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।” (IN)

यहूदा 1:19 ये तो वे हैं, जो फूट डालते हैं; ये शारीरिक लोग हैं, जिनमें आत्मा नहीं। (IN)

यहूदा 1:20 ¶ पर हे प्रियों तुम अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी उन्नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए। (IN)

यहूदा 1:21 अपने आप को परमेश्‍वर के प्रेम में बनाए रखो; और अनन्त जीवन के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की आशा देखते रहो। (IN)

यहूदा 1:22 ¶ और उन पर जो शंका में हैं दया करो। (IN)

यहूदा 1:23 और बहुतों को आग में से झपटकर निकालो, और बहुतों पर भय के साथ दया करो; वरन् उस वस्त्र से भी घृणा करो जो शरीर के द्वारा कलंकित हो गया है। (IN)

यहूदा 1:24 ¶ अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपनी महिमा की भरपूरी के सामने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है। (IN)

यहूदा 1:25 उस एकमात्र परमेश्‍वर के लिए, हमारे उद्धारकर्ता की महिमा, गौरव, पराक्रम और अधिकार, हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे। आमीन। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:1 ¶ यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य, जो उसे परमेश्‍वर ने इसलिए दिया कि अपने दासों को वे बातें, जिनका शीघ्र होना अवश्य है, दिखाए: और उसने अपने स्वर्गदूत को भेजकर उसके द्वारा अपने दास यूहन्ना को बताया, (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:2 जिसने परमेश्‍वर के वचन और यीशु मसीह की गवाही, अर्थात् जो कुछ उसने देखा था उसकी गवाही दी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:3 धन्य है वह जो इस भविष्यद्वाणी के वचन को पढ़ता है, और वे जो सुनते हैं और इसमें लिखी हुई बातों को मानते हैं, क्योंकि समय निकट है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:4 ¶ यूहन्ना की ओर से आसिया की सात कलीसियाओं के नाम: उसकी ओर से जो है, और जो था, और जो आनेवाला है; और उन सात आत्माओं की ओर से, जो उसके सिंहासन के सामने है, (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:5 और यीशु मसीह की ओर से, जो विश्वासयोग्य साक्षी और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहलौठा, और पृथ्वी के राजाओं का अधिपति है, तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे। जो हम से प्रेम रखता है, और जिसने अपने लहू के द्वारा हमें पापों से छुड़ाया है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:6 और हमें एक राज्य और अपने पिता परमेश्‍वर के लिये याजक भी बना दिया; उसी की महिमा और पराक्रम युगानुयुग रहे। आमीन। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:7 देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है; और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था, वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे। हाँ। आमीन। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:8 प्रभु परमेश्‍वर, जो है, और जो था, और जो आनेवाला है; जो सर्वशक्तिमान है: यह कहता है, “मैं ही अल्फा और ओमेगा हूँ।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:9 ¶ मैं यूहन्ना, जो तुम्हारा भाई, और यीशु के क्लेश, और राज्य, और धीरज में तुम्हारा सहभागी हूँ, परमेश्‍वर के वचन, और यीशु की गवाही के कारण पतमुस नामक टापू में था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:10 मैं प्रभु के दिन आत्मा में आ गया, और अपने पीछे तुरही का सा बड़ा शब्द यह कहते सुना, (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:11 “जो कुछ तू देखता है, उसे पुस्तक में लिखकर सातों कलीसियाओं के पास भेज दे, अर्थात् इफिसुस, स्मुरना, पिरगमुन, थुआतीरा, सरदीस, फिलदिलफिया और लौदीकिया को।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:12 तब मैंने उसे जो मुझसे बोल रहा था; देखने के लिये अपना मुँह फेरा; और पीछे घूमकर मैंने सोने की सात दीवटें देखी; (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:13 और उन दीवटों के बीच में मनुष्य के पुत्र सदृश्य एक पुरुष को देखा, जो पाँवों तक का वस्त्र पहने, और छाती पर सोने का कमरबन्द बाँधे हुए था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:14 उसके सिर और बाल श्वेत ऊन वरन् हिम के समान उज्ज्वल थे; और उसकी आँखें आग की ज्वाला के समान थीं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:15 उसके पाँव उत्तम पीतल के समान थे जो मानो भट्ठी में तपाए गए हों; और उसका शब्द बहुत जल के शब्द के समान था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:16 वह अपने दाहिने हाथ में सात तारे लिए हुए था, और उसके मुख से तेज दोधारी तलवार निकलती थी; और उसका मुँह ऐसा प्रज्वलित था, जैसा सूर्य कड़ी धूप के समय चमकता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:17 जब मैंने उसे देखा, तो उसके पैरों पर मुर्दा सा गिर पड़ा और उसने मुझ पर अपना दाहिना हाथ रखकर यह कहा, “मत डर; मैं प्रथम और अन्तिम हूँ, और जीवित भी मैं हूँ, (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:18 मैं मर गया था, और अब देख मैं युगानुयुग जीविता हूँ; और मृत्यु और अधोलोक की कुंजियाँ मेरे ही पास हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:19 “इसलिए जो बातें तूने देखीं हैं और जो बातें हो रही हैं; और जो इसके बाद होनेवाली हैं, उन सब को लिख ले।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 1:20 अर्थात् उन सात तारों का भेद जिन्हें तूने मेरे दाहिने हाथ में देखा था, और उन सात सोने की दीवटों का भेद: वे सात तारे सातों कलीसियाओं के स्वर्गदूत हैं, और वे सात दीवट सात कलीसियाएँ हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:1 ¶ “इफिसुस की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख: “जो सातों तारे अपने दाहिने हाथ में लिए हुए है, और सोने की सातों दीवटों के बीच में फिरता है, वह यह कहता है: (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:2 मैं तेरे काम, और तेरे परिश्रम, और तेरे धीरज को जानता हूँ; और यह भी कि तू बुरे लोगों को तो देख नहीं सकता; और जो अपने आप को प्रेरित कहते हैं, और हैं नहीं, उन्हें तूने परखकर झूठा पाया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:3 और तू धीरज धरता है, और मेरे नाम के लिये दुःख उठाते-उठाते थका नहीं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:4 पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तूने अपना पहला सा प्रेम छोड़ दिया है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:5 इसलिए स्मरण कर, कि तू कहाँ से गिरा है, और मन फिरा और पहले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा, तो मैं तेरे पास आकर तेरी दीवट को उसके स्थान से हटा दूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:6 पर हाँ, तुझ में यह बात तो है, कि तू नीकुलइयों के कामों से घृणा करता है, जिनसे मैं भी घृणा करता हूँ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:7 जिसके कान हों, वह सुन ले कि पवित्र आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्‍वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:8 ¶ “स्मुरना की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख: “जो प्रथम और अन्तिम है; जो मर गया था और अब जीवित हो गया है, वह यह कहता है: (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:9 मैं तेरे क्लेश और दरिद्रता को जानता हूँ (परन्तु तू धनी है); और जो लोग अपने आप को यहूदी कहते हैं और हैं नहीं, पर शैतान का आराधनालय हैं, उनकी निन्दा को भी जानता हूँ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:10 जो दुःख तुझको झेलने होंगे, उनसे मत डर: क्योंकि, शैतान तुम में से कुछ को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा। प्राण देने तक विश्वासयोग्य रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:11 जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, उसको दूसरी मृत्यु से हानि न पहुँचेगी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:12 ¶ “पिरगमुन की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख: “जिसके पास तेज दोधारी तलवार है, वह यह कहता है: (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:13 मैं यह तो जानता हूँ, कि तू वहाँ रहता है जहाँ शैतान का सिंहासन है, और मेरे नाम पर स्थिर रहता है; और मुझ पर विश्वास करने से उन दिनों में भी पीछे नहीं हटा जिनमें मेरा विश्वासयोग्य साक्षी अन्तिपास, तुम्हारे बीच उस स्थान पर मारा गया जहाँ शैतान रहता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:14 पर मुझे तेरे विरुद्ध कुछ बातें कहनी हैं, क्योंकि तेरे यहाँ कुछ तो ऐसे हैं, जो बिलाम की शिक्षा को मानते हैं, जिसने बालाक को इस्राएलियों के आगे ठोकर का कारण रखना सिखाया, कि वे मूर्तियों पर चढ़ाई गई वस्तुएँ खाएँ, और व्यभिचार करें। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:15 वैसे ही तेरे यहाँ कुछ तो ऐसे हैं, जो नीकुलइयों की शिक्षा को मानते हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:16 अतः मन फिरा, नहीं तो मैं तेरे पास शीघ्र ही आकर, अपने मुख की तलवार से उनके साथ लड़ूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:17 जिसके कान हों, वह सुन ले कि पवित्र आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है; जो जय पाए, उसको मैं गुप्त मन्ना में से दूँगा, और उसे एक श्वेत पत्थर भी दूँगा; और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:18 ¶ “थुआतीरा की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख: “परमेश्‍वर का पुत्र जिसकी आँखें आग की ज्वाला के समान, और जिसके पाँव उत्तम पीतल के समान हैं, वह यह कहता है: (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:19 मैं तेरे कामों, और प्रेम, और विश्वास, और सेवा, और धीरज को जानता हूँ, और यह भी कि तेरे पिछले काम पहले से बढ़कर हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:20 पर मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है, कि तू उस स्त्री इजेबेल को रहने देता है जो अपने आप को भविष्यद्वक्तिन कहती है, और मेरे दासों को व्यभिचार करने, और मूर्तियों के आगे चढ़ाई गई वस्तुएँ खाना सिखाकर भरमाती है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:21 मैंने उसको मन फिराने के लिये अवसर दिया, पर वह अपने व्यभिचार से मन फिराना नहीं चाहती। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:22 देख, मैं उसे रोगशैय्या पर डालता हूँ; और जो उसके साथ व्यभिचार करते हैं यदि वे भी उसके से कामों से मन न फिराएँगे तो उन्हें बड़े क्लेश में डालूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:23 मैं उसके बच्चों को मार डालूँगा; और तब सब कलीसियाएँ जान लेंगी कि हृदय और मन का परखनेवाला मैं ही हूँ, और मैं तुम में से हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला दूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:24 पर तुम थुआतीरा के बाकी लोगों से, जितने इस शिक्षा को नहीं मानते, और उन बातों को जिन्हें शैतान की गहरी बातें कहते हैं नहीं जानते, यह कहता हूँ, कि मैं तुम पर और बोझ न डालूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:25 पर हाँ, जो तुम्हारे पास है उसको मेरे आने तक थामे रहो। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:26 जो जय पाए, और मेरे कामों के अनुसार अन्त तक करता रहे, ‘मैं उसे जाति-जाति के लोगों पर अधिकार दूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:27 और वह लोहे का राजदण्ड लिये हुए उन पर राज्य करेगा, जिस प्रकार कुम्हार के मिट्टी के बर्तन चकनाचूर हो जाते हैं: मैंने भी ऐसा ही अधिकार अपने पिता से पाया है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:28 और मैं उसे भोर का तारा दूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 2:29 जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:1 ¶ “सरदीस की कलीसिया के स्वर्गदूत को लिख: “जिसके पास परमेश्‍वर की सात आत्माएँ और सात तारे हैं, यह कहता है कि मैं तेरे कामों को जानता हूँ, कि तू जीवित तो कहलाता है, पर है मरा हुआ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:2 ¶ जागृत हो, और उन वस्तुओं को जो बाकी रह गई हैं, और जो मिटने को है, उन्हें दृढ़ कर; क्योंकि मैंने तेरे किसी काम को अपने परमेश्‍वर के निकट पूरा नहीं पाया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:3 इसलिए स्मरण कर, कि तूने किस रीति से शिक्षा प्राप्त की और सुनी थी, और उसमें बना रह, और मन फिरा: और यदि तू जागृत न रहेगा तो मैं चोर के समान आ जाऊँगा और तू कदापि न जान सकेगा, कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पड़ूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:4 पर हाँ, सरदीस में तेरे यहाँ कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपने-अपने वस्त्र अशुद्ध नहीं किए, वे श्वेत वस्त्र पहने हुए मेरे साथ घूमेंगे, क्योंकि वे इस योग्य हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:5 जो जय पाए, उसे इसी प्रकार श्वेत वस्त्र पहनाया जाएगा, और मैं उसका नाम जीवन की पुस्तक में से किसी रीति से न काटूँगा, पर उसका नाम अपने पिता और उसके स्वर्गदूतों के सामने मान लूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:6 जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:7 ¶ “फिलदिलफिया की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख: “जो पवित्र और सत्य है, और जो दाऊद की कुंजी रखता है, जिसके खोले हुए को कोई बन्द नहीं कर सकता और बन्द किए हुए को कोई खोल नहीं सकता, वह यह कहता है, (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:8 मैं तेरे कामों को जानता हूँ। देख, मैंने तेरे सामने एक द्वार खोल रखा है, जिसे कोई बन्द नहीं कर सकता; तेरी सामर्थ्य थोड़ी सी तो है, फिर भी तूने मेरे वचन का पालन किया है और मेरे नाम का इन्कार नहीं किया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:9 देख, मैं शैतान के उन आराधनालय वालों को तेरे वश में कर दूँगा जो यहूदी बन बैठे हैं, पर हैं नहीं, वरन् झूठ बोलते हैं—मैं ऐसा करूँगा, कि वे आकर तेरे चरणों में दण्डवत् करेंगे, और यह जान लेंगे, कि मैंने तुझ से प्रेम रखा है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:10 तूने मेरे धीरज के वचन को थामा है, इसलिए मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूँगा, जो पृथ्वी पर रहनेवालों के परखने के लिये सारे संसार पर आनेवाला है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:11 मैं शीघ्र ही आनेवाला हूँ; जो कुछ तेरे पास है उसे थामे रह, कि कोई तेरा मुकुट छीन न ले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:12 जो जय पाए, उसे मैं अपने परमेश्‍वर के मन्दिर में एक खम्भा बनाऊँगा; और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपने परमेश्‍वर का नाम, और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् नये यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्‍वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है और अपना नया नाम उस पर लिखूँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:13 जिसके कान हों, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:14 ¶ “लौदीकिया की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख: “जो आमीन, और विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह है, और परमेश्‍वर की सृष्टि का मूल कारण है, वह यह कहता है: (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:15 मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठण्डा है और न गर्म; भला होता कि तू ठण्डा या गर्म होता। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:16 इसलिए कि तू गुनगुना है, और न ठण्डा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुँह से उगलने पर हूँ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:17 तू जो कहता है, कि मैं धनी हूँ, और धनवान हो गया हूँ, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं, और यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अंधा, और नंगा है, (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:18 इसलिए मैं तुझे सम्मति देता हूँ, कि आग में ताया हुआ सोना मुझसे मोल ले, कि धनी हो जाए; और श्वेत वस्त्र ले ले कि पहनकर तुझे अपने नंगेपन की लज्जा न हो; और अपनी आँखों में लगाने के लिये सुरमा ले कि तू देखने लगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:19 मैं जिन जिनसे प्रेम रखता हूँ, उन सब को उलाहना और ताड़ना देता हूँ, इसलिए उत्साही हो, और मन फिरा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:20 देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:21 जो जय पाए, मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊँगा, जैसा मैं भी जय पा कर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 3:22 जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:1 ¶ इन बातों के बाद जो मैंने दृष्टि की, तो क्या देखता हूँ कि स्वर्ग में एक द्वार खुला हुआ है; और जिसको मैंने पहले तुरही के से शब्द से अपने साथ बातें करते सुना था, वही कहता है, “यहाँ ऊपर आ जा, और मैं वे बातें तुझे दिखाऊँगा, जिनका इन बातों के बाद पूरा होना अवश्य है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:2 तुरन्त मैं आत्मा में आ गया; और क्या देखता हूँ कि एक सिंहासन स्वर्ग में रखा है, और उस सिंहासन पर कोई बैठा है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:3 और जो उस पर बैठा है, वह यशब और माणिक्य जैसा दिखाई पड़ता है, और उस सिंहासन के चारों ओर मरकत के समान एक मेघधनुष दिखाई देता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:4 उस सिंहासन के चारों ओर चौबीस सिंहासन है; और इन सिंहासनों पर चौबीस प्राचीन श्वेत वस्त्र पहने हुए बैठे हैं, और उनके सिरों पर सोने के मुकुट हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:5 ¶ उस सिंहासन में से बिजलियाँ और गर्जन निकलते हैं और सिंहासन के सामने आग के सात दीपक जल रहे हैं, वे परमेश्‍वर की सात आत्माएँ हैं, (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:6 और उस सिंहासन के सामने मानो बिल्लौर के समान काँच के जैसा समुद्र है, और सिंहासन के बीच में और सिंहासन के चारों ओर चार प्राणी है, जिनके आगे-पीछे आँखें ही आँखें हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:7 पहला प्राणी सिंह के समान है, और दूसरा प्राणी बछड़े के समान है, तीसरे प्राणी का मुँह मनुष्य के समान है, और चौथा प्राणी उड़ते हुए उकाब के समान है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:8 और चारों प्राणियों के छः-छः पंख हैं, और चारों ओर, और भीतर आँखें ही आँखें हैं; और वे रात-दिन बिना विश्राम लिए यह कहते रहते हैं, (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:9 ¶ और जब वे प्राणी उसकी जो सिंहासन पर बैठा है, और जो युगानुयुग जीविता है, महिमा और आदर और धन्यवाद करेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:10 तब चौबीसों प्राचीन सिंहासन पर बैठनेवाले के सामने गिर पड़ेंगे, और उसे जो युगानुयुग जीविता है प्रणाम करेंगे; और अपने-अपने मुकुट सिंहासन के सामने यह कहते हुए डाल देंगे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 4:11 “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:1 ¶ और जो सिंहासन पर बैठा था, मैंने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी, जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:2 फिर मैंने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊँचे शब्द से यह प्रचार करता था “इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?” (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:3 और न स्वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्टि डालने के योग्य निकला। (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:4 तब मैं फूट-फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने, या उस पर दृष्टि करने के योग्य कोई न मिला। (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:5 इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझसे कहा, “मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:6 तब मैंने उस सिंहासन और चारों प्राणियों और उन प्राचीनों के बीच में, मानो एक वध किया हुआ मेम्‍ना खड़ा देखा; उसके सात सींग और सात आँखें थीं; ये परमेश्‍वर की सातों आत्माएँ हैं, जो सारी पृथ्वी पर भेजी गई हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:7 उसने आकर उसके दाहिने हाथ से जो सिंहासन पर बैठा था, वह पुस्तक ले ली, (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:8 जब उसने पुस्तक ले ली, तो वे चारों प्राणी और चौबीसों प्राचीन उस मेम्‍ने के सामने गिर पड़े; और हर एक के हाथ में वीणा और धूप से भरे हुए सोने के कटोरे थे, ये तो पवित्र लोगों की प्रार्थनाएँ हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:9 और वे यह नया गीत गाने लगे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:10 “और उन्हें हमारे परमेश्‍वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:11 ¶ जब मैंने देखा, तो उस सिंहासन और उन प्राणियों और उन प्राचीनों के चारों ओर बहुत से स्वर्गदूतों का शब्द सुना, जिनकी गिनती लाखों और करोड़ों की थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:12 और वे ऊँचे शब्द से कहते थे, “वध किया हुआ मेम्‍ना ही सामर्थ्य, और धन, और ज्ञान, और शक्ति, और आदर, और महिमा, और स्तुति के योग्य है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:13 ¶ फिर मैंने स्वर्ग में, और पृथ्वी पर, और पृथ्वी के नीचे, और समुद्र की सब रची हुई वस्तुओं को, और सब कुछ को जो उनमें हैं, यह कहते सुना, “जो सिंहासन पर बैठा है, उसकी, और मेम्‍ने की स्तुति, और आदर, और महिमा, और राज्य, युगानुयुग रहे।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 5:14 और चारों प्राणियों ने आमीन कहा, और प्राचीनों ने गिरकर दण्डवत् किया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:1 ¶ फिर मैंने देखा कि मेम्‍ने ने उन सात मुहरों में से एक को खोला; और उन चारों प्राणियों में से एक का गर्जन के समान शब्द सुना, “आ।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:2 मैंने दृष्टि की, और एक श्वेत घोड़ा है, और उसका सवार धनुष लिए हुए है: और उसे एक मुकुट दिया गया, और वह जय करता हुआ निकला कि और भी जय प्राप्त करे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:3 ¶ जब उसने दूसरी मुहर खोली, तो मैंने दूसरे प्राणी को यह कहते सुना, “आ।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:4 फिर एक और घोड़ा निकला, जो लाल रंग का था; उसके सवार को यह अधिकार दिया गया कि पृथ्वी पर से मेल उठा ले, ताकि लोग एक दूसरे का वध करें; और उसे एक बड़ी तलवार दी गई। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:5 ¶ जब उसने तीसरी मुहर खोली, तो मैंने तीसरे प्राणी को यह कहते सुना, “आ।” और मैंने दृष्टि की, और एक काला घोड़ा है; और उसके सवार के हाथ में एक तराजू है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:6 और मैंने उन चारों प्राणियों के बीच में से एक शब्द यह कहते सुना, “दीनार का सेर भर गेहूँ, और दीनार का तीन सेर जौ, पर तेल, और दाखरस की हानि न करना।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:7 ¶ और जब उसने चौथी मुहर खोली, तो मैंने चौथे प्राणी का शब्द यह कहते सुना, “आ।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:8 मैंने दृष्टि की, और एक पीला घोड़ा है; और उसके सवार का नाम मृत्यु है; और अधोलोक उसके पीछे-पीछे है और उन्हें पृथ्वी की एक चौथाई पर यह अधिकार दिया गया, कि तलवार, और अकाल, और मरी, और पृथ्वी के वन-पशुओं के द्वारा लोगों को मार डालें। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:9 ¶ जब उसने पाँचवी मुहर खोली, तो मैंने वेदी के नीचे उनके प्राणों को देखा, जो परमेश्‍वर के वचन के कारण, और उस गवाही के कारण जो उन्होंने दी थी, वध किए गए थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:10 और उन्होंने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे प्रभु, हे पवित्र, और सत्य; तू कब तक न्याय न करेगा? और पृथ्वी के रहनेवालों से हमारे लहू का पलटा कब तक न लेगा?” (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:11 और उनमें से हर एक को श्वेत वस्त्र दिया गया, और उनसे कहा गया, कि और थोड़ी देर तक विश्राम करो, जब तक कि तुम्हारे संगी दास और भाई जो तुम्हारे समान वध होनेवाले हैं, उनकी भी गिनती पूरी न हो ले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:12 ¶ जब उसने छठवीं मुहर खोली, तो मैंने देखा कि एक बड़ा भूकम्प हुआ; और सूर्य कम्बल के समान काला, और पूरा चन्द्रमा लहू के समान हो गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:13 और आकाश के तारे पृथ्वी पर ऐसे गिर पड़े जैसे बड़ी आँधी से हिलकर अंजीर के पेड़ में से कच्चे फल झड़ते हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:14 आकाश ऐसा सरक गया, जैसा पत्र लपेटने से सरक जाता है; और हर एक पहाड़, और टापू, अपने-अपने स्थान से टल गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:15 पृथ्वी के राजा, और प्रधान, और सरदार, और धनवान और सामर्थी लोग, और हर एक दास, और हर एक स्वतंत्र, पहाड़ों की गुफाओं और चट्टानों में जा छिपे; (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:16 और पहाड़ों, और चट्टानों से कहने लगे, “हम पर गिर पड़ो; और हमें उसके मुँह से जो सिंहासन पर बैठा है और मेम्‍ने के प्रकोप से छिपा लो; (IN)

प्रकाशित वाक्य 6:17 क्योंकि उनके प्रकोप का भयानक दिन आ पहुँचा है, अब कौन ठहर सकता है?” (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:1 ¶ इसके बाद मैंने पृथ्वी के चारों कोनों पर चार स्वर्गदूत खड़े देखे, वे पृथ्वी की चारों हवाओं को थामे हुए थे ताकि पृथ्वी, या समुद्र, या किसी पेड़ पर, हवा न चले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:2 फिर मैंने एक और स्वर्गदूत को जीविते परमेश्‍वर की मुहर लिए हुए पूरब से ऊपर की ओर आते देखा; उसने उन चारों स्वर्गदूतों से जिन्हें पृथ्वी और समुद्र की हानि करने का अधिकार दिया गया था, ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:3 “जब तक हम अपने परमेश्‍वर के दासों के माथे पर मुहर न लगा दें, तब तक पृथ्वी और समुद्र और पेड़ों को हानि न पहुँचाना।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:4 ¶ और जिन पर मुहर दी गई, मैंने उनकी गिनती सुनी, कि इस्राएल की सन्तानों के सब गोत्रों में से एक लाख चौवालीस हजार पर मुहर दी गई: (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:5 यहूदा के गोत्र में से बारह हजार पर मुहर दी गई, रूबेन के गोत्र में से बारह हजार पर, गाद के गोत्र में से बारह हजार पर, (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:6 आशेर के गोत्र में से बारह हजार पर, नप्ताली के गोत्र में से बारह हजार पर; मनश्शे के गोत्र में से बारह हजार पर, (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:7 शमौन के गोत्र में से बारह हजार पर, लेवी के गोत्र में से बारह हजार पर, इस्साकार के गोत्र में से बारह हजार पर, (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:8 जबूलून के गोत्र में से बारह हजार पर, यूसुफ के गोत्र में से बारह हजार पर, और बिन्यामीन के गोत्र में से बारह हजार पर मुहर दी गई। (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:9 ¶ इसके बाद मैंने दृष्टि की, और हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था श्वेत वस्त्र पहने और अपने हाथों में खजूर की डालियाँ लिये हुए सिंहासन के सामने और मेम्‍ने के सामने खड़ी है; (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:10 और बड़े शब्द से पुकारकर कहती है, “उद्धार के लिये हमारे परमेश्‍वर का, जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्‍ने का जय-जयकार हो।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:11 और सारे स्वर्गदूत, उस सिंहासन और प्राचीनों और चारों प्राणियों के चारों ओर खड़े हैं, फिर वे सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और परमेश्‍वर को दण्डवत् करके कहा, (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:12 “आमीन, हमारे परमेश्‍वर की स्तुति, महिमा, ज्ञान, धन्यवाद, आदर, सामर्थ्य, और शक्ति युगानुयुग बनी रहें। आमीन।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:13 इस पर प्राचीनों में से एक ने मुझसे कहा, “ये श्वेत वस्त्र पहने हुए कौन हैं? और कहाँ से आए हैं?” (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:14 मैंने उससे कहा, “हे स्वामी, तू ही जानता है।” उसने मुझसे कहा, “ये वे हैं, जो उस महा क्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपने-अपने वस्त्र मेम्‍ने के लहू में धोकर श्वेत किए हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:15 “इसी कारण वे परमेश्‍वर के सिंहासन के सामने हैं, (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:16 “वे फिर भूखे और प्यासे न होंगे; (IN)

प्रकाशित वाक्य 7:17 क्योंकि मेम्‍ना जो सिंहासन के बीच में है, उनकी रखवाली करेगा; (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:1 ¶ जब उसने सातवीं मुहर खोली, तो स्वर्ग में आधे घण्टे तक सन्‍नाटा छा गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:2 और मैंने उन सातों स्वर्गदूतों को जो परमेश्‍वर के सामने खड़े रहते हैं, देखा, और उन्हें सात तुरहियां दी गईं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:3 फिर एक और स्वर्गदूत सोने का धूपदान लिये हुए आया, और वेदी के निकट खड़ा हुआ; और उसको बहुत धूप दिया गया कि सब पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ सोने की उस वेदी पर, जो सिंहासन के सामने है चढ़ाएँ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:4 और उस धूप का धूआँ पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं सहित स्वर्गदूत के हाथ से परमेश्‍वर के सामने पहुँच गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:5 तब स्वर्गदूत ने धूपदान लेकर उसमें वेदी की आग भरी, और पृथ्वी पर डाल दी, और गर्जन और शब्द और बिजलियाँ और भूकम्प होने लगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:6 और वे सातों स्वर्गदूत जिनके पास सात तुरहियां थीं, फूँकने को तैयार हुए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:7 ¶ पहले स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, और लहू से मिले हुए ओले और आग उत्‍पन्‍न हुई, और पृथ्वी पर डाली गई; और एक तिहाई पृथ्वी जल गई, और एक तिहाई पेड़ जल गई, और सब हरी घास भी जल गई। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:8 ¶ दूसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, तो मानो आग के समान जलता हुआ एक बड़ा पहाड़ समुद्र में डाला गया; और समुद्र भी एक तिहाई लहू हो गया, (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:9 और समुद्र की एक तिहाई सृजी हुई वस्तुएँ जो सजीव थीं मर गई, और एक तिहाई जहाज नाश हो गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:10 ¶ तीसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, और एक बड़ा तारा जो मशाल के समान जलता था, स्वर्ग से टूटा, और नदियों की एक तिहाई पर, और पानी के सोतों पर आ पड़ा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:11 उस तारे का नाम नागदौना है, और एक तिहाई पानी नागदौना जैसा कड़वा हो गया, और बहुत से मनुष्य उस पानी के कड़वे हो जाने से मर गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:12 ¶ चौथे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, और सूर्य की एक तिहाई, और चाँद की एक तिहाई और तारों की एक तिहाई पर आपत्ति आई, यहाँ तक कि उनका एक तिहाई अंग अंधेरा हो गया और दिन की एक तिहाई में उजाला न रहा, और वैसे ही रात में भी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 8:13 जब मैंने फिर देखा, तो आकाश के बीच में एक उकाब को उड़ते और ऊँचे शब्द से यह कहते सुना, “उन तीन स्वर्गदूतों की तुरही के शब्दों के कारण जिनका फूँकना अभी बाकी है, पृथ्वी के रहनेवालों पर हाय, हाय, हाय!” (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:1 ¶ जब पाँचवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, तो मैंने स्वर्ग से पृथ्वी पर एक तारा गिरता हुआ देखा, और उसे अथाह कुण्ड की कुंजी दी गई। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:2 उसने अथाह कुण्ड को खोला, और कुण्ड में से बड़ी भट्टी के समान धूआँ उठा, और कुण्ड के धुएँ से सूर्य और वायु अंधकारमय हो गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:3 उस धुएँ में से पृथ्वी पर टिड्डियाँ निकलीं, और उन्हें पृथ्वी के बिच्छुओं के समान शक्ति दी गई। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:4 उनसे कहा गया कि न पृथ्वी की घास को, न किसी हरियाली को, न किसी पेड़ को हानि पहुँचाए, केवल उन मनुष्यों को हानि पहुँचाए जिनके माथे पर परमेश्‍वर की मुहर नहीं है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:5 और उन्हें लोगों को मार डालने का तो नहीं, पर पाँच महीने तक लोगों को पीड़ा देने का अधिकार दिया गया; और उनकी पीड़ा ऐसी थी, जैसे बिच्छू के डंक मारने से मनुष्य को होती है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:6 उन दिनों में मनुष्य मृत्यु को ढूँढ़ेंगे, और न पाएँगे; और मरने की लालसा करेंगे, और मृत्यु उनसे भागेगी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:7 उन टिड्डियों के आकार लड़ाई के लिये तैयार किए हुए घोड़ों के जैसे थे, और उनके सिरों पर मानो सोने के मुकुट थे; और उनके मुँह मनुष्यों के जैसे थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:8 उनके बाल स्त्रियों के बाल जैसे, और दाँत सिंहों के दाँत जैसे थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:9 वे लोहे की जैसी झिलम पहने थे, और उनके पंखों का शब्द ऐसा था जैसा रथों और बहुत से घोड़ों का जो लड़ाई में दौड़ते हों। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:10 उनकी पूँछ बिच्छुओं की जैसी थीं, और उनमें डंक थे, और उन्हें पाँच महीने तक मनुष्यों को दुःख पहुँचाने की जो शक्ति मिली थी, वह उनकी पूँछों में थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:11 अथाह कुण्ड का दूत उन पर राजा था, उसका नाम इब्रानी में अबद्दोन, और यूनानी में अपुल्लयोन है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:12 पहली विपत्ति बीत चुकी, अब इसके बाद दो विपत्तियाँ और आनेवाली हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:13 ¶ जब छठवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो जो सोने की वेदी परमेश्‍वर के सामने है उसके सींगों में से मैंने ऐसा शब्द सुना, (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:14 मानो कोई छठवें स्वर्गदूत से, जिसके पास तुरही थी कह रहा है, “उन चार स्वर्गदूतों को जो बड़ी नदी फरात के पास बंधे हुए हैं, खोल दे।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:15 और वे चारों दूत खोल दिए गए जो उस घड़ी, और दिन, और महीने, और वर्ष के लिये मनुष्यों की एक तिहाई के मार डालने को तैयार किए गए थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:16 उनकी फौज के सवारों की गिनती बीस करोड़ थी; मैंने उनकी गिनती सुनी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:17 और मुझे इस दर्शन में घोड़े और उनके ऐसे सवार दिखाई दिए, जिनकी झिलमें आग, धूम्रकान्त, और गन्धक की जैसी थीं, और उन घोड़ों के सिर सिंहों के सिरों के समान थे: और उनके मुँह से आग, धूआँ, और गन्धक निकलते थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:18 इन तीनों महामारियों; अर्थात् आग, धुएँ, गन्धक से, जो उसके मुँह से निकलते थे, मनुष्यों की एक तिहाई मार डाली गई। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:19 क्योंकि उन घोड़ों की सामर्थ्य उनके मुँह, और उनकी पूँछों में थी; इसलिए कि उनकी पूँछे साँपों की जैसी थीं, और उन पूँछों के सिर भी थे, और इन्हीं से वे पीड़ा पहुँचाते थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:20 बाकी मनुष्यों ने जो उन महामारियों से न मरे थे, अपने हाथों के कामों से मन न फिराया, कि दुष्टात्माओं की, और सोने, चाँदी, पीतल, पत्थर, और काठ की मूर्तियों की पूजा न करें, जो न देख, न सुन, न चल सकती हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 9:21 और जो खून, और टोना, और व्यभिचार, और चोरियाँ, उन्होंने की थीं, उनसे मन न फिराया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:1 ¶ फिर मैंने एक और शक्तिशाली स्वर्गदूत को बादल ओढ़े हुए स्वर्ग से उतरते देखा; और उसके सिर पर मेघधनुष था, और उसका मुँह सूर्य के समान और उसके पाँव आग के खम्भें के समान थे; (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:2 और उसके हाथ में एक छोटी सी खुली हुई पुस्तक थी। उसने अपना दाहिना पाँव समुद्र पर, और बायाँ पृथ्वी पर रखा; (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:3 और ऐसे बड़े शब्द से चिल्लाया, जैसा सिंह गरजता है; और जब वह चिल्लाया तो गर्जन के सात शब्द सुनाई दिए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:4 जब सातों गर्जन के शब्द सुनाई दे चुके, तो मैं लिखने पर था, और मैंने स्वर्ग से यह शब्द सुना, “जो बातें गर्जन के उन सात शब्दों से सुनी हैं, उन्हें गुप्त रख, और मत लिख।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:5 जिस स्वर्गदूत को मैंने समुद्र और पृथ्वी पर खड़े देखा था; उसने अपना दाहिना हाथ स्वर्ग की ओर उठाया (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:6 और उसकी शपथ खाकर जो युगानुयुग जीवित है, और जिसने स्वर्ग को और जो कुछ उसमें है, और पृथ्वी को और जो कुछ उस पर है, और समुद्र को और जो कुछ उसमें है सृजा है उसी की शपथ खाकर कहा कि “अब और देर न होगी।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:7 वरन् सातवें स्वर्गदूत के शब्द देने के दिनों में, जब वह तुरही फूँकने पर होगा, तो परमेश्‍वर का वह रहस्य पूरा हो जाएगा, जिसका सुसमाचार उसने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं को दिया था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:8 जिस शब्द करनेवाले को मैंने स्वर्ग से बोलते सुना था, वह फिर मेरे साथ बातें करने लगा, “जा, जो स्वर्गदूत समुद्र और पृथ्वी पर खड़ा है, उसके हाथ में की खुली हुईं पुस्तक ले ले।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:9 और मैंने स्वर्गदूत के पास जाकर कहा, “यह छोटी पुस्तक मुझे दे।” और उसने मुझसे कहा, “ले, इसे खा ले; यह तेरा पेट कड़वा तो करेगी, पर तेरे मुँह में मधु जैसी मीठी लगेगी।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:10 अतः मैं वह छोटी पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से लेकर खा गया। वह मेरे मुँह में मधु जैसी मीठी तो लगी, पर जब मैं उसे खा गया, तो मेरा पेट कड़वा हो गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 10:11 तब मुझसे यह कहा गया, “तुझे बहुत से लोगों, जातियों, भाषाओं, और राजाओं के विषय में फिर भविष्यद्वाणी करनी होगी।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:1 ¶ फिर मुझे नापने के लिये एक सरकण्डा दिया गया, और किसी ने कहा, “उठ, परमेश्‍वर के मन्दिर और वेदी, और उसमें भजन करनेवालों को नाप ले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:2 पर मन्दिर के बाहर का आँगन छोड़ दे; उसे मत नाप क्योंकि वह अन्यजातियों को दिया गया है, और वे पवित्र नगर को बयालीस महीने तक रौंदेंगी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:3 “और मैं अपने दो गवाहों को यह अधिकार दूँगा कि टाट ओढ़े हुए एक हजार दो सौ साठ दिन तक भविष्यद्वाणी करें।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:4 ये वे ही जैतून के दो पेड़ और दो दीवट हैं जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े रहते हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:5 और यदि कोई उनको हानि पहुँचाना चाहता है, तो उनके मुँह से आग निकलकर उनके बैरियों को भस्म करती है, और यदि कोई उनको हानि पहुँचाना चाहेगा, तो अवश्य इसी रीति से मार डाला जाएगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:6 उन्हें अधिकार है कि आकाश को बन्द करें, कि उनकी भविष्यद्वाणी के दिनों में मेंह न बरसे, और उन्हें सब पानी पर अधिकार है, कि उसे लहू बनाएँ, और जब-जब चाहें तब-तब पृथ्वी पर हर प्रकार की विपत्ति लाएँ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:7 जब वे अपनी गवाही दे चुकेंगे, तो वह पशु जो अथाह कुण्ड में से निकलेगा, उनसे लड़कर उन्हें जीतेगा और उन्हें मार डालेगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:8 और उनके शव उस बड़े नगर के चौक में पड़े रहेंगे, जो आत्मिक रीति से सदोम और मिस्र कहलाता है, जहाँ उनका प्रभु भी क्रूस पर चढ़ाया गया था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:9 और सब लोगों, कुलों, भाषाओं, और जातियों में से लोग उनके शवों को साढ़े तीन दिन तक देखते रहेंगे, और उनके शवों को कब्र में रखने न देंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:10 और पृथ्वी के रहनेवाले उनके मरने से आनन्दित और मगन होंगे, और एक दूसरे के पास भेंट भेजेंगे, क्योंकि इन दोनों भविष्यद्वक्ताओं ने पृथ्वी के रहनेवालों को सताया था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:11 परन्तु साढ़े तीन दिन के बाद परमेश्‍वर की ओर से जीवन का श्‍वास उनमें पैंठ गया; और वे अपने पाँवों के बल खड़े हो गए, और उनके देखनेवालों पर बड़ा भय छा गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:12 और उन्हें स्वर्ग से एक बड़ा शब्द सुनाई दिया, “यहाँ ऊपर आओ!” यह सुन वे बादल पर सवार होकर अपने बैरियों के देखते-देखते स्वर्ग पर चढ़ गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:13 फिर उसी घड़ी एक बड़ा भूकम्प हुआ, और नगर का दसवाँ भाग गिर पड़ा; और उस भूकम्प से सात हजार मनुष्य मर गए और शेष डर गए, और स्वर्ग के परमेश्‍वर की महिमा की। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:14 दूसरी विपत्ति बीत चुकी; तब, तीसरी विपत्ति शीघ्र आनेवाली है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:15 ¶ जब सातवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी, तो स्वर्ग में इस विषय के बड़े-बड़े शब्द होने लगे: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:16 और चौबीसों प्राचीन जो परमेश्‍वर के सामने अपने-अपने सिंहासन पर बैठे थे, मुँह के बल गिरकर परमेश्‍वर को दण्डवत् करके, (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:17 यह कहने लगे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:18 अन्यजातियों ने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा (IN)

प्रकाशित वाक्य 11:19 ¶ और परमेश्‍वर का जो मन्दिर स्वर्ग में है, वह खोला गया, और उसके मन्दिर में उसकी वाचा का सन्दूक दिखाई दिया, बिजलियाँ, शब्द, गर्जन और भूकम्प हुए, और बड़े ओले पड़े। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:1 ¶ फिर स्वर्ग पर एक बड़ा चिन्ह दिखाई दिया, अर्थात् एक स्त्री जो सूर्य ओढ़े हुए थी, और चाँद उसके पाँवों तले था, और उसके सिर पर बारह तारों का मुकुट था; (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:2 और वह गर्भवती हुई, और चिल्लाती थी; क्योंकि प्रसव की पीड़ा उसे लगी थी; और वह बच्चा जनने की पीड़ा में थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:3 एक और चिन्ह स्वर्ग में दिखाई दिया, एक बड़ा लाल अजगर था जिसके सात सिर और दस सींग थे, और उसके सिरों पर सात राजमुकुट थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:4 और उसकी पूँछ ने आकाश के तारों की एक तिहाई को खींचकर पृथ्वी पर डाल दिया, और वह अजगर उस स्त्री के सामने जो जच्चा थी, खड़ा हुआ, कि जब वह बच्चा जने तो उसके बच्चे को निगल जाए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:5 और वह बेटा जनी जो लोहे का राजदण्ड लिए हुए, सब जातियों पर राज्य करने पर था, और उसका बच्चा परमेश्‍वर के पास, और उसके सिंहासन के पास उठाकर पहुँचा दिया गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:6 और वह स्त्री उस जंगल को भाग गई, जहाँ परमेश्‍वर की ओर से उसके लिये एक जगह तैयार की गई थी कि वहाँ वह एक हजार दो सौ साठ दिन तक पाली जाए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:7 ¶ फिर स्वर्ग पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले; और अजगर और उसके दूत उससे लड़े, (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:8 परन्तु प्रबल न हुए, और स्वर्ग में उनके लिये फिर जगह न रही। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:9 और वह बड़ा अजगर अर्थात् वही पुराना साँप, जो शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:10 फिर मैंने स्वर्ग पर से यह बड़ा शब्द आते हुए सुना, “अब हमारे परमेश्‍वर का उद्धार, सामर्थ्य, राज्य, और उसके मसीह का अधिकार प्रगट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला, जो रात-दिन हमारे परमेश्‍वर के सामने उन पर दोष लगाया करता था, गिरा दिया गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:11 ¶ “और वे मेम्‍ने के लहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्त हुए, क्योंकि उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहाँ तक कि मृत्यु भी सह ली। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:12 “इस कारण, हे स्वर्गों, और उनमें रहनेवालों मगन हो; हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:13 ¶ जब अजगर ने देखा, कि मैं पृथ्वी पर गिरा दिया गया हूँ, तो उस स्त्री को जो बेटा जनी थी, सताया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:14 पर उस स्त्री को बड़े उकाब के दो पंख दिए गए, कि साँप के सामने से उड़कर जंगल में उस जगह पहुँच जाए, जहाँ वह एक समय, और समयों, और आधे समय तक पाली जाए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:15 और साँप ने उस स्त्री के पीछे अपने मुँह से नदी के समान पानी बहाया कि उसे इस नदी से बहा दे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:16 परन्तु पृथ्वी ने उस स्त्री की सहायता की, और अपना मुँह खोलकर उस नदी को जो अजगर ने अपने मुँह से बहाई थी, पी लिया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 12:17 तब अजगर स्त्री पर क्रोधित हुआ, और उसकी शेष सन्तान से जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं, लड़ने को गया। प्रकाशित वाक्य 12:18 और वह समुद्र के रेत पर जा खड़ा हुआ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:1 ¶ मैंने एक पशु को समुद्र में से निकलते हुए देखा, जिसके दस सींग और सात सिर थे। उसके सींगों पर दस राजमुकुट, और उसके सिरों पर परमेश्‍वर की निन्दा के नाम लिखे हुए थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:2 जो पशु मैंने देखा, वह चीते के समान था; और उसके पाँव भालू के समान, और मुँह सिंह के समान था। और उस अजगर ने अपनी सामर्थ्य, और अपना सिंहासन, और बड़ा अधिकार, उसे दे दिया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:3 मैंने उसके सिरों में से एक पर ऐसा भारी घाव लगा देखा, मानो वह मरने पर है; फिर उसका प्राणघातक घाव अच्छा हो गया, और सारी पृथ्वी के लोग उस पशु के पीछे-पीछे अचम्भा करते हुए चले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:4 उन्होंने अजगर की पूजा की, क्योंकि उसने पशु को अपना अधिकार दे दिया था, और यह कहकर पशु की पूजा की, “इस पशु के समान कौन है? कौन इससे लड़ सकता है?” (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:5 बड़े बोल बोलने और निन्दा करने के लिये उसे एक मुँह दिया गया, और उसे बयालीस महीने तक काम करने का अधिकार दिया गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:6 और उसने परमेश्‍वर की निन्दा करने के लिये मुँह खोला, कि उसके नाम और उसके तम्बू अर्थात् स्वर्ग के रहनेवालों की निन्दा करे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:7 उसे यह अधिकार दिया गया, कि पवित्र लोगों से लड़े, और उन पर जय पाए, और उसे हर एक कुल, लोग, भाषा, और जाति पर अधिकार दिया गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:8 पृथ्वी के वे सब रहनेवाले जिनके नाम उस मेम्‍ने की जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, जो जगत की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है, उस पशु की पूजा करेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:9 जिसके कान हों वह सुने। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:10 जिसको कैद में पड़ना है, वह कैद में पड़ेगा, (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:11 ¶ फिर मैंने एक और पशु को पृथ्वी में से निकलते हुए देखा, उसके मेम्‍ने के समान दो सींग थे; और वह अजगर के समान बोलता था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:12 यह उस पहले पशु का सारा अधिकार उसके सामने काम में लाता था, और पृथ्वी और उसके रहनेवालों से उस पहले पशु की, जिसका प्राणघातक घाव अच्छा हो गया था, पूजा कराता था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:13 वह बड़े-बड़े चिन्ह दिखाता था, यहाँ तक कि मनुष्यों के सामने स्वर्ग से पृथ्वी पर आग बरसा देता था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:14 उन चिन्हों के कारण जिन्हें उस पशु के सामने दिखाने का अधिकार उसे दिया गया था; वह पृथ्वी के रहनेवालों को इस प्रकार भरमाता था, कि पृथ्वी के रहनेवालों से कहता था कि जिस पशु को तलवार लगी थी, वह जी गया है, उसकी मूर्ति बनाओ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:15 और उसे उस पशु की मूर्ति में प्राण डालने का अधिकार दिया गया, कि पशु की मूर्ति बोलने लगे; और जितने लोग उस पशु की मूर्ति की पूजा न करें, उन्हें मरवा डाले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:16 और उसने छोटे-बड़े, धनी-कंगाल, स्वतंत्र-दास सब के दाहिने हाथ या उनके माथे पर एक-एक छाप करा दी, (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:17 कि उसको छोड़ जिस पर छाप अर्थात् उस पशु का नाम, या उसके नाम का अंक हो, और अन्य कोई लेन-देन न कर सके। (IN)

प्रकाशित वाक्य 13:18 ज्ञान इसी में है: जिसे बुद्धि हो, वह इस पशु का अंक जोड़ ले, क्योंकि वह मनुष्य का अंक है, और उसका अंक छः सौ छियासठ है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:1 ¶ फिर मैंने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्‍ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौवालीस हजार जन हैं, जिनके माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:2 और स्वर्ग से मुझे एक ऐसा शब्द सुनाई दिया, जो जल की बहुत धाराओं और बड़े गर्जन के जैसा शब्द था, और जो शब्द मैंने सुना वह ऐसा था, मानो वीणा बजानेवाले वीणा बजाते हों। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:3 और वे सिंहासन के सामने और चारों प्राणियों और प्राचीनों के सामने मानो, एक नया गीत गा रहे थे, और उन एक लाख चौवालीस हजार जनों को छोड़, जो पृथ्वी पर से मोल लिए गए थे, कोई वह गीत न सीख सकता था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:4 ये वे हैं, जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं, कि जहाँ कहीं मेम्‍ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर और मेम्‍ने के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:5 और उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:6 ¶ फिर मैंने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा जिसके पास पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, कुल, भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:7 और उसने बड़े शब्द से कहा, “परमेश्‍वर से डरो, और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है; और उसकी आराधना करो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:8 फिर इसके बाद एक और दूसरा स्वर्गदूत यह कहता हुआ आया, “गिर पड़ा, वह बड़ा बाबेल गिर पड़ा जिसने अपने व्यभिचार की कोपमय मदिरा सारी जातियों को पिलाई है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:9 फिर इनके बाद एक और तीसरा स्वर्गदूत बड़े शब्द से यह कहता हुआ आया, “जो कोई उस पशु और उसकी मूर्ति की पूजा करे, और अपने माथे या अपने हाथ पर उसकी छाप ले, (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:10 तो वह परमेश्‍वर के प्रकोप की मदिरा जो बिना मिलावट के, उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा और पवित्र स्वर्गदूतों के सामने और मेम्‍ने के सामने आग और गन्धक की पीड़ा में पड़ेगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:11 और उनकी पीड़ा का धूआँ युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उसकी मूर्ति की पूजा करते हैं, और जो उसके नाम की छाप लेते हैं, उनको रात-दिन चैन न मिलेगा।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:12 पवित्र लोगों का धीरज इसी में है, जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु पर विश्वास रखते हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:13 और मैंने स्वर्ग से यह शब्द सुना, “लिख: जो मृतक प्रभु में मरते हैं, वे अब से धन्य हैं।” आत्मा कहता है, “हाँ, क्योंकि वे अपने परिश्रमों से विश्राम पाएँगे, और उनके कार्य उनके साथ हो लेते हैं।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:14 ¶ मैंने दृष्टि की, और देखो, एक उजला बादल है, और उस बादल पर मनुष्य के पुत्र सदृश्य कोई बैठा है, जिसके सिर पर सोने का मुकुट और हाथ में उत्तम हँसुआ है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:15 फिर एक और स्वर्गदूत ने मन्दिर में से निकलकर, उससे जो बादल पर बैठा था, बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “अपना हँसुआ लगाकर लवनी कर, क्योंकि लवने का समय आ पहुँचा है, इसलिए कि पृथ्वी की खेती पक चुकी है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:16 अतः जो बादल पर बैठा था, उसने पृथ्वी पर अपना हँसुआ लगाया, और पृथ्वी की लवनी की गई। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:17 फिर एक और स्वर्गदूत उस मन्दिर में से निकला, जो स्वर्ग में है, और उसके पास भी उत्तम हँसुआ था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:18 फिर एक और स्वर्गदूत, जिसे आग पर अधिकार था, वेदी में से निकला, और जिसके पास उत्तम हँसुआ था, उससे ऊँचे शब्द से कहा, “अपना उत्तम हँसुआ लगाकर पृथ्वी की दाखलता के गुच्छे काट ले; क्योंकि उसकी दाख पक चुकी है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:19 तब उस स्वर्गदूत ने पृथ्वी पर अपना हँसुआ लगाया, और पृथ्वी की दाखलता का फल काटकर, अपने परमेश्‍वर के प्रकोप के बड़े रसकुण्ड में डाल दिया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 14:20 और नगर के बाहर उस रसकुण्ड में दाख रौंदे गए, और रसकुण्ड में से इतना लहू निकला कि घोड़ों के लगामों तक पहुँचा, और सौ कोस तक बह गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:1 ¶ फिर मैंने स्वर्ग में एक और बड़ा और अद्भुत चिन्ह देखा, अर्थात् सात स्वर्गदूत जिनके पास सातों अन्तिम विपत्तियाँ थीं, क्योंकि उनके हो जाने पर परमेश्‍वर के प्रकोप का अन्त है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:2 और मैंने आग से मिले हुए काँच के जैसा एक समुद्र देखा, और जो लोग उस पशु पर और उसकी मूर्ति पर, और उसके नाम के अंक पर जयवन्त हुए थे, उन्हें उस काँच के समुद्र के निकट परमेश्‍वर की वीणाओं को लिए हुए खड़े देखा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:3 और वे परमेश्‍वर के दास मूसा का गीत, और मेम्‍ने का गीत गा गाकर कहते थे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:4 “हे प्रभु, (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:5 ¶ इसके बाद मैंने देखा, कि स्वर्ग में साक्षी के तम्बू का मन्दिर खोला गया, (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:6 और वे सातों स्वर्गदूत जिनके पास सातों विपत्तियाँ थीं, मलमल के शुद्ध और चमकदार वस्त्र पहने और छाती पर सोने की पट्टियाँ बाँधे हुए मन्दिर से निकले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:7 तब उन चारों प्राणियों में से एक ने उन सात स्वर्गदूतों को परमेश्‍वर के, जो युगानुयुग जीविता है, प्रकोप से भरे हुए सात सोने के कटोरे दिए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 15:8 और परमेश्‍वर की महिमा, और उसकी सामर्थ्य के कारण मन्दिर धुएँ से भर गया और जब तक उन सातों स्वर्गदूतों की सातों विपत्तियाँ समाप्त न हुई, तब तक कोई मन्दिर में न जा सका। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:1 ¶ फिर मैंने मन्दिर में किसी को ऊँचे शब्द से उन सातों स्वर्गदूतों से यह कहते सुना, “जाओ, परमेश्‍वर के प्रकोप के सातों कटोरों को पृथ्वी पर उण्डेल दो।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:2 अतः पहले स्वर्गदूत ने जाकर अपना कटोरा पृथ्वी पर उण्डेल दिया। और उन मनुष्यों के जिन पर पशु की छाप थी, और जो उसकी मूर्ति की पूजा करते थे, एक प्रकार का बुरा और दुःखदाई फोड़ा निकला। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:3 ¶ दूसरे स्वर्गदूत ने अपना कटोरा समुद्र पर उण्डेल दिया और वह मरे हुए के लहू जैसा बन गया, और समुद्र में का हर एक जीवधारी मर गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:4 ¶ तीसरे स्वर्गदूत ने अपना कटोरा नदियों, और पानी के सोतों पर उण्डेल दिया, और वे लहू बन गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:5 और मैंने पानी के स्वर्गदूत को यह कहते सुना, (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:6 क्योंकि उन्होंने पवित्र लोगों, और भविष्यद्वक्ताओं का लहू बहाया था, (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:7 फिर मैंने वेदी से यह शब्द सुना, (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:8 ¶ चौथे स्वर्गदूत ने अपना कटोरा सूर्य पर उण्डेल दिया, और उसे मनुष्यों को आग से झुलसा देने का अधिकार दिया गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:9 मनुष्य बड़ी तपन से झुलस गए, और परमेश्‍वर के नाम की जिसे इन विपत्तियों पर अधिकार है, निन्दा की और उन्होंने न मन फिराया और न महिमा की। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:10 ¶ पाँचवें स्वर्गदूत ने अपना कटोरा उस पशु के सिंहासन पर उण्डेल दिया और उसके राज्य पर अंधेरा छा गया; और लोग पीड़ा के मारे अपनी-अपनी जीभ चबाने लगे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:11 और अपनी पीड़ाओं और फोड़ों के कारण स्वर्ग के परमेश्‍वर की निन्दा की; पर अपने-अपने कामों से मन न फिराया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:12 ¶ छठवें स्वर्गदूत ने अपना कटोरा महानदी फरात पर उण्डेल दिया और उसका पानी सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिये मार्ग तैयार हो जाए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:13 और मैंने उस अजगर के मुँह से, और उस पशु के मुँह से और उस झूठे भविष्यद्वक्ता के मुँह से तीन अशुद्ध आत्माओं को मेंढ़कों के रूप में निकलते देखा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:14 ये चिन्ह दिखानेवाली दुष्टात्माएँ हैं, जो सारे संसार के राजाओं के पास निकलकर इसलिए जाती हैं, कि उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के उस बड़े दिन की लड़ाई के लिये इकट्ठा करें। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:15 “देख, मैं चोर के समान आता हूँ; धन्य वह है, जो जागता रहता है, और अपने वस्त्र कि सावधानी करता है कि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगापन न देखें।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:16 और उन्होंने राजाओं को उस जगह इकट्ठा किया, जो इब्रानी में हर-मगिदोन कहलाता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:17 ¶ और सातवें स्वर्गदूत ने अपना कटोरा हवा पर उण्डेल दिया, और मन्दिर के सिंहासन से यह बड़ा शब्द हुआ, “हो चुका।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:18 फिर बिजलियाँ, और शब्द, और गर्जन हुए, और एक ऐसा बड़ा भूकम्प हुआ, कि जब से मनुष्य की उत्पत्ति पृथ्वी पर हुई, तब से ऐसा बड़ा भूकम्प कभी न हुआ था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:19 इससे उस बड़े नगर के तीन टुकडे़ हो गए, और जाति-जाति के नगर गिर पड़े, और बड़े बाबेल का स्मरण परमेश्‍वर के यहाँ हुआ, कि वह अपने क्रोध की जलजलाहट की मदिरा उसे पिलाए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:20 और हर एक टापू अपनी जगह से टल गया, और पहाड़ों का पता न लगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 16:21 और आकाश से मनुष्यों पर मन-मन भर के बड़े ओले गिरे, और इसलिए कि यह विपत्ति बहुत ही भारी थी, लोगों ने ओलों की विपत्ति के कारण परमेश्‍वर की निन्दा की। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:1 ¶ जिन सात स्वर्गदूतों के पास वे सात कटोरे थे, उनमें से एक ने आकर मुझसे यह कहा, “इधर आ, मैं तुझे उस बड़ी वेश्या का दण्ड दिखाऊँ, जो बहुत से पानी पर बैठी है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:2 जिसके साथ पृथ्वी के राजाओं ने व्यभिचार किया, और पृथ्वी के रहनेवाले उसके व्यभिचार की मदिरा से मतवाले हो गए थे।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:3 तब वह मुझे पवित्र आत्मा में जंगल को ले गया, और मैंने लाल रंग के पशु पर जो निन्दा के नामों से भरा हुआ था और जिसके सात सिर और दस सींग थे, एक स्त्री को बैठे हुए देखा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:4 यह स्त्री बैंगनी, और लाल रंग के कपड़े पहने थी, और सोने और बहुमूल्य मणियों और मोतियों से सजी हुई थी, और उसके हाथ में एक सोने का कटोरा था जो घृणित वस्तुओं से और उसके व्यभिचार की अशुद्ध वस्तुओं से भरा हुआ था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:5 और उसके माथे पर यह नाम लिखा था, “भेद बड़ा बाबेल पृथ्वी की वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:6 और मैंने उस स्त्री को पवित्र लोगों के लहू और यीशु के गवाहों के लहू पीने से मतवाली देखा; और उसे देखकर मैं चकित हो गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:7 ¶ उस स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, “तू क्यों चकित हुआ? मैं इस स्त्री, और उस पशु का, जिस पर वह सवार है, और जिसके सात सिर और दस सींग हैं, तुझे भेद बताता हूँ। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:8 जो पशु तूने देखा है, यह पहले तो था, पर अब नहीं है, और अथाह कुण्ड से निकलकर विनाश में पड़ेगा, और पृथ्वी के रहनेवाले जिनके नाम जगत की उत्पत्ति के समय से जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, इस पशु की यह दशा देखकर कि पहले था, और अब नहीं; और फिर आ जाएगा, अचम्भा करेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:9 यह समझने के लिए एक ज्ञानी मन आवश्यक है: वे सातों सिर सात पहाड़ हैं, जिन पर वह स्त्री बैठी है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:10 और वे सात राजा भी हैं, पाँच तो हो चुके हैं, और एक अभी है; और एक अब तक आया नहीं, और जब आएगा तो कुछ समय तक उसका रहना भी अवश्य है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:11 जो पशु पहले था, और अब नहीं, वह आप आठवाँ है; और उन सातों में से एक है, और वह विनाश में पड़ेगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:12 जो दस सींग तूने देखे वे दस राजा हैं; जिन्होंने अब तक राज्य नहीं पाया; पर उस पशु के साथ घड़ी भर के लिये राजाओं के समान अधिकार पाएँगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:13 ये सब एक मन होंगे, और वे अपनी-अपनी सामर्थ्य और अधिकार उस पशु को देंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:14 ¶ ये मेम्‍ने से लड़ेंगे, और मेम्‍ना उन पर जय पाएगा; क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु, और राजाओं का राजा है, और जो बुलाए हुए, चुने हुए और विश्वासयोग्य है, उसके साथ हैं, वे भी जय पाएँगे।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:15 फिर उसने मुझसे कहा, “जो पानी तूने देखे, जिन पर वेश्या बैठी है, वे लोग, भीड़, जातियाँ, और भाषाएँ हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:16 और जो दस सींग तूने देखे, वे और पशु उस वेश्या से बैर रखेंगे, और उसे लाचार और नंगी कर देंगे; और उसका माँस खा जाएँगे, और उसे आग में जला देंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:17 “क्योंकि परमेश्‍वर उनके मन में यह डालेगा कि वे उसकी मनसा पूरी करें; और जब तक परमेश्‍वर के वचन पूरे न हो लें, तब तक एक मन होकर अपना-अपना राज्य पशु को दे दें। (IN)

प्रकाशित वाक्य 17:18 और वह स्त्री, जिसे तूने देखा है वह बड़ा नगर है, जो पृथ्वी के राजाओं पर राज्य करता है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:1 ¶ इसके बाद मैंने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा, जिसको बड़ा अधिकार प्राप्त था; और पृथ्वी उसके तेज से प्रकाशित हो उठी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:2 उसने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:3 क्योंकि उसके व्यभिचार के भयानक मदिरा के कारण सब जातियाँ गिर गई हैं, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:4 फिर मैंने स्वर्ग से एक और शब्द सुना, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:5 क्योंकि उसके पापों का ढेर स्वर्ग तक पहुँच गया हैं, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:6 जैसा उसने तुम्हें दिया है, वैसा ही उसको दो, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:7 जितनी उसने अपनी बड़ाई की और सुख-विलास किया; (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:8 इस कारण एक ही दिन में उस पर विपत्तियाँ आ पड़ेंगी, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:9 ¶ “और पृथ्वी के राजा जिन्होंने उसके साथ व्यभिचार, और सुख-विलास किया, जब उसके जलने का धूआँ देखेंगे, तो उसके लिये रोएँगे, और छाती पीटेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:10 और उसकी पीड़ा के डर के मारे वे बड़ी दूर खड़े होकर कहेंगे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:11 ¶ “और पृथ्वी के व्यापारी उसके लिये रोएँगे और विलाप करेंगे, क्योंकि अब कोई उनका माल मोल न लेगा (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:12 अर्थात् सोना, चाँदी, रत्न, मोती, मलमल, बैंगनी, रेशमी, लाल रंग के कपड़े, हर प्रकार का सुगन्धित काठ, हाथी दाँत की हर प्रकार की वस्तुएँ, बहुमूल्य काठ, पीतल, लोहे और संगमरमर की सब भाँति के पात्र, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:13 और दालचीनी, मसाले, धूप, गन्धरस, लोबान, मदिरा, तेल, मैदा, गेहूँ, गाय-बैल, भेड़-बकरियाँ, घोड़े, रथ, और दास, और मनुष्यों के प्राण। (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:14 अब तेरे मन भावने फल तेरे पास से जाते रहे; और सुख-विलास और वैभव की वस्तुएँ तुझ से दूर हुई हैं, और वे फिर कदापि न मिलेगी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:15 इन वस्तुओं के व्यापारी जो उसके द्वारा धनवान हो गए थे, उसकी पीड़ा के डर के मारे दूर खड़े होंगे, और रोते और विलाप करते हुए कहेंगे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:16 ‘हाय! हाय! यह बड़ा नगर जो मलमल, बैंगनी, लाल रंग के कपड़े पहने था, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:17 घड़ी ही भर में उसका ऐसा भारी धन नाश हो गया।’ (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:18 ¶ और उसके जलने का धूआँ देखते हुए पुकारकर कहेंगे, ‘कौन सा नगर इस बड़े नगर के समान है?’ (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:19 और अपने-अपने सिरों पर धूल डालेंगे, और रोते हुए और विलाप करते हुए चिल्ला-चिल्लाकर कहेंगे, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:20 हे स्वर्ग, और हे पवित्र लोगों, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:21 ¶ फिर एक बलवन्त स्वर्गदूत ने बड़ी चक्की के पाट के समान एक पत्थर उठाया, और यह कहकर समुद्र में फेंक दिया, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:22 वीणा बजानेवालों, गायकों, बंसी बजानेवालों, और तुरही फूँकनेवालों का शब्द फिर कभी तुझ में सुनाई न देगा, (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:23 और दीया का उजाला फिर कभी तुझ में न चमकेगा (IN)

प्रकाशित वाक्य 18:24 और भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगों, और पृथ्वी पर सब मरे हुओं का लहू उसी में पाया गया।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:1 ¶ इसके बाद मैंने स्वर्ग में मानो बड़ी भीड़ को ऊँचे शब्द से यह कहते सुना, (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:2 क्योंकि उसके निर्णय सच्चे और ठीक हैं, (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:3 फिर दूसरी बार उन्होंने कहा, (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:4 ¶ और चौबीसों प्राचीनों और चारों प्राणियों ने गिरकर परमेश्‍वर को दण्डवत् किया; जो सिंहासन पर बैठा था, और कहा, “आमीन! हालेलूय्याह!” (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:5 ¶ और सिंहासन में से एक शब्द निकला, (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:6 ¶ फिर मैंने बड़ी भीड़ के जैसा और बहुत जल के जैसा शब्द, और गर्जनों के जैसा बड़ा शब्द सुना (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:7 आओ, हम आनन्दित और मगन हों, और उसकी स्तुति करें, (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:8 उसको शुद्ध और चमकदार महीन मलमल पहनने को दिया गया,” (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:9 ¶ तब स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, “यह लिख, कि धन्य वे हैं, जो मेम्‍ने के विवाह के भोज में बुलाए गए हैं।” फिर उसने मुझसे कहा, “ये वचन परमेश्‍वर के सत्य वचन हैं।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:10 तब मैं उसको दण्डवत् करने के लिये उसके पाँवों पर गिरा। उसने मुझसे कहा, “ऐसा मत कर, मैं तेरा और तेरे भाइयों का संगी दास हूँ, जो यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं। परमेश्‍वर ही को दण्डवत् कर।” क्योंकि यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्मा है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:11 ¶ फिर मैंने स्वर्ग को खुला हुआ देखा, और देखता हूँ कि एक श्वेत घोड़ा है; और उस पर एक सवार है, जो विश्वासयोग्य, और सत्य कहलाता है; और वह धार्मिकता के साथ न्याय और लड़ाई करता है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:12 उसकी आँखें आग की ज्वाला हैं, और उसके सिर पर बहुत से राजमुकुट हैं। और उसका एक नाम उस पर लिखा हुआ है, जिसे उसको छोड़ और कोई नहीं जानता। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:13 वह लहू में डुबोया हुआ वस्त्र पहने है, और उसका नाम ‘परमेश्‍वर का वचन’ है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:14 और स्वर्ग की सेना श्वेत घोड़ों पर सवार और श्वेत और शुद्ध मलमल पहने हुए उसके पीछे-पीछे है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:15 जाति-जाति को मारने के लिये उसके मुँह से एक चोखी तलवार निकलती है, और वह लोहे का राजदण्ड लिए हुए उन पर राज्य करेगा, और वह सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट की मदिरा के कुण्ड में दाख रौंदेगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:16 और उसके वस्त्र और जाँघ पर यह नाम लिखा है: “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:17 ¶ फिर मैंने एक स्वर्गदूत को सूर्य पर खड़े हुए देखा, और उसने बड़े शब्द से पुकारकर आकाश के बीच में से उड़नेवाले सब पक्षियों से कहा, “आओ, परमेश्‍वर के बड़े भोज के लिये इकट्ठे हो जाओ, (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:18 जिससे तुम राजाओं का माँस, और सरदारों का माँस, और शक्तिमान पुरुषों का माँस, और घोड़ों का और उनके सवारों का माँस, और क्या स्वतंत्र क्या दास, क्या छोटे क्या बड़े, सब लोगों का माँस खाओ।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:19 फिर मैंने उस पशु और पृथ्वी के राजाओं और उनकी सेनाओं को उस घोड़े के सवार, और उसकी सेना से लड़ने के लिये इकट्ठे देखा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:20 और वह पशु और उसके साथ वह झूठा भविष्यद्वक्ता पकड़ा गया, जिसने उसके सामने ऐसे चिन्ह दिखाए थे, जिनके द्वारा उसने उनको भरमाया, जिन पर उस पशु की छाप थी, और जो उसकी मूर्ति की पूजा करते थे। ये दोनों जीते जी उस आग की झील में, जो गन्धक से जलती है, डाले गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 19:21 और शेष लोग उस घोड़े के सवार की तलवार से, जो उसके मुँह से निकलती थी, मार डाले गए; और सब पक्षी उनके माँस से तृप्त हो गए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:1 ¶ फिर मैंने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा; जिसके हाथ में अथाह कुण्ड की कुंजी, और एक बड़ी जंजीर थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:2 और उसने उस अजगर, अर्थात् पुराने साँप को, जो शैतान है; पकड़कर हजार वर्ष के लिये बाँध दिया, (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:3 और उसे अथाह कुण्ड में डालकर बन्द कर दिया और उस पर मुहर कर दी, कि वह हजार वर्ष के पूरे होने तक जाति-जाति के लोगों को फिर न भरमाए। इसके बाद अवश्य है कि थोड़ी देर के लिये फिर खोला जाए। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:4 ¶ फिर मैंने सिंहासन देखे, और उन पर लोग बैठ गए, और उनको न्याय करने का अधिकार दिया गया। और उनकी आत्माओं को भी देखा, जिनके सिर यीशु की गवाही देने और परमेश्‍वर के वचन के कारण काटे गए थे, और जिन्होंने न उस पशु की, और न उसकी मूर्ति की पूजा की थी, और न उसकी छाप अपने माथे और हाथों पर ली थी। वे जीवित होकर मसीह के साथ हजार वर्ष तक राज्य करते रहे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:5 जब तक ये हजार वर्ष पूरे न हुए तब तक शेष मरे हुए न जी उठे। यह तो पहला पुनरुत्थान है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:6 धन्य और पवित्र वह है, जो इस पहले पुनरुत्थान का भागी है, ऐसों पर दूसरी मृत्यु का कुछ भी अधिकार नहीं, पर वे परमेश्‍वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साथ हजार वर्ष तक राज्य करेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:7 ¶ जब हजार वर्ष पूरे हो चुकेंगे तो शैतान कैद से छोड़ दिया जाएगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:8 और उन जातियों को जो पृथ्वी के चारों ओर होंगी, अर्थात् गोग और मागोग को जिनकी गिनती समुद्र की रेत के बराबर होगी, भरमाकर लड़ाई के लिये इकट्ठा करने को निकलेगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:9 और वे सारी पृथ्वी पर फैल जाएँगी और पवित्र लोगों की छावनी और प्रिय नगर को घेर लेंगी और आग स्वर्ग से उतरकर उन्हें भस्म करेगी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:10 और उनका भरमानेवाला शैतान आग और गन्धक की उस झील में, जिसमें वह पशु और झूठा भविष्यद्वक्ता भी होगा, डाल दिया जाएगा; और वे रात-दिन युगानुयुग पीड़ा में तड़पते रहेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:11 ¶ फिर मैंने एक बड़ा श्वेत सिंहासन और उसको जो उस पर बैठा हुआ है, देखा, जिसके सामने से पृथ्वी और आकाश भाग गए, और उनके लिये जगह न मिली। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:12 फिर मैंने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के सामने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गईं, अर्थात् जीवन की पुस्तक; और जैसे उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, उनके कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:13 और समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उसमें थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उनमें थे दे दिया; और उनमें से हर एक के कामों के अनुसार उनका न्याय किया गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:14 और मृत्यु और अधोलोक भी आग की झील में डाले गए। यह आग की झील तो दूसरी मृत्यु है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 20:15 और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:1 ¶ फिर मैंने नये आकाश और नयी पृथ्वी को देखा, क्योंकि पहला आकाश और पहली पृथ्वी जाती रही थी, और समुद्र भी न रहा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:2 फिर मैंने पवित्र नगर नये यरूशलेम को स्वर्ग से परमेश्‍वर के पास से उतरते देखा, और वह उस दुल्हन के समान थी, जो अपने दुल्हे के लिये श्रृंगार किए हो। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:3 फिर मैंने सिंहासन में से किसी को ऊँचे शब्द से यह कहते हुए सुना, “देख, परमेश्‍वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उनके साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्‍वर आप उनके साथ रहेगा; और उनका परमेश्‍वर होगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:4 और वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:5 और जो सिंहासन पर बैठा था, उसने कहा, “मैं सब कुछ नया कर देता हूँ।” फिर उसने कहा, “लिख ले, क्योंकि ये वचन विश्वासयोग्य और सत्य हैं।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:6 फिर उसने मुझसे कहा, “ये बातें पूरी हो गई हैं। मैं अल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त हूँ। मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंत-मेंत पिलाऊँगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:7 जो जय पाए, वही उन वस्तुओं का वारिस होगा; और मैं उसका परमेश्‍वर होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:8 परन्तु डरपोकों, अविश्वासियों, घिनौनों, हत्यारों, व्यभिचारियों, टोन्हों, मूर्तिपूजकों, और सब झूठों का भाग उस झील में मिलेगा, जो आग और गन्धक से जलती रहती है: यह दूसरी मृत्यु है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:9 ¶ फिर जिन सात स्वर्गदूतों के पास सात अन्तिम विपत्तियों से भरे हुए सात कटोरे थे, उनमें से एक मेरे पास आया, और मेरे साथ बातें करके कहा, “इधर आ, मैं तुझे दुल्हन अर्थात् मेम्‍ने की पत्‍नी दिखाऊँगा।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:10 ¶ और वह मुझे आत्मा में, एक बड़े और ऊँचे पहाड़ पर ले गया, और पवित्र नगर यरूशलेम को स्वर्ग से परमेश्‍वर के पास से उतरते दिखाया। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:11 परमेश्‍वर की महिमा उसमें थी, और उसकी ज्योति बहुत ही बहुमूल्य पत्थर, अर्थात् बिल्लौर के समान यशब की तरह स्वच्छ थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:12 और उसकी शहरपनाह बड़ी ऊँची थी, और उसके बारह फाटक और फाटकों पर बारह स्वर्गदूत थे; और उन फाटकों पर इस्राएलियों के बारह गोत्रों के नाम लिखे थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:13 पूर्व की ओर तीन फाटक, उत्तर की ओर तीन फाटक, दक्षिण की ओर तीन फाटक, और पश्चिम की ओर तीन फाटक थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:14 और नगर की शहरपनाह की बारह नींवें थीं, और उन पर मेम्‍ने के बारह प्रेरितों के बारह नाम लिखे थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:15 जो मेरे साथ बातें कर रहा था, उसके पास नगर और उसके फाटकों और उसकी शहरपनाह को नापने के लिये एक सोने का गज था। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:16 वह नगर वर्गाकार बसा हुआ था और उसकी लम्बाई, चौड़ाई के बराबर थी, और उसने उस गज से नगर को नापा, तो साढ़े सात सौ कोस का निकला: उसकी लम्बाई, और चौड़ाई, और ऊँचाई बराबर थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:17 और उसने उसकी शहरपनाह को मनुष्य के, अर्थात् स्वर्गदूत के नाप से नापा, तो एक सौ चौवालीस हाथ निकली। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:18 उसकी शहरपनाह यशब की बनी थी, और नगर ऐसे शुद्ध सोने का था, जो स्वच्छ काँच के समान हो। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:19 उस नगर की नींवें हर प्रकार के बहुमूल्य पत्थरों से संवारी हुई थी, पहली नींव यशब की, दूसरी नीलमणि की, तीसरी लालड़ी की, चौथी मरकत की, (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:20 पाँचवी गोमेदक की, छठवीं माणिक्य की, सातवीं पीतमणि की, आठवीं पेरोज की, नौवीं पुखराज की, दसवीं लहसनिए की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की, बारहवीं याकूत की थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:21 और बारहों फाटक, बारह मोतियों के थे; एक-एक फाटक, एक-एक मोती का बना था। और नगर की सड़क स्वच्छ काँच के समान शुद्ध सोने की थी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:22 ¶ मैंने उसमें कोई मन्दिर न देखा, क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्‍वर, और मेम्‍ना उसका मन्दिर हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:23 और उस नगर में सूर्य और चाँद के उजियाले की आवश्यकता नहीं, क्योंकि परमेश्‍वर के तेज से उसमें उजियाला हो रहा है, और मेम्‍ना उसका दीपक है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:24 जाति-जाति के लोग उसकी ज्योति में चले-फिरेंगे, और पृथ्वी के राजा अपने-अपने तेज का सामान उसमें लाएँगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:25 उसके फाटक दिन को कभी बन्द न होंगे, और रात वहाँ न होगी। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:26 और लोग जाति-जाति के तेज और वैभव का सामान उसमें लाएँगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 21:27 और उसमें कोई अपवित्र वस्तु या घृणित काम करनेवाला, या झूठ का गढ़नेवाला, किसी रीति से प्रवेश न करेगा; पर केवल वे लोग जिनके नाम मेम्‍ने की जीवन की पुस्तक में लिखे हैं। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:1 ¶ फिर उसने मुझे बिल्लौर के समान झलकती हुई, जीवन के जल की एक नदी दिखाई, जो परमेश्‍वर और मेम्‍ने के सिंहासन से निकलकर, (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:2 उस नगर की सड़क के बीचों बीच बहती थी। नदी के इस पार और उस पार जीवन का पेड़ था; उसमें बारह प्रकार के फल लगते थे, और वह हर महीने फलता था; और उस पेड़ के पत्तों से जाति-जाति के लोग चंगे होते थे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:3 फिर श्राप न होगा, और परमेश्‍वर और मेम्‍ने का सिंहासन उस नगर में होगा, और उसके दास उसकी सेवा करेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:4 वे उसका मुँह देखेंगे, और उसका नाम उनके माथों पर लिखा हुआ होगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:5 और फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले की आवश्यकता न होगी, क्योंकि प्रभु परमेश्‍वर उन्हें उजियाला देगा, और वे युगानुयुग राज्य करेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:6 ¶ फिर उसने मुझसे कहा, “ये बातें विश्वासयोग्य और सत्य हैं। और प्रभु ने, जो भविष्यद्वक्ताओं की आत्माओं का परमेश्‍वर है, अपने स्वर्गदूत को इसलिए भेजा कि अपने दासों को वे बातें, जिनका शीघ्र पूरा होना अवश्य है दिखाए।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:7 “और देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ; धन्य है वह, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें मानता है।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:8 मैं वही यूहन्ना हूँ, जो ये बातें सुनता, और देखता था। और जब मैंने सुना और देखा, तो जो स्वर्गदूत मुझे ये बातें दिखाता था, मैं उसके पाँवों पर दण्डवत् करने के लिये गिर पड़ा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:9 पर उसने मुझसे कहा, “देख, ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा और तेरे भाई भविष्यद्वक्ताओं और इस पुस्तक की बातों के माननेवालों का संगी दास हूँ, परमेश्‍वर ही को आराधना कर।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:10 फिर उसने मुझसे कहा, “इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातों को बन्द मत कर; क्योंकि समय निकट है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:11 “जो अन्याय करता है, वह अन्याय ही करता रहे; और जो मलिन है, वह मलिन बना रहे; और जो धर्मी है, वह धर्मी बना रहे; और जो पवित्र है, वह पवित्र बना रहे।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:12 ¶ “देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:13 “मैं अल्फा और ओमेगा, पहला और अन्तिम, आदि और अन्त हूँ।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:14 धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से होकर नगर में प्रवेश करेंगे। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:15 पर कुत्ते, टोन्हें, व्यभिचारी, हत्यारे, मूर्तिपूजक, हर एक झूठ का चाहनेवाला और गढ़नेवाला बाहर रहेगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:16 “मुझ यीशु ने अपने स्वर्गदूत को इसलिए भेजा, कि तुम्हारे आगे कलीसियाओं के विषय में इन बातों की गवाही दे। मैं दाऊद का मूल और वंश, और भोर का चमकता हुआ तारा हूँ।” (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:17 और आत्मा, और दुल्हन दोनों कहती हैं, “आ!” और सुननेवाला भी कहे, “आ!” और जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंत-मेंत ले। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:18 ¶ मैं हर एक को, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें सुनता है, गवाही देता हूँ: यदि कोई मनुष्य इन बातों में कुछ बढ़ाए तो परमेश्‍वर उन विपत्तियों को जो इस पुस्तक में लिखी हैं, उस पर बढ़ाएगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:19 और यदि कोई इस भविष्यद्वाणी की पुस्तक की बातों में से कुछ निकाल डाले, तो परमेश्‍वर उस जीवन के पेड़ और पवित्र नगर में से, जिसका वर्णन इस पुस्तक में है, उसका भाग निकाल देगा। (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:20 जो इन बातों की गवाही देता है, वह यह कहता है, “हाँ, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ।” आमीन। हे प्रभु यीशु आ! (IN)

प्रकाशित वाक्य 22:21 प्रभु यीशु का अनुग्रह पवित्र लोगों के साथ रहे। आमीन। (IN)